लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि फ़ादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था? - lekhak ne aisa kyon kaha hai ki faadar ko jaharabaad se nahin marana chaahie tha?

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लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि फ़ादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था? - lekhak ne aisa kyon kaha hai ki faadar ko jaharabaad se nahin marana chaahie tha?

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CBSE Class 10 Hindi Ch – 13 Test Paper

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CBSE Practice Questions for Class 10 Hindi

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (मानवीय करुणा की दिव्य चमक)

  1. निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़िए और दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
    “और सचमुच इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई छोड़कर फादर बुल्के संन्यासी होने जब धर्मगुरु के पास गए और कहा कि मैं संन्यास लेना चार तथा एक शर्त रखी (संन्यास लेते समय संन्यास चाहने वाला शर्त रख सकता है कि मैं भारत जाऊँगा।”
    “भारत जाने की बात क्यों उठी ?”
    “नहीं जानता, बस मन में यह था।”
    उनकी शर्त मान ली गई और वह भारत आ गए। पहले ‘जिसेट संघ’ में दो साल पादरियों के बीच धर्माचार की पढ़ाई की। फिर 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। कलकत्ता (कोलकाता) से बी.ए. किया और फिर इलाहाबाद से एम.ए.।

    1. “जिसेट संघ’ में क्या शिक्षा दी जाती है और वहाँ फादर कितने समय तक रहे ?
    2. संन्यास लेते समय उन्होंने क्या शर्त रखी थी और ऐसी शर्त का क्या कारण गह्म हो ?
    3. संन्यासी बनने से पूर्व फादर बुल्के क्या कर रहे थे और फिर संन्यास लेने की घत्र थे ?

  2. फ़ादर कामिल बुल्के का देहांत कब हुआ और उन्हें कहाँ दफनाया गया? उनकी अंतिम यात्रा के समय उपस्थित गणमान्य विद्वानों की उपस्थिति किस बात का प्रमाण है?

  3. “फ़ादर को जहरबाद से नहीं मारना चाहिये था।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?

  4. हिंदी की दुर्दशा पर फ़ादर बुल्के के हृदय से एक चीख सुनाई देती है और आश्चर्य भी। कैसे?

  5. मनुष्य अन्य बहुत-सी बातें भूल जाता है, किंतु दूर रह कर भी माँ के स्नेह को नहीं भुला पाता है। संन्यासी फ़ादर बुल्के भी अपनी माँ को नहीं भूल पाते हैं। उनकी भावनाओं को व्यक्त कीजिए।

  6. फादर बुल्के भारतीयता में पूरी तरह रच-बस गए। ऐसा उनके जीवन में कैसे सम्भव हुआ होगा? अपने विचार लिखिए।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (मानवीय करुणा की दिव्य चमक)

