नौकरशाही के प्रमुख दोष क्या है? - naukarashaahee ke pramukh dosh kya hai?

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नौकरशाही से आप क्या समझते हैं ?नौकरशाही की विशेषताएँ बताइये ।नौकरशाही की प्रकृति क्या है ? नौकरशाही के गुण एवं लक्षण बताइये । वर्तमान राज्य में इनकी विशेषताओं और भूमिका पर प्रकाश डालिए । नौकरशाही कितने प्रकार की होती है ? भारतीय नौकरशाही की विशेषताएँ बताइए ।नौकरशाही के दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइये ।  अथवा नौकरशाही की क्या बुराइयाँ हैं ?

नौकरशाही का अर्थ एवं परिभाषाएँ 

नौकरशाही का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द ‘ ब्यूरोक्रेसी ‘ फ्रांसीसी भाषा के ‘ ब्यूरो ‘ शब्द से लिया गया है । इसका अर्थ एक विभागीय उपसम्भाग अथवा विभाग है । यह प्राय : सरकारी विभाग का परिचायक है । फ्रांस में इस शब्द का प्रयोग ड्राअर वाली मेज अथवा लिखने की डेस्क के लिए हुआ करता था । इस डैस्क पर ढके कपड़े को ब्यूरल कहा जाता था तथा इसी के आधार पर निर्मित ‘ ब्यूरो ‘ शब्द सरकारी कार्यों का परिचायक था । आगे चलकर इसका प्रयोग विशेष प्रकार की सरकार को चलाने के लिए सम्भवत : फ्रांसीसी क्रान्ति से पहले फ्रेंच सरकार के लिए किया गया । naukarshahi kise kahte hai

19 वीं शताब्दी में इसका ह्रासकारी प्रयोग सारे यूरोप में किया जाने लगा । जहाँ – जहाँ सरकार में निरंकुशता , संकुचित दृष्टिकोण तथा सरकारी अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता दिखायी पड़ी वहीं उसे नौकरशाही कहा जाने लगा । bureacrates in hindi 

हरमन फाइनर के अनुसार, “नौकरशाही सरकारी अधिकारियों का शासन है । ” 

पीटर ब्लान के अनुसार, “नौकरशाही वह संगठन है जो प्रशासन में अधिकतम कुशलता लाता है । 

कार्ल फ्रेडरिक के अनुसार, “नौकरशाही उन लोगों के पदसोपान , कार्यों के विशेषीकरण तथा उच्चस्तरीय क्षमता से युक्त संगठन है , जिन्हें इन पदों पर कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है । 

लापलोम्बरा के अनुसार , “नौकरशाही के अन्तर्गत सभी लोक सेवक आते हैं । ” 

नौकरशाही के लक्षण , विशेषताएँ अथवा गुण 

सत्ता का आधार राज्य व शासन का कानून – 

नौकरशाही जो भी कार्य करती है उस कार्य को करने का अधिकार उसको शासन से प्राप्त होता है । सामान्य नागरिक यदि नौकरशाही के किसी अंग के विरुद्ध आवाज उठाता है तो समझा जाता है कि उस नागरिक ने देश के कानून को अपने हाथ में लिया है । सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालने का अभिप्राय है कानून का उल्लंघन करना । इस स्थिति से शासकीय कर्मचारी को सुरक्षा का एक कवच मिल जाता है जिसके अन्दर रहकर वह निर्भय होकर स्वेच्छा से काम कर सकता है । 

प्रत्येक पद के लिए निर्धारित सत्ता – 

नौकरशाही में प्रत्येक नौकरशाह की सत्ता परिभाषित एवं निर्धारित होती है । वह उस सत्ता से बाहर कार्य करने की स्थिति में नहीं होता है । उदाहरणार्थ एक जिले का अधिकारी अपने जिले में ही सत्ता का प्रयोग कर सकता है , दूसरे जिले में जाकर वह सत्ता का प्रयोग नहीं कर सकता है । जिस विभाग उस विभाग से सम्बन्धित कार्य ही कर सकता है , अन्य विभाग से सम्बन्धित कार्य वह नहीं कर सकता है । एक आयकर अधिकारी आयकर लगा सकता है परन्तु मिलावट करने वाले के अधिकारी है में विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा सकता । 

