निश्चित मानदेय पर काम करने वाले पत्रकार को क्या कहते हैं? - nishchit maanadey par kaam karane vaale patrakaar ko kya kahate hain?

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

प्रश्न 1.
पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार तथा संवाददाता समाचारपत्रों, रेडियो, टी०वी० आदि माध्यमों के द्वारा अपने पाठकों, दर्शकों तथा श्रोताओं को जो सूचनाएँ पहुँचाते हैं, उन्हें लिखने के लिए वे अलग-अलग प्रकार के तरीके अपनाते हैं। इसे ही हम पत्रकारीय लेखन कहते हैं। जनसंचार माध्यमों में लिखने की शैलियाँ अलग-अलग होती हैं। उन्हें जानना आवश्यक है। इनमें समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट, टिप्पणियाँ आदि प्रकाशित होती रहती हैं। इन सभी का संबंध पत्रकारीय लेखन से है। पत्रकारीय लेखन के कई रूप होते हैं।

पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-

  • पूर्णकालिक पत्रकार
  • अंशकालिक पत्रकार
  • फ्रीलांसर

(1) पूर्णकालिक पत्रकार पत्रकार किसी-न-किसी समाचार संगठन का नियमित कर्मचारी होता है और वेतन आदि सभी सुविधाओं को प्राप्त करता है।

(2) अंशकालिक पत्रकार-किसी भी समाचार संगठन द्वारा निश्चित किए गए मानदेय पर काम करता है।

(3) फ्रीलांसर-पत्रकार का किसी विशेष समाचार संगठन से संबंध नहीं होता। वह अलग-अलग समाचार पत्रों के लिए लिखता है और बदले में कुछ पारिश्रमिक प्राप्त करता है।

पत्रकारीय लेखन का संबंध देश तथा समाज में घटने वाली समस्याओं से होता है। पत्रकार तत्कालीन घटनाओं का वर्णन लिखकर समाचार संगठन को भेजता है। उसे पाठकों की रुचियों का भी ध्यान रखना होता है। वह हमेशा इस बात का ध्यान रखता है कि उसका लेखन विशाल जनसमूह के लिए है न कि किसी वर्ग-विशेष के लिए। उससे यह आशा की जाती है कि वह सहज, सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करे, उसे लंबे-लंबे वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही अनावश्यक विशेषणों और उपमाओं का प्रयोग करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
समाचार कैसे लिखा जाता है?
उत्तर:
पत्रकारीय लेखन का सर्वाधिक जाना-पहचाना रूप समाचार लेखन है। प्रायः पूर्णकालिक तथा अंशकालिक पत्रकारों द्वारा अधिकांश समाचार लिखे जाते हैं। जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहा जाता है। इनके द्वारा अखबारों में प्रकाशित अधिकांश की शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी घटना, समस्या, विचार से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना, या जानकारी को प्रथम प्रघटक (पैराग्राफ) में लिखा जाता है।

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उसके बाद उस पैराग्राफ में कम महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ दी जाती हैं और यह प्रक्रिया समाचार समाप्त होने तक जारी रहती हैं। इसे समाचार लेखन की उलटा पिरामिड-शैली कहते हैं। यह समाचार लिखने की उपयोगी एवं लोकप्रिय शैली मानी गई है। इस शैली का प्रयोग 19वीं सदी के मध्य में शुरू हो चुका था, परंतु इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेशों के द्वारा भेजनी पड़ती थीं। इसलिए उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग अधिक होने लगा। आज लेखन तथा संपादन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए यह शैली समाचार लेखन की मानक शैली बन गई है। परंतु कथात्मक लेखन में सीधा पिरामिड-शैली का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
समाचार लेखन के छह ककार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
समाचार लेखन के मुख्यतः छह ककार हैं। समाचार लिखते समय इन छह ककारों का उत्तर देने की कोशिश की जाती है।

  1. क्या हुआ?
  2. किसके साथ हुआ?
  3. कहाँ हुआ?
  4. कब हुआ?
  5. कैसे हुआ?
  6. क्यों हुआ?

समाचार के मुखड़े (इंट्रो) अर्थात् पहले पैराग्राफ़ या प्रघटक में तीन या चार ककारों के आधार पर कुछ पंक्तियों में खबरें लिखी जाती हैं। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ?

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इसके बाद समाचार की बॉडी में तथा समापन से पहले अन्य दो ककारों जैसे; कैसे और क्यों का उत्तर लिखा जाता है और समाचार तैयार हो जाता है। पहले चार ककारों में सूचना तथा तथ्य दिए जाते हैं, शेष दो ककारों में विवरण, व्याख्या तथा विश्लेषण आदि पहलुओं पर बल दिया जाता है। एक उदाहरण द्वारा हम इसे स्पष्ट कर सकते हैं

समाचार का शीर्षक-पुणे में बम विस्फोट से 9 लोग मरे, 60 घायल समाचार का इंट्रो-पुणे में 13 फरवरी के ओशो आश्रम के पास स्थित एक बेकरी में सायं 7.30 बजे बम विस्फोट में नौ ग्राहकों की मृत्यु हो गई और लगभग 60 लोग घायल हो गए। घायलों को निकटवर्ती अस्पतालों में भर्ती करा दिया गया है।

समाचार की बॉडी-आतंकवादियों की इस दिल दहला देने वाली घटना से पूरा नगर हिल गया। मरने वालों में विदेशी नागरिक भी थे। अभी तक किसी आतंकवादी संगठन ने इस विस्फोट की ज़िम्मेदारी नहीं ली। पुलिस दस्तों को इसके पीछे पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष हाथ नज़र आ रहा है।

महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री ने कहा कि यह घटना बड़ी दुखद है। पुलिस कमिश्नर ने कहा कि सरकार ने इस घटना की जाँच के लिए खोजी दस्ता लगा दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुलिस दल एक घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंचा।

यहाँ पर यह स्पष्ट किया गया है कि इंट्रों में चार ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ से संबंधित आवश्यक जानकारी दी गई है। तत्पश्चात् अन्य दो ककारोंकैसे तथा क्यों द्वारा दुर्घटना के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। अंत में राज्य के गृहमंत्री, पुलिस कमिश्नर तथा प्रत्यक्षदर्शियों के विचार भी दिए गए हैं।

प्रश्न 4.
फ़ीचर किसे कहते हैं?
उत्तर:
समाचारपत्रों में समाचारों के अतिरिक्त कुछ अन्य पत्रकारीय लेखन भी छपते रहते हैं। इनमें फ़ीचर, रिपोर्ट, विचार पर लेखन, टिप्पणियाँ, संपादकीय आदि कुछ उल्लेखनीय लेखन हैं। फ़ीचर इन सबमें प्रमुख माना गया है। एक परिभाषा के अनुसार “फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक तथा आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने तथा मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।”

फ़ीचर समाचार की तरह पाठकों को तत्काल घटित घटनाओं से परिचित नहीं कराता। फीचर लेखन की शैली समाचार लेखन की शैली से अलग प्रकार की होती है। समाचार लिखते समय संवाददाता वस्तुनिष्ठ एवं शुद्ध तथ्यों का प्रयोग करता है। समाचार में वह अपने विचार प्रकट नहीं कर सकता। परंतु फीचर लेखक अपनी भावनाओं, दृष्टिकोणों तथा विचारों को व्यक्त करता है। फीचर-लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग न करके सीधी पिरामिड-शैली अर्थात् कथात्मक-शैली का प्रयोग किया जाता है। दूसरा फीचर लेखन की भाषा समाचारों की भाषा की तरह सामान्य बोलचाल की नहीं होती, बल्कि यह सरल, रूपात्मक, साहित्यिक, आकर्षक और मन को छूने वाली होती है।

फीचर में समाचारों के समान शब्दों की संख्या सीमित नहीं होती। प्रायः समाचारपत्र तथा पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फीचर छपते हैं। एक सफल तथा रोचक फ़ीचर के साथ फोटो, रेखांकन तथा ग्राफिक्स का प्रयोग किया जाता है। यह हलके-फुलके विषयों से लेकर किसी गंभीर या महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर लिखा जा सकता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि फ़ीचर एक ऐसा ट्रीटमेंट है जो प्रायः विषय तथा समस्या के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है। यह पाठकों की रुचि तथा समाज की आवश्यकताओं को देखकर लिखा जाता है।

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प्रश्न 5.
फीचर की विशेषताएँ बताते हुए स्पष्ट करें कि फीचर कैसे लिखा जाना चाहिए?
उत्तर:

  1. फीचर किसी सच्ची घटना पर लिखा जाता है और यह पाठक के समक्ष उस घटना का चित्र अंकित कर देता है।
  2. फीचर सारगर्भित होता है, परंतु यह बोझिल नहीं होता।
  3. फीचर लेखन का विषय अतीत, वर्तमान तथा भविष्य से संबंधित हो सकता है।
  4. फ़ीचर जिज्ञासा, सहानुभूति, संवेदनशीलता, आलोचनात्मक तथा विवेचनात्मक भावों को उद्दीप्त करता है।
  5. फीचर किसी महत्त्वपूर्ण खोज तथा उपलब्धि पर लिखा जा सकता है।

