क्या बंदर का कलेजा होता है? - kya bandar ka kaleja hota hai?

क्या बंदर का कलेजा होता है? - kya bandar ka kaleja hota hai?

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बंदर
वानर
सामयिक शृंखला: Oligocene–Present

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क्या बंदर का कलेजा होता है? - kya bandar ka kaleja hota hai?
एक युवा नर बंदर (Cebus albifrons).
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पशु
संघ: कशेरुकी
वर्ग: स्तनपायी
गण: प्राईमेट भागों में

बंदर एक मेरूदण्डी, स्तनधारी प्राणी है। इसके हाथ की हथेली एवं पैर के तलुए छोड़कर सम्पूर्ण शरीर घने रोमों से ढकी है। कर्ण पल्लव, स्तनग्रन्थी उपस्थित होते हैं। मेरूदण्ड का अगला भाग पूँछ के रूप में विकसित होता है। हाथ, पैर की अँगुलियाँ लम्बी नितम्ब पर मांसलगदी है।

व्यवहार[संपादित करें]

'प्लोस वन' में छपे शोध निष्कर्षों के अनुसार अमरीका के ड्यूक विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं के अनुसार बंदर भी इंसान की तरह ही फ़ैसला करते और खीझते हैं। फ़ैसला करने के भावनात्मक परिणाम- निराशा और दुख दोनों ही बंदर प्रजाति में भी मूलभूत रूप से मौजूद हैं और यह सिर्फ़ इंसानों का आद्वितीय गुण नहीं है।[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "इंसान की तरह ही फ़ैसला करते और खीझते हैं बंदर". बीबीसी हिन्दी. 31 मई 2013 को 01:55 IST. मूल से 1 जुलाई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जून 2013. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)

बाहरी कड़ी[संपादित करें]

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क्या बंदर का कलेजा होता है? - kya bandar ka kaleja hota hai?
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किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पर एक बंदर रहता था। उस पेड़ पर बड़े मीठे-रसीले फल लगते थे। बंदर उन्हें भर पेट खाता और मौज उड़ाता। वह अकेला ही मजे से दिन गुजार रहा था।

एक दिन एक मगर नदी से निकलकर उस पेड़ के तले आया जिस पर बंदर रहता था। पेड़ पर से बंदर ने पूछा, ‘‘तू कौन है, भाई ?’’

मगर ने ऊपर बंदर की ओर देखकर कहा, ‘‘मैं मगर हूं। बड़ी दूर से आया हूं। खाने की तलाश में यों ही घूम रहा हूं।’’

बन्दर ने कहा, ‘‘यहां पर खाने की कोई कमी नहीं है। इस पेड़ पर ढेरों फल लगते हैं। चखकर देखो। अच्छे लगे तो और दूंगा। जितने जी चाहे खाओ।’’ यह कहकर बन्दर ने कुछ फल तोड़कर मगर की ओर फेंक दिए।
मगर ने उन्हें चखकर कहा, ‘‘वाह, यह तो बड़े मजेदार फल हैं।’’

बन्दर ने और भी ढेर से फल गिरा दिए। मगर उन्हें भी चट कर गया और बोला, ‘‘कल फिर आऊंगा। फल खिलाओगे ?’’

बन्दर ने कहा, ‘‘क्यों नहीं ? तुम मेरे मेहमान हो। रोज आओ और जितने जी चाहे खाओ।’’

मगर अगले दिन आने का वादा करके चला गया।

क्या हुआ दूसरे दिन?

बंदर का कलेजा पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

कहानी

          

