Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल – प्रकृति एवं विषय क्षेत्र Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes. Show
BSEB Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल – प्रकृति एवं विषय क्षेत्रBihar Board Class 12 Geography मानव भूगोल – प्रकृति एवं विषय क्षेत्र Textbook Questions and Answers(क) नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए: मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 12 प्रश्न 1. मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 12 प्रश्न 2. Manav Bhugol Prakriti Avn Vishay Kshetra Ka Question Answer प्रश्न 3. Bihar Board 12th Geography Book प्रश्न 4. (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए: मानव भूगोल के विषय क्षेत्र पर एक टिप्पणी लिखिए Bihar Board Class 12 प्रश्न 1. Bihar Board 12th Geography Book Pdf Download प्रश्न 2.
मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र Notes Bihar Board प्रश्न 3. (ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए: मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे Bihar Board Class 12 प्रश्न 1. Manav Bhugol Prakriti Avn Vishay Kshetra Notes Bihar Board प्रश्न 2. Bihar Board Class 12 Geography मानव भूगोल – प्रकृति एवं विषय क्षेत्र Additional Important Questions and Answersअति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर मानव भूगोल के 3 क्षेत्रों के नाम लिखिए Bihar Board Class 12 प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9.
प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. भूगोल की प्रमुख शाखा के रूप में मानव तथा पर्यावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन मानव भूगोल के अध्ययन का केन्द्र-बिंदु है, अर्थात् मानव भूगोल में पर्यावरण से संबंधित मानव समाज के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता है। वास्तव में, मानव भूगोल का कार्यक्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। उसके अंतर्गत मानव प्रजातियों, विश्व के विभिन्न भागों में जनसंख्या का वितरण, घनत्व, विकास, वृद्धि, जनसांख्यिकीय के लक्षण, जन-स्थानान्तरण आदि के संबंध में ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसके साथ ही मानव समूहों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल में ग्रामीण बस्तियों के प्रकार एवं प्रतिमान और नगरीय बस्तियों के स्थल, विकास और कार्य तथा नगरों के कार्यात्मक वर्गीकरण का भी अध्ययन किया जाता है। इसमें उद्योग-धंधे, परिवहन एवं संचार व्यवस्था तथा व्यापार आदि आर्थिक क्रियाओं का विकास तथा उसके क्षेत्रीय वितरण का भी अध्ययन किया जाता है। प्रश्न 3. कुछ भूगोलवेत्ता इसे सामाजिक भूगोल भी कहते हैं जे. एम. हॉउस्टन के अनुसार सामाजिक भूगोल को जनसंख्या के अध्ययनों सहित ग्राम्य एवं नगरीय बस्तियों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है।’ सामाजिक भूगोल में मानव को एकांकी रूप में न लेते हुए मानव समूहों और पर्यावरण के संबंधों की व्याख्या की जाती है। प्रश्न 4. प्रश्न 5. चित्र: मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र के पाँच मुख्य अंग।
प्रश्न 6. प्रश्न 7. इसमें मात्रात्मक विधियों के उपयोग में बल दिया गया। तदन्तर प्रत्यक्षवाद के विरोध स्वरूप मनोविज्ञान से ली गई संकल्पना पर आधारित व्यवहारगत विचारधारा का उदय हुआ, जिसमें मानव की ज्ञान शक्ति पर विशेष बल दिया गया। विश्व के विभिन्न प्रदेशों तथा देशों के भीतर तथा पूँजीवाद के प्रभाव से विभिन्न समूहों के भीतर बढ़ती असमानता के कारण मानव भूगोल में कल्याणपरक विचारधारा का जन्म हुआ। निर्धनता, विकास में प्रादेशिक असमानता, नगरीय झुग्गी-झोंपड़ियों और अभावों जैसे विषय भौगोलिक अध्ययन का केन्द्र बन गये। इनके अतिरिक्त मानवतावाद नामक विचारधारा का भी भूगोल में जन्म हुआ। यह विचारधारा मानव पर केंद्रित है। जिसमें मानव-जागृति, मानव-साधन, मानव चेतना और मानव की सृजनात्मक एवं क्रियाशील भूमिका पर बल दिया गया। अतः द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मानव भूगोल में अनेक नई विचारधाराओं का तेजी से विकास हुआ। प्रश्न 8. 