1960 के दशक में विकसित प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत (Theory of plate tectonics) को भूभौतिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी सिद्धांत माना जाता है| इस सिद्धांत ने सर्वाधिक वैज्ञानिक आधारों पर प्रायः सभी भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या का प्रयास किया| इस सिद्धांत का मूल आधार स्थलमंडल में स्थित प्लेटों की गतिशीलता और सीमांत भागों में घटित क्रियाएँ है| हम इस लेख में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या है के बारे में बता रहे है| What is plate tectonics in hindi). Show
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या है(What is plate tectonics theory)प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत(plate tectonics theory)एक प्रमुख भूभौतिकी सिद्धांत है| इसका विकास 1960 के दशक में किया गया| इस सिद्धांत में भूगर्भिक क्रियाओं से संबंधित पूर्व के सिद्धांतो एवं मान्यताओं को पूर्णतः नकारते हुए नवीन वैज्ञानिक आधारों पर पर भूगर्भिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया गया| इस सिद्धांत के आने के बाद भूकम्प, ज्वालामुखी, वलित पर्वतों की उत्पत्ति, भ्रन्सन, ट्रेंच का निर्माण, सागर नितल प्रसरण, सागरीय कटक आदि भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या प्लेटों के संचयन के आधार पर किया जाने लगा| इस सिद्धांत में मूल रूप से यह माना गया की स्थलमंडल (Lithosphere) कई प्लेटों में विभक्त है, और यह प्लेटें नीचे स्थित प्लास्टिक दुर्बलमंडल के उपर अस्थिर (unsteady) अवस्था में है| प्लास्टिक दुर्बलमंडल से उत्पन्न होने वाली संवहनिक ऊर्जा तरंगों (Vascular energy waves) के कारण इन प्लेटों में सापेक्षिक गतियाँ पायी जाती है, जिसके कारण ही विभिन्न प्रकार की भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है| प्लेट क्या होता हैप्लेट (plate) स्थलमंडल में स्थित दृढ भूखंड है. इनमें गति पायी जाती है. प्लेटों को विभाजित करने वाली ज्यामितीय रेखा को प्लेट सीमा (plate boundaries) कहते है. इस सीमा के दोनों ओर स्थित क्षेत्र को जहाँ प्लेटों की गतिशीलता का सर्वाधिक प्रभाव होता है उसे प्लेट सीमांत (Plate frontier) कहते है. प्लेट सीमांत के क्षेत्र में ही भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है. इन क्रियाओं को विवर्तनिक क्रिया (Tectonic action) कहते है. भूकम्प, ज्वालामुखी, वलित पर्वतों की उत्पत्ति, ट्रेंच (गर्त), सागर कटक निर्माण आदि विवर्तनिक क्रियाएँ ही है. ऐसे क्षेत्र को विवर्तनिक क्षेत्र (Tectonic zone) कहते है. प्लेटों की संख्या कितनी हैप्लेट विवर्तनिक सिद्धांत(plate tectonics theory)) के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद प्लेटों की संख्या स्थिर नही रही है. प्लेटों की संख्या में परिवर्तन होता रहता है. एक बड़ा प्लेट विखंडित होकर कई छोटे प्लेट में विभक्त हो सकता है. इसी प्रकार कई छोटे प्लेट मिलकर एक बड़े प्लेट का निर्माण कर सकते है. एक वृहद प्लेट के अंतर्गत भी कई छोटे प्लेट स्थित रहते है. इसी कारण प्लेटो की संख्या को लेकर विद्वानों में विभेद रहा है. नासा ने प्रारम्भ में 7 बड़े और 6 छोटे प्लेटों की स्थिति को बताया. मार्गन ने छोटे-बड़े 20 प्लेटों की स्थिति को बताया. 1984 में नासा ने 100 से अधिक प्लेटों की स्थिति का पता लगाया. इस तरह प्लेटों की संख्या को लेकर समय-समय पर आकलन किया जाता रहा. रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट (सुदूर संवेदी उपग्रहों) के अध्यन से प्लेटों के हलचल एवं गति को समझा जा सका. इससे प्लेट विवर्तनिकी को समझना आसान हुआ. प्लेटों की संख्या हालांकि परिवर्तनशील है लेकिन इसमें लाखो करोडो वर्ष लगते है. ऐसे में वर्तमान समय में प्लेटों की संख्या का निर्धारण किया जा सकता है. इन्ही आधारों पर 100 से अधिक प्लेटों की पहचान की गई है. इनमें 7 बड़े और 6 छोटे प्लेटों के सीमांत भाग में ही अधिकांस भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है. 7 बड़े प्लेट निम्न है-
6 छोटे प्लेट निम्न है-
प्लेटों की प्रकृतिप्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार प्रकृति के आधार पर प्लेट तीन प्रकार की होती है.