एक नदी किनारे हरा-भरा विशाल पेड था। उस पर खूब स्वादिष्ट फल उगे रहते। उसी पेड पर एक बंदर रहता था। बडा मस्त कलंदर। जी भरकर फल खाता, डालियों पर झूलता और कूदता-फांदता रहता। उस बंदर के जीवन में एक ही कमी थी कि उसका अपना कोई नहीं था। मां-बाप के बारे में उसे कुछ याद नहीं था न उसके कोई भाई था और न कोई बहन, जिनके साथ वह खेलता। उस क्षेत्र में कोई और बंदर भी नहीं था जिससे वह दोस्ती गांठ पाता। एक दिन वह एक डाल पर बैठा नदी का नज़ारा देख रहा था कि उसे एक लंबा विशाल जीव उसी पेड की ओर तैरकर आता नजर आया। बंदर ने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। उसने उस विचित्र जीव से पूछा 'अरे भाई, तुम क्या चीज़ हो?'
विशाल जीव ने उत्तर दिया 'मैं एक मगरमच्छ हूं। नदी में इस वर्ष मछलियों का अकाल पड गया हैं। बस, भोजन की तलाश में घूमता-घूमता इधर आ निकला हूं।'
बंदर दिल का अच्छा था। उसने सोचा कि पेड पर इतने फल हैं, इस बेचारे को भी उनका स्वाद चखना चाहिए। उसने एक फल तोडकर मगर की ओर फेंका। मगर ने फल खाया बहुत रसीला और स्वादिष्ट वह फटाफट फल खा गया और आशा से फिर बंदर की ओर देखने लगा।
बंदर ने मुस्कराकर और फल फेकें। मगर सारे फल खा गया और अंत में उसने संतोष-भरी डकार ली और पेट थपथपाकर बोला 'धन्यवाद, बंदर भाई। खूब छक गया, अब चलता हूं।' बंदर ने उसे दूसरे दिन भी आने का न्यौता दे दिया।
मगर दूसरे दिन आया। बंदर ने उसे फिर फल खिलाए। इसी प्रकार बंदर और मगर में दोस्ती जमने लगी। मगर रोज आता दोनों फल खाते-खिलाते, गपशप मारते। बंदर तो वैसे भी अकेला रहता था। उसे मगर से दोस्ती करके बहुत प्रसन्नता हुई। उसका अकेलापन दूर हुआ। एक साथी मिला। दो मिलकर मौज-मस्ती करें तो दुगना आनन्द आता है। एक दिन बातों-बातों में पता लगा कि मगर का घर नदी के दूसरे तट पर है, जहां उसकी पत्नी भी रहती हैं। यह जानते ही बंदर ने उलाहन दिया 'मगर भाई, तुमने इतने दिन मुझे भाभीजी के बारे में नहीं बताया मैं अपनी भाभीजी के लिए रसीले फल देता। तुम भी अजीब निकट्टू हो अपना पेट भरते रहे और मेरी भाभी के लिए कभी फल लेकर नहीं गए।
उस शाम बंदर ने मगर को जाते समय ढेर सारे फल चुन-चुनकर दिए। अपने घर पहुंचकर मगरमच्छ ने वह फल अपनी पत्नी मगरमच्छनी को दिए। मगरमच्छनी ने वह स्वाद भरे फल खाए और बहुत संतुष्ट हुई। मगर ने उसे अपने मित्र के बारे में बताया। पत्नी को विश्वास न हुआ। वह बोली 'जाओ, मुझे बना रहे हो। बंदर की कभी किसी मगर से दोस्ती हुई हैं?'
मगर ने यकीन दिलाया 'यकीन करो भाग्यवान! वर्ना सोचो यह फल मुझे कहां से मिले? मैं तो पेड पर चढने से रहा।'
मगरनी को यकीन करना पडा। उस दिन के बाद मगरनी को रोज बंदर द्वारा भेजे फल खाने को मिलने लगे। उसे फल खाने को मिलते यह तो ठीक था, पर मगर का बंदर से दोस्ती के चक्कर में दिन भर दूर रहना उसे खलना लगा। ख़ाली बैठे-बैठे ऊंच-नीच सोचने लगी।
वह स्वभाव से दुष्टा थी। एक दिन उसका दिल मचल उठा 'जो बंदर इतने रसीले फल खाता हैं, उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा?' अब वह चालें सोचने लगी। एक दिन मगर शाम को घर आया तो उसने मगरनी को कराहते पाया। पूछने पर मगरनी बोली 'मुझे एक खतरनाक बीमारी हो गई है। वैद्यजी ने कहा हैं कि यह केवल बंदर का कलेजा खाने से ही ठीक होगी। तुम अपने उस मित्र बंदर का कलेजा ला दो।'
