सब्सक्राइब करे youtube चैनल Show karyapalika kya hoti hai कार्यपालिका किसे कहते हैं | कार्यपालिका की परिभाषा क्या है , के प्रमुख कार्य बताइये ? शासन के अंगः कार्यपालिका, विधायिका और प्रस्तावना इस इकाई में शासन के तीन प्रमुख अंगों को, उनके कार्यों को और उनसे जुड़े विभिन्न प्रावधानों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। यह किसी शासन के विभिन्न अंगों के संबंध को भी स्पष्ट करती है। ऊपर शासन के जो तीन कार्य बतलाए गए हैं उनसे संबंधित अंग हैं – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका।
शासन के अंग कार्यपालिका ‘कार्यपालिका‘ शब्द के व्यापक और संकीर्ण, दोनों प्रकार के अर्थ होते हैं। मगर राजनीतिक अध्ययन के क्षेत्र में इसके संकीर्ण अर्थ का ही व्यवहार किया जाता है। कार्यपालिका का प्रमुख और उसके मुख्य सहकर्मी ही सरकार के तंत्र को चलाते हैं, राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वे नीतियाँ सही ढंग से लागू हों। निम्नलिखित तालिका विश्व में श्कार्यपालिकाश् के विभिन्न प्रकारों
को दर्शाती हैः कार्यपालिका नाममात्र यथार्थ लोकतांत्रिक सर्वाधिकारवादी उपनिवेशी संसदीय राष्ट्रपतीय अर्ध-संसदीय या शक्तियाँ ही प्राप्त होती हैं या नहीं होती। वैसे पूरा प्रशासन उसी के नाम से चलाया जाता है। राजा या तो ग्रेट ब्रिटेन की तरह वंशगत होता है या मलेशिया की तरह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से निर्वाचित होता है। ग्रेट ब्रिटेन, नेपाल, जापान और सऊदी अरब जैसे कुछ देशों में वंशगत उत्तराधिकार की प्रथा अभी भी प्रचलित है। जहाँ ग्रेट ब्रिटेन की तरह संविधानिक राजतंत्र है वहाँ यथार्थ शक्ति राजा या रानी के हाथों में नहीं, निर्वाचित मंत्रिपरिषद के हाथों में होती है। इसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है और मंत्रिपरिषद विधायिका के आगे जबावदेह होती है। लेकिन दुनिया के सभी राजा नाम मात्र प्रमुख नहीं हैं। अभी भी ऐसे राजा हैं जिन्हें पूरी शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे जोर्डन और सऊदी अरब में। कुछ राजाओं को ‘यथार्थ‘ कार्यपालिका की श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि उन्हें निरपेक्ष और असीमित शक्तियाँ प्राप्त हैं। यथार्थ कार्यपालिका को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है – एकैकवादी (सिंगुलर) और बहुलवादी (प्ल्यूरल)। एकैकवादी कार्यपालिका वह है जिसमें प्रमुख एक ही व्यक्ति होता है और दूसरे उसकी शक्तियों में भागीदार नहीं होते, जैसे अमेरिका में। वहाँ संविधान ने एक ही व्यक्ति अर्थात राष्ट्रपति को सारे अधिकार दे रखे हैं। बहुलवादी कार्यपालिका में सभी शक्तियाँ एक मंत्रिसमूह के हाथों में होती है। आज की दुनिया में इसका एकमात्र उदाहरण स्विटजरलैण्ड है जहाँ सरकार की सत्ता सात मंत्रियों (प्रेसिडेंट्स) के हाथों में होती है जो विधायिका द्वारा चार वर्षों के लिए चुने जाते हैं। इसे फेडरल कौंसिल (संघीय परिषद) कहा जाता है। प्रेसिडेंट्स में से एक को महासंघ का औपचारिक राष्ट्रपति चुना जाता है और वह वे सभी आलंकारिक कर्तव्य निभाता है जो किसी देश में सामान्यतः राज्य प्रमुख द्वारा निभाए जाते हैं। कार्यपालिका की संरचना जैसा कि ऊपर दी गई तालिका से स्पष्ट है, राजनीतिक कार्यपालिका की भी तीन श्रेणियाँ होती हैं। लोकतंत्र में सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं और अपने निर्वाचकों के आगे जवाबदेह होते हैं। उदाहरण के लिए ब्रिटेन में मंत्रिमंडल हाउस ऑफ कामंस के नकारात्मक मत के कारण सत्ता के बाहर हो जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति भी सत्ता से हटाया जा सकता है मगर अविश्वास प्रस्ताव नहीं बल्कि महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा। हाल ही में अमेरिका में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर महाभियोग चलाया गया पर वे बच निकले क्योंकि सीनेट उन्हें दंड देने में असमर्थ रही। एक सर्वाधिकारवादी राज्य में वास्तविक कार्यपालिका को जनता या उसके निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हटा सकते। ऐसे राज्य में जनता को सरकार के कामों की आलोचना या भर्त्सना करने की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होती। आज बर्मा, इराक, नाइजीरिया और अफगानिस्तान में ऐसे ही सर्वाधिकारवादी राज्य हैं जिनमें कार्यपालिका को निरपेक्ष शक्तियाँ प्राप्त हैं। इससे पहले हिटलर के नाजी जर्मनी और मुसोलिनी के फासीवादी इटली में ऐसे ही सर्वाधिकारवादी शासन रह चके हैं। अंत में, एक उपनिवेशी कार्यपालिका वह है जो उपनिवेशी सरकार के अधीन काम करती है। लोकतांत्रिक मॉडल को दो श्रेणियाँ में बाँटा जा सकता है – संसदीय व राष्ट्रपतीय शासन प्रणालियों में। संसदीय प्रणाली में भारत और ग्रेट ब्रिटेन की तरह सरकार को (प्रधानमंत्री के नेतृत्व में) एक मंत्रिपरिषद् चलाती है जो सामूहिक रूप से विधायिका के आगे जवाबदेह होती है। राज्य का प्रमुख नाम-मात्र का कार्यपालक होता है जिसके नाम से मंत्रिपरिषद् शासन करती है। भारत में राष्ट्रपति व ग्रेट ब्रिटेन में रानी नाम-मात्र के ही राज्य प्रमुख हैं। दूसरे प्रकार का लोकतांत्रिक मॉडल राष्ट्रपतीय शासन प्रणाली है, जैसा कि अमेरिका में है। वहाँ शक्तियों का बंटवारा कार्यपालिकाविधायिका-संबंध का आधार है। वास्तविक कार्यपालक राष्ट्रपति होता है। वह न तो विधायिका का सदस्य होता है न विधायिका उसे हटा सकती है। उसका कार्यकाल निश्चित होता है। इन दो मॉडलों के बीच फ्रांसीसी कार्यपालिका का मॉडल आता है जिसे अर्ध-संसदीय या अर्धराष्ट्रपतीय कह सकते हैं। वहाँ वास्तविक कार्यपालक राष्ट्रपति होता है, उसी के नियंत्रण में प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल होते हैं और ये साथ ही साथ संसद के आगे जवाबदेह भी होते हैं। इस तरह फ्रांसीसी मॉडल संसदीय और राष्ट्रपतीय, दोनों शासन प्रणालियों की कुछ विशेषताएँ लिए हुए है। कार्यपालिका के कार्य हाल में कार्यपालिका ने कुछ विधायी काम करने भी शुरू कर दिए हैं भले ही यह उसके कार्यक्षेत्र में नहीं आता। कानूनों की रूपरेखा तैयार करके उसे विधायिका के आगे रखने में कार्यपालिका पर्याप्त पहल कर रही है। यह बात ब्रिटेन और भारत जैसी संसदीय सरकारों के लिए खासकर सही है। भारत में विधायिका का सत्र न चल रहा हो तो कार्यपालिका अध्यादेश जारी कर कानून बना सकती है। विधायिका द्वारा पारित विधेयक को राज्य-प्रमुख स्वीकृति देने से इंकार भी कर सकता है। अमेरिका तक में, जहाँ शक्तियाँ विभाजित हैं, राष्ट्रपति अपने ‘संदेश‘ भेजकर या अपने ‘मित्रों‘ की सहायता से कांग्रेस से एक विधेयक पारित कराकर विधायिका को प्रभावित कर सकता है। कार्यपालिका के कार्यों में वृद्धि प्रत्यायोजित विधि-निर्माण (डेलीगेटेड लेजिस्लेशन) की वृद्धि का परिणाम भी है। संसद के बनाए कानूनों में आमतौर पर ब्यौरे नहीं होते। बाद में इस कमी को कार्यपालिका दूर करती है। कार्यपालिका कुछ न्यायिक कार्य भी करती है। सभी देशों में राज्य-प्रमुख को अपराधियों को क्षमादान करने, सजा कम करने या रिहा करने का अधिकार प्राप्त होता है। इसे उसका ‘दया का विशेषाधिकार‘ कहते हैं। वह न्यायाधीशों की नियुक्ति भी करता है। बहुत से विवाद प्रशासनिक पंचाटों (ट्रिब्यूनल्स) द्वारा हल किए जाते हैं। कुछ देशों में मंत्रियों को अपील की पंचाटों की तरह काम करने का अधिकार प्राप्त होता है। फ्रांस में प्रशासनिक कानूनों और अदालतों की एक अलग व्यवस्था है। कार्यपालिका ‘राष्ट्र के कोष‘ को भी नियत्रित करती है। कार्यपालिका ही बजट तैयार करके मंजूरी के लिए सदन के सामने रखती है। वास्तव में कार्यपालिका ही देश में करों का ढाँचा तय करती हैय संसद केवल उसे अपनी स्वीकृति देती है। संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद बजट के प्रावधान लागू हों, इसे भी कार्यपालिका ही सुनिश्चित करती है। इसके लिए कार्यपालिका के पास लेखा-परीक्षण के अनेक संगठन होते हैं जो देश के वित्तीय पहरेदारों का काम करते हैं। नौकरशाही अर्थात् स्थायी कार्यपालिका निर्णय प्रक्रिया के एक-एक चरण से जुड़ी होती है और प्रशासन में निरंतरता बनाए रखती है। अकसर राजनीतिक कार्यपालक नौकरशाही की तकनीकी विशेषज्ञता और ज्ञान के कारण उस पर निर्भर होते हैं। अपनी रचना द फंक्शंस ऑफ द एक्जीक्यूटिव में चेस्टर बर्नार्ड ने कार्यपालिका के कार्यकलाप का संबंध ‘उद्देश्यों की दृढ़ता, नीति-निर्माण के आरंभ, साधनों के उपयोग, कामकाज के साधनों के नियंत्रण, काम की प्रेरणा तथा समन्वित कार्य को प्रेरणा‘ से जोड़ा है। कार्यपालिका की बढ़ती भूमिका फिर भी कार्यपालिका के नेतृत्व पर अंकुश समय की माँग है। राजनीतिक व्यवस्था का भाग्य उन राजनेताओं की भूमिका पर निर्भर है जो एक शासन की स्थापना, संचालन और स्थायित्व के लिए जिम्मेदार कहे जाते हैं। इसलिए आवश्यकता कार्यपालिका की सत्ता पर समुचित अंकुश लगाने की है। इसके कारण वह दक्षता के साथ काम करेगी और सौंपे गए अनेकानेक कार्यों को सही ढंग से पूरा करेगी। इन कार्यों में, एडलई स्टीवेंसन के शब्दों में, श्एक कल्याणकारी सेवा की स्थापना समाज-कल्याण को पूरी जनता के लिए विस्तार देना तथा करुणा की पुनर्स्थापनाश् शामिल हैं। बोध प्रश्न 1 बोध प्रश्न 1 2) कार्यपालिका के कुछ कार्य इस प्रकार हैंरू आंतरिक व बाह्य नीतियाँ बनाना, कानून लागू करना, व्यवस्था बनाए रखना, मुद्रा पर नियंत्रण, युद्ध की घोषणा करना व शांति संधि करना। कार्यपालिका अकसर विधेयक तैयार करके उन्हें कानूनों का रूप दिलाती है। वह राजकोष को नियंत्रित करती हैं, राजस्व उगाहती है और आर्थिक योजनाओं का संचालन करती है। राज्य का प्रमुख दया के विशेषाधिकार का प्रयोग करके अपराधियों को क्षमादान दे सकता है या उनकी सजाएँ कम कर सकता है। राजनीतिक कार्यपालिका नीतियाँ बनाती है जिन्हें फिर असैन्य अधिकारी लागू करते हैं। 3) अत्यंत परस्पर-निर्भर विश्व में कार्यपालिका हर जगह अधिक शक्तिशाली होती जा रही है। चूँकि वह बड़ी हद तक विधि-निर्माण, वित्त, युद्ध व शांति पर नियंत्रण रखती है, वह अधिक शक्तियाँ बटोरने लगती है। हर प्रमुख संकट कार्यपालिका को बल देता है कि वह अपनी सत्ता को जताए। विधायिका द्वारा पारित अनेक कानून कार्यपालिका को और अधिक शक्तियाँ प्रदान करते हैं। मुख्य कार्यपालिका से आप क्या समझते हो?मुख्य कार्यपालिका से हमारा तात्पर्य उस व्यक्ति या व्यक्ति समूह से होता है जो किसी देश की प्रशासनिक व्यवस्था का अध्यक्ष होता है। अलफ्रेड डी. ग्रेनिया के शब्दों मे," कार्यपालिका वह अंग है जो किसी प्रकार के संगठन की नीतियों के निर्माण निर्धारण तथा कार्यान्वयन मे महत्वपूर्ण भाग लेती है।
मुख्य कार्यपालिका से आप क्या समझते हैं इसके आवश्यक गुण लिखिए?जैसा कि आप जानते हैं कि राष्ट्रपति राज्य का अध्यक्ष तथा संघीय कार्यपालिका का भी अध्यक्ष होता हैं। वह देश का प्रथम नागरिक तथा भारत की सेनाओं का मुख्य सेनापति होता है। राष्ट्रपति पद में निहित शक्तियों का वास्तविक प्रयोग उसके नाम पर मंत्रिपरिषद करती है।
कार्यपालिका के मुख्य कार्य कौन कौन है?केंद्र की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति को प्राप्त है और उसके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से या उसके अधीन अधिकारियों के जरिए संविधान के अनुसार अधिकार का प्रयोग किया। संघ के रक्ष बलों का सर्वोच्च शासन भी उसी का होता है।
भारत के मुख्य कार्यपालिका कौन है?भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है इसलिए राष्ट्रपति नामपत्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है.
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