फ़ीचर लिखते समय कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना जरूरी माना गया है। फीचर को सजीव बनाने के लिए विषय-वस्तु से जुड़े हुए लोगों का होना आवश्यक है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि फ़ीचर में कुछ पात्र भी होने चाहिएँ, उन्हीं के द्वारा विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। फीचर में विषय-वस्तु का वर्णन इस प्रकार होना चाहिए कि पाठक को यह लगे कि वह स्वयं देख रहा है और सुन भी रहा है। एक दूसरी विशेषता यह है कि फ़ीचर मनोरंजक होने के साथ-साथ सूचनात्मक भी होना चाहिए। फ़ीचर में नीरसता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

यह आकर्षक और रोचक होना चाहिए। फ़ीचर पढ़ते समय पाठक को ऐसा न लगे कि वह किसी बैठक अथवा सभा की कार्यवाही का विवरण पढ़ रहा है। यही कारण है कि फीचर लिखते समय लेखक तथ्यों, सूचनाओं तथा विचारों को आधार बनाता है, परंतु वह कथात्मक विवरण द्वारा विषय का विश्लेषण करता हुआ आगे बढ़ता है। फीचर में कोई-न-कोई विषय अर्थात् थीम अवश्य होता है, उसी के चारों ओर सभी सूचनाएँ, तथ्य और विचार गुँथे जाते हैं। उल्लेखनीय बात तो यह है कि फीचर पाठक के मन को भाना चाहिए।

प्रश्न 6.
फ़ीचर से क्या अभिप्राय है? फीचर और समाचार में क्या अन्तर है?
उत्तर:
फीचर एक सुव्यवस्थित तथा आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने तथा उनका मनोरंजन करना है। फीचर और समाचार में निम्नलिखित अन्तर हैं

फ़ीचर समाचार
1. समाचार का उद्देश्य पाठकों को सूचना देना शिक्षित करने तथा उनका मनोरंजन करना है। 1. फीचर का प्रमुख उद्देश्य पाठकों को सूचना देने,
2. फीचर को कथात्मक शैली में लिखा जाता है। 2. समाचार उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है।
3. फीचर पाठक को तात्कालिक घटनाओं से अवगत नहीं करवाता अपितु एक दृष्टिकोण विशेष की जानकारी देता है। 3. समाचार केवल तात्कालिक घटनाओं का ब्योरा देता है।
4. फीचर आकर्षक, रूपात्मक व मनमोहक भाषा में रचित होता है। 4. समाचार अत्यन्त सरल भाषा में लिखा जाता है।
5. फ़ीचर कम-से-कम शब्दों में लिखा जाता है। 5. समाचार अधिक विस्तार में लिखा जाता है।
6. फ़ीचर में लेखक कल्पना की उड़ान भी भर सकता है। 6. समाचार पूर्णतः तथ्यों पर आधारित होता है। जारी…
7. फीचर में लेखक के दृष्टिकोण व भावनाओं की अभिव्यक्ति रहती है। 7. समाचार लेखन में पत्रकार अपने दृष्टिकोण व भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता।
8. फीचर किसी महत्त्वपूर्ण खोज व उपलब्धि को विषय बनाकर भी लिखा जा सकता है। 8. समाचार तात्कालिक घटनाओं के लेखन तक ही सीमित रह जाता है।
9. फीचर लेखन का विषय अतीत, वर्तमान व भविष्य से सम्बन्धित हो सकता है। 9. समाचार में केवल वर्तमान का ही उल्लेख किया जाता है।

प्रश्न 7.
फीचर के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
फीचर के अनेक प्रकार होते हैं; जैसे-

  1. समाचार बैकग्राउंडर फीचर
  2. खोजपरक फ़ीचर
  3. साक्षात्कार फीचर
  4. जीवनशैली फीचर
  5. रूपात्मक फीचर
  6. व्यक्तिचित्र फ़ीचर
  7. यात्रा फ़ीचर
  8. विशेष रुचि के फ़ीचर

यों तो फीचर लिखने का कोई निश्चित फार्मूला नहीं होता है। इसे कहीं से भी शुरू किया जा सकता है। फिर भी प्रत्येक फीचर में प्रारंभ, मध्य और अंत अवश्य होता है।

प्रारंभ-फीचर का प्रारंभ आकर्षक तथा जिज्ञासावर्धक होना चाहिए। यदि हम किसी लोकप्रिय कवि पर व्यक्तिचित्र फीचर लिखने जा रहे हैं, तो हम उसकी शुरुआत किसी ऐसी घटना के वाक्य से कर सकते हैं जिसने उनके जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हो।

मध्य-फीचर के मध्य भाग में उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएँ, उसकी उपलब्धियों और विशेषज्ञों के रोचक, आकर्षक एवं खास वक्तव्यों पर प्रकाश डाला जा सकता है। यही नहीं, हम उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाल सकते हैं।

अंत-फीचर के अंतिम भाग में उस लोकप्रिय व्यक्ति की भावी योजनाओं पर ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिए। ताकि उस लोकप्रिय व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व पाठकों के समक्ष उभरकर आ सके। फ़ीचर लेखन में इस प्रकार के विषय का चयन करना चाहिए जो समसामयिक होने के साथ-साथ लोकरुचि के अनुकूल हो। फीचर की सामग्री विभिन्न स्थलों पर जाकर एकत्रित की जा सकती है। फीचर लिखते समय लेखक को अपनी तर्कशील तथा सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

फ़ीचर के कुछ उदाहरण

मसूरी का कैंप्टीफॉल:
मई-जून के महीनों में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र गर्मी के कारण झुलसने लगते हैं। प्रायः महानगरों के सुविधाभोगी लोग पर्वतीय क्षेत्रों की ओर पलायन करने लगते हैं। उत्तराखंड का मसूरी एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। प्रायः हम सोचते हैं कि मसूरी में ठंड नहीं होगी, परंतु जैसे ही हम पहाड़ी पर पहुंचते हैं, ठंडी हवा का अहसास होने लगता है। मसूरी से थोड़ी दूर ही कैंप्टीफॉल है। यहाँ बड़ी ऊँचाई से एक झरना नीचे आकर गिरता है। यात्री इसे देखकर हक्के-बक्के रह जाते हैं। कैंप्टीफॉल का झरना हरे-भरे पहाड़ों की गोद में नहीं है, बल्कि ऊबड़-खाबड़ और झाड़-झंखाड़ वाले पहाड़ों की गोद में स्थित है। झरने तक पहुँचने के लिए सर्पाकार सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। इन सीढ़ियों के एक तरफ कुछ दुकानें हैं। लगभग दो सौ सीढ़ियाँ उतरने के बाद कैंप्टीफॉल आता है। यहाँ शीतल जल का एक छोटा-सा सरोवर बना है। यात्री उस पानी में नहाते हैं और तालाब के इर्द-गिर्द बैठकर फोटो खिंचवाते हैं। यह झरना दो सौ फुट की ऊँचाई से गिरता है। यहाँ थोड़ी धूप और गर्मी होती है। परंतु नीचे शीतल जल के कारण ठंडक होती है। जल का स्तर चार से पाँच फुट ही है। जल के निरंतर प्रवाह के कारण तालाब का पानी हमेशा स्वच्छ रहता है, जिससे यात्रियों के मन में ताज़गी उत्पन्न होती है। स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियाँ, नवविवाहित जोड़े यहाँ पानी में क्रीड़ाएँ करते आनंद लेते हैं।

ठंडे पानी में घुसते ही शरीर में झुरझुरी-सी आ जाती है। ऐसा लगता है कि मानों गंगा की धारा व्यक्ति के सिर पर गिर रही हो। छोटे बच्चे जल की इस धारा को सहन नहीं कर सकते। इसलिए माता-पिता अपने छोटे पुत्र या पुत्री को कंधे पर बिठाकर झरने के नीचे ले जाते हैं। कुछ देर स्नान करने के बाद यात्री बाहर निकल आते हैं और आने वाले यात्री उस जल में प्रवेश करते हैं। सरोवर के चारों ओर बड़ा ही सुखद वातावरण होता है। जो भी व्यक्ति मसूरी जाता है, वह कैंप्टीफॉल में अवश्य स्नान करता है। इस दृश्य को देखे बिना मसूरी की यात्रा व्यर्थ है।

निश्चित मानदेय पर काम करने वाले पत्रकार को क्या कहते हैं? - nishchit maanadey par kaam karane vaale patrakaar ko kya kahate hain?

