प्रकाश के वेग की इकाई क्या है? - prakaash ke veg kee ikaee kya hai?

प्रकाश की चाल (speed of light) (जिसे प्राय: c से निरूपित किया जाता है) एक भौतिक नियतांक है। निर्वात में इसका सटीक मान 299,792,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है जिसे प्राय: 3 लाख किमी/से.

12 संबंधों: ध्वनि का वेग, निमेष, निर्वात, बृहस्पति, भौतिक नियतांक, मीटर, योजन, सायण, वाचस्पति मिश्र, अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन, १९८३, २१ अक्टूबर।

वायु में ध्वनि का संचरण वायु के कणों के कम्पन के कारण उत्पन्न हुए संपीडन और विरलन के रूप में होता है। अनुप्रस्थ तरंग की गति: केवल ठोस माध्यम में ही अनुप्रस्थ तरंगे बनतीं हैं। इसमें माध्यम के कणों का कम्पन तरंग की गति की दिशा के लम्बवत होता है। किसी माध्यम (जैसे हवा, जल, लोहा) में ध्वनि १ सेकेण्ड में जितनी दूरी तय करती है उसे उस माध्यम में ध्वनि का वेग कहते हैं। शुष्क वायु में 20 °C (68 °F) पर ध्वनि का वेग 343.59 मीटर प्रति सेकेण्ड है। ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है। इसके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है। निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं होता। वायु में ध्वनि का संचरण एक अनुदैर्घ्य तरंग (लांगीट्युडनल वेव) के रूप में होता है। अलग-अलग माध्यमों में ध्वनि का वेग अलग-अलग होता है। .

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यह हिन्दू समय मापन इकाई है। यह इकाई अति लघु श्रेणी की है। एक निमेष अर्थात पलक ़अपकने में लगे समय का आधा, यानि पलक के नीचे आने या ऊपर जाने के समय का माप्। कुछ स्थानों पर इसे पलक ़अपकने के समय के बराबर भी बताया गया है।.

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निर्वात को प्रदर्शित करने हेतु एक पम्प जब आकाश (स्पेस) के किसी आयतन में कोई पदार्थ नहीं होता तो कहा जाता है कि वह आयतन निर्वात (वैक्युम्) है। निर्वात की स्थिति में गैसीय दाब, वायुमण्डलीय दाब की तुलना में बहुत कम होता है। किन्तु स्पेस का कोई भी आयतन पूर्णतः निर्वात हो ही नहीं सकता। .

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कोई विवरण नहीं।

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भौतिक नियतांक (physical constant) उस भौतिक राशि (physical quantity) को कहते हैं जिसके बारे में ऐसा विश्वास किया जाता है कि वह राशि प्रकृति में सार्वत्रिक (universal) है तथा समय के साथ अपरिवर्तनशील या नियत है। भौतिक नियतांक, गणितीय नियतांक से इस मामले में भिन्न हैं कि गणितीय नियतांक संख्यात्मक दृष्टि से तो नियत होते हैं किन्तु उनका किसी मापन से सम्बन्ध नहीं होता। विज्ञान में बहुत से भौतिक नियतांक हैं जिनमें से प्रमुख हैं - शून्य में प्रकाश का वेग c, गुरुत्वाकर्षण नियतांक G, प्लांक नियतांक h, निर्वात का विद्युत नियतांक ε0, तथा एलेक्ट्रान का आवेश e. .

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मान (मीटर) लम्बाई के नाप/माप की इकाई है। यह अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली में एवं मीट्रिक प्रणाली में भी, लम्बाई के मापन की SI मूल इकाई है। इसका प्रयोग विश्वव्यापी स्तर पर वैज्ञानिक और सामान्य प्रयोगों हेतु होता है। ऐतिहासिक रूप से, मान को फ़्रांसीसी विज्ञान अकादमी ने परिभाषित किया था। यह परिभाषा थी:.

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योजन वैदिक काल की हिन्दू लम्बाई मापन की इकाई है। 100 योजन से एक महायोजन बनता है। चार गाव्यूति .

