NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15 नौकर Show
NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15 नौकर These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15 नौकर Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts. नौकर NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15Class 6 Hindi Chapter 15 नौकर Textbook Questions and Answersनिबंध से x प्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. निबंध से आगे प्रश्न 1. प्रश्न 2. अब यह देखो कि कौन सबसे ज़्यादा काम करता है और कौन सबसे कम। कामों का बराबर बँटवारा हो सके, इसके लिए तुम क्या कर सकते हो ? सोच कर शिक्षक को बताओ। अनुमान और कल्पना प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. भाषा की बात प्रश्न 1. (ख) हर काम-धंधे और हर क्षेत्र की अपनी अलग भाषा और शब्द-भंडार होता है। ऊपर लिखे शब्दों का संबंध दो अलग-अलग कामों से है। पहचानो कि वे क्षेत्र कौन-से हैं। प्रश्न 2. प्रश्न 3. महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. आश्रम में गाँधी कई ऐसे काम भी करते थे जिन्हें आमतौर पर नौकर-चाकर करते हैं। जिस जमाने में वह बैरिस्टरी से हजारों रुपये कमाते थे, उस समय भी वह प्रतिदिन सुबह अपने हाथ से चक्की से आटा पीसा करते थे। चक्की चलाने में कस्तूरबा और उनके लड़के भी हाथ बँटाते थे। इस प्रकार घर में रोटी बनाने के लिए महीन या मोटा आटा वे खुद पीस लेते थे। साबरमती आश्रम में भी गाँधी ने पिसाई का काम जारी रखा। वह चक्की को ठीक करने में कभी-कभी घंटों मेहनत करते थे। प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘नौकर’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘अनुबंधोपाध्याय’ जी हैं। उन्होंने यहाँ गाँधी जी के जीवन पर प्रकाश डाला है। व्याख्या- साबरमती आश्रम में रहते हुए गाँधी जी अपने सारे काम स्वयं करते थे। नौकर-चाकरों द्वारा करने वाले काम भी वे खुद ही कर लेते थे। गाँधी जी वकालत करके हजारों रुपये कमाते थे फिर भी वे अपने हाथ से चक्की चलाकर पीसा करते थे। वे अपने प्रत्येक कार्य के लिए समय निकाल लिया करते थे। चक्की चलाने में उनकी पत्नी कस्तूरबा एवं उनके पुत्र भी उनकी सहायता किया करते थे। उन्हें जैसे भी आटे की आवश्यकता होती थी, चाहे मोटा या बारीक वे खुद ही पीस लिया करते थे। साबरमती आश्रम में उन्होंने पिसाई का कार्य सुचारू रूप से जारी रखा। चक्की को पूरी तरह से ठीक करके ही वे आटा पीसते थे भले ही उसमें उनको घंटों लग जाएँ। 2. गाँधी दूसरों से काम लेने में बहुत सख्त थे, लेकिन अपने लिए दूसरों से काम कराना उन्हें नापसंद था। एक बार एक राजनीतिक सम्मेलन से गाँधी जब अपने डेरे पर लौटे तो रात हो गई थी। सोने से पहले वह अपने कमरे का फर्श बुहार रहे थे। उस समय रात के दस बजे थे। एक कार्यकर्ता ने दौड़कर गाँधी के हाथ से बुहारी ले ली। उनको यह पसंद नहीं था। प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘नौकर’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘अनुबंधोपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ गाँधी जी के सामाजिक जीवन के बारे में बताया है। व्याख्या- गाँधी जी अपना काम स्वयं करने में ही विश्वास रखते थे वे दूसरों से अपना काम करवाने के बहुत सख्त खिलाफ थे। उनको यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था। एक बार किसी राजनैतिक सम्मेलन से अपने डेरे पर लौटते समय गाँधी जी को पहुँचने में देर हो गई। वे रात को ही अपने हाथ में झाडू लेकर सफाई का कार्य करने लगे। एक कार्यकर्ता ने उनको जब झाडू लगाते देखा तो उसने उनके हाथ से झाडू लेनी चाही परन्तु गाँधी जी को तो अपने काम आप ही करने अच्छे लगते थे। नौकर Summaryपाठ का सार साबरमती आश्रम में रहते हुए भी महात्मा