Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया Questions and Answers, Notes. प्रश्न 1. पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं- (1) पूर्णकालिक पत्रकार पत्रकार किसी-न-किसी समाचार संगठन का नियमित कर्मचारी होता है और वेतन आदि सभी सुविधाओं को प्राप्त करता है। (2) अंशकालिक पत्रकार-किसी भी समाचार संगठन द्वारा निश्चित किए गए मानदेय पर काम करता है। (3) फ्रीलांसर-पत्रकार का किसी विशेष समाचार संगठन से संबंध नहीं होता। वह अलग-अलग समाचार पत्रों के लिए लिखता
है और बदले में कुछ पारिश्रमिक प्राप्त करता है। पत्रकारीय लेखन का संबंध देश तथा समाज में घटने वाली समस्याओं से होता है। पत्रकार तत्कालीन घटनाओं का वर्णन लिखकर समाचार संगठन को भेजता है। उसे पाठकों की रुचियों का भी ध्यान रखना होता है। वह हमेशा इस बात का ध्यान रखता है कि उसका लेखन विशाल जनसमूह के लिए है न कि किसी वर्ग-विशेष के लिए। उससे यह आशा की जाती है कि वह सहज, सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करे, उसे लंबे-लंबे वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही अनावश्यक विशेषणों और उपमाओं
का प्रयोग करना चाहिए। प्रश्न 2. प्रश्न 3.
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) अर्थात् पहले पैराग्राफ़ या प्रघटक में तीन या
चार ककारों के आधार पर कुछ पंक्तियों में खबरें लिखी जाती हैं। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में तथा समापन से पहले अन्य दो ककारों जैसे; कैसे और क्यों का उत्तर लिखा जाता है और समाचार तैयार हो जाता है। पहले चार ककारों में सूचना तथा तथ्य दिए जाते हैं, शेष दो ककारों में विवरण, व्याख्या तथा विश्लेषण आदि पहलुओं पर बल दिया जाता है। एक उदाहरण द्वारा हम इसे स्पष्ट कर सकते हैं समाचार का शीर्षक-पुणे में बम विस्फोट से 9 लोग मरे, 60 घायल समाचार का इंट्रो-पुणे में 13 फरवरी के ओशो आश्रम के पास स्थित एक बेकरी में सायं 7.30 बजे बम विस्फोट में नौ ग्राहकों की मृत्यु हो गई और लगभग 60 लोग घायल हो गए। घायलों को निकटवर्ती अस्पतालों में भर्ती करा दिया गया है। समाचार की बॉडी-आतंकवादियों की इस दिल दहला देने वाली घटना से पूरा नगर हिल गया। मरने वालों में विदेशी नागरिक भी थे। अभी तक किसी आतंकवादी संगठन ने इस विस्फोट की ज़िम्मेदारी नहीं ली। पुलिस दस्तों को इसके पीछे पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष हाथ नज़र आ रहा है। महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री ने कहा कि यह घटना बड़ी दुखद है। पुलिस कमिश्नर ने कहा कि सरकार ने इस घटना की जाँच के लिए खोजी दस्ता लगा दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुलिस दल एक घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंचा। यहाँ पर यह स्पष्ट किया गया है कि इंट्रों में चार ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ से संबंधित आवश्यक जानकारी दी गई है। तत्पश्चात् अन्य दो ककारोंकैसे तथा क्यों द्वारा दुर्घटना के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। अंत में राज्य के गृहमंत्री, पुलिस कमिश्नर तथा प्रत्यक्षदर्शियों के विचार भी दिए गए हैं। प्रश्न 4. फ़ीचर समाचार की तरह पाठकों को तत्काल घटित घटनाओं से परिचित नहीं कराता। फीचर लेखन की शैली समाचार लेखन की शैली से अलग प्रकार की होती है। समाचार लिखते समय संवाददाता वस्तुनिष्ठ एवं शुद्ध तथ्यों का प्रयोग करता है। समाचार में वह अपने विचार प्रकट नहीं कर सकता। परंतु फीचर लेखक अपनी भावनाओं, दृष्टिकोणों तथा विचारों को व्यक्त करता है। फीचर-लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग न करके सीधी पिरामिड-शैली अर्थात् कथात्मक-शैली का प्रयोग किया जाता है। दूसरा फीचर लेखन की भाषा समाचारों की भाषा की तरह सामान्य बोलचाल की नहीं होती, बल्कि यह सरल, रूपात्मक, साहित्यिक, आकर्षक और मन को छूने वाली होती है। फीचर में समाचारों के समान शब्दों की संख्या सीमित नहीं होती। प्रायः समाचारपत्र तथा पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फीचर छपते हैं। एक सफल तथा रोचक फ़ीचर के साथ फोटो, रेखांकन तथा ग्राफिक्स का प्रयोग किया जाता है। यह हलके-फुलके विषयों से लेकर किसी गंभीर या महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर लिखा जा सकता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि फ़ीचर एक ऐसा ट्रीटमेंट है जो प्रायः विषय तथा समस्या के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है। यह पाठकों की रुचि तथा समाज की आवश्यकताओं को देखकर लिखा जाता है। प्रश्न 5.
