Show उत्तर कवि ने ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है जो मानवता की राह मे परोपकार करते हुए आती है जिसके बाद मनुष्य को
मरने के बाद भी याद रखा जाता है। उत्तर उदार व्यक्ति परोपकारी होता है। अपना पूरा जीवन पुण्य व लोकहित कार्यो में बिता देता है। किसी से भेदभाव नहीं रखता, आत्मीय भाव रखता है। कवि और लेखक भी उसके गुणों की चर्चा अपने लेखों में करते हैं। वह निज स्वार्थों का त्याग कर जीवन का मोह भी नहीं रखता। उत्तर मनुष्य मात्र बंधु है से तात्पर्य है कि सभी मनुष्य आपस में भाई बंधु हैं क्योंकि सभी का पिता एक ईश्वर है। इसलिए सभी को प्रेम भाव से रहना चाहिए, सहायता करनी चाहिए। कोई पराया नहीं है। सभी एक दूसरे के काम आएँ। 6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है? उत्तर कवि ने सबको एक साथ चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी मनुष्य उस एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं इसलिए बंधुत्व के नाते हमें सभी को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि समर्थ भाव भी यही है कि हम सबका कल्याण करते हुए अपना कल्याण करें। 7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए। उत्तर व्यक्ति को परोपकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए।साथ ही अपने अभीष्ट मार्ग पर एकता के साथ बढ़ना चाहिए। इस दौरान जो भी विपत्तियॉ आऍं,उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए।उदार ह्रदय बनकर अहंकार रहित मानवतावादी जीवन व्यतीत करना चाहिए। 8. 'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है? उत्तर'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना जीवन परोपकार में व्यतीत करना चाहिए।
सच्चा मनुष्य दूसरों की भलाई के काम को सर्वोपरि मानता है।हमें मनुष्य मनुष्य के बीच कोई अंतर नहीं करना चाहिए। हमें उदार ह्रदय बनना चाहिए । हमें धन के मद में अंधा नहीं बनना चाहिए। मानवता वाद को अपनाना चाहिए। उत्तर इन पंक्तियों द्वारा कवि ने एक दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना को उभारा है। इससे बढ़कर कोई पूँजी नहीं है। यदि प्रेम, सहानुभूति, करुणा के भाव हो तो वह जग को जीत सकता है। वह सम्मानित भी रहता है। महात्मा बुद्ध के विचारों का भी विरोध हुआ था परन्तु जब बुद्ध ने अपनी करुणा, प्रेम व दया का प्रवाह किया तो उनके सामने सब नतमस्तक हो गए। 2. रहो
न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, उत्तर कवि कहता है कि कभी भूलकर भी अपने थोड़े से धन के अहंकार में अंधे होकर स्वयं को सनाथ अर्थात् सक्षम मानकर गर्व मत करो क्योंकि अनाथ तो कोई नहीं है।इस संसार का स्वामी ईश्वर तो सबके साथ है और ईश्वर तो बहुत दयालु ,दीनों और असहायों का सहारा है और उनके हाथ बहुत विशाल है अर्थात् वह सबकी सहायता करने में सक्षम है।प्रभु के रहते भी जो व्याकुल रहता है वह बहुत ही भाग्यहीन है।सच्चा मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरता है। 3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, उत्तर कवि कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो कठिनाई या बाधा पड़े उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ जाओ। परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा आपसी सामंजस्य न घटे और हमारे बीच भेदभाव न बढ़े।हम तर्क रहित होकर एक मार्ग पर सावधानीपूर्वक चलें।एक दूसरे को तारते हुए अर्थात् उद्धार करते हुए आगे बढ़े तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी अर्थात् हम तभी समर्थ माने जाएंगे जब हम केवल अपनी ही नहीं समस्त समाज की भी उन्नति करेंगे।सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए मरता है। मनुष्य मात्र बंधु हैकवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व - रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए ?
मनुष्य मात्र बंधु हैमनुष्य मात्र बन्धु है. से तात्पर्य है कि सभी मनुष्य आपस में भाई-बन्धु हैं क्योंकि सभी का पिता एक ईश्वर है। इसलिए सभी को प्रेमभाव से रहना चाहिए, सहायता करनी चाहिए, कोई पराया नहीं है। सभी एक-दूसरे के काम आएँ।
कवि ने मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?*परोपकार और अच्छे कर्म ही मनुष्यता की पहचान है अपना भला करना मनुष्य का काम है अपनों का ध्यान रखना मनुष्य का काम है |
कवि के अनुसार मनुष्य कौन है?उत्तर: कवि के अनुसार जो मनुष्य स्वयं अपने लिए ही नहीं जीता, बल्कि समाज के लिए जीता है, वह कभी नहीं मरा करता। ऐसा मनुष्य संसार में अमर हो जाता है, स्वयं अपने लिए खाना, कमाना और जीना तो पशु का स्वभाव है। सच्चा मनुष्य वह है जो सम्पूर्ण मनुष्यता के लिए जीता और मरता है।
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