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***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, भारतीय गणितज्ञों का योगदानरामपुर17-11-2020 11:37 PMविचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा रज़ा पुस्तकालय में कई पांडुलिपियों और शिलालेखों का बड़ा संग्रह है, जिनमें गणित की कई प्राचीन कृतियां भी मौजूद हैं। हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति के विकास में गणित ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुए गणितीय विचारों का पूरी दुनिया पर गहरा प्रभाव पड़ा है, तथा परिणामस्वरूप आज पूरी दुनिया इनका विभिन्न रूपों में उपयोग कर रही है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान तक यह
भारतीय गणितज्ञों के योगदान की समीक्षा करने का उपयुक्त समय भी है, क्योंकि 2020 में, भारत ‘गणित में प्रगति पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ (International Conference on Advances in Mathematics) की समीक्षा भी करेगा। गणित के क्षेत्र में यदि भारत के योगदान की बात की जाए, तो शून्य की अवधारणा देने के साथ-साथ, भारतीय गणितज्ञों ने गणित के विभिन्न क्षेत्रों जैसे त्रिकोणमिति, बीजगणित, अंकगणित और ऋणात्मक संख्याओं के अध्ययन में भी मौलिक योगदान दिया है। संख्या प्रणाली की बात करें, तो 1200 ईसा पूर्व तक, गणितीय ज्ञान
को ज्ञान के एक बड़े हिस्से के रूप में लिखा गया था, जिन्हें वेदों के रूप में जाना जाता है। इन ग्रंथों में, संख्याओं को सामान्यतः दस की घातों (Power) के संयोजन के रूप में व्यक्त किया गया था। उदाहरण के लिए 365 को तीन सौ या सैकड़ों (3x10²), छह दहाई (6x10¹), पांच इकाइयों (5x10⁰) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। हालांकि दस की प्रत्येक घात को प्रतीकों के एक समूह के बजाय एक नाम के साथ दर्शाया गया। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि, दस की घातों के उपयोग ने भारत में दाशमिक या दशमलव-स्थान प्रणाली के विकास
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से, हमारे पास ब्राह्मी अंकों के लिखित प्रमाण भी मौजूद हैं, जो आधुनिक, भारतीय या हिंदू-अरबी अंक प्रणाली का अग्रदूत माना जाता है तथा दुनिया के अधिकांश हिस्सों में उपयोग किया जाता है। शून्य की अवधारणा का सूत्रपात भी भारत में ही भक्षाली पांडुलिपि से हुआ है। शून्य की अवधारणा के आगमन से संख्याओं को कुशलतापूर्वक और विश्वासपूर्ण तरीके से लिखा जाने लगा। सातवीं शताब्दी में, शून्य के साथ उपयोग किये जाने वाले नियमों के पहले लिखित प्रमाण को ब्रह्मसुप्ता
सिद्धांत (Brahmasputha Siddhanta) में औपचारिक रूप दिया गया था। खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त ने अपने इस प्राथमिक विषय में द्विघात समीकरणों को हल करने और वर्गमूलों की गणना के लिए नियम पेश किए। ब्रह्मगुप्त ने ऋणात्मक संख्याओं के साथ उपयोग होने वाले नियमों को भी प्रदर्शित किया। यूरोपीय गणितज्ञ कई वर्षों तक ऋणात्मक संख्या को सार्थक मानने से हिचकते रहे किंतु 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोपीय गणितज्ञ गॉटफ्रीड विल्हेम लीबनिज (Gottfried Wilhelm Leibniz) ने अपने अवकलन-शास्त्र (Calculus) के विकास में
शून्य और ऋणात्मक संख्याओं को एक व्यवस्थित तरीके से उपयोग किया। अवकलन का उपयोग परिवर्तनों की दरों को मापने के लिए किया जाता है, और विज्ञान की लगभग हर शाखा में यह महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से आधुनिक भौतिकी में। वास्तव में लीबनिज के कई विचारों को भारतीय गणितज्ञ भास्कर ने 500 साल पहले ही खोज लिया था। भास्कर ने बीजगणित, अंकगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति में भी प्रमुख योगदान दिया। https://theconversation.com/five-ways-ancient-india-changed-the-world-with-maths-84332 https://www.esamskriti.com/e/Spirituality/Education/A-brief-history-of-Indian-Mathematics-1.aspx चित्र सन्दर्भ: प्रथम चित्र भारतीय वैदिक गणित के सूत्र दर्शाये गए हैं। (Picbay) दूसरे चित्र में भारत के महान गणितज्ञों को दिखाया गया है। (Cloudxlab) तीसरे चित्र में भारत में संख्याओं के प्राचीन लेखन को दिखाया गया है। (Pixy) ***Definitions of the post viewership metrics on top of the page: A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total. B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search. C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page. D. The on the post is updated either on the 6th dayfrom the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Monthfrom the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYSor a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.
गणित के क्षेत्र में भारत का क्या योगदान है?भारत में हुई 'शून्य' एवं 'दशमलव' जैसी मूलभूत गणितीय खोजें इसका प्रमुख कारण मानी जाती हैं। इन मूलभूत खोजों ने गणित को ऐसा आधार प्रदान किया है, जिसके आधार पर सभ्यताओं के विकास का क्रम निरंतर आगे बढ़ रहा है। ऐसे में, भारतीय गणितज्ञों के योगदान को उत्सव के रूप में मनाया जाता है, तो यह सर्वथा उपयुक्त है।
गणित में भारत का सबसे बड़ा योगदान क्या है?आर्यभट भारत में सबसे पहला गणितज्ञ आर्यभट को माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि 5वीं सदी में उन्होंने ही ये सिद्धांत दिया था कि धरती गोल है और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है और ऐसा करने में उसे 365 दिन का वक्त लगता है. उनके नाम पर ही भारत के पहले उपग्रह का भी नाम रखा गया था.
गणित में भारतीय गणितज्ञों का कितना सार्थक योगदान रहा है?यह गणित की प्राचीन एवं महत्वपूर्ण शाखा है। भारतीय ज्योतिषशास्त्र एवं खगोल शास्त्र में इसका उपयोग ग्रहों के स्थान की गणना में होता था । प्राचीन भारतीय गणितज्ञों आर्यभट, वराहमिहिर तथा ब्रह्मगुप्त आदि का त्रिकोणमिति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है ।
गणित के क्षेत्र में भारत का विश्व का सबसे महत्वपूर्ण उपहार क्या है?पूर्वानुमानों पर कार्य करना मुख्य है । सोचने के कई तरीके हैं, और जिस तरह की योग्यता कोई गणित में सीखता है वह है अमूर्त विचारों के साथ काम करना।
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