कानून तथा नियम में अटूट विश्वास– 

नौकरशाही का कानून तथा नियमों में अटूट विश्वास होता है । उसको प्रारम्भ से ही इस बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि जो कार्य किया जाये कानून तथा नियम के अनुसार किया जाये । लोकतन्त्र में कानून को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है क्योंकि यह समझा जाता है कि कानून सार्वजनिक इच्छा का प्रतीक है । स ऐसे बहुत से अवसर आते हैं जब कानून का पालन किसी के हितार्थ नहीं होता है , परन्तु नौकरशाही कानून की अवज्ञा नहीं कर सकती है ।

कागजी कार्यवाही – 

आधुनिक कार्यालय की प्रबन्ध व्यवस्था लिखित दस्तावेजों तथा फाइलों पर ही आधारित है । कार्यालय की गतिविधियाँ शासक , उद्यमी तथा कर्मचारियों इत्यादि के निजी कार्यों से पृथक् रहती हैं । इसी प्रकार कार्यालय से सम्बद्ध कोई निर्णय व्यक्तिगत नहीं होता , प्रत्येक कार्य , तथा आदेश लिखित होता है । फाइलें , पंच कार्ड्स अथवा कम्प्यूटर टेप आदि संस्था के स्मृति कोष हैं , जो भविष्य में कुशल निर्णय  सहायक होते हैं । 

आजीविका अर्जित करने वालों का समूह – 

नौकरशाही के सदस्य का उद्देश्य  केवल समाज सेवा के उद्देश्य से आजीविका का अर्जन करना होता है । लोक सेवक अपना में तथा अपने बच्चों का पेट पालने के लिए घर से निकलते हैं और अपने कार्य के बदले वेतन पाते हैं । 

प्राविधिक विशेषता – 

नौकरशाही के कार्य करने का एक विशिष्ट ढंग होता है । वर्षों से जो संगठन कार्यरत है उस संगठन की अपनी एक पृथक् विशेषता स्थापित हो जाती है । उस विशेषता को वही लोग जानते हैं जो नौकरशाही के अंग हैं । जो नौकरशाही के अंग नहीं हैं उनको वह विशेषता एक ऐसे दुर्ग की भाँति प्रतीत होती है जिसकी दीवारों को भेदना दुष्कर कार्य है । एक सरकारी कर्मचारी अपना सम्पूर्ण जीवन एक विशिष्ट कार्य में लगा देता है । उसमें एक प्रकार की विशेषता का भाव उत्पन्न कर देता है ।

नौकरशाही कितने प्रकार की होती है ? 

  • भारतीय नौकरशाही की विशेषताएँ बताइए ।

नौकरशाही के प्रकार एफ.एम. मार्क्स ने नौकरशाही के निम्न चार रूपों की चर्चा की है . 

अभिभावक नौकरशाही- 

इस प्रकार की नौकरशाही जनहित के लिए काम करती है । इसके समस्त कार्यों के पीछे जनहित की भावना छिपी होती है । वे न्याय तथा लोक – कल्याण के संरक्षक होते हैं । मार्क्स ने अभिभावक नौकरशाही के दो उदाहरण दिये हैं- चीनी नौकरशाही ( शुंग काल के उदय से 960 तक ) और प्रशासकीय नौकरशाही ( 1640 से 1950 तक ) । 

