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दिये जल उठे Class 9 Summary, Explanation, Question Answers and Difficult word meaning – Class 9 Hindi Sanchayan Book Lesson 6 यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”संचयन – भाग 1” के पाठ 6 “दिये जल उठे” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ, अतिरिक्त प्रश्न और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे | दिये जल उठे कक्षा 9 संचयन भाग 1 पाठ 6
लेखक परिचयलेखक – मधुकर उपाध्याय दिये जल उठे पाठ प्रवेश‘दिए जल उठे’ नामक इस पाठ में लेखक गाँधी जी द्वारा नमक कानून तोड़ने की यात्रा के पूर्व की गई तैयारी का वर्णन कर रहा है। इस पाठ में लेखक हमें बताना चाहता है कि गाँधी जी के अलावा भी कई नेता थे जिन्होंने दांडी कूच में योगदान दिया था। दांडी कूच में सभी सत्यग्रहियों को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा? कैसे सभी ने मिलकर सभी कठिनाइयों का सूझ-बुझ के साथ निवारण किया? लेखक इस पाठ में इन्ही सभी बातों पर प्रकाश डाला है। Top Diye jal uthe Class 9 Video Explanationदिये जल उठे पाठ सार (Summary)इस पाठ में लेखक गाँधी जी द्वारा नमक कानून तोड़ने की यात्रा की तैयारी का वर्णन कर रहा है। लेखक कहता है कि रास के पास ही एक बूढ़े बरगद का पेड़ था जिसने दांडी कूच की तैयारी का पूरा दृश्य देखा था। दांडी कूच के बारे में बताता हुआ लेखक कहता है कि दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल सात मार्च को रास पहुँचे थे। वल्लभभाई पटेल ने लोगों से पूछा कि क्या वे सभी सत्याग्रह के लिए तैयार हैं? जब वल्ल्भभाई पटेल लोगों को भाषण दे रहे थे उसी बीच फ़ौजदारी अदालत के अफ़सर ने मनाही का आदेश लागू कर दिया और पटेल को गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी यह गिरफ़्तारी स्थानीय कलेक्टर शिलिडी के आदेश पर हुई थी, जिसे पटेल ने पिछले आंदोलन के समय अहमदाबाद से भगा दिया था। लेखक कहता है कि वल्लभभाई को पुलिस पहरे में बोरसद की अदालत में लाया गया था, जहाँ पर वल्लभभाई ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। जब वल्लभभाई ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था तब जज को समझ में नहीं आ रहा था कि वह उन्हें कौन सी धारा के तहत, कितनी सजा दे। साबरमती आश्रम में गांधी को पटेल की गिरफ्तारी, उनकी सजा और उन्हें साबरमती जेल लाए जाने की सूचना दी गई। समय का अनुमान लगाकर गांधी जी खुद आश्रम से बाहर निकल आए। उनके पीछे-पीछे सब आश्रमवासी बाहर आ गए और बाहर आकर सड़क के किनारे खड़े हो गए ताकि वे पटेल को जेल जाने से पहले एक बार देख सकें। पटेल को जेल ले जाने वाली मोटर आश्रम के बाहर रुकी। गांधी और पटेल सड़क पर ही मिले। उन दोनों की एक छोटी सी मुलाकात हुई। पटेल ने कार में बैठते हुए आश्रमवासियों और गांधी से कहा था कि वह तो अब जा रहें हैं अब बाकि काम को पूरा करने की जिम्मेबारी उन सभी की है। सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी के बाद सत्याग्रहियों ने अपनी ओर से हर मुश्किल को पार करने की तैयारी पूरी तरह से कर ली थी। अब्बास तैयबजी भी रास पहुँच चुके थे ताकि यदि किसी कारण से गांधी की गिरफ्तारी होती है तो उस स्थिति में वे कूच का नेतृत्व कर सकें। जब गाँधी जी रास पहुँचे तो वहाँ पर गांधी जी का बहुत ही शानदार स्वागत हुआ। गाँधी जी के स्वागत में दरबार समुदाय के लोग इसमें सबसे आगे थे। दरबार गोपालदास और रविशंकर महाराज भी गांधी जी के स्वागत के लिए वहाँ मौजूद थे। लेखक कहता है कि जब गाँधी जी ने भाषण दिया तो गांधी ने अपने भाषण में दरबारों का खासतौर पर उल्लेख किया। दरबार लोगों की साहब की तरह जिंदगी जीते थे, ऐशो-आराम की जिंदगी जीते थे, एक तरह से वे लोग राजा की तरह जीते थे। दरबार सब कुछ छोड़कर रास में आकर बस गए थे। गांधी जी ने अपने भाषण में कहा कि दरबार लोगों से सभी को त्याग और हिम्मत सीखनी चाहिए। लेखक कहता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक 21 मार्च को साबरमती के तट पर होने वाली थी। जवाहरलाल नेहरू इस बैठक के होने से पहले गांधी से मिलना चाहते थे। जब जवाहरलाल नेहरू ने उनसे मिलने के लिए सन्देश भिजवाया तो गाँधी जी ने उन्हें वापिस सन्देश भिजवाया कि यदि जवाहरलाल नेहरू गाँधी जी से मिलना चाहते हैं तो उनको पूरी एक रात जागना पड़ेगा। और अगर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक से पहले वापस लौटना चाहते है तो इससे बचा भी नहीं जा सकता अर्थात