CBSE, NCERT, JEE Main, NEET-UG, NDA, Exam Papers, Question Bank, NCERT Solutions, Exemplars, Revision Notes, Free Videos, MCQ Tests & more. Extra Questions of Class 9 Hindi -B Rahim Chapter 8. myCBSEguide has just released Chapter Wise Question Answers for class 09 Hindi – B. There chapter wise Practice Questions with complete solutions are available for download in myCBSEguide website and mobile app. These test papers with solution are prepared by our team of expert teachers who are teaching grade in CBSE schools for years. There are around 4-5 set of solved Hindi Extra questions from each and every chapter. The students will not miss any concept in these Chapter wise question that are specially designed to tackle Exam. We have taken care of every single concept given in CBSE Class 09 Hindi – B syllabus and questions are framed as per the latest marking scheme and blue print issued by CBSE for class 09. CBSE Class 9 Hindi Ch – 8 Download as PDF Practice Paper of Class 9 Hindi – BCh-8 रहीम
Ch-8 रहीम Answer
Class 9 Hindi – B Chapter Wise Important QuestionRBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीमRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम अति लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न
1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम व्याख्यात्मक प्रश्न 1. “मान सहित विष खाय………….राहु कटायो सीस॥ दोहे की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1. ‘मूल’ को सींचने से – (क) वृक्ष
का तना पुष्ट होता है। 2. भाँवरें पड़ने के बाद नदी में सिरा देते हैं – (क) हवन घी भस्म को 3. ‘काक और पिक’ की पहचान होती है – (क) वर्षा ऋतु में 4. मथने पर मक्खन नहीं निकलता (क) ठंडे दूध से 5. जीभ की वकबाद का फल भुगतना पड़ता है – (क) हाथों को उत्तर:
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. सुई तलवार की अपेक्षा बहुत छोटी होती है परन्तु तलवार बड़ी होने पर भी सुई द्वारा किए जाने वाले कार्य को- सिलाई को नहीं कर सकती। अत: छोटों से सम्बंध बनाए रखना बुद्धिमत्ता की निशानी है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 3 रहीम निबंधात्मक प्रश्न प्रश्न 1. दूसरी दोहा “बिपति भए……………..भए भोर॥” है। धन वैभव से सम्पन्न व्यक्ति को अपने धन-बल पर बड़ा भरोसा होता है। वह अपने धन को अभेध भवन जैसा मान बैठता है। जब विपत्ति उस प्रहार करती है तो उसका विश्वस्त बल धन भी उसे दगा दे जाता है। कवि ने इस सच्चाई के प्रति हमेशा इस दोहे द्वारा सचेत किया है। रात्रि में आकाश में असंख्य तारे दिखाई पड़ते हैं पर ‘भोर’ भोररूपी विपत्ति आने पर उनका कहीं अता-पता नहीं चलता। इसलिए धन पर अतिविश्वास करना बुद्धिमानी नहीं है। तीसरा दोहा “बड़े बेड़ाई……………मेरौ मोल॥” है। इस दोहे में कवि ने शेखीखोरों और अहंकारियों को अपने व्यंग्य का निशाना बनाया है। बड़ा वह है जिसे सारा समाज बड़ा माने। ‘अपने मुँह मियाँ मिट्ठू’ बनने से, अपनी बड़ाई अपने आप करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। कवि ने ऐसे लोगों को हीरे का उदाहरण देकर, दर्पण दिखाने का काम किया है। प्रश्न 2. किन्तु संगति के इस प्रभाव के अपवाद विपरीत रूप भी देखने में आते हैं। रहीम कहते हैं कि जो लोग उत्तम स्वभाव वाले होते हैं। उन पर कुसंगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चंदन शीतल स्वभाव वाला होता है। माना जाता है कि चंदन के वृक्षों पर सर्प लिपटे रहते हैं। परन्तु चंदन पर उनके विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह अपनी शीतलता नहीं त्यागता है। प्रश्न 3. रहीम कहते हैं कि दुख पड़ने पर आँसू मत बहाओ। आँसू जब नेत्रों से बाहर आते हैं तो वे मन के दुख को सब पर प्रकट कर देते हैं। स्वाभिमानी पुरुष कभी दीनता नहीं दिखाता। वह धैर्य के साथ दुख के दिनों का सामना करता है। ‘माँगे घटत…………..वामनै नाम’ दोहा रहीम के स्वाभिमानी व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसी प्रकार रहीम मन की व्यथा को मन में छिपाए रखने की सीख भी देते हैं। यदि व्यक्ति दुख से व्याकुल होकर अपने मन की पीड़ा औरों को सुनाएगा तो लोग उसके दुख को बाँटने के लिए आगे नहीं आएँगे। वे तो इठला-इठलाकर उसके हाल का उपहास करेंगे। क्या एक स्वाभिमानी व्यक्ति इस स्थिति को सहन कर सकता है? कभी नहीं। अतः यह प्रत्यक्ष है कि रहीम एक स्वाभिमानी और धैर्यशाली व्यक्ति थे। उनके जीवन से भी इसके प्रमाण मिलते हैं। प्रश्न 4. रहीम व्यवहारकुशल व्यक्ति थे। “रहिमन देखि…………….करै तरवारि॥” दोहे से उनके इस गुण का पता चलता है। बड़ों के साथ छोटों को भी महत्व देना चाहिए। सुई का काम तलवार नहीं कर सकती। रहीम एक विद्वान पुरुष थे। उन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान था और उनमें काव्य रचना का कौशल भी प्राप्त था। उनका अध्ययन बहुत व्यापक था। उन्होंने रामायण, गीता, पुराण तथा महाभारत आदि हिन्दू ग्रन्थों का भी अध्ययन किया था। वह एक उदार हृदय व्यक्ति थे। गुण ग्राहक और दानी थे। जीवन के हर पक्ष का उन्हें गहरा अनुभव था। ‘एकै साधे सब सधै’, ‘जैसी संगति बैठिए ………..दीन, काज परे ………सिरावत मौर’, ‘थोथे बादर…….पाछिली बात’, ‘बड़े बड़ाई ………मेरौ मोल’ आदि कथन उनके अनुभवों की व्यापकता का प्रमाण देते हैं। एक कवि के रूप में भी रहीम बड़े लोकप्रिय रहे हैं। ब्रज भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था। ‘नीति वचन’ जैसे नीरस विषय को भी उन्होंने बड़ी रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। अपनी बात को दृष्टांतों तथा उदाहरणों से सिद्ध करने में वह कुशल हैं। अपनी रचनाओं में उन्होंने मानव-जीवन के विविध पक्षों, समस्याओं और भावनाओं को बड़ी कुशलता गुँथा है। आज भी उनका काव्य लोगों को प्रसंगिक और उपयोगी प्रतीत होता है। प्रश्न 5. रहीम के दोहे आज से चार सौ वर्ष से भी पूर्व रचे गए थे, किन्तु आज भी उनमें से अधिकांश हमें प्रासंगिक और उपयोगी प्रतीत होते हैं। संकलित दोहों में दैनिक जीवन के उपयोगी सुझाव दिए गए हैं। बड़ों से मेल-जोल होने पर छोटों को मत भुलाइए। वे भी कभी बड़े काम के साबित होते हैं। कुसंग से बचे रहिए। केवल काम निकालने के लिए सम्बंध और सम्मान उचित नहीं होता। भले