क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है? - kya nyaayapaalika kee svatantrata ka arth yah hai ki nyaayapaalika kisee ke prati javaabadeh nahin hai?

अभ्यास प्रश्नावली :- 


Q1. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के विभिन्न तरीके कौन-कौन से हैं? निम्नलिखित में जो बेमेल हो उसे छाँटें।

(क) सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह ली जाती है।

(ख) न्यायाधीशों को अमूमन अवकाश प्राप्ति की आयु से पहले नहीं हटाया जाता।

(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।

(घ) न्यायाधीशों की नियुक्ति में संसद की दखल नहीं है।

उत्तर : 

(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।

Q2. क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।

उत्तर :

न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेही न हो न्यायपालिका भी संविधान का ही भाग है व संविधान के ऊपर नही है न्यायपालिका भी संविधान के अनुसार ही कार्य करेगी | न्यायपालिका का उद्देश्य भी संविधान के व प्रजातंत्र के उद्देश्य को पूरा करना है | अत: न्यायपालिका की स्वतंत्रता का निर्णयों को सम्मानपूर्वक स्वीकार किया जाये | न्यायपालिका अपनी नियुक्ति के लिए सेवाकाल के लिए व सेवा शर्तों व सेवा सुविधाओं के लिए कार्यपालिका व विधानपालिका पर निर्भर ना हो | न्यायधीश को हटाने का तरीका भी पक्षपातरहित हो | भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता है तथा सम्मपूर्ण स्थान प्राप्त है | 

Q3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं?

उत्तर :

 न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान में निम्न प्रावधान है :- 

(1) न्यायधीशों की नियुक्ति में संसद की कोई भूमिका नही होती है |

(2) न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए निश्चित योग्यताएं व अनुभव दिए गए है |

(3) न्यायपालिका कपने वेतन भत्तों व अन्य आर्थिक सुविधाओं के लिए कार्यपालिका अथवा संसद पर निर्भर नहीं है | उनके खर्चों से संबधित बिल पर बहस व मतदान नही होता | 

(4) न्यायधीशों की सेवा काल लम्बा व सुरक्षित होता है यद्धपि कुछ परिस्थियों में इनको हटाया भी जा सकता है परन्तु महाभियोग की प्रक्रिया काफी लम्बी व मुशिकल होती है |

(5) न्यायधीशों के कार्यों व निर्णयों के आधार पर उनकी व्यक्तिगत आलोचना नही की जा सकती |

(6) जो न्यायालय का व इसके निर्णयों का अपमान करते है न्यायालय उनको दण्डित कर सकती है | 

(7) न्यायालय के निर्णय बाध्यकारी होते है | 

Q4. नीचे दी गई समाचार-रिपोर्ट पढ़ें और उनमें निम्नलिखित पहलुओं की पहचानकरें।

सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस से दहानु के किसानों को 300 करोड़ रुपए देने को कहा - निजी कारपोरेट ब्यूरो, 24 मार्च 2005

मुम्बई - सर्वोच्च न्यायालय ................................................. रिलायंस से 300 करोड़ रुपए की बैंक-गारंटी देने को कहा।

(क) मामला किस बारे में है?

उत्तर :

यह मामला दहानू मुम्बई क्षेत्र के चीकू पैदा करने वाले उन किसानों को मुआवजा देने के बारे में है जिनका थर्मल पावर प्लांट के नुकसानदायक रिसाव के कारण भारी नुकसान हुआ है |

(ख) इस मामले में लाभार्थी कौन है?

उत्तर :

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से दहानुपुर क्षेत्र के चीकू पैदा करने वाले किसानों को लाभ हुआ | 

(ग) इस मामले में फरियादी कौन है?

