नवाब साहब ने खीरे का स्वाद कैसे? - navaab saahab ne kheere ka svaad kaise?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:नबाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूँघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुँद गईं। मुँह में भर आए पानी का घूँट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नबाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बार फेंकते गए। नवाब साहब ने खीरे का कैसे आनंद लिया?

Solution

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नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खा कर नहीं लिया बल्कि उन फाँकों को नाक के पास ले जाकर तथा सूँघकर आनंद लिया। सूँघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकते रहे।


प्रश्न 3: बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर: कहानी के लिए विचार, घटना और पात्र उतने ही जरूरी हैं, जितना की पेट भरने के लिए भोजन। मैं लेखक के इस विचार से सहमत नहीं हूँ। बहरहाल, मैं लेखक द्वारा किए गए कटाक्ष से जरूर सहमत हूँ कि जब केवल सूँघकर और देखकर पेट की तृप्ति हो सकती है तो फिर बिना विचार, घटना और पात्र के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती है।

प्रश्न 4: आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?

उत्तर: हवा में पकौड़े तलना



प्रश्न 5: नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।

उत्तर: नवाब साहब ने बड़े करीने से खीरों को तौलिये पर रखा। फिर उन्होंने अपनी जेब में से चाकू निकाला और खीरे के सिरे को काट दिया। फिर खीरे के सिरे को गोदकर उसे रगड़कर झाग निकाला। कई जगह इस प्रक्रिया को खीरे का बुखार निकालना कहते हैं। उसके बाद नवाब साहब ने खीरे के छिलके उतारे। फिर उन्होंने खीरे की पतली-पतली फाँकें काटीं और उन्हें तौलिये पर सजा दिया। उसके बाद उन फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़का जिससे उनकी खीरा खाने की तैयारी पूरी हो गई।

प्रश्न 6: किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?

उत्तर: मैं आम का रसास्वादन करने के लिए पहले आम को पानी से अच्छी तरह से धोता हूँ। फिर आम को दबाकर उसका दूध निकाल देता हूँ। उसके बाद आम चूसने के लायक बन जाता है। जलेबी के साथ अगर तीखी सब्जी हो तो इससे जलेबी का स्वाद बढ़ जाता है।



प्रश्न 7: खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।

उत्तर: एक बार लखनऊ के एक नवाब मसनद के सहारे बैठकर शतरंज खेल रहे थे। तभी उन्हें खबर मिली कि अंग्रेजों की सेना ने आक्रमण कर दिया है। नवाब साहब ने अपने अर्दली को आवज लगाई ताकि वह आकर उन्हें जूते पहना दे। लेकिन अर्दली तो अपनी जान बचाकर भाग चुका था। फिर क्या था, नवाब साहब वहीं बैठे रहे। एक नवाब भला अपने हाथों से जूते कैसे पहन सकता था। अंग्रेजों के सैनिक आये और नवाब साहब को पकड़कर ले गए।

प्रश्न 8: क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: यदि किसी व्यक्ति में लगन से काम करने की सनक हो तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हमने ऐसे कई वैज्ञानिकों के बारे में सुना है जो दिन रात प्रयोगशाला में काम करते थे। अपनी इसी सनक के कारण उन वैज्ञानिकों ने कई महत्वपूर्ण आविष्कार किए हैं।



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विषयसूची

  • 1 नवाब साहब ने खीरे को खिड़की से बाहर फेकने के बाद संतुष्टि का भाव कैसे व्यक्त किया *?
  • 2 खीरो को बाहर फेंक कर नवाब साहब ने लेखक को कैसे देखा * उपेक्षा से घृणा से गर्व से प्रेम से?
  • 3 नवाब साहब ने खीरे पर क्या छिड़का?
  • 4 खीरे को अपदार्थ वस्तु कहा गया है क्योंकि?
  • 5 लेखक खीरा क्यों नहीं खाना चाहता था?
  • 6 नवाब साहब ने खीरे के बारे में क्या कहा?

नवाब साहब ने खीरे को खिड़की से बाहर फेकने के बाद संतुष्टि का भाव कैसे व्यक्त किया *?