फ़ीचर लिखते समय कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना जरूरी माना गया है। फीचर को सजीव बनाने के लिए विषय-वस्तु से जुड़े हुए लोगों का होना आवश्यक है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि फ़ीचर में कुछ पात्र भी होने चाहिएँ, उन्हीं के द्वारा विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। फीचर में विषय-वस्तु का वर्णन इस प्रकार होना चाहिए कि पाठक को यह लगे कि वह स्वयं देख रहा है और सुन भी रहा है। एक दूसरी विशेषता यह है कि फ़ीचर मनोरंजक होने के साथ-साथ सूचनात्मक भी होना चाहिए। फ़ीचर में नीरसता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह आकर्षक और रोचक होना चाहिए। फ़ीचर पढ़ते समय पाठक को ऐसा न लगे कि वह किसी बैठक अथवा सभा की कार्यवाही का विवरण पढ़ रहा है। यही कारण है कि फीचर लिखते समय लेखक तथ्यों, सूचनाओं तथा विचारों को आधार बनाता है, परंतु वह कथात्मक विवरण द्वारा विषय का विश्लेषण करता हुआ आगे बढ़ता है। फीचर में कोई-न-कोई विषय अर्थात् थीम अवश्य होता है, उसी के चारों ओर सभी सूचनाएँ, तथ्य और विचार गुँथे जाते हैं। उल्लेखनीय बात तो यह है कि फीचर पाठक के मन को भाना चाहिए। प्रश्न 6.
प्रश्न 7.
यों तो फीचर लिखने का कोई निश्चित फार्मूला नहीं होता है। इसे कहीं से भी शुरू किया जा सकता है। फिर भी प्रत्येक फीचर में प्रारंभ, मध्य और अंत अवश्य होता है। प्रारंभ-फीचर का प्रारंभ आकर्षक तथा जिज्ञासावर्धक होना चाहिए। यदि हम किसी लोकप्रिय कवि पर व्यक्तिचित्र फीचर लिखने जा रहे हैं, तो हम उसकी शुरुआत किसी ऐसी घटना के वाक्य से कर सकते हैं जिसने उनके जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। मध्य-फीचर के मध्य भाग में उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएँ, उसकी उपलब्धियों और विशेषज्ञों के रोचक, आकर्षक एवं खास वक्तव्यों पर प्रकाश डाला जा सकता है। यही नहीं, हम उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाल सकते हैं। अंत-फीचर के अंतिम भाग में उस लोकप्रिय व्यक्ति की भावी योजनाओं पर ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिए। ताकि उस लोकप्रिय व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व पाठकों के समक्ष उभरकर आ सके। फ़ीचर लेखन में इस प्रकार के विषय का चयन करना चाहिए जो समसामयिक होने के साथ-साथ लोकरुचि के अनुकूल हो। फीचर की सामग्री विभिन्न स्थलों पर जाकर एकत्रित की जा सकती है। फीचर लिखते समय लेखक को अपनी तर्कशील तथा सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। फ़ीचर के कुछ उदाहरण मसूरी का कैंप्टीफॉल: ठंडे पानी में घुसते ही शरीर में झुरझुरी-सी आ जाती है। ऐसा लगता है कि मानों गंगा की धारा व्यक्ति के सिर पर गिर रही हो। छोटे बच्चे जल की इस धारा को सहन नहीं कर सकते। इसलिए माता-पिता अपने छोटे पुत्र या पुत्री को कंधे पर बिठाकर झरने के नीचे ले जाते हैं। कुछ देर स्नान करने के बाद यात्री बाहर निकल आते हैं और आने वाले यात्री उस जल में प्रवेश करते हैं। सरोवर के चारों ओर बड़ा ही सुखद वातावरण होता है। जो भी व्यक्ति मसूरी जाता है, वह कैंप्टीफॉल में अवश्य स्नान करता है। इस दृश्य को देखे बिना मसूरी की यात्रा व्यर्थ है। महानगर की ओर पलायन करने की समस्या: यहाँ उसे या तो रिक्शा चलानी पड़ती है या छोटी-मोटी मजदूरी करनी पड़ती है। रहने के लिए