महाद्वीपीय प्लेट में ग्रेनाईट की उपस्थिति के कारण औसत घनत्व कम लगभग 2.65 से 2.67 होता है| महासागरीय प्लेट में बैसाल्ट की अधिकता के कारण औसट घनत्व अधिक 2.95 से 2.97 होता है. महाद्वीपीय सह महासागरीय प्लेट मध्यवर्ती घनत्व के होते है| प्लेटों की गतियाँप्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार प्लेटों में दो प्रकार की गतियाँ पाई जाती है: घूर्णन गति के संदर्भ में और सापेक्षिक गति घूर्णन गति के संदर्भ में गतिसभी प्लेटस घूर्णन अक्ष के संदर्भ में गतिशील है. इसी कारण पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के चारो ओर वृत्ताकार पथ पर प्लेटें गतिशील है. घूर्णन गति के अधिक प्रभाव वाले क्षेत्र में प्लेटों की गतिशीलता भी अधिक पायी जाती है| इसी कारण 40 अंश उत्तर से 40 अंश दक्षिण अक्षांस के मध्य प्लेटों की अधिक गतिशीलता मिलती है| इसका एक प्रमुख प्रमाण इन क्षेत्रों में अधिकांस भ्रंस की स्थिति का होना है| आयलर सिद्धांत से प्लेटों में गतिशीलता घूर्णन अक्ष के संदर्भ में प्रमाणित होती है| प्लेटों की सापेक्षिक गति (Relative movement)प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत(plate tectonics theory) के अनुसार सापेक्षिक गतियों के कारण ही अपसारी, अभिसारी और संरक्षी सीमांतों के सहारे विभिन्न प्रकार की भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है| विश्व के भूकम्प एवं जवालामुखी के प्रमुख क्षेत्र, वलित पर्वतों के क्षेत्र तथा अन्य कई भूगर्भिक क्रियाओं के क्षेत्र इन सीमांतों (boundaries) के सहारे ही स्थित है| प्लेटों की सर्वप्रमुख गति सापेक्षिक गति है| प्लेटों की सापेक्षिक गति का कारण प्लास्टिक दुर्बलमंडल से उत्पन्न होने वाली तापीय संवहनिक ऊर्जा तरंग है| संवहनिक ऊर्जा तरंगों की उत्पत्ति, तापीय ऊर्जा तरंगों के रूप में, स्थलमंडल के नीचे अधिक तापमान के प्रभाव से चट्टानों के पिघलने और गर्म क्षेत्र से होती है| दूसरे शब्दों में कहे तो प्लास्टिक दुर्बलमंडल में अधिक गर्म क्षेत्र (हॉट जोन) और गर्म स्थल (हॉट स्पॉट) स्थित होते है| यही से तापीय ऊर्जा तरंगों की उत्पत्ति होती है| प्लेटों में सापेक्षिक गति तीन प्रकार की होती है – अपसारी (Divergent), अभिसारी (Convergent) और संरक्षी या रूपान्तर (Transform)| अपसारी गति (Divergent Flow) : तापीय ऊर्जा तरंगें स्थलमंडल के अवरोध के कारण विपरीत दिशा में विस्थापित होती है जिसके परिणामस्वरूप स्थलमंडल भी विखंडित होकर विस्थापित होता है, इससे प्लेटों में अपसारी गति उत्पन्न होती है| अभिसारी गति (Convergent flow): अपसारी गति के प्रभाव से जब प्लेटें विपरीत दिशा में विस्थापित होती है तब ऊर्जा तरंगो के अभिशरण के क्षेत्र में दो प्लेटें एक दुसरे से अभिशरण करती है इसे अभिसारी गति कहते है| संरक्षी या रूपान्तर गति (Transform flow): प्लेटों के अभिसारी और अपसारी गतियों के परिणामस्वरूप जब दो प्लेटे एक दुसरे के समानांतर और विपरीत रगड़ते हुए गुजरती है तब इसे संरक्षी गति कहते है| प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत(plate