निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1. देख आया चंद्र गहना देखता हूँ दृश्य अब मैं। मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला। एक बीते के बराबर यह हरा ठिगना चना, बाँधे मुरैठा शीश पर छोटे गुलाबी फूल का, सजकर खड़ा है। (क) कवि कहाँ बैठा हुआ था?उसके साथ कौन था? (ख) कवि ने खेत में किसे देखा? (ग) चने की शोभा वर्णित कीजिए। (घ) अवतरण में निहित काव्य सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) कवि चंद्र गहना से लौटते समय एक खेत की मेड़ पर बैठा हुआ है। उसके साथ कोई नहीं है, वह बिल्कुल अकेला है। (ख) कवि ने खेत में हरे-भरे चने को देखा था। (ग) हरा-भरा चना ठिगना है। उसकी शोभा प्रकृति ने सुंदर ढंग से बढ़ाई है। उस पर छोटे-छोटे गुलाबी फूल लगे हैं जो उसके सिर पर गुलाबी पगड़ी के समान प्रतीत होते हैं। (घ) कवि ने खेत में उगे चने की अद्भुत सुंदरता को प्रकट करते हुए मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। तद्भव और तत्सम शब्दावली का मिला-जुला प्रयोग भाषा को सुंदरता प्रदान करने में सफल हुआ है। चाक्षुक बिंब विद्यमान है। अभिधा शब्द शक्ति और प्रसाद गुण कथन को सरलता और सहजता प्रदान करने में सहायक हुए हैं। मुक्त छंद का प्रयोग है। 2. पास ही मिलकर उगी है बीच में अलसी हठीली। देह की पतली, कमर की है लचीली, नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर कह रही है, जो छुए यह, दूँ हृदय का दान उसको। (क) कवि ने अलसी को कौन-सा विशेषण दिया है? (ख) अलसी की सुंदरता प्रकट कीजिए। (ग) अलसी क्या कहना चाहती है? (घ) अवतरण में निहित काव्य सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) कवि ने अलसी को 'हठीली' विशेषण दिया है। (ख) अलसी अति सुंदर है। उसकी देह दुबली-पतली है, कमर लचीली है तथा उसके सिर पर नीले रंग के छोटे-छोटे फूल शोभा दे रहे हैं। (ग) अलसी कहना चाहती है कि जो भी उसके फूलों को छुएगा वह उसे अपना हृदय दान में दे देगी। (घ) कवि ने खड़ी बोली में खेत में उगी अलसी के कोमल-सुंदर पौधों का सजीव चित्रण किया है। लेखन में चित्रात्मकता का गुण है। अभिधा शब्दशक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। मानवीकरण अलंकार का प्रयोग सराहनीय है। 3. और सरसों की न पूछो हो गई सबसे सयानी, हाथ पीले कर लिए हैं। ब्याह-मंडप में पधारी, फाग गाता मास फागुन आ गया है आज जैसे। (क) कवि की दृष्टि में सयानी कौन हो गई है? (ख) शादी के मंडप में कौन पधारी है? (ग) फागुन का महीना क्या गा रहा है? (घ) अवतरण में निहित काव्य सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। उत्तर - (क) कवि की दृष्टि में सरसों अब सयानी हो गई है। (ख) शादी के मंडप में सरसों पधारी है। (ग) फागुन का महीना फाग गा रहा है जो होली के अवसर पर गाया जाता है। (घ) कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दूर-दूर तक फैली पीली-पीली सरसों का मानवीकरण करते हुए माना है कि वह सयानी हो गई है, विवाह के योग्य हो गई है इसलिए वह प्रकृति के द्वारा सजाए-संवारे मंडप में पधारी है। फागुन का महीना फाग गाने लगा है। कवि की भाषा सरल और सरस है जिस में सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। 'हाथ पीले करना' में लाक्षणिकता विद्यमान है। मुक्त छंद में भी लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है। 4. देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है, प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है इस विजन में, दूर व्यापारिक नगर से, प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है। (क) किसका स्वयंवर हो रहा है? (ख) कवि ने किसके आंचल हिलने का वर्णन किया है? (ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन कैसा है? (घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) कवि ने माना है कि ग्रामीण शोभा रूपी आँचल में सरसों का स्वयंवर हो रहा है। (ख) कवि ने प्रकृति रूपी नायिका के प्रेम पूर्ण आँचल हिलने का वर्णन किया है। (ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन पाखंडपूर्ण, स्वार्थमय और व्यापारिक है। (घ) कवि ने अवतरण में खेतों का चित्रात्मक और अनुरागमयी रूप अंकित किया है। अतुकांत छंद में रचित पंक्तियों में लयात्मकता विद्यमान है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक रूप सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। 