मानसिक मापन के क्षेत्र में किसका कार्य प्रमुख है - maanasik maapan ke kshetr mein kisaka kaary pramukh hai

मनोमिति (Psychometrics) मनोवैज्ञानिक राशियों के मापन के सिद्धान्त एवं तकनीकों से सम्बन्धित क्षेत्र है। इसमें ज्ञान, योग्यताएँ, सोच, एवं व्यक्तित्व के विभिन्न संघटकों आदि का मापन किया जाता है। मनोमिति मूलत: मापन के उपकरणों - (जैसे प्रश्नावली एवं परीक्षणों) से सम्बन्धित है। मनोमिति के अन्तर्गत दो मुख्य अनुसंधान कार्य होते हैं -

  • (क) उपकरणों का निर्मान एवं मापन का प्रक्रम (procedures)
  • (ख) मापन के सैद्धान्तिक पक्षों का विकास एवं क्रमश: शुद्धीकरण (refinement)

व्यक्तित्व[संपादित करें]

जी डब्ल्यू आलपोर्ट ने व्यक्तित्व की लगभग 50 परिभाषाओं की तालिका प्रस्तुत की है जिनसे से कुछ ही इसके मनोवैज्ञानिक पक्ष से संबद्ध हैं और ये भी पुन: ऐसी लक्षणों पर बल देती प्रतीत होती हैं, जैसे (क) व्यक्ति के सामाजिक उद्दीपक मूल्य और (ख) व्यक्ति के आंतरवैयक्तिक संगठन।

प्रचलित धारणा के अनुसार "व्यक्तित्व" शब्द का किसी व्यक्ति के सामाजिक उद्दीपक मूल्य के सूचक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे तात्पर्य उस संपूर्ण प्रभाव से है जो एक व्यक्ति दूसरों पर डालता है, अर्थात् व्यक्ति उस प्रत्येक स्त्री पुरुष के लिये जिसके संपर्क में वह आता है एक उद्दीपक के रूप में कार्य करता है। किसी व्यक्ति के सामाजिक उद्दीपक मूल्य के अंतर्गत उसकी दैहिक विशेषताएँ (जैसे उसकी ऊँचाई, शरीरभार, वर्ण, वेशभूषा इत्यादि), उसकी विशिष्ट व्यवहारपद्धतियाँ (जैसे उसकी निजी आदतें और व्यवहारवैचित्र्य) और तात्कालिक परिवेश के प्रति प्रतिक्रिया करने के उसके अपने विशिष्ट ढंग, आदि आते हैं।

उद्दीपक के रूप में क्रियाशील रहते हुए व्यक्ति पर उन पारस्परिक क्रियाओं का भी सतत प्रभाव रहता है जिनका वह अपने तथा अन्य व्यक्तियों के बीच उपक्रमण करता है। ये परिणामात्मक शक्तियाँ ऐसे परिवर्तन उत्पन्न करती हैं जो उसके अपने, अन्य व्यक्तियों और स्थितियों के प्रत्यक्षीकरण को प्रभावित करते हैं। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति अपने को अंदर से देखता है और संगठन, अर्थात एकता और स्थिरता उत्पन्न करके अपने आंतर वैयक्तिक स्वभाव में अपनी आत्मधारणा का विकास करता है। आंतरवैयक्तिकता की दृष्टि से देखने पर व्यक्तित्व को सामान्यतया "आत्मा" अथवा "अहं" कहते हैं। इसके अंतर्गत व्यक्ति की बौद्धिक, संवेगात्मक संरचनाएँ, उनकी योग्यताएँ और अभिवृत्तियाँ, रुचियाँ, पसंदगी और नापसंदगी आती हैं। यह द्रष्टव्य है कि चेतनात्मक के अतिरिक्त व्यक्ति के आंतर वैयाक्तिक संगठन में कभी कभी ऐसे अचेतन तत्वों का भी समावेश होता है। जिनसे वह स्वयं अवगत नहीं होता।

व्यक्तित्व मापन[संपादित करें]

व्यक्तित्व के सामाजिक और आंतर वैयक्तिक दोनों पक्षों पर मापन योग्य तथा बोधगम्य होने के रूप में अनेक विधियाँ प्रस्तावित की गई हैं। फिर भी, इनमें से प्रत्येक विधि के कुछ गुण और कुछ दोष हैं। प्रमुख शीर्षक, जिनके अंतर्गत इन विधियों को सूचीबद्ध किया जा सकता है, इस प्रकार है :

(1) सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अध्ययन; (2) दैहिक वृत्त; (3) सामाजिक वृत्त; (4) व्यक्तिगत वृत्त; (5) अभिव्यंजनात्मक गतियाँ; (6) योग्यताक्रम निर्धारण; (7) मानसिक परीक्षण; (8) लघु जीवन स्थितियाँ; (9) सांख्यिकीय विश्लेषण; (10) प्रयोगशाला के प्रयोग; (11) प्रागुक्ति; (12) गहन विश्लेषण; (13) आदर्श प्रकार और (14) संश्लिष्ट विधियाँ।