tectonics theory) द्वारा भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्याप्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत(plate tectonics theory) के अनुसार में यह माना गया की स्थलमंडल कई प्लेटों में विभक्त है| ये प्लेटें महाद्वीपीय, महासागरीय एवं महाद्वीपीय-सह-महासागरीय प्रकार के होते है| इन प्लेटों में दो तरह की गति पायी जाती है| (1.) पृथ्वी की घूर्णन के कारण और प्लास्टिक दुर्बल मंडल से उत्पन्न होने वाली तापीय ऊर्जा तरंगों के कारण (2.) सापेक्षिक गति पायी जाती है| प्लेटों की सापेक्षिक गति के कारण ही प्लेटों के अपसारी, अभिसारी एवं संरक्षी सीमांतों के सहारे भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है| इस तरह कहा जा सकता है की प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार में तीन प्रकार की गतियों और सीमांतों के संदर्भ में विभिन्न भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या की गई| यह गतियाँ है:
अपसारी प्लेट गति एवं अपसारी सीमांत – Divergent plate flow and divergent boundaries.अपसारी गति, संवहनिक ऊर्जा तरंगों के अपसरण (Divergence) (दूर जाना) के प्रभाव से दो प्लेटों में एक दुसरे के विपरीत होने वाली गति है| इसके कारण प्लेटों के अपसारी सीमांत के क्षेत्रो में भूकम्प, विखंडन, भ्रंसन, सागर नितल का निर्माण, सागरीय कटक का निर्माण और सागर नितल प्रसरण जैसी भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है| वर्तमान में यह क्रिया अटलांटिक महासागर में घटित हो रही है| जब दो प्लेटें विपरीत दिशा से विस्थापित (Displaced) होती है, तब उत्पन्न दरार (Crack) के सहारे भूगर्भ का मैग्मा सतह पर आता है| इससे बैसाल्ट निर्मित नवीन भूपटल का निर्माण होता है| इसी संदर्भ में अपसारी सीमांतों को निर्माणकारी (रचनात्मक) (Constructive) सीमांत कहते है| ज्वालामुखी पठारों की उत्पत्ति और सागर नितल की बैसाल्ट युक्त सतह का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ है. सागर नितल पर बैसाल्ट की सतह प्लेटों की अपसारी गति के कारण क्रमशः विखंडित होती है| फलस्वरूप नवीन मैग्मा का उदगार होता रहता है| जब नवीन मैग्मा सतह पर आता है तब पहले से स्थित बैसाल्ट की सतह को विखंडित कर विपरीत दिशा में विस्थापित कर देता है| इस प्रक्रिया के क्रमिक रूप से घटित होते रहने के कारण सागर नितल की चौड़ाई में वृद्धि होती है| इसे सागर नितल प्रसरण कहते है| अटलांटिक महासागर के मध्यवर्ती भाग में बैसाल्ट निर्मित ज्वालामुखी कटक पाए जाते है| इसके दोनों ओर बैसाल्ट की चट्टानें सामानांतर पट्टियों में मिलती है| यह सागर नितल प्रसरण प्रक्रिया की पुष्टि करते है| कटक से दुरी के साथ बैसाल्ट की चट्टानों की आयु में वृद्धि होती है| इससे भी यह तथ्य प्रमाणित होता है सागर के किनारे की चट्टानों का निर्माण सर्वप्रथम अपसारी सीमांतों के सहारे हुआ है, जो नवीन मैग्मा एवं बैसाल्ट की चट्टानों के द्वारा विखंडित एवं विस्थापित होते गये| वर्तमान में भी कटक के क्षेत्र में भी कई सक्रीय ज्वालामुखी पाए जाते है जो कटक का