प्लास्टिक तथा पॉलीथिन का भूमि की उर्वरा शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है? - plaastik tatha poleethin ka bhoomi kee urvara shakti par kya prabhaav padata hai?

Author: MritunjayPublish Date: Wed, 25 Sep 2019 08:57 AM (IST)Updated Date: Wed, 25 Sep 2019 08:57 AM (IST)

पॉलीथिन मिट्टी में दबता चला जाता है। मिट्टी में दबने से यह नष्ट तो नहीं होता लेकिन कई मायनों में यह धरा की आत्मा को ही समाप्त कर देता है।

धनबाद, जेएनएन। धड़ल्ले से उपयोग किए जाने वाला प्लास्टिक की वास्तविकता यह है कि यह धरा यानी पृथ्वी की जान ही निकाल रहा है। यानी मिट्टी की उर्वरा शक्ति, जल अवशोषित करने की क्षमता और इसमें रहने वाले मित्र अथवा सहयोगी कीटों को समाप्त करने का काम कर रहा है। ऐसे में यदि समय रहते लोग सचेत नहीं हुए तो उपजाऊ जमीन बंजर हो जाएगी।

एक अनुमान के मुताबिक शहरों से प्रतिदिन निकलने वाले कचरा में 15 से 20 फीसद तक पॉलीथिन अथवा प्लास्टिक रहता है। इस कचरे को कहीं भी डंप किया जाता है। इसके अलावा जहां तहां इसे लोगों द्वारा फेंका भी जाता है। इस स्थिति में पॉलीथिन मिट्टी में दबता चला जाता है। मिट्टी में दबने से यह नष्ट तो नहीं होता, लेकिन कई मायनों में यह धरा की आत्मा को ही समाप्त कर देता है। कृषि विज्ञान केंद्र बलियापुर के वैज्ञानिक डॉ. आदर्श श्रीवास्तव ने इसके खतरे को बताया और कहा कि सीधे तौर पर यह मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को नष्ट कर रहा है। कई जगहों पर प्लास्टिक को जला दिया जाता है। जलने के बाद इससे वायु प्रदूषण तो होता ही है, लेकिन जहां इसे जलाया जाता है वहां की मिट्टी भी प्रदूषित हो जाती है। मिट्टी के अंदर केंचुआ, फफूंद जैसे कई प्रकार के मित्र कीड़े होते हैं, जो मृदा अथवा पेड़-पौधों व फसलों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। पॉलीथिन के कारण यह मर रहे हैं। साथ ही वर्षा जल और हवा सोखने की भी क्षमता घट रही है। जिस जमीन के अंदर प्लास्टिक हो वहां पानी जमीन के अंदर नहीं जा सकता। ऐसे में भूगर्भीय जल पर भी असर पड़ता है। विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक के जमीन पर जमा होने से मिट्टी और जल दोनों प्रदूषित हो रहा है। जमीन की हवा सोखने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है। लाभप्रद बैक्टीरिया मर जाते हैं। जो बचते हैं उनकी क्षमता कम हो जाती है। इससे उर्वरा शक्ति भी नष्ट हो जाती है।

खतरनाक गैसों का भी उत्सर्जन : वैज्ञानिकों की मानें तो पॉलीथिन से कई प्रकार के खतरनाक गैसों का भी उत्सर्जन होता है। बेंजीन, विनायल और ईथनाल ऑक्साइड इससे निकलती है जो हवा को प्रदूषित करती है। इतना ही नहीं पॉलीथिन गलता नहीं है। पहले जहां भी कूड़े का ढेर लगा रहता था, उस पर घास अथवा पेड़ स्वत: उग आते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है।

पॉलीथिन यहां डाल रहा प्रभाव

- पॉलीथिन यदि पौधे के जड़ में आ जाए तो उसे प्रभावित कर देता है।

- खेतों में पॉलीथिन के रहने से पौधे की जड़ जमीन के अंदर तक नहीं जा पाती।

- इसके कारण मिट्टी के कणों के अंदर हवा नहीं जा पाती।

- पॉलीथिन गलती नहीं, बल्कि अपना विषैला तत्व जमीन में छोड़ देती है।

- मिट्टी की उर्वरा शक्ति को समाप्त कर देती है।

- पौधे असमय दम तोड़ देते हैं।

Edited By: Mritunjay

प्लास्टिक तथा पॉलिथीन का भूमि की उर्वरा शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?

- खेतों में पॉलीथिन के रहने से पौधे की जड़ जमीन के अंदर तक नहीं जा पाती। - इसके कारण मिट्टी के कणों के अंदर हवा नहीं जा पाती। - पॉलीथिन गलती नहीं, बल्कि अपना विषैला तत्व जमीन में छोड़ देती है। - मिट्टी की उर्वरा शक्ति को समाप्त कर देती है।

पॉलीथिन से पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है?

पॉलिथीन विघटित न होने के कारण न केवल मानव जीवन बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता है। यदि इसे जलाकर नष्ट किया जाए तो `CO_(2)` और CO जैसी गैसें उत्पन्न होती है। पॉलिथीन के उपयोग से पानी, हवा, मिट्टी जैसे प्राकृतिक कारक प्रदूषित हो रहा है।

प्लास्टिक प्लास्टिक से बने वस्तुओं का ज्यादा उपयोग करने से समस्या कब उत्पन्न होती है?

प्लास्टिक आमतौर पर लगभग 500-1000 वर्षों में खराब हो जाती है। हालांकि हम वास्तविकता में इसके खराब होने का समय नहीं जानते है । प्लास्टिक पिछले कई शताब्दियों से ज्यादा उपयोग में लायी जा रही है।

प्लास्टिक व पॉलीथिन का उपयोग बंद क्यों कर देना चाहिए?

इसका प्रयोग तेजी से बढ़ा है। प्लास्टिक के गिलासों में चाय या फिर गर्म दूध का सेवन करने से उसका केमिकल लोगों के पेट में चला जाता है। इससे डायरिया के साथ ही अन्य गम्भीर बीमारियाँ होती हैं। पॉलिथीन का बढ़ता हुआ उपयोग न केवल वर्तमान के लिये बल्कि भविष्य के लिये भी खतरनाक होता जा रहा है।