भूजल स्रोत, जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है, भूमि के नीचे पाया जाने वाला जल होता है। वर्षा के जल अथवा बर्फ के पिघलने से पानी का कुछ भाग भूमि द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा इसका कुछ भाग गुरुत्व के प्रभाव के फलस्वरूप भूमि के नीचे स्थित परतों में एकत्र हो जाता है। इस पाठ में आप भूमिगत जल के स्रोतों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे, जिसका प्रयोग कृषि, उद्योगों और दैनिक जीवन के कार्यों हेतु आवश्यक रूप से महत्त्वपूर्ण है। Show
जल चक्र जिसमें सतही जल, भूजल एवं जल तालिका दर्शाई गई है ये भी पढ़े:- जल क्या है ?उद्देश्य इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आप- 1. सतही जल और भूजल में अन्तर को समझ पाएँगे ; 28.1 सतही जल और भूमिगत जल जल एवं जलवाष्प (वाष्पीकरण) की क्रिया सूर्य एवं गुरुत्व द्वारा निरंतर संचालित होने वाली प्राकृतिक क्रिया है जिसे हाइड्रोलॉजिक (जल) चक्र कहते हैं। जिसके विषय में आपने पिछले पाठ में पढ़ा है। समुद्र एवं सतही भूमि से जल का वाष्पोत्सर्जन होकर यही जल पुनः पृथ्वी पर पानी की बूँदों के रूप में वापस आ जाता है। पृथ्वी पर समस्त अलवण जल का स्रोत वर्षा है। जब वर्षा होती है तो पृथ्वी पर गिरने वाला जल धारा के रूप में प्रवाहित होकर झरनों, तालाब अथवा झीलों में चला जाता है। यह जल सतही जल (Surface water) कहलाता है। इस जल का कुछ भाग भूमि के अन्दर मृदा क्षेत्र (Soil Zone) में अवशोषित होकर एकत्र हो जाता है। जब मृदा क्षेत्र संतृप्त (भर जाता) होता है तो यह जल नीचे चला जाता है। संतृप्तता का यह क्षेत्र मृदा के उस स्थान पर होता है जहाँ मृदा के सभी छिद्र जल से भरे होते हैं। वर्षा के जल का कुछ भाग धीरे-धीरे संचारित होकर गुरुत्वाकर्षण के कारण भूमि के नीचे चला जाता है। अतः भूजल बनने की यह क्रिया जलभृत (Aquifer) कहलाती है और संचित जल भूजल (Ground water) कहलाता है। गुरुत्व प्रभाव के फलस्वरूप भूमिगत जल धीरे-धीरे मृदा के भीतर चला जाता है। निचले क्षेत्रों में यह झरनों एवं धारा के रूप में बाहर आ जाता है। ये भी पढ़े:- जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभावसतही जल एवं भूजल दोनों अन्ततः महासागरों में पुनः वापस चले जाते हैं जहाँ से वायुमंडलीय जलवाष्प की आपूर्ति वाष्पीकरण द्वारा होती रहती है। हवायें नमी को भूमि पर लाती हैं जिससे अवक्षेपण होता है तथा जलचक्र निरन्तर चलता रहता है। अवक्षेपण की इस प्रक्रिया को जिसके द्वारा भूमिगत जल की आपूर्ति होती है, पुनःभरण (Recharge) कहा जाता है। सामान्य रूप से पुनःभरण उष्णकटिबन्धीय जलवायु में वर्षाऋतु के समय ही होता है अथवा यह बसन्त के मौसम में होता है। पृथ्वी पर गिरने वाला यह अवक्षेपण अक्सर 10 से 20 % तक होता है जो मृदा द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है एवं जल धारण करने वाले स्तर पर योगदान देता है, उदाहरण जलभृत (Aquifer)। भूजल निरन्तर क्रियाशील रहता है सतही जल की तुलना में यह बहुत धीरे-धीरे बहता है। इस जल के संचरण की वास्तविक दर संचरण एवं जलभृत की संग्रहण क्षमता पर निर्भर करती है। कभी-कभी झरनों एवं नदियों में भूमिगत-जल का स्तर बढ़ने से इनमें उफान (बाढ़) आ जाता है। जल तालिका में भूजल के नवीकरण का समय एक वर्ष अथवा उससे कम हो सकता है परन्तु गहरे जलभृतों में