उन्हें अगर समय पर वापिस लौटना है तो उन्हें पूरी रात जागना पड़ेगा तभी वे गाँधी जी से मिल कर वापिस समय पर लौट सकेंगे। गांधी ने दांडी कूच शुरू होने से पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि वे उनकी यात्रा ऐसे भूभाग से ही करेंगे जो अंग्रेजों के अधिकार में होगा। वे किसी राजघराने के इलाके में नहीं जाएँगे लेकिन इस यात्रा में उन्हें थोड़ी देर के लिए बड़ौदा रियासत से गुजरना पड़ा। क्योंकि अगर वे वहाँ से नहीं जाते तो उनकी यात्रा करीब बीस किलोमीटर लंबी हो जाती और इसका असर उनकी यात्रा के कार्यक्रम पर पड़ता। लेखक बताता है कभी सत्याग्रही गाजे-बाजे के साथ रास में दाखिल हुए। वहाँ गांधी जी को एक धर्मशाला में ठहराया गया जबकि बाकी सत्याग्रही तंबुओं में ही रुके। लेखक कहता है कि रास की जनसंख्या तीन हजार के लगभग थी लेकिन गाँधी जी की जनसभा में बीस हजार से भी ज्यादा लोग आये हुए थे। गांधी जी ने रास में भी राजद्रोह की बात पर जोर दिया और कहा कि उनकी गिरफ्तारी ‘अच्छी बात’ होगी। गाँधी जी ने सरकार को खुली चुनौती देते हुए यह भी कहा अब फिर बादल घिर आए हैं। या ये भी कहा जा सकता है कि अब सही मौका सामने आया है। अगर सरकार उन्हें गिरफ्तार करती है तो यह एक अच्छी बात है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें तीन माह की सजा देते हुए सरकार को भी शर्म आएगी। इसलिए गाँधी जी ने कहा कि राजद्रोही को तो कालापानी, देश निकाला या फांसी की सजा हो सकती है। और उनके जैसे लोग अगर राजद्रोही होना अपना धर्म मानें तो उन्हें क्या सजा मिलनी चाहिए? यहाँ गाँधी जी लोगों को बताना चाह रहे थे कि हो सकता है उन्हें तीन माह की सजा न हो कर कालापानी, देश निकाला या फांसी की सजा हो, तो उन सभी को आगे की कूच करने की पहले से ही तैयारियाँ करके रखनी चाहिए। लेखक यहाँ गाँधी जी के दूरदर्शी सोच को उजागर कर रहा है। लेखक कहता है कि सत्याग्रही रास से शाम छह बजे चले और आठ बजे कनकापुरा पहुँचे। जब सभी लोग कनकापुरा पहुँचे तो उस समय लोग उस यात्रा से कुछ थके हुए थे और कुछ थकान इस शक से भी थी कि वे सभी लोग मही नदी को कब और कैसे पार करेंगे। यात्रा के दौरान रास्ते में रेतीली सड़कों के कारण यह प्रस्ताव किया गया कि गांधी जी थोड़ी यात्रा कार से कर लें। परन्तु गांधीजी ने इस प्रस्ताव से साफ इंकार कर दिया। गाँधी जी का कहना था कि यह उनके जीवन की आखिरी यात्रा है और ऐसी यात्रा में निकलने वाला वाहन का प्रयोग नहीं करता। यह पुरानी रीति है। धर्मयात्रा में हवाई जहाज, मोटर या बैलगाड़ी में बैठकर जाने वाले को कोई लाभ नहीं मिलता। गाँधी जी के अनुसार जिस यात्रा में कष्ट सहें जाएँ, लोगों के सुख-दुख समझें जाएँ वही सच्ची यात्रा होती है। लेखक कहता है कि अंग्रेजी शासकों में एक वर्ग ऐसा भी था जिसे ऐसा लग रहा था कि गांधी और उनके सत्याग्रही मही नदी के किनारे ही अचानक नमक बनाकर कानून तोड़ देंगे। क्योंकि समुद्री पानी नदी के तट पर काफी नमक छोड़ जाता था जिसकी रखवाली के लिए अंग्रेजी सरकार ने सरकारी नमक चैकीदार रखे हुए थे। गांधी को समझने वाले बड़े अधिकारी इस बात को मानने वाले नहीं थे कि गांधी जी भी कोई काम ‘अचानक और चुपके से’ कर सकते हैं। यह विश्वास होने के बावजूद भी कि गाँधी जी कोई काम अचानक और चुपके से नहीं करेंगें अंग्रेजी अधिकारियों ने नदी के तट से सारे नमक भंडार हटा दिए और उन्हें नष्ट करा दिया ताकि इसका खतरा ही न रहे कि गांधी जी नदी किनारे ही नमक बना कर कानून को तोड़ दें। मही नदी के तट पर उस भयानक अँधेरी रात में भी मेला-जैसा लगा हुआ था। वहाँ पर उपस्थित लोगों ने कई भजन मंडलियाँ बना दी थीं। गांधी को नदी पार कराने की जिम्मेदारी रघुनाथ काका को सौंपी गई थी। उन्होंने गांधी जी को नदी पार कराने के लिए एक नयी नाव खरीदी और उसे लेकर कनकापुरा पहुँच गए थे। बदलपुर के रघुनाथ काका को सत्याग्रहियों ने निषादराज कहना शुरू कर दिया था क्योंकि जिस प्रकार राम जी को नदी पार करने की जिम्मेवारी निषाद राज की थी उसी प्रकार बदलपुर के रघुनाथ काका को भी गाँधी जी को नदी पार करवाने की जिम्मेवारी मिली थी। रात के समय जब समुद्र का पानी चढ़ना शुरू हुआ तब तक अँधेरा इतना घना हो गया था कि छोटे-मोटे दिये उसे भेद नहीं पा रहे थे। थोड़ी ही देर में कई हजार लोग नदी तट पर पहुँच गए। उन सबके हाथों में दिये थे। इसी तरह का दृश्य नदी के दूसरी ओर भी था। नदी के दूसरी ओर भी पूरा गाँव और आस-पास से आए लोग दिये की रोशनी लिए गांधी जी और उनके सत्याग्रहियों का इंतजार कर रहे थे। रात के