झुग्गी-झोंपड़ियों की ओर रुख करता है, न तो वह गाँव की ओर लौट पाता है, न ही महानगर में सुखपूर्वक रह पाता है। कुछ लोग तो भयंकर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं कुछ अपराधियों के चंगुल में फँस जाते हैं। इस समस्या का हल तत्काल खोजना होगा। सरकार को अतिशीघ्र गाँव के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। यदि गाँव में बिजली, पानी, रोजगार की सुविधाएँ प्राप्त हो जाएँ, तो कोई भी गाँव का निवासी महानगरों की ओर मुँह नहीं करेगा। अतः गाँव में ही कुटीर उद्योगों का जाल फैलाया जाना चाहिए और कृषि उद्योग के विकास की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। विशेष रिपोर्ट प्रश्न 8. विशेष रिपोर्ट के अनेक प्रकार होते हैं-
(1) खोजी रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में संवाददाता मौलिक शोध तथा छानबीन करता हुआ सूचनाओं तथा तथ्यों को उजागर करता है। क्योंकि पहले ये सूचनाएँ तथा तथ्य सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं होते। प्रायः भ्रष्टाचार, अनियमितता तथा गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए खोजी रिपोर्ट लिखी जाती है, परंतु इस कार्य में खतरा भी होता है, क्योंकि भ्रष्ट तथा अपराधी प्रवृत्ति के लोग उसे शारीरिक तथा मानसिक हानि भी पहुँचा सकते हैं। (2) इन-डेप्थ रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं तथा आँकड़ों की गहराई से छानबीन की जाती है। तत्पश्चात् किसी घटना, समस्या या मुद्दे के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है। (3) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या से संबंधित तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है तथा फिर व्याख्या करने के बाद उसका कोई निष्कर्ष निकाला जाता है। (4) विवरणात्मक रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या का विस्तृत और सूक्ष्म विवरण दिया जाता है और उसको रोचक बनाया जाता है। विशेष रिपोर्ट लिखने की शैली-प्रायः विशेष रिपोर्टों में समाचार लेखन की उलटा पिरामिड-शैली का ही प्रयोग किया जाता है। लेकिन कुछ रिपोर्ट फीचर शैली में भी लिखी जाती हैं, कारण यह है कि रिपोर्ट सामान्य समाचारों की अपेक्षा आकार में बड़ी और विस्तृत होती हैं, इसलिए पाठकों में रुचि जाग्रत करने के लिए उलटा पिरामिड-शैली और फीचर शैली का मिश्रित प्रयोग किया जाता है। यदि रिपोर्ट बहत विस्तृत और बड़ी हो, तो उसे शृंखलाबद्ध करके किस्तों में भी छापा जा सकता है। वि समय निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए-
विशेष रिपोर्ट के कुछ उदाहरण गाँव में मनाए गए वृक्षारोपण समारोह की रिपोर्ट सचिन सिर्फ सचिन ही हैं और सचिन ही रहेंगे ‘रन मशीन’ तो अब बहुत ही छोटा विशेषण लगता है सचिन की महिमा का बखान करने के लिए। (मशीनें भी कई बार खराब हो जाती हैं, टूट-फूट जाती हैं और दगा दे सकती हैं।) 