लोगों की राय Show
6 पाठकों को प्रिय 247 पाठक हैं गोस्वामी जी की विविध कविताएँ।Kavitavali निवेदनइन्द्रदेवनारायणजी द्वारा अनुवादित इस कवितावली के अनुवाद को संशोधन करने में श्रीयुत मुनिलालजी एवं सम्मान्य पं. श्रीचिम्मनलालजी गोस्वामी एम.ए. शास्त्री, सम्पादक कल्याण-कल्पतरुने जो परिश्रम किया है, उसके लिये हम उनके हृदय से कृतज्ञ हैं। प्रकाशक कवितावली बालकाण्ड रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप। बालरूप की झाँकी अवधेसके द्वारे सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे। (एक सखी दूसरी सखी से कहती है—) मैं सबेरे अयोध्यापति महाराज दशरथ के द्वार पर गयी थी। उसी समय महाराज पुत्र को गोद में लिये बाहर आये। मैं तो उस सकल शोकहारी बालकको देखखर ठगी-सी रह गयी; उसे देखकर जो मोहित न हो, उन्हें धिक्कार है। उस बालक के अञ्जन-रञ्जित मनोहर नेत्र खञ्जन पक्षीके बच्चे के समान थे। हे सखि ! वे ऐसे जान पड़ते थे, मानो चन्द्रमा के भीतर दो समान रूपवाले नवीन नीलकमल खिले हुए हों।। 1 ।। पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ। उस बालकके चरणों में घुँघरू, कर-कमलों में पहुँची और गले में मनोहर मणियों की माला शोभायमान थी। उसके नवीन शरीरपर पीला झँगुला झलकता था। महाराज उसे गोद में लेकर पुलकित हो रहे थे। उसका मुख कमलके समान था, जिसके रूपमकरन्दका पान कर (देखनेवालों के) नेत्ररूप भौंरे आनन्दमग्न हो जाते थे। श्रीगोशाईंजी कहते हैं—यदि मन में ऐसा बालक न बसा तो संसार में जीवित रहने से क्या लाभ है ?।।2।। तनकी दुति स्याम सरोरुह लोचन कंजकी
मंजुलताई हरैं। उनके शरीर की आभा नील कमल के समान है तथा नेत्र कमलकी शोभा को हरते हैं। धूलि से भरे होनेपर भी वे बड़े सुन्दर जान पड़ते हैं और कामदेव की महती छबि को भी दूर कर देते हैं उनके नन्हें-नन्हें दाँत बिजली की चमकके समान चमकते हैं और वे किलक-किलककर मनोहर बाललीलाएँ करते हैं। अयोध्यापति महाराज दशरथ के वे चारों बालक तुलसी दास के मनमन्दिर में सदैव विहार करें।।3।। बाललीला कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंबि निहारि डरैं। कभी चन्द्रमा को माँगने की हठ करते हैं, कभी अपनी परछाहीं देखकर डरते हैं, कभी हाथ से ताली बजा-बजा कर नाचते हैं, जिससे सब माताओं के हृदय आनन्द से भर जाते हैं। कभी हठपूर्वक कुछ कहते हैं (माँगते हैं) और जिस वस्तु के लिए अड़ते हैं, उसे लेकर ही मानते हैं। अयोध्यापति महाराज दशरथके वे चारों बालक तुलसीदास के मनमन्दिर में सदैव विहार करें।।4।। बर दंतकी पंगति कुंदकली अधराधर-पल्लव खोलनकी। कुन्दकली के समान उज्जवलवर्ण दन्तावली, अधरपुटों का खोलना और अमूल्य मुक्तमालाओं की छवि ऐसा जान पड़ती है मानो श्याम मेघके भीतर बिजली चमकती हो। मुख पर घुँघराली अलकें लटक रही हैं। तुलसीदासजी कहते हैं—लल्ला ! मैं कुण्डलों की झलक से सुशोभित तुम्हारे कपोलों और इन अमोल बोलों पर अपने प्राण न्योछावर करता हूँ।।