इसकी अवधि हजारों वर्ष से भी अधिक समय तक लम्बी हो सकती हैं। जल तालिका (Water table) को भूमिगल-जल तालिका भी कहा जाता है, यह भूमि की ऊपरी सतह होती है जिसमें मृदा या चट्टानें जल के साथ स्थायी रूप से संतृप्त होती हैं। उस गहराई तक जिसमें, मृदा के छिद्रों-स्थान की जल के साथ पूर्णतः तथा जिस स्तर पर यह पायी जाती हैं उसे जल तालिका कहा जाता है। जल-तालिका भूजल क्षेत्र को अलग करती है जो इससे नीचे होता है या केशिकत्व फ्रिन्ज वायुपूर्ण क्षेत्र जो इससे ऊपर होता है। जल तालिका में ऋतुओं एवं वर्ष दर-वर्ष उतार-चढ़ाव आता रहता है क्योंकि वर्षा एवं जलवायु में भिन्नता इस पर अपना प्रभाव डालते हैं। यह कुओं या कृत्रिम रूप द्वारा जल की मात्रा निकालने से भी प्रभावित होता है। ये भी पढ़े:- क्या क्रीमिया “जल संकट” ने रूस-यूक्रेन तनाव में नया मोर्चा खोलाभूजल का बहुतायत से प्रयोग घरेलू काम-काज, पशुओं एवं सिंचाई हेतु आदिकाल से किया जाता रहा है। भारत में एक बहुत बड़ी जनसंख्या भूजल पर निर्भर करती है। सतही जल एवं भूमिगत जल के मध्य मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं:-
पाठगत प्रश्न 28.1 28.2 भूजल के स्रोत कुओं को कई प्रकार से बनाया जाता है जो जलभृत की गहराई और उसकी प्रकृति के अनुरूप होता है। कुओं का उपयोग सार्वजनिक रूप से आपूर्ति हेतु किया जाता है। सामान्यतः अधिकतम 100 फीट (30 मीटर) गहरे और 4 से 12 इंच (10 से 30 सेमी) व्यास वाले जलभृत को पृथ्वी के अन्दर निर्माण किया जाता है जहाँ पर अच्छी गुणवत्ता वाला जल प्राप्त किया जा सकता है। समर्सीबल पम्प (अपवाहन पंप या Submersible pump) जिसमें बिजली से चलने वाली मोटर लगी होती है, का प्रयोग भी भूमिगत जल को सतह पर लाने हेतु किया जाता है। ये भी पढ़े:- मृदा जल क्या है28.2.1 भूजल उपाहरण की विधियाँ 1. झरना (Spring): जल तालिका सामान्यतः भू-पृष्ठ की स्थलाकृति के अनुसार होती हैं। जल तालिका में ढाल उप-मृदा के प्रवाह को प्रकट करती है। भूमिगत जल की गतिविधि सतही जल की तुलना में काफी धीमी होती हैं। यह प्रवाह ढलान और इसकी पारगम्यता पर निर्भर करता है। कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में जब जल-तालिका में सतही जल के स्तर से ऊपर होता है, भूमिगत जल झरनों के रूप में बाहर आ जाता है। इस जल का उपयोग पीने हेतु किया जा सकता है। रोम, ल्योन जैसे नगरों में सबसे पुरानी जल आपूर्ति इसी प्रकार के झरनों से होती थी। हिमालय क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोग पीने के पानी के लिये इसी प्रकार के स्रोतों पर निर्भर थे। 2. कुआँ खोदकरः यह प्रायः साधारणतया खुले कुएँ होते हैं जिन्हें जमीन में खोदकर या भूमिगत जल को धारण करने वाले स्तर से पानी निकालकर, उनके पानी से सिंचाई हेतु किया जाता है। ये मुख्यतः राज मिस्त्री द्वारा निर्मित कुएँ, कच्चे कुएँ एवं खुदाई किए हुए बोर-वेल हो सकते हैं। यह सभी कार्य निजी लोगों द्वारा अपनी उद्देश्य पूर्ति हेतु किये जाते हैं। जल तालिका 3. उथला-ट्यूब-वेलः इसमें जमीन में एक छेद बनाकर उसमें पाइप के द्वारा भूमिगत जल को प्राप्त किया जाता है। इसकी गहराई 60-70 मीटर से ज्यादा नहीं होती। इन ट्यूबवेलों का प्रयोग सिंचाई के दौरान 6-8 घंटे तक किया जाता है जिसमें 100 -300 क्यूबिक मीटर पानी प्रतिदिन की दर से निकाला जा सकता है जिससे गड्ढा खोदकर बनाये गये कुओं से 2-3 गुना ज्यादा पानी निकाला जा सकता है। 