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You are here: Home / एकेडमिक / इतिहास / पाल साम्राज्य: राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, कला-संस्कृति सातवीं सदी में गुप्तकालीन शासक हर्ष के साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत और दक्कन में 750 और 1000 ई. के बीच तीन बड़े साम्राज्यों (पाल, गुर्जर-प्रतिहार और राष्ट्रकूट) का उद्भव हुआ| इन तीनों के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष होता रहा लेकिन तीनों ने अपने क्षेत्र में जन-जीवन, ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति आदि को स्थिरता प्रदान की| हम इस पोस्ट में पाल साम्राज्य (Pala Empire Dynasty) के राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, कला-संस्कृति के बारे में बात करेंगें. प्रतिहार और राष्ट्रकूट साम्राज्य की चर्चा हम किसी अन्य पोस्ट में करेंगें| पालों ने 750 से 850 ईस्वी तक, लगभग 100 वर्षों तक पूर्वी भारत में वर्चस्वशाली ढंग से शासन किया. सुलेमान नाम के अरब सौदागर के वृतांत से भी पता चलता है की पालों के पास एक बड़ी सेना थी. इनके बारे में 17 वीं सदी में लिखे गए तिब्बती वृतांत से भी जानकारी मिलते है. पाल साम्राज्य की राजनीतिपाल साम्राज्य की स्थापना साधारण परिवार में जन्मे गोपाल नामक व्यक्ति ने लगभग 750 ई. में किया. उसके पिता एक सैनिक थे. क्षेत्र के अग्रणी लोगों ने उसके अंदर अराजकता की स्थिति को समाप्त कर सकने की भावी क्षमता को पाया और उसे अपना राजा चुन लिया. उसने अपने नियंत्रण में बंगाल का एकीकरण किया और मगध को भी जीत लिया. गोपाल का पुत्र धर्मपाल 770 ई. में राजा बना. उसके शासन काल में उत्तर भारत और कन्नौज पर नियंत्रण के लिए प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष होता रहा. उसने इसका फायदा उठाते हुए अपना राज्य विस्तार किया. प्रतिहार के शासक ने पालों के नियंत्रण वाले बंगाल पर आक्रमण किया लेकिन कोई अंतिम निर्णय हो सकने के पूर्व ही वह दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासक ध्रुव द्वारा पराजित हो गया. इसके बाद वह राजस्थान के रेगिस्तान में छुप गया. कुछ समय बाद राष्ट्रकूट शासक ध्रुव भी वापस लौट गया. ऐसे में पाल शासक धर्मपाल के लिए मैदान खाली हो गया. उसने उत्तर भारत की गढ़ कन्नौज पर अपना अधिकार करने के साथ उत्तर-पश्चिम भारत के आखिरी सीमा तक के छोटे-मोटे शासकों को अपने अधीन कर लिया. पाल शासक धर्मपाल ने कन्नौज सहित उत्तर भारत को अपने नियंत्रण में ले लिया था लेकिन वह इसे स्थायी नहीं बना सका. प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय ने उसे मुंगेर के पास हरा दिया. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार को लेकर पालों और प्रतिहारों में संघर्ष होता रहा लेकिन अधिकांश बिहार और बंगाल पालों के नियंत्रण में रहा. धर्मपाल ने 810 ई. तक शासन किया. धर्मपाल का पुत्र देवपाल 810 ई में राजा बना. उसने काफी लम्बे समय (40 वर्ष) तक शासन किया. उसने प्रागज्योतिषपुर (असम), उड़ीसा और नेपाल के कुछ भागों पर पालों का नियंत्रण स्थापित किया. सुलेमान नाम के अरब सौदागर के वृतांत से पता चलता है की पालों के पास एक विशाल सेना थी. पालों ने 750 से 850 ईस्वी तक, लगभग 100 वर्षों तक पूर्वी भारत में वर्चस्वशाली ढंग से शासन किया. पाल साम्राज्य की प्रशासन और राजकाजइस समय राजा सभी मामलों के केंद्र में था. वह प्रशासन के सशस्त्र बलों का भी प्रमुख होता था. वह एक शानदार दरबार लगाता था. उदाहरण के लिए धर्मपाल ने कन्नौज पर अधिकार कर एक शानदार दरबार लगाया जिसमें पंजाब, पूर्वी राजस्थान आदि के अधीनस्थ शासकों ने भाग लिया. न्याय व्यवस्था भी राजा के जिम्मे में था. दरबार राजनीति एवं न्याय के आलावा सांस्कृतिक जीवन का भी केंद्र था. नर्तकियां एवं कुशल संगीतकार भी दरबार में रहते थे. राजा का पद सामान्यतः वंशानुगत होता था. राजा भारी-भरकम उपाधियाँ धारण कर अन्य शासकों में श्रेष्ठ होने का दावा करते थे. राजा को सलाह देने के लिए कई मंत्री होते थे. सामान्यतः यह पद भी पुश्तैनी ही होता था. मंत्रियों में से किसी एक को अग्रणी माना जाता था और राजा उस पर अन्य मंत्रियो के मुकाबले अधिक निर्भर था. मंत्री पद के पुश्तैनी होने के