इन विधियों का अनेक अन्य तकनीकों के रूप में उपविभाजन किया गया है जिसकी उपयोगिता विश्वसनीयता तथा वैधता की समस्या उत्पन्न कर देती है क्योंकि सामान्य मूल्यांकन पद्धतियों को विश्वसनीय तथा परिशुद्ध होना चाहिए।

व्यक्तित्व मूल्यांकन और अनुसंधान संबंधी कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ने संयुक्त राज्य अमरीका में व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रयोग की समालोचना करने के पश्चात् 62 मानसिक परीक्षणों का उल्लेख किया गया है जिनमें से कुछ की चर्चा नीचे की जा रही है।

दस प्रमुख परीक्षणों में से पाँच बुद्धिपरीक्षण हैं और चार प्रक्षेपीय परीक्षण। दसवें परीक्षण का नाम मिनेसोटा मल्टीफेजिक व्यक्तित्व इन्वेन्ट्री है। यह एक मनोमितिक तकनीक है जिसका प्रयोग व्यक्तित्व के नैदानिक प्रकारों का वर्णन अर्थात् विभिन्न मनोविकारात्मक श्रेणियों के अंतर्गत रोगियों का निदान करने के लिये किया जाता है। प्रक्षेपीय परीक्षणों का प्रयोग व्यक्तित्व की गहन अभिव्यक्तियों अर्थात् किसी व्यक्ति में अंतर्निहित उन व्यक्तिगत और प्रकृति वैशिष्ट्यजन्य अर्थों तथा संगठनों की, जो अन्य किसी प्रकार से प्रकट नहीं होते, जानकारी प्राप्त करने के लिये किया जाता है। रौर्शा परीक्षण एक प्रक्षेपीय तकनीक है जो रोशनाई के धब्बों के विवेचन पर आधारित है। यह मनोरंजक है कि रॉर्शा परीक्षण का प्रयोग करनेवाले स्थानों तथा व्यवहार परिमाण दोनों ही दृष्टियों से रॉर्शा अपने अन्य प्रतिद्वंद्वियों से स्पष्ट आगे है। बुद्धिपरीक्षण का उद्देश्य व्यक्ति की उन योग्यताओं का चित्रण करना होता है जो संपूर्ण परिवेश अथवा उसके विभिन्न पक्षों के प्रति उसके अभियोजन को संभव बनाती हैं।

बुद्धि (सामान्य मानसिक योग्यता)[संपादित करें]

व्यक्तित्व के संघटकों की गणना करते समय अनेक मनोवैज्ञानिक बुद्धि को प्रमुख स्थान देते हैं। ऐसी समस्या के उपस्थित होने पर, जिसका समाधान कई तरह से हो सकता है, व्यक्ति अपनी बुद्धि का जिस प्रकार प्रयोग करता है वह उसके व्यक्तित्व गठन को प्रतिबिंबित करता है।

स्पीयरमैन का सदैव यही मत रहा है कि बुद्धि एक सामान्य मानसिक योग्यता है। उनका विश्वास था कि समस्त बौद्धिक कार्यों में एक आधारभूत क्रिया अथवा क्रियासमूह समान रूप से वर्तमान होता है और यह कि बुद्धि अनिवार्यत: एक तर्कनापरक चिंतन है। यह एक प्रकार के सामान्य "शक्ति" तत्व के समान होता है जो बुद्धि को अपनी सामान्य शक्ति का व्यवहार करने में सक्षम बनाता है। फिर भी इन्होंने कुछ विशेष अमूर्त कुशलताओं अथवा "द्म" तत्वों को भी स्वीकार किया है, यद्यपि वे बाह्य और सीमित रूप से "ढ़" (सामान्य) तत्व से ही अंश ग्रहण करते हैं।

स्पीयरमैन के इस सामान्य तत्त्वसिद्धांत के विरुद्ध बुद्धि के एक बहुतत्त्व सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया। इस सिद्धांत के प्रमुख प्रवर्त्तक, केली का कथन है कि "क्र" कोई एकमात्र वस्तु नहीं है, जैसा उसे कहा जाता है, वरन् इस तत्त्व के अंतर्गत समान योग्यताओं के विशेष समूह होते हैं। उदाहरण के लिये, अपने अमूर्त क्षेत्र के अंतर्गत, बुद्धि समाकलित विशेष पक्षों, जैसे स्मृति, स्थानगत संबंध, शाब्दिक और आंकिक समझ, समझ की गति इत्यादि, का संमिश्रण हो सकती है। यह द्रष्टव्य है कि बाद के मनोवैज्ञानिकों ने भी इसी के समान प्रस्तावों के आधार पर इस परिकल्पना को सिद्ध किया है।

