नैतिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख उद्देश्य की विवेका किजिये? - naitik shiksha se aap kya samajhate hain isake pramukh uddeshy kee viveka kijiye?

नैतिक शिक्षा क्या हैं? (naitik shiksha ka arth)

नैतिक शिक्षा नैतिक आचरण एवं व्यवहार के लिये दी जाने वाली वह शिक्षा है जिसके फलस्वरूप बालक में नैतिकता का विकास होता है। मानव चरित्र के सर्वमान्य मानवीय गुणों को अपनाना ही नैतिकता है। 

इसके धर्म, सदाचरण, नैतिक कर्तव्य और मानवीय गुण आदि सभी आते है। नैतिकता जन्मजात नही होती बल्कि इसे अर्जित किया जाता है। वास्तव में नैतिक आचरण एवं व्यवहार समाज द्वारा अर्जित या सीखा हुआ व्यवहार है। पहले बालके इसे अनुकरण से, फिर अपने विचारों और आदर्शों के अनुसार ग्रहण करता है। यह कार्य बालक परिवार, विद्यालय, मित्र-मण्डली, समाज व वातावरण आदि के मध्य रहकर ही कर सकता है। बालक को परिवार, विद्यालय, मित्र मण्डली, धर्म, सामाजिक और नैतिक मूल्यों से नैतिक शिक्षा प्राप्त होती हैं। 

नैतिक शिक्षा के उद्देश्य (naitik shiksha ke uddeshy)

(अ) नैतिक शिक्षा के सामान्य उद्देश्य

नैतिक शिक्षा के सामान्य उद्देश्य निम्नलिखित है-- 

1. शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास 

शिक्षा का उद्देश्य बालक की शारीरिक और मानसिक शक्तियों जैसे-- तन, मन, स्मृति, संकल्प व निर्णय शक्ति, कल्पना और चिन्तन आदि का विकास करना है। बालकों के नैतिक विकास के लिये उनकी मानसिक शक्तियों का विकास करना जरूरी हैं।

2. ज्ञानेन्द्रियों का प्रशिक्षण 

शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बालक की ज्ञानेन्द्रियों जैसे-- आंख, कान आदि का प्रशिक्षण देना हैं। जब बालक की ज्ञानेन्द्रियाँ प्रशिक्षित होगी, तभी उसका समुचित नैतिक विकास संभव हो सकेगा। 

2. तर्क शक्ति का विकास 

बालक की मानसिक शक्तियों के विकास के पश्चात तर्क-शक्ति का विकास किया जाना चाहिए। तर्क शक्ति के माध्यम से बालक अपने चारित्रिक और नैतिक विकास की ओर अग्रसर हो सकेगा। 

4. नैतिकता का विकास 

शिक्षा का उद्देश्य बालक में नैतिकता का विकास करना हैं। नैतिकता तीन बातों से संबंधित है-- बालक की प्रकृति, बालक की आदतें और बालक की भावनायें। इन तीनों का परिमार्जन कर तथा सुन्दर बनाकर बालक के व्यवहार में परिवर्तन किया जाना संभव होगा।

5. आध्यात्मिक विकास 

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक का आध्यात्मिक विकास भी करना है। आध्यात्मिक विकास हेतु अन्तःकरण की शुद्धता नितान्त आवश्यक है। श्री अरविन्द के अनुसार," शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक में विकसित होने वाली आत्मा का विकास करना हैं, जो कुछ उसमें सर्वोत्तम है, उसे प्रकट करना और उसे श्रेष्ठ कार्य के लिए पूर्ण बनाना है।" 

(ब) नैतिक शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्य 

नैतिक शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्य निम्नलिखित हैं-- 

1. ज्ञानार्जन का उद्देश्य

बैकन के अनुसार," ज्ञान ही शक्ति है। अतः नैतिक शिक्षा का विशिष्ट उद्देश्य ज्ञान प्राप्त कराना या करना है। सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, दान्ते, कमेनियम आदि प्राचीन शिक्षाविदों ने भी इसी उद्देश्य पर बल दिया है। 

2. चरित्र निर्माण 

अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने नैतिक शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण बताया है। महात्मा गाँधी और हरबर्ट आदि शिक्षाविदों का कहना है कि नैतिक शिक्षा का मूल उद्देश्य बालकों के चरित्र का निर्माण करना हैं। 

आधुनिक भारत मे नैतिक शिक्षा के उद्देश्य 

भारत में लोकतंत्र, समाजवाद, धर्म निरपेक्षता आदि के आदर्शों को प्राप्त करने हेतु नैतिक शिक्षा का उद्देश्य बालकों के चरित्र को नैतिक बनाना हैह चरित्र का अर्थ आन्तरिक दृढ़ता तथा व्यक्तित्व की एकता है। चरित्रवान व्यक्ति ही सदाचारी, निष्ठावान और अपने निश्चयों पर अटल रहते हैं। 

