पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं इस तंत्र के विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिए? - paaristhitik tantr se aap kya samajhate hain is tantr ke vibhinn ghatakon ka varnan keejie?

Ecosystem: Meaning and Components in Hindi. Read this article in Hindi to learn about:- 1. पारिस्थितिक-तंत्र का अर्थ (Meaning of Ecosystem) 2. पारिस्थितिक-तंत्र के घटक (Components of Ecosystem) 3. पारिस्थितिक-तंत्र का कार्यात्मक स्वरूप (Functional Aspects of an Ecosystem) and Other Details.

Contents:

  1. पारिस्थितिक-तंत्र का अर्थ (Meaning of Ecosystem)
  2. पारिस्थितिक-तंत्र के घटक (Components of Ecosystem)
  3. पारिस्थितिक-तंत्र का कार्यात्मक स्वरूप (Functional Aspects of an Ecosystem)
  4. पारिस्थितिक-तंत्र का ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow in the Ecosystem)
  5. पारिस्थितिक-तंत्र में चक्रीकरण (Cycling in Ecosystem)


1. पारिस्थितिक-तंत्र का अर्थ (Meaning of Ecosystem):

संपूर्ण पृथ्वी अर्थात् स्थल, जल एवं वायु मण्डल और इस पर निवास करने वाले जीव एक विशिष्ट चक्र अथवा प्रणाली या तंत्र में परिचालित होते रहते हैं और प्रकृति या पर्यावरण के साथ अपूर्व सामंजस्य स्थापित करके न केवल अपने को अस्तित्व में रखते हैं अपितु पर्यावरण को भी स्वचालित करते हैं ।

इस प्रकार रचना एवं कार्य की दृष्टि से जीव समुदाय एवं वातावरण एक तंत्र के रूप में कार्य करते हैं, इसी को ‘इकोसिस्टम’ अथवा पारिस्थितिक-तंत्र के नाम से संबोधित किया जाता है । प्रकृति स्वयं एक विस्तृत एवं विशाल पारिस्थितिक-तंत्र है, जिसे ‘जीव एण्डल’ के नाम से पुकारा जाता है ।

संपूर्ण जीव समुदाय एवं पर्यावरण के इस अंतर्संबंध को ‘इकोसिस्टम’ का नाम सर्वप्रथम ए.जी. टेन्सले ने 1935 में दिया । उन्होंने इसे परिभाषित करते हुए लिखा- पारिस्थितिक-तंत्र वह तंत्र है जिसमें पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक कारक अंतर्संबंधित होते हैं ।

टेन्सले से पूर्व एवं उनके समकालीन अनेक विद्वानों ने इसी प्रकार जीव-पर्यावरण संबंधों को विविध नामों से संबोधित किया जैसे 1877 में कार्ल मोबिअस ने ‘Bicoenosis’, एस.ए. फोरबेस ने 1887 में ‘Microcosm’, वी.वी. डोकूचेहव ने 1846-1903 में ‘Geobiocoenosis’, 1930 में फ्रेडरिच ने ‘Holocoen’, थियनेमान ने 1939 में ‘Bio system’ आदि ।

किंतु इनमें सर्व स्वीकार शब्द ‘Ecosystem’ ही है । यह दो शब्दों से बना है अर्थात् ‘Eco’ जिसका अर्थ है पर्यावरण जो ग्रीक शब्द ‘Oikos’ का पर्याय है जिसका अर्थ है ‘एक घर’ और दूसरा ‘System’ जिसका अर्थ है व्यवस्था या अंतर्संबंध अथवा अंतर्निर्भरता से उत्पन्न एक व्यवस्था जो छोटी-बड़ी इकाइयों में विभक्त विभिन्न स्थानों में विभिन्न स्वरूप लिए विकसित पाई जाती है । इस तंत्र में जीव मण्डल में चलने वाली सभी प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं और मानव इसके एक घटक के रूप में कभी उसमें परिवर्तक या बाधक के रूप में कार्य करता है ।

पारिस्थितिक-तंत्र को स्पष्ट करते हुए मांकहॉउस और स्माल ने लिखा है- पादप एवं जीव जंतुओं या जैविक समुदाय का प्राकृतिक पर्यावरण अथवा आवास के दृष्टिकोण से अध्ययन करना । जैविक समुदाय में वनस्पति एवं जीव जंतुओं के साथ ही मानव भी सम्मिलित किया जाता है । इसी प्रकार के विचार पीटर हेगेट ने पारिस्थितिक-तंत्र को परिभाषित करते हुए लिखा है- ”पारिस्थितिक-तंत्र वह पारिस्थितिक व्यवस्था है जिसमें पादप एवं जीव-जंतु अपने पर्यावरण से पोषक चेन द्वारा संयुक्त रहते हैं ।”

तात्पर्य यह है कि पर्यावरण पारिस्थितिक-तंत्र को नियंत्रित करता है और प्रत्येक व्यवस्था में विशिष्ट वनस्पति एवं जीव-प्रजातियों का विकास होता है । पर्यावरण वनस्पति एवं जीवों के अस्तित्व का आधार होता है और इनका अस्तित्व उस व्यवस्था पर निर्भर करता है जो इन्हें पोषण प्रदान करती है ।

