पुरुष की तेरहवीं कितने दिन की होती है? - purush kee terahaveen kitane din kee hotee hai?

Publish Date: Sat, 10 Sep 2016 10:06 PM (IST)Updated Date: Sat, 10 Sep 2016 10:06 PM (IST)

प्रीति शर्मा, आगरा: 13 दिन की तेरहवीं के पीछे धार्मिक मान्यताएं जो भी चली आ रही हों, इसका वैज्ञानिक

प्रीति शर्मा, आगरा: 13 दिन की तेरहवीं के पीछे धार्मिक मान्यताएं जो भी चली आ रही हों, इसका वैज्ञानिक कारण भी सामने आया है। 13 दिन से अधिक समय तक अगर कोई व्यक्ति उदास रहता है, तो उसे अवसाद घेर लेता है। व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए 13 दिन के भीतर शोक से मुक्त होना जरूरी है। यह निष्कर्ष मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में हुए अध्ययन से निकला है।

संस्थान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के इंटरनेशनल क्लासीफिकेशन ऑफ डिजीज तथा अमेरिकन साइकियाट्री सोसायटी द्वारा इस पर विस्तार से अध्ययन किया गया। विभिन्न मानसिक रोगों की अवधि को लेकर किए गए इस अध्ययन में से अवसाद की अवधि को अलग कर निष्कर्ष निकालने की कोशिश की गई। अध्ययन के दौरान पता लगा कि मनुष्य के उदास रहने की अधिकतम सीमा 13 दिन होती है। इसके बाद भी अगर उदासी कम नहीं होती तो वह मानसिक तौर पर बीमार पड़ सकता। उसे उदासी और अवसाद घेर लेते हैं। यही वजह है कि मृत्यु के बाद तेरहवीं के लिए 13 दिन सुनिश्चित किए गए हैं। 13 दिन बाद दिनचर्या सामान्य हो जाती है।

दिमाग को सामंजस्य स्थापित करने में लगता है समय

अध्ययन करने वाले मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के अधीक्षक डॉ. निदेश राठौर के अनुसार दिमाग का हाइपोथैलेमस हिस्सा भावनाओं के लिए और सेरेब्रल कॉर्टेक्स व्यवहार के लिए जिम्मेदार होता है। उदास होने पर इन दोनों ही हिस्सों के न्यूरोट्रांसमीटर्स में गड़बड़ी आ जाती है। इससे दिमाग में सिरोटिनिन केमिकल का असंतुलन हो जाता है। यह केमिकल ही व्यक्ति को खुश रखने के लिए जिम्मेदार होता है। यह असंतुलन ज्यादा दिनों तक नहीं रहता। दिमाग के अन्य हिस्सों के साथ सामंजस्य स्थापित कर केमिकल संतुलित होने की कोशिश में लग जाता है।

इस प्रक्रिया में आमतौर पर 13 दिन का समय लगता है। यही वजह है कि प्रियजन की मृत्यु पर पहले दिन परिजनों को भूख-प्यास नहीं लगती, दूसरे-तीसरे दिन भोजन ग्रहण करते हैं, लेकिन नींद फिर भी कम आती है। यह ब्रेन के फंक्शन के कारण होता है। सिरोटिनिन के संतुलन के साथ इच्छाओं और भावनाओं का आवेग सामान्य होता जाता है।

तेरहवीं कितने दिन में की जाती है?

माना जाता है कि परिजनों द्वारा 13 दिनों में जो पिंडदान किया जाता है, वो एक वर्ष तक मृत आत्मा को भोजन के रूप में प्राप्त होता है. तेरहवीं के दिन कम-से-कम 13 ब्राह्मणों को भोजन कराने से आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. साथ ही उसके परिजन शोक मुक्त हो जाते हैं.

आदमी के मरने के बाद तेरहवीं क्यों की जाती है?

गुरु पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद 10 दिनों तक जो मृतक के नियमित पिंड दान किए जाते हैं उससे मृत आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है और इसी तरह 11वें और 12 वें दिन शरीर पर मांस और त्वचा का निर्माण होता है फिर 13वें दिन यानि कि तेरहवीं को जब मृतक के नाम से पिंडदान किया जाता है तब उसे इससे ही यमलोक तक यात्रा करने की ...

मृत्यु के बाद 13वें दिन के समारोह को क्या कहते हैं?

तेरहवें दिन मृत्युभोज देते हैं। इसके बाद सवा महीने का कर्म होता है, फिर बरसी मनाई जाती और मृतक को श्राद्ध में शामिल कर उसकी तिथि पर श्राद्ध मनाते हैं

तेरहवीं का मतलब क्या होता है?

तेरहवीं का हिंदी अर्थ (हिंदू धर्म) किसी के मरने की तिथि से तेरहवें दिन किया जाने वाला पिंडदान संस्कार; तेरही; त्र्योदशी; उठावनी; रस्म-पगड़ी।