Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्यRBSE Class 12 History औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य InText Questions and Answers(पृ. सं. 320) प्रश्न 1. (पृ. सं. 323) प्रश्न 2. (पृ. सं. 325) प्रश्न 3.
(पृ. सं. 343) प्रश्न 4.
RBSE Class 12 Historyऔपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Questions and Answersप्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3. व्हाइट टाउन (White Town): ब्लैक टाउन (Black Town): प्रश्न 4. वे व्यापारिक गतिविधियों के विषय में रखे गए सरकारी रिकार्डों और विस्तृत ब्यौरों से कई प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त करते थे। शहरों की समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने नगरपालिकाओं तथा नगर निगमों से सहायता भी प्राप्त की तथा बहुत-से व्यापारी इन बड़े शहरों के उपनगरीय क्षेत्रों में भी रहने लगे। उन्होंने घोड़ागाड़ी और नये यातायात के साधनों का भी प्रयोग किया। भारतीय व्यापारी कम्पनी के व्यापार में मुख्य भूमिका निभाते थे। मुम्बई के रहने वाले व्यापारी चीन को जाने वाली अफीम के व्यापार में भागीदार थे। उन्होंने बम्बई की अर्थव्यवस्था को मालवा, राजस्थान और सिंध जैसे अफीम उत्पादक क्षेत्रों से जोड़ने में सहायता प्रदान की। कम्पनी के साथ गठजोड़ एक मुनाफे का सौदा था जिससे कालान्तर में एक पूँजीपति वर्ग का विकास हुआ। भारतीय व्यापारियों में सभी समुदाय पारसी, मारवाड़ी, कोंकणी, मुसलमान, गुजराती, बनिए, बोहरा, यहूदी आदि शामिल थे। प्रश्न 5. इस दौरान सम्पन्न तथा धनी भारतीय भी यहाँ रहने लगे थे जिसके परिणामस्वरूप मद्रास के इर्द-गिर्द स्थित गाँवों का स्थान बहुत-से नवीन उप-शहरी क्षेत्रों ने ले लिया। वस्तुत: यह इसलिये भी सम्भव हो सका क्योंकि धनी लोग परिवहन सुविधाओं का लाभ उठा सकते थे, साथ ही उसका व्यय भी वहन कर सकते थे, किन्तु गरीब लोग अपने काम की जगह के निकट स्थित गाँवों में ही रहते थे। मद्रास के शहरीकरण का यह परिणाम हुआ कि इन गाँवों के मध्य वाले क्षेत्र भी शहर में आ गये। अतः मद्रास में शहरी तथा ग्रामीण तत्व आपस में घुल-मिल गये और मद्रास एक सघन शहर बन गया। प्रश्न 6. यहाँ नवीन राज्यों के मध्य निरन्तर युद्धों का कारण यह था कि भाड़े के सैनिकों को भी यहाँ तैयार रोजगार मिलता था। कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य से सम्बद्ध अधिकारियों ने भी इस अवसर का उपयोग कस्बे तथा गंज जैसी नवीन शहरी बस्तियों को बसाने में किया। व्यापार तन्त्रों में परिवर्तन शहरी केन्द्र इतिहास में परिलक्षित हुए। यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने मुगलकाल में ही विभिन्न स्थानों पर आधार स्थापित कर लिये थे, जिनमें से कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं -
व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केन्द्रों के आस-पास नगर विकसित होने लगे। 18वीं शताब्दी के अन्त तक स्थल आधारित साम्राज्य का स्थान शक्तिशाली जन-आधारित यूरोपीय कम्पनियों ने ले लिया। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद की शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को नवीन रूप से परिभाषित करने लगी थीं। 18वीं शताब्दी के मध्य से परिवर्तनों का एक नवीन अध्याय आरम्भ होता है। यह वह समय था जब व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगी, जबकि 17वीं शताब्दी में विकसित हुए सूरत जैसे शहर पतन के गर्त में चले गये। 1757 ई. में प्लासी के युद्ध के उपरान्त अंग्रेजों ने राजनीतिक नियन्त्रणं प्राप्त कर लिया तथा इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापार फैला। मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई जैसे औपनिवेशिक बन्दरगाह तीव्र गति से नवीन आर्थिक राजधानियों के रूप में उभरे। इसके अतिरिक्त इस समय नवीन भवनों तथा संस्थानों का भी विकास हुआ। नवीन रोजगार के अवसर सृजित होने लगे और लोग इन प्रश्न 7. (ii) इन औपनिवेशिक शहरों को बन्दरगाहों के रूप में इस्तेमाल किया गया, जहाँ पर जहाजों पर सामान को लादने और उतारने का कार्य होता था। नदियों के किनारे अथवा समुद्र के किनारे आर्थिक गतिविधियों से गोदियों एवं घाटियों का विकास हुआ तथा वहाँ गोदाम, वाणिज्यिक कार्यालय व जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों की स्थापना की गयी। (iii) शहरों के मानचित्र बनवाए गये, आँकड़े इकट्ठे किए गए तथा सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित की गई। ये सभी दस्तावेज प्रशासनिक कार्यालयों में होते थे। शहरों में रख-रखाव के लिए नगरपालिकाएँ अथवा नगर निगम बनाये गये जो शहरों में जलापूर्ति, सड़क निर्माण तथा स्वास्थ्य जैसी सेवाएँ उपलब्ध कस्वाती थीं। नगर निगम लोगों की मृत्यु और जन्म के रिकॉर्ड भी रखता था। (iv) 1853 ई. के पश्चात् से इन औपनिवेशिक शहरों में रेलवे स्टेशन, रेलवे वर्कशॉप व रेलवे कॉलोनियाँ और रेलवे लाइनों के नेटवर्क बिछाए गए। इस प्रकार नवीन शहर बंदरगाहों, किलों, सेवा केन्द्रों और रेलवे स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थानों से जुड़ गए। (v) शहरों में बीमा एजेन्सियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थाओं की स्थापना होने लगी। इस प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ यातायात और लेन-देन के उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक सिद्ध हुईं। अनेक शहरों में ईसाई मिशनरियों ने चर्च, हिन्दुओं ने न्दिर और कुछ स्थानों पर मुस्लिमों ने मस्जिदों का भी निर्माण किया। (vi) नए शहरों में घोड़ागाड़ी, ट्रामें, बसें, टाउन हॉल, सार्वजनिक पार्क, सिनेमा हॉल, रंगशालाएँ प्रत्येक क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले विभिन्न सेवक; जैसे-क्लर्क, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, एकाउन्टेंट और शिक्षा से सम्बन्धित संस्थाएँ; जैसे—स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी आदि उपलब्ध थे। कुछ सार्वजनिक सभा केन्द्र और समुदाय भवन भी थे जहाँ समाचार पत्र-पत्रिकाएँ आदि लोगों को उपलब्ध होती थीं। (vii) 19वीं शताब्दी के मध्य में औपनिवेशिक शहरों को दो भागों में विभाजित कर दिया गया जिनको क्रमशः सिविल लाइन्स या व्हाइट टाउन (जिसमें सफेद रंग वाले गोरे यूरोपीय रहते थे) तथा ब्लैक टाउन (जिनमें देशी भारतीय लोग रहते थे) कहा गया। व्हाइट टाउन में यूरोपीय शैली के महलनुमा मकान, बगीचा घर, क्लब, रेसकोर्स, रंगमंच आदि थे जो शासक वर्ग के लिए नस्लीय विभेद पर आधारित थे। (viii) कुछ शहरों को औपनिवेशिक हिल स्टेशनों के रूप में विकसित किया