मैंने भ्रमवश जीवन संचित मधुकरियों की भीख लुटाई पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए 2 कवि ने आशा को बावली क्यों कहा? - mainne bhramavash jeevan sanchit madhukariyon kee bheekh lutaee pankti ka bhaav spasht keejie 2 kavi ne aasha ko baavalee kyon kaha?

"मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई"‐ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

प्रस्तुत पंक्ति में देवसेना की वेदना का परिचय मिलता है। वह स्कंदगुप्त से प्रेम कर बैठती है परन्तु स्कंदगुप्त के हृदय में उसके लिए कोई स्थान नहीं है। जब देवसेना को इस सत्य का पता चलता है, तो उसे बहुत दुख होता है। वह स्कंदगुप्त को छोड़कर चली जाती है। उन्हीं बीते पलों को याद करते हुए वह कह उठती है कि मैंने प्रेम के भ्रम में अपनी जीवन भर की अभिलाषाओं रूपी भिक्षा को लुटा दिया है। अब मेरे पास अभिलाषाएँ बची ही नहीं है। अर्थात् अभिलाषों के होने से मनुष्य के जीवन में उत्साह और प्रेम का संचार होता है। परन्तु आज उसके पास ये शेष नहीं रहे हैं।

मैंने भ्रमवश जीवन संचित मधुकरियों की भीख लुटाई पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए 2 कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?

देवसेना कहती है कि मैंने प्रेम के भ्रम में अपने जीवन भर की अभिलाषा को रूपी भिक्षा को लुटा दिया है। इस पंक्ति में कवि ने देवसेना की पीड़ा को दर्शाया है उनको भ्रम था कि स्कंद गुप्त भी उसे प्रेम करते हैं इसी भ्रम में देवसेना अपना सब कुछ लुटा कर स्कंदगुप्त से प्रेम करती हैं।

देवसेना ने जीवन में भ्रमवश कौनसी भूल की?

मैंने भ्रम - वश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई । श्रमित स्वप्न की मधुमाया में, गहन - विपिन की तरु-छाया में, पथिक उनींदी श्रुति में किसने- यह विहाग की तान उठाई। चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर, प्रलय चल रहा अपने पथ पर। मैंने निज दुर्बल पद-बल पर, उससे हारी - होड़ लगाई।

इससे मन की लाज दवाई देवसेना का क्या आशय है?

जैसे देवसेना ने स्कंदगुप्त के प्रेम की आशा में उसके साथ अपने जीवन के स्वर्णिम स्वप्न देखे थे । प्रेम की आशा में वह इतना डूब चुकी थी की उसे वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं था । कवि ने इसीलिए आशा को बावली कहा है। उत्तर : 'दुर्बल पद बल' में निहित व्यंजना देवसेना के बल की क्षमता को प्रदर्शित करता है।

मन की लाज गँवाई पंक्ति में देवसेना का क्या भाव है?

तूने खो दी सकल कमाई। इससे मन की लाज गँवाई। कवि ने इन पंक्तियों में देवसेना के हृदय के भावों को बड़ी मार्मिकता से उभारा है। इससे देवसेना के अंदर व्याप्त वेदना और दुख का पता चलता है।