माता कौशल्या की मृत्यु कैसे हुई? - maata kaushalya kee mrtyu kaise huee?

माता कौशल्या की मृत्यु कैसे हुई? - maata kaushalya kee mrtyu kaise huee?

रामायण में कौशल्या (Kaushalya Devi In Hindi) एक ऐसी स्त्री की कहानी हैं जो स्वभाव से मृदु, मधुर, मातृत्वभाव, धैर्यवान व कर्तव्यनिष्ठ थी। उन्हें भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम की माता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था (Kaushalya In Ramayan) लेकिन उन्होंने अपने जीवन में ज्यादातर कष्ट ही देखे। कौशल्या एक राजा की पुत्री, एक राजा की पत्नी व एक राजा की माँ होकर भी हमेशा कष्ट में रही लेकिन उन्होंने कभी भी अपना धैर्य नही खोया। आज हम आपको माता कौशल्या का जीवन परिचय देंगे।

माता कौशल्या का जीवन परिचय (Kaushalya Ka Jeevan Parichay)

कौशल्या का जन्म (Kaushalya Ka Janm)

कौशल्या के माता-पिता का नाम सुकौशल (Kaushalya Ke Pita Ka Naam) व अमृताप्रभा था जो कि कौशल देश के राजा-रानी थे। कौशल्या बचपन से ही धैर्यवान थी तथा हमेशा धर्म का पालन करती थी। 

कौशल्या का राजा दशरथ के साथ विवाह (Kaushalya Ka Vivah)

जब कौशल्या विवाह योग्य हो गयी तब उनका विवाह अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के साथ हुआ। वे उनकी प्रथम पत्नी थी तथा अयोध्या की प्रमुख महारनी भी। बाद में राजा दशरथ के दो और विवाह हुए जिनके नाम कैकेयी व सुमित्रा थे।

राजा दशरथ का झुकाव अपनी दूसरी पत्नी कैकेयी की ओर ज्यादा था क्योंकि वह रूपवती भी थी तथा युद्धकला में निपुण भी। साथ ही वह कैकेय जैसे शक्तिशाली देश की राजकुमारी भी थी।

कौशल्या को हुआ पुत्री का जन्म (Kaushalya Ki Putri Shanta)

कुछ समय पश्चात राजा दशरथ व कौशल्या को एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम शांता था। वह भी अपनी माँ की भांति धर्म का पालन करने वाली थी। एक दिन कौशल्या की बहन वर्षिणी अपने पति सोमपद के साथ अयोध्या आयी हुई थी। सोमपद अंगदेश के राजा थे लेकिन उन्हें कोई संतान नही थी। उनका दुःख देखकर राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद दे दिया।

कौशल्या के घर पुत्र का जन्म (Kaushalya Ke Putra Kaun The)

कई वर्षों तक राजा दशरथ को कोई पुत्र प्राप्त नही हुआ तो उन्हें चिंता सताने लगी। इसके लिए उन्होंने पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया व उससे प्राप्त हुई खीर को कौशल्या समेत तीनों रानियों ने खाया। इसके बाद कौशल्या के घर भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम (Kaushalya Ke Putra Ka Naam) ने जन्म लिया। साथ ही अन्य दो रानियों ने भी भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न को जन्म दिया।

कौशल्या का चरित्र (Kaushalya Ka Charitra)

आमतौर पर यह देखा जाता हैं कि एक सौतन का दूसरी सौतन से थोड़ा बहुत बैर भाव रहता ही हैं लेकिन कौशल्या ने कभी भी अपनी दोनों सौतन के लिए ग्लानि भाव नही रखा। इसका उल्लेख रामायण की चौपाई में भी मिलता हैं जो बताती हैं कि कौशल्या अपनी दोनों सौतन को हमेशा अपनी बहन की दृष्टि से ही देखती थी।

कैकेयी के स्वभाव के विपरीत उसने हमेशा दोनों को बहन समझा व अपने पति की सेवा करती रही। इसके साथ ही उसने कभी भी अपने पुत्र व अपने सौतन के पुत्रों में भेदभाव नही किया तथा सभी के प्रति मातृत्व का प्रेम लुटाया। यही संस्कार उसने अपने पुत्र राम को भी दिए।