चीन की अभिभावक नौकरशाही की निम्न विशेषताएँ थीं 

  • प्रशासकों के चयन में प्राचीन ग्रन्थों का प्रभाव , 
  • एकीकृत एवं सन्तुलित प्रशासनिक व्यवस्था , 
  • शिक्षित एवं योग्य प्रशासक 
  • सजग राजतन्त्र के मूल्यों के प्रति अनुत्तरदायी । 

योग्यता नौकरशाही – 

योग्यता पर आधारित नौकरशाही का आधार सरकारी अधिकारी के गुण होते हैं । योग्यता की जाँच के लिए निष्पक्ष एवं वस्तुगत परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं । इनका प्रमुख लक्ष्य लोक सेवा की कुशलता है । इसका लक्ष्य प्रतिभा के लिए खुला पेशा ‘ होता है । इस व्यवस्था में लोक सेवा किसी के अनुग्रह भार से दबा हुआ नहीं रहता तथा सदैव सामान्य हित की अभिवृद्धि में रुचि ले सकता है ।समस्त सभ्य देशों में नौकरशाही की यही पद्धति प्रचलित है । आधुनिक लोकतन्त्र में लोक कर्मचारी वास्तव में लोगों की सेवा में नियुक्त एक अधिकारी होता है और उसकी भर्ती निश्चित योग्यता के आधार पर निश्चित उद्देश्य के लिए की जाती है । 

योग्यता नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं 

  • योग्यता के आधार पर नियुक्तियों की जाँच के लिए लिखित परीक्षाएँ 
  • नियमानुसार निर्धारित वेतन 
  • कार्यकाल की सुरक्षा 
  • निष्पक्ष एवं निर्भयतापूर्ण कार्य संचालन
  • राजनीतिक विचारधारा या पीड़ितों के प्रति प्रतिबद्धता के स्थान पर देश के संविधान एवं अपने कर्तव्यों के प्रति सजग 

संरक्षक नौकरशाही 

यह नौकरशाही का वह रूप है जिसमें लोक सेवकों की नियुक्ति उनकी योग्यता के आधार पर नहीं की जाती है बल्कि नियोक्ता तथा प्रत्याशियों के राजनीतिक सम्बन्धों के आधार पर की जाती है । इस प्रकार की नौकरशाही में चुनाव में विजयी राजनीतिज्ञ अपने समर्थकों को ऊँचे पदों पर नियुक्त करते हैं । निर्वाचन में विजयी होने के परिणामों को स्थायी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि प्रशासनिक मशीनरी पर भी नियन्त्रण स्थापित किया जाये ।

संरक्षक नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं 

  • लोक सेवाओं से सत्ताधारी दल के कार्यक्रमों एवं नीतियों के साथ प्रतिबद्धता की अपेक्षा जाती है । 
  • इसमें कर्मचारियों की भर्ती के समय उनकी शैक्षणिक अथवा व्यावसायिक योग्यता को विशेष महत्व नहीं दिया जाता ।
  • प्रशासन राजनीतिक दृष्टि से तटस्थ नहीं रह पाता । 
  • लोक सेवकों का मुख्य कार्य राजनीतिक नेतृत्व को प्रसन्न रखना होता है । 

जातीय नौकरशाही – 

जब प्रशासनिक तथा राजनीतिक सत्ता एक ही वर्ग विशेष के हाथों में हो तब जातीय नौकरशाही का जन्म होता है । जातीय नौकरशाही का आधार एक वर्ग विशेष होता है । इस तरह की नौकरशाही अल्पतन्त्रीय राजनीतिक व्यवस्थाओं वाले देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है । ऐसी व्यवस्थाओं में केवल वे ही व्यक्ति सरकारी अधिकारी हो सकते हैं जो उच्चतर वर्गों अथवा जातियों के होते हैं । 

उदाहरण के लिए , प्राचीन भारत में केवल ब्राह्मण तथा क्षत्रिय ही उच्चाधिकारी हो सकते थे । 

भारत के राजा लोग अपनी सेवाओं में केवल उच्च वर्ग के लोगों को ही भर्ती करते थे । इसे विलोबी ने कुलीनतन्त्र कहा है ।