गया; जैसे-शिमला, दार्जिलिंग, माउण्ट आबू, मनाली आदि। इनका उद्देश्य गर्मी के दिनों में प्रशासनिक गतिविधियों को चलाना और उच्च अधिकारियों को स्वास्थ्यवर्धक जलवायु व वातावरण वाला आवास प्रदान करना था। (ix) औपनिवेशिक शहरों में स्वच्छता का ध्यान रखने के लिए भूमिगत पाइप-लाइन्स एवं ढकी हुई नालियों की व्यवस्था की गई तथा इनकी सफाई हेतु लोगों की नियुक्ति की गई। (x) ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासकीय कार्यालय समुद्र त रे दूर बनाए गए। कलकत्ता में स्थित राइटर्स बिल्डिंग इसी तरह का एक कार्यालय था। यह ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते कदम का संकेत था एवं समस्त दस्तावेजों को प्रशासनिक कार्यालयों में सुरक्षित रखा जाता था। प्रश्न 8. (2) महामारियों की समस्या-नगर-योजना में साफ-सफाई अथवा स्वच्छता सबसे महत्वपूर्ण घटक होता है। 18वीं तथा 19वीं शताब्दियों में भारत में अकाल तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ महामारियों की समस्या भी व्याप्त थी। (3) नस्लीय भेद भाव-भारत में 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों की नस्लीय भेदभाव की नीति चरम सीमा पर थी। प्रायः गोरे तथा काले लोगों के लिये क्रमशः व्हाइट तथा ब्लैक टाउन होते थे। इसके अतिरिक्त अंग्रेज किले तथा सिविल लाइन नाम के विशेष क्षेत्रों में रहते थे तथा सार्वजनिक स्थलों पर भारतीयों से मिलने में रुचि नहीं रखते थे। (4) निर्माण-शैली: नगर की निर्माण-शैली भी नगर-योजना का महत्वपूर्ण तथा चिन्ताजनक घटक था। अंग्रेज चूँकि यूरोप से आये थे इसलिए उनकी आवश्यकता और स्थापत्य की रुचि भी पृथक् थी। अतः उन्होंने आवश्यकता के अनुरूप स्थापत्य शैली में अनेक यूरोपीय शैलियों का भारत में उपयोग किया। (5) धन की समस्या-ब्रिटिश सरकार को शहर के रख-रखाव के लिये तथा अनेक निर्माण कार्यों के लिये व्यापक धन की आवश्यकता थी। प्रारम्भ में तो सरकार इस व्यय को स्वयं वहन नहीं करना चाहती थी इसलिए इस कार्य के लिये कमेटियों बनायी गयीं। शहर के प्रमुख नागरिकों को इसमें सम्मिलित किया गया तथा जनता से धन माँगा गया। कहीं-कहीं तो लॉटरियां बेचकर भी धन इकट्ठा किया गया, लेकिन बाद में जब अंग्रेज भारत में सुदृढ़ता से स्थापित हो गये तो उन्होंने शहरों के रख-रखाव का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया। (6) अग्निकांड की घटनाएँ अंग्रेज आग लगने की घटनाओं से भी चिन्तित थे इसलिए 1836 ई. में कलकत्ता में घास-फूस की झोंपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त मकानों में ईंटों की छत अनिवार्य कर दी गई। (7) सुरक्षा प्रबन्ध: 1857 ई. के जन-विद्रोह के पश्चात् यूरोपीय विशेषकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा, उनके सम्मान की रक्षा, यूरोपीय सम्पत्ति, इमारतों एवं साजो-सामान की रक्षा करना भी अंग्रेजों के लिए एक महत्वपूर्ण चिन्ता बन गई थी। (8) यातायात के साधन उपलब्ध करवाना-शहरों के अन्दर नए यातायात के साधन प्रदान करना भी एक चिन्ता थी। समस्त लोगों को,कारखानों एवं शिक्षा संस्थानों में आने-जाने के लिए यातायात की सुविधा प्रदान करनी थी। (9) शिक्षा का ढंग शिक्षा का प्रसार किस ढंग से किया जाए, शिक्षा पश्चिमी ढंग से दी जाए या प्राचीन ढंग से, अंग्रेजी पढ़ाई जाए या नहीं, महिलाओं को शिक्षा दी जाए