2. पारिस्थितिक विश्लेषण: 3. प्रादेशिक संश्लेषण: प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. उन्नीसवीं शताब्दी में वैज्ञानिक विधियों के तीव्र विकास की अवस्था में भूगोल के विषय क्षेत्र को सीमित करने का प्रयास किया गया। इस अवधि में उच्चावच के लक्षणों के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया। संभवतः अधिक तीव्रता से बदलते सांस्कृतिक लक्षणों की तुलना में पृथ्वी के अपेक्षाकृत स्थिर लक्षणों का वर्णन करना सरल था। उच्चावच के लक्षणों का अनेक प्रकार से मापन तथा परीक्षण किया गया। इसी कार्य के फलस्वरूप भूगोल की एक विशिष्ट शाखा का विकास हुआ जिसे भू-आकृति विज्ञान कहा गया। भौतिक लक्षणों के अध्ययन को आवश्यकता से अधिक महत्त्व देने वाली इस विचारधारा के प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ विद्वानों ने मानव तथा प्राकृतिक पर्यावरण के बीच के संबंधों की जाँच शुरू कर दी। इसके परिणामस्वरूप ‘मानव भूगोल’ शाखा का उद्भव हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध (1859) में चार्ल्स डार्विन की पुस्तक ‘जीवों का विकास’ प्रकाशित हुई। इसी से प्रेरणा लेकर भौगोलिक अध्ययन की विशिष्ट शाखा के रूप में ‘मानव भूगोल’ का विकास हुआ। फ्रेडरिक रैटजेल की पुस्तक ‘एंथ्रोपोज्योग्राफी’ को भूगोल विषय में मानव को प्रतिष्ठित करने वाला प्रथम वास्तविक ग्रंथ कहा जाता है। रैटजेल को आधुनिक मानव भूगोल का जनक भी कहते हैं। उसके अनुसार, मानव भूगोल मानव समाजों तथा पृथ्वी-तल के बीच संबंधों का संश्लिष्ट अध्ययन है। फ्रांसीसी विद्वान वाइडल डी ला ब्लाश ने अपनी प्रतिष्ठित पुस्तक (मानव भूगोल के सिद्धांत) में बताया है कि ‘मानव भूगोल’ एवं मनुष्य के बीच पारस्परिक संबंधों का एक नया विचार देता है जिसमें पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक संबंधों का संयुक्त ज्ञान समाविष्ट होता है। एल्सवर्थ हंटिग्टन ने मानव भूगोल को ‘भौगोलिक पर्यावरण तथा मानव-प्रक्रियाओं के पारस्परिक संबंधों के अध्ययन’ को परिभाषित करते हुए कहा कि मानव और पर्यावरण से संबंध गतिशील है, न कि स्थिर। जीन बूंश प्रसिद्ध फ्रांसिसी भूगोलविद् ने कहा कि मानवीय घटनाएँ कभी स्थिर नहीं रहतीं। अतः हमें इन सभी का विकास के रूप में अध्ययन करना चाहिए। विभिन्न विद्वानों द्वारा समय: प्रश्न 2. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत भौतिक लक्षण जैसे जलवायु, धरातलीय उच्चावच एवं अपवाह प्रणाली तथा प्राकृतिक संसाधन जैसे मिट्टी, खनिज, जल एवं वन आते हैं। सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत पृथ्वी पर मानव निर्मित लक्षण जैसे-जनसंख्या और मानव बस्तियाँ एवं कृषि, विनिर्माण उद्योग, परिवहन आदि को सम्मिलित किया जाता है। एल्सवर्थ हंटिग्टन (1956) के अनुसार ‘मानव भूगोल भौतिक दशाओं तथा भौतिक पर्यावरण के साथ मानव की अनुक्रियाओं से संबंधित है। ऊपर वर्णित आवश्यक तथ्यों के अतिरिक्त मानव भूगोल निम्नलिखित मानवीय-पर्यावरण के पक्षों के अध्ययन से भी संबंधित है उद्देश्य आंतरिक आकार की सहलग्नता और बाह्य पारिस्थितिक सह संबंधों की जानकारी प्राप्त करना होता है। इस संबंध की गवेष्णा विभिन्न स्थानिक मापकों पर की जाती है, जो वृहत् स्तर जैसे, विश्व के मुख्य प्रदेश को लेकर मध्यम स्तर और सूक्ष्म स्तर जैसे-व्यक्ति या समूह और उनके निकटवर्ती भू-भाग तक हो सकती है। इसमें मानव को विश्लेषण का आधार बनाया जाता है: वे कहाँ हैं? वे वहीं पर क्यों हैं? क्या वे आपस में एक जैसे हैं? वे