उत्तर :मानक हिंदी से तात्पर्य, खड़ी बोली से विकसित और नागरी लिपि में लिखी जाने वाली उस मानक भाषा से है जिसे उच्च हिंदी या परिनिष्ठित हिंदी भी कहा जाता है। यही हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा, राजभाषा तथा संपर्क भाषा है। यही शिक्षा, प्रशासन, वाणिज्य, समाचार-पत्र, कला और संस्कृति की विभिन्न विधाओं के लिये सम्प्रेषण का माध्यम है। ये मानक भाषा के बाहरी रूप या बहिरंग आयाम हैं। Show
अंतरंग आयामों के अंतर्गत मानक हिंदी की भाषिक संरचना तथा व्याकरणिक व्यवस्था की दृष्टि से उसके स्वरूप को देखा जा सकता है। हिंदी निरन्तर विकसित और परिष्कृत होती रही है। आज हिंदी का जो मानक स्वरूप निर्धारित हो पाया है वह लगभग पिछली दस शताब्दियों का परिणाम है। ठोस स्तर पर यह प्रक्रिया भारतेंदु युग से प्रारंभ हुई। मानक हिंदी का मूल आधार ‘खड़ी बोली’ है। हिंदी की विभिन्न शैलियों एवं बोलियों में से एक ‘खड़ी बोली’ ने मानक हिंदी की ओर अग्रसर होने के क्रम में शब्दावली के स्तर पर विभिन्न स्रोतों का सहारा लिया है। इन सभी स्रोतों में सबसे प्रमुख संस्कृत के स्रोत हैं जहाँ से व्यापक स्तर पर तत्सम शब्दों को ग्रहण किया गया है। इसके अतिरिक्त कई विदेशी भाषाओं एवं देशी बोलियों से भी शब्द ग्रहण किये गए हैं। मानक भाषा को कई नामों से पुकारते हैं। इसे कुछ लोग ‘परिनिष्ठित भाषा’ कहते हैं और कई लोग ‘साधु भाषा’। इसे ‘नागर भाषा’ भी कहा जाता है । अंग्रेजी में इसे Standard Language’ कहते हैं। मानक का अर्थ होता है एक निश्चित पैमाने के अनुसार गठित। मानक भाषा का अर्थ होगा, ऐसी भाषा जो एक निश्चित पैमाने के अनुसार लिखी या बोली जाती है। मानक भाषा व्याकरण के अनुसार ही लिखी और बोली जाती है अर्थात् मानक भाषा का पैमाना उसका व्याकरण है। हम जब किसी अपरिचित व्यक्ति से मिलते हैं तो उससे मानक भाषा में ही बातचीत करते हैं, जब हम किसी प्रश्न का उत्तर देते हैं तो हम मानक भाषा का ही प्रयोग करते हैं। हम पत्र-व्यवहार में मानक भाषा ही लिखते हैं। समाचार पत्रों में जो भाषा लिखी जाती है, वह भी मानक ही होती है। आकाशवाणी और दूरदर्शन के समाचार मानक भाषा में ही प्रसारित किए जाते हैं। हमारे प्रशासन के सारे कामकाज मानक भाषा में ही सम्पन्न होते हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); ‘‘मानक भाषा किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्राय: सभी औपचारिक स्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करता है।’’मानक भाषा का अर्थमानक भाषा का अर्थ हिन्दी भाषा के उस स्थिर रूप से है जो अपने पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समरूप है। इसलिए वह सभी लोगों द्वारा मान्य है, सभी लोगों द्वारा सरलता से समझी जा सकती है। अन्य भाषा रूपों के मुकाबले वह अधिक प्रतिष्ठित है। मानक हिन्दी भाषा ही देश की अधिकृत हिन्दी भाषा है। वह राजकाज की भाषा है। ज्ञान, विज्ञान की भाषा है, साहित्य-संस्कृति की भाषा है। अधिकांश विद्वान, साहित्यकार, राजनेता औपचारिक अवसरों पर इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। आकाशवाणी