अतः बालकों के चरित्र को नैतिक आदर्शों से परिपूर्ण करने के लिए नैतिक शिक्षा के अन्तर्गत निम्नांकित उद्देश्यों पर विशेष बल दिया जाना चाहिए-- 

1. नैतिक शिक्षा का उद्देश्य देश में समाजवादी समाज की स्थापना करने से संबंधित होना चाहिए। इससे समता एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना संभव हो सकेगी। 

2. नैतिक शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह राष्ट्र के विभिन्न धर्मों, वर्गों, सम्प्रदायों के लोगों में भावनात्मक एकता की भावना का विकास करे। 

3. इसका उद्देश्य बालकों में नेतृत्व के गुणों का विकास करना होना चाहिए ताकि भारतीय लोकतंत्र सुदृढ़ बने। 

4. निःस्वार्थ कार्य की प्रेरणा देना भी नैतिक शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। इससे बालकों में निःस्वार्थ प्रेम और समाजसेवा की भावना उत्‍पन्‍न होती हैं। 

5. नैतिक शिक्षा का उद्देश्य सुयोग्य एवं चरित्रवान नागरिक का निर्माण करना हैं ताकि लोकतंत्रीय समाज व शासन सुचारू रूप से चल सके। 

6. नैतिक शिक्षा का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य जाति-प्रथा, बालविवाह, दहेज प्रथा, छुआछूत, साम्प्रदायिकता आदि सामाजिक बुराइयों का अंत करना हैं। 

नैतिक शिक्षा का महत्व एवं आवश्यकता (naitik shiksha ka mahatva)

नैतिक शिक्षा बालक के आचरण और व्यवहार में परिवर्तन लाती है। बालक के व्यवहार में यह परिवर्तन देश और समाज के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यदि नैतिक शिक्षा की उपेक्षा की जाती है तो बालक का सर्वांगीण विकास संभव नही है। 

मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है और उसे समाज मे रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इसीलिए बालक के सामाजीकरण के लिए उसे नैतिक शिक्षा दी जाना आवश्यक है। नैतिक शिक्षा के द्वारा बालक का सामाजिक विकास होता है और उसका दृष्टिकोण उदार बनता है। नैतिक शिक्षा बालक के व्यक्तित्व का संतुलित विकास करती हैं। नैतिक शिक्षा के अभाव मे बालक योग्य और आदर्श नागरिक नही बन सकता। वह अपने उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों को न तो भली-भाँति समाझ सकता है, न वह स्वयं की उन्नति कर सकता है और न समाज व देश की समुचित सेवा ही। नैतिक शिक्षा मानव जीवन का आधार हैं। अतः इसका पाठ्यक्रम में समावेश अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।

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नैतिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं इसके मुख्य उद्देश्य की विवेचना कीजिए?

नैतिक शिक्षा की आवश्यकता चरित्र का निर्माण – मनुष्य के भाग्य का निर्माण उसका चरित्र करता है। चरित्र ही उसके जीवन में उत्थान और पतन, सफलता और विफलता का सूचक है। अतः बालक को सफल व्यक्ति, उत्तम नागरिक और समाज का उपयोगी सदस्य बनाना चाहते हैं तो उसके चरित्र का निर्माण किया जाना परम आवश्यक है।

नैतिकता का मुख्य उद्देश्य क्या है?

मानदंडक नीतिशास्त्र सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य एक नैतिक संस्था को परिभाषित करने एवं उसका समर्थन करने के लिये सेवा प्रदान करना है, अर्थात् नैतिक (एवं अनैतिक) व्यवहार को निर्धारित करने के लिये उचित तथा विश्वसनीय सिद्धांत प्रदान करना है।

नैतिक शिक्षा क्या है?

विद्यालय में अध्ययनरत् बच्चे भविष्य में राष्ट्र का स्वरूप व दिशा निर्धारण करेंगे। शिक्षक बच्चों को कुम्हार की भाँति गढ़ता है और वांछित स्वरूप प्रदान करता है

नैतिकता से आप क्या समझते हैं?

नैतिकता का तात्पर्य नियमों की उस व्यवस्था से है जिसके द्वारा व्यक्ति का अंतःकरण अच्छे और बुरे का बोध प्राप्त करता है। नैतिकता का संदर्भ समाज में रहने वाले किसी सामान्य व्यक्ति के आचरण, समाज की परंपराओं या किसी राष्ट्र की नीतियों के विशेष अर्थ में मूल्यांकन से है।