36 वर्ष की उम्र में भी तेंदुलकर जब क्रिकेट मैदान पर उतरते हैं तब ऐसा लगता है कि वे कोई-न-कोई नया कीर्तिमान बनाने के लिए ही उतरते हों। ग्वालियर में उन्होंने वन डे में सर्वाधिक रनों का जो रिकॉर्ड बनाया है वह इसलिए खास है क्योंकि उन्हें क्रिकेट की और भी ऊँची पायदान पर स्थापित कर देता है। इससे पहले हैदराबाद में न्यूजीलैंड के खिलाफ 186 रन की पारी या पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 175 रनों की पारी या फिर क्राइस्टचर्च में न्यूजीलैंड के खिलाफ 163 रन की पारी हो, वन डे में दोहरा शतक हमेशा उनके साथ आँख-मिचौनी खेलता रहा, जिसे इस बार उन्होंने जादुई कलात्मकता के साथ अपने नाम लिख लिया है। ऐसा करने वाले वे विश्व के पहले बल्लेबाज हो गए हैं। ग्वालियर में उन्होंने फिर भारत और क्रिकेट की शान बढ़ाई और दिखा दिया कि एकाग्रता, नम्रता और कड़ी मेहनत से भला कौन-सी कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती। प्रश्न 9. विचारपरक लेख में किसी विषय का विशेषज्ञ अथवा वरिष्ठ पत्रकार किसी महत्त्वपूर्ण विषय अथवा समस्या पर विस्तारपूर्वक चर्चा करता है। इस प्रकार के लेख में लेखक के विचार मौलिक होते हैं, परंतु वे पूर्णतया तथ्यों या सूचनाओं पर आधारित होते हैं। लेखक विषय का विश्लेषण करते हुए तर्क सम्मत शैली के द्वारा अपने विचार प्रस्तुत करता है और अपना दृष्टिकोण प्रकट करता है। इस प्रकार का लेख लिखने से पहले लेखक को काफी तैयारी करनी पड़ती है। वह विषय से संबंधित समुचित जानकारी एकत्रित कर लेता है और विचारपरक लेख लिखने से पहले अन्य तथा वरिष्ठ पत्रकारों के विचारों को अच्छी प्रकार से जान लेता है। विचारपरक लेख में लेखक की अपनी मौलिक शैली होती है। इस लेख में प्रारंभ, मध्य और अंत रहता है। प्रायः लेख का आरंभ किसी ताजा प्रसंग या घटनाक्रम के विवरण से किया जाता है और धीरे-धीरे लेखक विषय के बारे में अपने विचार व्यक्त करता है। अंग्रेज़ी में खुशवंत सिंह अपने विचारपरक लेखों के लिए प्रसिद्ध थे। उनके ऐसे लेख हिंदी समाचारपत्रों में भी प्रकाशित होते रहते हैं। एक उदाहरण देखिए दया भाव: दया भाव से प्रेरित व्यक्ति को न तो किसी हित लाभ की अपेक्षा होती है और न ही अपनी प्रशंसा की ललक। उसे किसी दुखी व्यक्ति के होंठों पर हल्की सी मुस्कराहट देखने मात्र से जिस नैसर्गिक और स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। दया सर्वव्यापी भाव है। विचारक एवं कवि श्रीमन्नारायण के शब्दों में, ‘दया निर्दयी के मन में भी वास करती है। जिस तरह से मरुस्थल में मीठे खजर उगते हैं, उसी प्रकार निर्दयी दिल में भी दया के भरपुर अंकर होते हैं। संभवतः निर्दयी व्यक्ति की दया का एहसास समाज को देर से हो पाता है, क्योंकि दया भाव की अपेक्षा उसके मन में निर्दयी भाव अधिक सघन होते हैं। इसके अतिरिक्त जैसा कि जयशंकर प्रसाद कहते हैं, ‘दूसरों की दया सब खोजते हैं और स्वयं करनी पड़े तो कान पर हाथ रख लेते हैं, संभवतः निर्दयी, अपने निर्दयी होने के पीछे अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बखान करके दूसरों की दया का पात्र बनना चाहता है। लेकिन जब उससे दया की अपेक्षा की जाती है, तो वह या तो मुँह मोड़ लेता है या कानों पर हाथ रर भाव के पीछे आत्मप्रशंसा की झलक मिलती है, उसका स्वार्थ पूरा होता दिखाई देता है, तो क्षण भर के लिए दया के मार्ग को चुन लेता है। प्रेमचंद के अनुसार दयालुता दो प्रकार की होती है। एक में नम्रता है, दूसरी में आत्मप्रशंसा। नम्रता भाव से की गई दया निःस्वार्थ होती है। ऐसे व्यक्ति दया के बदले कुछ भी नहीं चाहते। लेकिन आत्मप्रशंसा अथवा स्वार्थ भाव से प्रेरित दया में, कल्याण भाव नहीं होता। दया करते समय उनकी कल्याण भावना उनके स्वार्थ-पिंजर में कैद हो जाती है। उनकी दया तभी अवतरित होती है, जब यह सुनिश्चित हो जाता है कि उनके दया भाव से उनका हित संवर्धन भी