बुद्धि के अंतर्गत, जैसा इसे अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने समझा है, वे सब योग्यताएँ आ जाती हैं, जिनके द्वारा ज्ञान का अर्जन, धारण तथा किसी समस्या के समाधान में व्यवहार किया जाता है। यह प्रत्यक्षीकरण, अधिगम, स्मृति, कल्पना इत्यादि योग्यताओं को भी उपनय करती है। किंतु यत: विभिन्न प्रकार की योग्यताओं का ठीक ठीक निर्धारण निश्र्चित रूप से कठिन है, अत: बुद्धि की किसी भी परिभाषा का इतना अधिक विस्तृत होना अनिवार्य है कि उसका बहुत व्यावहारिक महत्व नहीं रह जाता। फिर भी, मनोवैज्ञानिकों ने कम से कम तीन प्रकार की मापनपद्धति का विकास किया है। अमूर्त बुद्धि की आवश्यकता वृत्तिक व्यक्तियों, जैसे वकीलों, चिकित्सकों, साहित्यिक व्यक्तियों और व्यवसायियों, राजमर्मज्ञों, तथा इसी प्रकार के लोगों की होती है। अभियंता, कुशल मैकेनिक, प्रशिक्षित औद्योगिक कर्मचारी, नक्शानवीस, इत्यादि सब को यांत्रिक दृष्टि से, तथा राजनयज्ञ, विक्रेता, उपदेशक और परामर्शदाता को सामाजिक दृष्टि से बुद्धिसंपन्न होना आवश्यक है।

अमूर्त बुद्धि प्रतीकों के संबंधों को समझने से तथा उनके सार्थक व्यवहार से संबद्ध होती है। इन अमूर्त योग्यताओं के मापन के लिये निर्मित परीक्षणों को साधारणतया "सामान्य बुद्धि परीक्षण" कहते हैं। इन परीक्षणों को प्रयुक्त सामग्री और आवश्यक प्रतिक्रियाओं की दृष्टि से दो श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है--शाब्दिक बुद्धि परीक्षण तथा अशाब्दिक बुद्धिपरीक्षण। व्यक्ति की बुद्धि का निर्णय उस सूचकांक के आधार पर किया जाता है जो वह (शब्द रूप में प्रस्तुत) किसी समस्या के समाधान में अपनी शाब्दिक योग्यता, पठन और लेखन, के प्रयोग में प्राप्त करता है। अशाब्दिक परीक्षण प्रहेलिकाओं, भूलभुलैयों, चित्रों और रेखाचित्रों, के रूप में किसी समस्या को उपस्थित करते हैं और परीक्ष्य व्यक्ति को साधारण चिन्हों द्वारा अथवा जोड़ तोड़कर अपना समाधान प्रस्तुत करना पड़ता है।

यांत्रिक बुद्धि से सामान्यत:, भाषागत प्रतीकों की अपेक्षा, स्वयं मूर्त्त वस्तुओं के साथ कार्य करने की औसत से अधिक क्षमता का तात्पर्य होता है। हस्तकौशल तथा गत्यात्मक समन्वय की क्षमता से युक्त व्यक्ति यांत्रिक साधनों को जोड़ने तोड़ने में प्रवीण होते हैं। यांत्रिक अभियोग्यता परीक्षण उन्हें कहते हैं जो इस प्रकार की बुद्धि का मूल्यांकन करने के लिये प्रयुक्त होते हैं।

सामाजिक बुद्धि से उस प्रभावशाली आंतरवैयक्तिक योग्यता संबंध से तात्पर्य है जो वांछित अभीष्टों की प्राप्ति को सुगम बनाता है। सामाजिक बुद्धिसंपन्न व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ सुचारु संबंध बना रखने की कला और नैपुण्य ये युक्त होता है। अन्य प्रकारों के अंतर्गत अभिवृत्ति परीक्षणों द्वारा सामाजिक बुद्धि में अंतर्निहित सामाजिक प्रवृत्तियों की माप होती हैं।

फिर भी, बुद्धिजन्य व्यवहार के उक्त तीन पक्षों में भी इस तरह के पर्याप्त वैयक्तिक विभेद होते हैं और निर्मित परीक्षण अपनी सीमा में मानसिक योग्यताओं की समस्त विविधता और संपन्नता को समाप्त नहीं कर सकते। किंतु "परीक्षणों" द्वारा प्राप्त सूचकांक के अंतर्गत मनोवैज्ञानिक शोध के आज के ढाँचे की सीमा में निष्पक्ष रूप से प्राप्त संगत सूचना का समस्त क्षेत्र आ जाता है। यह उपागम सिद्धांत की अपेक्षा तत्वों का ही अधिक उत्पादक रहा है और संभवत: यही इसकी शक्ति हैं।