आदमियों की मित्रता बड़ी अनमोल है। अपना दुख दूसरों को सुनाकर हँसी के पात्र मत बनिए। बोलते समय संयम से काम लीजिए। ये सभी नीतिवचन, सीखें और सुझाव आज भी उतने ही उपयोगी हैं। प्रश्न 6. भाषा- कवि रहीम ने अपने दोहों की रचना सरस, साहित्यिक और प्रौढ़ ब्रजभाषा में की है। गूढ़ विषयों को भी सरल भाषा में प्रस्तुत करने में रहीम को कुशलता प्राप्त है। भाषा में तद्भव, तत्सम तथा आंचलिक शब्दों का सहज मेल है। कथन शैली- कवि ने अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए अनेक शैलियों को माध्यम बनाया है विषय को गहराई और प्रामाणिकता देने के लिए रहीम प्रायः दृष्टांतों और उदाहरणों का प्रयोग करते हैं। व्यंग्य, परिहास और उपदेश सभी का प्रयोग वे प्रभावशाली ढंग से करते हैं। अलंकार- कवि ने अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से किया है। अनुप्रास, उपमा, रूपक तथा दृष्टांत आदि अलंकार उनके काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। विषय-कवि ने नीति, लोक व्यवहार, उपदेश, मानवीय मनोभाव तथा हास-परिहास आदि विविध विषयों को अपनी सहज कुशलता से लघु छंद में पिरोया है। कवि रहीम की कविता सभी दृष्टियों से लोकप्रियता में आगे रही है। रहीम कवि परिचय ‘रहीम’ नाम से हिन्दी काव्य जगत में प्रसिद्ध, नीतिपरक दोहों के अप्रतिम रचयिता का पूरा नाम, अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनका जन्म सन् 1556 ई. में हुआ था। इनके पिता बैरम खाँ अकबर के संरक्षक थे। रहीम कई भाषाओं के ज्ञाता, विद्वान और उदार हृदये, पुरुष थे। बादशाह अकबर से इन्हें पूरा सम्मान मिला। रहीम उदार धार्मिक दृष्टिकोण के अनुकरणीय उदाहरण थे। आपने हिन्दू देवताओं के प्रति पूर्ण आदर प्रकट किया। आपका देहावसान सन् 1626 ई. में हुआ। रहीम लोकप्रिय कवि रहे हैं। उनके नीतिपरक दोहों का प्रयोग प्राय: लोग करते रहे हैं। उन्होंने नीति, भक्ति, श्रृंगार तथा प्रेम आदि विषयों पर काव्य रचनाएँ की हैं। आपने महाभारत, रामायण, पुराणों तथा गीता आदि ग्रन्थों के पात्रों तथा घटनाओं का अपनी रचनाओं में उदारता से प्रयोग किया है। रहीम के प्रिय छन्द, दोहा, सोरठा, बरवै तथा सवैया आदि हैं। रचनाएँ-रहीम की प्रमुख रचनाएँ-दोहावली, बरवै नायिका भेद, रासपंचाध्यायी, मदनाष्टक तथा नगरशोभा आदि हैं। रहीम पाठ परिचय हमारी पाठ्यपुस्तक में कवि रहीम रचित 19 दोहे संकलित हैं। इनमें अनेक जीवनोपयोगी विषयों को लक्ष्य करके रचे गये हैं। व्यवहारकुशलता, उदारता, सहानुभूति, परोपकार, स्वाभिमान, सत्संगति, बड़प्पन आदि मानवीय गुणों का समावेश इन दोहों में है। रहीम बड़ों से मित्रता होने पर छोटों को न भुलाने का परामर्श दे रहे हैं। संगति के फल को सप्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं। काम निकल जाने पर वस्तु और व्यक्तियों के व्यवहार पर टिप्पणी कर रहे हैं। वृक्षों और सरोवरों का उदाहरण देकर परोपकारियों की प्रशंसा कर रहे हैं। मन का दुख मन में ही छिपाए रखने की महत्त्वपूर्ण सीख दे रहे हैं। स्वाभिमान के साथ जीने की महत्ता समझा रहे हैं। बात को बिगड़ने न दें, बिगड़ने के बाद बनाना बड़ा कठिन होता है, यह सीख दे रहे हैं। माँगने से मर जाना श्रेष्ठ है, सँभलकर बोलना ही बुद्धिमत्ता है। इन समस्त नीति वचनों से कवि की रचनाएँ सुशोभित हैं। काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ 1. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। कठिन शब्दार्थ-बड़ेन को = बड़ों को। लघु = छोटा। न दीजिए डारि = त्याग मत कीजिए। साधे = साधना, ध्यान देना। मूलहिं = जड़ को। सचिबो = सींचना। फूलै-फलै = फलता-फूलता है। अघाय = भरपूर, मनचाहा। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गये हैं। इन दोहों में कवि ने छोटे लोगों के महत्त्व को तथा एक लक्ष्य पर ध्यान दिए जाने का महत्त्व समझाया गया है। व्याख्या-रहीम कहते हैं-यदि आपकी बड़े लोगों से जान-पहचान हो गई हो, तो अपने छोटे साथियों का त्याग करना या उनकी उपेक्षा करना बुद्धिमानी नहीं है। प्रत्यक्षं देख लो, जहाँ सुई काम आती है वहाँ तलवार कुछ नहीं कर सकती है। कवि कहता है जो मूल या प्रमुख कार्य है, उसी पर ध्यान देना उचित होता है। जो सब कामों को एक साथ साधने का प्रयत्न करते हैं वे किसी कार्य में सफल नहीं हो पाते हैं। एकमात्र जड़ को सींचने से पूरा वृक्ष भरपूर रूप में फलता-फूलता है। डालों और पत्तों को सींचने से उसके सूख जाने की आशंका बनी रहती है। विशेष- 2. कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुनं तीन। कठिन शब्दार्थ-कदली = केला। सीप = एक कीट निर्मित खोल जिसमें मोती बनता है। भुजंग = सर्प। स्वाति = एक नक्षत्र जिसके होते हुए वर्षा की बूंद विभिन्न रूप धारण करती है। संगति = साथ। बैठिए = रहोगे। तैसौई = वैसा ही। दीन = प्राप्त होता है। काज = काम। परै = पड़ने पर। कछु और = कुछ और ही (व्यवहार)। काज सरै = काम निकल जाने पर। सँवरी = भाँवर, अग्नि की परिक्रमा। सिरावत = बहाते हैं, विसर्जित करते हैं। मौर = दूल्हे द्वारा सिर पर धारण किए जाने वाला मुकुट। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तके से संकलित रहीम के दोहों से लिए गए हैं। इन दोहों में कवि ने क्रमश: संगति के प्रभाव और संसार में स्वार्थपूर्ण व्यवहार पर व्यंग्यमय टिप्पणी की है। व्याख्या-कवि रहीम कहते हैं कि वस्तु हो या व्यक्ति वह जैसी संगति करता है। उसे वैसा ही फल मिलता है। स्वाति नक्षत्र में जो बूंद गिरती है। वह भिन्न-भिन्न संगति से भिन्न-भिन्न रूप प्राप्त करती हैं। केले के वृक्ष पर गिरी बूंद कपूर बन जाती है। सीपी में गिरने। वाली बूंद मोती बन जाती है और सर्प के मुख में गिरने वाली बूंद विष बन जाती है। अत: जैसी संगति करोगे वैसा ही फल प्राप्त होगा। कवि कहता है कि संसार में काम पड़ने और काम निकल जाने पर लोगों का व्यवहार बिल्कुल अलग-अलग होता है। काम पड़ने पर वस्तु या व्यक्ति का बड़ा ध्यान और सम्मान रखा जाता है। परन्तु काम निकल जाने पर उसकी घोर उपेक्षा की जाती है। दूल्हे के मौर को ही देख लीजिए। विवाह के समय उसको बड़ा सम्मान दिया जाता है और भाँवरें पड़ जाने, विवाह सम्पन्न हो जाने पर, उसे नदी में सिरा दिया जाता, बहा दिया जाता है। विशेष- 3. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। कठिन शब्दार्थ-उत्तम = अच्छा। प्रकृति = स्वभाव। का = क्या। करि सकत = कर सकता है। व्यापत = व्याप्त होना, प्रभावित करना। भुजंग = साँप। सुजन = सज्जन व्यक्ति। फिरि-फिरि = बार-बार। पहिए = पूँथिए। टूटे = टूट जाने पर। मुक्ताहार = मोतियों का हार। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिया गया है। कवि ने उत्तम स्वभाव वाले व्यक्तियों पर कुसंग का प्रभाव न पड़ने की बात सप्रमाण कही है। कवि जीवन में सज्जनों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उनके सम्मान को बनाए रखने का परामर्श दे रहा है। व्याख्या-कवि रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति उत्तम स्वभाव वाले होते हैं उनका कुसंग कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उन पर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यद्यपि चंदन के वृक्ष पर सर्प लिपटे रहते हैं, फिर भी उस पर सर्पो के विष का कोई प्रभाव नहीं होता। कवि रहीम का परामर्श है कि यदि सज्जन किसी बात पर रूठ जाएँ तो सौ बार भी उनको मनाने का प्रयास करना चाहिए। सज्जनों की मित्रता बहुत मूल्यवान होती है। मोतियों का हार जितनी भी बार टूटता है, उसे हर बार फिर से पिरोने या गूंथने का यत्न किया जाता है। जैसे मूल्यवान मोती के हार को टूट जाने पर फेंका नहीं जा सकता, उसी प्रकार सज्जन पुरुषों की मूल्यवान मित्रता की रक्षा करना भी परम आवश्यक है। विशेष- 4. तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान। कठिन शब्दार्थ-तरुवर = वृक्ष। सरबर = सरोवर, तालाब। पान = पानी। पर-काज = दूसरों के काम के लिए, परोपकार के लिए। संपति = धन। सँचहि = एकत्र करते हैं। सुजान = सज्जन, श्रेष्ठ पुरुष। थोथे = जल रहित। बादर = बादल। क्वाँर = वर्षा ऋतु का अन्तिम मास। घहरात = घुमड़ते हैं। निर्धन = धनहीन, गरीब। पाछिली = पिछली, सम्पन्नता के समय की। सन्दर्भ तथा प्रसंग-ये दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। इन दोहों में कवि ने परोपकारी महापुरुषों की प्रशंसा की है तथा धनी से निर्धन हो जाने वाले लोगों के पुरानी बातें बखानने के स्वभाव पर व्यंग्य किया है। व्याख्या-कवि कहता है कि प्रकृति हमें परोपकार का आदर्श स्वरूप समझाती आ रही है। उसके वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते वे दूसरों के ही काम आते हैं। इसी प्रकार तालाब अपना जल स्वयं नहीं पीते। उनसे मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष और खेतों की प्यास बुझा करती है। यही बात सज्जनों पर भी लागू होती है। वे भी केवल परोपकार के लिए संपत्ति का संचय किया करते हैं। उनके धन का लाभ दूसरे ही उठाया करते हैं। रहीम कहते हैं-वर्षा ऋतु के अन्तिम मास क्वार (आश्विन) में घुमड़ने वाले जलरहित बादल बरसते नहीं। केवल घुमड़कर और गरजकर रह जाते हैं। इसी प्रकार जो धनी व्यक्ति निर्धन हो जाता है, वह अपने धन-सम्पन्नता के दिनों की बातें बढ़-चढ़कर किया करती है। वह वास्तविकता को भुलाकर व्यर्थ के अहंकार में फंसा रहता है। विशेष- 5. रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुःख प्रकट करे। कठिन शब्दार्थ-अँसुआ = आँसू। नैन = नेत्र। ढरि = ढुलककर। जिय = हृदय। करेइ = करते हैं। जाहि = जिसे। निकारो = निकालोगे। गेह = घर। ते = से। कस न = क्या नहीं। भेद = गुप्त बातें। निज = अपने। बिथा = व्यथा, कष्ट। गोय = छिपाकर। अठिलैहैं। = इठलाएँगे, हँसी उड़ाएँगे। बाँटि न लैहैं = बाँटेगा नहीं। कोय = कोई॥ सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। नेत्रों से ढलने वाले आँसुओं को थाम के रखो, नहीं तो ये तुम्हारे मन का हाल उजागर कर देंगे। मन की व्यथा मन में छिपाकर रखना बुद्धिमानी है। ये उपयोगी सीखें कवि ने इन दोहों में दी हैं। व्याख्या-कवि रहीम कह रहे हैं कि नेत्रों से ढुलकने वाले आँसू मन के दु:ख को प्रकट कर देते हैं। स्वाभिमानी व्यक्ति को मन का दु:ख मन में ही रखना चाहिए। जब तुम किसी को घर से निकालोगे तो वह घर के सभी भेद दूसरों के सामने प्रकट कर देगा। इसलिए रोओ मत धैर्य के साथ दु:ख के दिनों को काट लो। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कवि कहता है-अपने मन की व्यथा को मन में ही छिपाकर रखना बुद्धिमानी है। उसे यदि दूसरों के सामने प्रकट करोगे तो सच्ची सहानुभूति व्यक्त करने वाले कम और उसकी हँसी उड़ाने वाले अधिक मिलेंगे। इससे मन और भी अधिक दुखी होगा। विशेष-(i) कवि ने मन के दु:ख को मन में ही छिपाकर रखने का जो परामर्श दिया है। वह बड़ा व्यावहारिक है। स्वाभिमानी व्यक्ति को दु:ख के दिन गम्भीरता और धैर्य के साथ चुपचाप बिता लेने चाहिए। 6. दीन संबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय। कठिन शब्दार्थ-दीन = निर्धन। लखत = देखता। दीनहिं = दीन को। दीनबंधु = ईश्वर, दीनों का सहायक। जौ लौं = जब तक। जान परत = पहचाने जाते हैं। काक = कौआ। पिक = कोयल। माँहिं = में। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिये गये हैं। कवि दीनों की सहायता करने वाले को ईश्वर के तुल्य बता रहा है। वह कहता है कि जब तक बोलते नहीं, तब तक गुणयुक्त और गुणहीन व्यक्ति की पहचान नहीं हो पाती है। व्याख्या-दीन व्यक्ति सहायता के लिए सभी की ओर ताकता है किन्तु उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। जो व्यक्ति दीन की सहायता करता है, उसे दीनबन्धु ईश्वर के समान ही समझना चाहिए। विशेष-(i) जिसका सहायक या रक्षक कोई नहीं होता भगवान स्वयं उनकी सहायता करते हैं। अत: दोनों की रक्षा और सहायता करने वाला मनुष्य ईश्वर के तुल्य सम्मानीय होता है। कवि का यही सन्देश है। 7. बड़े बड़ाई ना करें, बड़ो न बोलैं बोल। कठिन शब्दार्थ-बड़े = महान् लोग, विनम्र लोग। बड़ाई = अपनी प्रशंसा। बड़ौ = बढ़ा-चढ़ाकर। बोल = कथन, बात। लाख टका = लाखों रुपये। मोल = मूल्य। बिगरी बात = सम्माने का नष्ट हो जाना। बनै = फिर से सुधारना। लाख करौ = कितना ही प्रयत्न करो। कोय = कोई। फाटे = फट जाने पर। मथे = मथने पर। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। इनमें कवि ने आत्मप्रशंसा करने वाले लोगों पर व्यंग्य किया है तथा व्यक्ति के आत्मसम्मान को बड़ा महत्त्वपूर्ण बताया है। व्याख्या-कवि कहता है जो लोग वास्तव में गम्भीर स्वभाव वाले और महान होते हैं, वे कभी अपने ही मुख से अपनी बड़ाई नहीं करते। वे अहंकारपूर्वक ऊँची-ऊँची बातें नहीं किया करते। हीरा अत्यन्त मूल्यवान रत्न होता है किन्तु वह कभी नहीं कहता कि उसका मूल्य लाखों में है। उसके गुणों ने ही उसे लोकप्रिय और मूल्यवान