होगा, लेकिन दया में इस प्रकार का शर्त भाव रखना उन्हें ईश्वरीय साधना से विरत रखता है। निस्पृह एवं कल्याण भाव से दया का उत्सर्जन ईश्वर की सच्ची प्राप्ति की दिशा है। टिप्पणियाँ समाचारपत्रों में विचारपरक लेखन के अंतर्गत अलग-अलग विषयों पर टिप्पणियाँ भी लिखी जाती हैं। इनकी भाषा पूर्णतया सहज एवं सरल होती है। टिप्पणी में विषय के बारे में संक्षिप्त सूचना देते हुए लेखक निजी राय भी व्यक्त करता है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि टिप्पणी उन पाठकों के लिए होती है, जिनके पास संपूर्ण आलेख, रिपोर्ट अथवा फीचर पढ़ने का समय नहीं होता। यहाँ सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी, कमन्टेटर एवं विशिष्ट खेल लेखक सुनील गवास्कर द्वारा लिखित ईडन गार्डन पर हुए भारत-दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट मैच की टिप्पणी दी जा रही है। हाशिम अमला चाहते तो मैच ड्रा हो जाता- टैस्ट मैच शुरू होने के कुछ दिन पहले तक ईडन गार्डन की पिच के बारे में काफ़ी कयास लगाए जा रहे थे। भारत को छोड़कर दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहाँ पिच को लेकर इतनी अस्पष्टता हो। न ही भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश के लोगों में किसी मैच की पिच को लेकर इतनी उत्सुकता है। बावजूद इसके 22 गज की पिच पर भारत में खेला गया क्रिकेट इस खेल के रोमांच को और ज्यादा बढ़ाने का काम करता है। ईडन गार्डन की पिच ने बिल्कुल वैसा ही चरित्र दिखाया, जिसके लिए वो जानी जाती है। पिच पर सात शतक लगे और इसके बाद ही मैच का परिणाम निकला। पिच पाँचों दिन खेलने के लिए बेहतरीन रही। यहाँ तक कि पाँचवें दिन युवा इशांत शर्मा की गेंदों को अच्छी गति व उछाल मिल रहा था। इसमें बहुत ज्यादा तो नहीं ठीक-ठाक टर्न मौजूद था। खराब फार्म के कारण आलोचना है हरभजन सिंह ने शानदार गेंदबाजी कर पाँच विकेट लेकर करारा जवाब दिया। उन्हें दूसरे छोर से अमित मिश्रा और इशांत ने भी बराबर का साथ दिया। यही वजह रही कि जहीर खान की गैर मौजूदगी के बावजूद मेजबान टीम दक्षिण अफ्रीका को समेटने में सफल रही। अकेले अपने दम पर मैच बचाने की
कोशिश में अंत तक जुटे रहे हाशिम अमला की जितनी भी तारीफ की जाए, वह कम है। उनका रक्षण बेहद मजबूत था। मेरे लिए इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है कि अमला ने अंतिम सत्र में कई रन लेने से मना कर दिया। अगर वे ऐसा नहीं करते और दक्षिण अफ्रीका मेजबान टीम को दूसरी पारी खेलने पर मजबूर कर देता तो मैच ड्रा रहने की संभावना प्रबल होती। अमला को हालांकि शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों से बिल्कुल भी मदद नहीं मिली। अगर शीर्ष क्रम निचले क्रम से कुछ सीख लेता, तो हालात दूसरे हो सकते थे। मगर यह भारतीय खिलाड़ियों का
मिला-जुला प्रयास था, जिसने उनकी बादशाहत बरकरार रखने में मदद की। शाबाश भारत। संपादकीय लेखन प्रश्न- संपादकीय की विशेषताएँ
