मनुष्य के शरीर में कितने फेफड़े होते हैं - manushy ke shareer mein kitane phephade hote hain

फेफड़े कहां स्थित होते हैं फेफड़े का वजन फेफड़े स्थित होते हैं फेफड़े का कार्य मनुष्य के शरीर में फेफड़ा कहां अवस्थित रहता है मनुष्य के फेफड़े मानव शरीर में कितने फेफड़े होते हैं फेफड़ों फेफड़े में इन्फेक्शन

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Rohit Verma Staff answered 2 years ago

मानव शरीर रचना में फेफड़े फुफ्फुस- गुहा में पाए जाते हैं। फुफ्फुस गुहा फेफड़ों की दो फुस्फुस के बीच संभावित जगह होती है।

फेफड़ा संज्ञा पुं॰ [सं॰ फुप्फुस + हि॰ ड़ा (प्रत्य॰)] शरीर के भीतर थैली के आकार का वह अवयव जिसकी क्रिया से जीव साँस लेते हैं । वक्षआशय के भीतर श्वास प्रश्वास का विधान करनेवाला कोश । साँस की थैली जो छाती के निचे होती है । फुप्फुस । विशेष—वक्षआशय के भीतर वायुनाल में थोडी़ दूर नीचे जाकर इधर उधर दो कनखे फूटें रहते हैं जिनसे लगा हुआ मांस का एक एक लोथड़ा दोनों ओर रहता है । थैली के रूप के ये ही दोनों छिद्रमय लोथडे़ दाहिने ओर बाएँ फेफडे़ कहलाते हैं । दहिना फेफड़ा बाएँ फेफडे़ की अपेक्षा चौड़ा और भारी होता है । फेफडे़ का आकार बीच से कटी हुई नारंगी की फाँक का सा होता है जिसका नुकिला सिरा ऊपर की ओर होता है । फेफडे़ का निचला चौड़ा भाग उस परदे पर रखा होता है जो उदराशय को वक्षआशय से अलग करता है । दाहिने फेफडे़ में दो दरारें होती है जिनके कारण वह तीन भागों में विभक्त दिखाई पड़ता है पर बाएँ में एक ही दरार होती है जिससे वह दो ही भागों में बँटा दिखाई पड़ता है । फेफडे़ चिकने और चमकीले होते हैं और उनपर कुछ चित्तियाँ सी पडी़ होती है । प्रौढ मनुष्य के फेफडे़ का रंग कुछ नीलापन लिए भूरा होता है । गर्भस्थ शिशु के फेफडे़ का रंग गहरा लाल होता है जो जन्म के उपारंत गुलाबी रहता है । दोनों फेफड़ों का वजन सवा सेर के लगभग होता है । स्वस्थ मनुष्य के फेफडे़ वायु से भरे रहने के कारण जल से हलके होते हैं और पानी में नहीं डूबते । परंतु जिन्हें न्यूमोनिया, क्षय आदि बीमारियाँ होती है उनके फेफडे का रुग्ण भाग ठोस हो जाता है और पानी में डालने से डूब जाता है । गर्भ के भीतर बच्चा साँस नहीं लेता इससे उसका फेफड़ा पानी में डूब जायगा, पर जो बच्चा पैदा होकर कुछ भी जिया है उसका फेफड़ा पानी में नहीं डूबेगा । जीव साँस द्वारा जो हवा खींचते हैं वह श्वासनाल द्वारा फेफडे में पहुँचती हैं । इस टेंटुवे के निचे थोडी दूर जाकर श्वासनाल के इधर उधर दो कनखे फूटे रहते हैं जिन्हें दाहनी और बाई वायुप्रणालियाँ कहते हैं । फेफडे़ के भीतर घुसते ही ये वायुप्रणालियाँ उत्तरोत्तर बहुत सी शाखाओं में विभक्त होती जाती हैं । फेफडे़ में पहुँचने के पहले वायुप्रणाली लचीली हड्डी के छल्लों के रुप में रहती है पर भीतर जाकर ज्यों ज्यों शाखाओं में विभक्त होती जाती है त्यों त्यों शाखाएँ पतली और सूत रूप में होती जाती है, यहाँ तक कि ये शाखाएँ फेफडे़ के सब भागों में जाल की तरह फैली रहती हैं । इन्हीं के द्वारा साँस से खींची हुई वायु फेफडे़ के सब भागों में पहुँचती हैं । फेफडे़ के बहुत से छोटे छोटे विभाग होते है । प्रत्येक विभाग को सूक्ष्म आकार का फेफड़ा ही समझिए जिसमें कई घर होते हैं । ये घर वायुमंदिर कहलाते हैं और कोठों में बँटे होते हैं । इन कोठों के बीच सूक्ष्म वायुप्रणालियाँ होती है । नाक से खींची हुई वायु जो भीतर जाती है, उसे श्वास कहते हैं । जो वाय नाक से बाहर निकाली जाती है उसे प्रश्वास कहत े हैं । भीतर जो साँस खींची जाती है उसमें कारबन, जलबाष्प तथा अन्य हानिकारक पदार्थ बहुत कम मात्रा में होते हैं और आक्सीजन गैस, जो प्राणियों के लिये आवश्यक है, अधिक मात्रा में होती है पर, भीतर से जो साँस बाहर आती है उसमें कारबन या अगारक वायु अधिक और आक्सीजन कम रहती है । शरीर के भीतर जो अनेक रासायनिक क्रियाएँ होती रहती हैं उनके कारण जहरीली कारबन गैस बनती रहती है । इस गैत के कारण रक्त का रंग कालापन लिए हो जाता है । यह काला रक्त शरीर के सब भागों से इकट्ठा होकर दो महाशिराओं के द्वारा हृदय के दाहने कोठे में पहुँचता हैं । हृदय से यह दूषित रक्त फुप्फुमीय धमनी (दे॰ 'नाडी') द्वारा दोनों फेफड़ों में आ जाता है । वहाँ रक्त की बहुत सी कारबन गैस बाहर निकल जाती है और उसकी जगह आक्सिजन आ जाता है, इस प्रकार फेफड़ों में जाकर रक्त शुद्ध हो जाता है । लाल शुद्ध होकर फिर वह हृदय में पहुँचता है और वहाँ से धमनियों द्वारा सारे शरीर में फैलकर शरीर को स्वस्थ रखता हैं ।