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सायण या आचार्य सायण (चौदहवीं सदी, मृत्यु १३८७ इस्वी) वेदों के सर्वमान्य भाष्यकर्ता थे। सायण ने अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया है, परंतु इनकी कीर्ति का मेरुदंड वेदभाष्य ही है। इनसे पहले किसी का लिखा, चारों वेदों का भाष्य नहीं मिलता। ये २४ वर्षों तक विजयनगर साम्राज्य के सेनापति एवं अमात्य रहे (१३६४-१३८७ इस्वी)। योरोप के प्रारंभिक वैदिक विद्वान तथा आधुनिक भारत के श्री अरोबिंदो तथा श्रीराम शर्मा आचार्य भी इनके भाष्य के प्रशंसक रहे हैं। यास्क के वैदिक शब्दों के कोष लिखने के बाद सायण की टीका ही सर्वमान्य है। .

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वाचस्पति मिश्र (९०० - ९८० ई) भारत के दार्शनिक थे जिन्होने अद्वैत वेदान्त का भामती नामक सम्प्रदाय स्थापित किया। वाचस्पति मिश्र ने नव्य-न्याय दर्शन पर आरम्भिक कार्य भी किया जिसे मिथिला के १३वी शती के गंगेश उपाध्याय ने आगे बढ़ाया। .

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अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन (1852-1931) एक भौतिक वैज्ञानिक थे जिन्हें 1907 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले अमेरिकी वैज्ञानिक थे। .

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१९८३ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२१ अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २९४वॉ (लीप वर्ष मे २९५वॉ) दिन है। साल मे अभी और ७१ दिन बाकी है। .

`2.43 xx10 ^(-11) m ` ` 243xx 10^(-11) ` m ` 0.243 m ` ` 2.43xx10 ^(-4) m `

Solution : ` v= (3xx10 ^(8))/( 10 ) =3xx10 ^(7) ms ^(-1)`
` lambda = (h)/(mv) =( 6.626xx10 ^(-34) Js)/( 9.1 xx 10 ^(_31) kg xx 3xx10 ^(7) ms^(-1))`
`= 2.43xx 10 ^(11)m`

प्रकाश की चाल (speed of light) (जिसे प्राय: c से निरूपित किया जाता है) एक भौतिक नियतांक है। निर्वात में इसका सटीक मान 29,97,92,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है [1][2] जिसे प्राय: 3 लाख किमी/सेकंड कहा जाता है। वस्तुतः सभी विद्युतचुम्बकीय तरंगों (जैसे रेडियो तरंगें, गामा किरणें, प्रकाश आदि) समेत, गुरुत्वीय-सूचना का वेग भी इतना ही है। चाहे प्रेक्षक का 'फ्रेम ऑफ रिफरेंस' कुछ भी हो या प्रकाश-उत्सर्जक स्रोत किसी भी वेग से किधर भी गति कर रहा हो, हर प्रेक्षक को प्रकाश का यही वेग मिलेगा। कोई भी वस्तु, दिक्-काल में प्रकाश के वेग से अधिक वेग पर गति नहीं कर सकती।

प्रकाश के वेग का सटीक मान निकालना एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि यह विद्युत्चुं-चुबकीय घटनाओं का एक अभिन्न अंग है। जितने भी ऊर्जा के संचार के कार्य हैं, उनमें इसका उपयोग होता है। प्रकाश का वेग समय यात्रा में सहायक है। आइंस्टीन के सापेक्षता के विशेष सिद्धांत के अनुसार, यदि प्रकाश की गति की तुलनात्मक चाल पर गमन किया जाता है तो (गमन करने वाले पिंड के लिए) समय किसी स्थिर प्रेक्षक की तुलना में भिन्न हो जायेगा।

21 अक्टूबर 1983, से प्रकाश के वेग का मान मीटर सहित अन्य मापकों को 'कैलिब्रेट' करने के लिये किया जा रहा है। इसका मान निर्वात के विद्युत नियतांक ε0{\displaystyle \varepsilon _{0}\,\!}