उत्तर :

इस केस में दहानुपुर क्षेत्र के चीकू पैदा करनें वाले किसान वादी है | 

(घ) सोच कर बताए की कंपनी की तरफ से कौन - कौन से तर्क दिए जाएगे।

उत्तर :

रिलांयस कम्पनी ने न्यायालय में यह दलील दी किन थर्मल पावर प्लांट के नुकसानदायक रिसाव को नियंत्रित करने के लिए एक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए | 

Q 5. नीचे की समाचार-रिपोर्ट पढ़ें और, चिनिहित  करें कि रिपोर्ट में किस-किस स्तर की सरकार सक्रिय दिखाई देती है।
(क) सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की निशानदेही करें।
(ख) कार्यपालिका और न्यायपालिका के कामकाज की कौन-सी बातें आप इसमें पहचान सकते हैं?
(ग) इस प्रकरण से संबधित  नीतिगत मुद्दे, कानून बनाने से संबंधित बातें,क्रियान्वयन तथा कानून की व्याख्या से जुड़ी बातों की पहचान करें।
सीएनजी - मुद्दे पर केंद्र और दिल्ली सरकार एक साथ

स्टाफ रिपोर्ट , द हिन्दू , सितम्बर 23,2001...................................यातायात प्रणाली अस्त व्यस्त हो जाएगी | 

उत्तर :

(1) इस केस में केन्द्रीय सरकार व देहली सरकार शामिल है |

(2) यातायात के लिए प्रदुषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा निशिचत मापदंड के आधार पर इस केस को टी करने में सर्वोच्च न्यायालय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी | 

(3) कार्यपालिका प्रदुषण नियंत्रण की निति टी करेगी तथा न्यायपालिका यह तय करेगी की कार्यपालिका की निति का कितना उल्लघन हुआ है | 

(4) इस  प्रकरण में नीतिगत निर्णय देहली सरकार का यह है कि देहली में सी.एन.जी.के प्रयोग की बसें देहली में चलेगी | इस निति के अनुसार देःली सरकार कानून बनाएगी | निति व कानून की व्याख्या के संबध में यह निर्णय लिया गया कि ऐसा करते समय प्रदुषण से सुरक्षा को मुख्य रूप से ध्यान में रखा जाए | 

Q6. निम्नलिखित कथन इक्वाडोर के बारे में है। इस उदाहरण और भारत की न्यायपालिका के बीच आप क्या समानता अथवा असमानता पाते हैं?सामान्य कानूनों की कोई संहिता अथवा पहले सुनाया गया कोई न्यायिक फैसला मौजूद होता तो पत्राकार के अधिकारों को स्पष्ट करने में मदद मिल सकती थी। दुर्भाग्य से इक्वाडोर की अदालत इस रीति से काम नहीं करती। पिछले मामलों में उच्चतर अदालत के न्यायाधीशों ने जो फैसले दिए हैं उन्हें कोई न्यायाधीश उदाहरण के रूप में मानने के लिए बाध्य नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत इक्वाडोर ;अथवा दक्षिण अमेरिका में किसी और देश में जिस न्यायाधीश के सामने अपील की गई है उसे अपना फैसला और उसका कानूनी आधारलिखित रूप में नहीं देना होता। कोई न्यायाधीश आज एक मामले में कोई फैसला सुनाकर कल उसी मामले में दूसरा फैसला दे सकता है और इसमें उसे यह बताने की ज़रूत नहीं कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।

उत्तर :

भारतीय न्याय प्रणाली में किसी विषय पर उच्च न्यायालयों के द्वारा दिए गए निर्णय आगे आने वाले निर्णयों के लिए मार्गदर्शक होते है जो वाध्य्कारी भी होते है यह स्थिति इक्वेडोर के उदहारण से भिन्न है | क्योंकि वहां पर न्यायधीश उसी विषय पर दिए गए निर्णय को मानने के लिए बाध्य नहीं होता भारतीय न्याय व्यवस्था व इक्वेडोर की न्याय व्यवस्था में एक समानता यह है कि भारत में भी व इक्वेडोर में भी न्यायधीश नई परिस्थिति में अपना पहला निर्णय किसी विषय पर बदल सकते है | 

Q7. निम्नलिखित कथनों को पढि़ए और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमल में लाए जानेवाले विभिन्न क्षेत्राधिकार मसलन - मूल, अपीली और सलाहकारी - से इनका मिलान कीजिए।

(क) सरकार जानना चाहती थी कि क्या वह पाकिस्तान - अधिग्रहीत जम्मू-कश्मीर के निवासियों की नागरिकता के संबंध में कानून पारित कर सकती है

उत्तर :

परामर्श संबधित अधिकार |

(ख) कावेरी नदी के जल विवाद के समाधान के लिए तमिलनाडु सरकार अदालत की शरण लेना चाहती है।

उत्तर :

प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार | 

(ग) बांध स्थल से हटाए जाने के विरुद्ध लोगों द्वारा की गई अपील को अदालत ने ठुकरा दिया।

उत्तर :

अपीलीय क्षेत्राधिकार |

Q 8. जनहित याचिका किस तरह गरीबों की मदद कर सकती है?