लगभग बारह बजे महिसागर नदी का किनारा पानी से भर गया। गांधी जी झोपड़ी से बाहर निकले और घुटनों तक पानी में चलकर नाव तक पहुँचे। लेखक बताता है कि गांधी जी के वहाँ से चलते ही ‘महात्मा गांधी की जय’, ‘सरदार पटेल की जय’ और ‘जवाहरलाल नेहरू की जय’ के नारे सुनाई देने लगे और उन्हीं नारों के बीच नाव रवाना हुई जिसे रघुनाथ काका चला रहे थे। कुछ ही देर में नारों की आवाज नदी के दूसरे तट से भी आने लगी। महिसागर नदी के दूसरे तट पर भी स्थिति कोई अलग नहीं थी। वहाँ पर भी उसी तरह का कीचड़ और दलदली जमीन थी जैसी नदी के एक ओर के तट पर थी। लेखक कहता है कि मुमकिन है कि यह पूरी यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा था। डेढ़ किलोमीटर तक पानी और कीचड़ में चलकर गांधी जी रात एक बजे के लगभग नदी के उस पार पहुँचे और वहाँ पहुँचते ही सीधे आराम करने चले गए। गांधी जी के पार उतरने के बाद भी तट पर दिये लेकर लोग खड़े रहे। अभी सत्याग्रहियों को भी उस पार जाना था। शायद उन्हें पता था कि रात में कुछ और लोग आएँगे जिन्हें नदी पार करानी होगी। उन लोगों को पता था कि उनके सत्यग्रह में अभी और भी लोग जुड़ने वाले हैं, उन लोगों को भी नदी पार करवाना जरुरी था ताकि उन्हें भी सही रास्ते का पता चले और उनके सत्यग्रह में लोगों की संख्या बड़े ताकि अंग्रेज सरकार उनके कूच को न दबा सके और वे नमक बना कर कानून को तोड़ सकें। Top दिये जल उठे पाठ व्याख्या Explanationरास के बूढ़े बरगद ने वह दृश्य देखा था। दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल सात मार्च को रास पहुँचे थे। उन्हें वहाँ भाषण नहीं देना था लेकिन पटेल ने लोगों के आग्रह पर ‘दो शब्द’ कहना स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा,”भाइयो और बहनो, क्या आप सत्याग्रह के लिए तैयार हैं?” इसी बीच मजिस्ट्रेट ने निषेधाज्ञा लागू कर दी और पटेल को गिरफ़्तार कर लिया गया। यह गिरफ़्तारी स्थानीय कलेक्टर शिलिडी के आदेश पर हुई, जिसे पटेल ने पिछले आंदोलन के समय अहमदाबाद से भगा दिया था। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि रास के पास ही एक बूढ़े बरगद का पेड़ था जिसने
दांडी कूच की तैयारी का पूरा दृश्य देखा था। दांडी कूच के बारे में बताता हुआ लेखक कहता है कि दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल सात मार्च को रास पहुँचे थे। वल्लभभाई पटेल का वहाँ भाषण देने का कोई इरादा नहीं था लेकिन लोगों के बहुत प्रार्थना करने पर पटेल ने लोगों के सामने ‘दो शब्द’ कहना स्वीकार कर लिया था। वल्लभभाई पटेल ने लोगों से पूछा कि क्या वे सभी सत्याग्रह के लिए तैयार हैं? जब वल्ल्भभाई पटेल लोगों को भाषण दे रहे थे उसी बीच फ़ौजदारी अदालत के अफ़सर ने मनाही का आदेश लागू कर दिया और
पटेल को गिरफ़्तार कर लिया गया। कहने का तात्पर्य यह है कि फ़ौजदारी अदालत के अफ़सर ने दांडी कूच करने के लिए मनाही का आदेश लागू कर दिया। अब कोई भी दांडी कूच नहीं कर सकता था। अगर कोई इस आदेश का पालन करने से मना करता तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता था। वल्लभभाई पटेल इस समय दांडी कूच का नेतृत्व कर रहे थे इसी कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया। उनकी यह गिरफ़्तारी स्थानीय कलेक्टर शिलिडी के आदेश पर हुई थी, जिसे पटेल ने पिछले आंदोलन के समय अहमदाबाद से भगा दिया था। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि वल्लभभाई को पुलिस पहरे में बोरसद की अदालत में लाया गया था, जहाँ पर वल्लभभाई ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया अर्थात वल्लभभाई ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने मनाही के आदेश को नहीं माना है। जब वल्लभभाई ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था तब जज को समझ में नहीं आ रहा था कि वह उन्हें कौन सी धारा के तहत, कितनी सजा दे। लेखक कहता है कि जज को अपना आठ लाइन का फैसला लिखने में डेढ़
घंटा लगा। जज ने फैसले के अनुसार पटेल को 500 रुपये जुर्माने के साथ तीन महीने की जेल हुई। इसके लिए उन्हें अहमदाबाद में साबरमती जेल ले जाया गया। लेखक कहता है कि साबरमती आश्रम में गांधी को पटेल की गिरफ्तारी, उनकी सजा और उन्हें साबरमती जेल लाए जाने की सूचना दी गई। गांधी, वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी से बहुत अशांत हो गए थे और वे बहुत नाराज भी थे। पटेल की गिरफ़्तारी के बाद गांधी जी ने कहा कि अब उनके दांडी कूच की तारीख बदल सकती है। जहाँ वे पहले अपने अभियान पर 12 मार्च को जाने वाले थे अब उससे पहले ही रवाना