प्रकाश के वेग की इकाई क्या है? - prakaash ke veg kee ikaee kya hai?
तथा चुम्बकीय नियतांक (परमिएबिलिटी) (परमिटिविटी) μ0{\displaystyle \mu _{0}\,\!}
प्रकाश के वेग की इकाई क्या है? - prakaash ke veg kee ikaee kya hai?
से सम्बन्धित है जो निम्नवत है:

c=1μ0ε0{\displaystyle c={\frac {1}{\sqrt {\mu _{0}\,\varepsilon _{0}}}}\,\!}

सत्राहवीं सदी के मध्य तक धारणा यह थी कि प्रकाश का वेग अनंत होता है, अर्थात् उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने में कुछ भी समय नहीं लगता। गैलिलियो ने प्रकाश की चाल को मापने का प्रयास किया था, परन्तु उनके प्रयोग में मानव-प्रतिक्रिया-काल से होने वाली त्रुटी की वजह से वे प्रकाश की गति मापने में नाकामयाब रहे| सितंबर1676 में रोमर ने बताया कि प्रकाश का वेग तीव्र होने के बावजूद 'परिमित' है। बृहस्पति के एक उपग्रह, इओ, के ग्रहणों के अंतर काल में पृथ्वी से संबंधित दूरी के बदलने से होने वाले परिवर्तन का अध्ययन कर, रोमर ने प्रकाश को पृथ्वी की कक्षा के व्यास को पार करने में लगनेवाले काल को निकालाने का तरीका सुझाया| हालांकि, उस तरीके के आधार पर गणना करने वाले पहले व्यक्ति क्रिस्चियन हुय्गेंस थे, जो 2,14,300 किलोमीटर प्रति सेकंड के बराबर ज्ञात हुआ, फिर भी प्रकाश की गति निकालने वाले व्यक्ति के रूप में रोमर को ही श्रेय मिलता है । उन समय के वैज्ञानिक ज्ञान को देखते हुए यह अत्यंत प्रशंसनीय कार्य था|

एकवर्णी तरंग के वेग को कला-वेग (Phase velocity) कहते हैं। यथार्थ में श्वेत प्रकाश एकवर्णी न होकर कई प्रकार की तरंगों से बनता है। यह झुंड जिस वेग से चलता है, उसे समूह वेग (Group velocity) कहते हैं। प्रकाश के वेग नापने की प्रत्यक्ष विधियाँ साधारणतया समूहवेग ही नापती हैं।

प्रकाश की तीव्रता का उसके वेग पर प्रभाव1904 ई. में डाउट ने तीव्रता को 1: 3,00,000 के अनुपात में बढ़ाकर बताया कि विभिन्न प्रकाशों के वेग में परिवर्तन 6 मिमी. प्रति सेकंड से भी कम होता है। यह नगण्य है।तरंगदैर्घ्य का प्रभावनिर्वात में भिन्न भिन्न तरंगदैर्ध्यो के लिये प्रभाव ज्ञात नहीं हुआ है। 1925 ई.. में रोज़ा ने सर्वप्रथम इसके प्रति विश्वास जताया, किंतु अर्वाचीन प्रयोगों ने इस विश्वास को निराधार बताया है।सामर्थ्यवान चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव1940 ई. में बांवेल एवं फार ने 20,000 गौस चुंबकीय क्षेत्र में से प्रकाशकिरणें भेजकर उनके वेग में 34 सेंमी. प्रति सेंकंड की वृद्धि पाई, किंतु इस फल की यथार्थता के बारे में शंका है।सामर्थ्यंवान विद्युतीय क्षेत्र का प्रभावसन् 1952 में स्टार्क ने 1,000 किवा. प्रति सेंमी. विद्युतक्षेत्र से प्रकाशवेग में जरा सी वृद्धि पाई।