गाँधी अपने सभी काम खुद किया करते थे। उस समय में जब वे बैरिस्ट्ररी से हज़ारों रुपये कमाते थे, गाँधी जी नौकर के साथ भाई-बहिन का व्यवहार करते थे। उन्हें वे नौकर नहीं बल्कि घर का सदस्य ही समझते थे। वे सबके साथ स्नेह का व्यवहार करते थे, वे उदार हृदय वाले भारतीय थे। गाँधी जी घर में रोटी बनाने के लिए चक्की से आटा स्वयं पीसते थे। आश्रम में भी वह सुबह-सुबह चक्की से आटा स्वयं पीसते थे। चक्की को चलाने में उनकी पत्नी कस्तूरबा तथा उनके लड़के उनका हाथ बँटाते थे। एक बार आश्रम में आटा कम पड़ जाने पर वे स्वयं आटा पीसने के लिए उठ खड़े हुए। गेहूँ पीसने से पहले वे उसे साफ करने पर ज्यादा जोर देते थे। कंपनी के कार्यकर्ता इस महान व्यक्ति को गेहूँ बीनते देखकर हैरत में पड़ जाते थे। बाहरी लोगों के सामने मेहनत करने में उन्हें शर्म नहीं आती थी। वे प्रत्येक कार्य को मेहनत व बड़ी लग्न से करते थे। कुछ वर्षों तक गाँधी जी ने आश्रम में भंडार का काम संभाला। सवेरे प्रार्थना के बाद वे रसोई घर में सब्जियाँ छीलते थे। अगर वहाँ पर उन्हें कोई गंदगी नजर आती तो वे साथियों को डाँट लगाते थे। उन्हें फल, सब्जियों के पौष्टिक गुणों का काफी ज्ञान था। वे सब्जियों को बिना धोए काटने नहीं देते थे। वे आश्रमवासियों के लिए स्वयं भोजन परोसते थे। इसलिए वे उबली एवं बेस्वाद चीजों के विरुद्ध कुछ नहीं कहते थे। एक बार गाँधी जी ने एक आश्रमवासी को काले चक्ते पड़े हुए केले खाने को दिए तो उसे बुरा लगा, फिर गाँधी जी ने उसे समझाया कि तुम्हारा हाज़मा कमजोर है इसलिए ये तुम्हें दिए गए हैं ताकि जल्दी पचा सको। गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका की जेल में कैदियों को दिन में दो बार भोजन परोसने का कार्य कर चुके थे। आश्रम का एक नियम था कि सभी खाना खाने के बाद अपने बर्तन स्वयं साफ करें। रसोई के बड़े बर्तनों को साफ करने के लिए कुछ लोग दिन बाँध लेते थे। एक दिन गाँधी जी ने आश्रम के बड़े बर्तनों को धोने का कार्य अपने ऊपर लिया। पतीलों में बड़ी कालिख लगी थी, वे रगड़-रगड़ कर उन्हें साफ करने लगे तभी उनकी पत्नी कस्तूरबा वहाँ आ गयी और बोली, यह आपका काम नहीं है इसको करने के लिए यहाँ पर और लोग हैं। गाँधी जी कस्तूरबा को बर्तन की सफाई सौंपकर चले गए। आश्रम का जब निर्माण हो रहा था तो मेहमानों को तंबुओं में सोना पड़ता था, नए मेहमान को नहीं पता था कि बिस्तर को कहाँ रखना है। उसने लपेटकर उसे रख दिया तो गाँधी जी उसका बिस्तर स्वयं उठाकर रखने के लिए चल दिए। आश्रम के लिए कुएँ से पानी लाने का काम वे रोज करते थे उन्हें यह बात पसन्द नहीं थी कि वह बूढ़ा होने के कारण शारीरिक श्रम न करें। हर प्रकार का काम करने की. उनमें अद्भुत क्षमता थी। वे थकान का नाम नहीं जानते थे वे कई मीलो तक पैदल चलते थे। दक्षिण अफ्रीका में बोकर युद्ध के दौरान उन्होंने घायलों को स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल पहुंचाया। एक बार तालाब की भराई में उनके साथी लगे हुए थे। जब वे शाम को काम करके लौटे तो गाँधी जी ने उनके लिए भोजन तैयार करके रखा क्योंकि वह सब लोग थके हुए लौटेंगे। दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय छात्र ने उन्हें शाकाहारी भोज के लिए आमंत्रित किया इसलिए छात्रों ने भोजन स्वयं बनाया। तीसरे पहर एक दुबला-पतला आदमी आकर उनमें शामिल हो गया और बर्तन धोने का काम करने लगा। कुछ देर बाद छात्रों का नेता वहाँ आया तो देखता है कि वह बर्तन धोने वाला दुबला-पतला व्यक्ति कोई और नहीं सम्मानित अतिथि गाँधी जी थे। गाँधी जी को अपने लिए दूसरों से काम कराना पसन्द नहीं था। रात को यदि लिखते समय लालटेन का तेल खत्म हो जाता था तो वे चन्द्रमा की रोशनी में काम पूरा कर लेना पसन्द करते थे। अपने किसी कार्य के लिए वे अपने किसी सोए हुए साथी को जगाते नहीं थे। गाँधी