5. और पैरों के तले है एक पोखर, उठ रहीं इसमें लहरियाँ, नील तल में जो उगी है घास भूरी ले रही वह भी लहरियाँ। (क) कवि के पैरों के पास क्या है? (ख) पोखर की गहराई में क्या उगा हुआ है? (ग) तल में घास किस प्रकार का व्यवहार कर रही है? (घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) कवि के पैरों के पास एक पोखर है जो पानी से भरा हुआ है। (ख) पोखर की गहराई में घास उगी हुई है जो भूरे रंग की है। (ग) पोखर के जल के हिलने से घास भी लहरियाँ लेती हुई प्रतीत होती है। (घ) अवतरण में पोखर का सजीव चित्रण किया गया है। तल में उगी हुई घास भी जल के हिलने से लहरियाँ लेने लगती है। चित्रात्मकता विद्यमान है। अनुप्रास का सहज प्रयोग किया गया है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति विद्यमान है। 6. एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा आंख को है चकमकाता। हैं कई पत्थर किनारे पी रहे चुपचाप पानी, प्यास जाने कब बुझेगी (क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा किसे कहा है? (ख) पत्थर कहाँ हैं? (ग) पत्थर क्या करते प्रतीत हो रहे हैं? (घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा सूर्य के प्रतिबिंब को कहा है जो पोखर के जल में बिंबित हो रहा है। पानी के हिलने के कारण वह निरंतर हिल कर लंबे खंभे-सा प्रतीत रहा है। (ख) अनेक पत्थर पोखर के किनारे पड़े हैं जो कुछ-कुछ जल को स्पर्श कर रहे हैं। (ग) कवि को प्रतीत होता है कि वे पत्थर पोखर के पानी को पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। (घ) कवि ने कल्पना की है कि पोखर के जल में आँख को चकमकाता सूर्य का प्रतिबिंब बड़े से गोल खंभे के रूप में दिखाई दे रहा है और किनारे पर पड़े पत्थर ऐसे लगते हैं जैसे पोखर के जल को पीकर अपनी प्यास को बुझाना चाह रहे हों। पता नहीं उनकी प्यास कभी बुझेगी भी या नहीं। शब्द अति सरल हैं। अभिधा शब्द शक्ति, प्रसाद गुण और चित्रात्मकता ने कवि के भावों को सजीवता प्रदान की है। उपमा, स्वाभावोक्ति और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। 7. चुप खड़ा बगुला डुबाए टांग जल में, देखते ही मीन चंचल ध्यान-निद्रा त्यागता है, चट दबाकर चोंच में नीचे गले के डालता है। (क) पोखर के जल में एक टांग पर कौन खड़ा है? (ख) बगुला अपनी नींद को कब त्यागता प्रतीत होता है? (ग) तालाब में खड़ा बगुला क्या वास्तव में ही नींद में होता है? उत्तर-(क) पोखर के जल में एक टांग पर बगुला खड़ा है। (ख) बगुला अपनी नींद को तब त्यागता प्रतीत होता है जब कोई चंचल मछली जल में उसके निकट से गुज़रती है। (ग) बगुला वास्तव में सोया हुआ नहीं होता। वह बिना हिले-डुले मछलियों को यह अहसास कराता है कि जल में ऐसा कोई खतरा नहीं जो उन्हें क्षति पहुँचा सके। किसी प्रकार के संकट की संभावना न होने के कारण ही मछलियाँ तैरती हुई बगुले के निकट आ जाती हैं। 8. एक काले माथे वाली चतुर चिड़िया श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन। टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर एक उजली चटुल मछली चोंच पीली में दबाकर दूर उड़ती है गगन में (क) चिड़िया का रूप कैसा है? (ख) कवि ने चिड़िया को चतुर क्यों कहा है? (ग) चिड़िया उड़कर कहाँ गई? (घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) चिड़िया सफेद पंखों वाली थी जिस के माथे का काला रंग था। वह तेजी से झपटने की क्षमता रखती थी। उसकी चोंच पीली थी। (ख) कवि ने चिड़िया को चतुर कहा है क्योंकि वह जल की गहराई से ही अपनी पीली चोंच में मछली को झपट कर ले गई थी और पल भर में ही आकाश की ऊँचाई में दूर उड़ गई थी। (ग) चिड़िया उड़कर आकाश में चली गई थी। (घ) कवि ने काले माथे, पीली चोंच और सफेद रंग की चिड़िया की निपुणता और चपलता का वर्णन किया है। गतिशील बिंब योजना और सुंदर रंग योजना ने सहज रूप से चित्रात्मकता को प्रकट किया है। अनुप्रास का सहज स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति ने कवि के कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है। 