राष्ट्रपति ने कहा कि हिमचाल प्रदेश के अभी करीब 1.20 लाख जवान देश के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘रक्षा बल का प्रमुख होने के नाते, मैं देश की सेवा करने वाले, हिमाचल प्रदेश के बहादुर सैनिकों को सलाम करता हूं.’राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) ने हिमाचल विधानसभा (himachal vidha sabha) के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए सशस्त्र बलों में हिमाचल प्रदेश के लोगों के योगदान की सराहना की. इस दौरान राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि वह देश की सेवा करने वाले ‘राज्य के बहादुर सैनिकों को सलाम करते हैं.’ उन्होंने कहा कि मेजर सोमनाथ शर्मा परमवीर चक्र पाने वाले राज्य के पहले जवान थे. दरअसल राष्ट्रपति ने यह बात हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिए जाने की स्वर्ण जयंती के मौके पर बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र में शुक्रवार को कही है. Show
यह स्वर्ण जयंती 25 जनवरी 2021 को थी, लेकिन कोविड-19 के बढ़ते मामलों के मद्देनजर तब यह विशेष सत्र स्थगित कर दिया गया था. राज्य में पूरे वर्ष स्वर्ण जयंती का जश्न मनाया जाएगा. ‘हिमाचल प्रदेश के बहादुर सैनिकों को सलाम करता हूं’राष्ट्रपति ने कहा कि हिमचाल प्रदेश के अभी करीब 1.20 लाख जवान देश के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘रक्षा बल का प्रमुख होने के नाते, मैं देश की सेवा करने वाले, हिमाचल प्रदेश के बहादुर सैनिकों को सलाम करता हूं.’ पूर्व मुख्यमंत्रियों ने प्रदेश के विकास में दिया अहम योगदानमहामहिम कोविंद ने कहा कि यशवंत सिंह परमार, पंडित पदम देव जैसी शख्सियतों ने प्रदेश की आजादी के संघर्ष को मुकाम तक पहुंचाया. प्रथम मतदाता श्याम सरण नेगी का भी जिक्र किया. राष्ट्रपति ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्रियों यशवंत सिंह परमार, ठाकुर राम लाल, शांता कुमार, वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल ने प्रदेश के विकास में अहम भूमिका निभाई है. कोरोना की लड़ाई में हिमाचल चैंपियन बनकर आया सामनेराष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि प्रदेश ने शत-प्रतिशत आबादी को कोविड वैक्सीन की पहली डोज लगाने का कीर्तिमान स्थापित किया है. कोरोना की लड़ाई में प्रदेश चैंपियन बनकर सामने आया है. राष्ट्रपति कोविंद ने सदन में आह्वान किया कि हिमाचल एक दिन देश का सिरमौर बने. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा, कारगिल शहीद कैप्टन ब्रिकम बतरा को भी याद किया. वहीं अटल टनल रोहतांग का जिक्र करते हुए महामहिम कोविंद ने कहा कि इससे मनाली-लेह की दूरी कम हुई है. वहीं सेना को सालभर बॉर्डर तक रसद ले जाने में अब दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है. अटल टनल के बनने से लाहौल के लोगों का जीवन भी आसान हो गया है. ये भी पढ़ें- Manali Leh-Highway: मनाली-लेह राजमार्ग पर नेहरू कुंड के पास भारी भूस्खलन, कई घंटों से फंसे यात्री, लगा लंबा जाम ये भी पढ़ें- PM Modi Birthday: पीएम मोदी के जन्मदिन को खास बनाने में जुटे तमाम BJP नेता, अनुराग ठाकुर ने रवाना की 15 मोबाइल मेडिकल यूनिट दौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बन गई हैं. 25 जुलाई सोमवार को उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली. देशभर के लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं. इस बीच आजतक से बातचीत करते हुए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि अब तक बहुत से प्रधानमंत्री रहे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी का काम करने का तरीका अलग है. वह अलग हटकर सोचते और करते हैं. इसका उदाहरण हमारे सामने है. पहले रामनाथ कोविंद और अब द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने का सोचा गया. देखें सीएम जयराम ठाकुर से खास बातचीत.हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास उस समय में ले जाता है जब सिन्धु घाटी सभ्यता विकसित हुई। इस बात की सत्यता के प्रमाण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में हुई खुदाई में प्राप्त सामग्रियों से मिलते हैं। प्राचीनकाल में इस प्रदेश के आदि निवासी दास, दस्यु और निषाद के नाम से जाने जाते थे। उन्नीसवीं शताब्दी में रणजीत सिंह ने इस क्षेत्र के अनेक भागों को अपने राज्य में मिला लिया। जब अंग्रेज यहां आए, तो उन्होंने गोरखा लोगों को पराजित करके कुछ राजाओं की रियासतों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।[1]
1945 ई. तक प्रदेश भर में प्रजा मंडलों का गठन हो चुका था। 1946 ई. में सभी प्रजा मंडलों को एचएचएसआरसी में शामिल कर लिया तथा मुख्यालय मंडी में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिव नंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया। एचएचएसआरसी के नाहन में 1946 ई. में चुनाव हुए, जिसमें यशवंत सिंह परमार को अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 1947 ई. में राजा दुर्गा चंद (बघाट) की अध्यक्षता में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन की स्थापना की गई।
