चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। Show नमस्कार आपका बुकलेट पर स्वागत है आपका प्रश्न है बेटे की व्यवस्था की विशेषताओं की विवेचना करें ब्रिटिश डिलीवर स्थान था ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं जो है वह बताएं पहली अलिखित संविधान और दूसरी परंपरागत रूप से क्रमिक विकास तीसरी सिद्धांत एवं व्यवहार में अंतर चौथी संसदीय प्रजातंत्र पांचवी संसदीय सर्वोच्चता छठी विधि का शासन ब्रिटेन में विधि का शासन होता है साथ में लचीलापन आठवीं एकात्मक संविधान नवी नागरिक अधिकार दशमा एकात्मक राज्य 11वी दलीय राजनीति व्यवस्था और बारवा संविधान के पूरक अधिनियम की व्यवस्था धन्यवाद namaskar aapka booklet par swaagat hai aapka prashna hai bete ki vyavastha ki visheshtaon ki vivechna kare british deliver sthan tha british samvidhan ki visheshtayen jo hai vaah bataye pehli alikhit samvidhan aur dusri paramparagat roop se kramik vikas teesri siddhant evam vyavhar me antar chauthi sansadiya prajatantra paanchvi sansadiya sarvochchata chathi vidhi ka shasan britain me vidhi ka shasan hota hai saath me lachilapan aatthvi ekatmak samvidhan navi nagarik adhikaar dashama ekatmak rajya v daliyaa raajneeti vyavastha aur barwa samvidhan ke purak adhiniyam ki vyavastha dhanyavad नमस्कार आपका बुकलेट पर स्वागत है आपका प्रश्न है बेटे की व्यवस्था की विशेषताओं की विवेचना क 17 675This Question Also Answers: Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App! आधुनिक समय में दल-व्यवस्थाओं का राजनीतिक समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां दल नहीं है। विश्व के सभी देशों में किसी न किसी रूप में दलीय प्रणाली अवश्य विद्यमान है। राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप व संरचना तथा राजनीतिक दलों की प्रकृति, उद्देश्यों, संरचना आदि के आधार पर विश्व में अनेक दलीय-प्रणालियां विद्यमान हैं। अनेक विद्वानों ने राजनीतिक दलों की विशेषताओं, दलों के पारस्परिक सम्बन्ध, दल का इतिहास, राजनीतिक व्यवस्था की संरचना, सामाजिक संरचना व संस्कृति, दलों की विचारधारा, दलों की संख्या, दलों के संगठन आदि के आधार पर दलीय-व्यवस्थाओं का अनेक भागों में वर्गीकरण किया है। एलेन बाल ने दलीय-व्यवस्था को (i) अस्पष्ट द्विदलीय पद्वतियां (ii) सुस्पष्ट द्विदलीय पद्धतियां (iii) कार्यवाहक बहुदलीय पद्धतियां (iv) अस्थिर बहुदलीय पद्धतियां (v) प्रभावी दल पद्धतियां (vi) एकदलीय पद्धतियां तथा (vii) सर्वाधिकारी एकदलीय पद्धतियां, सात भागों में बांटा है। ऑमण्ड ने दलीय व्यवस्था को सत्तावादी, गैर-सत्तावादी, प्रतिस्पर्धात्मक दो दलीय तथा प्रतिस्पर्धात्मक बहुदलीय में बांटा है। लॉ पालोम्बरा तथा वीनर ने दल प्रणालियों को प्रतियोगी तथा अप्रतियोगी दल प्रणालियां दो भागों में बांटा है। जॅम्प जप ने दलीय व्यवस्था को (i) अस्पष्ट द्वि-दलीय (ii) स्पष्ट द्वि-दलीय (iii) बहुदलीय (iv) वर्चस्ववादी (v) उदार एक-दलीय (vi) संकीण एक-दलीय (vii) सर्वाधिकारवादी व्यवस्थाओं में बांटा है। आज अनेक विद्वानों ने दलों की संख्या के आधार पर भी दलीय-व्यवस्थाओं को तीन भागों में बांटकर उनके उपवर्गों के अन्तर्गत सभी दल-व्यवस्थाओं को समेट दिया है। आज भी मोरिस डूवेरजर के त्रिस्तरीय वर्गीकरण को ही प्रमुख स्थान प्राप्त है। दलीय व्यवस्था का वर्गीकरणइस त्रिस्तरीय वर्गीकरण में दलों की संख्या के आधार पर दलीय-व्यवस्थाओं को निम्नलिकखत तीन भागों में बांटा गया है :-