महानगर की ओर पलायन करने की समस्या:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने ग्रामीण अंचल के विकास की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये महानगरों के विकास पर खर्च होते रहे। जब लोगों को गाँव में रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हुए, तो वे महानगरों की ओर पलायन करने लगे। इसके लिए टी०वी०, मीडिया कम दोषी नहीं है। उनके समाचारों का अस्सी प्रतिशत भाग महानगरों से संबंधित होता है। इसलिए गाँव का आम आदमी महानगरों की चकाचौंध से भ्रमित हो जाता है। उसे लगता है कि वहाँ तो सब तरह की सुख-सुविधाएँ हैं। वे महानगरों की समस्याओं से अनजान होते हैं। इसलिए महानगर में आकर ग्रामीण व्यक्ति के सारे सपने चूर-चूर हो जाते हैं।

यहाँ उसे या तो रिक्शा चलानी पड़ती है या छोटी-मोटी मजदूरी करनी पड़ती है। रहने के लिए झुग्गी-झोंपड़ियों की ओर रुख करता है, न तो वह गाँव की ओर लौट पाता है, न ही महानगर में सुखपूर्वक रह पाता है। कुछ लोग तो भयंकर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं कुछ अपराधियों के चंगुल में फँस जाते हैं। इस समस्या का हल तत्काल खोजना होगा। सरकार को अतिशीघ्र गाँव के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। यदि गाँव में बिजली, पानी, रोजगार की सुविधाएँ प्राप्त हो जाएँ, तो कोई भी गाँव का निवासी महानगरों की ओर मुँह नहीं करेगा। अतः गाँव में ही कुटीर उद्योगों का जाल फैलाया जाना चाहिए और कृषि उद्योग के विकास की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।

विशेष रिपोर्ट

प्रश्न 8.
विशेष रिपोर्ट लिखने की प्रक्रिया क्या है? इसके प्रकार और लिखने की शैली क्या है?
उत्तर:
अकसर समाचारपत्र तथा पत्रिकाओं में साधारण समाचार के अतिरिक्त कुछ विशेष रिपोर्ट भी प्रकाशित होती रहती हैं, जिनका आधार गहरी छानबीन, विश्लेषण तथा व्याख्या होती है। विशेष रिपोर्टों को तैयार करने के लिए किसी घटना या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है और उससे संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित कर लिया जाता है। फिर उसकी संश्लेषणात्मक पद्धति द्वारा उसके परिणामों तथा कारणों को स्पष्ट किया जाता है।

विशेष रिपोर्ट के अनेक प्रकार होते हैं-

  1. खोजी रिपोर्ट
  2. इन-डेप्थ रिपोर्ट
  3. विश्लेषणात्मक रिपोर्ट
  4. विवरणात्मक रिपोर्ट

(1) खोजी रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में संवाददाता मौलिक शोध तथा छानबीन करता हुआ सूचनाओं तथा तथ्यों को उजागर करता है। क्योंकि पहले ये सूचनाएँ तथा तथ्य सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं होते। प्रायः भ्रष्टाचार, अनियमितता तथा गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए खोजी रिपोर्ट लिखी जाती है, परंतु इस कार्य में खतरा भी होता है, क्योंकि भ्रष्ट तथा अपराधी प्रवृत्ति के लोग उसे शारीरिक तथा मानसिक हानि भी पहुँचा सकते हैं।

(2) इन-डेप्थ रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं तथा आँकड़ों की गहराई से छानबीन की जाती है। तत्पश्चात् किसी घटना, समस्या या मुद्दे के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है।

(3) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या से संबंधित तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है तथा फिर व्याख्या करने के बाद उसका कोई निष्कर्ष निकाला जाता है।

(4) विवरणात्मक रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या का विस्तृत और सूक्ष्म विवरण दिया जाता है और उसको रोचक बनाया जाता है।

विशेष रिपोर्ट लिखने की शैली-प्रायः विशेष रिपोर्टों में समाचार लेखन की उलटा पिरामिड-शैली का ही प्रयोग किया जाता है। लेकिन कुछ रिपोर्ट फीचर शैली में भी लिखी जाती हैं, कारण यह है कि रिपोर्ट सामान्य समाचारों की अपेक्षा आकार में बड़ी और विस्तृत होती हैं, इसलिए पाठकों में रुचि जाग्रत करने के लिए उलटा पिरामिड-शैली और फीचर शैली का मिश्रित प्रयोग किया जाता है। यदि रिपोर्ट बहत विस्तृत और बड़ी हो, तो उसे शृंखलाबद्ध करके किस्तों में भी छापा जा सकता है। वि समय निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए-

  1. रिपोर्ट का आकार सरल और संक्षिप्त होना चाहिए, क्योंकि आज के पाठकों के पास अधिक समय नहीं होता।
  2. रिपोर्ट हमेशा सत्य पर आधारित होनी चाहिए, तभी वह विश्वसनीय होगी।
  3. रिपोर्टर को निष्पक्ष होकर रिपोर्ट लिखनी चाहिए, अन्यथा इसका प्रभाव अनुकूल नहीं होगा।
  4. रिपोर्ट संकलित होनी चाहिए, इसमें किसी एक पक्ष की बात न कहकर सभी पक्षों का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  5. रिपोर्ट अपने-आप में पूर्ण होनी चाहिए। पाठक अधूरी रिपोर्ट पढ़ना नहीं चाहता।
  6. रिपोर्ट की भाषा सहज, सरल तथा सामान्य बोलचाल की होनी चाहिए, जिसमें उर्दू तथा अंग्रेजी शब्दों का मिश्रण भी होना चाहिए।

विशेष रिपोर्ट के कुछ उदाहरण

गाँव में मनाए गए वृक्षारोपण समारोह की रिपोर्ट
आज दिनांक …………… सुबरी गाँव में वृक्षारोपण समारोह का आयोजन किया गया। हमारे विद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के विद्यार्थियों ने पंचायत की ज़मीन में लगभग एक हजार पौधे लगाए। इस समारोह का उद्घाटन जिला उपायुक्त के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर लगभग एक हज़ार लोग उपस्थित थे। स्कूल के विद्यार्थियों ने यह प्रतिज्ञा ली कि वे इन रोपित वृक्षों की लगातार रक्षा करते रहेंगे तथा समय-समय पर सिंचाई करते रहेंगे। स्कूल के बच्चों ने इस अवसर पर एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। उपायुक्त ने इस अवसर पर कहा कि वृक्षारोपण ही हमारे देश को सूखे से बचा सकता है। उन्होंने स्कूल को ग्यारह हज़ार की ग्रांट देने की घोषणा की।

सचिन सिर्फ सचिन ही हैं और सचिन ही रहेंगे
पिछले 20 वर्षों से कोई व्यक्ति अलग-अलग परिस्थितियों का सामना करते हुए पूरी एकाग्रता से बिना थके अपना काम करता चला आ रहा हो और हमेशा पहले से बेहतर ही करता हो, उसे क्या कहेंगे? उसका एक ही नाम है सचिन रमेश तेंदुलकर। बुधवार को ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच में तेंदुलकर ने जो धुंआधार पारी खेली, उसका वर्णन करना शब्दों के बाहर की बात है। जो काम उन्होंने बल्ले से किया, उसका सम्मान करने में कलम की ताकत आज कुछ कम लग रही है। सचिन के लिए दोहरा शतक बनाना खास मायने नहीं रखता, पर ग्वालियर में उन्होंने जो यादगार पारी (200 नाबाद) खेली, उससे खुद क्रिकेट का सम्मान बढ़ा है। 1989 में पाकिस्तान के गुजरांवाला में उन्होंने जीवन का पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला, तभी से उनके बल्ले को विशाल स्कोर बनाने की आदत सी हो गई है जो आज भी टूटती नहीं दिखती। बल्ले बदलते गए, गेंदबाज बदलते गए और मैदान भी बदलते रहे, पर पाँच फुट पाँच इंच की इस वामनमूर्ति ने गेंद को हमेशा अपने से दूर और अधिक दूर रखने की ऐसी आदत बना ली, जिसने उन्हें विश्व का अति विशिष्ट खिलाड़ी बना दिया। तेंदुलकर की तुलना अब किसी से भी करना उनके साथ अन्याय होगा।

‘रन मशीन’ तो अब बहुत ही छोटा विशेषण लगता है सचिन की महिमा का बखान करने के लिए। (मशीनें भी कई बार खराब हो जाती हैं, टूट-फूट जाती हैं और दगा दे सकती हैं।) 36 वर्ष की उम्र में भी तेंदुलकर जब क्रिकेट मैदान पर उतरते हैं तब ऐसा लगता है कि वे कोई-न-कोई नया कीर्तिमान बनाने के लिए ही उतरते हों। ग्वालियर में उन्होंने वन डे में सर्वाधिक रनों का जो रिकॉर्ड बनाया है वह इसलिए खास है क्योंकि उन्हें क्रिकेट की और भी ऊँची पायदान पर स्थापित कर देता है। इससे पहले हैदराबाद में न्यूजीलैंड के खिलाफ 186 रन की पारी या पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 175 रनों की पारी या फिर क्राइस्टचर्च में न्यूजीलैंड के खिलाफ 163 रन की पारी हो, वन डे में दोहरा शतक हमेशा उनके साथ आँख-मिचौनी खेलता रहा, जिसे इस बार उन्होंने जादुई कलात्मकता के साथ अपने नाम लिख लिया है। ऐसा करने वाले वे विश्व के पहले बल्लेबाज हो गए हैं। ग्वालियर में उन्होंने फिर भारत और क्रिकेट की शान बढ़ाई और दिखा दिया कि एकाग्रता, नम्रता और कड़ी मेहनत से भला कौन-सी कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती।

निश्चित मानदेय पर काम करने वाले पत्रकार को क्या कहते हैं? - nishchit maanadey par kaam karane vaale patrakaar ko kya kahate hain?

