स्पीति में कब से कब तक बर्फ पड़ती है? - speeti mein kab se kab tak barph padatee hai?

स्पीति में वसंत कैसा होता है? यहाँ बर्फ पड़ने पर कैसा मौसम रहता है?


स्पीति में वसंत लाहुल से भी कम दिनों का होता है। वसंत में भी यहाँ फूल नहीं खिलते, न हरियाली आती है, न वह गंध होती है। दिसंबर से घाटी में फिर बर्फ पड़ने लगती है। जो अप्रैल-मई तक रहती है। यहाँ ठंडक भी लाहुल से ज्यादा पड़ती है। नदी-नाले सब जम जाते हैं और हवाएँ तेज चलती हैं। मुँह, हाथ और जो खुले अंग हैं, उनमें जैसे शूल की तरह चुभती है।

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ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं - इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है?


इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से यह आग्रह किया है कि वे माने की चोटियों के मध्य किलोल करें तो यहाँ की नीरसता में सरसता का संचार हो सके। बूढ़े लामा मंत्र का जाप चुपचाप करते रहते हैं। जिससे यहाँ उदासी छाई रहती है। युवक-युवतियों की मुक्त हँसी से यहाँ के वातावरण में ताजगी तथा उत्साह का संचार होगा। इस प्रकार लेखक ने युवा वर्ग से यहाँ आने का आग्रह किया है।

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लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों हैं?


स्पीति बारालाचा पर्वत श्रेणी में दो चोटियाँ हैं। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। लेखक ‘माने’ का अर्थ जानना चाहता है। उसे लगता है कि यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर है- ‘ओं मणि पक्षमें हुँ’। लेखक का कहना है कि यहाँ की पहाड़ियों में माने मंत्र का इतना जाप हुआ है कि इस श्रेणी का नाम माने मंत्र के नाम पर ही रख देना उचित है।

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स्पीति में बारिश एक यात्रा वृतांत है। इसमें यात्रा के दौरान किए गए अनुभवों, यात्रा-स्थल से जुड़ी विभिन्न जानकारियों का बारीकी से वर्णन किया गया है। आप भी अपनी किसी यात्रा का वर्णन लगभग 200 शब्दों में कीजिए।


मेरी अविस्मरणीय यात्रा

पर्वतों पर जाने को मेरा मन ललकत। रहता है। इस ग्रीष्मावकाश में हमारे परिवार ने कश्मीर यात्रा का कार्यक्रम बनाया। रात -को नौ बजे दिल्ली जंक्शन से हम कश्मीर मेल में सवार हुए। गाड़ी खचाखच भरी हुई थी। हमने सीट आरक्षित करवा रखी थी। अत: कोई कष्ट न हुआ। हम अगले दिन जम्मू पहुँच गए।

प्रात:काल हमने चाय पीने के बाद अपने बिस्तर कस लिये। टैक्सी में सामान रखकर हम बैठ गए और बस अड्डे की ओर बढे। बस अड्डा पहुँचकर हम बस में सवार हुए और बस चल पड़ी। बस में बैठे हुए पर्वतों का मनोहर दृश्य दिखाई दे रहा था, स्वर्गभूमि कश्मीर पहुँचने के लिए हम लालायित थे। हमारे हृदय में प्रसन्नता की लहरें ठाठें मार रही थीं। हमारी बस रात को एक स्थान पर ठहरी; सवेरे बस फिर श्रीनगर की ओर बढ़ी।

श्रीनगर पहुँचने पर हमें लगा कि हम वास्तव में स्वर्ग के एक कोने में पहुँच गए हैं। मुझे श्रीधर पाठक की वह कविता रह-रहकर स्मरण हो आती थी, जिसमें उन्होंने कश्मीर की सुषमा का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया है। श्रीनगर में हम नाव पर सवार होकर बद्रिकाश्रम में ठहरे। यहाँ अनेक प्रदेशों के लोग ठहरे हुए थे-कहीं पंजाबी युवती गर्व से उन्नत मस्तक किए, कहीं उत्तर प्रदेश की प्राचीन घूँघट काई, कहीं कोई महाराष्ट्रीयन सज्जन शिखा धारण किए, कहीं चंचल युवतियाँ और शरारती नवयुवक।

कश्मीर में वास्तविक जीवन का परिचय तो हमें हाउसबोट में ही आकर मिला। नीले आकाश की छाया से नील वर्ण हुए झेलम के जल में तैरते हुए वे रंग-बिरंगे जलयान (जिन्हें हाउसबोट कहा जाता है) वर्षा में घुले आकाश में इंद्रधनुष की स्मृति दिलाते थे।

हम जिस हाउसबोट में ठहरे, उसमें सब सुख-साधनों से युक्त दो शयनागार, एक स्नानागार तथा एक भोजनालय था। हमारा माझी सुलाना, उसकी पत्नी तथा उसके दो बच्चे फूल की तरह खिले हुए चेहरे वाले भले प्रतीत हुए।