अपसारी सीमांतों के सहारे होना प्रमाणित करता है| कटक के क्षेत्र में दरार एवं भ्रंस की स्थिति भी अपसारी गति को प्रमाणित करती है| प्लेटों के अपसरण के कारण ही मैग्मा के क्रमिक जमाव के कारण कटक का भी निर्माण हुआ| इन विविध क्रियाओं के कारण ही कटक के क्षेत्र में भूकम्प उत्पन्न होते है| अटलांटिक का मध्यवर्ती कटक विश्व का तीसरा प्रमुख ज्वालामुखी और भूकम्प का क्षेत्र है| इससे प्लेटों की अपसारी गति, कटक निर्माण. ज्वालामुखी क्रिया और भूकम्प के अंतर्संबंध की स्पष्ट व्याख्या होती है| अपसारी प्लेट गति के आधार पर प्राचीनतम महाद्वीप पैंजिया के क्रमिक विखंडन और महाद्वीपों के विस्थापन की भी व्याख्या होती है. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत एवं अभिसारी प्लेट गति तथा सीमांत – Convergent plate flow and convergent boundaries.प्लेटों के अभिसारी गति के कारण प्लेटें विपरीत दिशा से एक दुसरे की ओर गतिशील होती है, जिसके कारण प्लेटों के अभिसारी सीमांतों के सहारे बड़े पैमाने पर दबाब शक्ति कार्य करती है. (condition – 1) इसके कारण यहाँ भूकम्प, वलन , ज्वालामुखी क्रिया, ट्रेंच का निर्माण आदि विविध भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है| जब दो प्लेटों में अभिशरण होता है तब समान घनत्व की प्लेट की स्थिति में, दोनों प्लेटों के सीमांत भाग में वलन (folding) की क्रिया होती है और भूकम्प आते है. इस प्रक्रिया में मोटे भूपटल का निर्माण होता है. (conditon – 2) अभिसारी प्लेट गति की स्थिति में जब दो भिन्न घनत्व की प्लेटों में अभिशरण होता है तब कम घनत्व के प्लेट में वलन की क्रिया से वलित पर्वतों का निर्माण होता है. (condition – 3) विश्व के प्रायः सभी नवीन वलित पर्वत की उत्पत्ति इसी प्रक्रिया से हुई है. अधिक घनत्व की प्लेट में प्रत्यावर्तन (नीचे जाना) की क्रिया घटित होती है| प्रत्यावर्तित प्लेट के सहारे ट्रेंच का निर्माण होता है| सागरीय प्लेट की स्थिति में सागरीय ट्रेंच का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ है| इसी कारण अधिकांश सागरीय ट्रेंच महासागरों के सीमांत भागों में पाए जाते है| प्रत्यावर्तित प्लेट (क्षेपित प्लेट) के ढाल युक्त भाग को बेनी ऑफ़ जोन मंडल (Beni of zone) कहते है| यह भूकम्प उत्पत्ति का प्रमुख क्षेत्र है| यहाँ प्लेटों में तीव्र घर्षण (रगड़) के कारण चट्टानों में दबाब एवं विखंडन की क्रिया घटित होती है| इसके कारण भूकम्प मूल की उत्पत्ति होती है| बेनी ऑफ़ जोन के आगे (नीचे) प्रत्यावर्तित प्लेट का सीमांत भाग अधिक तापमान के कारण पिघलने लगता है| इसी आधार पर अभिसारी सीमांतों को विनाशात्मक सीमांत कहते है| जिस अनुपात में रचनात्मक सीमांतों के सहारे नवीन भूपटल का निर्माण होता है, लगभग उसी अनुपात में विनाशात्मक सीमांतों के सहारे भूपटल का विनाश भी होता है| इससे निर्माण और विनाश में एक संतुलन बना रहता है| प्रत्यावर्तित प्लेट के क्रमिक विनाश के कारण प्लास्टिक दुर्बलमंडल में मैग्मा की मात्रा में वृद्धि होती है जो तापीय ऊर्जा तरंगों के साथ सतह की ओर आने की कोशिश करती है| इसी