जी को बच्चों से बहुत प्यार था। अपने बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने उनकी देखभाल के लिए कभी किसी धाय को नहीं रखा। उनका कहना था कि बच्चे के विकास के लिए माँ-बाप का प्यार और उनकी देखभाल जरूरी है। वे माँ की तरह बच्चों की देखभाल कर सकते थे। दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने के बाद जब वे घर लौटे तो देखा कि उनके मित्र की पत्नी पोलक बहुत कमज़ोर हो गयी है। वह बहुत कोशिश कर चुकी पर उनका बच्चा दूध पीना नहीं छोड़ता था। गाँधी जी ने तभी से उस बच्चे की देखभाल का काम अपने हाथों में ले लिया। सारा दिन मेहनत के बाद वे रात को देर से घर लौटते थे और श्रीमति पोलक के बिस्तर से बच्चे को उठाकर अपने बिस्तर पर लिटा लेते थे। रात को प्यास लगने पर गाँधी जी बच्चे को स्वयं पानी पिलाते थे। एक महीने तक माँ से अलग सोने के बाद बच्चे ने दूध पीना छोड़ दिया। गाँधी जी के पास बच्चा कभी नहीं रोया। गाँधी जी अपने से बड़ों का आदर सत्कार किया करते थे। एक बार दक्षिण अफ्रीका में गोखले गाँधी जी के साथ ठहरे हुए थे। वे उनके कपड़ों पर प्रैस करते थे, उनका बिस्तर लगाते थे और उनको भोजन परोस कर देते थे। वे उनके हाथ पैर दबाने को भी तैयार रहते थे गोखले के मना करने पर भी वे मानते नहीं थे। महात्मा कहलाने से पहले वे दक्षिण अफ्रीका से बाहर आने पर कांग्रेस के अधिवेशन में गए वहाँ उन्होंने गन्दी लैट्रिन, बाथ रूम साफ किए। बाद में एक कांग्रेसी नेता से उन्होंने पूछा, “कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ”, नेता ने कहा कि मेरे पास बहुत से पत्र इकट्ठे हो गए हैं इनका जवाब देना है। तुम यह काम करने के लिए तैयार हो। गाँधी जी ने कहा कि मैं ऐसा कोई भी काम कर सकता हूँ जो मेरी सामर्थ्य से बाहर न हो। गाँधी जी ने यह काम बहुत थोड़े समय में ही समाप्त कर दिया फिर उन्होंने नेता की कमीज के टूटे हुए बटन लगा दिए और उनकी सेवा का काम भी किया। जब कभी आश्रम में किसी सहयोगी को रखने की आवश्यकता होती थी तो वे हरिजन को रखने का आग्रह करते थे। वे कहते थे कि नौकरों को हमें वेतन-भोगी मज़दूर नहीं मानना चाहिए बल्कि अपने परिवार का सदस्य समझना चाहिए। एक बार जब वे जेल में अपने साथियों के साथ थे तो कई कैदियों को उनकी सेवा का काम सौंपा गया, एक आदमी उनके बर्तन धोता था दूसरा उनकी लैट्रिन की सफाई करता था तो तीसरा ब्राह्मण कैदी भी उनके बर्तन धोता था। दो यूरोपियन उनकी चारपाई बाहर निकालते थे। गाँधी जी ने देखा कि इंग्लैंड के घरों में नौकर को परिवार का सदस्य माना जाता है। अंग्रेज परिवार से विदा लेते समय नौकरों का परिचय उनसे नौकरों की तरह नहीं बल्कि परिवार के सदस्य के समान कराया गया। तब उन्हें बहुत खुशी हुई और कहा कि मैं किसी को अपना नौकर नहीं समझता बल्कि अपना भाई या बहिन समझता हूँ आपने जो मेरी सेवा की उसके बदले मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है। भगवान आपको इसका फल देंगे। नौकर निबंध के लेखक कौन है?यह पाठ अनु बंद्योपाध्याय द्वारा रचित निबंध है। गाँधीजी नौकर का काम खुद से करते थे| आश्रम में गांधी जी आटा चक्की पर स्वयं पीसते थे। उन्हें बाहरी लोगों के सामने भी शारीरिक मेहनत करने में शर्म अनुभव नहीं होती थी।
लेखक के नौकर का नाम क्या था?1. गमरु
नौकर पाठ का संदेश क्या है?Solution : नौकर. पाठ से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपना काम करने में शर्म नहीं करनी चाहिए। नौकरों को भाई के समान मानना चाहिए। नियमित काम करने की आदत डालनी चाहिए।
नौकर कहानी का मुख्य पात्र कौन है?बालक जो लेखक के घर में नौकर का काम करता है कहानी का मुख्य पात्र है। इसमें बहादुर नौकरी करने के पूर्व स्वछंद था। वहाँ माँ से मार खाने के बाद घर से भाग गया था।
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