कारण मंत्री बहुत शक्तिशाली हो जाता था. सम्राज्य की सुरक्षा और प्रसार की दृष्टि से भारे भरकम सशस्त्र बल का गठन किया गया था. इस सम्बन्ध में अरब सौदागर सुलेमान के वृतांत से भी जानकारी मिलती है की पाल शासकों के पास विशाल सुसंगठित पैदल और घुड़सवार सेनाएं थी तथा बड़ी संख्या में जंगी हाथी थे. इनकी नौसेनाएं होने का भी पता चलता है. पैदल सेना में नियमित और अनियमित दोनों तरह के सैनिक होते थे. नियमित सैनिक पुश्तैनी होते थे तथा कभी कभी देश के विभिन्न भागों मालवा, खस (असम), लाट (दक्षिण गुजरात), कर्नाटक आदि से इन्हें भर्ती किये जाते थे. पाल साम्राज्य में प्रत्यक्ष शासित क्षेत्र भुक्ति, मंडल या विषय और पत्तल में विभाजित था. भुक्ति को प्रान्त, मंडल या विषय को जिला और पत्तल को जिला से छोटी इकाई कहा जा सकता है. प्रान्त अर्थात भुक्ति का अधिपति उपरिक, और जनपद अर्थात मंडल या विषय का अधिपति विषयपति कहलाता था. सभी से अपनी क्षेत्र में भूराजस्व जमा करने और सेना की सहायता से कानून व्यवस्था बनाये रखने की आशा की जाती थी. इस काल में छोटे सरदारों की संख्या बढ़ी. उन्हें सामंत या भोगपति कहा जाता था और उनके अधीन अनेक गाँव होते थे. विषयपति और इन छोटे सरदारों का आपस में हेर-फेर होता था और आगे चलकर दोनों के लिए सामंत शब्द का प्रयोग होने लगा. इन क्षेत्रीय विभाजनों के नीचे गाँव होते थे. यह प्रशासन की बुनियादी इकाई था. इसका प्रशासन मुखिया और लेखाकार द्वारा चलाया जाता था, जिसमें गाँव के बुजुर्गों जिन्हें ग्राम महत्तर कहा जाता था की सहायता प्राप्त होती थी. पाल साम्राज्य में ज्ञान-विज्ञान, धर्म-संस्कृतितिब्बती वृतांत के अनुसार पाल शासक बौद्ध, ज्ञान-विज्ञान और धर्म के महान संरक्षक थे. धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुरुत्थान करवाया और उसके खर्चे के लिए 200 गाँव दिए. उसने मगध में, नालंदा के समान ही प्रसिद्धि वाली विक्रमशिला विश्वविद्यालय का स्थापना करवाया. पालों ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए बड़ी संख्या में विहार बनवाएं. तिब्बत से पाल शासकों के घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध थे. प्रसिद्द बौद्ध विद्वान शांत रक्षित और दीपंकर को तिब्बत आमंत्रित किया गया. पाल शासकों ने बौद्ध के आलावा (पाल शासक प्रमुख रूप से बौद्ध धर्म के संरक्षक थे) शैव और वैष्णव मत को संरक्षण दिया. उन्होंने बंगाल में शरणार्थी ब्राह्मणों को बसाया. वे सभी धर्मों को संरक्षण प्रदान करते थे और किसी के धार्मिक विश्वासों के कारण उसका दमन नहीं करते थे. पाल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था एवं व्यापारपश्चिम बंगाल में बसाये गए शरणार्थी आबादी के फलस्वरूप वहां कृषि का प्रसार हुआ. पशुपालक और खाद्य संग्राहक समुदाय स्थायी रूप से बसकर खेती करने लगे. बंगाल की बढती समृद्धि के कारण दक्षिण पूर्व एशिया के देशों बर्मा, मलाया, जावा, सुमात्रा आदि एवं चीन के साथ व्यापारिक-सांस्कृतिक संबंध बनाया जा सका. दक्षिण पूर्व एशिया और चीन के साथ व्यापार बहुत लाभदायक था और इससे पाल साम्राज्य की समृद्धि में बढ़ोतरी हुई.इस व्यापार के फलस्वरूप पाल साम्राज्य में सोना और चांदी का भंडार बढ़ा. मलाया, जावा, सुमात्रा और पडोसी द्वीपों पर राज्य करने वाले बौद्ध शासक शैलेन्द्र का पाल शासकों से घनिष्ठ संबंध था. उसने नालंदा में एक मठ बनवाया. पालों के काल में फारस की खाड़ी क्षेत्र के साथ भी व्यापार बढ़ा. यह भी पढ़ें:
निष्कर्ष: पाल साम्राज्य: राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, कला-संस्कृतिपालों ने 750 से 850 ईस्वी तक, लगभग 100 वर्षों तक पूर्वी भारत में वर्चस्वशाली ढंग से शासन किया और अन्य शासकों से संघर्ष के बाबजूद एक बड़े क्षेत में स्थिर जीवन की परिस्थितियां प्रदान की, कृषि का विस्तार किया, तालाब और नहरों का निर्माण कराया तथा कला एवं साहित्य को संरक्षण प्रदान किया. हमें उम्मीद है कि इस लेख ने आपको पाल साम्राज्य की राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, कला-संस्कृति के बारे में जानने में सहायता की| आपको यह लेख कैसी लगी आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते है| धन्यवाद| आपको प्राचीन भारत के इतिहास के सभी लेख देखना सही हो सकता है| |