मगर सन्न रह गया। वह अपने मित्र को कैसे मार सकता हैं? न-न, यह नहीं हो सकता। मगर को इनकार में सिर हिलाते देखकर मगरनी ज़ोर से हाय-हाय करने लगी 'तो फिर मैं मर जाऊंगी। तुम्हारी बला से और मेरे पेट में तुम्हारे बच्चे हैं। वे भी मरेंगे। हम सब मर जाएंगे। तुम अपने बंदर दोस्त के साथ खूब फल खाते रहना। हाय रे, मर गई… मैं मर गई।'
पत्नी की बात सुनकर मगर सिहर उठा। बीवी-बच्चों के मोह ने उसकी अक़्ल पर पर्दा डाल दिया। वह अपने दोस्त से विश्वासघात करने, उसकी जान लेने चल पडा।
मगरमच्छ को सुबह-सुबह आते देखकर बंदर चकित हुआ। कारण पूछने पर मगर बोला 'बंदर भाई, तुम्हारी भाभी बहुत नाराज़ हैं। कह रही हैं कि देवरजी रोज मेरे लिए रसीले फल भेजते हैं, पर कभी दर्शन नहीं दिए। सेवा का मौक़ा नहीं दिया। आज तुम न आए तो देवर-भाभी का रिश्ता खत्म। तुम्हारी भाभी ने मुझे भी सुबह ही भगा दिया। अगर तुम्हें साथ न ले जा पाया तो वह मुझे भी घर में नहीं घुसने देगी।'
बंदर खुश भी हुआ और चकराया भी 'मगर मैं आऊं कैसे? मित्र, तुम तो जानते हो कि मुझे तैरना नहीं आता।' मगर बोला 'उसकी चिन्ता मत करो, मेरी पीठ पर बैठो। मैं ले चलूंगा न तुम्हें।'
बंदर मगर की पीठ पर बैठ गया। कुछ दूर नदी में जाने पर ही मगर पानी के अंदर गोता लगाने लगा। बंदर चिल्लाया 'यह क्या कर रहे हो? मैं डूब जाऊंगा।'
मगर हंसा 'तुम्हें तो मरना है ही।'
उसकी बात सुनकर बंदर का माथा ठनका, उसने पूछा 'क्या मतलब?'
मगर ने बंदर को कलेजे वाली सारी बात बता दी। बंदर हक्का-बक्का रह गया। उसे अपने मित्र से ऐसी बेइमानी की आशा नहीं थी।
बंदर चतुर था। तुरंत अपने आप को संभालकर बोला 'वाह, तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं अपनी भाभी के लिए एक तो क्या सौ कलेजे दे दूं। पर बात यह हैं कि मैं अपना कलेजा पेड पर ही छोड आया हूं। तुमने पहले ही सारी बात मुझे न बताकर बहुत ग़लती कर दी है। अब जल्दी से वापिस चलो ताकि हम पेड पर से कलेजा लेते चलें। देर हो गई तो भाभी मर जाएगी। फिर मैं अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।'
अक़्ल का मोटा मगरमच्छ उसकी बात सच मानकर बंदर को लेकर वापस लौट चला। जैसे ही वे पेड के पास पहुंचे, बंदर लपककर पेड की डाली पर चढ गया और बोला 'मूर्ख, कभी कोई अपना कलेजा बाहर छोडता हैं? दूसरे का कलेजा लेने के लिए अपनी खोपडी में भी भेजा होना चाहिए। अब जा और अपनी दुष्ट बीवी के साथ बैठकर अपने कर्मों को रो।' ऐसा कहकर बंदर तो पेड की टहनियों में लुप्त हो गया और अक़्ल का दुश्मन मगरमच्छ अपना माथा पीटता हुआ लौट गया।

सीख- 1. दूसरों को धोखा देने वाला स्वयं धोखा खा जाता है। 2. संकट के समय बुद्धि से काम लेना चाहिए।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्या बंदर के कलेजा होता है?

बंदर कोई दिल रहित नहीं होता है। जिस तरह से हमारे सीने के अंदर दिल धड़कता है । ठीक उसी प्रकार से बंदर के अंदर भी दिल होता है।

बंदर के अंदर क्या होता है?

बंदर एक मेरूदण्डी, स्तनधारी प्राणी है। इसके हाथ की हथेली एवं पैर के तलुए छोड़कर सम्पूर्ण शरीर घने रोमों से ढकी है। कर्ण पल्लव, स्तनग्रन्थी उपस्थित होते हैं। मेरूदण्ड का अगला भाग पूँछ के रूप में विकसित होता है।

बंदर के हृदय में कितने कक्ष होते हैं?

सही उत्तर 4 है। स्तनपायी हृदय में चार कक्ष (दो आलिन्द और दो निलय) होते हैं

बंदर की उम्र क्या होती है?

Dileep Vishwakarma. बंदर की औसत आयु करीब 25 से 30 साल तक होती है.