1950 ई. में प्रदेश के पुनर्गठन के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उपतहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उपतहसील में मिला गया। उत्तर प्रदेश के दो गांव संसोग और भटाड़ जो देवघर खत में थे उन्हें जुब्बल तहसील में शामिल कर दिया गया। पंजाब के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल गए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी (पंजाब) के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया।
बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में प्रदेश से अलग रखा गया था। उन दिनों इस क्षेत्र में भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चलाने के कारण इसे प्रदेश में अलग रखा गया। एक जुलाई, 1954 ई. को कहलूर रियासत को प्रदेश में शामिल करके इसे बिलासपुर का नाम दिया गया। उस समय बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गईं। यह प्रदेश का पांचवां जिला बना। 1954 में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी.हो गया। एक मई, 1960 को छठे जिला के रूप में किन्नौर का निर्माण किया गया। इस जिला में महासू जिला की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील को 14 गांव शामिल गए गए। इसकी तीन तहसीलें कल्पा, निचार और पूह बनाई गईं। वर्ष 1966 में पंजाब का पुनर्गठन किया गया तथा पंजाब व हरियाणा दो राज्य बना दिए गए। भाषा तथा तिहाड़ी क्षेत्र के पंजाब से लेकर हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिए गए। संजौली, भराड़ी, कुसुमपटी आदि क्षेत्र जो पहले पंजाब में थे तथा नालागढ़ आदि जो पंजाब में थे, उन्हें पुनः हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिया गया। सन 1966 में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि॰मी॰ हो गया। हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा २५ जनवरी १९७१ को मिला। 25 जनवरी 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला आकर ऐतिहासिक रिज मैदान पर भारी बर्फबारी के बीच हिमाचल वासियों के समक्ष हिमाचल प्रदेश का १८ वें राज्य के रूप में उद्घाटन किया। 1 नवम्बर 1972 को कांगड़ा ज़िले के तीन ज़िले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बनाए गए। महासू ज़िला के क्षेत्रों में से सोलन ज़िला बनाया गया। राज्य सरकार और मुख्यमंत्री[संपादित करें]डा. यशवंत सिंह परमार वर्ष 1976 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद ठाकुर राम लाल मुख्यमंत्री बने और प्रदेश बागडोर संभाली। वर्ष 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी चुनाव जीती और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1980 में ठाकुर राम लाल फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए। 8 अप्रैल 1983 को उनके स्थान पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को बनाया गया। 1985 के चुनाव में वीरभद्र सिंह नेतृत्व में कांग्रेस (ई) पार्टी को भारी बहुमत मिला। और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। 1990 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार दुबारा मुख्यमंत्री बनाया गया। 15 दिसम्बर 1992 को राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा भाजपा सरकार और विधानसभा को भंग कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। प्रदेश में दुबारा चुनाव कराए गए और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 1998 के चुनाव में सता भाजपा के हाथ चली गई। और प्रेम कुमार धूमल को पहली बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री फिर से वीरभद्र सिंह को मनाया गया। वर्ष 2007 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल बने। नवम्बर २०१२ में हिमाचल प्रदेश की हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए हुआ चुनाव था। कांग्रेस ने इस चुनाव में जीत हासिल की। ६८ सीटो में से ३६ सीट जीत कर कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए। नवम्बर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य का विधानसभा चुनाव प्रो० प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में लड़ा। 18 दिसम्बर 2017 को घोषित नतीजों में धूमल की हार के बाद केन्द्रीय नेतृत्व ने हिमाचल की बागडोर मण्डी ज़िला के सराज विधानसभा क्षेत्र से पांच बार रहे विधायक जयराम ठाकुर को सौंपी। हिमाचल के इतिहास में यह पहली बार है जब मण्डी ज़िले से कोई मुख्यमंत्री बना है। हिमाचल के प्रथम राष्ट्रपति कौन है?हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूची. हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन कब लागू हुआ?15 दिसम्बर 1992 को राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा भाजपा सरकार और विधानसभा को भंग कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।
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