प्रश्न 9.
विचारपरक लेखन की श्रेणी में किन-किन सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
समाचारपत्रों में समाचार तथा फीचर के अतिरिक्त कुछ विचारपरक लेख भी छपते रहते हैं। कुछ अखबारों की पहचान तो उनके वैचारिक लेखों से ही स्पष्ट होती है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि समाचारपत्रों में प्रकाशित होने वाले विचारपरक लेखों से ही उस समाचारपत्र की छवि का निर्माण होता है। समाचारपत्र के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले अग्रलेख, लेख तथा टिप्पणियाँ आदि विचारपरक पत्रकारीयलेखन में समाहित किए जा सकते हैं। इसके साथ-साथ विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों तथा वरिष्ठ पत्रकारों के स्तंभ भी विचारपरक लेखन में जोड़े जा सकते हैं। प्रायः समाचारपत्र के संपादकीय पृष्ठ के सामने ही विचारपरक लेख अथवा कोई टिप्पणी या स्तंभ प्रकाशित किया जाता है।

विचारपरक लेख में किसी विषय का विशेषज्ञ अथवा वरिष्ठ पत्रकार किसी महत्त्वपूर्ण विषय अथवा समस्या पर विस्तारपूर्वक चर्चा करता है। इस प्रकार के लेख में लेखक के विचार मौलिक होते हैं, परंतु वे पूर्णतया तथ्यों या सूचनाओं पर आधारित होते हैं। लेखक विषय का विश्लेषण करते हुए तर्क सम्मत शैली के द्वारा अपने विचार प्रस्तुत करता है और अपना दृष्टिकोण प्रकट करता है। इस प्रकार का लेख लिखने से पहले लेखक को काफी तैयारी करनी पड़ती है। वह विषय से संबंधित समुचित जानकारी एकत्रित कर लेता है और विचारपरक लेख लिखने से पहले अन्य तथा वरिष्ठ पत्रकारों के विचारों को अच्छी प्रकार से जान लेता है।

विचारपरक लेख में लेखक की अपनी मौलिक शैली होती है। इस लेख में प्रारंभ, मध्य और अंत रहता है। प्रायः लेख का आरंभ किसी ताजा प्रसंग या घटनाक्रम के विवरण से किया जाता है और धीरे-धीरे लेखक विषय के बारे में अपने विचार व्यक्त करता है। अंग्रेज़ी में खुशवंत सिंह अपने विचारपरक लेखों के लिए प्रसिद्ध थे। उनके ऐसे लेख हिंदी समाचारपत्रों में भी प्रकाशित होते रहते हैं। एक उदाहरण देखिए

दया भाव:
अंतःमन की कोमलतम संवेदनाओं का दूसरा नाम है-दया। किसी भी व्यक्ति के अंतःकरण में इसकी उत्पत्ति कल्याण भाव से ही होती है। दया भाव से प्रेरित व्यक्ति दुखियों की मदद के लिए आगे बढ़ता है। उनके दुखों में भागीदार हो जाता है।

दया भाव से प्रेरित व्यक्ति को न तो किसी हित लाभ की अपेक्षा होती है और न ही अपनी प्रशंसा की ललक। उसे किसी दुखी व्यक्ति के होंठों पर हल्की सी मुस्कराहट देखने मात्र से जिस नैसर्गिक और स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। दया सर्वव्यापी भाव है। विचारक एवं कवि श्रीमन्नारायण के शब्दों में, ‘दया निर्दयी के मन में भी वास करती है। जिस तरह से मरुस्थल में मीठे खजर उगते हैं, उसी प्रकार निर्दयी दिल में भी दया के भरपुर अंकर होते हैं। संभवतः निर्दयी व्यक्ति की दया का एहसास समाज को देर से हो पाता है, क्योंकि दया भाव की अपेक्षा उसके मन में निर्दयी भाव अधिक सघन होते हैं। इसके अतिरिक्त जैसा कि जयशंकर प्रसाद कहते हैं, ‘दूसरों की दया सब खोजते हैं और स्वयं करनी पड़े तो कान पर हाथ रख लेते हैं,

संभवतः निर्दयी, अपने निर्दयी होने के पीछे अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बखान करके दूसरों की दया का पात्र बनना चाहता है। लेकिन जब उससे दया की अपेक्षा की जाती है, तो वह या तो मुँह मोड़ लेता है या कानों पर हाथ रर भाव के पीछे आत्मप्रशंसा की झलक मिलती है, उसका स्वार्थ पूरा होता दिखाई देता है, तो क्षण भर के लिए दया के मार्ग को चुन लेता है। प्रेमचंद के अनुसार दयालुता दो प्रकार की होती है। एक में नम्रता है, दूसरी में आत्मप्रशंसा। नम्रता भाव से की गई दया निःस्वार्थ होती है।

ऐसे व्यक्ति दया के बदले कुछ भी नहीं चाहते। लेकिन आत्मप्रशंसा अथवा स्वार्थ भाव से प्रेरित दया में, कल्याण भाव नहीं होता। दया करते समय उनकी कल्याण भावना उनके स्वार्थ-पिंजर में कैद हो जाती है। उनकी दया तभी अवतरित होती है, जब यह सुनिश्चित हो जाता है कि उनके दया भाव से उनका हित संवर्धन भी होगा, लेकिन दया में इस प्रकार का शर्त भाव रखना उन्हें ईश्वरीय साधना से विरत रखता है। निस्पृह एवं कल्याण भाव से दया का उत्सर्जन ईश्वर की सच्ची प्राप्ति की दिशा है।

टिप्पणियाँ समाचारपत्रों में विचारपरक लेखन के अंतर्गत अलग-अलग विषयों पर टिप्पणियाँ भी लिखी जाती हैं। इनकी भाषा पूर्णतया सहज एवं सरल होती है। टिप्पणी में विषय के बारे में संक्षिप्त सूचना देते हुए लेखक निजी राय भी व्यक्त करता है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि टिप्पणी उन पाठकों के लिए होती है, जिनके पास संपूर्ण आलेख, रिपोर्ट अथवा फीचर पढ़ने का समय नहीं होता। यहाँ सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी, कमन्टेटर एवं विशिष्ट खेल लेखक सुनील गवास्कर द्वारा लिखित ईडन गार्डन पर हुए भारत-दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट मैच की टिप्पणी दी जा रही है।

हाशिम अमला चाहते तो मैच ड्रा हो जाता-
सुनील गवास्कर की विशेष टिप्पणी

टैस्ट मैच शुरू होने के कुछ दिन पहले तक ईडन गार्डन की पिच के बारे में काफ़ी कयास लगाए जा रहे थे। भारत को छोड़कर दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहाँ पिच को लेकर इतनी अस्पष्टता हो। न ही भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश के लोगों में किसी मैच की पिच को लेकर इतनी उत्सुकता है। बावजूद इसके 22 गज की पिच पर भारत में खेला गया क्रिकेट इस खेल के रोमांच को और ज्यादा बढ़ाने का काम करता है।

ईडन गार्डन की पिच ने बिल्कुल वैसा ही चरित्र दिखाया, जिसके लिए वो जानी जाती है। पिच पर सात शतक लगे और इसके बाद ही मैच का परिणाम निकला। पिच पाँचों दिन खेलने के लिए बेहतरीन रही। यहाँ तक कि पाँचवें दिन युवा इशांत शर्मा की गेंदों को अच्छी गति व उछाल मिल रहा था। इसमें बहुत ज्यादा तो नहीं ठीक-ठाक टर्न मौजूद था। खराब फार्म के कारण आलोचना है हरभजन सिंह ने शानदार गेंदबाजी कर पाँच विकेट लेकर करारा जवाब दिया। उन्हें दूसरे छोर से अमित मिश्रा और इशांत ने भी बराबर का साथ दिया। यही वजह रही कि जहीर खान की गैर मौजूदगी के बावजूद मेजबान टीम दक्षिण अफ्रीका को समेटने में सफल रही।

अकेले अपने दम पर मैच बचाने की कोशिश में अंत तक जुटे रहे हाशिम अमला की जितनी भी तारीफ की जाए, वह कम है। उनका रक्षण बेहद मजबूत था। मेरे लिए इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है कि अमला ने अंतिम सत्र में कई रन लेने से मना कर दिया। अगर वे ऐसा नहीं करते और दक्षिण अफ्रीका मेजबान टीम को दूसरी पारी खेलने पर मजबूर कर देता तो मैच ड्रा रहने की संभावना प्रबल होती। अमला को हालांकि शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों से बिल्कुल भी मदद नहीं मिली। अगर शीर्ष क्रम निचले क्रम से कुछ सीख लेता, तो हालात दूसरे हो सकते थे। मगर यह भारतीय खिलाड़ियों का मिला-जुला प्रयास था, जिसने उनकी बादशाहत बरकरार रखने में मदद की। शाबाश भारत।
-दैनिक जागरण से साभार

संपादकीय लेखन

प्रश्न-
संपादकीय लेखन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संपादकीय समाचारपत्र का महत्त्वपूर्ण स्तंभ माना गया है। यह अखबार की अपनी आवाज़ कही जा सकती है। संपादकीय द्वारा संपादक किसी घटना, समस्या या महत्त्वपूर्ण मुद्दे के बारे में अपने निजी विचार व्यक्त करता है। वस्तुतः संपादकीय पिछले एक-दो दिनों में घटी हुई किसी प्रमुख राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के बारे में वैचारिक टिप्पणी होती है। संपादक उस घटना के मर्म का विश्लेषण करता है तथा उससे उत्पन्न होने वाले प्रभावों का विवेचन भी करता है। संपादकीय लिखने का दायित्व समाचारपत्र के संपादक तथा उसके सहयोगियों पर होता है। प्रायः अखबार का सहायक संपादक ही संपादकीय लिखता है, कोई बाहर का लेखक या पत्रकार, संपादकीय नहीं लिख सकता। संपादकीय से ही किसी समाचारपत्र की रीति-नीति का पता चलता है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि संपादकीय द्वारा समाचारपत्र किसी महत्त्वपूर्ण घटना या समस्या के बारे में अपनी राय जाहिर करता है।