व दूरदर्शन पर जिस हिन्दी में समाचार प्रसारित होते हैं, प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में जिस हिन्दी का प्रयोग होता है, जिस हिन्दी में सामान्यत: मूल लेखन व अधिकृत अनुवाद होता है, वह मानक हिन्दी भाषा ही है। मानक हिन्दी भाषा, हिन्दी के विभिन्न रूपों में सर्वमान्य रूप है। वह रूप पूरी तरह सुनिश्चित व सुनिर्धारित है तथापि इसमें गतिशीलता भी है। मानक भाषा की परिभाषाडाॅ. भगवान देव कहते हैं कि जिस भाषा का एक परिनिष्ठित स्वरूप होता है तथा जो शिक्षित वर्ग के द्वारा सामान्य रूप से प्रयुक्त होती है, वही भाषा मानकीकृत होती है। डाॅ. फादर कामिल बुल्के ने अपने अंग्रेजी कोश में ‘स्टैण्डर्ड’ शब्द का अर्थ मानक ही लिया है। संक्षिप्त ‘हिन्दी शब्द सागर’ में प्रसिद्ध कोशकार श्री राचमन्द्र वर्मा लिखते हैं कि मानक शब्द संस्कृत के ‘मानक’ से बना हैं किसी वस्तु का वह रूप या माप जिसके अनुसार उस वर्ग की और चीजों के गुण-दोषों का माप होता है-मानदण्डय् कहा जाता है। डाॅ. कैलाशचन्द्र भाअिया का कहना है कि विभिन्न स्तरों को पार कर ‘गवाँरू बोली’ अथवा ‘अपभाषा ही साहित्यिक एवं मानक’ भाषा का रूप ग्रहण कर लेती है। डाॅ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार मानक भाषा, किसी भाषा के उस रूप को होते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शु( माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का यत्न करता है। मानक भाषा के स्वरूपहिन्दी मानक भाषा है, जबकि खड़ीबोली उसकी आधारभूत भाषा का वह क्षेत्रीय रूप है जो दिल्ली, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर आदि में बोला जाता है। खड़ीबोली क्षेत्र में रहने वाले प्राय: प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति द्वारा जो कुछ बोला जाता है वह खड़ीबोली है किन्तु जैसे ब्रज, बुन्देली, निमाड़ी अथवा मारवाड़ी क्षेत्रो में हिन्दी की शिक्षा प्राप्त व्यक्ति परस्पर सम्भाषण अथवा औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी बोलते हैं वैसे ही खड़ीबोली क्षेत्र के व्यक्ति भी औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी का प्रयोग करते हैं। हम इसको इस तरह समझें- मैथिलीशरण गुप्त चिरगाँव के थे। वे घर में बुन्देलखण्डी बोलते थे। हजारीप्रसाद द्विवेदी बलिया के थे, वे घर में भोजपुरी बोलते थे किन्तु ये सभी व्यक्ति जब साहित्य लिखते हैं तो मानक हिन्दी का व्यवहार करते हैं। संक्षेप में मानक भाषा अपनी भाषा का एक विशिष्ट प्रकार्यात्मक स्तर है। अब हम हिन्दी के निम्नलिखित चार वाक्य लेंगे और देखेंगे कि मानक भाषा की कसौटी पर कौन-सा वाक्य सही उतरता है :
विभिन्न क्षेत्रीय एवं सामाजिक भिन्नताओं के आधार पर तीसरे एवं चौथे प्रकार्यात्मक स्तरों के अनेक भेद हो सकते हैं। किन्तु पहले या दूसरे वाक्य का व्यवहार औपचारिक स्तर पर मानक भाषा में सर्वत्र होगा। हिन्दी का सही रूप जो सर्वत्र एक-सा है, सर्वमान्य है, व्याकरणसम्मत है और सम्भ्रांत है, मानक हिन्दी का वाक्य है। मानक भाषा के प्रकारहिन्दी के अनेक रूप हैं और अनेक अर्थ हैं। हिन्दी के सारे रूपों को हम सुविधा के लिए दो वर्गों में बाँट सकते हैं-