प्रक्रिया से वलित पर्वतों के क्षेत्र में ज्वालामुखी क्रिया घटित होती है| इन सम्पूर्ण प्रक्रिया में भुपटल में उत्पन्न व्यापक अव्यवस्था के कारण भूकम्प की उत्पत्ति होती है| यही कारण है की भूकम्प ज्वालामुखी और वलित पर्वतों की उत्पत्ति पुर्णतः अंतर्संबंधित भूगर्भिक क्रियाएँ है, जो की प्लेटों के अभिसारी सीमांतों के सहारे घटित होती है| प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत(plate tectonics theory) के अनुसार प्लेटों के अभिशरण की तीन परिस्थितियां होती है: महाद्वीपीय – महाद्वीपीय प्लेट अभिशरण, महाद्वीपीय – महासागरीय प्लेट अभिशरण, महासागरीय – सागरीय प्लेट अभिशरण महाद्वीपीय – महाद्वीपीय प्लेट अभिशरण:दो महाद्विपीय प्लेट अभिशरण की स्थिति में महाद्वीपों के मध्यवर्ती क्षेत्र में वलित पर्वतों की उत्पत्ति होती है और भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया घटित होती है| जैसे अफ्रीकन एवं यूरेशियन प्लेट में अभिशरण की स्थिति में यूरोप का आल्पस, अफ्रीका का एटलस वलित पर्वत का निर्माण हुआ तथा भूमध्य सागर के क्षेत्र में ज्वालामुखी क्रिया और भूकम्प क्षेत्र क्षेत्र उत्पन्न हुए. भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के अभिशरण की स्थिति में अधिक घनत्व के भारतीय प्लेट में प्रत्यावर्तन तथा कम घनत्व के यूरेशियन प्लेट में वलन की क्रिया से हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की उत्पत्ति हुई| हिमालय क्षेत्र में इन्हीं प्रक्रियाओं से भूकम्प उत्पन्न होते है लेकिन यूरेशियन प्लेट की मोटाई अधिक होने के कारण यहाँ ज्वालामुखी क्रिया घटित नहीं होती. महाद्वीपीय – महासागरीय प्लेट अभिशरणजब महासागरीय एवं महाद्वीपीय प्लेट में अभिशरण होता है तब अधिक घनत्व के सागरीय प्लेट में प्रत्यावर्तन की क्रिया से ट्रेंच की उत्पत्ति होती है, जबकि कम घनत्व के महाद्वीपीय प्लेट में वलन से तटीय वलित पर्वत तथा संबंधित भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्षेत्र का निर्माण होता है| जैसे उत्तरी अमेरिकन एवं दक्षिणी अमेरिकन प्लेट का अभिशरण प्रशांत प्लेट से होने के कारण ही रॉकी, इंडीज वलित पर्वत तथा संबंधित भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्षेत्र का विकास हुआ है| महासागरीय – सागरीय प्लेट अभिशरणजब दो सागरीय प्रकृति के प्लेटों में अभिशरण होता है तब कम घनत्व के सागरीय प्लेटों में वलन की क्रिया से द्वीपीय चाप एवं तोरण का निर्माण होता है| इसके सहारे तीव्र भूकम्प आते है और कई सक्रीय ज्वालामुखी उत्पन्न होते है| जापान एवं फिलिपिन्स द्वीपीय चाप एवं तोरण के ही उदाहरण है| इंडोनेशिया के कई द्वीप समूह का निर्माण भी इसी प्रक्रिया से हुआ है| स्पष्टतः प्लेटों के अभिसारी सीमांतों के सहारे विश्व के व्यापक क्षेत्रों में भूगर्भिक क्रियाएँ घटित होती है. संरक्षी प्लेट गति एवं संरक्षी सीमांत – Protector or Transform plate flow and transform boundaries.