4. गहरा ट्यूब-वेलः इसकी गहराई 100 मीटर से अधिक होती है तथा इससे 100-200 क्यूबिक मीटर पानी प्रति घंटे की दर से निकाला जा सकता है। सिंचाई के मौसम के दौरान इनका उपयोग दिन भर किया जाता है जो कि बिजली की उपलब्धता पर निर्भर करता है। इनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता उथले ट्यूबवेल से कम से कम 15 गुना ज्यादा होती है। 5. हैंडपम्पः हैंडपम्प का प्रयोग ग्रामीण एवं शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों में किया जाता है। ये हाथ से चलाये जाते हैं। इस प्रकार इनमें बिजली या अन्य किसी भी प्रकार की ऊर्जा का उपयोग नहीं होता। ये भी पढ़े:- भूजल में उभरते हुए दूषित पदार्थ और उनके निवारण
28.3 पानी का समुचित उपयोग जल के समुचित उपयोग पर्यावरणीय, जनस्वास्थ्य एवं आर्थिक लाभों के लिये किया जाता है, इसकी सहायता से इसकी गुणवत्ता में सुधार किया जाना, जलीय पारितंत्र में संतुलन बनाये रखने तथा पेयजल संसाधनों की रक्षा करना है। यदि हम पानी का उपयोग उपयुक्त तरीकों से करेंगे एवं पानी के समुचित उपयोग वाले पदार्थों को खरीदें तो हमें सूखे अथवा अकाल की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस बचत से न केवल पानी की बचत करेंगे वरन धन और पानी के बिलों में भी कटौती होगी।
बाह्य उपयोग 1. बाहरी स्थानों, सड़क के किनारों एवं रास्तों को पानी से साफ करने के लिये हौज पाइपों के स्थान पर उन्हें झाडू़ से साफ करें। 2. गाड़ी को साफ करते समय बाल्टी में पानी भरकर उपयोग में लाना चाहिए या व्यापारिक स्तर पर कार धोने का उपयोग करें जिससे पानी का पुनः चक्रण हो सके। 3. जब टंकी या हौज में पानी भरना हो तो उसमें जल प्रवाह को नियंत्रित करने के लिये स्वचालित बटन लगवायें। 4. जिन खिलौनों में लगातार पानी की आवश्यकता होती है, उन मनोरंजन करने वाले खिलौनों को न खरीदें। 5. पानी बचाने वाले तरण-ताल फिल्टर (Swimming pool filter) को खरीदने के विषय में सोचें। 6. नहाने के तालाब को वाष्पीकरण के दौरान अच्छी तरह से ढक कर रखें, जब उसे प्रयोग में नहीं लाया जा रहा हो। 7. उन सजावटी जल-विशिष्टताओं वाली वस्तुओं का प्रयोग नहीं करें या नहीं खरीदें जिससे पानी का पुनःचक्रण नहीं हो सकता हो। लोगों को यह चिह्न दिखाओ कि पानी को पुनःचक्रित किया जा सकता है। सूखे के समय उसका प्रयोग न करें। पाठगत प्रश्न 28.3 ये भी पढ़े:- जल उत्पादकता में वृद्धि से जल संकट का समाधानः राजस्थान राज्य विशिष्ट ...28.4 कृत्रिम पुनःआवेश (ARTIFICIAL RECHARGE) जल की बढ़ती मांग ने भूजल आपूर्ति संवर्द्धन के कृत्रिम पुनःभरण के विषय में जागरुकता को बढ़ा दिया है। साधारण शब्दों में, कृत्रिम पुनःभरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सतही जल का अधिकतम भाग सीधे जमीन के अन्दर या तो उसे जमीन पर फैलाकर अथवा पुनर्भरण कुओं का उपयोग अथवा प्राकृतिक दशाओं से ज्यादा निस्यंदन द्वारा कराया जाता है। दूसरे शब्दों में, जलभृत का भरण करना पुनःभरण का सम्बन्ध में जल की गति मनुष्य द्वारा निर्मित उस प्रणाली से है जिसमें सतही पानी को भूमि के अन्दर अथवा नीचे सुरक्षित रखा जाता है। कृत्रिम पुनःभरण (कभी-कभी योजनाबद्ध पुनर्भरण कहते हैं) एक ऐसा तरीका है जिसमें जल को भूमि के नीचे संग्रहित किया जाता है ताकि जल की कमी के समय इस जल को उपयोग में लाया जा सके। 