सामान्य हिन्दी इन सब रूपों का महत्तम-समापवर्तक रूप है। यदि बोलीगत सारे रूप हिन्दी की परिधि पर हैं तो उनका एक रूप ऐसा भी है जो केन्द्रवर्ती रूप है। वह केन्द्रवर्ती रूप ही मानक हिन्दी का रूप है। विभिन्न बोलियों के क्षेत्रीय अथवा सामुदायिक रूपों का मानक भाषा के रूप में पर्यवसान कई कारणों से होता है। इन कारणों को हम संक्षेप में निम्नानुसार उल्लिखित कर सकते हैं-
उपर्युक्त कारणों से धीरे-धीरे ऐसी हिन्दी का निर्माण और प्रचलन हुआ जो हिन्दी के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में समान रूप से समझी जा सकती है और उसका व्यवहार किया जा सकता है। हमारे देश में औद्योगिकीकरण जिस गति से हो रहा है उससे भी क्षेत्रीय और सामुदायिक बोलियों के स्थान पर एक सामान्य भाषा फैल रही है। हिन्दी की शिक्षा का प्रसार भी इन दिनों बहुत हुआ है। आकाशवाणी और दूरदर्शन के प्रभाव के कारण मानक हिन्दी सामान्य जन तक पहुँच रही है। मानक और अमानक भाषा की पहचानमानक भाषा लिखने के काम आती है और बोलने के भी। लिखित और उच्चरित मानक हिन्दी के जो प्रयोग व्याकरणसम्मत, सर्वमान्य, एकरूप और परिनिष्ठित है उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है।
आई मा (मराठी में) आयी आया क्रिया का स्त्रीलिंग रूप लाई धान का खिला हुआ रूप लायी लाया का स्त्रीलिंग रूप भाई बन्धु भायी भाया क्रिया का स्त्रीलिंग रूप इस प्रकार ‘बनिए’ ओर ‘बनिये’ में भी अन्तर करना चाहिए। ‘बनिए’ बनना क्रिया का रूप है जबकि ‘बनिये’ बनिया का बहुवचन है। जिन शब्दों के एकवचन में य हो, उनके बहुवचन और स्त्रीलिंग रूपों में भी य ही होना चाहिए।
किन्तु निम्न वाक्यों में ‘ने’ का प्रयोग अमानक है-
वास्तव में भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया एक लम्बी प्रक्रिया है। अत: जिन शब्दों, अभिव्यक्तियों और वाक्य रूपों का मानकीकरण हो चुका है, उनका पालन करना चाहिए। मानक भाषा क्या है इसकी आवश्यकता क्यों पड़ती है?'मानक भाषा' किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।
मानकीकरण की आवश्यकता क्यों है?मानकीकरण मुख्य रूप से विशिष्ट मानव भाषा विकास के साथ संबंध है और तभी हो सकता है जब एक समाज को अपनी भाषा और मिलनसार पद्धति की मौजूदा खेती है, जिसके बाद, समाज तो एक राज्य के लिए एक आवश्यकता व्यक्त करना चाहिए वर्दी किसी भी अनियमितताओं से छुटकारा पाने और दो या अधिक दलों के बीच एक सुसंगत संचार प्रणाली बनाने के द्वारा ।
मानक भाषा से आप क्या समझते हैं?मानक भाषा (standard language) किसी भाषा की वह भाषा प्रयुक्ति या भाषिका होती है जो किसी समुदाय, राज्य या राष्ट्र में सम्पर्क भाषा का दर्जा रखे और लोक-संवाद में प्रयोग हो।
मानक भाषा की कौन कौन सी विशेषताएं हैं?जब कोई अहिन्दी भाषी व्यक्ति बोलना व लिखना सीखे तो कौन-सी भाषा को सीखे । इसलिए एक ऐसी भाषा बनाई गई जो राष्ट्र की एकता को बनाए रखे । वह भाषा थी 'मानक भाषा'।
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