महापुरुषों ने महानता कैसे प्राप्त की? - mahaapurushon ne mahaanata kaise praapt kee?

<<   |   <   |  | &amp;nbsp; &lt;a target="_blank" href="http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1954/April/v2.11" title="Next"&gt;&lt;b&gt;&amp;gt;&lt;/b&gt;&lt;i class="fa fa-forward" aria-hidden="true"&gt;&lt;/i&gt;&lt;/a&gt; &amp;nbsp;&amp;nbsp;|&amp;nbsp;&amp;nbsp; &lt;a target="_blank" href="http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1954/April/v2.18" title="Last"&gt;&lt;b&gt;&amp;gt;&amp;gt;&lt;/b&gt;&lt;i class="fa fa-fast-forward fa-1x" aria-hidden="true"&gt;&lt;/i&gt; &lt;/a&gt; &lt;/div&gt; &lt;script type="text/javascript"&gt; function onchangePageNum(obj,e) { //alert("/akhandjyoti/1954/April/v2."+obj.value); if(isNaN(obj.value)==false) { if(obj.value&gt;0) { //alert("test"); //alert(cLink); location.replace("/hindi/akhandjyoti/1954/April/v2."+obj.value); } } else { alert("Please enter a Numaric Value greater then 0"); } } <div style="float:right;margin-top:-25px"> </div> </div> <br> <div class="post-content" style="clear:both"> <div class="versionPage"> <p class="AuthorPoet"> (श्री हरिश्चन्द्र जोशी, प्रयाग) </p><p class="ArticlePara"> महान पुरुष बनने के लिए मनुष्य को अपने विचार, स्वभाव व व्यवहार में महानता लाना आवश्यक हैं। केवल शक्ति के बल पर कोई भी मनुष्य महान नहीं बन सकता। महान बनने के लिए मनुष्यों के हृदय का प्रेम जीतना पड़ता है, अपने अन्दर आकर्षण शक्ति का विकास करना होता है, उनके हृदय में अपनत्व की भावना को स्थापित करना होता है। मनुष्य जो भी कुछ काम करता है उसका अधिकाँश भाग उस मनुष्य के विचारों पर आधारित होता है। क्योंकि मनुष्य के जिस प्रकार के विचार होंगे उसी प्रकार उसका स्वभाव निर्माण होगा, और स्वभाव के अनुकूल ही उसे मित्र व कार्यक्षेत्र प्राप्त होंगे, और उसी प्रकार का उसका व्यवहार होगा। संसार में मनुष्य को सफलता, असफलता, सुख, दुःख सभी कुछ उसके व्यवहारों का फल होता है। </p><p class="ArticlePara"> उदाहरणार्थ आप किसी व्यक्ति को अपनी और आकर्षित करना चाहते हैं, अपने व्यक्तित्व की ओर झुकाना चाहते हैं। तब सर्वप्रथम आपको यह करना होगा कि जब भी वह व्यक्ति विशेष आप से भेंट करे आप अपना अस्तित्व भूल जाइए और उस व्यक्ति की समस्याओं एवं उलझनों को सुलझाने एवं उन्नति की ओर अग्रसर करने के सम्बन्ध में वार्तालाप कीजिए। उसकी कठिनाइयों में अपना हाथ अग्रिम कीजिए। उन्हें मान दीजिए। व्यवहार में उचित आदर सत्कार प्रदान कीजिए। आपकी प्रत्येक क्रिया उनकी इच्छा के अनुसार हो। बस आप कुछ ही समय उपरान्त यह देखेंगे कि उन्हें आपसे विलग रहने में किंचित कष्ट का अनुभव होगा। सद्भावनाओं से प्रेरित किया हुआ आकर्षण शीघ्र ही फलदायक व स्थाई रहता है। जब एक व्यक्ति को आप अपनी ओर पूर्ण रूप से आकर्षित कर लें, तब आप अपनी इच्छानुसार शनैःशनैः उन महाशय जी के विचार व स्वभाव परिवर्तन में भी सफल हो सकते हैं। और जब आप कई व्यक्तियों को एक साथ आकर्षित करना चाहते हैं तो आपके व्यवहार में जितने भी मनुष्यों से आपकी भेंट हो उनके साथ इसी प्रकार का व्यवहार करें। अक्सर इस प्रकार