28.4.1 सीधे कृत्रिम पुनर्भरण द्वारा इस पद्धति में जमीन पर हौज बनाकर उसमें पानी को फैला (भर) दिया जाता है ताकि इसे मौजूदा भू-भाग में खुदाई कर प्राप्त किया जा सके। प्रभावी कृत्रिम पुनःभरण करने के लिये अच्छी गुणवत्ता की मृदा का होना आवश्यक है एवं पानी की परतों में अच्छी तरह रख-रखाव किया जा सके, जब आवश्यक हो। (ख) पुनर्भरण गर्त एवं शॉफ्ट (Recharge pit and shaft) ऐसी दशायें जो कृत्रिम पुनःभरण के लिये सतह फैलाव विधियों के प्रयोग करने की स्थिति हो, बहुत ही दुर्लभ बात है। अक्सर कम पारगम्यता के क्षेत्रों में भूमि की सतह और जल तालिका होती है। इस प्रकार की परिस्थितियों में कृत्रिम पुनःभरण की प्रणालियाँ जैसे गर्त एवं शॉफ्ट प्रभावी हो सकते हैं। पानी का अनिस्यंदित (न छने) प्रवाह होने के कारण गर्त के आस-पास एवं गड्ढे की तली में रेत जमा हो जाता है जिसका समय-समय पर मरम्मत होनी आवश्यक है ताकि पुनःभरण की दशा को नियमित रखा जा सके। यह गर्त गोलाकार, आयताकार अथवा एक वर्गाकार रूप में हो सकती है एवं जिससे पुनः छिद्रित भागों को अच्छी तरह से भरा जा सकता है। इन गर्त और शॉफ्ट को बनाने व खुदाई के दौरान इस जल तालिका के ऊपर या हाइड्रोलिक कनेक्टर जल तालिका से नीचे (असामान्य) हो सकता है। गर्त एवं शॉफ्ट दोनों में पुनर्भरण की दर रेत के कणों के एकत्र होने के साथ कम हो जाती है एवं सूक्ष्मजीवी प्रक्रियाओं के द्वारा प्रभावित होती हैं। (ग) खाईयाँ (Trenches) खाई को एक लम्बी पतली नाली कहा जा सकता है, जिसकी तलहटी इसकी चौड़ाई से कम होती है। खाई पद्धति को जलवायु एवं भौगोलिक स्थिति के अनुरूप तैयार किया जाता है ताकि खाई को उसके दिए गए स्थान पर बनाया जा सके। खाई एवं बहते हुए पुनर्भरण परियोजना जिसके अन्तर्गत खाईयों की एक श्रृंखला जलवायु ढलानों के अनुसार इनका खाका तैयार करना आता है। खाईयों को खत्म किया जा सकता है क्योंकि ये बिना छने पानी को दूसरे स्थानों पर लाने के काम आती है। इससे पानी की अच्छी गुणवत्ता पदार्थों के जमाव में कमी आ जाती है। ये भी पढ़े:- जल संसाधन के प्रमुख स्त्रोत क्या है |(घ) पुनर्भरण कुएँ (Recharge wells) 28.4.2 पुनर्भरण की अन्य अपरोक्ष विधियाँ इस विधि से प्रेरित पुनर्भरण (Induced infiltration) एक गैलरी या कुओं की एक समांतर लाइन नदी के किनारे पर या उससे कुछ दूरी पर मिलकर बनती है। कुओं के बिना भूजल नदी की ओर बेरोकटोक बहता रहेगा। जब भूजल की थोड़ी सी मात्र इन गैलरी समान्तरों से नदी की तरफ ले जाती है, तब भूजल का नदी की ओर होने वाला पुनर्भरण कम हो जाता है। गैलरी द्वारा पानी की पुनर्प्राप्ति पूर्ण रूप से भूजल के कारण होती है। प्रत्येक बार भूजल का निकाला जाना जल तालिका में से निकाले गये जल के साथ-साथ होता है। इस निकाले गये जल की उच्च दर पर पुनर्प्राप्ति नदी के किनारों के नीचे पायी जाने वाली भूजल तालिका से कम होता है एवं गैलरी की ओर प्रवाहित होता है। उन क्षेत्रों में जहाँ जल धारायें जलभृतों से कम पारगम्यता वाले पदार्थों द्वारा अलग होती हैं, जल धाराओं से रिसने वाला जल इतना कम होता है कि वह इस प्रणाली में दिखायी भी नहीं पड़ता है। (ख) संयोजी कुएँ ये भी पढ़े:- जल संसाधन संरक्षण एवं विकास