Answer

    1. ‘जिसेट संघ’ में धर्माचार की शिक्षा दी जाती हैऔर फादर वहाँ दो वर्षों तक रहे।
    2. संन्यास लेते समय उन्होंने भारत जाने की शर्त रखी थी। उनके मन में भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति लगाव था | संभवतया वे यहाँ अनेकता में एकता की संस्कृति से प्रभावित हुए होंगे |
    3. संन्यासी बनने से पूर्व फादर बुल्के इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में अध्ययन कर रहे थे | संन्यास लेने के लिए वे धर्मगुरु के पास गए ।
  1. फ़ादर कामिल बुल्के का देहान्त 18 अगस्त,1982 को हुआ था। दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में उन्हें दफनाया गया था। उनकी अंतिम यात्रा में ढेर सारे सम्मानित और हिंदी जगत के प्रबुद्ध लोग उपस्थित थे। इनमें डॉ विजयेन्द्र स्नातक,डॉ सत्यप्रकाश और डॉ रघुवंश आदि की उपस्थिति उनके व्यक्तित्व की श्रेष्ठता और महत्वपूर्ण योगदान का प्रमाण है।
  2. फ़ादर की मृत्यु एक प्रकार के ज़हरीले फोड़े अर्थात जहरबाद (गैंग्रीन) से हुई थी। फादर के मन में सदैव दूसरों के लिए प्रेम व अपनत्व की भावना थी ।ऐसे सौम्य व स्नेही व्यक्ति की ऐसी दर्दनाक मृत्यु होना उनके साथ अन्याय है इसलिए लेखक ने कहा है कि “फादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था।”
  3. फादर कामिल बुल्के का हिंदी के प्रति चिंतित होना स्वभाविक था क्योंकि हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा का गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हो सका था। वे जहां कहीं भी वक्तव्य देते अपने इस चिंता को अवश्य प्रकट करते थे। वे इस बात को उठाते हुए अपनी वेदना प्रकट करते थे। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए उचित तर्क भी देते थे। उन्हें आश्चर्य भी होता था की हिंदी को अपने ही देश में उचित स्थान नहीं मिल पा रहा था, स्वयं हिंदी भाषियों द्वारा हिंदी के साथ की जाने वाली उपेक्षा उनका दुख बढ़ा देती थी। हिंदी वालों द्वारा हिंदी का अनादर और उपेक्षा किए जाने पर उनके मन में चीख सुनाई देती थी जिसको हर मंच पर सुना जा सकता था।
  4. बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पहुंचकर उन्होंने सन्यासी होने का मन बना लिया और दीक्षा लेकर भारत आ गए। लेकिन अपनी जन्मभूमि और मां को बहुत याद करते थे। लेखक बताते हैं कि वे अक्सर अपनी मां की स्मृति में डूब जाते थे। उन्हें अपनी मां की बहुत याद आती थी। मां की चिट्टियां उनके पास आती, जिसे वे अपने अभिन्न मित्र डॉक्टर रघुवंश को दिखाते थे। पिता और भाइयों के लिए उनके मन में लगाव नहीं था। इस बात से हमें पता चलता है कि फादर बुल्के अपनी मां से अधिक स्नेह करते थे |दूर रहकर भी वे अपनी मां को भुला नहीं पाते।
  5. फादर बुल्के निश्चित रूप से प्रबुद्ध व्यक्ति थे | भारत आकर यहाँ की संस्कृति को जानने की उनकी उत्कंठा रही होगी इसलिए उन्होंने हिंदी और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण साहित्य का अध्ययन किया | यहाँ स्थान-स्थान पर बिखरी हुई भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर वे उसी राह पर चल पड़े | भगवान राम के चरित्र से प्रभावित होकर उन्होंने उसी विषय पर शोध किया | अतः स्पष्ट है कि फादर बुल्के भारतीयता में पूरी तरह रच-बस गए


लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि फ़ादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था? - lekhak ne aisa kyon kaha hai ki faadar ko jaharabaad se nahin marana chaahie tha?


लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि फादर को जहर बाद से नही मरना चाहिए था?

फ़ादर की मृत्यु एक प्रकार के ज़हरीले फोड़े अर्थात जहरबाद (गैंग्रीन) से हुई थी। फादर के मन में सदैव दूसरों के लिए प्रेम व अपनत्व की भावना थी । ऐसे सौम्य व स्नेही व्यक्ति की ऐसी दर्दनाक मृत्यु होना उनके साथ अन्याय है इसलिए लेखक ने कहा है कि “फादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था।”

लेखक को फ़ादर संकल्प से संन्यासी क्यों लगते थे?

फादर संकल्प से सन्यासी थे, मन से नहीं। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि फादर बुल्के भारतीय सन्यासी प्रवृत्ति खरे नही उतरते थे। उन्होंने परंपरागत सन्यासी प्रवृत्ति से अलग एक नई परंपरा को स्थापित किया था। वह सन्यासियों जैसा प्रदर्शन नहीं करते थे, लेकिन अपने कर्मों से वह सन्यासी ही थे

फादर बुल्के की मृत्यु का मुख्य कारण क्या था?

17 अगस्त 1982 में गैंगरीन के कारण एम्स, दिल्ली में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी।

फादर की मृत्यु किस रोग से हुई लेखक ने उनके रोग के विधान पर क्या टिप्पणी की है?

Solution : फादर की मृत्यु गैंग्रीन नामक रोग से हुई। इस रोग में शरीर के अंदर एक जहरीला फोड़ा हो जाता है, जो बहुत यातना देता है। लेखक ने फादर के शांत अमृतमय जीवन को देखा था।