सबसे लोकप्रिय वेद कौन सा है? - sabase lokapriy ved kaun sa hai?

ऋग्वेद का सर्वाधिक लोकप्रिय छंद कौन सा है?

June 4, 2019

Show

(A) गायत्री
(B) अनुष्टुप
(C) त्रिष्टुप
(D) जगती

Question Asked : [UPPSC (Pre) Opt. History 2006]

Answer : गायत्री

चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचनी ऋग्वेद है। ऋग्वेद अर्थात् ऐसा ज्ञान जो ऋचाओं में बद्ध हो, इस वेद में कुज 10 मंडल एवं 1028 सूक्त हैं। इसके तीसरे मंडल में गायत्री मंत्र का उल्लेख मिलता है जो सूर्य देव को समर्पित है। अर्थर्ववेद अथर्वा ऋषि द्वारा रचित हैं, इसमें कुल 20 अध्याय एवं 731 सूक्त हैं। मनुस्मृति से स समय के भारत के बारे में राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक जानकारी मिलती है। भगवद्गीता मूलत: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिये गये उपदेश का सार है, जो निष्काम कर्म को ही प्रमुखता प्रदान करता है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का भाग है। ....अगला सवाल पढ़े

Tags : इतिहास प्रश्नोत्तरी प्राचीन काल भारत मध्यकालीन भारत

Useful for : UPSC, State PSC, SSC, Railway, NTSE, TET, BEd, Sub-inspector Exams

Answers by users

Latest Questions

OP Sharma

I’m a freelance professional with over 10 years' experience writing and editing, as well as graphic design for print and web.

ऋग्वेद
सबसे लोकप्रिय वेद कौन सा है? - sabase lokapriy ved kaun sa hai?

चार वेद

जानकारी
धर्महिन्दू धर्म
भाषावैदिक संस्कृत
अवधिc. १५०० – १२०० BCE[note 1]
अध्याय१० मण्डल
श्लोक/आयत१०,५८० मंत्र[1]
ऋग्वेद

सबसे लोकप्रिय वेद कौन सा है? - sabase lokapriy ved kaun sa hai?

ऋग्वेद की १९ वी शताब्दी की पाण्डुलिपि

ग्रंथ का परिमाण

श्लोक संख्या(लम्बाई)

१०५८० ऋचाएँ

रचना काल

१८००-११०० ईसा पूर्व

सनातन धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत है। इसमें १० मण्डल,[2] १०२८ सूक्त और वर्तमान में १०,४६२ मन्त्र हैं, मन्त्र संख्या के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है। मन्त्रों में देवताओं की स्तुति की गयी है। इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाओं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह सनातन धर्म का प्रमुख ग्रन्थ है। ऋग्वेद की रचनाओं को पढ़ने वाले ऋषि को होत्र कहा जाता है।

ऋग्वेद सबसे पुराना ज्ञात वैदिक संस्कृत पुस्तक है।[3] इसकी प्रारम्भिक परतें किसी भी इंडो-यूरोपीय भाषा में सबसे पुराने मौजूदा ग्रन्थों में से एक हैं।[4][note 2] ऋग्वेद की ध्वनियों और ग्रन्थों को दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मौखिक रूप से प्रसारित किया गया है।[6][7][8] दार्शनिक और भाषाई साक्ष्य इंगित करते हैं कि ऋग्वेद संहिता के थोक की रचना भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हुई थी, जो कि सबसे अधिक संभावना है- 1500 और 1000 ईसा पूर्व, [9] 1700-1000 BCE भी दिया गया है।

ऋक् संहिता में १० मण्डल तथा बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मन्त्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मन्त्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ॰ १०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ॰ १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ॰ १०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ॰ १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है।

इस ग्रन्थ को इतिहास की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण रचना माना गया है। ईरानी अवेस्ता की गाथाओं का ऋग्वेद के श्लोकों के जैसे स्वरों में होना, जिसमें कुछ विविध भारतीय देवताओं जैसे अग्नि, वायु, जल, सोम आदि का वर्णन है।

कालनिर्धारण और ऐतिहासिक सन्दर्भ[संपादित करें]