हो सकते हैं। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि जब वल्ल्भभाई पटेल को गिरफ्तार कर के जेल ले जाया जा रहा था तब आश्रम में एक-एक आदमी यह हिसाब लगा रहा था कि पटेल को ले जाने वाली मोटरकार बोरसद से साबरमती जेल पहुँचाने में कितना समय लगाएगी। लेखक बताता है कि जेल का रास्ता आश्रम के सामने से ही होकर जाता था। आश्रमवासी पटेल को एक बार
देखना चाहते थे। समय का अनुमान लगाकर गांधी जी खुद आश्रम से बाहर निकल आए। उनके पीछे-पीछे सब आश्रमवासी बाहर आ गए और बाहर आकर सड़क के किनारे खड़े हो गए ताकि वे पटेल को जेल जाने से पहले एक बार देख सकें क्योंकि लोगों का खयाल था कि पटेल को गिरफ्तार करके ले जाने वाली मोटर आश्रम के बाहर किसी हाल में नहीं रुकेगी लेकिन सबका सोचना गलत निकला। पटेल को जेल ले जाने वाली मोटर आश्रम के बाहर रुकी। लेखक कहता है कि ऐसा लगता है कि यह पटेल का रोब ही था कि पुलिसवालों को मोटर आश्रम के बाहर रोकनी पड़ी। गांधी और पटेल सड़क
पर ही मिले। उन दोनों की एक छोटी सी मुलाकात हुई। पटेल ने कार में बैठते हुए आश्रमवासियों और गांधी से कहा था कि वह तो अब जा रहें हैं अब बाकि काम को पूरा करने की जिम्मेबारी उन सभी की है। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि जब पटेल को गिरफ्तार किया गया तो उसके बदले में देशभर में एक लहर सी दौड़ गई। पटेल की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में मदन मोहन मालवीय ने केंद्रीय एसेंबली में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें बिना मुकदमा चलाए पटेल को जेल भेजने के सरकारी कदम की निंदा की गई
थी। लेकिन उनका यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। मदन मोहन मालवीय के इस प्रस्ताव पर कई नेताओं ने अपनी राय सदन में रखी। मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता के सिद्धांत पर हमला है। भारत सरकार एक ऐसा उदाहरण पेश कर रही है जिसके बहुत ज्यादा भयानक परिणाम होंगे। लेखक बताता है कि गांधी के रास पहुँचाने के समय वह कानून लागू था जिसके अनुसार सरदार वल्लभभाई पटेल को गिरफ्तार किया गया था। सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी के बाद सत्याग्रहियों ने
अपनी ओर से हर मुश्किल को पार करने की तैयारी पूरी तरह से कर ली थी। अब्बास तैयबजी भी रास पहुँच चुके थे ताकि यदि किसी कारण से गांधी की गिरफ्तारी होती है तो उस स्थिति में वे कूच का नेतृत्व कर सकें। लेखक कहता है कि बोरसद से निकलने के बाद लगभग सभी सत्याग्रहियों को यह विश्वास था कि अब गांधी को जलालपुर पहुँचाने तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी तैयारी में कोई कमी नहीं रखी थी। ताकि यदि किसी स्थिति में गाँधी को गिरफ्तार कर भी दिया जाता है तो भी कूच को न रोका जाए। शब्दार्थ – व्याख्या
– लेखक कहता है कि जब गाँधी जी रास पहुँचे तो वहाँ पर गांधी जी का बहुत ही शानदार स्वागत हुआ। गाँधी जी के स्वागत में दरबार समुदाय के लोग इसमें सबसे आगे थे। दरबार गोपालदास और रविशंकर महाराज भी गांधी जी के स्वागत के लिए वहाँ मौजूद थे। लेखक कहता है कि जब गाँधी जी ने भाषण दिया तो गांधी ने अपने भाषण में दरबारों का खासतौर पर उल्लेख किया। लेखक बताता है कि कुछ दरबार रास में ही रहते थे पर उनकी मुख्य बस्ती कनकापुरा और उससे सटे गाँव देवण में थी। दरबार लोग रियासत या किसी इलाके के मालिक होते थे। लेखक कहता है कि
दरबार लोगों की साहब की तरह जिंदगी जीते थे, ऐशो-आराम की जिंदगी जीते थे, एक तरह से वे लोग राजा की तरह जीते थे। दरबार सब कुछ छोड़कर रास में आकर बस गए थे। गांधी जी ने अपने भाषण में कहा कि दरबार लोगों से सभी को त्याग और हिम्मत सीखनी चाहिए। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक 21 मार्च को साबरमती के तट पर होने वाली थी। जवाहरलाल नेहरू इस बैठक के होने से पहले गांधी से मिलना चाहते थे। इसलिए जवाहरलाल नेहरू ने गाँधी जी को संदेश भिजवाया और जवाहरलाल नेहरू के संदेश के जवाब में गांधी जी ने रास में अपनी जनसभा से पहले जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा जिसमे गाँधी जी ने कहा कि जहाँ पर वे हैं वहाँ तक पहुँचाना कठिन है। गांधी जी ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि
वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी के बाद सभी को डर था कि किसी भी समय गाँधी जी को भी गिरफ्तार किया जा सकता है इसी वजह से गाँधी जी सभी से कही दूर छिपे हुए थे और जब जवाहरलाल नेहरू ने उनसे मिलने के लिए सन्देश भिजवाया तो गाँधी जी ने उन्हें वापिस सन्देश भिजवाया कि यदि जवाहरलाल नेहरू गाँधी जी से मिलना चाहते हैं तो उनको पूरी एक रात जागना पड़ेगा। और अगर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक से पहले वापस लौटना चाहते है तो इससे बचा भी नहीं जा सकता अर्थात उन्हें अगर समय पर वापिस लौटना है तो उन्हें पूरी रात जागना
पड़ेगा तभी वे गाँधी जी से मिल कर वापिस समय पर लौट सकेंगे। लेखक कहता है कि गाँधी जी ने अपने पत्र में यह भी लिखा कि वे उस समय जब जवाहरलाल नेहरू उनसे मिलेंगे, जहाँ भी रह रहे होंगे, संदेश लेने और पहुँचाने वाला व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू को वहाँ तक ले आएगा। गाँधी जी ने जवाहरलाल नेहरू से यह भी कहा कि इस यात्रा के बहुत अधिक कठिन समय में जवाहरलाल नेहरू गाँधी जी से मिल रहे थे। क्योंकि इस समय गाँधी जी सभी से छिप कर रह रहे थे इसलिए गाँधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को रात के लगभग दो बजे उनके विश्वास के मछुआरों के साथ
नाव पर बैठकर एक धारा पार करने को कहा और उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से क्षमा भी माँगी क्योंकि वे जवाहरलाल नेहरू को राष्ट्र के प्रमुख सेवक के रूप में देखते थे और वे इस समय इस कठिन यात्रा में जवाहरलाल नेहरू को थोड़ा सा भी विराम नहीं दे सकते थे। क्योंकि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक उनकी कूच की यात्रा के लिए बहुत अधिक आवश्यक थी और वे किसी भी कीमत में उसे नहीं टाल सकते थे। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी के कारण रास में आम लोगों के बीच सरकार के खिलाफ होने वाला रोष प्राकृतिक था। कहने का तात्पर्य है कि वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी के कारण लोगों का गुस्सा जायज़ था। लेखक कहता है कि गांधी जी की जनसभा से पहले ही गाँव के सभी पीढ़ियों से चले आ रहे मुखिया और पटेल सरकार को अपना इस्तीफा सौंप गए थे। क्योंकि
वे सभी सरकार के कानून के खिलाफ काम करने वाले थे। गांधी ने दांडी कूच शुरू होने से पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि वे उनकी यात्रा ऐसे भूभाग से ही करेंगे जो अंग्रेजों के अधिकार में होगा। वे किसी राजघराने के इलाके में नहीं जाएँगे लेकिन इस यात्रा में उन्हें थोड़ी देर के लिए बड़ौदा रियासत से गुजरना पड़ा। क्योंकि अगर वे वहाँ से नहीं जाते तो उनकी यात्रा करीब बीस किलोमीटर लंबी हो जाती और इसका असर उनकी यात्रा के कार्यक्रम पर पड़ता। लेखक बताता है कभी सत्याग्रही गाजे-बाजे के साथ रास में दाखिल हुए। वहाँ
गांधी जी को एक धर्मशाला में ठहराया गया जबकि बाकी सत्याग्रही तंबुओं में ही रुके। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि रास की जनसंख्या तीन हजार के लगभग थी लेकिन गाँधी जी की जनसभा में बीस हजार से भी ज्यादा लोग आये हुए थे। अपने भाषण में गांधी जी ने सरदार वललभभाई पटेल की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल को जो सजा हुई है वह जनता की सेवा करने के पुरस्कार के रूप में
उन्हें मिली है। लेखक बताता है कि गांधी जी ने अपने भाषण में सरकारी नौकरियों से इस्तीफे का उल्लेख भी किया और कहा कि कुछ लोग अभी भी गंदगी पर मक्खी की तरह अपनी सरकारी नौकरियों से चिपके हुए हैं। उन्हें भी अपने निजी मूल्यहीन स्वार्थ भूलकर अपनी सरकारी नौकरियों से इस्तीफा दे देना चाहिए। गांधी जी ने यह भी कहा कि ये सरकारी नौकरियाँ करने वाले लोग कब तक गाँवों को चूसने में अपना योगदान देते रहेंगे। सरकार ने जो लूट मचा रखी है उसकी ओर से क्या अभी तक उनकी आँखें खुली नहीं हैं? लेखक कहता है कि गांधी जी ने रास में
भी राजद्रोह की बात पर जोर दिया और कहा कि उनकी गिरफ्तारी ‘अच्छी बात’ होगी। गाँधी जी ने सरकार को खुली चुनौती देते हुए यह भी कहा अब फिर बादल घिर आए हैं। या ये भी कहा जा सकता है कि अब सही मौका सामने आया है। अगर सरकार उन्हें गिरफ्तार करती है तो यह एक अच्छी बात है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें तीन माह की सजा देते हुए सरकार को भी शर्म आएगी। इसलिए गाँधी जी ने कहा कि राजद्रोही को तो कालापानी, देश निकाला या फांसी की सजा हो सकती है। और उनके जैसे लोग अगर राजद्रोही होना अपना धर्म मानें तो उन्हें क्या सजा