बुद्धिपरीक्षण[संपादित करें]

ऐतिहासिक दृष्टि से बुद्धिपरीक्षण में रुचि का आरंभ उस समय हुआ जब शैक्षणिक कार्यक्रम के अंतर्गत विद्यार्थियों की योग्यता के निर्धारण की शैक्षिक पाठ्यचर्या की प्रायोगिक आवश्यकता प्रतीत हुई। सन् 1904 ई में फ्रांस के पब्लिक स्कूलों में मंदबुद्धि बालकों के लिये विशेष कक्षाओं की व्यवस्था संबंधी संस्तुतियों का निर्धारण करने के लिये एक आयोग गठित किया गया था। वहाँ के मनोवैज्ञानिक ऐल्फ्रेड बिने सदस्य नियुक्त हुए। इस नियुक्ति से उन्हें उन कतिपय परीक्षणों के प्रयोग का अवसर मिला जिन्हें वे तथा उनके सहयोगी साइमन विकसित कर रहे थे। सामान्य बालक और मंदबुद्धि बालक का विभेद करने के लिये किसी ठीक ठीक माध्यम के निर्माण में इन लोगों की प्रधान रुचि थी। वैयक्तिक विभेद विषयक गाल्टन के अनुसंधानों ने बिने की प्राक्कल्पनाओं के विकास में सहायता पहुँचाई। (प्रायोजना के विकास का पहले से ही मार्ग प्रशस्त कर दिया था।)

विभिन्न अवस्था के व्यक्तियों की तुलना तथा एक ही उम्र के विभिन्न व्यक्तियों की तुलना करने के लिये बिने ने एक बुद्धिपरीक्षण का निर्माण किया। परीक्षण के विकास में देखा गया कि ऐसे अनेक कार्य हो सकते हैं जिन्हें करने में किसी अवस्था के, जैसे दस वर्ष के बालक तो समर्थ होते हैं जब कि अपेक्षाकृत कम उम्र के बालक उन्हें पूरा करने में निश्चित रूप से असमर्थ होते हैं। यदि कोई बालक कोई ऐसा कार्य कर सकता है, जिसे 10 वर्ष के अधिकतर बालक कर सकते हैं, तो उस बालक की "मानसिक वय" 10 वर्ष मानी जायगी, चाहे उसकी वास्तविक उम्र छह, आठ, अथवा 14 वर्ष हो। मान लीजिए यदि आठ वर्ष के एक बालक की मानसिक उम्र 10 वर्ष है, तो उसे अपनी अवस्था के अनुसार प्रखर—वास्तव में दो वर्ष अधिक प्रखर—कहा जायगा। दूसरी ओर 14 वर्ष की वास्तविक उम्रवाले बालक की यदि मानसिक वय केवल 10 वर्ष हो तो उसे चार वर्ष पिछड़ा, या मंद, कहेंगे।

स्वंय बिने ने अपने परीक्षण में दो बार संशोधन किया और उनका अंतिम परीक्षण सन् 1911 में निकला। बिने के परीक्षण के इसी अंतिम रूप का एलदृ एमदृ टर्मन ने स्टैंफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रयोग किया जहाँ बिने परीक्षण के तीन स्टैंफोर्ड परिष्कार हुए। इनमें से प्रथम 1916 में, दूसरा 1937 में और तीसरा 1959 में निकला।

बिने की "मानसिक वय" का परिमार्जन किया गया और बालक की मानसिक उम्र को उसकी वर्षायु से भाग देकर उसमें 100 से गुणा करके बुद्धि उपलब्ध (इंटेलिजेंस कोंशट, क्ष्, घ्र्.) निकलने का प्रस्ताव किया गया। इस प्रकार क्ष्. घ्र्. उ 100 अ ग्. ॠ./क्.ॠ.। अत: एक औसत बालक की मानसिक उम्र उसकी वर्षायु के बराबर होती हैं, अत: 100 से ऊपर की बुद्धि उपलब्धि औसत से अधिक एवं 100 से नीचे की बुद्धि उपलब्धि औसत से कम मानसिक योग्यता की द्योतक होगी। सामान्य रूप से उद्देश्य यह रहा है कि मानक को इस प्रकार व्यवस्थित कर दिया जाय कि किसी बालक की बुद्धि उपलब्धि उसकी उम्र बढ़ते रहने पर भी स्थिर रहे। स्टैंफोर्ड बिने परीक्षण का अधिकतर प्रयोग चार से 14 वर्ष की सीमा के भीतर के बालकों के लिये ही होता है। प्रमुख रूप से प्रौढ़ों के मापनार्थ निर्मित एक परीक्षण का नाम "वेक्शलर बेलेव्यू मान स्केल" है। इस परीक्षण द्वारा मानसिक वय तो प्राप्त नहीं होती किंतु बौद्धिक उपलब्धि अवश्य ज्ञात होती है1 इसका अंकन इस प्रकार अभियोजित है कि प्रत्येक स्तर के लिये क्ष्. घ्र्. 100 होता है। इस प्रकार 50 वर्ष का एक व्यक्ति जो 125 क्ष्.घ्र्. प्राप्त करता है, सामान्य रूप से 50 वर्ष के अन्य व्यक्तियों से उतना ही श्रेष्ठ कहा जायगा कितना 125 क्ष्.घ्र्. प्राप्त करनेवाला 30 वर्ष का व्यक्ति अन्य 30 वर्ष के लोगों से श्रेष्ठ होगा।