संपादकीय की विशेषताएँ

  1. संपादक अथवा सह-संपादक द्वारा किसी समस्या पर की गई टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है।
  2. अखबार के मध्य का पूरा पृष्ठ या आधा पृष्ठ संपादकीय के लिए निर्धारित होता है।
  3. संपादकीय में संपादक की निजी टिप्पणियाँ होती हैं।
  4. संपादकीय में संपादक अथवा सह-संपादक को अपने विचार प्रकट करने की पूरी छूट होती है।
  5. समाचारपत्र के संपादकीय को पढ़कर ही पाठक उसके बारे में अपनी राय बनाते हैं।
  6. संपादकीय से समाचारपत्र की विचारधारा का पता चल जाता है।
  7. संपादकीय एक ज्ञानवर्धक लेख है। इसको निरंतर पढ़ते रहने से विशेष विषयों की समुचित जानकारी मिलती रहती है।
  8. समाचारपत्र में दो या तीन संपादकीय नियमित रूप से प्रकाशित किए जाते हैं।

महंगाई का सवाल और राजनीतिक खींचतान:
संसद में सरकार भले ही महंगाई पर काम रोको प्रस्ताव के जरिए होने वाली भर्त्सना को रोक ले, किंतु जनता की भर्त्सना तो उसने आमंत्रित कर ही ली है। संसद का बजट सत्र महंगाई के सवाल पर सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध के साथ शुरू हुआ और दोनों सदनों का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि सरकार महंगाई सहित किसी भी विषय पर बातचीत के लिए तैयार है। फिर गतिरोध कहां है? विपक्ष कह रहा है कि वह महंगाई जैसे ज्वलंत विषय पर काम रोको प्रस्ताव के माध्यम से बहस चाहता है, जिसके बाद मत विभाजन करवाना अनिवार्य होता है। सरकार काम रोको प्रस्ताव नहीं चाहती, क्योंकि तब उसे संसद में शक्ति परीक्षण से गुजरना पड़ेगा। उधर जब तक काम रोको प्रस्ताव नहीं मान लिया जाता, हंगामे और नारेबाजी पर अडा विपक्ष संसद नहीं चलने देगा। यही बजट सत्र के पहले दिन हुआ और आगे कब तक जारी रहेगा, कोई नहीं जानता।

करके और सामान्य कामकाज में बाधा डालकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के कीमती समय की बर्बादी जितनी निंदनीय है, उतनी ही रोजमर्रा की बात हो गई है। इसके लिए अक्सर विपक्ष को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन कम-से-कम इस बार विपक्ष अपनी जगह सही है। जरूरी वस्तुओं की बेलगाम बढ़ती कीमतों के कारण आम आदमी त्राहिमाम कर रहा है। अगर इस मुद्दे को विपक्ष पूरी ताकत से संसद में नहीं उठाता और सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं करता, तो वह अपने कर्तव्य में कोताही कर रहा होता।

निश्चित मानदेय पर काम करने वाले पत्रकार को क्या कहते हैं? - nishchit maanadey par kaam karane vaale patrakaar ko kya kahate hain?

विपक्ष की यह दलील भी जायज है कि चूंकि संसद में महंगाई पर पहले भी मत विभाजन के बगैर बहस हो चुकी है और फिर भी सरकार कुछ नहीं कर सकी, इसलिए अब काम रोको प्रस्ताव ही उचित तरीका है। सरकार की मुश्किल यह है कि महंगाई जैसे जनमहत्त्व के सवाल पर न सिर्फ विपक्ष एकजुट है, बल्कि खुद उनकी कुछ सहयोगी पार्टियां सरकार की विफलता के साथ खड़ा होना नहीं चाहेंगी। ऐसे में काम रोको प्रस्ताव का पारित होना सरकार की भर्त्सना के बराबर होगा।

संसद में भले ही सरकार तिकड़मों से इस भर्त्सना को रोक ले, लेकिन महंगाई से त्रस्त जनता की भर्त्सना तो उसने आमंत्रित कर ही ली है। दूसरी ओर, सरकार को कटघरे में खड़ा करके विपक्ष को राजनीतिक संतोष भले मिल जाए, जनता को तो महंगाई से राहत नहीं मिलेगी। देश के आम आदमी के लिए सरकार और विपक्ष की इस पैंतरेबाजी का मूकदर्शक होने की विवशता शायद महंगाई से कम त्रासद नहीं है।
-दैनिक जागरण से साभार

स्तंभ लेखन

प्रश्न-
स्तम्भ लेखन किसे कहते हैं? समाचारपत्रों से स्तंभ लेखन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
स्तंभ लेखन भी विचारपरक लेखन का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। किसी वरिष्ठ पत्रकार अथवा लोकप्रिय लेखक को समाचारपत्र का नियमित स्तंभ लिखने का दायित्व सौंप देता है। लेखक अपनी इच्छानुसार किसी विषय का चयन करके उस पर अपने मौलिक विचार लिखता है। स्तंभ में हमेशा लेखक के अपने विचार व्यक्त होते हैं तथा साथ ही उसका नाम भी दिया जाता है। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि लेखकों के नाम जाने-पहचाने बन जाते हैं और उस समाचारपत्र के साथ जुड़ जाते हैं। प्रायः अनुभवी लेखकों को ही स्तंभ लिखने का अवसर प्रदान किया जाता है। परंतु स्तंभ लेखनकार का जागरूक होना नितांत आवश्यक है। वह जिस किसी विषय पर स्तंभ लेख लिखता है, उसे उसकी समुचित जानकारी होनी चाहिए।

स्तंभ लेखन के कुछ उदाहरण-
बुढ़ापा सुंदर होगा जब जीवन का शिखर बने:
अगर तुमने सही ढंग से और सचमुच जीवन जी लिया है, तो मृत्यु से नहीं डरोगे। जीवन जी लिया है, तो मौत आराम, गहरी नींद बन जाएगी। डर मृत्यु का नहीं होता, बिना जिए जीवन का होता है। अगर मृत्यु का डर नहीं है, तो बुढ़ापे का डर भी नहीं होगा। तब बुढ़ापा खूबसूरत बन जाएगा। वह तुम्हारे होने, तुम्हारी परिपक्वता, तुम्हारे विकास का शिखर हो जाएगा। अगर तुम जिंदगी के हर पल को भरपूर जीते हो, हर चुनौती को पूरा करते हो, हर अवसर का प्रयोग करते हो और अज्ञात के हर उस रोमांच को स्वीकार करते हो जिसके लिए जिंदगी तम्हें पकारती है, तब बढापा परिपक्व हो जाता है जो लोग सीधे-सादे ढंग से बडे होते हैं, वे बगैर परिपक्वता के बूढ़े हो जाते हैं। तब बुढ़ापा बोझ बन जाता है। तब शरीर की उम्र तो बढ़ जाती है, पर चेतना बचकानी बनी रहती है। शरीर तो बूढ़ा हो गया, लेकिन आंतरिक जीवन में परिपक्वता नहीं आई। आंतरिक रोशनी गायब है। जो लोग जिंदगी को भरपूर जीते हैं, वे बुढ़ापे को उत्साह से स्वीकार करते हैं, क्योंकि बुढ़ापा कहता है कि अब तुम प्रस्फुटित हो रहे हो, अब तुम खिल रहे हो, अब तुम दूसरों के साथ वह सब बांट सकते हो जो तुमने हासिल किया है।

बुढ़ापा बेहद खूबसूरत है, क्योंकि सारा जीवन इसके इर्द-गिर्द घूमता है। यह शिखर होना चाहिए। शिखर न शुरुआत में हो सकता है और न जीवन के मध्य में। ऐसा होगा तो जीवन तकलीफों से भर जाएगा, क्योंकि शिखर जल्दी प्राप्त कर लिया, तो अब सिर्फ उतार ही हो सकता है। अगर तुम सोचते हो कि युवावस्था शिखर है, तो पैंतीस की उम्र के बाद तुम उदास हो जाओगे। अवसाद तुम्हें घेर लेगा। फिर तुम खुश कैसे हो सकते हो? इसलिए पहले हम कभी नहीं सोचते कि बचपन या जवानी शिखर है। शिखर अंत की प्रतीक्षा करता है। अगर जीवन का प्रवाह सही तरीके से होता है, तो तुम एक शिखर से और भी ऊँचे शिखर तक पहुँचते हो। मृत्यु जीवन का अंतिम शिखर है, उत्कर्ष है।