उत्तर :

न्याय वितरण की प्रक्रिया में जनहित याचिका की व्यवस्था एक महत्वपूर्ण कदम है | इन याचिकाओं के माध्यम से उन व्यक्तियों को न्याय दिलाया जा सकता है जो स्वंय अपने हित की रक्षा अज्ञानता के कारण या आर्थिक स्रोतों के अभाव के कारण असमर्थ हैं | ऐसे व्यक्तियों के हितों के लिए कुछ दयालु व्यक्ति या संस्थाए याचिका दायर करती है तथा आवश्यक प्रमाण व तथ्य प्रदान करती है तथा जनहित को प्राप्त करने का प्रयास करती है सबसे पहले इस दिशा में न्यायधीश पी.एन.भगवती ने इस प्रकार की याचिका स्वीकार करके पहल की जिससे गरीब व असहाय लोगों को न्याय दिलाने में जनहित याचिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | न्यायधीश पी.एन. भगवती ने सबसे पहले 1984 में बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाया | भारत सरकार केस में जनहित याचिका स्वीकार की जिससे अनेक मज़दूर को न्याय मिला | 

Q9. क्या आप मानते हैं कि न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है? क्यों ?

उत्तर :

भारतीय न्यायपालिका को न्याय पुन: निरिक्षण की शक्ति प्राप्त है जिसके आधार पर न्यायपालिका विधानपालिका के द्वारा पारित कानूनों तथा कार्यपालिका के द्वारा जारी आदेशों की संवैधानिक वैधता की जांच क्र सकता है, अगर ये संविधान के विपरीत पाए जाते हैं तो न्यायपालिका उनको अवैध घोषित कर सकती है | परन्तु न्यायपालिका को यह शक्ति सीमित है | 

Q10. न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा से किस रूप में जुड़ी है? क्या इससे मौलिक अधिकारों वेफ विषय-क्षेत्र को बढ़ाने में मदद मिली है?

उत्तर :

न्याय सक्रियता भारतीय राजनितिक व्यवस्था में चर्चा का विषय है जिसको भारतीय आम जनता ने स्वीकार भी किया है तथा सराहा भी है क्योंकि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा भी हुई है , व कार्यपालिका, विधानपालिका व नौकरशाही पर नियंत्रण करने में भी सहायता मिली है | भारतीय न्यायपालिका विभिन्न ऐसे राजनितिक सामाजिक व आर्थिक नीतिगत विषयों पर टिप्पणी करती है जिनको वह गलत मानती है | 

क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है?

Solution. न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। न्यायपालिका को संविधान में लिखे कानूनों के अनुसार काम करना होता है। न्यायाधीशों के किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार और अक्षमता के कारण उन्हें पद से हटाया जा सकता है।

न्यायपालिका क्या है न्यायपालिका की स्वतंत्रता को स्पष्ट कीजिए?

न्यायपालिका की स्वतंत्रता या न्यायिक स्वातंत्र्य (Judicial independence) से आशय यह है कि न्यायपालिका को सरकार के अन्य अंगों (विधायिका और कार्यपालिका) से स्वतन्त्र हो। इसका अर्थ है कि न्यायपालिका सरकार के अन्य अंगों से, या किसी अन्य निजी हित-समूह से अनुचित तरीके से प्रभावित न हो। यह एक महत्वपूर्ण परिकल्पना है।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्यों महत्त्वपूर्ण है?

स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की रक्षक होती है। न्यायपालिका संविधान विरोधी कानूनों को अवैध घोषित कर उन्हें निरस्त कर देती है। इसलिए संविधान की स्थिरता और सुरक्षा के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है। एक स्वतंत्र न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखकर शासन की दक्षता को बढ़ाती है।

क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता?

न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ:- न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि सरकार के अन्य दो अंग विधायिका और कार्यपालिका, न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप न करके उनके कार्यों में किसी भी प्रकार की बाधा न पहुंचाए ताकि वह अपना कार्य सही ढंग से करे और निष्पक्ष रूप से न्याय कर सके।