श्रीराम को वनवास

रानी कौशल्या के चरित्र व धैर्य की परीक्षा की घड़ी तब आयी जब उनके पुत्र को चौदह वर्ष का वनवास हुआ। दरअसल कौशल्या विवाह के बाद से ही अपने पति दशरथ व कैकेयी की उपेक्षा सहती आई थी लेकिन उसने कभी भी धर्म का मार्ग नही छोड़ा व हमेशा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती रही।

यह वह समय था जब श्रीराम अपने सभी भाइयों के साथ गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण करके बहुत वर्षों के पश्चात अयोध्या लौटे थे। इसके कुछ समय पश्चात ही चारो भाइयों का विवाह हो गया था व घर में चार बहुएं आई थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था व कौशल्या भी बहुत प्रसन्न थी। बहुत समय बाद कौशल्या इतनी प्रसन्न हुई थी लेकिन वह भी ज्यादा दिन तक नही टिक सकी।

दशरथ ने श्रीराम का राज्याभिषेक करने की घोषणा कर दी थी लेकिन कैकेयी की दुष्ट चालो के कारण सब कुछ बिगड़ गया। एक दिन पहले श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा हुई थी तो अगले ही दिन भरत के राज्याभिषेक करने का निर्णय हुआ व श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास सुना दिया गया।

कौशल्या का श्रीराम को वन में भेजना

जब कौशल्या को इस बात की सूचना मिली तो वह जड़ हो गयी थी। उसे संपूर्ण घटनाक्रम पर विश्वास नही हुआ। दशरथ राम को वनवास भेजना नही चाहते थे लेकिन कैकेयी को दिए वचनों से बंधे थे। किंतु श्रीराम अपने पिता के वचन को निभाने के लिए वनवास जा रहे थे।

जब श्रीराम कौशल्या से मिलने आए तब पहली बार कौशल्या के सामने धर्मसंकट आया। उसे अपना पतिधर्म भी निभाना था तो माँ का भी धर्म आड़े आ रहा था। एक और उसके सामने अपने पति के दिए हुए वचनों की लाज रखना था तो दूसरी ओर अपने पुत्र को चौदह वर्ष तक भीषण संकटो से बचाना था।

तब कौशल्या ने सांकेतिक शब्दों में श्रीराम को अपने पिता से विद्रोह करने को कहा था तथा वन में ना जाने की विनती की थी लेकिन उसी कौशल्या ने अपने पुत्र के मन में ऐसे गुण भरे थे जो ऐसा ना करने को कहते थे। इसी के साथ कौशल्या की बहु व श्रीराम की पत्नी माता सीता व सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण ने भी वनवास जाने का निर्णय लिया।

अंत में कौशल्या ने धैर्य का परिचय देते हुए श्रीराम के वनगमन को स्वीकार कर लिया व अपने रोते हुये पति को सँभालने लगी। बड़े दुखी मन से कौशल्या ने अपने दोनों पुत्रों व बहु को वनवास के लिए विदा कर दिया।

कौशल्या का विधवा होना (Dashrath Kaushalya Ki Kahani)

इतिहास साक्षी हैं कि कैकेयी के द्वारा इनका बड़ा प्रचंड रचने के बाद भी कौशल्या ने कभी उसके साथ गलत व्यवहार नही किया व उसके पुत्र को भी राम समझकर प्रेम करने लगी। श्रीराम के वनगमन के पश्चात दशरथ ने कैकेयी का त्याग कर दिया था तथा बिस्तर पकड़ लिया था। अब दशरथ हमेशा बीमार रहते व राम-राम का नाम ही जपते रहते और प्रलाप करते रहते।

कौशल्या अपनी सौतन सुमित्रा के साथ दिन-रात राजा दशरथ की सेवा करती लेकिन उनकी स्थिति बिगडती ही गयी। अंत में एक दिन दशरथ राम-राम का नाम चिल्लाते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गए व रानी कौशल्या विधवा हो गयी। विधवा होने के पश्चात भी उन्होंने अपना धैर्य नही खोया तथा धर्म के कार्य करती रही।

भरत व शत्रुघ्न की वापसी

जब यह सब घटनाक्रम हो रहा था तब भरत शत्रुघ्न के साथ अपने नाना के घर कैकेय गए हुए थे। जब वे वापस आए तब उन्हें संपूर्ण घटनाक्रम का ज्ञान हुआ। यह सुनकर उन्होंने अपनी माँ कैकेयी का त्याग कर दिया व क्षमा मांगने कौशल्या के पास गए।

