पतझर में टूटी पत्तियाँ Class 10 Hindi Lesson Summary, Explanation, Question Answers (पतझर में टूटी पत्तियाँ) पतझर में टूटी पत्तियाँ summary of CBSE Class 10 Hindi Lesson with detailed explanation of the lesson ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given below Show
Author Introduction (लेखक परिचय)लेखक – रविंद्र केलेकर Chapter Introduction for पतझर में टूटी पत्तियाँ पाठ प्रवेशऐसा माना जाता है कि कम शब्दों में अधिक बात कहना एक कविता का सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है। जब कभी इस गुण का प्रयोग कवियों के साथ-साथ लेखक भी करे अर्थात जब कभी कविताओं के साथ-साथ गद्य में भी इस गुण (कम शब्दों में अधिक बात कहने) का प्रयोग हो, तो उस गद्य को पढ़ने वाले को यह मुहावरा याद आ ही जाता है – ‘सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय’ अर्थात सही और सार्थक (जिनका कोई अर्थ हो)शब्दों का प्रयोग करके और निरर्थक (जिनका कहीं कोई अर्थ न हो) शब्दों का प्रयाग नहीं करना चाहिए। आसान शब्दों का प्रयोग करना और कम शब्दों में अधिक शब्दों का अर्थ निकलने वाले वाक्यों का प्रयोग करना बहुत कठिन कम है। फिर भी लेखक इस काम को करते आए हैं। सूक्ति कथाएँ, आगम कथाएँ, जातक कथाएँ, पंचतंत्र की कहानियाँ इसी तरह से लिखी गई कथाएँ और कहानियाँ हैं। यही काम प्रस्तुत पाठ के लेखक रविंद्र केलेकर ने भी किया है। दूसरा प्रसंग (झेन की देन) बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिन भर के कामों के बीच भी कुछ चैन भरे या सुकून के पल हासिल कर ही लेते हैं। पतझर में टूटी पत्तियाँ Summary Class 10 Hindi Chapter – पाठ सारलेखक ने प्रस्तुत पाठ में जो प्रसंग प्रस्तुत किए हैं, उनमें पहले प्रसंग (गिन्नी का सोना) जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगो से परिचित करवाता है जो इस संसार को सब के लिए जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं। पतझर में टूटी पत्तियाँ Chapter Explanation पाठ व्याख्याप्रसंग 1- गिन्नी का सोनाशुद्ध सोना अलग है और गिन्नी सोना अलग। गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया हुआ होता है, इसलिए वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मज़बूत भी होता है। औरतें अकसर इसी सोने के गहने बनवा लेती हैं।
गिन्नी – सिक्का (यहाँ लेखक यह बताना चाहते हैं कि किस तरह लोग अपने चरित्र में बनावटी पन लाते हैं) लेखक कहते हैं कि शुद्ध सोने में और सोने के सिक्के में बहुत फर्क होता है। जो सोने का सिक्का होता है उसमें थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है, जिस कारण उसमें शुद्ध सोने से अधिक चमक आ जाती है और यह शुद्ध सोने से ज्यादा अधिक मज़बूत भी होता है। औरतें अकसर उन्हीं सोने के सिक्कों के गहनें बनवाती हैं। चाहे औरतें इस सोने के सिक्के के गहने बनवाती हों परन्तु होता तो यह सोने का सिक्का ही है कोई शुद्ध सोना नहीं। लेखक कहते हैं कि किसी व्यक्ति का उच्च चरित्र भी शुद्ध सोने की तरह होता है उसमें कोई मिलावट नहीं होती। उसमें चमक नहीं होती जिस वजह से व्यक्ति शुद्ध चरित्र को शुद्ध सोने की तरह कम प्रयोग में लाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने चरित्र में ताँबा अर्थात मिलावटी व्यवहार मिला देते हैं और लोगो के बीच अपने आप को अच्छा साबित कर देते हैं। उन्ही लोगों को सभी लोग व्यावहारिक आदर्शवादी कह कर उनका गुणगान करते हैं। ये बात न भूलें कि बखान आदर्शों का नहीं होता, बल्कि व्यावहारिकता का होता है। और जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझबूझ ही आने लगती है। सोना पीछे रहकर ताँबा ही आगे आता है। सूझबूझ – सोचने समझने की शक्ति लेखक हम सभी को ये बताना चाहते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है। और जब किसी के व्यवहार का वर्णन होना शुरू होता है तो जिन्हें व्यावहारिक आदर्शवादी लोग समझते हैं उन आदर्शवादी लोगों के जीवन से आदर्श व्यावहारिक वर्णन के कारण कम होने लगते हैं और उनकी सोचने की शक्ति बढ़ने लगती है। कुछ लोग कहते हैं कि गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। वरना वे हवा में ही उड़ते रहते अर्थात उनके पास धन-दौलत, शिक्षा सब कुछ था उन्हें किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं थी। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। हाँ, पर गाँधी जी कभी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे। बल्कि व्यवहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाते थे। वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। सजग – सतर्क, सावधान हिसाब – लेखा-जोखा (लेखक ने यहाँ व्यवहारवादी लोगों के बारे में वर्णन किया है) लेखक कहते हैं कि गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे । बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यव्हार में आदर्शों को मिलाते थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बढ़े। जो लोग केवल अपने व्यवहार पर ही ध्यान देते हैं, केवल वैज्ञानिक ढंग से ही सोचते हैं, वे व्यवहारवादी लोग कहे जाते हैं और ये लोग हमेशा चौकन्ने रहते हैं कि कहीं इनसे कोई ऐसा काम न हो जाए जिसके कारण इनको हानि उठानी पड़े। वे अपने जीवन में बहुत सफल होते हैं, दूसरों से आगे भी बढ़ जाते हैं, पर क्या वे लोग सही मायने में आगे बढ़ते हैं या इज़्ज़त हासिल करते हैं ? सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं । उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक्सान हो रहा हो। प्रसंग 2 – झेन की देनजापान में मैंने अपने एक मित्र से पूछा, “यहाँ के लोगों को कौन सी बीमारियाँ अधिक होती हैं ?” “मानसिक”, उसने जवाब दिया,”यहाँ के अस्सी फीसदी लोग मनोरुग्ण हैं।” फीसदी – प्रतिशत मनोरुग्ण – मानसिक रोग /मानसिक बिमारी लेखक ने जापान के अपने एक मित्र से पूछा कि वहाँ के लोगों को सबसे अधिक कौन सी बीमारियाँ होती है । इस पर लेखक के मित्र में जवाब दिया कि जापान के लोगों को सबसे अधिक मानसिक बीमारी का शिकार होना पड़ता है। जापान के अस्सी प्रतिशत लोग मानसिक बिमारी से ग्रस्त हैं। लेखक के इस मानसिक बिमारी के इतना अधिक होने की वजह पूछने पर लेखक के मित्र ने उत्तर दिया कि उनके जीवन की तेजी औरों से अधिक है। जापान में कोई आराम से नहीं चलता ,बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। जापान में कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता ,वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। वैसे भी दिमाग हमेशा तेज ही रहता है और अगर उसमें स्पीड का इंजन लगा दिया जाए तो उसकी राफ्तार में कई हज़ार गुना तेजी आ सकती है और वह दौड़ने लगता है। फिर एक समय ऐसा भी आता है जब दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगो में मानसिक बिमारी इतनी अधिक फैल गई है। शाम को वह मुझे एक ‘टी-सेरेमनी’ में ले गए। चाय पीने की यह एक विधि है। जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं। टी-सेरेमनी – जापान में चाय पिने का विशेष आयोजन चानीज़ – जापानी विधि में चाय पिलाने वालागरिमापूर्ण – सलीके सेभंगिमा – मुद्राजयजयवंती – एक राग का नामखदबदाना – उबलना(यहाँ लेखक जापान की चाय पिने की विशेष विधि का वर्णन कर रहे हैं) लेखक कहते हैं कि एक शाम को उनका जापानी दोस्त उन्हें जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन में ले गया। जापान में चाय पिने की इस विधि को चा-नो-यू कहा जाता है। लेखक और उनका मित्र चाय पिने के आयोजन के लिए जहाँ गए थे वह एक छः मंजिल की इमारत थी । उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक बरतन था, जिसमें पानी भरा हुआ था। लेखक और उनके मित्र ने उस पानी से हाथ-पाँव धोए और तौलिए से हाथ-पाँव पोंछ कर अंदर गए। अंदर चाय देने वाला एक व्यक्ति था जिसे चानीज कहा जाता है। वह लेखक और उनके मित्र को देखकर खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने लेखक और उनके दोस्त को प्रणाम किया। उसने दो… झो..अर्थात आइए, तशरीफ़ लाइए ऐसा कह कर उनका स्वागत किया। उसने उन्हें बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए। ये सारा काम उस व्यक्ति ने बड़े ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी।चाय तैयार हुई। उसने वह प्यालों में भरी। फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए गए। वहाँ हम तीन मित्र ही थे। इस विधि में शांति मुख्य बात होती है। इसलिए वहाँ तीन से अधिक आदमियों को प्रवेश नहीं दिया जाता। प्याले में दो घूँट से अधिक चाय नहीं थी। हम ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पीते रहे। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहा। पहले दस-पंद्रह मिनट तो मैं उलझन में पड़ा। फिर देखा दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती जा रही है। थोड़ी देर में बिलकुल बंद भी हो गई। मुझे लगा, मानो अनंतकाल में मैं जी रहा हूँ। यहाँ तक की सन्नाटा भी मुझे सुनाई देने लगा। चुसकी – होंठों से कोई तरल पदार्थ थोड़ा-थोड़ा तथा धीरे-धीरे करके पीने की क्रिया का भाव (यहाँ लेखक जापान के चाय पिने के समारोह में अपना पहला अनुभव व्यक्त कर रहा है) लेखक कहते हैं कि चाय बनाने वाले ने चाय तैयार की। उसने चाय को प्यालों में भरा और फिर उन प्यालों को लेखक और उनके मित्रों के सामने रख दिया। वहाँ लेखक और उनके मित्रों के अलावा कोई नहीं था वे केवल तीन ही व्यक्ति थे। जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता। उन चाय के प्यालों में दो-दो घूँट से ज्यादा चाय नहीं थी। लेखक और उनके मित्र प्यालों को अपने होठों से लगा कर एक-एक बूँद चाय पी रहे थे। लेखक कहते हैं कि वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। लेखक को लगा जैसे वह कभी न ख़त्म होने वाले समय में जी रहा है। यहाँ तक की लेखक का मन इतना शांत हो गया था की बाहर की शांति भी शोर लग रही थी। अकसर हम या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यकाल में। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है। हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है, वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते उस दिन मेरे दिमाग से भूत-भविष्य दोनों काल उड़ गए थे। केवल वर्तमान क्षण सामने था। और वह अनंतकाल जितना विस्तृत था। मिथ्या – झूठ लेखक हमें बताना चाहते हैं कि हम लोग या तो बीते हुए दिनों की अच्छी-बुरी यादों में उलझ कर रह जाते हैं या फिर आने वाले समय के बारे में सपने देखने लगते हैं। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। वो इसलिए क्योंकि एक बीत चूका होता है और दूसरा अभी आया भी नहीं होता। तो बात आती है कि सच क्या है तो लेखक कहते हैं कि जो समय अभी चल रहा है वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। पतझर में टूटी पत्तियाँ Question Answers प्रश्न अभ्यास(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए – उत्तर – शुद्ध सोने में चमक होती है और आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह चमकदार और महत्वपूर्ण मूल्यों से भरा होता है। ताँबे से सोना मजबूत तो होता है परन्तु उसकी शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यवहारिकता के कारण आदर्श समाप्त हो जाते हैं परन्तु यदि सही ढंग से व्यवहारिकता और आदर्शों को मिलाया जाये तो जीवन में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। (2) प्रश्न ii – चानीज ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी की? उत्तर – लेखक और उनके मित्र को देखकर चानीज खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए। ये सारा काम चानीज ने बड़े ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो। प्रश्न iii – ‘टी-सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों ? उत्तर – जापान में ‘टी-सेरेमनी’ समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता। प्रश्न iv – चाय पिने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया ? उत्तर – लेखक कहते हैं कि वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। लेखक को लगा जैसे वह कभी न ख़त्म होने वाले समय में जी रहा है। यहाँ तक की लेखक का मन इतना शांत हो गया था की बाहर की शांति भी शोर लग रही थी। (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50- 60 शब्दों में) लिखिए – उत्तर – गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। यह बात उनके अहिंसात्मक आंदोलन उसे स्पष्ट हो जाती है। वह अकेले चलते थे और लाखों में उनके पीछे हो जाते थे। नमक का कानून तोड़ने के लिए जब उन्होंने जनता का आह्वान किया तो उनके नेतृत्व में हजारों लोग उनके साथ पैदल ही दांडी यात्रा पर निकल पड़े थे । इसी प्रकार से असहयोग आंदोलन के समय भी उनकी एक आवाज़ पर देश के हजारों नौजवान अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके नेतृत्व में आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े थे। प्रश्न ii – आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं ? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए। उत्तर – हमारे विचार से – सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, भाईचारा, त्याग, परोपकार, मीठी वाणी, मानवीयता इत्यादि ये मूल्य शाश्वत हैं। वर्तमान समाज में इन मूल्यों की प्रासंगिकता अर्थात महत्व बहुत अधिक है। जहाँ- जहाँ और जब-जब इन मूल्यों का पालन नहीं किया गया है वहाँ तब-तब समाज का नैतिक पतन हुआ है। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। प्रश्न iii – ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना ‘,गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के सन्दर्भ में यह बात किस तरह झलकती है ? स्पष्ट कीजिए। उत्तर – गांधीजी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे आदर्शों को ऊंचाई तक ले कर जाते थे अर्थात वे सोने में ताँबा मिलकर उसकी कीमत कम नहीं करते थे, बल्कि ताँबे में सोना मिलकर उसकी कीमत बड़ा देते थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे। बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यव्हार में आदर्शों को मिलते थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बड़े। प्रश्न iv – ‘गिरगिट’ कहानी में अपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमेसे जीवन में किसका महत्त्व है ? उत्तर – ‘गिरगिट’ कहानी में स्वार्थी इंस्पेक्टर समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल बदलता है। वह अवसर के साथ-साथ जहाँ उसका लाभ हो रहा हो वहाँ उसी के अनुसार अपना व्यवहार बदलता है। ‘गिन्नी का सोना’ कहानी में इस बात पर बल दिया गया है कि आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। उनमे व्यवहारिकता का गुण मिलाकर उन्हें और भी अधिक मजबूत किया जा सकता है। समाज में देखा गया है कि व्यवहारवादी लोग आदर्शवादी लोगो से बहुत आगे तो बढ़ जाते हैं परन्तु वे अपने जीवन के नैतिक मूल्यों को पीछे छोड़ देते हैं और स्वार्थी हो जाते हैं। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक्सान हो रहा हो। (2) प्रश्न vi – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए ?आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं? उत्तर – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण जब दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगो में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। हम इन कारणों से पूरी तरह सहमत हैं। प्रश्न vii – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए। उत्तर – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। वो इसलिए क्योंकि एक बीत चूका होता है और दूसरा अभी आया भी नहीं होता। तो बात आती है कि सच क्या है तो इस बात पर लेखक कहते हैं कि जो समय अभी चल रहा है वही सच है। (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए – उत्तर – हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं। खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक्सान हो रहा हो। (ii) जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझबूझ ही आने लगती है। उत्तर – जब किसी के व्यवहार का वर्णन होना शुरू होता है तो जिन्हें व्यावहारिक आदर्शवादी लोग समझते हैं उन व्यावहारिक आदर्शवादी लोगों के जीवन से आदर्श व्यावहारिक वर्णन के कारण कम होने लगते हैं क्योंकि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है। और आदर्शों के कम होते ही सोचने की शक्ति बढ़ने लगती है। (2) (iii) जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं। उत्तर -जापान के लोगों के जीवन की तेजी औरों से अधिक है। जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। जापान में कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। (iv) सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों। उत्तर – जापान में चाय बनाने वाले को चानीज कहते हैं और उसने लेखक और उनके मित्रों के स्वागत से ले कर चाय परोसने तक का सारा काम इतने ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी। NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँपाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास मौखिक निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए- प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. लिखित (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए- प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए- प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
उत्तर- प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए- प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. भाषा अध्ययन प्रश्न 1. प्रश्न 2.
उत्तर-
प्रश्न 3.
उत्तर-
प्रश्न 4. ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना” का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना” का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए- प्रश्न 5. प्रश्न 6. योग्यता विस्तार प्रश्न 1. प्रश्न 2. परियोजना कार्य प्रश्न 1. अन्य पाठेतर हल प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. ख टी सेरेमनी से क्या क्या लाभ हैं स्पष्ट कीजिए?पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोग की चर्चा करते हुए वहाँ की 'टी-सेरेमनी' के माध्यम से मानसिक तनाव से मुक्त होने का संकेत करते हुए यह संदेश दिया है कि अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना।
टी सेरेमनी से क्या तात्पर्य है इसकी विधि का उल्लेख कीजिए?Explanation: जापान में चाय पीने की विधि का नाम 'टी-सेरेमनी' है, जिसमें शांति को प्रमुखता दी जाती है। चाय बनाने और पीने का यह काम अत्यंत शांतिपूर्ण वातावरण में होता है। (क) अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी।
टी सेरेमनी में चाय किस तरह पी जाती है इससे क्या लाभ होता है?Solution : जापानी में चाय पीने की विधि को "चा-नो-यू” कहते हैं जिसका अर्थ होता है-"टी-सेरेमनी" और चाय पिलाने वाला "चाजीन" कहलाता है। जहाँ चाय पिलाई जाती है, वहाँ की सजावट पारम्परिक होती है और इस स्थान में केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं। यहाँ अत्यन्त शांति और गरिमा के साथ-साथ चाय पिलाई जाती हैं।
टी सेरेमनी को क्या कहा जाता है?जापानी में चाय पीने की विधि, जिसे टी सेरेमनी कहा गया है, चा-नो-यू कहते हैं।
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