जातीय नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- 

  • सेवा तथा पद का एक परिवार से जुड़ जाना 
  • शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता
  • दोषपूर्ण समाज व्यवस्था का प्रतीक 
  • पद एवं जाति में अन्तर्सम्बन्ध । 

भारतीय नौकरशाही की विशेषताएँ 

भारतीय नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं 

सैद्धान्तिक विशेषताएँ 

स्थायित्व – 

लोक सेवा के सदस्य स्थायी रूप से अपने पदों पर रहते हैं । लोक सेवा के सदस्य युवाकाल में सेवा में प्रवेश करते हैं और एक निश्चित आयु के पश्चात् पद निवृत्त हो जाते हैं । 

व्यावसायिक- 

लोक सेवा के सदस्य पेशेवर कहे जा सकते हैं । सरकारी कर्मचारियों का प्रमुख कार्य सरकारी सेवा करना है , जिसके लिए सामान्य दक्षता की आवश्यकता पड़ती है , यद्यपि व्यावसायिक एवं प्राविधिक सरकारी सेवाओं के लिए विशिष्ट तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है । 

राजनीति से तटस्थता – 

लोक सेवा के सदस्य राजनीतिक दलबन्दी में सक्रिय भाग नहीं लेते । ये राजनीतिक दलों के सदस्य नहीं होते , राजनीतिक आन्दोलनों एवं निर्वाचन का क्रियान्वयन है । में भाग नहीं लेते । किसी भी दल की सरकार सत्ता में हो , उनका कार्य तो सरकार की नीतियों 

पदसोपान 

लोक सेवाओं का संगठन पदसोपान के सिद्धान्त पर होता है । 

व्यावहारिक विशेषताएँ 

लालफीताशाही- 

भारत की प्रशासनिक सेवाओं में लालफीताशाही पायी जाती है । अधिकारीगण प्रक्रिया की औपचारिकता में विश्वास करते हुए नियमों एवं विनियमों का पालन कठोरतापूर्वक करते हैं । इसके फलस्वरूप कार्य की सम्पन्नता में देरी होती है और महत्वपूर्ण निर्णय शीघ्र नहीं लिये जा सकते । 

राजनीति में संलग्नता– 

सर्वोच्च स्तर पर बड़े – बड़े अधिकारी ऊपर से तटाण दिखलाई पड़ते हैं किन्तु उनका राजनीति से कहीं न कहीं जुड़ाव भी रहता है । वे अपने विचारों को छिपाकर सरकारी निर्णयों पर प्रभाव डालते हैं । 

अपराधियों से गठजोड़- 

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में राजनीतिज्ञों , अपराधियों और नौकरशाही के मध्य घनिष्ठ सांठ – गांठ स्थापित होने की प्रवृत्ति उभरी है । बोहरा समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि अपराधी और माफिया तत्व समानान्तर सरकार चला रहे हैं और उसमें नौकरशाही की मूक सहम रहती है । 

भ्रष्टाचार – 

भारत में अधिकांश शासकीय कार्य लोक सेवा के कर्मचारियों के द्वारा ही किये जाते हैं । गाँवों की अशिक्षित जनता अपने छोटे – छोटे कार्यों के लिए पटवारी , ग्राम सेवक , तहसील कार्यालय के क्लर्कों तथा जिले के अधिकारियों की तरफ देखती है । कृषि के लिए खाद लेना हो या सहकारी बैंक से कर्ज या पटवारी से कोई पट्टा तो रिश्वत का सहारा लेना पड़ता है । यदि किसी असावधानी से पुलिस के चंगुल में कोई फँस जाता है तो उसकी कमर ही टूट जाती है । 