प्रकाशवेग नापने की विधियाँ[संपादित करें]

प्रकाशवेग नापने की विविध विधियों को निम्न मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है। इनमें कुछ प्रत्यक्ष विधियाँ हैं तथा कुछ अप्रत्यक्ष।

अपार्थिव अथवा ज्योतिष विधियाँइनमें (1) रोमर को उपग्रह ग्रहण विधि एवं (2) ब्रैडले को अपेरण विधि मुख्य हैं।पार्थिव विधियाँइनमें (1) फिजो (Fizeau) की दंतुरचक्र विधि, (2) फूको (Foucault) की घूर्ण दर्पण विधि ओर (3) माइकेलसन की अष्टकोण दर्पण विधि मुख्य हैं।वैद्युत प्रकाशिक विधियाँइनमें कर सेल विधि और चाप वैद्युत प्रमुख हैं।वैद्युत विधियाँये प्राय: अप्रत्यक्ष विधियाँ हैं।रोमर की उपग्रह ग्रहण विधि

यह अब केवल ऐतिहासिक महत्व रखती है। जब पृथ्वी और बृहस्पति की स्थिति A1 और B1 पर रहती है, तब बृहस्पति के उपग्रहों के ग्रहण के अंतरकाल को मालूम कर लिया जाता है। लगभग छह महीने पश्चात् जब पृथ्व एवं बृहस्पति की स्थिति A2 और B2 पर क्रमश: होती है, तब फिर से इस अंतरकाल को मालूम कर लिया जाता है। बृहस्पति एवं पृथ्वी के बीच की दूरी बढ़ जाने के कारण ग्रहण का यह अंतरकाल बदल जाता है। इस परिवर्तन को एवं पृथ्वी की कक्षा के व्यास को मालूम कर प्रकाशवेग मालूम किया जाता है।

ब्रैडले की अपेरण (Aberration) विधि

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर प्राय: 18.5 मील प्रति सेकंड के वेग से घूमतल है। अतएव जब हम दूरबीन द्वारा किसी तारे को देखना चाहते हैं तब उसे सीधे तारे की ओर न रखकर, पृथ्वी की दिशा में कुछ झुकाना पड़ता है। यह प्रेक्षित दिशा यथार्थ दिशा नहीं होती है। इन दोनों दिशाओं के बीच के कोण को अपेरण कोण कहते हैं। इस कोण का मान एवं पृथ्वी का गमन वेग मालूम किया जाता है।

1725 ई. में ब्रैडले ने g-ड्रेकोनिस तारे का अध्ययन कर प्रकाशवेग का मान 2.99,855ल् 120 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला। आपेक्षिकता सिद्धांत का जन्म होने में इस विधि का कुछ हाथ है।

फीज़ो (Fizeau) की दंतुरचक्र विधि

1849 में एच. एल. फीजो ने सर्वप्रथम केवल पार्थिव उपकरणों से प्रकाशवेग को मालूम किया। फीज़ो ने प्रकाशवेग का मान 3,15,300.500 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला। इसी विधि से कॉर्नु (Cornu) ने 1875 ई. में प्रकाशवेग 3,00,400 किलोमीटर प्रति सेंकंड एवं 1906 ई. में पैराटिन ने 2,99,880.84 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।

फूको की घूर्ण-दर्पण-विधि

दंतुरचक्र के स्थान पर फूको ने वेग से घूमनेवाले दर्पण का उपयोग किया। 1962 ई. में फूको ने प्रकाश वेग (c) का मान 2,98,009.500 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला। सन् 1878-82 के बीच माइकेलसन (Michelson) ने इसी प्रयोग द्वारा वेग का मान 2,99,828 किलोमीटर प्रति सेंकंड निकाला तथा साइमन न्यूकम (Simon Newcomb) ने 2,99,778।

माइकेलसन की अष्टकोण दर्पण विधि

सन् 1926 में किया गया हय प्रयोग अपनी यथार्थता के लिये प्रसिद्ध है। 22 मील दूरी पर पहाड़ की चोटी पर स्थित, माउंट विलसन तथा माउंट सेंट ऐंटोनियो को माइकेलसन ने अपने प्रयोग के लिये निर्धारित किया।