स्टैंफोर्ड-बिने तथा वेक्शलर बेलेव्यू, दोनों ही परीक्षण वैयक्तिक परीक्षण हैं और इनसे एक समय में एक ही बालक या वयस्क का परीक्षण किया जा सकता है। किंतु इनके अतिरिक्त अन्य वैयक्तिक परीक्षण भी हैं और ऐसे परीक्षण भी हैं जिनका एक बार में सामूहिक रूप से अनेक व्यक्तियों पर प्रयोग किया जा सकता है।

भारत में व्यक्तित्वपरीक्षण और बुद्धिपरीक्षण[संपादित करें]

कालक्रम की दृष्टि से भारत में व्यक्तित्वपरीक्षण की अपेक्षा बुद्धिपरीक्षणों का आरंभ पहले हुआ। विदेशी परीक्षणों का भारतीय स्थितियों के अनुकूल रूप तैयार करने का प्रयत्न सर्वप्रथम हर्बर्ट सीदृ राइस ने सन् 1922 में लाहौर में किया। उन्होंने बुद्धिमापन के बिने स्केल पर कार्य करते हुए केवल बालकों के लिये उर्दू और पंजाबी में "हिंदुस्तानी बिने पर्फामेंन्स प्वाइंट स्केल" का निर्माण किया। बाद में सन् 1935 में बालक और बालिकाओं दोनों के लिये बंबई में वीदृ पीदृ कामथ ने मराठी और कन्नड़ में बिने स्केल की रचना की। बिने स्केल के परिमार्जन बाद में बँगला (ढाका ट्रेनिंग कालेज), हिंदुस्तानी (पटना ट्रेनिंग कॉलेज), तमिल और तेलुगू (लेडी विलिंगडन ट्रेनिंग कॉलेज, मद्रास) तथा हिंदी (गुप्ता का बिने परीक्षण, खजुआ, यूदृ पीदृ) में भी निकले। इनके अतिरिक्त स्टैंफोर्ड परिमार्जन के अनेक अन्य अनुकूलनों का व्यवहार किया गया। इन परिमार्जनों के अतिरिक्त, इलाहाबाद के सोहनलाल ने सन् 1952 में विद्यालय में पढ़नेवाले बालकों के लिये हिंदी और उर्दू में सामूहिक बुद्धिपरीक्षण का और इलाहाबाद के ही सीदृ एमदृ भाटिया ने सन् 1945 में भारतीयों के लिये बुद्धि के क्रियात्मक (र्फ्फारमेंस) परीक्षण का निर्माण किया।

इलाहाबाद इंविंग क्रिश्चियन कालेज के जेदृ हेनरी ने सन् 1927 में भारतीय स्थितियों के अनुकूलन प्रथम शाब्दिक सामूहिक परीक्षण का निर्माण किया। इनका प्राइमरी क्लासिफिकेशन परीक्षण, शैक्षिक और बुद्धिपरीक्षणों का संमिश्रण था और यह हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी में तैयार किया गया था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के लज्जाशंकर झा ने सन् 1933 में रिचार्डसेन के "सिप्लेक्स मेंटल टेस्ट" का हिंदी अनुकूलन प्रकाशित किया और इसके बाद सिंप्लेक्स परीक्षण के ही आयु वर्ग के लिये टर्मन के "ग्रूप टेस्ट ऑव मेंटल एबिलिटी" पर कार्य किया। इनके बाद एसदृ जलोटा (सामूहिक शाब्दिक परीक्षण) और लाहौर के आरदृ आरदृ कुमारिया (अस्रूर सामूहिक बुद्धिपरीक्षण), लखनऊ के एलदृ केदृ शाहदृ (कालेज के विद्यार्थियों की मानसिक योग्यता के लिये सामूहिक परीक्षण), मद्रास के सीदृ टीदृ फिलिप (तामिल में मानसिक योग्यता का शाब्दिक परीक्षण), पटना के एसदृ एमदृ मोहसिन (हिंदुस्तानी सामूहिक बुद्धिपरीक्षण) आदि ने भारत में शाब्दिक सामूहिक परीक्षणों के निर्माण की दिशा में योगदान दिया है।