शासन करने की अहंवृत्ति- 

भारत की नौकरशाही में एक झूठा अहं आज भी समाया हुआ है कि वे जनता के स्वामी हैं न कि सेवक । शासन करने के लिए ही वे बड़े – बड़े पद धारण कर रहे हैं न कि जनता की सेवा करने के लिए । स्वतन्त्रता के पश्चात् भी नौकरशाही देश की जनता से अपना तादात्म्य स्थापित नहीं कर सकी ।

अभिजनवादी प्रतिबद्धता 

वैसे तो संसार के समस्त देशों में योग्यता पर आधारित लोक सेवाएँ अपने आप में एलीट होती हैं और वे जनसाधारण का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं । भारत में जहाँ का समाज , जाति , धर्म , क्षेत्र एवं भाषा की सीमाओं में बँधा हुआ जड़ था वहाँ वह प्रशासक वर्ग एक नयी जाति के रूप में उभरकर नया अभिजन वर्ग बन गया है । 

त्रिस्तरीय सेवा संरचना – 

संघ शासन के विचार के साथ केन्द्रीय सेवाएँ अखिल भारतीय सेवाओं से अलग होकर स्वतन्त्र रूप से उभरीं और इस तरह अखिल भारतीय सेवाओं , केन्द्रीय सेवाओं तथा प्रान्तीय सेवाओं के रूप में एक त्रिकोणात्मक सेवा संरचना उदित हुई जो स्वतन्त्र भारत को अंग्रेजी शासन से विरासत में प्राप्त हुई । इन तीनों प्रकार की उच्च सेवाओं में विभिन्न सेवावर्ग अथवा कैडर्स बने , जिनकी कनिष्ठ , ज्येष्ठ आदि कितने ही सेवा श्रेणियों के रूप में इन लोक सेवाओं का विकास हुआ । 

नौकरशाही के दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइये । 

नौकरशाही के दोष अथवा बुराइयाँ नौकरशाही के दोषों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

श्रेष्ठता की भावना- 

इस व्यवस्था में अधिकारियों में श्रेष्ठता की भावना आ जाती है । चूँकि इनके हाथ में सत्ता रहती है तथा इन्हें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त रहते हैं , इसलिए वे अपने आपको जनता से श्रेष्ठ तथा पृथक् समझने लगते हैं । ये व्यक्ति सदैव गर्व से फूले रहते हैं और जनता के प्रति हीन भावना रखते हैं । 

विभागीयकरण या साम्राज्य रचना – 

नौकरशाही के कारण सरकार के कार्य अलग – अलग खण्डों में विभाजित हो जाते हैं । ये अलग खण्ड बिना किसी समुचित पारस्परिक सम्बन्धों के अपने – अपने उद्देश्यों का अनुसरण करते हैं । इन इकाइयों में अपने आपको स्वतन्त्र एवं पृथक् इकाइयाँ मानने की प्रवृत्ति का विकास हो जाता है । वे यह भूल जाते हैं कि वे किसी बड़े समग्र के केवल अंग मात्र हैं । वे अपने ही छोटे अधिकार – क्षेत्र को अपनी अन्तिम सीमा मानने लगते हैं । 

शक्ति प्रेम – 

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि नौकरशाह शक्ति प्राप्त करने के भूखे होते हैं । विभिन्न विभागों के नौकरशाह शक्ति के संघर्ष में रत रहने के कारण लोकहित को भुला देते हैं । स्थायी सिविल सेवा के सदस्य लोक तन्त्र के नाम पर विभागों की शक्ति में निरन्तर वृद्धि करते जा रहे हैं और मन्त्रियों के उत्तरदायित्व के सिद्धान्त के नाम पर उन्होंने सारी शक्तियाँ स्वयं के हाथों में केन्द्रित कर ली हैं । 

नौकरशाही की अनुदारवादी प्रवृत्ति – 

नौकरशाही की प्रवृत्ति रूढ़िवादी होती है और ये यथास्थितिवाद के समर्थक होते हैं । वे परिवर्तन तथा नवीनता के प्रति विरोधी भावना रखते हैं । 

