लकड़ावाला समिति के अनुसार गरीबी आकलन के लिए कुल कितनी रेखाएं थी - lakadaavaala samiti ke anusaar gareebee aakalan ke lie kul kitanee rekhaen thee

गरीबी मापने का आधार

  • 27 Oct 2020
  • 16 min read

संदर्भ:

गरीबी को मापने का मापदंड क्या होना चाहिये? इस विषय को लेकर कई बार प्रश्न उठते रहें हैं, जैसे कि क्या गरीबी को मापने के लिये सिर्फ आय (Income) को देखा जाना चाहिये या इसमें जीवन के दूसरे महत्त्वपूर्ण पहलुओं जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य मूलभूत ज़रूरतों को भी शामिल किया जाना चाहिये। समय-समय पर इसके पैमाने में बदलाव भी किये गए हैं हालाँकि विश्व के अधिकांश देशों में गरीबी को मापने का आधार किसी न किसी रूप में आय से ही संबंधित रहा है। भारत जैसे विकासशील और बड़ी आबादी वाले देश में बदलते समय के साथ देश के विभिन्न राज्यों की अलग-अलग परिस्थितियों को देखते हुए यह प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है।        

 

गरीबी:

  • गरीबी को एक ऐसी परिस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमे कोई व्यक्ति अथवा परिवार वित्तीय संसाधनों की अनुपलब्धता के कारण अपने जीवन निर्वाह के लिये बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है।
  • अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं द्वारा उपभोग पर होने वाले व्यय के ‘गरीबी रेखा’ (Poverty Line) से नीचे चले जाने की स्थिति को पूर्ण गरीबी के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • समाजशास्त्री हेनरी बर्नस्टीन ने निर्धनता के चार आयाम बताए हैं-
  1. जीविका रणनीतियों का अभाव।  
  2. संसाधनों (जैसे-धन, भूमि आदि) की अनुपलब्धता। 
  3. असुरक्षा की भावना। 
  4. संसाधनों के अभाव के कारण सामाजिक संबंध रखने और विकसित करने की अक्षमता।  

पृष्ठभूमि:    

  1. भारत की स्वतंत्रता के बाद से अबतक देश में गरीबी में रह रहे लोगों की संख्या के अनुमान के लिये 6 आधिकारिक समिति का गठन किया जा चुका है।  
  2. योजना आयोग कार्य समूह (वर्ष 1962)    
  3. वी एम दांडेकर और एन रथ (वर्ष 1971) 
  4. अलघ समिति (वर्ष 1979)
  5. लकड़ावाला समिति (वर्ष 1993)
  6. तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009) 
  7. रंगराजन समिति (वर्ष 2014)

केंद्र सरकार द्वारा रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई जिसके कारण देश में गरीबी में रह रहे लोगों की गणना तेंदुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा के आधार पर की जाती है। 

  • तेंदुलकर समिति  के अनुसार, भारत की कुल आबादी के 21.9 % लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं।
  • तेंदुलकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में शहरी क्षेत्र में रह रहे परिवारों के संदर्भ में गरीबी रेखा को 1000 रुपए (प्रति व्यक्ति प्रति माह) और ग्रामीण परिवारों के लिये इसे 816 रुपए निर्धारित किया था।     

लकड़ावाला समिति के अनुसार गरीबी आकलन के लिए कुल कितनी रेखाएं थी - lakadaavaala samiti ke anusaar gareebee aakalan ke lie kul kitanee rekhaen thee

गरीबी के पैमाने में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?  

  • पूर्व में यह अवधारणा रही है कि गरीबी में जीवनयापन कर रहे लोगों को सरकार द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा और ऐसी ही अन्य मूलभूत सुविधाएँ निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है। 
  • तेंदुलकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में देश की गरीब आबादी द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों पर किये जाने वाले खर्च को ध्यान में रखते हुए संशोधित गरीबी रेखा जारी की, समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा विश्व बैंक द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा से समान ही है। 
  • गौरतलब है कि विश्व बैंक द्वारा निर्धारित यह गरीबी रेखा निम्न आय वर्ग की सूची में शामिल देशों के लिये निर्धारित की गई थी, वर्ष 2009 में भारत निम्न आय वर्ग से निम्न-मध्यम आय वर्ग वाले देशों की सूची में शामिल हो गया।
  • निम्न-मध्यम आय वर्ग में शामिल होने के बाद तेंदुलकर समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा को अब चरम गरीबी (Extreme Poverty) के रूप में परिभाषित किया जाता है, साथ ही विशेषज्ञों के अनुसार, समय के साथ इस गरीबी रेखा की उपयोगिता सीमित हुई है।

गरीबी के प्रमुख कारण: 

  • निम्न पूंजी निर्माण 
  • आधारभूत संरचनाओं का अभाव  
  • मांग का अभाव 
  • जनसंख्या का दबाव 
  • सामाजिक/कल्याण व्यवस्था का अभाव