कश्मीर में हजारों प्रकार के फूल खिलते हैं। उनमें मजारपोश तथा लालपोश बहुत ही प्रिय दिखाई देते हैं। चारों ओर ऊँचे पहाड़ खड़े हैं और बीच में मैदान हैं, जिसमें श्रीनगर बसा हुआ है। इसके बीचों-बीच झेलम (जेहलम) नदी बहती है, जिस पर से जाने लिए कई पुल बने हुए हैं।

कश्मीर के बालकों की आँखें मजारपोश जैसी, होठ लालपोश जैसे और रंग बर्फ जैसा है। सामने आते ही वे ‘सलाम जनाब पासा’ कहकर अभिवादन करते हैं। कश्मीरी स्त्रियाँ भी हँसती-हँसती मिलती हैं। कश्मीर में सफाई की कमी है। छोटे-छोटे घर हैं, परंतु चित्रलिखित जैसे हैं।

कश्मीर में हमने शालीमार बाग और निशात बाग देखने का आनंद भी लिया। शालीमार के चिनार के पेड़, ऊँचे उठते फव्वारे, मखमल जैसी घास के ढके ‘लान’ एक समाँ बाँध रहे थे। डल झील के दूसरी ओर निशात बाग है। डल झील में शिकारे में बैठकर हमने वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद लिया। झील में विहार करने के पश्चात् हमने निशात बाग की सैर की। यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं पर है। यहाँ अनेक फलों के वृक्ष थे। बाग के बीचों-बीच नहर बह रही थी। यह एक अनोखा दृश्य था।

एक सप्ताह की यात्रा कब समाप्त हो गई, इसका कुछ पता ही नहीं चला। वहाँ से लौटना भला किसे अच्छा लगता है, पर समय की विवशता थी। हम बस द्वारा पहले जम्मु आए और वहाँ से रेलगाड़ी में बैठकर दिल्ली आ गए।

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स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?


स्पीति के लोगों को जीवन-यापन के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पहली कठिनाई तो आवागमन को लेकर ही है। दूसरी कठिनाई यहाँ लंबे समय तक ‘अत्यधिक ठंड पड़ने की है। यहाँ के लोग वर्ष में 8 -9 महीने तक शेष दुनिया से कटे रहते हैं। यहाँ लकड़ियों की भी कमी है, जिसके कारण घरों को गरम रखने में कठिनाई होती है। यहाँ व्यवसाय का भी अभाव है। बल्कि न के बराबर है। यहाँ वर्षा भी नाममात्र को होती है। फसल भी साल भर में एक ही होती है ।

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इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?


इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता क्योंकि यहाँ जाना आज बहुत कठिन रहा। ऊँचे दर्रों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसकी ओर ध्यान नहीं जा सका। इसमें न लाँघे जाने वाले भूगोल की भी बड़ी भूमिका रही है। वहीं का वर्णन इतिहास में मिलता है जहाँ की घटनाओं की जानकारी मिलती रहे। यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से उपेक्षित ही रहा। अत: इतिहास में इसका वर्णन नहीं मिलता।

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स्पीति कितने महीने दुनिया से कटी रहती है?

मैंने जब भी स्पीति की विपत्ति बताई है तो लोगों ने यही पूछा कि आखिर तब लोग वहाँ रहते क्यों हैं? आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं।

स्पीति घाटी क्यों प्रसिद्ध है?

लगभग 13,500 फीट की ऊंचाई से काजा को देखकर, काई मठ घाटी में सबसे बड़ा है और काज़ा के आसपास घाटी के सबसे अधिक आबादी वाले हिस्से पर एक शक्तिशाली राजमार्ग है।

स्पीति कैसे पहुंचे?

ग्रीन लाइन (केलांग से काजा के लिए मार्ग, लाहौल ब्लॉक स्पीति ब्लॉक) 185 किलोमीटर (लगभग 6 घंटे की यात्रा) कुंजुम पास और भारी बर्फबारी होने के कारण यह मार्ग 9 से अधिक महीनों (अक्तूबर- नवम्बर से जून – जुलाई)के लिए सर्दियों के दौरान बंद हो जाता है।

स्पीति प्रदेश के चारों ओर क्या है?

स्पीति घाटी 12500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और चारों तरफ से हिमालय से घिरा हुआ है। यह भारत के सबसे ठंडे स्थानों में से एक है, क्योंकि इस क्षेत्र में साल में केवल 250 दिन ही धूप रहती है। घाटी की खूबसूरती आंखों को बेहद सुकून पहुंचाती है, यहां की प्राचीन झीलें, दर्रा और नीला आसमान लोगों को बेहद आकर्षित करते हैं।