ऋग्वेद किसी भी अन्य इंडो-आर्यन पाठ की तुलना में कहीं अधिक पुरातन है। इस कारण से, यह मैक्स मूलर और रूडोल्फ रोथ के समय से पश्चिमी विद्वानों के ध्यान के केंद्र में था। ऋग्वेद वैदिक धर्म के प्रारंभिक चरण को दर्ज करता है। प्रारंभिक ईरानी अवेस्ता[10][11] के साथ मजबूत भाषाई और सांस्कृतिक समानताएं हैं, जो प्रोटो-इंडो-ईरानी काल से व्युत्पन्न हैं, [12] अक्सर प्रारंभिक एंड्रोनोवो संस्कृति (या बल्कि, प्रारंभिक एंड्रोनोवो के भीतर सिंटाष्ट संस्कृति) से जुड़ी हैं। क्षितिज) २००० ईसा पूर्व। ऋग्वेद का समय ईपू १०००० से अधिक प्राचीनतम माना गया है। [13]

प्रमुख विषय[संपादित करें]

ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-

  • ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं जिनमें १०२८ सूक्त हैं और कुल १०,५८० ऋचाएँ हैं। इन मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ बड़े हैं।
  • ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है जो वर्तमान समय में उपलब्ध है।
  • ॠग्वेद के कई सूक्तों में विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने वाले मंत्र हैं। यद्यपि ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्तोत्रों की प्रधानता है।
  • ऋग्वेद में ३३ देवी-देवताओं का उल्लेख है। इस वेद में सूर्या, उषा तथा अदिति जैसी देवियों का वर्णन किया है। इसमें अग्नि को आशीर्षा, अपाद, घृतमुख, घृत पृष्ठ, घृत-लोम, अर्चिलोम तथा वभ्रलोम कहा गया है। इसमें इन्द्र को सर्वमान्य तथा सबसे अधिक शक्तिशाली देवता माना गया है। इन्द्र की स्तुति में ऋग्वेद में २५० ऋचाएँ हैं। ऋग्वेद के एक मण्डल में केवल एक ही देवता की स्तुति में श्लोक हैं, वह सोम देवता है।
  • इस वेद में बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, एकात्मवाद का उल्लेख है।
  • ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में निर्गुण ब्रह्म का वर्णन है।
  • इस वेद में आर्यों के निवास स्थल के लिए सर्वत्र 'सप्त सिन्धवः' शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • इस में कुछ अनार्यों जैसे - पिसाकास, सीमियां आदि के नामों का उल्लेख हुआ है। इसमें अनार्यों के लिए 'अव्रत' (व्रतों का पालन न करने वाला), 'मृद्धवाच' (अस्पष्ट वाणी बोलने वाला), 'अनास' (चपटी नाक वाले) कहा गया है।
  • इस वेद लगभग २५ नदियों का उल्लेख किया गया है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का वर्णन अधिक है।सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है तथा सरस्वती का उल्लेख भी कई बार हुआ है। इसमें गंगा का प्रयोग एक बार तथा यमुना का प्रयोग तीन बार हुआ है।
  • ऋग्वेद में राजा का पद वंशानुगत होता था। ऋग्वेद में सूत, रथकार तथा कर्मार नामों का उल्लेख हुआ है, जो राज्याभिषेक के समय पर उपस्थित रहते थे। इन सभी की संख्या राजा को मिलाकर १२ थी।
  • ऋग्वेद में 'वाय' शब्द का प्रयोग जुलाहा तथा 'ततर' शब्द का प्रयोग करघा के अर्थ में हुआ है।
  • ऋग्वेद के ९वें मण्डल में सोम रस की प्रशंसा की गई है।
  • ऋग्वेद के १०वे मंडल मे पुरुषसुक्त का वर्णन है।
  • "असतो मा सद्गमय" वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है। सूर्य (सवितृ को सम्बोधित "गायत्री मंत्र" ऋग्वेद में उल्लेखित है।
  • इस वेद में गाय के लिए 'अहन्या' शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • ऋग्वेद में ऐसी कन्याओं के उदाहरण मिलते हैं जो दीर्घकाल तक या आजीवन अविवाहित रहती थीं। इन कन्याओं को 'अमाजू' कहा जाता था।
  • इस वेद में हिरण्यपिण्ड का वर्णन किया गया है। इस वेद में 'तक्षन्' अथवा 'त्वष्ट्रा' का वर्णन किया गया है। आश्विन का वर्णन भी ऋग्वेद में कई बार हुआ है। आश्विन को नासत्य (अश्विनी कुमार) भी कहा गया है।
  • इस वेद के ७वें मण्डल में सुदास तथा दस राजाओं के मध्य हुए युद्ध का वर्णन किया गया है, जो कि पुरुष्णी (रावी) नदी के तट पर लड़ा गया। इस युद्ध में सुदास की जीत हुई ।
  • ऋग्वेद में कई ग्रामों के समूह को 'विश' कहा गया है और अनेक विशों के समूह को 'जन'। ऋग्वेद में 'जन' का उल्लेख २७५ बार तथा 'विश' का १७० बार किया गया है। एक बड़े प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में 'जनपद' का उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार हुआ है। जनों के प्रधान को 'राजन्' या राजा कहा जाता था। आर्यों के पाँच कबीले होने के कारण उन्हें ऋग्वेद में 'पञ्चजनाः' कहा गया – ये थे- पुरु, यदु, अनु, तुर्वशु तथा द्रहयु।
  • 'विदथ' सबसे प्राचीन संस्था थी। इसका ऋग्वेद में १२२ बार उल्लेख आया है। 'समिति' का ९ बार तथा 'सभा' का ८ बार उल्लेख आया है।
  • ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख २४ बार हुआ है।
  • ऋग्वेद में में कपड़े के लिए वस्त्र, वास तथा वसन शब्दों का उल्लेख किया गया है। इस वेद में 'भिषक्' को देवताओं का चिकित्सक कहा गया है।
  • इस वेद में केवल हिमालय पर्वत तथा इसकी एक चोटी मुञ्जवन्त का उल्लेख हुआ है।