जब तुम छोटे बच्चे थे, तभी से समझौते करते आ रहे हो। छोटी और तुच्छ चीजों के लिए तुमने अपनी आत्मा गंवा दी। तुमने अपने-आप की बजाय कोई और होना गवारा कर लिया। यहीं से तुम अपना रास्ता भटक गए। माँ तुम्हें कुछ बनाना चाहती थीं, पिता तुम्हें कुछ बनाना चाहते थे, समाज तुम्हें कुछ बनाना चाहता था। तुम वह सब बनने को तैयार हो गए। फिर तुम नहीं रहे और तभी से तुम ‘कोई और’ होने का ढोग कर रहे हो। तुम इसलिए परिपक्व नहीं हो सकते, क्योंकि वह ‘कोई और’ परिपक्व नहीं हो सकता। वह मिथ्या है। अगर मैं मुखौटा पहन लूं, तो वह मुखौटा परिपक्व नहीं हो सकता। वह निष्प्राण है। मेरा चेहरा परिपक्व हो सकता है, मुखौटा नहीं हो सकता। तुम सिर्फ तभी परिपक्व हो सकते हो, जब तुम अपने आप को स्वीकार करो। अपना जीवन अपने हाथ में लो। तब अचानक तुम अपने भीतर ऊर्जा का विस्फोट देखोगे। जिस क्षण तुम यह फैसला करते हो कि चाहे जो कीमत हो, अब मैं कोई और नहीं, जो मैं हूं, वही होऊँगा, उसी क्षण तुम्हें बड़ा बदलाव दिखेगा।
-दैनिक जागरण से साभार

संपादक के नाम पत्र

प्रश्न-
संपादक के नाम पत्र किस प्रकार लिखे जाते हैं?
उत्तर:
समाचारपत्रों में संपादकीय पृष्ठ के साथ-साथ संपादक के नाम पाठकों के पत्रों का एक कॉलम होता है। जिसका हैडिंग हो सकता है आपके पत्र, आपकी चिट्ठियाँ अथवा आपके विचार। अन्य शब्दों में यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इसके द्वारा पाठक समाचारपत्रों से उठाए गए विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। वस्तुतः यह स्तंभ जनमत का प्रतिनिधित्व करता है। प्रायः समाचारपत्र के संपादक या सह-संपादक इन पत्रों की भाषा में थोड़ा-बहुत सुधार भी कर सकते हैं। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए अत्यधिक उपयोगी है, क्योंकि उन्हें कुछ लिखने का अवसर मिल जाता है, परंतु उन पत्रों के विचार पाठकों के होते हैं, न कि संपादक या सह-संपादक के। इसके कुछ उदाहरण हैं

गैस की कालाबाजारी बंद हो-मैं इस पत्र के माध्यम से संबंधित अधिकारियों को इस ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि मेरे असंध क्षेत्र में एक ही गैस एजेंसी है। इस गैस एजेंसी वाले अपनी मनमानी करते हैं। पर्याप्त सिलेंडर रहने के बावजूद भी नियत अवधि के बाद भी गैस नहीं मिलता। काफी दिन तो चक्कर काटने पड़ते हैं। एक सिलेंडर के बाद दूसरे सिलेंडर लेने में करीब 40 दिन से भी ज्यादा का समय लग जाता है।

जबकि दूसरे सिलेंडर के लिए 22 दिन का समय निर्धारित किया गया है, वैसे तो अब पेट्रोलियम मंत्रालय के आदेशानुसार आप एक सिलेंडर लेने के बाद यदि आपको दूसरे दिन ही सिलेंडर की आवश्यकता पड़ती है, तो गैस एजेंसी के मालिक को गैस देना पड़ेगा, वह सिलेंडर के लिए मनाही नहीं कर सकता। इस प्रावधान के बावजूद भी इस क्षेत्र में सिलेंडर के लिए काफ़ी मारामारी बनी रहती है। गैस एजेंसी मालिक खुलकर गैस की कालाबाजारी करता है। अतः अधिकारियों से निवेदन है कि इस ओर विशेष ध्यान दिया जाए, जिससे इस क्षेत्र के लोगों की समस्या का समाधान हो सके।

निश्चित मानदेय पर काम करने वाले पत्रकार को क्या कहते हैं? - nishchit maanadey par kaam karane vaale patrakaar ko kya kahate hain?

इतिहास पुरुष से सीख लें पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री कामरेड ज्योति बसु का निधन आज के इस घोर स्वार्थी युग में एक सिद्धांतवादी पुरुष की रिक्ती है, जिसे भरा जाना संभव नहीं है। ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल में लगातार 23 वर्ष तक कुशल शासन किया जो आज तक कायम है और रिकार्ड भी। उन्होंने सच्चे दिल से भूमि सुधार नियम लागू किया। कभी भी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया तथा स्वेच्छा से पद को छोड़ा। उन्होंने प्रधानमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद का मोह नहीं किया तथा अपनी पाटी के सिद्धांत को सर्वोपरि माना। धोती, कुर्ता व पैरों में चप्पल उसकी सादगी के प्रतीक थे। ऐसे महान इतिहास पुरुष को क्यों न नमन करें जिन्होंने अपना शरीर मेडीकल के विद्यार्थियों के रिसर्च के लिए दान कर दिया हो और अपनी आँखें भी दान कर दी हों। ज्योति दा आप सदा हमारे दिलों में रहेंगे। आपकी सोच, सिद्धांत, कुशल शासन जो परिवारवाद, जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और आम जनमानस का हितैषी होने का नाटक कर रहे हैं। आप जैसे महान पुरुष से इन लोगों को सीख लेनी चाहिए।

मोबाइल का दुरुपयोग न करें मोबाइल फोन ने आज के युग में नवयुवकों में संचार क्रांति ला दी है। आज यह सभी वर्ग के लोगों की जरूरत में शामिल हो गया है। हालांकि इसके काफी फायदे हैं आप किसी भी समय कहीं भी किसी प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी लोग इसका दुरुपयोग करने से घबराते नहीं हैं। मेरा मानना है कि इसका सदुपयोग करें, दुरुपयोग कभी न करें। सार्वजनिक स्थानों पर धीमी आवाज़ में बात करें, साथ ही संक्षिप्त व जरूरी बातचीत करें। कॉन्फ्रेंस हाल, पूजा स्थल बैठक व प्रोग्राम में अपने सेट का स्विच ऑफ रखें, ताकि कार्यक्रम में बाधा न पड़े। ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर कदापि बात न करें। यह जिंदगी से जुड़ी बात है और गैर कानूनी भी है। मोबाइल गुम होने की स्थिति में एफ.आइ.आर. दर्ज जरूर कराएँ ताकि कोई आपके मोबाइल का दुरुपयोग न करे। मोबाइल को दिल के पास पॉकेट में न रखें। बार-बार अपना नंबर न बदलें। इन सारी बातों पर अमल जरूर करें।

सरकारी स्कूलों में शिक्षा-हरियाणा सरकार जितना शिक्षा के प्रति अब जागरूक है, शायद ही कभी रही होगी। सरकार की ओर से पैसे की कमी नहीं है। गरीब बच्चों को स्कालरशिप, मिड-डे-मील जैसी सुविधाएँ मिल रही हैं। केवल रुपया-पैसा ही सरकारी स्कूलों में संख्या नहीं बढ़ा पाएगा। सभी अध्यापक व अधिकारी जब तक अपने-अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा से नहीं निभायेंगे, तब तक गुणवत्ता नहीं बढ़ सकती। सभी नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए पढ़ाने का पुनीत कार्य व गरीब बच्चों का भविष्य निर्माण कर सकते है। गांव के गरीब बच्चे न तो प्राइवेट ट्यूशन रखने की आर्थिक स्थिति में होते हैं, न ही उतने जागरूक होते हैं। इनको जागरूक करना ब शहरी बच्चों के स्तर तक लाना हमारा कर्तव्य है। गांव के बच्चों में अपार क्षमताएँ हैं। इनमें गुण भरे हुए हैं। ये वे हीरे हैं जो पत्थर बने, मिट्टी से सने पड़े हैं। इनको चमकाना व तराशना एक कुशल अध्यापक के हाथ में है।
-दैनिक जागरण से साभार

लेख

प्रश्न-
समाचारपत्र में छपने वाले लेख पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
समाचारपत्र के संपादकीय पृष्ठ पर ही समसामयिक विषयों पर वरिष्ठ पत्रकारों अथवा किसी विषय के विशेषज्ञों के लेख प्रकाशित होते हैं। अंग्रेज़ी में लेख को Article कहते हैं। इसमें किसी विषय या समस्या पर विस्तारपूर्वक चर्चा की जाती है। परंतु लेख किसी विशेष रिपोर्ट और फ़ीचर से अलग विधा है। इसमें लेखक के विचारों को ही प्रमुखता दी जाती है। लेख में लेखक तथ्यों या सूचनाओं को आधार बनाकर उनका विश्लेषण करता हुआ तर्कपूर्ण राय देता है।

लेख लिखने से पहले लेखक को काफ़ी तैयारी करनी पड़ती है। इसके लिए वह आवश्यक सामग्री जुटाता है। उस विषय पर अन्य लेखकों या पत्रकारों के विचारों को अच्छी प्रकार से जान लेता है। फिर वह अपनी राय व्यक्त करता हुआ विषय पर लेख लिखता है। लेख का विषय कृषि, विज्ञान, शिक्षा, राजनीति आदि कुछ भी हो सकता है। परंतु लेखक को उस विषय की समुचित जानकारी होनी चाहिए, तभी वह उस विषय के साथ न्याय कर पाएगा। लेख का भी अन्य विधाओं की भांति एक आरंभ, मध्य एवं अंत होता है। लेख का आरंभ बड़ा आकर्षक होना चाहिए। मध्य भाग में विषय के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाना चाहिए और उनका विश्लेषण किया जाना चाहिए। इसके बाद लेखक अपना निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकता है। लेख में लेखक की शैली अपनी होती है।