5।। पकदंजनि मंजु बनीं पनहीं धनुहीं सर पंकज-पानि लिएँ। उनके चरणकमलों में मनोहर जूतियाँ सुशोभित हैं, वे करमलों में छोटा-सा धनुष-बाण लिये हुए हैं, बालकों के साथ सरयूजी के किनारे चौराहे और बाजारों में खेलते फिरते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं—यदि ऐसे बालकों से प्रेम न हुआ तो बताइये जप, योग अथवा समाधि करने से क्या लाभ है ? वे लोग तो गधों, शूकरों और कुत्तों के समान हैं, बताइये संसार में उनके जीने का क्या फल है ? ।।6।। सरजू बर तीरहिं तीर फिरैं रघुबीर सखा अरु बीर सबै। श्रीरघुनाथजी उनके सखा और सब भाई पवित्र सरयू नदी के किनारे–किनारे धूमते फिरते हैं। उनके हाथमें छोटे-छोटे धनुष-बाण हैं, कमर में तरकस कसा हुआ है और शरीर पर नूतन पीताम्बर सुशोभित है। तुलसीदास जी कहते हैं श्रीशारदाकी मति उस समय की सुन्दरता की उपमा चौदहों भुवन, नवों खण्ड, तीनों लोक और इक्कीसों ब्रह्माण्डों में जब विचारपूर्वक खोजने पर भी नहीं पा सकी, तब कुण्ठित हो गयी*।।7।। —————————————— काशी-नागरी-प्रचारिणी-सभा की प्रतिमें यों अर्थ है— यश के इक्कीस गुण (सुशीलता, वात्सल्य, सुलभता, गम्भीरता, क्षमा, दया, करुणा, आर्द्रता, उदारता, आर्जव, शरण्यत्व, सौहार्द, चातुर्य, प्रीतिपालकत्व, कृतज्ञता, ज्ञान, नीति, लोकप्रियता, कुलीनता, अनुराग, निवर्हणता)। धनुर्यज्ञ छोनीमें के छोनीपति छाजै जिन्है छत्रछाया जिनके ऊपर राजछत्रों की छाया शोभायमान है, ऐसे पृथ्वीभर के राजालोग झुंड-के-झुंड जनकके यहाँ आकर उनके स्थान में छाये हुए हैं। वे बड़े बलवान, प्रतापी और तेजस्वी हैं, उनके शरीर और वेष भी बड़े सुन्दर हैं और वे श्रीसीताजी को वरण करने के शुभ कार्य से बुलाये गये हैं। श्रेष्ठ वन्दीजन उनकी विरदावली का बखान करते हैं, बाजेवाले बाजे बजाते हैं तथा उस राजसमाजके कोई-कोई वीर भी अपनी भुजाएँ ठोकते हैं। तुलसीदासजी कहते हैं।—इस समय जनकपुर के जितने नर-नारी हैं, वे सभी अवधकेसरी भगवान् राम का मुख बारम्बार देखते और मन-ही-मन प्रसन्न होते हैं।। 8 ।। विनामूल्य पूर्वावलोकनअन्य पुस्तकेंलोगों की रायकवितावली के रचयिता कौन हैं सद्गति कहानी के लेखक कौन हैं?व्याख्या : 6. 'कवितावली' के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास है।
कवितावली का अर्थ क्या है?सोलहवीं शताब्दी में रची गयी कवितावली में श्री रामचन्द्र के इतिहास का वर्णन कवित्त, चौपाई, सवैया आदि छंदों में की गई है। रामचरितमानस के जैसे ही कवितावली में भी सात काण्ड हैं। ये छन्द ब्रजभाषा में लिखे गये हैं और इनकी रचना प्राय: उसी परिपाटी पर की गयी है जिस परिपाटी पर रीति काल का अधिकतर रीति- मुक्त काव्य लिखा गया।
कवितावली में कितने दोहे हैं?दोहावली में 573 दोहे संकलित हैं।
कवितावली की शैली क्या है?कवितावली की प्रयुक्त शैली मुक्तक काव्य छंद की शैली है। कवितावली तुलसीदास द्वारा रचित एक काव्य कृति है। यह कृति सात खंडों में विभाजित है। यह सातों खंड में जो छंद लिखे गए हैं, वह ब्रज भाषा में रचित किए गए हैं।
|