बनाया है। स्वाभिमानी लोग कभी अपनी बात या प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने देते क्योंकि यदि एक बार समाज में सम्मान कम हो गया तो फिर उसे पुन: प्राप्त कर पाना असम्भवसा हो जाता है। यदि असावधानी से दूध फट जाता है, तो फिर उसे कितना भी मथो, उससे मक्खन नहीं निकल सकता। विशेष- 8. विपति भए धन ना रहै, रहे जो लाख करोर। कठिन शब्दार्थ- विपति = विपत्ति, संकट। करोर= करोड़ों। नभ = आकाश। भोर = सबेरा। कितौ = कितना भी। बढ़ि = बडा। पैग = डग, कदम। वसुधा = पृथ्वी। तऊ = तो भी। वामनै = बौना ही। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिये गए हैं। कवि बता रहा है कि संकट या बुरे दिन आने पर मनुष्य का वक्त भी उसका साथ छोड़ जाता है। माँगने जाने वाले मनुष्य की प्रतिष्ठा अवश्य ही कम हो जाती है। चाहे वह कितना भी बड़ा काम क्यों न कर दिखाए। व्याख्या- जब मनुष्य के बुरे दिन आते हैं तो उसके पास चाहे लाखों या करोड़ों भी क्यों न हों, सब समाप्त हो जाते हैं। धन भी उसका साथ नहीं देता। सब देखते हैं कि जब सबेरा होने लगता है तो आकाश में असंख्य तारे भी छिप जाते हैं। आकाश भी साथ नहीं देता। मनुष्य चाहे कितना बड़ा या आश्चर्यजनक काम क्यों ने कर दिखाए किन्तु माँगने, हाथ फैलाने पर उसका पद और प्रतिष्ठा अवश्य ही कम हो जाती है। स्वयं भगवान भी जब बलि से दान लेने गए तो उन्होंने भी तीन डग में सारी पृथ्वी नाप डाली, परन्तु इतना महान कार्य करने पर भी उनका नाम ‘वामन’ (बौना) ही रहा। विशेष- 9. मान सहित बिस खाय के, संभु भये जगदीश। कठिन शब्दार्थ- मान = सम्मान। बिस = जहर। संभु = शिव। जगदीश = जगत के स्वामी। राहु = एक दैत्य, जिसने कपटपूर्वक अमृत पिया था। जिह्वा = जीभ। बाबरी = मूर्ख। सरग-पताल = अनुचित बातें, अशोभनीय कथन। जूती = जूता। कपाल = सिर। संदर्भ तथा प्रसंग- प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित रहीम के दोहों से लिया गया है। इनमें कवि ने अपमान सहित होने वाले, महान लाभ को भी तुच्छ बताया है तथा बोलते समय वाणी पर संयम रखने का परामर्श दिया है। व्याख्या- समुद्र मंथन से प्राप्त विष का सम्मान सहित पान करने पर भगवान शिव सारे जगत के रक्षक जगदीश’ कहलाए। परन्तु देवताओं के बीच छिपकर ‘अमृत’ पीने वाले राहु नामक दैत्य को अपना सिर कटवाना पड़ गया। रहीम कहते हैं कि यह जीभ बड़ी नादान है, यह बोलते समय कुछ भी अनुचित और अनर्गल बोल जाती है और उसका दुष्परिणाम बेचारे सिर को भोगना पड़ता है। आशय यह है कि वाणी के असंयम का अपमानजनक फल-जूतियाँ पड़ना- मनुष्य को भोगना पड़ता है। अत: बोलते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए। विशेष- 10. अमृत ऐसे वचन में, रहिमन रिस की गाँस। कठिन शब्दार्थ- अमृत से = मधुर। रिस = क्रोध। गाँस = गाँठ, अप्रिय मेल। मिसिरिहु = मिश्री में भी। निरस = रसहीन, फीकी। फाँस = बारीक तिनको, शरीर में चुभ जाने वाला बाँस का रेशा॥ व्याख्या- रहीम कहते हैं कि व्यक्ति को सदा मधुर और विनम्र वाणी का प्रयोग करना चाहिए। कर्णप्रिय, मृदुल बोली में कटु शब्दों का प्रयोग उसी प्रकार खटकने वाला प्रतीत होता है जैसे मधुर मिश्री में बाँस के नीरस महीन रेशों का उपस्थित रहना॥ विशेष- |