पाठ[संपादित करें]

इस पाठ को दस मण्डलों में बांटा गया है,जो कि अलग-अलग समय में लिखे गए हैं और अलग-अलग लम्बाई के हैं।

मण्डल संख्या २ से ७ ऋग्वेद के सबसे पुराने और सूक्ष्मतम मंडल हैं। यह मण्डल कुल पाठ का ३८% है।

भाषा[संपादित करें]

उत्तर वैदिक काल से पहले का वह काल जिसमें ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना हुई थी। इन ऋचाओं की जो भाषा थी वो ऋग्वैदिक भाषा कहलाती है। ऋग्वैदिक भाषा हिंद यूरोपीय भाषा परिवार की एक भाषा है। इसकी परवर्ती पुत्री भाषाएँ अवेस्ता, पुरानी फ़ारसी, पालि, प्राकृत और संस्कृत हैं।

मातृभाषी[संपादित करें]

ऋग्वैदिक भाषा के मूल मातृभाषी संस्कृत भाषी हिंद-इरानी थे।

व्याकरण[संपादित करें]

नामन् (संज्ञा)[संपादित करें]

एकवचनद्विवचनबहुवचन
कर्ता -स् (-म्) -ॲउ, -ई, -ऊ (-नी) -अस् (-नि)
संबोधन -स् (-) -उ, -ई, -ऊ (-नी) -अस् (-नि)
कर्म -अम् (-म्) -ॲउ, -ई, -ऊ (-नी) -न्, -अस् (-नि)
करण -ना, -या -भ्यॅम् -भिस्
संप्रदान -अइ -भ्यॅम् -भ्यस्
आपादान -अस् -भ्यॅम् -भ्यस्
संबंध -अस् -अउस् -नॅम
अधिकरण -इ, -ॲम् -अउस् -सु/-षु

ऋग्वैदिक भाषा और संस्कृत में अंतर[संपादित करें]

जैसे होमेरिक ग्रीक क्लासिकल ग्रीक से भिन्न है वैसै ऋग्वैदिक भाषा संस्कृत भाषा से भिन्न है। तिवारी ([1955] 2005) ने दोनोँ के बीच अंतर को निम्न सिद्धान्त स्वरूप सूचित किया:

  • ऋग्वैदिक भाषा में voiceless bilabial fricative ([ɸ] फ़, जो उपधमानीय कहलाता था और एक अघोष वर्त्य संघर्षी voiceless velar fricative ([x], यानि ख़ जो जिह्वामूलीय कहलाता था)—यह तब प्रयोग होता है जब श्वास विसर्ग अः क्रमशः अघोष ओष्ठ्य और velar व्यंजनोँ के ठीक पहले आता है। दोनोँ ही संस्कृत में लुप्त हो गए और विसर्ग बन गए। उपधमानीय पp और फph, जिह्वामूलीय कk और खkh से ठीक पहले आता है।
  • ऋग्वैदिक भाषा में retroflex lateral approximant ळ([ ɭ ]) और इसका बलाघाती सहायक [ɭʰ] ळ्ह भी, संस्कृत में लुप्त हो गए, [ɖ] (ड़) और [ɖʱ] (ढ़) में बदल गए। (क्षेत्रानुसार; वैदिक उच्चारण अभी तक कुछ क्षेत्रोँ में मौलिक हैँ, जैसे. दक्षिण भारत, महाराष्ट्र सहित.)
  • अक्षरात्मक [ɻ̩] (ऋ), [l̩] (लृ) और उनके दीर्घ स्वर उत्तर ऋग्वैदिक काल में लुप्त हो गए। बाद में [ɻi] (रि) और [li] (ल्रि) के रूप उच्चारित होने लगा.
  • स्वर e (ए) और o (ओ) वैदिक में अइ [ai] और अउ [au] रूप में उच्चारित हो, पर बाद में संस्कृत में ये पूर्ण शुद्ध ए [eː] और ओ [oː] हो गए।.
  • स्वर ai (ऐ) और au (औ) वैदिक में [aːi] (आइ) और [aːu] (आउ) हो गए, पर संस्कृत मे ये [ai] (अइ) और [au] (अउ) हो गए।
  • प्रातिशाख्यस् का दावा है कि दंत्य व्यंजन वस्तुतः दाँतोँ की जड़ (दंतमूलीय) थे, पर बाद में पूर्ण दंत्य हो गए। इसमें [r] र भी है जो बाद में retroflex हो गया।
  • वैदिक में सुर का बड़ा महत्व था जो कभी भी शब्द का अर्थ बदल देता था और पाणिनि से पहले तक सुरक्षित था। आजकल, सुरभेद केवल पारंपरिक वैदिक में पाया जाता है, बजाय इसके संस्कृत एक राग भेदी भाषा है।
  • प्लुति स्वर या (त्रैमात्रिक स्वर) वैदिक में ध्वन्यात्मक थे पर संस्कृत में लुप्त हो गए।
  • वैदिक में दो समान स्वरोँ में संधि के दौरान विकार न होकर मूल ध्वनि सुरक्षित रहती है।

अवेस्ता की भाषा तथा ऋग्वेद की भाषा की तुलना[संपादित करें]

१९वीं शताब्दी में अवस्ताई फ़ारसी और ऋग्वैदिक भाषा दोनों पर पश्चिमी विद्वानों की नज़र नई-नई पड़ी थी और इन दोनों के गहरे सम्बन्ध का तथ्य उनके सामने जल्दी ही आ गया। उन्होने देखा के अवस्ताई फ़ारसी और ऋग्वैदिक भाषा के शब्दों में कुछ सरल नियमों के साथ एक से दुसरे को अनुवादित किया जा सकता था और व्याकरण की दृष्टि से यह दोनों बहुत नज़दीक थे। अपनी सन् १८९२ में प्रकाशित किताब "अवस्ताई व्याकरण की संस्कृत से तुलना और अवस्ताई वर्णमाला और उसका लिप्यन्तरण" में भाषावैज्ञानिक और विद्वान एब्राहम जैक्सन ने उदहारण के लिए एक अवस्ताई धार्मिक श्लोक का ऋग्वैदिक भाषा में सीधा अनुवाद किया।