एकदलीय प्रणालीएकदलीय प्रणाली ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें शासन का सूत्र एक ही राजनीतिक दल के हाथों में रहे। कर्टिस ने इसको परिभाषित करते हुए कहा है-”एकदलीय पद्धति की यह विशेषता है कि इसमें सत्तारूढ़ दल का या तो सभी अन्य गुटों पर प्रभुत्व होता है जो सभी राजनीतिक विरोधों को अपने में समा लेने का प्रयास करता है, या वह बहुत ही अतिवादी स्थिति में उन सभी विरोधी गुटों का दमन कर देता है जिन्हें प्रति क्रांतिकारी या शासन के प्रति तोड़फोड़ करने वाला दल समझा जाता है, क्योंकि उनमें राष्ट्रीय इच्छा को विभाजित करने वाली शक्तियां होती हैं।” इस व्यवस्था के अन्तर्गत केवल एक ही दल को कार्य करने की अनुमति प्राप्त होती है और सरकार पर उसी का वर्चस्व लम्बे समय तक भी बना रह सकता है।यह व्यवस्था सर्वाधिकारवादी और लोकतन्त्रीय दो प्रकार की होती है। भारत में 1967 तक लोकतन्त्रीय व्यवस्था का प्रचलन रहा। अन्य दलों के होते हुए भी वहां पर केन्द्र सरकार स्वतन्त्रता के बाद 1967 तक कांगे्रस की ही रहीं। इस प्रकार की दल व्यवस्थाएं भारत, जापान, मैक्सिको, कीनिया, ब्राजील आदि देशों में है। इसके विपरीत सर्वाधिकारवादी एक-दलीय व्यवस्थाएं इटली, जर्मनी, पुर्तगाल, चीन, सोवियत संघ, पोलैण्ड, हंगरी, वियतनाम, उत्तरी कोरिया, क्यूबा, पूर्वी जर्मनी, बुलगारिया, चैकोस्लोवाकिया, अलबानिया, स्पेन आदि देशों में रही है और कुछ में तो अब भी विद्यमान है। एकदलीय प्रणाली के गुण
एकदलीय प्रणाली के दोष
द्वि-दलीय प्रणालीद्वि-दलीय राजनीतिक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें शासन का सूत्र दो दलों के हाथ में रहता है। ये दोनों राजनीतिक दल इतने सशक्त होते हैं कि किसी तीसरे दल को सत्ता में नहीं आने देते। इन दो दलों के अतिरिक्त अन्य दलों की राजनीतिक व्यवस्था में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती। ब्रिटेन तथा अमेरिका द्वि-दलीय व्यवस्था के सर्वोंत्तम उदाहरण हैं। ब्रिटेन में लम्बे समय से कंजर्वेटिव पार्टी तथा लेबर पार्टी ही कार्यरत् है। इसी तरह अमेरिका में लम्बे समय से दो ही दलों - डैमोक्रेटिक तथा रिपब्लिकन का वर्चस्व है।इंग्लैण्ड में साम्यवादी दल तथा उदारवादी दल भी हैं, लेकिन उनका कोई महत्व नहीं है, अमेरिका और ब्रिटेन में इन दो दलों को छोड़कर कभी किसी अन्य दल को सरकार बनने का अवसर नहीं मिला है। इनमें से एक दल तो सत्तारूढ़ रहता है, जबकि दूसरा दल अल्पमत में होने के कारण विरोधी दल की भूमिका अदा करता है। राजनीतिक शक्ति का द्वि-दलीय विभाजन होने के कारण ही इसे द्वि-दलीय प्रणाली कहा जाता है। बेल्जियम, आयरलैण्ड तथा लकजमबर्ग, पश्चिमी जर्मनी, कनाडा आदि देशों में भी द्वि-दलीय व्यवस्थाएं ही प्रचलित हैं। द्वि-दलीय प्रणाली के गुण
द्वि-दलीय प्रणाली के दोष
बहुदलीय प्रणालीजिस देश में दो से अधिक राजनीतिक दल ऐसी स्थिति में हों कि चुनाव में उनमें से किसी को स्पष्ट बहुमत न मिल पाए, वहां बहुदलीय प्रणाली मिलती है। इससे सरकार एक दल की भी बन सकती है और कई दलों को मिलाकर सांझा सरकार भी बन सकती है। सांझा सरकार बनने का प्रमुख कारण यह होता है कि इसमें किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता, क्योंकि वोट विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व बल करने वाली पर्टियों में वितरित हो जाते हैं। ऐसी दल प्रणाली विश्व के अनेक देशों में पाई जाती हैं। भारत इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। यह दल प्रणाली-स्थायी और अस्थायी दो तरह की होती है। स्थायी बहुदलीय प्रणाली वह है जिसमें अनेक दल सत्ता के लिए संघर्ष तो करते हैं, लेकिन उनका ध्येय सरकार चलाने के साथ-साथ यह भी रहता है कि राजनीतिक व्यवस्था में अस्थिरता न आए। स्विट्जरलैंण्ड में ऐसी ही प्रणाली है। वहां पर सोशल डैमोक्रेटस, रेडिकल डैमोक्रेटस, लिब्रल डैमोक्रेट ओर साम्यवादी दल राजनीतिक विघटन की स्थिति पैदा किए बिना ही सत्ता प्राप्ति का संघर्ष करते हैं। इसके विपरीत अस्थायी बहुदलीय प्रणाली में राजनीतिक अस्थिरता की राजनीतिक दलों को कोई चिन्ता नहीं होती है, उनका लक्ष्य तो सत्ता प्राप्त करना है। भारत तथा फ्रांस में ऐसी ही प्रणालियां हैं।बहुदलीय प्रणाली के गुण