मिलनी चाहिए? यहाँ गाँधी जी लोगों को बताना चाह रहे थे कि हो सकता है उन्हें तीन माह की सजा न हो कर कालापानी, देश निकाला या फांसी की सजा हो, तो उन सभी को आगे की कूच करने की पहले से ही तैयारियाँ करके रखनी चाहिए। लेखक यहाँ गाँधी जी के दूरदर्शी सोच को उजागर कर रहा है। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि सत्याग्रही रास से शाम छह बजे चले और आठ बजे कनकापुरा पहुँचे। जब सभी लोग कनकापुरा पहुँचे तो उस समय लोग उस यात्रा से कुछ थके हुए थे और कुछ थकान इस शक से भी थी कि वे सभी लोग मही नदी को कब और कैसे पार करेंगे। जैसे ही सभी लोग नदी के किनारे पहुँचे तो वहाँ पहुँचते ही समुद्र की ओर से आने वाली ठंडी हवा ने सत्याग्रहियों का स्वागत किया। लेखक बताता है कि कनकापुरा में 105
साल की एक बूढ़ी महिला ने गांधी जी के माथे पर तिलक लगाया और उनसे कहा कि वे अंग्रेजों से अपना राज्य लेकर जल्दी वापस आ जाए। इस पर गांधीजी ने उस महिला से कहा कि कहा कि वे अंग्रेजों से अपना राज्य लिए बिना नहीं लौटेंगे। लेखक कहता है कि गांधी जी की जनसभा का निश्चित किया गया समय आठ बजे का था लेकिन कनकापुरा पहुँचाने में हुई देरी के कारण उस जनसभा को एक घंटे के लिए टाल दिया गया। जब जनसभा शुरू हुई तो जनसभा के भाषण में गांधी जी ने अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे गलत शासन का जिक्र किया। भाषण में उन्होंने कहा कि
इस तरह के राज में रंक से राजा तक सब दुखी हैं। राजा-महाराजाओं को जैसे सरकार नचाती है, नाचने को तैयार हैं। यह राक्षसी राज है… इसका नाश करना चाहिए। गाँधी जी के कहने का तात्पर्य यह था कि जिस तरह से अंग्रेजी सरकार गलत शासन कर रही है उस शासन को खत्म कर देना चाहिए। लेखक बताता है कि यात्रा के दौरान रास्ते में रेतीली सड़कों के कारण यह प्रस्ताव किया गया कि गांधी जी थोड़ी यात्रा कार से कर लें। परन्तु गांधीजी ने इस प्रस्ताव से साफ इंकार कर दिया। गाँधी जी का कहना था कि यह उनके जीवन की आखिरी यात्रा है और ऐसी
यात्रा में निकलने वाला वाहन का प्रयोग नहीं करता। यह पुरानी रीति है। धर्मयात्रा में हवाई जहाज, मोटर या बैलगाड़ी में बैठकर जाने वाले को कोई लाभ नहीं मिलता। गाँधी जी के अनुसार जिस यात्रा में कष्ट सहें जाएँ, लोगों के सुख-दुख समझें जाएँ वही सच्ची यात्रा होती है। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि अंग्रेजी शासकों में एक वर्ग ऐसा भी था जिसे ऐसा लग रहा था कि गांधी और उनके सत्याग्रही मही नदी के किनारे ही अचानक नमक बनाकर कानून तोड़ देंगे।
क्योंकि समुद्री पानी नदी के तट पर काफी नमक छोड़ जाता था जिसकी रखवाली के लिए अंग्रेजी सरकार ने सरकारी नमक चैकीदार रखे हुए थे। लेखक कहता है कि गाँधी जी ने भी अंग्रेजों का ध्यान भटकाने के लिए कह दिया था कि नदी के किनारे नमक बनाया जा सकता है। परन्तु गांधी को समझने वाले बड़े अधिकारी इस बात को मानने वाले नहीं थे कि गांधी जी भी कोई काम ‘अचानक और चुपके से’ कर सकते हैं। यह विश्वास होने के बावजूद भी कि गाँधी जी कोई काम अचानक और चुपके से नहीं करेंगें अंग्रेजी अधिकारियों ने नदी के तट से सारे नमक भंडार हटा
दिए और उन्हें नष्ट करा दिया ताकि इसका खतरा ही न रहे कि गांधी जी नदी किनारे ही नमक बना कर कानून को तोड़ दें। शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि मही नदी के तट पर उस भयानक अँधेरी रात में भी मेला-जैसा लगा हुआ था। वहाँ पर उपस्थित लोगों ने कई भजन मंडलियाँ बना दी थीं। रास में दांडिया बहुत अधिक प्रसिद्ध था और दांडिया में रास के दरबार कुशल थे। उन्होंने वहाँ कुछ गीत गए। उनके गीत के बोल कुछ इस तरह के थे: शब्दार्थ – व्याख्या – लेखक कहता है कि रात के लगभग बारह बजे महिसागर नदी का किनारा पानी से भर गया। समुद्र का पानी चढ़ आया था। पानी चढ़ने की खबर सुन कर गांधी जी झोपड़ी से बाहर निकले और घुटनों तक पानी में चलकर नाव तक पहुँचे। लेखक बताता है कि गांधी जी के वहाँ से चलते ही ‘महात्मा गांधी की जय’, ‘सरदार पटेल की जय’ और ‘जवाहरलाल नेहरू की जय’ के नारे सुनाई देने लगे और उन्हीं नारों के बीच नाव रवाना हुई जिसे रघुनाथ काका चला रहे थे। कुछ ही देर में नारों की आवाज नदी के दूसरे तट से भी आने लगी। लेखक कहता है कि उन आवाजों को सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे वह नदी का किनारा नहीं बल्कि पहाड़ की घाटी हो, जहाँ जब कोई शब्द जोर से पुकारा जाता है तो उस शब्द के उपरान्त उसी से उत्पान्न शब्द सुनाई देता है। यहाँ लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि नदी के दूसरी ओर जमा हुए लोग भी उसी तरह से ‘महात्मा गांधी की जय’, ‘सरदार पटेल की जय’ और ‘जवाहरलाल नेहरू की जय’ के नारे लगा रहे थे। लेखक बताता है कि महिसागर नदी के दूसरे तट पर भी स्थिति कोई अलग नहीं थी। वहाँ पर भी उसी तरह का कीचड़ और दलदली जमीन थी जैसी नदी के एक ओर के तट पर थी। लेखक कहता है कि मुमकिन है कि यह पूरी यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा था। डेढ़ किलोमीटर तक पानी और कीचड़ में चलकर गांधी जी रात एक बजे के लगभग नदी के उस पार पहुँचे और वहाँ पहुँचते ही सीधे आराम करने चले गए। गाँव के बाहर, नदी के तट पर ही उनके लिए लोगो ने झोपड़ी पहले ही तैयार कर दी गई थी। गांधी जी के पार उतरने के बाद भी तट पर दिये लेकर लोग खड़े रहे। अभी सत्याग्रहियों को भी उस पार जाना था। शायद उन्हें पता था कि रात में कुछ और लोग आएँगे जिन्हें नदी पार करानी होगी। उन लोगों को पता था कि उनके सत्यग्रह में अभी और भी लोग जुड़ने वाले हैं, उन लोगों को भी नदी पार करवाना जरुरी था ताकि उन्हें भी सही रास्ते का पता चले और उनके सत्यग्रह में लोगों की संख्या बड़े ताकि अंग्रेज सरकार उनके कूच को न दबा सके और वे नमक बना कर कानून को तोड़ सकें। Top दिये जल उठे प्रश्न अभ्यास (Question Answers)निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए – प्रश्न 1 – किस कारण से प्रेरित हो स्थानीय कलेक्टर ने पटेल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया? उत्तर – सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने पिछले आंदोलन में स्थानीय कलेक्टर शिलिडी को अहमदाबाद से भगा दिया था। जहाँ कलेक्टर शिलिडी सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा किए जा रहे आंदोलन को दबाने के लिए आया था। वहाँ से भगाये जाने को वह अपमान के रूप में देख रहा था और इसी अपमान का बदला लेने के लिए कलेक्टर शिलिडी ने सरदार वल्लभभाई पटेल को मनाही के आदेश को भंग करने के आरोप में गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। प्रश्न 2 – जज को पटेल की सज़ा के लिए आठ लाइन के फैसले को लिखने में डेढ़ घंटा क्यों लगा? उत्तर – सरदार वल्लभभाई पटेल ने रास में भाषण की शुरुआत करके कोई अपराध नहीं किया था यह जज भी अच्छी तरह जानते थे। सरदार वल्लभभाई पटेल को कलेक्टर ने ईर्ष्या व रंजिश के कारण और अपने अपमान का बदला लेने के लिए गिरफ्तार करवाया था। सरदार वल्लभभाई पटेल के पीछे देशवासियों का पूरा समर्थन था। बिना अपराध के कारण सरदार वल्लभभाई पटेल को किस धारा के अंतर्गत कितनी सजा दें, यही सोच-विचार करने के कारण जज को डेढ़ घंटे का समय लगा। प्रश्न 3 – “मैं चलता हूँ! अब आपकी बारी है।”- यहाँ पटेल के कथन का आशय उधृत पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। उत्तर – सरदार वल्लभभाई पटेल को मनाही के आदेश का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यद्यपि मनाही के आदेश को उसी समय लागू किया गया था और सरदार वल्लभभाई पटेल अपने भाषण की शुरुआत पहले ही कर चुके थे। अतः उनकी गिरफ्तारी गैरकानूनी थी। अंग्रेज़ सरकार को कोई-न-कोई बहाना बनाकर कांग्रेस के नेताओं को पकड़ना था। इसी सत्य को बतलाने के इरादे से सरदार वल्लभभाई पटेल ने गाँधी जी को कहा कि अब वे तो अंग्रेजी सरकार के षडयन्त्र के कारण जेल जा रहे है उन्हें भी सावधानी से काम करना होगा। नहीं तो अंग्रेजी सरकार कोई न कोई बहाना बना कर उन्हें भी गिरफ्तार कर सकती है। अतः उन्हें आगे के सफर की और अच्छे से तैयारियाँ करनी चाहिए। प्रश्न 4 – “इनसे आप लोग त्याग और हिम्मत सीखें”-गांधी जी ने यह किसके लिए और किस संदर्भ में कहा? उत्तर – सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी के बाद जब गांधी जी रास पहुँचे तो दरबार समुदाय के लोगों के द्वारा उनका बहुत भी सुंदर स्वागत किया गया। ये दरबार लोरा रियासतदार होते थे, जो अपना ऐशो-आराम छोड़कर रास में बस गए थे। केवल गांधी जी को उनके कूच में सहायता प्रदान करने के लिए, जबकि उन्हें भी पता था कि गांधी जी का साथ देने के कारण उन्हें जेल भी जाना पद सकता है। गांधी जी ने “इनसे आप लोग त्याग और हिम्मत सीखें” ये शब्द इन्हीं दरबार लोगों के त्याग और ऐसे फैसले लेने के साहस के कारण कहे थे। प्रश्न 5 – पाठ द्वारा यह कैसे सिद्ध होता है कि-‘कैसी भी कठिन परिस्थिति हो उसका सामना तात्कालिक सूझबूझ और आपसी मेलजोल से किया जा सकता है। अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर – इस पाठ से सिद्ध होता है कि हर कठिन परिस्थिति को आपसी सूझबूझ और सहयोग से निपटा जा सकता है। सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी से एक चुनौती सामने आई। गुजरात का सत्याग्रह आंदोलन असफल होता जान पड़ा। किंतु स्वयं गाँधी जी ने आंदोलन की कमान सँभाल ली। यदि वे भी गिरफ्तार कर लिए जाते तो उसके लिए भी उपाय सोचा गया। अब्बास तैयबजी नेतृत्व करने के लिए तैयार थे। गाँधी जी को रास से कनकापुर की सभा में जाना था। वहाँ से नदी पार करनी थी। इसके लिए गाँववासियों ने पूरी योजना बनाई। रात ही रात में नदी पार की गई। इसके लिए झोंपड़ी, तंबू, नाव, दियों आदि का प्रबंध किया गया। सारा कठिन काम चुटकियों में संपन्न हो गया। इस पाठ में सभी के आपसी सहयोग के कारण ही सभी कार्य आराम से बिना किसी कठिनाई के संपन्न होते चले गए। प्रश्न 6 – महिसागर नदी के दोनों किनारों पर कैसा दृश्य उपस्थित था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए। उत्तर – गांधी जी और सत्याग्रही सायं छह बजे चलकर आठ बजे कनकापुरा पहुँचे। वहीं आधी रात में महिसागर नदी पर करने निर्णय लिया गया। फैसला लिया गया कि नदी को आधी रात के समय जब नदी में समुद्र का पानी चढ़ जाता है उस समय नदी को पार किया जाएगा ताकि लोगों को कीचड़ और दलदल में कम-से-कम चलना पड़े। रात के समय जब समुद्र का पानी चढ़ना शुरू हुआ तब तक अँधेरा इतना घना हो गया था कि छोटे-मोटे दिये उसे भेद नहीं पा रहे थे। थोड़ी ही देर में कई हजार लोग नदी तट पर पहुँच गए। उन सबके हाथों में दिये थे। इसी तरह का दृश्य नदी के दूसरी ओर भी था। नदी के दूसरी ओर भी पूरा गाँव और आस-पास से आए लोग दिये की रोशनी लिए गांधी जी और उनके सत्याग्रहियों का इंतजार कर रहे थे। रात के लगभग बारह बजे महिसागर नदी का किनारा पानी से भर गया। समुद्र का पानी चढ़ आया था। पानी चढ़ने की खबर सुन कर गांधी जी झोपड़ी से बाहर निकले और घुटनों तक पानी में चलकर नाव तक पहुँचे। गांधी जी के वहाँ से चलते ही ‘महात्मा गांधी की जय’, ‘सरदार पटेल की जय’ और ‘जवाहरलाल नेहरू की जय’ के नारे सुनाई देने लगे और उन्हीं नारों के बीच नाव रवाना हुई जिसे रघुनाथ काका चला रहे थे। कुछ ही देर में नारों की आवाज नदी के दूसरे तट से भी आने लगी। उन आवाजों को सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे वह नदी का किनारा नहीं बल्कि पहाड़ की घाटी हो, जहाँ जब कोई शब्द जोर से पुकारा जाता है तो उस शब्द के उपरान्त उसी से उत्पान्न शब्द सुनाई देता है। क्योंकि नदी के दूसरी ओर जमा हुए लोग भी उसी तरह से ‘महात्मा गांधी की जय’, ‘सरदार पटेल की जय’ और ‘जवाहरलाल नेहरू की जय’ के नारे लगा रहे थे। नदी के दोनों तटों पर मेले जैसा दृश्य हो रहा था। प्रश्न 7 – “यह धर्मयात्रा है। चलकर पूरी करूंगा”-गांधीजी के इस कथन द्वारा उनके किस चारित्रिक गुण का परिचय प्राप्त होता है? उत्तर – इस कथन द्वारा गांधी जी की दृढ़ आस्था, सच्ची निष्ठा और वास्तविक कर्तव्य भावना के दर्शन होते हैं। वे किसी भी आंदोलन को धर्म के समान पूज्य मानते थे और उसमें पूरे समर्पण के साथ लगते थे। वे औरों को कष्ट और बलिदान के लिए प्रेरित करके स्वयं सुख-सुविधा भोगने वाले ढोंगी नेता नहीं थे। वे हर जगह त्याग और बलिदान का उदाहरण स्वयं अपने जीवन से देते थे। प्रश्न 8 – गांधी को समझने वाले वरिष्ठ अधिकारी इस बात से सहमत नहीं थे कि गांधी कोई काम अचानक और चुपके से करेंगे। फिर भी उन्होंने किस डर से और क्या एहतियाती कदम उठाए? उत्तर – अंग्रेज अधिकारी भी गांधी जी की स्वाभाविक विशेषताओं से परिचित थे। वे जानते थे कि गांधी जी छल और असत्य से कोई काम नहीं करेंगे। फिर भी उन्होंने इस डर से एहतियाती कदम उठाए कि गांधी जी ने कहा था कि मही नदी के तट पर भी नमक बनाया जा सकता है, इसलिए नदी के तट से सारे नमक के भंडार नष्ट करवा दिए गए ताकि गांधी जी नदी के तट पर ही नमक बना कर कानून न तोड़ सकें। प्रश्न 9 – गांधी जी के पार उतरने पर भी लोग नदी तट पर क्यों खड़े रहे? उत्तर – जब गांधी जी महिसागर नदी के पार उतर गए। फिर भी लोग नदी तट पर इसलिए खड़े रहे ताकि गाँधी जी के पीछे आ रहे सत्याग्रही भी तट तक पहुँच जाएँ और उन्हें दियों का प्रकाश मिल सके। शायद उन्हें पता था कि रात में कुछ और लोग आएँगे जिन्हें नदी पार करानी होगी। उन लोगों को पता था कि उनके सत्यग्रह में अभी और भी लोग जुड़ने वाले हैं, उन लोगों को भी नदी पार करवाना जरुरी था ताकि उन्हें भी सही रास्ते का पता चले और उनके सत्यग्रह में लोगों की संख्या बड़े ताकि अंग्रेज सरकार उनके कूच को न दबा सके और वे नमक बना कर कानून को तोड़ सकें।
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