वायु में सांस लेने वाले प्राणियों का मुख्य सांस लेने के अंग फेफड़ा या फुप्फुस (जैसा कि इसे वैज्ञानिक या चिकित्सीय भाषा मे कहा जाता है) होता है। यह प्राणियों में एक जोडे़ के रूप मे उपस्थित होता है। फेफड़े की दीवार असंख्य गुहिकाओं की उपस्थिति के कारण स्पंजी होती है। यह वक्ष गुहा में स्थित होता है। इसमें रक्त का शुद्धीकरण होता है। प्रत्येक फेफड़ा में एक फुफ्फुसीय धमनीहृदय से अशुद्ध रक्त लाती है। फेफड़े में रक्त का शुद्धीकरण होता है। रक्त में ऑक्सीजन का मिश्रण होता है। फेफडो़ं का मुख्य काम वातावरण से प्राणवायु लेकर उसे रक्त परिसंचरण मे प्रवाहित (मिलाना) करना और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। गैसों का यह विनिमय असंख्य छोटे छोटे पतली-दीवारों वाली वायु पुटिकाओं जिन्हें अल्वियोली कहा जाता है, मे होता है। यह शुद्ध रक्त फुफ्फुसीय शिरा द्वारा हृदय में पहुँचता है, जहां से यह फिर से शरीर के विभिन्न अंगों मे पम्प किया जाता है।

क्रमश: 17 और 30 मिलियन क्रमश 5 और 300 मिलियन क्रमश: 19 और 300 मिलियन क्रमश: 18 और 300 लाख

Solution : मानव में, दोनों फेफड़ो में उपस्थित पालि की कुल संख्या 5 होती है जिनमे तीन पलियां, अर्थात अग्र, पक्ष और अयुग्म, दाएं फेफड़ो में उपस्थित होती है और डॉ पलियां जिन्हे बायां अग्र और बायां पक्ष कहा जाता है, बाए फेफड़ो में उपस्थित होती है । फेफड़ो की मूल क्रियाशील इकाई कूपिका होती है। मानव में कुपिकाओ की संख्या 300 मिलियन होती है।

मानव शरीर में कितना फेफड़ा होता है?

मानव के वक्ष गुहा में हिया को घेरे हुए दोनों फेफड़े.

फेफड़े कहाँ पाए जाते हैं?

फेफड़े मानव शरीर में वक्षीय गुहा में स्थित होते हैं। वे वक्ष गुहा में उरोस्थि के दोनों ओर स्थित होते हैं और पांच मुख्य खंडों (पालियों) में विभाजित होते हैं। वक्षीय गुहा, जिसे वक्ष गुहा भी कहा जाता है, शरीर का दूसरा सबसे बड़ा खोखला स्थान है।

फेफड़ा कौन सा बड़ा होता है?

दरअसल, दांया फेफड़ा बाएं फेफड़े से छोटा, चौड़ा और भारी होता है। छोटा इसलिए क्योंकि उसके नीचे यकृत (liver) स्थित होता है। वहीं दूसरी तरफ बांया फेफड़ा लंबा, तंग (narrow) और हल्का होता है ताकि हृदय के लिए जगह बन सके। ये सब मानव शरीर की संरचना है ताकि सभी अंग सही जगह पर स्थित हों।

दाया फेफड़े कितने भागों में बांटा गया है?

दाएं फेफड़े में तीन पालियों होते हैं और बाएं में दो पालियों होते हैं। उन्हें आगे खंडों और फिर खंडक में विभाजित किया गया है। फेफड़े एक आवश्यक अंग हैं जो शरीर से ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान के लिए आवश्यक हैं।