साक्षात्कार अथवा इंटरव्यू

प्रश्न-
साक्षात्कार अथवा इंटरव्यू पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
साक्षात्कार एक अलग प्रकार की विधा है। परंतु समाचारपत्र में इसका विशेष महत्त्व माना गया है। साक्षात्कार के द्वारा ही पत्रकार समाचार-फीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल एकत्रित कर लेता है। इसमें पत्रकार किसी विशेष व्यक्ति, राजनीतिज्ञ अथवा नेता से सामान्य बातचीत करता है तथा उससे संबंधित प्रश्न पूछकर उसकी राय को जानने का प्रयास करता है। एक सफल साक्षात्कारकर्ता के पास न केवल समुचित ज्ञान होना चाहिए, बल्कि उसमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए। पत्रकार जिस किसी विषय के बारे में साक्षात्कार करता है।

उस विषय की उसे समुचित जानकारी होनी चाहिए। उसे इस बात का पता होना चाहिए कि वह क्या जानना चाहता है। साक्षात्कार करने वाले को वही प्रश्न पूछने चाहिए, जो पाठकों के लिए लाभकारी हों। अच्छा तो यही होगा कि साक्षात्कार को रिकॉर्ड कर लिया जाए। यदि ऐसा न हो तो साक्षात्कार करते समय नोट्स लेते रहना चाहिए। साक्षात्कार लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। पहले आप सवाल लिख सकते हैं, बाद में उसका उत्तर लिख सकते हैं। परंतु साक्षात्कार लिखते समय साक्षात्कारकर्ता को बड़ी ईमानदारी के साथ अपना काम करना चाहिए। क्योंकि साक्षात्कार छप जाने के बाद अकसर साक्षात्कारकर्ता और नेता में विवाद छिड़ जाता है।
(एक सामाजिक कार्यकर्ता से साक्षात्कार)
प्रश्न 1.
आपके विचारानुसार आज हमारे राष्ट्र के सामने कौन-सी दो समस्याएँ हैं?
उत्तर:
उनका उत्तर था कि देश के सामने समस्याएँ तो अनेक हैं, परंतु मेरे विचारानुसार उग्रवाद तथा भ्रष्टाचार दो प्रमुख मुद्दे हैं, जिनके बारे में तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
उग्रवाद से देश को कौन-कौन सी हानियाँ हो रही हैं?
उत्तर:
उग्रवाद की सबसे बड़ी हानि यह है कि नागरिकों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो चुकी है। इससे हमारा आर्थिक विकास भी प्रभावित हो रहा है। उग्रवाद हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की देन है, जहाँ केवल मुस्लिम प्रशासन है। परंतु हमारा देश धर्म निरपेक्ष है। इस कारण देश की सांप्रदायिक शांति भंग हो रही है।

निश्चित मानदेय पर काम करने वाले पत्रकार को क्या कहते हैं? - nishchit maanadey par kaam karane vaale patrakaar ko kya kahate hain?

प्रश्न 3.
आपके विचारानुसार उग्रवाद से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
उत्तर:
मैं समझता हूँ कि वर्तमान सरकार को उग्रवादियों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। जब तक उग्रवादियों को कठोर दंड नहीं दिया जाएगा, तब तक बार-बार उग्रवाद की घटनाएँ होती रहेंगी।

प्रश्न 4.
क्या पाकिस्तान सरकार के साथ वार्तालाप किया जाना चाहिए?
उत्तर:
हाँ, वार्तालाप किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके द्वारा हम पाकिस्तानी सरकार को अपनी चिंता से अवगत करा सकते हैं, परंतु हमें अपने पड़ोसी देश के सामने झुकना नहीं चाहिए। इसके साथ-साथ हमें अपनी सैन्य शक्ति को सुदृढ़ तथा मुस्तैद करना चाहिए। यदि हमारे देश की सीमाएँ सुरक्षित हैं, तो उग्रवाद की घुसपैठ नहीं हो सकेगी।

प्रश्न 5.
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। यदि सरकार इसे समाप्त करना चाहती है, तो यह कोई कठिन कार्य नहीं है। सर्वप्रथम सरकार को भ्रष्ट मंत्रियों तथा संसद सदस्यों, विधायकों के प्रति सख्त कदम उठाना चाहिए।

प्रश्न 6.
देश में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी तो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उनके प्रति क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर:
भ्रष्टाचार पूरे देश में व्याप्त है। सरकारी कर्मचारी, व्यापारी तथा अन्य सभी प्रकार के लोग भ्रष्टाचार को जीवन प्रक्रिया का अंग मान चुके हैं, परंतु भ्रष्टाचार के रहते हमारा देश विकास नहीं कर सकता। सरकार को भ्रष्टाचारियों की नकेल तो कसनी ही होगी, यह एक ऐसी दीमक है जो राष्ट्र को अंदर-ही-अंदर खोखला कर रही है। अब बयानबाजी से काम नहीं चल सकता, अब सरकार को कुछ करके दिखाना चाहिए।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
किसे क्या कहते हैं-
(क) सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना को सबसे ऊपर रखना और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में सूचनाएँ देना ………..।
(ख) समाचार के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्त्वपूर्ण पहलू……………
(ग) किसी समाचार के अंतर्गत उसका विस्तार, पृष्ठभूमि, विवरण आदि देना…………………..
(घ) ऐसा सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन; जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान दिया जाता है……………
(ङ) किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण…………..
(च) वह लेख, जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचारपत्र की अपनी राय प्रकट होती है……………..
उत्तर:
(क) उलटा पिरामिड।
(ख) चरम सीमा।
(ग) विशेष रिपोर्ट।
(घ) फ़ीचर।
(ङ) आलेख अथवा स्तंभ।
(च) संपादकीय।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए समाचार के अंश को ध्यानपूर्वक पढ़िए-
शांति का संदेश लेकर आए फजलुर्रहमान
पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फजलुर्रहमान ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा कि वह शांति व भाईचारे का संदेश लेकर आए हैं। यहाँ दारूलउलूम पहुँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई वार्ता के संदर्भ में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा के पाकिस्तानी सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 9 प्रस्ताव दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। कश्मीर समस्या के संबंध में मौलाना साहब ने आशावादी रवैया अपनाते हुए कहा है कि 50 वर्षों की इतनी बड़ी जटिल समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नहीं है। लेकिन इस समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा। प्रधानमंत्री के प्रस्तावित पाकिस्तान दौरे की बाबत उनका कहना था कि निकट भविष्य में यह संभव है और हम लोग उनका ऐतिहासिक स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा है कि दोनों देशों के रिश्ते बहुत मज़बूत हुए हैं और प्रथम बार सीमाएँ खुली हैं, व्यापार बढ़ा है तथा बसों का आवागमन आरंभ हुआ है।
(हिंदुस्तान से साभार)

(क) दिए गए समाचार में से ककार ढूँढकर लिखिए।
क्या-शांति और भ्रातृभाव का संदेश।
कौन-पाकिस्तान में विपक्ष के नेता।
कहाँ-दारूलउलूम पहुँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए।
कब-भारत यात्रा के दौरान।
क्यों दोनों देशों के संबंधों में सुधार के लिए।
कैसे-दोनों देशों में वार्तालाप द्वारा।

निश्चित मानदेय पर काम करने वाले पत्रकार को क्या कहते हैं? - nishchit maanadey par kaam karane vaale patrakaar ko kya kahate hain?

(ख) उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट कीजिए-

  • इंट्रो-पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फजलुर्रहमान ने भारत यात्रा के दौरान शांति और भाईचारे का संदेश दिया।
  • बॉडी दारूलउलूम पहुँचने पर उन्होंने पत्रकार सम्मेलन में जो कुछ कहा वह सब बॉडी में सम्मिलित होगा।
  • समापन-भारत-पाक संबंधों में मज़बूती, सीमाओं का खुलना, व्यापार बढ़ना तथा बसों द्वारा यात्रियों का आवागमन।

(ग) उपर्युक्त उदाहरण का गौर से अवलोकन कीजिए और बताइए कि ये कौन-सी पिरामिड-शैली में है, और क्यों?
उत्तर:
समाचार होने के कारण यह उल्टा पिरामिड-शैली में लिखित है। इसमें सर्वप्रथम इंट्रो है, मध्य में बॉडी है और अंत में समापन है। अतः यह पिरामिड-शैली का उचित उदाहरण है।

प्रश्न 3.
एक दिन के किन्हीं तीन समाचारपत्रों को पढ़िए और दिए गए बिंदुओं के संदर्भ में उनका तुलनात्मक अध्ययन कीजिए
(क) सूचनाओं का केंद्र/मुख्य आकर्षण
(ख) समाचार का पृष्ठ एवं स्थान
(ग) समाचार की प्रस्तुति
(घ) समाचार की भाषा-शैली
उत्तर:

