मानवाधिकार आयोगआर्थिक और सामाजिक परिषद् द्वारा 1946 में स्थापित मानवाधिकार आयोग महासभा को मानवाधिकारों से सम्बंधित मुद्दों पर अपने प्रस्ताव, सिफारिशें और जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करता हैं। इस आयोग में 53 सदस्य देश शामिल हैं। इन देशों को 3 बर्ष की अविधि के लिए चुना जाता हैं। इस आयोग की हर साल 6 सप्ताह के लिए जिनेवा में बैठक आयोजित की जाती हैं। आर्थिक और सामाजिक परिषद् ने 1946 में इस आयोग की मदद के लिए एक उप-आयोग गठित किया था जिसका काम अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव को रोकना और उनका संरक्षण करना हैं। Show
मानव अधिकार का अर्थमानवाधिकार या मानव अधिकार की परिभाषा करना सरल नही है। किन्तु इसे नकारा भी नही जा सकता हैं। मानव समाज में कई स्तर पर कई विभेद पाए जाते हैं। भाषा, रंग मानसिक स्तर, प्रजातीय स्तर आदि, इन स्तरों पर मानव समाज में भेदभाव का बर्ताव किया जाता हैं। " इन सबके बावजूद कुछ अनिवार्यताएँ सब समाजों मे समान हैं। यही अनिवार्यता मानव अधिकार है जो एक व्यक्ति को मानव होने के कारण मिलना चाहिए।
मानवाधिकार व्यक्ति के वे अधिकार है जिनके बिना मानव अपने व्यक्तितव के पूर्ण विकास के बारे में सोच भी नही सकता, जो कि मानव में मानव होने के फलस्वरूप अन्तर्निहित हैं। मानवाधिकार वे अधिकार हैं, जो एक मानव होने के नाते निश्चित रूप से मिलने चाहिए। मानवाधिकार की विभिन्न विद्वानों द्धारा निम्नलिखित परिभाषा इस प्रकार हैं--- मानवाधिकार की परिभाषाआर. जे. विसेट के अनुसार "मानव अधिकार वे अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को मानव होने के कारण प्राप्त हैं। इन अधिकारों का आधार मानव स्वभाव में निहित है।" डेविड. सेलबाई के अनुसार "मानव अधिकार संसार के समस्त व्यक्ति को प्राप्त है, क्योंकि यह स्वयं मे मानवीय हैं, वे पैदा नही किये जा सकते, खरीद या संविदावादी प्रक्रियाओं से मुक्त होते है।" ए. ए. सईद के अनुसार " मानव अधिकारों का सम्बन्ध व्यक्ति की गरिमा से है एवं आत्म-सम्मान भाव जो व्यक्तिगत पहचान को रेखांकित करता है तथा मानव समाज को आगे बढ़ाता हैं। मानवाधिकारों की रक्षा की आवश्यकतामानवाधिकार
प्रकृति द्वारा प्रदत्त अधिकार है, इसलिए समय तथा परिस्तिथियों मे परिवर्तन में होने पर भी अधिकारों के स्वरूप में विशेष परिवर्तन नही होता हैं। मानवाधिकारों को स्वाभाविक अधिकार भी कहा जाता हैं। अर्थात् कुछ अधिकार मानवीय स्वभाव का अंग बन जाते हैं। अधिकारों से व्यक्ति को स्वतंत्रता की गारंटी मिलती हैं, शोषण और अत्याचारों से मुक्ति मिलती है तथा समाज मे ऐसे वातावरण का जन्म होता है जिस वातावरण मे व्यक्तित्व विकास के समुचित अवसर सभी को प्राप्त होते हैं। 1. मानवाधिकारों की रक्षा राज्य का दायित्व है, इसलियें नियंत्रण संस्था के रूप मे राज्य का कर्तव्य होगा कि वह मानवाधिकारों की रक्षा करे। 2. व्यक्ति के भौतिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास के लिये अधिकार आवश्यक होते हैं। अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व गुणों का विकास नही कर सकता। 3. प्राकृतिक अधिकारों से मानवाधिकारों की व्यवस्था उत्पन्न हुई है, इसलिये मानवाधिकार नैतिकता पर आधारित है। उनका उल्लंघन प्रकृति और समस्त मनुष्य जाति के विरूद्ध किया गया अपराध माना जाता है। इस अपराध से बचने के लिए मानवाधिकारों की रक्षा करना सभी का कर्तव्य हैं। 4. मानवाधिकार शासक वर्ग की सत्ता पर नियंत्रण रखते हैं। फलस्वरूप शासक वर्ग मनमाने तरीके से शासन नही कर सकता। 5. मानव हितों के लिये मानवाधिकारों की रक्षा करना जरूरी है। 6. मानवाधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी नियंत्रण रखते हैं। फलस्वरूप व्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक एवं सामाजिक सत्ता के बीच उचित सन्तुलन बनाये रखना तथा स्वेच्छारिता, अन्याय-अत्याचार और अराजकता पर नियंत्रण रखना सम्भव होता है। 7. मानवाधिकारों से बहुसंख्यक वर्ग की तानाशाही पर रोक लगाना और अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की रक्षा करना सम्भव होता हैं। 8. मानवाधिकार व्यक्ति-हितों का समाज हितों के स्थान उचित तालमेल करते हैं इसलिए विषमता पर आधारित समाज में मानवाधिकार महत्वपूर्ण बन जाते हैं। 9. अन्य प्राणियों से मनुष्य प्राणी की अलग पहचान और श्रेष्ठता बनाये रखने के लिये मानवाधिकार और उनकी रक्षा जरूरी है। 10. मानवाधिकार समानता के सिद्धांत पर आधारित होते है, इसलिये मनुष्य द्वारा निर्मित विशेषाधिकार, भेदभाव तथा असमानता समाप्त करना और समानता पर आधारित समाज की रचना करना मानवाधिकारों का मुख्य कार्य है, अतः उनकी रक्षा करना आवश्यक हैं। 11. मानवाधिकारों का महत्व स्वयंसिद्ध है। राजनीतिक प्रेरणा और आर्थिक सुरक्षा के लिये उनका उपयोग किया जा सकता है। 12. समाज व्यवस्था के मूल्य तथा उनकी प्राथमिकता निर्धारित करते समय अन्य लोगों के अधिकारों को हानि नही हो इस हेतु मानवाधिकार बाधक प्रभाव का काम करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको मानवाधिकार का अर्थ, परिभाषा और मानव अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता क्यों जरूरी है समझने में कोई परेशानी नही आई होगी। अगर इस लेख से सम्बंधित आपका कोई सवाल हैं तो नीचे comment कर जरूर बताएं। आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; सामाजिक संरचना अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं मानवाधिकार से आप क्या समझते हैं इसकी प्रकृति पर भी चर्चा करें?मानव अधिकार विश्व भर में मान्य व्यक्तियों के वे अधिकार हैं जो उनके पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यावश्यक हैं इन अधिकारों का उदभव मानव की अंतर्निहित गरिमा से हुआ है। विश्व निकाय ने 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अंगीकार और उदघोषित किया।
मानवाधिकार से आप क्या समझते हैं स्पष्ट कीजिए?मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो किसी भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिल जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार ही मानव अधिकार है।
मानवाधिकारों से आप क्या समझते हैं इसके संरक्षण के लिए किए गए वैश्विक प्रयासों की समीक्षा करें?मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत
मानवाधिकारों से आप क्या समझते हैं मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या करें?संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते; मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा अंगीकार की।
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