मूल अवस्ताई वैदिक संस्कृत अनुवाद
तम अमवन्तम यज़तमसूरम दामोहु सविश्तममिथ़्रम यज़ाइ ज़ओथ़्राब्यो तम आमवन्तम यजतामशूरम धामेसु शाविष्ठममित्राम यजाइ होत्राभ्यः

संगठन[संपादित करें]

एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, वेद पहले एक संहिता में थे पर व्यास ऋषि ने अध्ययन की सुगमता के लिए इन्हें चार भागों में बाँट दिया। इस विभक्तीकरण के कारण ही उनका नाम वेद व्यास पड़ा। इनका विभाजन दो क्रम से किया जाता है -

  • (१) अष्टक क्रम - यह पुराना विभाजन क्रम है जिसमें संपूर्ण ऋक संहिता को आठ भागों (अष्टक) में बाँटा गया है। प्रत्येक अष्टक ८ अध्याय के हैं और हर अध्याय में कुछ वर्ग हैं। प्रत्येक अध्याय में कुछ ऋचाएँ (गेय मंत्र) हैं - सामान्यतः ५।
  • (२) मण्डल क्रम -ऋग्वेद के मंडल : इसके अतर्गत संपूर्ण संहिता १० मण्डलों में विभक्त हैं। प्रत्येक मण्डल में अनेक अनुवाक और प्रत्येक अनुवाक में अनेक सूक्त और प्रत्येक सूक्त में कई मंत्र (ऋचा)। कुल दसों मण्डल में ८५ अनुवाक और १०१७ सूक्त हैं। इसके अतिरिक्त ११ सूक्त बालखिल्य नाम से जाने जाते हैं।

ऋग्वेद के सूक्तों के पुरुष रचियताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ आदि प्रमुख हैं। सूक्तों के स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, शची, कांक्षावृत्ति, पौलोमी आदि प्रमुख हैं। ऋग्वेद के १० वें मंडल के ९५ सूक्त में पुरुरवा, ऐल और उर्वशी का संवाद है।

वेदों में किसी प्रकार की मिलावट न हो इसके लिए ऋषियों ने शब्दों तथा अक्षरों को गिन कर लिख दिया था। कात्यायन प्रभृति ऋषियों की अनुक्रमणी के अनुसार ऋचाओं की संख्या १०,५८०, शब्दों की संख्या १५३५२६ तथा शौनककृत अनुक्रमणी के अनुसार ४,३२,००० अक्षर हैं। शतपथ ब्राह्मण जैसे ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि प्रजापति कृत अक्षरों की संख्या १२००० बृहती थी। अर्थात १२००० गुणा ३६ यानि ४,३२,००० अक्षर। आज जो शाकल संहिता के रूप में ऋग्वेद उपलब्ध है उनमें केवल १०५५२ ऋचाएँ हैं।

ऋग्वेद में ऋचाओं का बाहुल्य होने के कारण इसे 'ज्ञान का वेद' कहा जाता है।

शाखाएँ[संपादित करें]

ऋग्वेद की जिन २१ शाखाओं का वर्णन मिलता है, उनमें से चरणव्युह ग्रंथ के अनुसार पाँच ही प्रमुख हैं-

१. शाकल, २. वाष्कल, ३. आश्वलायन, ४. शांखायन और ५. माण्डूकायन।

भाष्य[संपादित करें]

सबसे पुराना भाष्य (यानि टीका, समीक्षा) किसने लिखा यह कहना मुश्किल है पर सबसे प्रसिद्ध उपलब्द्ध प्राचीन भाष्य आचार्य सायण का है। आचार्य सायण से पूर्व के भाष्यकार अधिक गूढ़ भाष्य बना गए थे। यास्क ने ईसापूर्व पाँचवीं सदी में (अनुमानित) एक कोष लिखा था जिसमें वैदिक शब्दों के अर्थ दिए गए थे। लेकिन सायण ही एक ऐसे भाष्यकार हैं जिनके चारों वेदों के भाष्य मिलते हैं। ऋग्वेद के परिप्रेक्ष्य में क्रम से इन भाष्यकारों ने ऋग्वेद की टीका लिखी -