महंगाई का सवाल और राजनीतिक खींचतान: करके और सामान्य कामकाज में बाधा डालकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के कीमती समय की बर्बादी जितनी निंदनीय है, उतनी ही रोजमर्रा की बात हो गई है। इसके लिए अक्सर विपक्ष को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन कम-से-कम इस बार विपक्ष अपनी जगह सही है। जरूरी वस्तुओं की बेलगाम बढ़ती कीमतों के कारण आम आदमी त्राहिमाम कर रहा है। अगर इस मुद्दे को विपक्ष पूरी ताकत से संसद में नहीं उठाता और सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं करता, तो वह अपने कर्तव्य में कोताही कर रहा होता। विपक्ष की यह दलील भी जायज है कि चूंकि संसद में महंगाई पर पहले भी मत विभाजन के बगैर बहस हो चुकी है और फिर भी सरकार कुछ नहीं कर सकी, इसलिए अब काम रोको प्रस्ताव ही उचित तरीका है। सरकार की मुश्किल यह है कि महंगाई जैसे जनमहत्त्व के सवाल पर न सिर्फ विपक्ष एकजुट है, बल्कि खुद उनकी कुछ सहयोगी पार्टियां सरकार की विफलता के साथ खड़ा होना नहीं चाहेंगी। ऐसे में काम रोको प्रस्ताव का पारित होना सरकार की भर्त्सना के बराबर होगा। संसद में भले ही सरकार तिकड़मों से इस भर्त्सना को रोक ले, लेकिन महंगाई से त्रस्त जनता की भर्त्सना तो उसने आमंत्रित कर ही ली है। दूसरी ओर, सरकार को कटघरे में खड़ा करके विपक्ष को राजनीतिक संतोष भले मिल जाए, जनता को तो महंगाई से राहत नहीं मिलेगी। देश के आम आदमी के लिए सरकार और विपक्ष की इस पैंतरेबाजी का मूकदर्शक होने की विवशता शायद महंगाई से कम त्रासद नहीं
है। स्तंभ लेखन प्रश्न- स्तंभ लेखन के कुछ उदाहरण- बुढ़ापा बेहद खूबसूरत है, क्योंकि सारा जीवन इसके इर्द-गिर्द घूमता है। यह शिखर होना चाहिए। शिखर न शुरुआत में हो सकता है और न जीवन के मध्य में। ऐसा होगा तो जीवन तकलीफों से भर जाएगा, क्योंकि शिखर जल्दी प्राप्त कर लिया, तो अब सिर्फ उतार ही हो सकता है। अगर तुम सोचते हो कि युवावस्था शिखर है, तो पैंतीस की उम्र के बाद तुम उदास हो जाओगे। अवसाद तुम्हें घेर लेगा। फिर तुम खुश कैसे हो सकते हो? इसलिए पहले हम कभी नहीं सोचते कि बचपन या जवानी शिखर है। शिखर अंत की प्रतीक्षा करता है। अगर जीवन का प्रवाह सही तरीके से होता है, तो तुम एक शिखर से और भी ऊँचे शिखर तक पहुँचते हो। मृत्यु जीवन का अंतिम शिखर है, उत्कर्ष है। जब
तुम छोटे बच्चे थे, तभी से समझौते करते आ रहे हो। छोटी और तुच्छ चीजों के लिए तुमने अपनी आत्मा गंवा दी। तुमने अपने-आप की बजाय कोई और होना गवारा कर लिया। यहीं से तुम अपना रास्ता भटक गए। माँ तुम्हें कुछ बनाना चाहती थीं, पिता तुम्हें कुछ बनाना चाहते थे, समाज तुम्हें कुछ बनाना चाहता था। तुम वह सब बनने को तैयार हो गए। फिर तुम नहीं रहे और तभी से तुम ‘कोई और’ होने का ढोग कर रहे हो। तुम इसलिए परिपक्व नहीं हो सकते, क्योंकि वह ‘कोई और’ परिपक्व नहीं हो सकता। वह मिथ्या है। अगर मैं मुखौटा पहन लूं, तो वह मुखौटा
परिपक्व नहीं हो सकता। वह निष्प्राण है। मेरा चेहरा परिपक्व हो सकता है, मुखौटा नहीं हो सकता। तुम सिर्फ तभी परिपक्व हो सकते हो, जब तुम अपने आप को स्वीकार करो। अपना जीवन अपने हाथ में लो। तब अचानक तुम अपने भीतर ऊर्जा का विस्फोट देखोगे। जिस क्षण तुम यह फैसला करते हो कि चाहे जो कीमत हो, अब मैं कोई और नहीं, जो मैं हूं, वही होऊँगा, उसी क्षण तुम्हें बड़ा बदलाव दिखेगा। संपादक के नाम पत्र प्रश्न- गैस की कालाबाजारी बंद हो-मैं इस पत्र के माध्यम से संबंधित अधिकारियों को इस ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि मेरे असंध क्षेत्र में एक ही गैस एजेंसी है। इस गैस एजेंसी वाले अपनी मनमानी करते हैं। पर्याप्त सिलेंडर रहने के बावजूद भी नियत अवधि के बाद भी गैस नहीं मिलता। काफी दिन तो चक्कर काटने पड़ते हैं। एक सिलेंडर के बाद दूसरे सिलेंडर लेने में