28.4.3 संयोजी पुनर्भरण के लाभ 2. अपवाही कुओं को खोदने में बहुत थोड़े से विशेष औजारों की आवश्यकता पड़ती है। 3. चट्टानों के निर्माण वाली जगहों (पथरीली जगहों) पर कुओं को बनाने में कुछ उच्च, संरचनात्मक अक्षतता वाले औजारों/सामग्रियों (रोड़ी, मृदु पत्थर या कोरल रॉक ब्लॉक, धातु की छड़ों) की आवश्यकता होती है। 4. भूजल का पुनर्भरण नम मौसमों में पानी को एकत्र कर रखा जाता है जिससे शुष्क मौसम में जब इनकी खपत बढ़ जाती है, को उपयोग में लिया जा सके। 5. जलभृत जल को पुनर्भरण द्वारा उच्च गुणवत्ता जल में बदला जा सकता है। 6. निरन्तर चलने वाले जलभृत तंत्र के द्वारा पुनःभरण को बढ़ाया जा सकता है। 7. पुनर्भरण की पद्धतियाँ आकर्षक हैं, विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में। 8. अधिकांश जलभृत पुनर्भरण को चलाना आसान है। 9. अनेक नदियों के बेसिनों में, सतही जल के बहने पर नियंत्रण करने से जलभृत पुनःभरण से पानी में रेत की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। 10. कम खारी सतही जल का पुनःभरण या बहिर्वाहों के उपचार से खारी जल के जलभृतों की गुणवत्ता में सुधार से, कृषि एवं पशुओं के लिये जल के उपयोग की सुविधाओं में सुधार किया जा सकता है। 28.4.4 कृत्रिम पुनःभरण के दोष (हानियाँ) कृत्रिम पुनःभरण के कुछ दोष भी हैं: 1. वित्तीय प्रोत्साहनों के अभाव में अथवा नीतियों एवं नियमों के कारण भू-मालिकों को निकासी पम्पों (कुओं) के रख-रखाव हेतु पर्याप्त साधनों का अभाव है जिससे इन कुओं की मरम्मत नहीं हो पाती तथा अंततः इनमें भूजल का स्त्रोत दूषित हो जाता है। 2. सतही जल को जमीन के अन्दर भेजने में तथा उसी जल को जब सिंचाई हेतु प्रयुक्त किया जाता है, तो जल के दूषित होने का खतरा हो सकता है। यह केवल तभी ठीक रह सकता है जब सतही जल के प्रवाह को कृषि खेतों एवं सड़क मार्गों के स्थान पर पृथ्वी के अन्दर आने से पूर्व अच्छी प्रकार से उसे पूर्वोपचारित किया जाता है। 3. जब तक जलभृत में जल को अच्छी तरह से भरा नहीं जाएगा, भूजल के पुनःभरण को आर्थिक रूप से उपलब्ध नहीं कराया जा सकता। 4. भविष्य में किसी एक्वाफायर की हाइड्रोजिओलॉजी (जल विज्ञान) बड़ी मात्रा में पानी के अन्वेषण से पूर्व उसकी प्रकृति एवं क्षमता के विषय में जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। ये भी पढ़े:-भूजल प्रदूषण (Groundwater pollution in Hindi)पाठगत प्रश्न 27.4 1. कृत्रिम पुनःआवेश क्या है? 28.5 भूजल गुणवत्ता भारत में विशेष कर पीने के पानी के स्रोत के रूप में भूजल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भूजल की अनेकों प्रकार की विशिष्ट विशेषताएँ हैं जिनमें मुख्यतः जल आपूर्ति स्त्रोत सबसे बड़ी है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं: 1. सामान्यतः यह दूषित नहीं होता और इसे सीधे ही बिना किसी उपचार के पीने हेतु प्राप्त कर सकते हैं। 2. किसी एक स्थान से इस भूजल को अनेकों स्थानों पर उपलब्ध कराया जा सकता है जहाँ यह अधिकता से पाया जाता हो। 3. यह निर्भर (Dependable) है एवं सूखे का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। 4. वृहत भंडारण, उपचार एवं वितरण को छोड़ा जा सकता है। 5. यह बिल्कुल भी महँगा नहीं है। ऊपर दिए गए कारणों से ज्ञात होता है कि भारत की 85% जनसंख्या अपने घरेलू मांगों को पूरी करने के लिये भूजल पर आश्रित है। ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिगत जल पीने के पानी का एक महत्त्वपूर्ण मुख्य स्रोत है। भूजल, कृषि-सिंचाई एवं पशुओं के नहलाने दोनों के लिये अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। औद्योगिक क्षेत्रों में भी भूजल की काफी मांग है। जैसे कि ऊपर इसकी विशेषताएँ बताई गई हैं भूजल के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाती है। कृषि, शहरीकरण एवं औद्योगिक कारखानों से उत्पन्न होने वाले अपशिष्टों के कारण भूमिगत जल की गुणवत्ता में खतरा पैदा हो रहा है। यदि एक बार यह अपशिष्ट पर्यावरण की उप-सतह के भीतर चला गया तो यह बहुत वर्षों तक अधिकांश भाग को अपनी चपेट में ले लेगा जिससे भूजल भी दूषित हो जाएगा और मानव के उपयोग के स्रोत के रूप में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। 28.5.1 भूजल की गुणवत्ता में आयी कमी के कारण कई बार तो इन दूषित तत्वों की पहचान करना भी बड़ा कठिन हो जाता है। कई बार इनका समाधान काफी महँगा होता है, अधिक समय लेने वाला एवं हमेशा प्रभावी नहीं होता है। कई बार तो दूषण का पता लगाना काफी मुश्किल कार्य होता है जब तक कि वास्तव में उस प्रयुक्त जल में ये पदार्थ दिखाई नहीं पड़ते हैं। उसी समय प्रदूषण के कारण यह काफी बड़े क्षेत्र में फैल जाता है। सभी प्रकार की प्रक्रियाएँ, शहरी, औद्योगिक या कृषि संबंधी भूजल को दूषित करने की क्षमता रखती है। उद्योगों से निकले अपशिष्टों, भूमि भरण रसायनों एवं संकटदायी अपशिष्टों का उप-सतह में प्रवेश करना ही भूजल प्रदूषण का महत्त्वपूर्ण स्त्रोत हैं। इन सांद्रित स्त्रोतों की आसानी से पहचान की जा सकती है एवं नियमित भी कर सकते हैं लेकिन इसके साथ सबसे कठिन समस्या प्रदूषण के विभिन्न स्त्रोतों के मिलने से होती है जैसे कृषि रसायनों एवं पशु-अपशिष्टों का निक्षालन, (Leaching) शौचालयों एवं सेप्टिक टैंकों से उपसतह पर पहुँचे डिस्चार्ज एवं शहरी प्रवाह से प्रदूषकों का अंतस्यंदन एवं वाहित मल जहाँ मल-जल नहीं पाया जाता है या उसे उपचारित किया गया हो। विसरित स्त्रोत भी सम्पूर्ण जलभृत को प्रभावित करते हैं जिससे नियंत्रण एवं उपचार कठिन हो जाता है। प्रदूषण स्त्रोतों के विसरण का केवल एक ही इलाज है कि अन्तर्निहित भूमि का प्रयोग जल प्रबंधन के साथ किया जाय। तालिका 28.1 भूमि प्रयोग संबंधी प्रक्रियाओं एवं उनकी क्षमताओं का प्रयोग भूमिगत जल की गुणवत्ताओं के लिये उत्पन्न खतरों को दर्शाता है।
28.5.2 भूमिगत जल में पाये जाने वाले सामान्य अपदूषण 2. रोगजनकः ठीक प्रकार से रखरखाव न हो पाने के कारण एवं इसमें अपर्याप्त मात्रा में चारकोल का रिसाव से कुओं का जल दूषित हो जाता है जिसके कारण अच्छी गुणवत्ता वाला जल रोगजनकों से युक्त होकर दूषित हो जाता है और ठोस अपशिष्टों के डालने एवं नगर पालिका के अपशिष्टों के रिसाव के कारण जल रोगजनकयुक्त दूषण हो जाता है। बैक्टीरिया और वायरसों के कारण जल-जनित बीमारियाँ जैसे टॉयफाइड, हैजा, दस्त, पोलियो एवं हैपेटाइटिस इत्यादि रोग हो जाते हैं। इनमें भूमिगत जल में वाहित मल, भूमिभरण, सेप्टिक टैंकों एवं मवेशियों के आश्रय के कारण होने वाले निष्कर्षित पदार्थों से दूषित होता है। 3. धातु के अवशेषः इनमें पारा, कैडमियम, निकिल एवं सीसा शामिल होता है। ये धातुएँ जहरीली एवं कैंसरजन्य होती हैं। औद्योगिक रिसाव एवं खनिज का प्रवाह, तापीय ऊर्जा संयंत्रों से निकली फ्लाई ऐश भी भूमिगत जल में धातुओं की अधिकता को बढ़ावा देती है। 