स्थ्रेलर ने पारिस्थितिक-तंत्र की व्याख्या करते हुए लिखा है- ”पारिस्थितिक-तंत्र उन समस्त घटकों का समूह है जो जीवों के एक समूह की क्रिया-प्रतिक्रिया में योग देते हैं ।” वे आगे लिखते हैं- ”भूगोलवेत्ताओं के लिये पारिस्थितिक-तंत्र उन भौतिक दशाओं के संगठन का भाग है जो जीवन सतह (स्तर) का निर्माण करते हैं ।”

मूलत: पारिस्थितिक-तंत्र एक विशिष्ट पर्यावरण व्यवस्था है जिसमें पर्यावरण के विभिन्न घटकों में एक संतुलन होता है जो विशिष्ट जीवन समूहों के विकास का कारक होता है । पारिस्थितिक-तंत्र के सभी पक्षों को एनसाईक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका में इस प्रकार व्यक्त किया गया है- ”पारिस्थितिक-तंत्र एक क्षेत्र विशेष की वह इकाई है जिसमें पर्यावरण से प्रतिक्रिया करते हुए समस्त जीव सम्मिलित होते हैं । इनमें ऊर्जा प्रवाह के माध्यम से पोषण उपलब्ध होता है, फलस्वरूप जैव विविधता एवं विभिन्न भौतिक चक्रों का प्रादुर्भाव होता है । यह सभी क्रम एक नियंत्रित स्वरूप में कार्यरत रहता है ।”

उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि पारिस्थितिक-तंत्र एक क्षेत्र विशेष में विकसित एक इकाई है जिसमें विभिन्न जीवों का समूह विकसित होता है इसमें विभिन्न प्रकार के पादप, वनस्पति, जल, जीव, स्थलीय जीव सम्मिलित होते हैं । ये जीव प्राथमिक उत्पादक, द्वितीय उत्पादक या उपभोक्ता एवं अपघटक के रूप में होते हैं ।

इन पर अजैविक घटकों का नियंत्रण होता है जिनमें अकार्बनिक तत्व जैसे- ऑक्सीजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, नाईट्रोजन, हाइड्रोजन, खनिज लवण, अकार्बनिक पदार्थ जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि तथा जलवायु तत्व जल, प्रकाश, तापमान आदि सम्मिलित होते हैं ।

संपूर्ण भौतिक तत्वों से मिलकर ही पर्यावरण बनता है । इन सभी घटकों एवं तत्वों में ऊर्जा प्रवाह सदैव होता रहता है जो पारिस्थितिक-तंत्र को सुचारु रूप से गतिमय रहने के लिए आवश्यक है । पारिस्थितिक-तंत्र में पदार्थों का चक्रीकरण सदैव होता रहता है, इससे पोषण तंत्र अनवरत रहता है जैसे कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र, हाइड्रोजन चक्र, ऑक्सीजन चक्र, फास्फोरस चक्र आदि ।

स्पष्ट है कि पारिस्थितिक-तंत्र एक अनवरत प्रक्रिया है किंतु यदि इसके किसी एक घटक में परिवर्तन आता है अथवा ऊर्जा प्रवाह में बाधा होती है या चक्रीकरण में व्यवधान आता है तो पारिस्थितिक-तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है जो जीव अस्तित्व के लिये संकट का कारण बन जाता है ।

उपर्युक्त सभी विचारों एवं अन्य विद्वानों द्वारा इस संबंध में की गई टिप्पणियों का सार यह है कि पारिस्थितिक-तंत्र एक क्षेत्र विशेष के पर्यावरण एवं उसमें उद्भूत जीवन तंत्र के अंतर्संबंधों की उपज है । इसमें स्थान एवं समय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो प्रमुख भौगोलिक उपादान हैं । वास्तव में पारिस्थितिक-तंत्र क्षेत्रीय एवं वृहत भौगोलिक अंतर्संबंधों का परिणाम है ।


2. पारिस्थितिक-तंत्र के घटक

(Components of Ecosystem):

प्रत्येक पारिस्थितिक-तंत्र की संरचना दो प्रकार के घटकों से होती है:

(अ) जैविक या जीवीय घटक,

(ब) अजैविक या अजीवीय घटक ।

(अ) जैविक या जीवीय घटक:

जैविक या जीवीय घटकों को दो भागों में विभक्त किया जाता है:

(i) स्वपोषित घटक:

वे सभी जीव इसे बनाते हैं जो साधारण अकार्बनिक पदार्थों को प्राप्त कर जटिल पदार्थों का संश्लेषण कर लेते हैं अर्थात् अपने पोषण के लिये स्वयं भोजन का निर्माण अकार्बनिक पदार्थों से करते हैं । ये सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा अकार्बनिक पदार्थों, जल और कार्बन-डाई-ऑक्साइड को प्रयोग में लाकर भोजन बनाते हैं जिनका उदाहरण हरे पौधे हैं । ये घटक उत्पादक कहलाते हैं ।