रामायण में इसका उल्लेख मिलता हैं कि भरत को देखकर कौशल्या रोने लगी थी व उसी में अपने राम की छवि देखने लगी थी। जिस भरत के कारण उसके पुत्र को चौदह वर्ष का वनवास मिला था उससे उन्होंने थोड़ा सा भी बैर भाव नही रखा अपितु वे तो उनमे अपने राम की छवि देखने लगी थी।

भरत के साथ राम को लेने चित्रकूट जाना

इसके बाद कौशल्या भरत व समस्त राजपरिवार के साथ चित्रकूट गयी व श्री राम से वापस अयोध्या चलने की याचना की किंतु राम ने अपने पिता का वचन निभाने के लिए वापस आने से मना कर दिया। कौशल्या अपने पुत्र के इन आदर्शों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई थी लेकिन चौदह वर्ष तक अपने पुत्र का विरह भी उसे खाए जा रहा था। वे भरत समेत अयोध्या खाली हाथ लौट आयी थी।

चौदह वर्ष की कठोर प्रतीक्षा

यह चौदह वर्ष कौशल्या के जीवन के सबसे कठोर वर्ष थे क्योंकि अयोध्या का राजपरिवार पूरी तरह उजड़ चुका था। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी, पुत्र को वनवास हुआ था, लक्ष्मण व सीता भी उसके साथ वनवास गए थे, भरत प्रायश्चित करने लिए अयोध्या के निकट नंदीग्राम में वनवासियों का जीवन जी रहे थे, कुल मिलाकर राजमहल सूना हो गया था।

वह प्रतिपल अपने कक्ष की खिड़की से राम के वापस आने की प्रतीक्षा करती लेकिन फिर हताश हो जाती। कभी-कभी कौशल्या महल के द्वार पर राम आ गया, मेरा राम आ गया चिल्लाते हुए भागती लेकिन यह प्रतीक्षा समाप्त ही नही होती।

कौशल्या का अंतिम समय (Kaushalya Ki Mrityu Kaise Hui)

अन्तंतः चौदह वर्ष पश्चात श्रीराम लौट आये व उनका राज्याभिषेक हुआ। राजमहल में फिर से खुशियों का आगमन हो गया व कौशल्या अब दोनों सौतनो के साथ तीर्थयात्रा पर चली गयी। उनके पीछे से किसी घटनावश माता सीता को अकेले वनवास मिला।

इसके कुछ वर्षों के पश्चात कौशल्या ने अपने दो वनवासी पौत्रों/ पोतो लव-कुश व सीता को पुनः देखा। माता सीता कौशल्या के सामने धरती में समा गयी व श्रीराम ने लव-कुश को अपने पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया। अन्तंतः कौशल्या ने एक दिन शांतिपूर्वक अपने प्राण त्याग दिए व अपने धाम को लौट गयी।

कौशल्या का असली नाम क्या था?

जिनकी बेटी भानुमति जो विवाह के बाद कौशल्या कहलाईं। त्रेतायुग में दक्षिण कोसल की राजधानी भानपुर थी, जो आरंग मानी जाती है। आरंग परिक्षेत्र में ही चंदखुरी है। वाल्मिकी रामायण में चंदपुर का जिक्र है, जिसे चंदखुरी माना जाता है।

माता कौशल्या किसकी पुत्री थी?

वे कौशल प्रदेश (छत्तीसगढ़) की राजकुमारी तथा अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी और देव माता अदिति का अवतार थीं। माता कौशल्या का जन्म वर्तमान छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के चंदखुरी नामक ग्राम में हुआ था, कौशल्या माता का एकमात्र मंदिर यहीं चंदखुरी में स्थित है जहां माता कौशल्या बाल स्वरूप श्री राम को गोद में लिए हुए हैं।

माता कौशल्या के कितने पुत्र थे?

राजा दशरथ की तीन रानियां कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी थीं, और उनके चार पुत्र श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन।

रामायण में कौशल्या के भाई का क्या नाम था?

राम
श्रीरामजी ( श्रीरामचन्द्रजी )
जीवनसाथी
सीता
माता-पिता
महाराज दशरथ (पिता) देवी कौशल्या (माता)
भाई-बहन
भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और शांता
संतान
कुश, लव
राम - विकिपीडियाhi.wikipedia.org › wiki › रामnull