पौज़े एवं पीअरसन ने 1935 ई. में उपर्युक्त प्रयोग को निर्वात में दुहराया। उनके उपकरण एक मील लंबे नल में स्थित थे। अष्टकोण के स्थान पर इन्होंने 32 तलवाले दर्पण का उपयोग किया। उनके प्रकाशवेग का मान 2,99,774.11 किलोमीटर प्रति सेकंड निकला।

वैद्युत-प्रकाशिक विधियाँ[संपादित करें]

कर सेल (Kerr cell) विधि

घूमनेवाले दंतुरचक्र जैसा ही कर सेल एक वैद्युत प्रकाशिक कपाठ है। कर सेल में एक काँच के पात्र में धातु की दो समांतर पट्टियों के बीच में नाइट्रोबेंजीन द्रव भरते हैं। इसके दोनों ओर दो निकल (nicol) प्रिज्म इस स्थिति में रखते हैं कि सेल में से किरणें निकल नहीं सकती। किंतु यदि पहियों पर वैद्युत विभव लगाया जाए, तो द्रव में द्विवर्तन उत्पन्न होगा और अब निकल में से प्रकाश आ सकेगा। यदि उच्च आवृत्तिवाला वैद्युत विभव लगाया जाय, तो सेल प्रकाश को अधिकतम विभव पर जाने देगा और शून्य विभव पर रोक देगा। यदि प्रत्यावर्ती क्षेत्र की आवृत्ति 108 हो तो 2' 108 बार प्रति सेकंड प्रकाश रुकेगा एवं जा सकेगा।

सन् 1926 ई. में कारोलुस (Karolus) एवं मिटलस्टैट (Mittelstaedt) ने इस कर सैल का उपयोग प्रकाश का वेग निकालने में किया। दोनों सेलों में वही प्रत्यावर्ती क्षेत्र लगाया गया है। इनके प्रकाशवेग का मान 2,99778.20 किलोमीटर प्रति सेंकंड था।

ऐंडरसन (Anderson) ने सन् 1936-41 में उपर्युक्त प्रयोग में सुधार कर इसे 3,000 बार दुहराया। इनके अनुसार प्रकाशवेग का औसत मान 2,99776ल् 4 किलोमीटर प्रति सेकंड निकला। वर्गस्ट्रैंड ने भी (1949-51) इसी विधि का उपयोग कर प्रकाशवेग का मान 2,99,793.13 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।

चाप वैद्युत दोलक विधि

यदि क्वार्ट्ज को दो निकलों के बीच में रखकर उसपर प्रत्यावर्ती विद्युत क्षेत्र लगाया जाए, तो वह भी कर सैल जैसा कार्य करता है। यह बात कर और ग्रांट ने सन् 1927 में बताई। सन् 1938 में मैक किन्ले ने इसका उपयोग कर प्रकाशवेग का मान 2,99,780.70 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।

लुविग बर्गमैन ने 1937 ई. में बताया कि यदि क्वार्ट्ज पर उच्च आवृत्तिवाले प्रत्यावर्ती क्षेत्र को लगाया जाए, तो उसमें भी उच्च आवृत्तिवाले प्रत्यावर्ती क्षेत्र को लगाया जाए, तो उसमें भी उच्च आवृत्तिवाले दोलन उत्पन्न हो जाते हैं। उनमें बराबर दूरी पर निस्पंद तल बन जाते हैं उनमें बराबर दूरी पर निस्पंद तल बन जाते हैं और क्वार्ट्ज पट्टिका ग्रेटिंग बन जाती है। जब क्षेत्र उच्च होता है तब ग्रेटिंग बनती है और क्षेत्र शून्य होने पर वह नष्ट हो जाती है।