करीब 40 दिन से भी ज्यादा का समय लग जाता है। जबकि दूसरे सिलेंडर के लिए 22 दिन का समय निर्धारित किया गया है, वैसे तो अब पेट्रोलियम मंत्रालय के आदेशानुसार आप एक सिलेंडर लेने के बाद यदि आपको दूसरे दिन ही सिलेंडर की आवश्यकता पड़ती है, तो गैस एजेंसी के मालिक को गैस देना पड़ेगा, वह सिलेंडर के लिए मनाही नहीं कर सकता। इस प्रावधान के बावजूद भी इस क्षेत्र में सिलेंडर के लिए काफ़ी मारामारी बनी रहती है। गैस एजेंसी मालिक खुलकर गैस की कालाबाजारी करता है। अतः अधिकारियों से निवेदन है कि इस ओर विशेष ध्यान दिया जाए, जिससे इस क्षेत्र के लोगों की समस्या का समाधान हो सके। इतिहास पुरुष से सीख लें पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री कामरेड ज्योति बसु का निधन आज के इस घोर स्वार्थी युग में एक सिद्धांतवादी पुरुष की रिक्ती है, जिसे भरा जाना संभव नहीं है। ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल में लगातार 23 वर्ष तक कुशल शासन किया जो आज तक कायम है और रिकार्ड भी। उन्होंने सच्चे दिल से भूमि सुधार नियम लागू किया। कभी भी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया तथा स्वेच्छा से पद को छोड़ा। उन्होंने प्रधानमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद का मोह नहीं किया तथा अपनी पाटी के सिद्धांत को सर्वोपरि माना। धोती, कुर्ता व पैरों में चप्पल उसकी सादगी के प्रतीक थे। ऐसे महान इतिहास पुरुष को क्यों न नमन करें जिन्होंने अपना शरीर मेडीकल के विद्यार्थियों के रिसर्च के लिए दान कर दिया हो और अपनी आँखें भी दान कर दी हों। ज्योति दा आप सदा हमारे दिलों में रहेंगे। आपकी सोच, सिद्धांत, कुशल शासन जो परिवारवाद, जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और आम जनमानस का हितैषी होने का नाटक कर रहे हैं। आप जैसे महान पुरुष से इन लोगों को सीख लेनी चाहिए। मोबाइल का दुरुपयोग न करें मोबाइल फोन ने आज के युग में नवयुवकों में संचार क्रांति ला दी है। आज यह सभी वर्ग के लोगों की जरूरत में शामिल हो गया है। हालांकि इसके काफी फायदे हैं आप किसी भी समय कहीं भी किसी प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी लोग इसका दुरुपयोग करने से घबराते नहीं हैं। मेरा मानना है कि इसका सदुपयोग करें, दुरुपयोग कभी न करें। सार्वजनिक स्थानों पर धीमी आवाज़ में बात करें, साथ ही संक्षिप्त व जरूरी बातचीत करें। कॉन्फ्रेंस हाल, पूजा स्थल बैठक व प्रोग्राम में अपने सेट का स्विच ऑफ रखें, ताकि कार्यक्रम में बाधा न पड़े। ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर कदापि बात न करें। यह जिंदगी से जुड़ी बात है और गैर कानूनी भी है। मोबाइल गुम होने की स्थिति में एफ.आइ.आर. दर्ज जरूर कराएँ ताकि कोई आपके मोबाइल का दुरुपयोग न करे। मोबाइल को दिल के पास पॉकेट में न रखें। बार-बार अपना नंबर न बदलें। इन सारी बातों पर अमल जरूर करें। सरकारी स्कूलों में शिक्षा-हरियाणा सरकार जितना शिक्षा के प्रति अब जागरूक है, शायद ही कभी रही होगी। सरकार की ओर से पैसे की कमी नहीं है। गरीब बच्चों को स्कालरशिप, मिड-डे-मील जैसी सुविधाएँ मिल रही हैं। केवल रुपया-पैसा ही सरकारी स्कूलों में संख्या नहीं बढ़ा पाएगा। सभी अध्यापक व अधिकारी जब तक अपने-अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा से नहीं निभायेंगे, तब तक गुणवत्ता नहीं बढ़ सकती। सभी नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए पढ़ाने का पुनीत कार्य व गरीब बच्चों का भविष्य निर्माण कर सकते