  • स्कन्द स्वामी - ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार वेदों का अर्थ समझने और समझाने की क्रिया कुमारिल-शंकर के समय शुरु हुई। स्कन्द स्वामी का काल भी यही माना जाता है - सन् ६२५ के आसपास। ऐसी प्रसिद्धि है कि शतपथ ब्राह्मण के भाष्यकार हरिस्वामी (सन् ६३८) को स्कन्द स्वामी ने अपना भाष्य पढ़ाया था। ऋग्वेद भाष्य के प्रथमाष्टक के अन्त में प्राप्त श्लोक से पता चलता है कि स्कन्द स्वामी गुजरात के वलभी के रहने वाले थे। इसमें प्रत्येक सूक्त के आरंभ में उस सूक्त के ऋषि-देवता और छन्द का उल्लेख किया गया है। साथ ही अन्य ग्रंथों से उद्धरण प्रस्तुत किया गया है। ऐसा माना जाता है कि स्क्न्द स्वामी ने प्रथम चार मंडल पर ही अपना भाष्य लिखा था, शेष भाग नारायण तथा उद्गीथ ने मिलकर पूरा किया था।
  • माधव भट्ट- प्रसिद्ध भाष्यकारों में माधव नाम के चार भाष्यकार हुए हैं। एक सामवेद भाष्यकार के रूप में ज्ञात हैं तो शेष तीन ऋक् के - लेकिन इन तीनों को सटीक पहचानना ऐतिहासिक रूप से संभव न हो पाया है। एक तो आचार्य सायण खुद हैं जिन्होंने अपने बड़े भाई माधव से प्रेरणा लेकर भाष्य लिखा और इसका नाम माधवीय भाष्य रखा। कुछ विद्वान वेंकट माधव को ही माधव समझते हैं पर ऐसा होना मुश्किल लगता है। वेंकट माधव नामक भाष्यकार की जो आंशिक ऋग्टीका मिलती है उससे प्रतीत होता है कि इनका वेद ज्ञान उच्च कोटि का था। इनके भाष्य का प्रभाव वेंकट माधव तथा स्कन्द स्वामी तक पर मिलता है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि इनका काल स्कन्द स्वामी से भी पहले था।
  • वेंकट माधव - इनका लिखा भाष्य बहुत संक्षिप्त है। इसमें न कोई व्याकरण संबंधी टिप्पणी है और न ही अन्य कोई टिप्पणी। इसमें एक विशेष बात यह है कि ब्राहमण ग्रंथों से सुन्दर रीति से प्रस्तुत प्रमाण।
  • धानुष्कयज्वा - विक्रम की १६वीं शती से पूर्व वेद् भाष्यकार धानुष्कयज्वा का उल्लेख मिलता है जिन्होंने तीन वेदों के भाष्य लिखे।
  • आनन्दतीर्थ - चौदहवीं सदी के मध्य में वैष्णवाचार्य आन्नदतीर्थ जी ने ऋग्वेद के कुछ मंत्रों पर अपना भाष्य लिखा है।
  • आत्मानन्द - ऋग्वेद भाष्य जहाँ सर्वदा यज्ञपरक और देवपरक मिलते हैं, इनके द्वारा लिखा भाष्य आध्यात्मिक लगता है।
  • सायण - ये मध्यकाल का लिखा सबसे विश्वसनीय, संपूर्ण और प्रभावकारी भाष्य है। विजयनगर के महाराज बुक्का (वुक्काराय) ने वेदों के भाष्य का कार्य अपने आध्यात्मिक गुरु और राजनीतिज्ञ अमात्य माधवाचार्य को सौंपा था। पमन्चु इस वृहत कार्य को छोड़कर उन्होंने अपने छोटे भाई सायण को ये दायित्व सौंप दिया। उन्होंने अपने विशाल ज्ञानकोश से इस टीका का न केवल सम्पादन किया बल्कि २४ वर्षों तक सेनापतित्व का दायित्व भी निभाया।

आधुनिक भाष्य तथा व्याख्या[संपादित करें]

आधुनिक कल में ऋग्वेद को समझने हेतु महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका" की रचना की गई। और उस भाष्य का फिर आगे सरल संस्कृत एवं हिन्दी में अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया। इसी प्रकार स्वामी जी ने यजुर्वेद का भी भाष्य लिखा। उन्होने अंधविश्वास मिटाने हेतु और सत्य विद्या को जन जन तक पहुँचने हेतु हिन्दी में " सत्यार्थ प्रकाश " नामक ग्रंथ की रचना की और आर्य समाज संस्था कि स्थापना की।