क्वार्ट्ज के उपर्युक्त गुण का उपयोग हाउस्टन ने 1941 एवं 1950 ई. में प्रकाशवेग निकालने के काम में किया। हाउस्टन ने प्रकाशवेग का मान 2,99,775.9 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।

(1) विद्युच्चुंबकीय तथा स्थिरविद्युत मात्रकों के अनुपात द्वारा : सन् 1873 में मैक्सवेल ने प्रकाश को विद्युच्चुंबकीथ तरंग बताया और उसके वेग को विद्युच्चुंबकीय एवं स्थिर विद्युत मात्रकों के अनुपात के बराबर। विद्युत संबंधी विभिन्न परिमाणों को दोनों प्रकार के मात्रकों में आसानी से नापा जा सकता है।

(2) स्थावर तरंगों का तारों पर बनाना : विद्युच्चुंबकीय तरंगों की स्थावर तरंगें दो समांतर तारों पर बनाई जाती हैं। निस्पंद तलों के बीच की दूरी ज्ञात कर तरंगदैर्घ्य मालूम किया जाता है। फिर आवृत्तिकाल मालूम कर वेग मालूम हो जाता है। इस विधि से ब्लोंडेट तथा लेचर ने प्रकाशवेग का मान निकाला।

(3) कैविटी रेजोनेटर (Cavity Resonator) : इसकी मदद से 1947 ई. में अकाशवेग का मान 2,99,792 किलोमीटर प्रति सेकंड निकला। इसेन ने विधि को सुधार कर इस मान को 2,99,792.5 बताया। हन्सेन और बोल ने 1950 ई. में बहुत ही यथार्थ रूप से इस मान को 2,99,789.6 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।

(4) सूक्ष्म दैर्घ्य व्यतिकरणी : सन् 1950 में फ्रूम ने रेडार तरंगों की सहायता से प्रकाशवेग का मान 2,99,792.6ल् 0.7 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला और फिर सन् 1954 में इस मान को बदलकर 2,99,793.7 बताया।

ओबौ और शौरन व्यवस्था का उपयोग दूरी नापने के लिये किया गया। 1947 ई. में जोन ने तथा 1949 और 1954 ई. में अलाक्सन ने इस विधि द्वारा प्रकाशवेग का मान 2,99,794.2 किलोमीटर प्रति सेकंड निकाला।

(5) घूर्णन स्पेक्ट्रम : इसकी सहायता से आर्वाचीन काल में, अर्थात् सन् 1955 में, प्लायर, ब्लैन व कोनर ने मिलकर प्रकाशवेग का मान 2,99,789.8 किलोमीटर प्रति सेंकंड निकाला।

इस प्रकार इन सब विधियों से निकाले हुए प्रकाशवेग के मानों का अध्ययन कर हम कह सकते हैं कि सबसे यथार्थ प्रकाशवेग मान 2,99,793.0 किलोमीटर प्रति सेकंड है।

प्रकाश के वेग का मान व इकाई क्या है?

प्रकाश की चाल (speed of light) (जिसे प्राय: c से निरूपित किया जाता है) एक भौतिक नियतांक है। निर्वात में इसका सटीक मान 29,97,92,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है [1][2] जिसे प्राय: 3 लाख किमी/सेकंड कहा जाता है।

प्रकाश का वेग सबसे अधिक होता है कौन?

प्रकाश का वेग निर्वात में अधिकतम होता है। प्रकाश को प्रसारित करने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन माध्यम के अपवर्तक सूचकांक के कारण प्रकाश की गति घट जाती है जबकि निर्वात का कोई माध्यम नहीं होता है इसलिए इसका सूचकांक एक होता है।

सूर्य के प्रकाश की चाल क्या है?

प्रकाश की चाल 300,000 km/s है। यदि प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने में 8.33 मिनट लगता हो, - YouTube.

हवा में प्रकाश का वेग कितना होता है?

हवा में प्रकाश की गति 3 × 10 8 मीटर है / s। एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर प्रकाश की गति और तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन होता है लेकिन इसकी आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है।