या नहीं तथा समाज सुधार लागू किए जाएँ या नहीं। ये समस्त बातें ब्रिटिश सरकार के लिए चिन्ता का विषय थीं। (10) गंदी बस्तियों की समस्या गंदी बस्तियों से समस्त यूरोपीय एवं भारतीय परेशान थे क्योंकि इनमें शहरों के कारखानों एवं अन्य कार्यों में कार्यरत लोग विभिन्न स्थानों से आकर रहते थे। भीड़भाड़ की वजह से कुछ शहरों में कुछ नए ढंग की इमारतों जैसे चॉल या बहुमंजिली इमारतें बनाने की भी सरकार के समक्ष चिन्ता थी। प्रश्न 9. (ii) सार्वजनिक मेल-मिलाप के स्थलों में परिवर्तन यद्यपि अब तक पुराने शहरों में लोगों में आपसी मेलजोल भी कम हो चुका था लेकिन फिर भी लोगों का मेल-मिलाप सार्वजनिक पार्को, टाउन हॉल, रंगशालाओं एवं सिनेमाघरों के माध्यम से हो जाता था। (iii) नए सामाजिक समूहों का निर्माण-शहरों में अत नए सामाजिक समूह बनने लगे तथा लोगों की पुरानी पहचानें लगभग समाप्त हो गईं। सभी वर्गों के लोग बड़े शहरों में आने लगे तथा एक मध्यम वर्ग का शहरों में उदय होने लगा, जिनमें क्लर्क, डॉक्टर, वकील, शिक्षक, इंजीनियर, एकाउंटेंट आदि सम्मिलित थे। मध्यम वर्ग की विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं पुस्तकालय जैसे नए शिक्षा केन्द्रों तक अच्छी पहुँच थी। शिक्षित होने के कारण वे समाज और सरकार के बारे में समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं एवं सार्वजनिक सभाओं में अपना मत व्यक्त कर सकते थे। बहस एवं चर्चा का एक नया सामाजिक दायरा उत्पन्न हो गया था। सामाजिक रीति-रिवाज, कायदे-कानून एवं तौर-तरीकों पर सवाल उठने लगे थे। (iv) महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन नए शहरों में महिलाओं के लिए नए अवसर उपलब्ध थे। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं एवं पुस्तकों के माध्यम से मध्यवर्गीय महिलाएं स्वयं को अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही थीं। फलस्वरूप परम्परागत पितृसत्तात्मक नियम-कानून बदलने लगे जिससे अनेक लोगों में असन्तोष व्याप्त हुआ। रूढ़िवादी लोगों को भय था कि यदि महिलाएँ पढ़-लिख गईं तो वे सम्पूर्ण विश्व को परिवर्तित कर देंगी जिससे सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था का आधार खतरे में पड़ जाएगा। यहाँ तक कि महिलाओं की शिक्षा का समर्थन करने वाले सुधारक भी महिलाओं को माँ और पत्नी की परम्परागत भूमिकाओं तथा घर की चारदीवारी में ही देखना चाहते थे। समय बीतने के साथ-साथ सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगी। वे नौकरानी, फैक्ट्री मजदूर, शिक्षिका, रंगकर्मी एवं फिल्म कलाकार के रूप में शहर के नए व्यवसायों में प्रवेश करने लगी, परन्तु ऐसी महिलाओं को लम्बे समय तक सामाजिक रूप से सम्मानित नहीं माना जाता था जो घर से निकलकर सार्वजनिक स्थानों पर जा रही थीं। (v) मेहनतकश गरीबों (कामगारों) के नये वर्ग का उभरना-शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से गरीब लोग रोजगार की तलाश में शहर आ रहे थे। कुछ लोगों को शहर नए अवसरों का स्रोत दिखाई देते थे तो कुछ अन्य लोगों को एक भिन्न जीवन-शैली का आकर्षण शहरों की ओर खींच रहा था। उनके लिए यह जीवन शैली एक ऐसी वस्तु थी जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी। शहरों में जीने की लागत पर नियन्त्रण रखने के लिए अधिकांश पुरुष अपना परिवार गाँव