बहुदलीय प्रणाली के दोष
भारत में 1967 तक ही बहुदलीय प्रणाली अधिक सफल रही है। आज कम ही ऐसे देश हैं जहां बहुदलीय प्रणाली के अन्तर्गत स्थिर सरकारों का निर्माण हुआ है। यदि बहुदलीय प्रणाली के दोषों में से कुछ का भी निवारण कर दिया जाए तो यह प्रणाली स्थिर सरकारों के मार्ग पर चल सकती है। भारतीय संसद ने हाल ही में दल-बदल विरोधी कानून पास करके निर्धारित अवधि तक किसी भी विधायक को विधानमण्डल में दूसरे दल का प्रतिनिधित्व करने पर रोक लगा दी है। इससे सांझा सरकार का आधार मजबूत होने के प्रबल आसार हैं और बहुदलीय प्रणाली की सफलता के भी। लेकिन वर्तमान में तो यह अस्थिर सरकारों की जनक ही है। दल-प्रणाली का मूल्यांकनदलीय-व्यवस्था का उपरोक्त विवरण इस बात की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करता है कि प्रजातन्त्रीय देशों में तो दल-प्रणाली का स्वरूप लोकतन्त्रीय है, लेकिन सर्वाधिकारवादी देशों में राजनीतिक दल अलोकतांत्रिक तरीके से काम करते प्रतीत होते हैं। कुछ विद्वानों ने तो लोकतन्त्र सहित सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं के संचालन के लिए राजनीतिक दलों के महत्व पर विचार किया है। मुनरो ने तो दलीय शासन को ही लोकतन्त्रीय शासन कहा है। माक्र्सवादियों की दृष्टि में दलीय प्रजातन्त्र विकृत प्रजातन्त्र है। सर्वोदयी विचारधारा दल विहीन प्रजातन्त्र की बात करती है। इस तरह दल-प्रणाली प्रशंसा उसके अन्तर्निहित गुणों के आधार पर की जाती है और आलोचना उसके दोषों के आधार पर।दल प्रणाली के गुण
दल प्रणाली के दोष
अमेरिका तथा ब्रिटेन मेंं दल-व्यवस्था का आधार काफी मजबूत है, क्योंकि वहां की जनता और सरकार इसको सफल बनाने के लिए वचनबद्ध हैं। भारत में दलीय-प्रणाली ने समाज को जो हानि पहुंचायी है, उसको देखकर जनता को राजनीतिक दलों के लिए देश-हित एक तुच्छ वस्तु है। आज दलीय-व्यवस्था की दोषपूर्ण व्यवस्था पर देश-हित में प्रतिबन्ध लगाना अपरिहार्य है। दल-विहीन प्रजातन्त्र की धारणा न तो सम्भव है और न ही उचित। दल समाज का अभिन्न अंग है, इसलिए इसके दोषों को दूर करके इसे समाज में बनाए रखना ही उचित है। परंपरागत रूप से ब्रिटेन की दलीय व्यवस्था क्या थी?राजनैतिक दल व चुनाव
वर्त्तमान ब्रिटेन, एक बहुदलीय लोकतंत्र है, और १९२० के दशक से, यहाँ की दो वृहदतम् राजनैतिक दल हैं कंजर्वेटिव पार्टी और लेबर पार्टी। ब्रिटिश राजनीति में, लेबर पार्टी के उदय से पहले लिबरल पार्टी एक बड़ी राजनीतिक दल हुआ करती थी।
दलीय व्यवस्था क्या है उदाहरण सहित बताइए?साँचा:Politics sidebar द्विदलीय प्रणाली एक दल प्रणाली हैं, जहाँ दो प्रमुख राजनीतिक दल सरकार के भीतर, राजनीति को प्रभावित करते हैं। दो दलों में से आम तौर पर एक के पास विधायिका में बहुमत होता हैं और प्रायः बहुमत या शासक दल कहा जाता हैं, जबकि दूसरा अल्पमत या विपक्ष दल कहा जाता हैं।
ब्रिटेन में कौनसी शासन व्यवस्था है?ब्रिटेन में संसदीय शासन व्यवस्था है और इस कारण प्रत्येक सार्वजनिक कार्य के लिए मंत्रिगण संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
भारत में कौन सी दलीय प्रणाली पाई जाती है?समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। दलीय संगठन में विचारधारा भी प्रमुख भूमिका निभाती है। समाजवादी, लेनिनवादी और माओवादी विचारधाराओं पर आधारित अनेक दलों का निर्माण भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषता रही।
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