 वर्तमान चुनौतियाँ:  

  • असमानता:  पिछले दो दशकों में भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवेश में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं, वर्ष 2009 में निम्न मध्यम आय वर्ग में पहुँचने के बाद अगले 5-10 वर्षों में भारत मध्यम आय वर्ग में पहुँच सकता है।  हालाँकि इसी आर्थिक स्तर पर विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति कुछ मामलों में भिन्न है। 
  • उदाहरण के लिये समान आय वाले देशों की तुलना में भारत में ग्रामीण आबादी का अनुपात बहुत अधिक है, ऐसे में इसे शहरों के विकास या शहरी आबादी के जीवनस्तर में सुधार के आधार पर ही नहीं देखा जा सकता।  
  • इसी प्रकार भारत में कृषि पर आश्रित लोगों की संख्या बहुत अधिक है, गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में जोखिम और अस्थिरता अधिक होती है।
  • ‘आय का जोखिम’ और ग्रामीण तथा क्षेत्रों में सार्वजनिक वस्तुओं एवं सेवाओं की पहुँच में अंतर भी एक बड़ी चुनौती है। 
  • असंगठित क्षेत्र: भारत में कामगारों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, असंगठित भारतीय आर्थिक क्षेत्र की एक चुनौती है। 
  • कृषि का अधिकांश हिस्सा असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत आता है। उदाहरण के लिये- ज्यादातर मामलों में कृषि कार्यों में शमिल लोग दूसरों की भूमि पर मजदूरी करते हैं और स्थानीय अधिकारियों के पास ऐसे लोगों का कोई प्रमाणिक डेटा उपलब्ध नहीं होता है, जिसके कारण सरकार की अधिकांश योजनाओं का लाभ ऐसे लोगों तक नहीं पहुँच पाता है।        
  • भारत सरकार द्वारा भी असंगठित क्षेत्र और समायोजित विकास पर विशेष बल दिया जाता है, परंतु इन क्षेत्रों में अभी भी अपेक्षित सुधार देखने को नहीं मिला है।
  • COVID-19 की महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर बेरोज़गारी के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है और यदि बेरोज़गारी की यह स्थिति लंबे समय तक जारी रहती है तो इससे गरीबी में भी व्यापक वृद्धि होगी। 
  • आँकड़ों का अभाव: हाल ही में विश्व बैंक ने भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 की घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण रिपोर्ट न जारी किये जाने के संदर्भ में अपनी चिंता व्यक्त की थी। गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा इस सर्वेक्षण के डेटा की गुणवत्ता से जुड़ी आशंकाओं को लेकर रिपोर्ट को न जारी करने का निर्णय लिया था।     
  • बहुआयामी गरीबी (Multidimensional Poverty): बहुआयामी गरीबी के तहत चार क्षेत्रों (शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर, आवास की गुणवत्ता) 38 संकेतांकों के आधार पर आँकड़ों की समीक्षा की जाती है।
  • वर्तमान में बहुआयामी गरीबी के मामले में भारत 0.123 अंकों के साथ विश्व के 107 देशों में से 62वें स्थान पर है। गौरतलब है कि इसके तहत विभिन्न पैमानों देशों के प्रदर्शन की समीक्षा कर उन्हें 0 और 1 के बीच अंक प्रदान किये जाते हैं। 

सरकार के प्रयास:  

  • अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान द्वारा जनसांख्यिकी, स्वास्थ्य और सामाजिक स्तर में आर्थिक असमानता की समीक्षा के लिये संपत्ति आधारित सूचकांकों का विकास किया गया है। 
  • साथ ही वर्ष 2005-06 से लगातार संपत्ति सूचकांक के माध्यम से सरकार को 400 से अधिक संकेतकों पर आँकड़े उपलब्ध कराए जाते हैं। 
  • नीति आयोग  (NITI Aayog) द्वारा ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक' (Multidimensional Poverty Index- MPI) जारी किया जाता है।  
  • इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा सामाजिक असमानता को दूर करने और समाज के सभी वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिये कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की गई है।   
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा (MGNREGA)
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
    • प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhan Mantri Jan-Dhan Yojana- PMJDY)
    • आयुष्मान भारत 
    • प्रधानमंत्री आवास योजना (Prime Minister Awas Yojana -PMAY) 
    • एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड (One Nation-One Ration Card) 

परिवर्तन के लाभ:

  • सरकार द्वारा चलाई जाने वाली बहुत सी योजनाओं की पात्रता गरीबी रेखा के आधार पर निर्धारित की जाती है, ऐसे में इसकी गणना में आवश्यक सुधार के माध्यम से अधिक-से-अधिक पात्र लोगों की पहचान करने और उन तक आवश्यक सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित की जा सकेगी।   
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक के तहत देश में गरीबी में रह रही आबादी की गणना हेतु इसके आधार में अतिरिक्त संकेतकों को जोड़ने से शहरी-ग्रामीण असमानता को कम करने के साथ कई क्षेत्रों में सुधार लाने में सहायता प्राप्त होगी।  
  • गरीबी के पैमानों में सुधार के माध्यम से देश के विभिन्न राज्यों की असमानता के बावजूद उनमें अधिक विश्वसनीय आँकड़े जुटाए जा सकें।        

अन्य सुधारों की आवश्यकता: 

  • वर्ष 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाने के लिये गरीबी रेखा से नीचे रह रही आबादी के अनुमान के लिये वर्तमान में प्रयोग होने वाले मानकों में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है और MPI इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।   
  • आय से संबंधित सटीक आँकड़ों को एकत्र करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण है,ऐसे में गरीबी के मानकों के आधार में वृद्धि के साथ सूचकांकों की वैधता और विश्वसनीयता पर ध्यान देना भी बहुत आवश्यक है।   
  • सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास की गुणवत्ता के क्षेत्रों में देश के अलग-अलग क्षेत्रों में व्याप्त भारी अंतर को कम करने पर विशेष ध्यान देना होगा।
  • व्यापक शहरीकरण और शहरी आबादी में वृद्धि के साथ ही शहरी क्षेत्रों में गरीबों की संख्या और शहरी मलिन बस्तियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, ऐसी स्थिति में सरकार को नीतियों के निर्माण के लिये हर क्षेत्र को ध्यान में रखना होगा।  
  • भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में 3% या 4% चरम गरीबी के मामलों में सामान्य गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम अधिक प्रभावी नहीं हो सकते हैं, ऐसे मामलों में व्यक्तिगत स्तर पर ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें उचित सहायता उपलब्ध करानी होगी।  

निष्कर्ष:  

ब्रिटिश अर्थशास्त्री एडम स्मिथ के अनुसार, कोई भी ऐसा समाज कभी सुखी और संपन्न नहीं हो सकता जिसके अधिकांश सदस्य निर्धन तथा दयनीय हों। भारत के समग्र विकास के लिये गरीबी के अनुमान के आधार में विस्तार करना बहुत ही आवश्यक है, जिससे न सिर्फ शहरी-ग्रामीण असमता बल्कि वर्ग, जाति और सामाजिक बहिष्कार (Social Exclusion) के अन्य मामलों की भी पहचान की जा सके तथा समाज के सभी वर्गों के लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिये उपयुक्त योजनाओं का निर्माण किया जा सके।                                

अभ्यास प्रश्न: हाल के वर्षों में सरकार द्वारा जारी अनुमानित आँकड़े देश में गरीबी के स्तर में गिरावट के संकेत देते हैं। भारत में गरीबी को मापने के मानकों की समीक्षा करते हुए इसमें आवश्यक परिवर्तन तथा इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये।  

लकड़ावाला समिति के अनुसार गरीबी आकलन के लिए कुल कितनी रेखा थी?

कैलोरी अन्तर्ग्रहण विधि को सबसे पहले लकड़ावाला समिति ने तय किया था। गांव में – 2400 कैलोरी/दिन तथा शहर में – 2100 कैलोरी/दिन से कम यदि किसी को प्राप्त होता है तो वह गरीब माना जाता था। इस कैलोरी के आधार पर पैसों का आकलन किया जाता था।]

भारत की गरीबी रेखा कितनी है?

आजादी के 75 साल बाद करीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वील आबादी घटकर 22 फीसदी पर आ गई। हालांकि, अगर इसे संख्या के आधार पर देखा जाए तो कोई खास अंतर नहीं आया। देश की आजादी के वक्त 25 करोड़ जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे थी, अब 26.9 करोड़ जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे है।

भारत में गरीबी रेखा की गणना कैसे की जाती है?

भारत में गरीबी रेखा का अनुमान पूरी तरह से सेवन किये जाने वाले भोजन की कैलोरी पर आधारित है। एक व्यक्ति को गरीबी रेखा से ऊपर तभी माना जाता है यदि उसके पास शहरी क्षेत्र में रहने पर प्रति दिन 2100 कैलोरी या ग्रामीण इलाके में रहने पर 2400 कैलोरी खरीदने के लिए पर्याप्त धन होता है। गरीबी रेखा की गणना हर 5 साल में की जाती है।

भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कौन करता है?

भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण कौन करता है? योजना आयोग (अब नीति आयोग) हर वर्ष के लिए समय-समय पर गरीबी रेखा और गरीबी अनुपात का सर्वेक्षण करता है जिसके सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) बड़े पैमाने पर घरेलू उपभोक्ता व्यय के सैंपल सर्वे लेकर कार्यान्वित करता है।