है। गांव के गरीब बच्चे न तो प्राइवेट ट्यूशन रखने की आर्थिक स्थिति में होते हैं, न ही उतने जागरूक होते हैं। इनको जागरूक करना ब शहरी बच्चों के स्तर तक लाना हमारा कर्तव्य है। गांव के बच्चों में अपार क्षमताएँ हैं। इनमें गुण भरे हुए हैं। ये वे हीरे हैं जो पत्थर बने, मिट्टी से सने पड़े हैं। इनको चमकाना व तराशना एक कुशल अध्यापक के हाथ में है। लेख प्रश्न- लेख लिखने से पहले लेखक को काफ़ी तैयारी करनी पड़ती है। इसके लिए वह आवश्यक सामग्री जुटाता है। उस विषय पर अन्य लेखकों या पत्रकारों के विचारों को अच्छी प्रकार से जान लेता है। फिर वह अपनी राय व्यक्त करता हुआ विषय पर लेख लिखता है। लेख का विषय कृषि, विज्ञान, शिक्षा, राजनीति आदि कुछ भी हो सकता है। परंतु लेखक को उस विषय की समुचित जानकारी होनी चाहिए, तभी वह उस विषय के साथ न्याय कर पाएगा। लेख का भी अन्य विधाओं की भांति एक आरंभ, मध्य एवं अंत होता है। लेख का आरंभ बड़ा आकर्षक होना चाहिए। मध्य भाग में विषय के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाना चाहिए और उनका विश्लेषण किया जाना चाहिए। इसके बाद लेखक अपना निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकता है। लेख में लेखक की शैली अपनी होती है। साक्षात्कार अथवा इंटरव्यू प्रश्न- उस विषय की उसे समुचित जानकारी होनी चाहिए। उसे इस बात का पता होना चाहिए कि वह क्या जानना चाहता है। साक्षात्कार करने वाले को वही प्रश्न पूछने चाहिए, जो पाठकों के लिए लाभकारी हों। अच्छा तो यही होगा कि साक्षात्कार को रिकॉर्ड कर लिया जाए। यदि
ऐसा न हो तो साक्षात्कार करते समय नोट्स लेते रहना चाहिए। साक्षात्कार लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। पहले आप सवाल लिख सकते हैं, बाद में उसका उत्तर लिख सकते हैं। परंतु साक्षात्कार लिखते समय साक्षात्कारकर्ता को बड़ी ईमानदारी के साथ अपना काम करना चाहिए। क्योंकि साक्षात्कार छप जाने के बाद अकसर साक्षात्कारकर्ता और नेता में विवाद छिड़ जाता है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. पाठ से संवाद प्रश्न 1. प्रश्न 2. (क) दिए गए समाचार में से ककार ढूँढकर लिखिए। (ख) उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट कीजिए-
(ग) उपर्युक्त उदाहरण का गौर से अवलोकन कीजिए और बताइए कि ये कौन-सी पिरामिड-शैली में है, और क्यों? प्रश्न 3.
प्रश्न 4. (ख) खराब सड़कें: (ग) पानी की कमी: प्रश्न 5.
प्रश्न 6.
निश्चित मानदेय पर काम करनेवाले पत्रकार को क्या कहते हैं?अशंकालिक पत्रकार ऐसे पत्रकार होते हैं जो किसी समाचार संगठन के लिए काम तो करते हैं लेकिन एक निश्चित समय के लिए निश्चित मानदेय पर काम करते हैं !!!
वेतन भोगी पत्रकार को क्या कहते हैं?एक समाचार संगठन में काम करने वाले नियमित वेतन भोगी कर्मचारी कहलाते हैं। Explanation: एक समाचार संगठन में, विभिन्न पदों वाले कई कर्मचारी हो सकते हैं।
पत्रकार की बैसाखियों कौन कौन सी है?Answer: उसकी द्वारा एकत्रित की गई खबर में पूरी तरह सच्चाई हो। Explanation: पत्रकार को सभी पक्षों में संतुलन स्थापित करके खबर का निर्माण करना चाहिए ताकि कोई भी समाचार किसी एक पक्ष की ओर झुका हुआ प्रतीत ना हो।
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