दैनिक जागरण दैनिक भास्कर नवभारत टाइम्स
(क) राजनीति, विदेश की घटनाएँ, खेलकूद, हरियाणा के समाचार आकर्षक ढंग से दिए गए हैं। राजनीति, खेलकूद, ग्रामीण क्षेत्रों के समाचार, मनोरंजक तथा फ़िल्मी समाचारों को प्रमुखता दी गई है। राजनीति, मुख्य खेल समाचार, विदेश से संबंधित समाचार, सैंसेक्स का उछाल या गिरावट।
(ख) समाचार-प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा सातवें पृष्ठों पर। समाचार-प्रथम, तृतीय, चतुर्थ तथा छठे पृष्ठों पर। पहले पाँच पृष्ठों पर समाचार।
(ग) समाचार प्रस्तुति का ढंग साधारण परंतु रोचक। सरल, प्रवाहमय और बोधगम्य भाषा-शैली समाचार प्रस्तुति का ढंग निम्न स्तर का तथा प्रभावहीन। सहज, सरल तथा सामान्य बोलचाल की भाषा-शैली समाचार प्रस्तुति उच्च स्तरीय, प्रभावशाली एवं रोचक। सहज, सरल तथा साहित्यिक भाषा-शैली।

प्रश्न 4.
अपने विद्यालय और मुहल्ले के आसपास की समस्याओं पर नज़र डालें। जैसे-पानी की कमी, बिजली की कटौती, खराब सड़कें, सफाई की दुर्व्यवस्था। इनमें से किन्हीं दो विषयों पर रिपोर्ट तैयार करें और अपने शहर के अखबार में भेजें।
उत्तर:
(क) बिजली की कटौती:
जून का महीना शुरू हो चुका है। भीषण गर्मी पड़ रही है। दिनभर लू चलती रहती है। रात को मच्छरों की भिनभिनाहट चैन से सोने नहीं देती। इस पर बिजली की अघोषित कटौती ने लोगों का जीना दूभर कर रखा है। दिन में पाँच घंटे के लिए नियमित रूप से बिजली जाती है, परंतु बीच-बीच में एक-एक घंटे का कट लगता रहता है। बिजली के कार्यालय में शिकायत करो तो कोई सुनने वाला नहीं। समाचारपत्रों में भी समय-समय पर बिजली कटौती के समाचार छपते रहते हैं, परंतु सरकार के कानों पर तक नहीं रेंगती। इस पर राज्य के मुख्यमंत्री बार-बार यहीं बयान देते रहते हैं कि शीघ्र ही बिजली की कमी दूर हो जाएगी। गाँव में भी बिजली की कटौती के कारण त्राहि-त्राहि मची हुई है नहरों में पानी नहीं है, और ट्यूबवैल चलाने के लिए बिजली नहीं है जिससे किसानों की फसलें सूख रही हैं। आखिर लोग किससे फरियाद करें और किसके सामने गुहार लगाएँ। पता नहीं यह स्थिति कब तक चलती रहेगी।

(ख) खराब सड़कें:
हमारे नेता अकसर घोषणा करते रहते हैं कि हरियाणा नंबर वन है। हमारा नगर जी०टी० रोड पर स्थित है। कहने के लिए यह राज्य का सर्वश्रेष्ठ नगर कहा जाता है, परंतु इस नगर की लगभग साठ प्रतिशत सड़कें टूटी-फूटी हैं। हर वक्त जाम लगा रहता है। सड़कों पर जगह-जगह गहरे गड्ढे बने हुए हैं। ट्रक, ट्रैक्टर और बसें उछलते हुए चलते हैं। स्कूटर तथा मोटरसाइकिल वालों की दुर्गति होती है। न जाने कितने लोग सड़क पर गिरकर अपनी टाँगें तुड़वा चुके हैं। हड्डियों के डॉक्टरों की चाँदी बनी हुई है। थोड़ी-सी बरसात हो जाती है, तो गड्ढों में पानी भर जाता है। स्कूटर तथा मोटरसाइकिल चालक को पता ही नहीं चल पाता कि कहाँ पर गड्ढा है। मुख्यमंत्री से शिकायत करें, तो उसका जवाब होता है कि सड़कों की देखभाल करना कमेटी का दायित्व है। कमेटी वाले मुख्यमंत्री को दोषी बताते हैं। न तो स्थानीय विधायक इस ओर ध्यान देता है, न ही उपायुक्त। लगता है जनता को खराब सड़कों का निरंतर सामना करना पड़ेगा।

(ग) पानी की कमी:
यूँ तो हमारे नगर में पूरा वर्ष पानी की कमी बनी रहती है परंतु मई तथा जून के महीनों में पानी की कमी लोगों के लिए मुसीबत बन जाती है। आकाश से अंगारे बरसते हैं और पूरा दिन लू चलती रहती है। पानी की यह हालत है कि सवेरे एक घंटे के लिए पानी आता है फिर शाम को दो घंटे के लिए। कभी-कभी तो दिनभर नलों से पानी नहीं टपकता। जब आता भी है तो इतना कम आता है कि लोग अपनी आवश्यकता के लिए पानी इकट्ठा नहीं कर पाते। इस पर समाज के सुविधाभोगी लोगों ने अपने घरों में बिजली की मोटरें लगवा रखी हैं। जैसे पानी आता है तो यह मोटरें सारा पानी खींच लेती हैं। गरीब लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता। यद्यपि कमेटी ने टैंकरों द्वारा पानी भेजने का प्रबंध कर रखा है पर वे भी कभी-कभार दर्शन देते हैं। पानी की कमी के कारण घरों में लगे पौधे सूख गए हैं तथा सप्ताह में एक-दो बार ही नहाना हो सकता है। पीने को पानी मिल जाए तो गनीमत है। पता नहीं यह पानी की कमी कब समाप्त होगी। गरीब लोगों के पास पीने के लिए पानी नहीं है, परंतु बड़ी-बड़ी कोठियों में दिन भर फव्वारे चलते रहते हैं और उनके घरों के प्रांगण हरे-भरे दिखाई देते हैं पर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।

प्रश्न 5.
किसी क्षेत्र विशेष से जुड़े व्यक्ति से साक्षात्कार करने के लिए प्रश्न-सूची तैयार कीजिए, जैसे
→ संगीत/नृत्य
→ चित्रकला
→ शिक्षा
→ अभिनय
→ साहित्य
→ खेल
उत्तर:
क्रिकेट के खिलाड़ी से पूछे गए प्रश्नों की सूची-

  1. आपने क्रिकेट खेलना कब आरंभ किया?
  2. रणजी ट्रॉफी में आपको खेलने का मौका कब मिला?
  3. जिला स्तर पर आपने सर्वाधिक कितने रन बनाए?
  4. रणजी ट्रॉफी में आपका सर्वाधिक स्कोर कितना रहा?
  5. क्या इस बार भी आपको आई.पी.एल. में खेलने का मौका मिल रहा है?
  6. क्या आपने कभी बॉलिंग भी की है?
  7. अब तक आप रणजी ट्रॉफी के मैचों में कितनी विकटें चटका चुके हैं?
  8. क्या आपको कभी राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेलने का मौका मिला है?
  9. क्या आप अपने वर्तमान खेल से संतुष्ट हैं?
  10. हरियाणा सरकार की ओर से आपको कोई सुविधा प्राप्त हुई है?
  11. क्रिकेट खेलने के अतिरिक्त आप किस संस्थान में नौकरी कर रहे हैं?
  12. आप विवाह कब करने जा रहे हैं?

प्रश्न 6.
आप अखबार के मुख पृष्ठ पर कौन-से छह समाचार शीर्षक सुर्खियाँ (हेडलाइन) देखना चाहेंगे। उन्हें लिखिए।
उत्तर:
हम अखबार के मुख्य पृष्ठ पर निम्नलिखित समाचार शीर्षक देखना चाहेंगे-

  1. भारत-पाक में स्थायी शांति का दौर।
  2. उद्योगपतियों ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का दायित्व संभाला।
  3. कश्मीर के आतंकवादी समाज कल्याण में जुटे।
  4. भारत हॉकी विश्व कप के फाइनल में।
  5. विश्वभर के परमाणु बमों को नष्ट करने का फैसला।
  6. भारत की आर्थिक अर्थव्यवस्था सुदृढ़।

निश्चित मानदेय पर काम करनेवाले पत्रकार को क्या कहते हैं?

अशंकालिक पत्रकार ऐसे पत्रकार होते हैं जो किसी समाचार संगठन के लिए काम तो करते हैं लेकिन एक निश्चित समय के लिए निश्चित मानदेय पर काम करते हैं !!!

वेतन भोगी पत्रकार को क्या कहते हैं?

एक समाचार संगठन में काम करने वाले नियमित वेतन भोगी कर्मचारी कहलाते हैं। Explanation: एक समाचार संगठन में, विभिन्न पदों वाले कई कर्मचारी हो सकते हैं

पत्रकार की बैसाखियों कौन कौन सी है?

Answer: उसकी द्वारा एकत्रित की गई खबर में पूरी तरह सच्चाई हो। Explanation: पत्रकार को सभी पक्षों में संतुलन स्थापित करके खबर का निर्माण करना चाहिए ताकि कोई भी समाचार किसी एक पक्ष की ओर झुका हुआ प्रतीत ना हो।