इसे सुनेंरोकेंउत्तरः नवाब साहब खीरों की फाँकों को खिड़की से बाहर फेकने से पहले नाक के पास वासना से रसास्वादन के लिए ले गए। उनके इस क्रिया-कलाप का उद्देश्य खानदानी रईसों का तरीका दिखाना था।

खीरो को बाहर फेंक कर नवाब साहब ने लेखक को कैसे देखा * उपेक्षा से घृणा से गर्व से प्रेम से?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: खीरे की फाँकें एक-एककर उठाकर सँधने के बाद नवाब साहब खिड़की से बाहर फेंकते गए। उन्होंने डकार ली और लेखक की ओर गुलाबी आँखों से इसलिए देखा क्योंकि उन्होंने लेखक को दिखा दिया था नवाब खीरे को कैसे खाते हैं। अपनी नवाबी का प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने खीरा खाने के बजाय फेंक दिया था। …

2 लेखक को नवाबसाहब का मौन रहना भी अखर रहा था और बातें करना भी कचोटने लगा क्यों?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. Answer:— नवाब साहब के इन हाव-भावों को देखकर लेखक अनुमान लगा रहा था कि वे बातचीत करने के लिए किंचित भी उत्सुक उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? खीरे खाकर पेट भरने की आदत तो साधारण लोगों की बात है। ..

नवाब साहब ने खीरे पर क्या छिड़का?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने करीने से सजी खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़ककर लेखक से खाने के लिए आग्रह किया तो लेखक ने साफ़ मना कर दिया। जबकि लेखक खीरे खाना चाहता था।

खीरे को अपदार्थ वस्तु कहा गया है क्योंकि?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: Explanation:खीरे को अपदार्थ वस्तु इसलिए कहा गया हैं क्योंकि क्योंकि उन्हें यह लजीज नही लगा होगा क्योंकि नवाबों के लिहाज से खीरा बहुत ही आम चीज है क्योंकि नवाब बहुत ही शौकीन होते हैं और वे महंगी और लजीज चीजों का आनंद ही लेना चाहते है। नवाब आम आदमी (लेखक ) के सामने खीरे जैसी आम वस्तु नही खा सकते ।

नवाब साहब खीरे को कैसे छील रहे थे?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: लेखक को अपने डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसीलिए उन्होंने खीरे को मात्र सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।

लेखक खीरा क्यों नहीं खाना चाहता था?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है। पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया।

नवाब साहब ने खीरे के बारे में क्या कहा?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने खीरे की फांकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया क्योंकि वह अपने सहयात्री को अपनी नवाबी का उदाहरण दिखाना चाहते थे तथा खुद को एक शाही नवाब दिख लाना चाहते थे। एक नवाब के लिए खीरा एक उपदार्थ माना जाता है इसलिए वह एक सामान्य इंसान के सामने खीरा खाने में संकोच कर रहे थे परंतु असल में उन्हें खीरा खाने का पूरा मन था।

नवाब साहब ने खीरे का स्वाद कैसे लिया?

नवाब साहब ने खीरे का कैसे आनंद लिया? नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खा कर नहीं लिया बल्कि उन फाँकों को नाक के पास ले जाकर तथा सूँघकर आनंद लिया। सूँघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकते रहे।

नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल कैसे किया?

' नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल कैसे किया? नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और उसे सूंघा। खीरे की फाँक को सूँघने से मिले स्वाद के आनंद से उनकी पलकें बंद हो गईं।

नवाब साहब ने खीरे की फांकों को खाने की बजाय क्या किया?

नवाब साहब ने खीरे की फांकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया क्योंकि वह अपने सहयात्री को अपनी नवाबी का उदाहरण दिखाना चाहते थे तथा खुद को एक शाही नवाब दिख लाना चाहते थे। एक नवाब के लिए खीरा एक उपदार्थ माना जाता है इसलिए वह एक सामान्य इंसान के सामने खीरा खाने में संकोच कर रहे थे परंतु असल में उन्हें खीरा खाने का पूरा मन था।