क्षेत्र में कैसे अंतक्रिया करते हैं और वे अपने प्राकृतिक परिवेश में किस प्रकार के सांस्कृतिक भू-दृश्य की रचना कर रहे हैं? ऐसे विभिन्न प्रश्नों के उत्तर एक भूगोलवेत्ता द्वारा अपनाये जाने वाले आधारभूत तरीकों से ही प्राप्त करना होता है: कौन कहाँ है, और कैसे एवं क्यों वह वहाँ है? यही नहीं, हम यह भी जानना चाहते हैं कि हमारे लिए, हमारी संतानों के लिए और भावी पीढ़ी के लिए इसका अर्थ क्या है? मानव भूगोल के अध्ययन की विधियाँ: प्रश्न 3. उत्तर: (ख) प्रत्यक्षवाद और मानवतावाद में अंतर प्रश्न 4. ये कारक मानव के आचरण, निर्णय-क्षमता तथा जीवन पद्धति को भी निश्चित करते हैं। हिपोक्रेटस, अरस्तु, हेरोडोटस, स्ट्रेबो आदि रोमन और यूनानी विद्वानों ने सर्वप्रथम मानव पर प्राकृतिक दशाओं के प्रभाव की विवेचना की थी। इन्होंने विभिन्न जाति समूहों के शारीरिक लक्षणों और उनकी संस्कृति पर भौतिक कारकों के प्रभाव का विशेष रूप से अध्ययन किया था। भौगोलिक साहित्य में नियतिवाद का संकल्पना, अल-मसूदी, अल-इदरिसी और इब्न-खल्दून, कांट, हम्बोल्ट, रिटर और रैटजेल जैसे विद्वानों के साहित्य से 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशक तक आगे बढ़ती रही। इस विचारधारा का विस्तृत विकास, विशेषतः संयुक्त राज्य अमेरिका में, इ.सी. सेम्पुल तथा एल्सवर्थ हंटिग्टन के लेखों से हुआ, जो इसके बड़े समर्थक थे। नियतिवादी-दर्शन की मूल रूप से दो आधारों पर आलोचना की गई – 2. यद्यपि पर्यावरण मानव को प्रभावित करता है, लेकिन मनुष्य भी पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार नियतिवाद का सिद्धांत कारण और प्रभाव संबंध के सिद्धांत इसकी विवेचना करने में बहुत सक्षम नहीं है। इस प्रकार नियतिवाद से उत्पन्न यह विचार कि ‘मनुष्य प्रकृति का दास है’ अस्वीकृत कर दिया गया और दूसरे भूगोलवेत्ताओं ने इस बात पर बल देना आरंभ किया कि मनुष्य प्रकृति के तत्त्वों को चुनने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। जब प्रकृति की तुलना में मनुष्य को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाए, और जब मानव को अकर्मक या निष्क्रिय से सक्रिय शक्ति के रूप में देखा जाए तो यह धारणा संभववाद कहलाती है। प्रश्न 5.
मानव भूगोल के निम्नलिखित उपक्षेत्र है: (क) आर्थिक भूगोल। चित्र: मानव भूगोल का अन्य समाज शास्त्रों से संबंध मानवतावाद (Humanism) भी मानव भूगोल की एक और विचारधारा है, जिसमें मानव-जागृति, मानव-साधन, मानव-चेतना और मानव की सृजनात्मकता के संदर्भ में मनुष्य की केन्द्रीय एवं क्रियाशील भूमिका पर बल दिया जाता है। दूसरे शब्दों में यह विचारधारा स्वयं मनुष्य पर केन्द्रित है। मात्रात्मक क्रांति का जन्म कब हुआ था?1950 के बाद भौगोलिक विषय सामग्री को सुचारु रूप से समझने के लिये सांख्यिकीय एवं गणितीय तकनीकों के प्रयोग में आई क्रांति को भूगोल में मात्रात्मक क्रांति कहते हैं।
मात्रात्मक क्रांति के जनक कौन हैं?भूगोल में मात्रात्मक उपागम के प्रारम्भ का श्रेय जीके जिफ को जाता है.
मात्रात्मक क्रांति का दार्शनिक आधार क्या है?व गणितीय तकनीकों के प्रयोग में आई क्रांति को भूगोल में मात्रात्मक क्रांति कहते हैं। भूगोल का विभाग बंद कर दिया था । लाभकारी होगा ।" परिणाम स्वरूप भूगोल में अनुभाविक विवरण को त्याग दिया गया एवं उसका स्थान मात्रात्मक विधियों ने लॅ लिया । भूगोल में मात्रात्मक विधि का प्रयोग सर्वप्रथम ब्रिफ ने किया था ।
भूगोल में मॉडल क्या है?प्रतिरूप ( Models) हमें परिकल्पना सूत्रण के लिए आकर्षित करते हैं और व्यापकीकरण और सिद्धान्त निर्माण में हमारी सहायता करते है । प्रतिरूप वास्तविक विश्व के कुछ आकारों को अधिक सुपरिचित, सरलतम, अवलोकनीय सुगम्य, सरलता से सूत्रण अथवा नियन्त्रणीय आकार प्रदर्शित करते हैं जिनसे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
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