हिंदू धर्म में अभिग्रहण[संपादित करें]

श्रुति[संपादित करें]

संपूर्ण रूप से वेदों को हिंदू परंपरा में "श्रुति" के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसकी तुलना पश्चिमी धार्मिक परंपरा में दैवीय रहस्योद्घाटन की अवधारणा से की गई है, लेकिन स्टाल का तर्क है कि "यह कहीं नहीं कहा गया है कि वेद प्रकट हुआ था", और उस श्रुति का सीधा अर्थ है "जो सुना जाता है, इस अर्थ में कि यह से प्रसारित होता है पिता से पुत्र या शिक्षक से शिष्य तक"।[14]

हिंदू राष्ट्रवाद[संपादित करें]

इन्हें भी देखें: पौराणिक कालक्रम

ऋग्वेद एक हिंदू पहचान के आधुनिक निर्माण में एक भूमिका निभाता है, जिसमें हिंदुओं को भारत के मूल निवासियों के रूप में चित्रित किया गया है। ऋग्वेद को "स्वदेशी आर्यों" और भारत के बाहर सिद्धांत में संदर्भित किया गया है। ऋग्वेद को समसामयिक बताते हुए, या यहां तक कि सिंधु घाटी सभ्यता से भी पहले, एक तर्क दिया जाता है कि आईवीसी आर्य था, और ऋग्वेद का वाहक था।

अवेस्ता के साथ समानता[संपादित करें]

ऋग्वेद के तत्वों में पारसी धर्म के अवेस्ता के साथ समानता है;, उदाहरण के लिए: अहुरा से असुर,देवा डेवा से, अहुरा मज़्दा से हिंदू एकेश्वरवाद, वरुण, विष्णु और गरुड़, अग्नि से अग्नि मंदिर, स्वर्गीय रस सोमा - हाओमा नामक पेय से, समकालीन भारतीय और फारसी युद्ध से देवासुर का युद्ध, अरिया से आर्य, मिथरा से मित्र, द्यौष्पिता और ज़ीउस से बृहस्पति, यज्ञ से यज्ञ, नरिसंग से नरसंगसा, इंद्र, गंधर्व से गंधर्व, वज्र, वायु, मंत्र , यम, अहुति, हमता से सुमति इत्यादि।[15][16]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • ऋग्वेद संहिता
  • वैदिक साहित्य
  • यजुर्वेद
  • सामवेद
  • अथर्ववेद
  • वैदिक काल
  • वैदिक धर्म
  • वैदिक संस्कृति
  • वैदिक कला
  • वैदिक संस्कृत
  • ऋचा
  • सर्वानुक्रमणी