प्लेटों के अपसारी एवं अभिसारी गतियों के परिणामस्वरूप एक तीसरे प्रकार की गति उत्पन्न होती है इसे संरक्षी गति कहते है| इसमें दो प्लेटे एक दुसरे के समानांतर एवं विपरीत घर्षण करते हुए गति करती है| इसके कारण भूपटल का निर्माण एवं विनाश जैसी क्रियाएँ घटित नहीं होती| इसी कारण संबंधित सीमांत को संरक्षी सीमांत कहते है| इस स्थिति में भूकम्प उत्पन्न होते है और रूपांतरण भ्रंस का निर्माण होता है| कैलीफोर्निया के पास सान एंड्रीयांस भ्रंस इसी प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न हुआ है| प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत की व्याख्या से यह तथ्य स्पष्ट होता है की प्लेटों की अस्थिरता और गतिशीलता ही विभिन्न भूगर्भिक क्रियाओं का कारण है और अधिकांश भूगर्भिक क्रियाएँ प्लेट विवर्तनिकी से ही संबंधित है| हालाँकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा भूगर्भिक क्रियाओं की सर्वाधिक वैज्ञानिक व्याख्या की गई लेकिन इस सिद्धांत में कई मौलिक कमियां विद्यमान है| इसकी कुछ तो ऐसी भी सीमाएं है जो अभी तक के ज्ञात हुए भूगर्भिक ज्ञान पर ही प्रश्नवाचक चिह्न लगाते है. प्लेट टेक्टानिक्स थ्योरी की सीमाओं के बारे में पढने के लिए यहाँ क्लिक करें| हम आशा करते है की इस लेख ने आपको प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या है और इसके अनुसार भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या के बारे में समझने में सहायता की| आपको भूकंपीय तरंग या सिस्मोग्रफिक अध्ययन के आधार पर भूगर्भीय संरचना की जानकारी के बारे में पढना पंसद हो सकता है| प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत से क्या समझते हैं?विवर्तन प्लेट सिद्धांत (1960) के प्रवर्तक हेस (Hess) के अनुसार स्थलमंडल आंतरिक रूप से दृढ़ प्लेट का बना हुआ है और महाद्वीप तथा महासागरीय तली विभिन्न प्लेट के ऊपर स्थित हैं। ये प्लेट विभिन्न रूपों में गतिशील तथा प्रवाहित होते हैं जिसके कारण महाद्वीप तथा महासागरीय तली भी विस्थापित होती है।
प्लेट विवर्तनिकी क्या है pdf?प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत भू-भौतिकी का एक प्रबल, क्रांतिकारी एवं व्यापक सिद्धांत है । यह एक साथ महाद्वीपीय विस्थापन, पर्वतों का निर्माण, समुद्र तल का प्रसार, ज्वालामुखी क्रियाएं, समुद्री कटक का उद्भव, महाखड्डों का निर्माण, गहरे केन्द्र वाले भूकम्प आदि समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है ।
विवर्तनिक का मतलब क्या होता है?विवर्तनिकी (Tectonics) भूविज्ञान की वह शाखा है जिसमें पर्वतन (orogenies), क्रेटॉनों, भूकम्प, ज्वालामुखी क्षेत्रों आदि के विकास का अध्ययन किया जाता है। विवर्तनिक अध्ययन अनेक दृष्टियों से लाभकारी हैं।
प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका क्या है?इस प्रकार प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत न केवल हिमालय और अप्लेशियन पर्वत की उत्पत्ति को समझाने में सहायक है बल्कि इस सिद्धांत की सहायता से महासागरीय नितल, पैलोमैग्नेटिक चट्टानें, भूकंप एवं ज्वालामुखियों का वितरण, ट्रेंच पर गुरुत्वाकर्षण विसंगतियाँ आदि भौगोलिक विशेषताओं को भी समझा जा सकता है।
|