व्यक्तित्वपरीक्षण की दिशा में भारत में प्रथम प्रयास लाहौर के बीदृ मलदृ ने किया। इनकी "व्यक्तित्व प्रश्नावली" का उद्देश्य किशारों के संवेगात्मक परीक्षणों को उनकी निर्माणविधि के आधार पर तीन उपवर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है जो इस प्रकार हैं : प्रश्नावली, प्रक्षेपीय परीक्षण तथा क्रमनिर्धारण मान।

इस क्षेत्र में प्रश्नावली विधि का अधिकांश भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोग किया है। इनमें से कुछ नाम ये हैं--मैसूर के बीदृ कुप्पूस्वामी, बनारस के एसदृ जलोटा, लखनऊ के एचदृ एसदृ अस्थाना, बनारस के एमदृ एसदृ एलदृ सक्सेना इलाहाबाद के डीदृ सिनहा, इलाहाबाद की मनोविज्ञानशाखा, कलकत्ता का शैक्षणिक और मनोवैज्ञानिक अनुसंधन ब्यूरो, बिहार का शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन ब्यूरो इत्यादि। वर्तमान समय में हमारे अधिकांश भारतीय विश्वविद्यालयों में प्रश्नावली विधि से व्यक्तित्वपरीक्षण की दिशा में पर्याप्त कार्य हो रहा है। भारत में व्यक्तित्व के प्रक्षेपीय परीक्षण के प्रयोग के लिये हम इलाहाबद की मनोविज्ञान शाला द्वारा च्र्ॠच्र् के अनुकूलन तथा यूदृ पारिख द्वारा रोजेनवीग के पिक्चर फ्रस्ट्रेशन परीक्षण का उल्लेख कर सकते हैं। अनेक भारतीय विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों द्वारा अपनी शैक्षिक आवश्यकता के लिये रोर्शा परीक्षण का सर्वाधिक प्रयोग किया जा रहा है। व्यक्तित्व परीक्षण के लिये क्रमनिर्धारण मान विधि के प्रयोगों के संबंध में श्री जमुना प्रसाद के "व्यक्तित्व अभियोजन संबंधी क्रमनिर्धारण मान" का उल्लेख किया जा सकता है।

विशिष्ट मानसिक योग्यता[संपादित करें]

बुद्धिपरीक्षणों का अमूर्त (ऐब्स्ट्रैक्ट) बुद्धि की माप कहते हैं जो सामान्य मानसिक योग्यता के द्योतक होते हैं। इस मत के प्रवर्त्तक यह विश्वास करते हैं कि सहायक शैक्षणिक नीतियों के द्वारा सामान्य बुद्धि का परीक्षण मात्र विद्यार्थियों को किसी व्यवसाय के लिये आवश्यक है। इस प्रकार के दृष्टिकोण का विरोध ऐसे मनोवैज्ञानिक करते हैं जो आदत की विशिष्टता अथवा योग्यता की विशिष्टता पर जोर देते हुए कहते हैं कि बुद्धि जैसी कोई चीज़ नहीं वरन् इसके स्थान पर अनेक बुद्धियाँ होती हैं जो अमूर्त के अतिरिक्त अन्य प्रकार की योग्यताओं से मिलकर बनी होती हैं। यह तथ्य कि एक व्यक्ति किसी एक कार्यक्षेत्र के लिये योग्यता रखता है, इस बात की प्रत्याभूति नहीं है कि वह कार्य के अन्य क्षेत्रों में भी उतना ही योग्य होगा। अत: शुद्धता के हित में यही उचित है कि "बुद्धिमान्" शब्द को विशिष्ट स्थितियों के विशिष्ट व्यवहारों के वर्णन के लिये सुरक्षित रखा जाय। कभी व्यक्ति बुद्धिमत्तापूर्वक और कभी मूर्खतापूर्वक व्यवहार करता है।

"कारण विश्लेषण" के नाम से ख्यात एक विस्तृत सांख्यिक पद्धति के द्वारा मनुष्य की योग्यताओं को छाँटने के लिये अनेक अध्ययन किए गए हैं। भाषात्मक, यांत्रिक, कलात्मक, संगीतात्मक, लिपिक तथा पुष्टकायिक आदि सर्वाधिक उपलब्ध विशिष्ट योग्यताएँ हैं। हम अपने प्रति दिन के अनुभव द्वारा ये देख सकते हैं कि एक व्यक्ति इनमें से किसी एक योग्यता क्षेत्र में पारंगत होते हुए भी अन्य में हीन या पिछड़ा हुआ होता है।

अभिवृत्ति (रुझान) और अभिरुचि[संपादित करें]