के गुण विख्यात नेताओं में पाए जाते हैं वे सर्वप्रथम अपने व्यवहारों द्वारा मनुष्य के हृदय का प्रेम जीतने का प्रयत्न करते हैं और जब वे पूर्ण रूप से मानव-समाज को आकर्षित कर लेते हैं। तब वे अपनी इच्छानुसार कार्य करवा लेते हैं । और किसी भी व्यक्ति को महान पुरुष बनने के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि वह अपने अन्दर स्नेह एवं सद्भावनाओं से उत्पन्न आकर्षण का प्रयत्न करें। </p><p class="ArticlePara"> महान पुरुष बनने के लिए दूसरी आवश्यकता है विचारों की महानता। अगर मनुष्य के विचारों में महानता नहीं हुई तो उसकी परिणाम यह होता है कि उन्नति करके भी पुनः पतन को प्राप्त हो जाता है। महान विचारों का तात्पर्य सात्विक भावना से है। किसी की भलाई, उपकार व सहायता करने में आपका व्यक्तिगत लाभ न छिपा हो। नहीं तो जब किसी दिन आपकी कामना पूर्ति में अभाव आवेगा उस दिन आपका सत्य स्वरूप प्रकट हो जावेगा और उस दिन से आपके प्रति लोगों के हृदय में प्रेमभाव का अभाव हो जायेगा। और जब भी आप अन्य व्यक्तियों से वार्तालाप करें उस समय आपके विचारों व वाणी के अन्दर महानता की झलक स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होनी चाहिए। नहीं तो वैज्ञानिक रूप से अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः इसके लिए आपको सदैव प्रथम अपने अन्तःकरण में यह भावना तीव्र रूप से जाग्रत करनी होगी कि मुझे उत्तम प्रकार के विचार ग्रहण करना है। विचार ही मनुष्य के जीवन के निर्माता हैं। अगर विचार उच्च व शुद्ध होंगे तो यह भी सत्य है कि आपका जीवन भी महान व निर्मल होगा। जब आप वस्तुतः महान होंगे तो दूसरे भी आपको वैसा ही समझेंगे और वैसा ही अपने अन्तःकरण में स्थान एवं मान देंगे। </p><p class="ArticlePara"> तीसरी बात महान पुरुष बनने के लिए जो आवश्यक है वह है- मनुष्य का व्यवहार। मनुष्य का व्यवहार ही सत्य होता है बाकी सब असत्य भी हो सकता है। और इसी से ही वास्तविक सत्य रूप से जीवन पर प्रभाव पड़ता है। किसी व्यक्ति को आप हृदय से कितना चाहते हैं यह तो आपके व्यवहार से ही ज्ञान हो सकता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए आपके घर पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल जी आये हैं उस समय आप उनके लिए अपने घर को सुसज्जित करेंगे। उनके लिए श्रेष्ठ प्रकार का भोजन तैयार करेंगे। और कई तरह की ऐसी व्यवस्था करेंगे जिससे कि उनके हृदय में प्रसन्नता हो व उन्हें किसी तरह का कष्ट न हो। यह सब आप इसलिए करते हैं कि आपके हृदय में उनके प्रति कुछ श्रद्धा है। आन्तरिक प्रेम है यह सब आप किसी अनभिज्ञ या परिचित मित्र के लिए नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके प्रति आपके हृदय में इतनी श्रद्धा प्रेम नहीं है जितनी कि पं. जवाहर लाल जी के लिए है। अतः एक व्यक्ति का प्रेम उसके व्यवहारों द्वारा ज्ञात होता है। लोगों के प्रति इस तरह का हमारा व्यवहार होना चाहिए जिससे उनके हृदय में आपके प्रति वास्तविक रूप से श्रद्धा व प्रेम जागृत हो जावे। इसके अन्दर विशेष रूप से आपके बात करने की शैली। उनको ठोस रूप से लाभ देने की क्रिया। और अन्य व्यक्तियों को सम्मान देना। इन सब बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि आप मान प्राप्त करना चाहते हैं तो दूसरों का सम्मान व