(ii) परपोषित अंश:

ये स्वपोषित अंश द्वारा पैदा किया हुआ भोजन दूसरे जीव द्वारा प्रयोग में लिया जाता है । ये जीव उपभोक्ता या अपघटनकर्त्ता कहलाते हैं । कार्यात्मक दृष्टिकोण से जीवीय घटकों को क्रमश: उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक श्रेणियों में विभक्त किया जाता है ।

a. उत्पादक:

इसमें जो स्वयं अपना भोजन बनाते हैं, जैसे हरे पौधे वे प्राथमिक उत्पादक होते हैं और इन पर निर्भर जीव-जंतु एवं मनुष्य गौण उत्पादक होते हैं क्योंकि व पौधों से भोजन लेकर उनसे प्रोटीन, वसा आदि का निर्माण करते हैं ।

b. उपभोक्ता:

ये तीन प्रकार के होते हैं:

(i) प्राथमिक (Primary)- जो पेड़ पौधों की हरी पत्तियाँ भोजन के रूप में काम लेते हैं, जैसे- गाय, बकरी, मनुष्य आदि । इन्हें शाकाहारी कहते हैं ।

(ii) गौण या द्वितीय (Secondary)- जो शाकाहारी जंतुओं या प्राथमिक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं, जैसे- शेर, चीता, मेंढक, मनुष्य आदि । इन्हें मांसाहारी कहते हैं ।

(iii) तृतीय (Tertiary)- इस श्रेणी में वे आते हैं जो मांसाहारी को खा जाते हैं, जैसे- साँप मेढ़क को खा जाता है, मोर साँप को खा जाता है ।

c. अपघटक:

इसमें मुख्य रूप से जीवाणु तथा कवकों का समावेश होता है जो मरे हुए उपभोक्ताओं को साधारण भौतिक तत्वों में विघटित कर देते हैं तथा ये फिर से वायु मण्डल में मिल जाते हैं ।

(ब) अजैविक या अजीवीय घटक:

इनको तीन भागों में बाँटा जाता है:

(i) जलवायु तत्व- जैसे सूर्य का प्रकाश, तापक्रम, वर्षा आदि ।

(ii) कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter)- जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि ।

(iii) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Matter)- जैसे कैल्शियम, कार्बन, हाइड्रोजन, सल्फर, नाइट्रोजन आदि ।


3. पारिस्थितिक-तंत्र का कार्यात्मक स्वरूप (

Functional Aspects of an Ecosystem):

पारिस्थितिक-तंत्र सदैव क्रियाशील रहता है, उसी को इसके कार्यात्मक स्वरूप की संज्ञा दी जाती है । कार्यात्मक स्वरूप के अंतर्गत ऊर्जा प्रवाह, पोषकता का प्रवाह एवं जैविक तथा पर्यावरणीय नियमन सम्मिलित होता है, जो सामूहिक रूप में प्रत्येक तंत्र को परिचालित करता है ।

जैव-भू-रासायनिक चक्र में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य होता है जो जलवायु व्यवस्था के अनुरूप ऊर्जा प्रदान करता है । उत्पादक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन द्वारा शाकाहारी जीवों को भोजन प्रदान करते हैं जिन पर मांसाहारी निर्भर करते हैं ।

इन्हीं के अपघटन के फ�

पारिस्थितिक तंत्र क्या है इसके प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए?

उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि पारिस्थितिक-तंत्र एक क्षेत्र विशेष में विकसित एक इकाई है जिसमें विभिन्न जीवों का समूह विकसित होता है इसमें विभिन्न प्रकार के पादप, वनस्पति, जल, जीव, स्थलीय जीव सम्मिलित होते हैं । ये जीव प्राथमिक उत्पादक, द्वितीय उत्पादक या उपभोक्ता एवं अपघटक के रूप में होते हैं ।

पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं इसके विभिन्न घटकों को उदाहरण सहित?

एक पारिस्थितिकी तंत्र जिसमें एक दिए गए क्षेत्र में रहने वाली सभी वस्तुएं (पौधे, जानवर और जीव) शामिल रहती हैं तथा एक दूसरे के साथ मिलकर निर्जीव वातावरण (मौसम, पृथ्वी, सूर्य, मिट्टी, जलवायु, वातावरण) को प्रभावित करती हैं

पारिस्थितिक तंत्र में कितने घटक होते हैं?

Solution : सभी पारिस्थितिक तंत्र में दो घटक होते हैं(1) जैविक घटक, (2) अजैविक घटक। (1) जैविक घटक-इसमें पेड़-पौधे तथा जन्तु होते हैं

पारिस्थितिकी तंत्र के अजैविक घटक क्या है?

7.3 पारिस्थितिक तंत्र के घटक सभी पारिस्थितिक तंत्र में जैविक और अजैविक दोनों घटक होते हैं (चित्र 7.1 ) । के लिये सहयोग करते हैं । अजैविक घटकों में मुख्य रूप से अकार्बनिक, कार्बनिक पदार्थ और जलवायु कारक शामिल हैं।