अभिवृत्ति से हमारा तात्पर्य किसी कौशल विशेष में नैपुण्य प्राप्त करने की व्यक्ति की अप्रकट और अविकसित योग्यता से है। अत: अभिवृत्तियों के मापन के लिये विशेष रूप से निर्मित परीक्षण भावी क्षमताओं की प्रभावोत्पादकता के पूर्वकथन को संभव बनाने का प्रयास करते हैं। अत: भावी निष्पत्तियों के पूर्वकथानात्मक परीक्षण विभिन्न योग्यताओं से संबद्ध होते हैं, अत: कार्य के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिये अनेक अभिवृत्तिपरीक्षणों का निर्माण किया गया है। इस प्रकार हमें सामान्य यांत्रिक, लिपिक, संगीतात्मक तथा अन्य अभिवृत्तिपरीक्षण उपलब्ध हैं।

प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् निर्मित "मिनेसोटा फॉर्म बोर्ड" परीक्षण का उल्लेख यांत्रिक योग्यता के मापन के सर्वाधिक वैध माध्यम के रूप में किया गया है। इसमें अलग अलग भागों में कटे दो आयामोंवोल रेखाचित्र परीक्ष्य व्यक्ति के सामने रखे जाते हैं जिनमें से उसे ऐसा रेखाचित्र चुनना होता है जो मूल रेखाचित्र में दिखाए गए ठीक ठीक भागों से मिलकर बना हो। यह परीक्षण उन यांत्रिक योग्यताओं का मापन करता है जो स्थानगत वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण तथा जोड़ने तोड़ने की प्रक्रिया से संबद्ध होती हैं। अन्य अभिवृत्तिपरीक्षणों के संबंध में यही कहा जा सकता है कि विशिष्ट योग्यतामापक उदाहरणों की कमी नहीं है।

अभिरुचियों की व्यक्तित्व के उन प्रेरणात्मक पक्षों का अभिव्यंजक कहा गया है जिनका विकास अनुभूत आवश्यकताओं से होता है। अनेक व्यक्तियों में विविध प्रकार के कार्यों के लिये समान योग्यता देखी जाती है, किंतु उनके प्रति इनकी अभिरुचि में स्पष्ट अंतर होता है। यह निर्विवाद है कि हम उसी व्यवसाय में किसी व्यक्ति की संतोषजनक प्रगति की आशा कर सकते हैं जिसके प्रति उसमें योग्यता तथा अभिरुचि दोनों एक साथ वर्तमान हों। अत: अभिरुचियों के माप को योग्यताओं के माप के साथ संयुक्त कर देने पर किसी व्यक्ति की किसी व्यवसाय विशेष में सफलता का पूर्वकथन और अधिक सशक्त हो जाता है।

अनेक अभिरुचि प्रश्नावलियों का निर्माण किया गया जिनमें "क्यूडर प्रेफरेंस रेकार्ड (वोकेशनल) प्रमुख है। यह प्रश्नावली अनेक प्रकार के कार्यों के प्रति व्यक्ति की अभिरुचि का मूल्यांकन करने का प्रयास करती है। यह वर्णनात्मक मान है जिसमें परीक्ष्य व्यक्ति को तीन संभव क्रियाओं से संबद्ध प्रत्येक पद के अनुसार अपनी रुचि को--किसे वह सबसे अधिक चाहता है और किसे सबसे कम—व्यक्त करना पड़ता है। इस प्रकार हमें इन नव क्षेत्रों में से प्रत्येक व्यक्ति की मापें उपलब्ध होती हैं : यांत्रिक, संगणनात्मक, वैज्ञानिक, अननयी, कलात्मक, साहित्यिक, संगीतात्मक, सामाजिक सेवा और लिपिक। स्ट्रांग का "वोकेशनल इंटरेस्ट ब्लैंक" एक अन्य बहुप्रयुक्त व्यावसायिक अभिरुचि तालिका है। स्ट्रांग का सर्वविषयक चार्ट पचास व्यवसायों और कार्यों के क्षेत्र में, जिनमें कानून, चिकित्सा, शिक्षण, इंजीनियरिंग, विक्रेता का कार्य और लेखा आते हैं, व्यक्ति की अभिरुचियों की शक्ति की माप प्रदान करता है।

शैक्षिक निर्देशन और व्यावसायिक चुनाव[संपादित करें]