जनसाधारण की माँगों की उपेक्षा – 

नौकरशाही यह मानकर चलती है कि वह लोक हित की संरक्षक है और उसी के द्वारा जनहित की सही व्याख्या की जा सकती है । यदि लोकमत जनहित के विरुद्ध है तो नौकरशाही किसी की सलाह मानने के लिए तैयार नहीं और वह अपने विवेक के अनुसार कार्य करती है । इससे जनसाधारण की माँगों तथा इच्छाओं की उपेक्षा होती है । 

लालफीताशाही – 

नौकरशाही का एक दोष यह बताया जाता है कि इसके कार्यों में पर्याप्त विलम्ब होता है । नौकरशाही के कार्य नियत प्रकृति के होते हैं । नियमों का पालन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप कार्य की सम्पन्नता में बाधा पहुँचती है । नौकरशाही प्रक्रिया की औपचारिकताओं को अपना उद्देश्य बना लेती है जबकि वे जनता की सेवा के लिए माध्यम मात्र हैं । 

आकार में वृद्धि और कुशलता में कमी – 

नौकरशाही की यह प्रवृत्ति होती है कि वह अपने आकार को और अपने सदस्यों की संख्या को लगातार बढ़ाती हुई चलती है । 50 वर्ष पूर्व नौकरशाही का जो आकार था अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कार्य अधिक न होने पर भी नौकरशाही अपने आकार में वृद्धि करती जाती है । संख्या में वृद्धि होने पर भी कुशलता का स्तर नीचे गिरता चला जाता है । 

नवीन निरंकुशता- 

नौकरशाही में एक अवगुण यह पाया जाता है कि इसकी प्रवृत्ति निरंकुशता की ओर रहती है ।

नौकरशाही के दोषों को दूर करने के उपाय नौकरशाही के दोषों को दूर करने हेतु निम्न उपाय किए जाने चाहिए

योग्य मन्त्रियों की नियुक्ति – 

नौकरशाही को नियन्त्रित करना मन्त्रियों का कार्य है । यदि ये मन्त्री योग्य और कार्यकुशल होंगे तो वे सरकारी सेवकों पर सुदृढ़ नियन्त्रण रख सकेंगे अन्यथा सरकारी सेवक उन पर हावी होकर जनता की स्वतन्त्रता को संकट में डाल देंगे । 

सत्ता का विकेन्द्रीकरण- 

दूसरा उपाय सत्ता के विकेन्द्रीकरण का है । अधिकारियों में सत्ता का अत्यधिक केन्द्रीयकरण होने से ही उनमें नौकरशाही की प्रवृत्ति पनपती है । इसलिए यदि सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर दिया जायेगा , तो नौकरशाही अपने दोषों से हो जायेगी । 

प्रत्यायोजित विधि निर्माण की मात्रा में कमी – 

नौकरशाही की निरंकुशता का प्रमुख साधन प्रत्यायोजित विधि निर्माण है । अत : नौकरशाही को अधिक उपयोगी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्यायोजित विधि निर्माण की मात्रा में कमी की जाये ।

न्यायाधिकरणों की स्थापना – 

ऐसे न्यायाधिकरणों की स्थापना की जानी चाहिए जहाँ नागरिक सिविल कर्मचारियों के विरुद्ध अपनी शिकायतें रख सकें । प्रशासन में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए तथा नौकरशाही को दोषों से मुक्त करने के लिए ऐसे प्रशासनिक न्यायाधिकरणों की स्थापना नितान्त आवश्यक है । 

निष्कर्ष 

हालांकि वर्तमान आधुनिक काल में नौकरशाही एक आवश्यक बुराई है । लेकिन लोक प्रशासन में इसके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । 

तो दोस्तों अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगे तो हमें कमेंट करके जरुर बतायें , और इसे शेयर भी जरुर करें।

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