4. कार्बनिक यौगिकः कृषि में कार्बनिक मिश्रणों जैसे पीड़कनाशकों का प्रयोग करने से भूमि में उनका रिसाव होता है, जो पीड़कनाशकों से भूमिगत जल को प्रदूषित कर देता है। ये भी पढ़े:-भू-जल का कृत्रिम पुनर्भरणपाठगत प्रश्न 28.5 1. खनन गतिविधियों के कारण किस प्रकार भूजल प्रभावित होता है? 28.6 भूजल की कमी का जोखिम पानी की मांग सालों साल बढ़ती जा रही है एवं इससे जल की कमी विश्व के कई देशों में उठने लगी हैं। लगभग विश्व की 1/3 जनसंख्या अर्थात 2 अरब (विलियन) लोग भूजल पर निर्भर हैं। उथले जलभृतों से वैश्विक जल का लगभग 20% अर्थात 600-700 km3 या उससे अधिक वार्षिक दर से उपयोग में ला रहे हैं। इस समस्या के अत्यधिक बढ़ जाने से उत्पन्न होने का कारण होने वाली समस्या भूजल प्रदूषित होना है। भूजल की समस्या विश्व के अनेक क्षेत्रों में गंभीरता से बढ़ रही है। भूजल के निकालने की दर तीव्र गति से बढ़ने के कारण बहुत से जलभृतों में जल तालिका काफी निम्न स्तर पर चली गयी है जिसके कारण पानी के निष्कर्षण की दर उसके पुनःभरण की दर से अधिक है। 28.6.1 भूजल में आई कमी के कारण भूजल संकट प्राकृतिक कारकों के कारण नहीं होता हैः 1. यह मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न हुआ संकट है। पिछले दो दशकों में, भारत के बहुत से भागों में अत्यधिक मात्रा में पानी निकालने से जल स्तर बड़ी तेजी के साथ गिरा है। खाद्य एवं नकदी फसलों की सिंचाई हेतु बनाये गये बहुत से कुओं में जल का स्तर बड़ी तेजी से नीचे गिर रहा है। भारत की शीघ्रता से बढ़ती जनसंख्या व उसकी जीवन शैली में आये बदलाव के कारण घरेलू जल की आवश्यकता भी बढ़ रही है। 2. उद्योगों में पानी की बढ़ती आवश्यकता भी कुल मात्र में वृद्धि को दिखाती है। प्रचण्ड प्रतिस्पर्धा के चलते प्रयोगकर्ता कृषि, उद्योगों एवं घरेलू सेक्टरों में पानी के बढ़ते उपयोग से भूजल तालिका का स्तर कम हुआ है। भूजल की गुणवत्ता भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है क्योंकि सतही जल का प्रदूषण काफी तेजी से फैल गया है। इसके साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन भी भूजल को दूषित करता है, इसके कारण अलवण जल संसाधनों की गुणवत्ता में भी कमी आयी है। 3. सतही संग्रहण की तरह, भूजल का संग्रहण भी अत्यंत धीमी गति से होता है। भूजल के दो घटक हैं, एक स्थिर भाग एवं दूसरा गतिशील भाग जो वार्षिक पुनर्भरण के योग के कारण को बताता है। वार्षिक उपयोग की जरूरतों को पूरा करना जरूरी है। कमी वाले वर्षों में, जबकि स्थिर भाग के घटकों से निकाला गया जल पुनः प्राप्ति के साथ अगले आने वाले वर्षों के लिये उपयोग किया जा सकता है। स्थिर संग्रहण पर निर्भरता के लिये भूजल की अत्यधिक मात्रा का खनन होगा। आदर्शरूप से, भूमिगत जल की आयु जितनी सम्भव हो कम होनी चाहिए। अधिक आयु का अर्थ यह होगा कि लंबे समय तक खनन किया जा सकता है। 28.6.2 जोखिम 1. इन क्षेत्रों में जल तालिका से कृषि निरंतरता को खतरा हो गया है। इसे बढ़ाने में सस्ती दर पर बिजली की आपूर्ति की नीतियों एवं उचित पानी के निष्कासन संबंधी सम्पत्ति अधिकारों का अभाव होता है। 2. वर्षा के दौरान, पानी की उपलब्धता अवक्षेपण के साथ-साथ प्राकृतिक एवं मानवजनित धारण क्षमता के रूप में होती है; जिसका परिणाम बाढ़ होती है। वर्षारहित मौसम के दौरान उच्च उद्वाष्पन से पानी की मात्रा में अत्यंत कमी आ जाती है। बाढ़ एवं सूखे जैसे हालात जल चक्र का निर्माण करते हैं। इसका कारण देश में तेजी से घट रहे वन आवरण हैं। 