अभिवृत्ति और अभिरुचि की माप किसी व्यक्ति के भावी जीवन की निष्पत्तियों के सूचनांक प्रदान करते हैं। अत: उसे अपने जीवन की योजना बनाने में जिससे उसकी निष्पत्तियाँ और क्षमताएँ समाज में उसके स्थान की आवश्यकताओं के अनुकूल हो सकें, निर्देशन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक मनुष्य की योग्यताओं में वैयक्तिक अंतर होता है, अत: निर्देशन तभी प्रभावकर हो सकता है जब वह शैक्षिक प्रयत्नों के आरंभ में ही प्राप्त हो सके। इसके द्वारा विद्यार्थियों को उनकी लगभग समान योग्यता की कक्षाओं में वर्गीकृत करने में सहायता मिलती है। इस प्रकार वर्गीकृत विद्यार्थियों की आवश्यकता की पूर्ति के लिये एक सुसंचारित शैक्षिक नीति का होना भी आवश्यक है।

शैक्षिक निर्देशन बहुत अंशों तक साधारणतया बुद्धिपरीक्षणों द्वारा नापी गई व्यक्ति की बौद्धिक अभिवृत्ति पर आधारित होता है। विद्यार्थी को अपना शैक्षिक अभीष्ट अपनी अभिवृत्ति से न तो बहुत ऊँचा और न बहुत नीचा, वरन् अनुकूल रखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे सर्वाधिक लाभप्रद अभिरुचि विकसित तथा अर्जित करने के लिये सहायता प्रदान करते हुए किसी ऐसी अभिरुचि विशेष में चिपके रहने नहीं देना चाहिए जो उसने अर्जित कर ली हो। नि:संदेह, अभिभावक की साधनसंपन्नता उसे जीवन के विभिन्न कार्यों के लिये तैयार करने में महत्वपूर्ण सहायक तत्व होता है।

सफल व्यावसायिक चुनाव के लिये आवश्यक है कि बुद्धि, अभिवृत्ति, अभिरुचि और व्यक्तित्व की प्रवृत्तियों के माप द्वारा उपलब्ध तथ्यगत प्रदत्तों का सतर्क विवेचन पहले से ही कर लिया जाय। अत: बुद्धि को मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा सर्वाधिक सरलता से नापा जा सकता है, अत: व्यवसाय के चुनाव में किसी भी अन्य विशिष्टता की अपेक्षा बुद्धिपरीक्षण को अधिक महत्व दिया गया है। फिर भी इसके लिये बुद्धि के अतिरिक्त अन्य प्रकार की सूचनाएँ भी आवश्यक हैं। साथ ही, कुछ प्रकार की व्यावसायिक सफलता के लिये व्यक्तित्व प्रवृत्तियाँ जैसे प्रभुत्वस्थापन, आक्रामता और निष्ठा अत्यधिक महत्वपूर्ण होती हैं।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • APA Standards for Educational and Psychological Testing
  • Joint Committee on Standards for Educational Evaluation
  • The Psychometrics Centre, University of Cambridge
  • Psychometric Society and Psychometrika homepage
  • London Psychometric Laboratory
  • Psychometrics at the Psychology Wiki
  • Rasch analysis in psychometrics
  • As Test-Taking Grows, Test-Makers Grow Rarer, May 5, 2006, NY Times. "Psychometrics, one of the most obscure, esoteric and cerebral professions in America, is now also one of the hottest."

मानसिक मापन के क्षेत्र में किसका कार्य प्रमुख हैं?

मूल्यांकन करने का अर्थ व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक गुणों का मापन करने से हैमापन के अंतर्गत व्यक्तियों के गुणों की तुलना करने की अनेक मानक विधियाँ अपनाई जा सकती हैं। किसी व्यक्ति में किसी गुण की उपस्थिति तभी स्वीकार की जाती है जब उस गुण का किसी वैज्ञानिक विधि से मापन किया जा सके।

मनोविज्ञान मापन क्या है?

किसी भौतिक राशि का परिमाण संख्याओं में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है। मापन मूलतः तुलना करने की एक प्रक्रिया है। इसमें किसी भौतिक राशि की मात्रा की तुलना एक पूर्वनिर्धारित मात्रा से की जाती है। इस पूर्वनिर्धारित मात्रा को उस राशि-विशेष के लिये मात्रक कहा जाता है।

मापन कितने प्रकार का होता है?

1 Answer.
(1.) रेखीय मापन “सीधी-रेखा में मापे जाने वाली माप को रेखीय माप (linear measurement) कहते हैं”। ... .
(2.) कोणीय मापन “दो रेखाओं के प्रतिच्छेद बिन्दु की माप को कोणीय माप (angular measurement) कहते हैं”। ... .
(3.) त्रिज्य मापन ... .
(4.) समतल सतह मापन.

मापन के स्तर से आप क्या समझते हैं?

मापन के इन चार स्तरों को कुछ विद्वानों के द्वारा मापन के चार पैमाने (Scales) अर्थात नामित पैमाना (Nominal scale), क्रमित पैमाना (Ordinal scale), अन्तरित पैमाना (Interval scale) तथा आनुपातिक पैमाना (Ratio scale) भी कहा जाता है।