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. https://hi.quora.com/%E0%A4%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82
  2. "WHO IS AHINDU? How 'breaking India' started".
  3. Stephanie W. Jamison; Joel Brereton (2014). The Rigveda: 3-Volume Set. Oxford University Press. पृ॰ 3. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-972078-1.
  4. Edwin F. Bryant (2015). The Yoga Sutras of Patañjali: A New Edition, Translation, and Commentary. Farrar, Straus and Giroux. पपृ॰ 565&nbsp, – 566. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4299-9598-6.
  5. Edgar Polome (2010). Per Sture Ureland (संपा॰). Entstehung von Sprachen und Völkern: glotto- und ethnogenetische Aspekte europäischer Sprachen. Walter de Gruyter. पृ॰ 51. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-11-163373-2.
  6. Wood 2007.
  7. Hexam 2011, पृ॰ chapter 8.
  8. Dwyer 2013.
  9. "View: How Rig Veda speaks of aspiration and collaboration".
  10. साँचा:Harvcolnb (tr. Shrotri), p. 14 "The Vedic diction has a great number of favourite expressions which are common with the Avestic, though not with later Indian diction. In addition, there is a close resemblance between them in metrical form, in fact, in their overall poetic character. If it is noticed that whole Avesta verses can be easily translated into the Vedic alone by virtue of comparative phonetics, then this may often give, not only correct Vedic words and phrases, but also the verses, out of which the soul of Vedic poetry appears to speak."
  11. साँचा:Harvcolnb "The oldest part of the Avesta... is linguistically and culturally very close to the material preserved in the Rigveda... There seems to be economic and religious interaction and perhaps rivalry operating here, which justifies scholars in placing the Vedic and Avestan worlds in close chronological, geographical and cultural proximity to each other not far removed from a joint Indo-Iranian period."
  12. साँचा:Harvcolnb p. 36 "Probably the least-contested observation concerning the various Indo-European dialects is that those languages grouped together as Indic and Iranian show such remarkable similarities with one another that we can confidently posit a period of Indo-Iranian unity..."
  13. The Celestial Key to the Vedas: Discovering the Origins of the World's oldest civilization. B. G. Sidharth. 1999. astronomer B. G. Sidharth proves conclusively that the earliest portions of the Rig Veda can be dated as far back as 10,000 b.c.
  14. Frits Staal (2009), Discovering the Vedas: Origins, Mantras, Rituals, Insights, Penguin, ISBN 978-0-14-309986-4, pp. xv – xvi
  15. Muesse, Mark W. (2011). The Hindu Traditions: A Concise Introduction (अंग्रेज़ी में). Fortress Press. पृ॰ 30-38. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4514-1400-4. अभिगमन तिथि 21 January 2021.
  16. Griswold, H. D.; Griswold, Hervey De Witt (1971). The Religion of the Ṛigveda. Motilal Banarsidass Publishe. पृ॰ 1-21. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-0745-7. अभिगमन तिथि 21 January 2021.

बाहरी कडियाँ[संपादित करें]

  • हिंदी में पढ़े सभी अध्याय ऋग्वेद के
  • ऋग्वेद (संस्कृत) (विकिस्रोत)
  • ऋग्वेद, हिन्दी अर्थ सहित
  • वेद-पुराण - यहाँ चारों वेद एवं दस से अधिक पुराण हिन्दी अर्थ सहित उपलब्ध हैं। पुराणों को यहाँ सुना भी जा सकता है।
  • महर्षि प्रबंधन विश्वविद्यालय - यहाँ सम्पूर्ण वैदिक साहित्य संस्कृत में उपलब्ध है।
  • ज्ञानामृतम् - वेद, अरण्यक, उपनिषद् आदि पर सम्यक जानकारी
  • वेद एवं वेदांग - आर्य समाज, जामनगर के जालघर पर सभी वेद एवं उनके भाष्य दिये हुए हैं।
  • जिनका उदेश्य है - वेद प्रचार[मृत कड़ियाँ]
  • वेद-विद्या_डॉट_कॉम
  • ऋग्वेद और सामवेद डाउनलोड करें (गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय)
  • Why Read Rig Veda
  • ऋग्वेद काल


सन्दर्भ त्रुटि: "note" नामक सन्दर्भ-समूह के लिए <ref> टैग मौजूद हैं, परन्तु समूह के लिए कोई <references group="note"/> टैग नहीं मिला। यह भी संभव है कि कोई समाप्ति </ref> टैग गायब है।

दुनिया का सबसे बड़ा वेद कौन सा है?

ऋग्वेद ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है।

सर्वाधिक लोकप्रिय वेद कौन सा है?

ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीनतम धर्मग्रन्थ है। सनातन धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत है। इसमें १० मण्डल, १०२८ सूक्त और वर्तमान में १०,४६२ मन्त्र हैं, मन्त्र संख्या के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है।

सबसे बड़ा वेद इन सभी में से कौन सा वेद है?

सबसे बड़ा वेद ऋग्वेद है । ऋग्वेद में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है ।

ऋग्वेद का दूसरा नाम क्या है?

ऋग्वेद की संहिता को 'ऋकसंहिता' कहते हैं। वस्तुत: 'ऋक' का अर्थ है- 'स्तुतिपरक मन्त्र और 'संहिता' का अभिप्राय संकलन से है। अत: ऋचाओं के संकलन का नाम 'ऋकसंहिता' है।