इज्जत करना सीखिए। महान पुरुष बनने के लिए तीसरी आवश्यकता है-अपने व्यवहार में सात्विक व शुद्ध स्वरूप लाना। </p><p class="ArticlePara"> महान पुरुष बनने के लिए चौथी आवश्यकता है दूसरों के अन्दर अपनत्व की भावना जागृत कराना। दूसरे व्यक्ति आपको अपना व्यक्ति जब ही समझेंगे जबकि आप दूसरों के दुःख दर्दों को ध्यान पूर्वक सुनें और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करें। तब ही आप दूसरों के हृदय में अपनत्व की भावना को जागृत करने में सफल हो सकेंगे अन्यथा नहीं। मनुष्य सभी कुछ भूल सकता है परन्तु आपत्तिकाल में जो उसे सहायता प्राप्त होती है वह उसे कदापि नहीं भूल सकता है। और सहायता करने वाले के प्रति उसके हृदय में अपनत्व की भावना जागृत हो जाती है। उसके हृदय में उस व्यक्ति के प्रति स्वाभाविक रूप से प्रेम व श्रद्धा जागृत हो जाती है। अतः महान पुरुष बनने के लिए दूसरों के आपत्ति के दिनों में सहायता देकर उनके मनों को जीतना भी आवश्यक है। </p><p class="ArticlePara"> महान पुरुष बनने के लिए पाँचवाँ गुण जोकि आवश्यक गुण है वह गुण है हिलमिल-सरिता। सब लोगों से हिलमिल कर रहना। विरोधी व्यक्तियों के विचार भी ध्यानपूर्वक सुनना। जिस प्रकार की महात्मा गाँधी जी ने किसी भी मत का खण्डन नहीं किया बल्कि सभी मतों के अच्छे तत्वों को सहायता देकर उनकी विशेष उत्तमताओं को प्रोत्साहित किया यही कारण था कि बापू जी राष्ट्रपिता ही नहीं बल्कि विश्वपिता के स्वरूप में सम्मानित हुए। उनसे चाहे कोई विरोध रखता हो पर वे किसी से विरोध नहीं रखते थे। यही कारण है कि आज वे सभी जाति सभी राष्ट्रों द्वारा सम्मानित हैं। वे कहते थे- ‘पाप से घृणा करो पानी से नहीं’। अतः महानता की महानतम सीढ़ी पर चढ़ने के लिए, सहिष्णुता, समन्वय भावना एवं मिलन सरिता का गुण भी नितान्त आवश्यक है। </p><p class="ArticlePara"> इन सब बातों का ध्यान रखने पर जो महान बनने के लिए अवशेष गुण रह जाते हैं वे सब अपने आप ही आपके अन्दर आ जायेंगे। अतः जो व्यक्ति महान बनने का स्वप्न देखा करते हैं उनके दैनिक जीवन में इन सब बातों का विशेष महत्व होना चाहिए। इन सबके अतिरिक्त भी एक बात जोकि बहुत महत्व रखती है वह है जीवन के लक्ष, उद्देश्य एवं कार्यक्रम की सुनिश्चितता। इस सुनिश्चितता से ही वे सब गुण ठीक रूप से उत्पन्न हो सकते हैं और जीवन में पूरी-पूरी सफलता प्राप्त हो सकती है। </p> </div> <br> <div class="magzinHead"> <div style="text-align:center"> <a target="_blank" href="http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1954/April/v2.1" title="First"> <b>&lt;&lt;</b> <i class="fa fa-fast-backward" aria-hidden="true"></i></a> &nbsp;&nbsp;|&nbsp;&nbsp; <a target="_blank" href="http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1954/April/v2.9" title="Previous"> <b> &lt; </b><i class="fa fa-backward" aria-hidden="true"></i></a>&nbsp;&nbsp;| <input id="text_value" value="10" name="text_value" type="text" style="width:40px;text-align:center" onchange="onchangePageNum(this,event)" lang="english"> <label id="text_value_label" for="text_value">&nbsp;</label><script type="text/javascript" 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