9. औ यहीं से भूमि ऊँची है जहां से रेल की पटरी गई है, ट्रेन का टाइम नहीं है। मैं यहां स्वच्छंद हूँ जाना नहीं है। चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी, कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ। दूर दिशाओं तक फैली हैं। बांझ भूमि पर इधर-उधर रीवां के पेड़, कांटेदार कुरूप खड़े हैं। (क) कवि उस स्थान पर स्वयं को स्वच्छंद क्यों मानता है? (ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ कैसी हैं? (ग) कांटेदार कुरूप पौधे कहाँ पर हैं? (घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) कवि स्वयं को उस ऊँची भूमि पर स्वच्छंद मानता है क्योंकि उस समय उसके पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। वहाँ से गुज़रती रेल की पटरी पर भी तब कोई गाड़ी गुजरने वाली नहीं थी। (ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ चौड़ी और अनगढ़ हैं। उनकी ऊँचाई अधिक नहीं है और वे दूर-दूर तक फैली हुई हैं। (ग) चित्रकूट की अनगढ़ पथरीली बाँझ भूमि पर रीवां के कांटेदार कुरूप पेड़ इधर-उधर उगे हुए हैं। (घ) कवि ने चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी और कम ऊँची पहाड़ियों पर उगे रीवां के काँटेदार कुरूप पेड़ों का वर्णन करने के साथ-साथ अपने अकेलेपन का उल्लेख किया है। कवि ने बोलचाल की सामान्य शब्दावली का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से किया है। 'रेल', 'ट्रेन', 'टाइम' आदि विदेशी शब्दावली के साथ-साथ तद्भव शब्दावली की अधिकता है। मानवीकरण और अनुप्रास का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द शक्ति और प्रसाद गुण का सुंदर प्रयोग कथन की सरलता का आधार है। मुक्त छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है। 10. सुन पड़ता है मीठा-मीठा रस टपकाता सुग्गे का स्वर टें टें टें टें, सुन पड़ता है वनस्थली का हृदय चीरता। उठता-गिरता, सारस का स्वर। टिरटों टिरटों, मन होता है उड़ जाऊँ मैं, पर फैलाए सारस के संग जहाँ जुगल जोड़ी रहती है हरे खेत में, सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ चुप्पे-चुप्पे। (क) कवि ने किस-किस पक्षी की आवाज़ कविता में सुनाई है? (ख) कवि की इच्छा क्या है? (ग) कवि किसकी प्रेम कहानी सुनना चाहता है? (घ) अवतरण में निहित काव्य सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए। उत्तर-(क) कवि ने तोते की रस टपकाती टें टें टें टेंतथा सारस के स्वर टिरटों टिरटों आवाजें कविता में सुनाई हैं जो सारे वन क्षेत्र में गूंज रही हैं। (ख) कवि की इच्छा है कि वह भी सारस पक्षी के साथ उड़ जाए और स्वच्छंद उड़ान भरे। (ग) कवि सारस पक्षी के साथ उड़कर उन हरे-भरे खेत में जाना चाहता है जहाँ उनकी जोड़ी रहती है और प्रेम व्यवहार करती है। वह उनकी प्रेम कहानी को सुनना चाहता है ताकि वह भी अपने जीवन में उन जैसा पवित्र प्रेम-भाव प्राप्त कर सके। (घ) कवि ने अपने जीवन में पक्षियों से प्रेम-भाव की शिक्षा पाने की कामना की है। उनकी मधुर आवाज़ उनके हृदय के भावों को प्रकट करने में सक्षम है। 'टें टें टें टें' तथा 'टिरटों टिरटों' से श्रव्य बिंब की सृष्टि हुई है। दृश्य बिंब ने गाँव के सुंदर क्षेत्र को प्रकट करने में सफलता पाई है। अतुकांत छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता विद्यमान है। पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। |