में छोड़कर आते थे। शहरी जिन्दगी संघर्षपूर्ण एवं नौकरी पक्की नहीं थी, खाना महँगा था, रहने का खर्चा भी उठाना महँगा पड़ता था फिर भी गरीब कामगारों ने प्रायः अपनी एक शहरी संस्कृति रच ली थी। वे धार्मिक त्यौहारों, लोक रंगमंच, स्वांग आदि में पूरे उत्साह से भाग लेते थे जिनमें अधिकांशतः उनके भारतीय एवं यूरोपीय स्वामियों का मजाक उड़ाया जाता था। मानचित्र कार्य प्रश्न 10. उत्तर: (1) बम्बई: 19वीं शताब्दी में बम्बई का महत्व अत्यधिक बढ़ गया जिसको 1661 ई. में अंग्रेजों ने प्राप्त किया था। इसके उपरान्त एक बड़ा बन्दरगाह होने के कारण यहाँ से भारत के आयात-निर्यात का 50 प्रतिशत भाग संचालित होने लगा। 19वीं शताब्दी के अन्त तक यह भारत के प्रमुख वाणिज्यिक शहर के रूप में स्थापित हो चुका था। (2) दिल्ली: प्रश्न 11. स्थानीय प्रशासन में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि ही नीतियों का निर्धारण करते हैं। प्रायः शहरी मजदूरों या ग्रामीण इलाकों के खेतिहर मजदूरों के पास नीति निर्धारण में कोई भूमिका नहीं होती और न ही अधिकार होते हैं। प्रायः वे स्थानीय सरकार या सरकारी अधिकारियों, जिला अधिकारियों व राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की नीति निर्धारण एवं हस्तक्षेप से प्रभावित होते हैं। हमारा मत है कि लोकतंत्र में शहरी मजदूरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों के खेतिहर मजदूरों के कल्याण के लिए नीति निर्धारण करते समय उनसे बातचीत की जानी चाहिए तथा उनके प्रतिनिधियों के विचारों को सुना जाना चाहिए। प्रश्न 12.
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल कर क्यों रखे जाते थे?औपनिवेशिक शहरों में रिकॉडर्स संभाल कर क्यों रखे जाते थे? इन रिकॉर्डो से शहरों में व्यापारिक गतिविधियाँ, औद्योगिक प्रगति, सफाई, सड़क परिवहन, यातायात और प्रशासनिक कार्याकलापों की आवश्यकताओं को जानने-समझने और उन पर आवश्यकतानुसार कार्य करने में सहायता मिलती थी।
औपनिवेशिक सरकार ने शहरों के मानचित्र तैयार करने पर खास ध्यान क्यों दिया?प्रारंभिक वर्षों से ही औपनिवेशिक सरकार ने मानचित्र तैयार करने पर खास ध्यान दिया। सरकार का मानना था कि किसी जगह की बनावट और भूदृश्य को समझने के लिए नक्शे जरूरी होते हैं। इस जानकारी के सहारे वे इलाके पर ज्यादा बेहतर नियंत्रण कायम कर सकते थे।
औपनिवेशिक शहर क्या है?औपनिवेशिक काल में तीन प्रमुख बड़े शहर विकसित हुए – मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई । यह तीनों शहर मुख्यता मत्स्य ग्रहण तथा बुनाई के गाँव थे जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की व्यापारिक कार्यों के कारण महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए। बाद में शासन के केन्द्र बने, और इन्हें प्रेसीडेंसी शहर कहा गया।
औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे उनके क्या उद्देश्य थे?इसका उद्देश्य सफाई को । सुनिश्चत करना था। कुछ शहरों को औपनिवेशिक हिल स्टेशनों के रूप में विकसित किया गया; जैसे — शिमला, दार्जिलिंग, माउट आबू, मनाली। इनका उद्देश्य गर्मी के दिनों में प्रशासनिक गतिविधियों को चलाना और उच्च अधिकारियों को स्वास्थ्यवर्धक जलवायु और वातावरण वाला आवास प्रदान करना था।
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