बिगरी बात बनै माखन होय के माध्यम से कवि क्या सीख देना चाहते हैं? - bigaree baat banai maakhan hoy ke maadhyam se kavi kya seekh dena chaahate hain?

बिगरी बात बनै नहीं

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे माखन होय॥

रहीम कहते हैं कि मनुष्य को सोच-समझ कर व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि जैसे एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकता उसी प्रकार किसी नासमझी से बात के बिगड़ने पर उसे दुबारा बनाना बड़ा मुश्किल होता है।

स्रोत :

  • पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 91)
  • रचनाकार : रहीम
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 1985

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बिगरी बात बनै नहीं दोहे के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए?

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥ रहीम कहते हैं कि मनुष्य को सोच-समझ कर व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि जैसे एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकता उसी प्रकार किसी नासमझी से बात के बिगड़ने पर उसे दुबारा बनाना बड़ा मुश्किल होता है।

बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय दोहे के माध्यम से मानव को क्या शिक्षा दी जा रही है?

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय। रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥ जब बात बिगड़ जाती है तो किसी के लाख कोशिश करने पर भी बनती नहीं है।

रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय से रहीम ने लोगों को क्या समझाने का प्रयास किया है?

(क) प्रेम को जब चटकाकर अर्थात बिना सोचे समझे झटके में तोड़ दिया जाता है तो उसे पुन: जोड़ने पर उसकी स्थिति पहले जैसी नहीं रहती है। प्रेम विश्वास की डोर से बँधा होता है। यह डोर टूटने पर पुन: नहीं जुड़ पाता। इसमें अविश्वास और संदेह की दरार पड़ जाती है, गाँठ पड़ जाती है और अतंर आ जाता है।

रहिमन निज मन की बिथा दोहे में कवि क्या कहना चाहते है?

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥ रहीम कहते हैं कि अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।