3. भूजल की आपूर्ति असीमित नहीं है ना ही यह हमेशा अच्छी गुणवत्ता में उपलब्ध होता है। कई परिस्थितियों में, भूमिगत जल का अत्यधिक मात्रा में निष्कर्षण कुओं के सूखने का कारण, खारी जल का निकलना एवं नदियों का सूख जाना होता है जो शुष्क मौसम में अपने प्रवाह को भूजल से प्राप्त करते हैं। 4. भूजल निकायों में पाया जाने वाला पानी मृदा में बहाव के कारण पुनः प्राप्त किया जा सकता है जो कि अक्सर एक धीमी प्रक्रिया है। भूजल पुनर्भरण की दर उस समय अधिक होती है जब वर्षा का जल मृदा में भर जाता है और उद्वाष्पोत्सर्जन कम होता है। जब जल तालिका काफी गहरे में भूमिगत होती है, जलभृत में पानी भी काफी पुराना होता है। इस जल का बहुतायत से प्रयोग जल आपूर्ति एवं सिंचाई के उद्देश्यों के लिये किया जाता है जो कि हजारों वर्षों पूर्व का हो सकता है। इस पानी का उपयोग जिसको कि वर्तमान जलवायुवीय पृष्ठभूमि में पुनर्भरित नहीं किया जा सकता है, भूजल खनन (Ground water mining) के नाम से जानते हैं। 5. भारत एवं बांग्लादेश में लाखों लोग भूमिगत जल के उच्च स्तर तक पाये जाने वाले आर्सेनिक की उच्च मात्रा स्तर, जो कि अत्यंत विषालु एवं खतरनाक प्रदूषक है, से पीड़ित है। भारत भी इससे प्रभावित है। ऐसा अनुमान है कि पश्चिम बंगाल में करीब 50 लाख लोग इससे पीड़ित हैं। अगली सीढ़ी पर बांग्लादेश जिसकी 120 मिलियन जनसंख्या में से आधी जनसंख्या अपने पीने के पानी में आर्सेनिक के बढ़े हुए स्तर के कारण पीड़ित है। ये भी पढ़े:-पूरे हिमाचल प्रदेश में सूख रहे हैं झरनेपाठगत प्रश्न 28.6 1. जल तालिका में गिरावट के दो कारण बताइए। आपने क्या सीखा 1. पृथ्वी पर सभी अलवण जल का स्रोत वर्षाजल है। पाठान्त प्रश्न पाठगत प्रश्नों के उत्तर 1. पृथ्वी की सतह और इसके नीचे पाया जाने वाला पानी। 28.2 28.3 ये भी पढ़े:- भूजल का गिरता स्तर : सरोकार एवं समाधान28.4 28.5 28.6
खारे पानी का सबसे बड़ा स्रोत क्या है?खारे पानी का मुख्य स्रोत महासागर है। सभी महासागरों और समुद्रों में खारा पानी है। पृथ्वी का 97 प्रतिशत से अधिक पानी महासागरों में पाया जाता है और मानव उपयोग के लिए बहुत नमकीन है।
खारे पानी का मुख्य स्रोत क्या है?देश के जल संसाधनों को नदियों और नहरों, जलाशयों, कुंडों और तलाबों, आर्द्र भूमि और चापाकार झीलों तथा शुष्क पड़ते जलस्रोतों और खारे पानी के रुप में वर्गीकृत किया जा सकता है। नदियों और नहरों के अलावा बाकी के जल स्रोतों का कुल क्षेत्र 7 मिलियन हेक्टेयर है।
सबसे खारा पानी कौन सा है?दुनिया की सबसे खारी झील अंटार्कटिका में स्थित डॉन हुआन झील (Don Juan Pond) है जिसकी सान्द्रता ४५% से भी ऊपर है। नमकीन पानी को जमने के लिये शून्य से भी कम तापमान चाहिए होता है और इस अत्यधिक खारेपन के कारण अंटार्कटिका की यह झील -५०° सेन्टीग्रेड तक तापमान गिरने पर भी नहीं जमती।
खारे पानी में क्या पाया जाता है?खारा पानी, खार पानी या समुन्द्री जल (अंगरेजी: Seawater) पानी के अइसन प्रकार बा जे सागर या महासागर में मिले ला। एह में बिबिध परकार के नून मिलल होलें। दुनिया के सगरी समुंद्र सभ के औसत खारापन 3.5% (35 g/L, या 599 mM) बाटे; एकर मतलब ई की हर एक लीटर समुंदरी पानी में औसतन 35 ग्राम नून पावल जाला।
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