सब्सक्राइब करे youtube चैनल vilfredo pareto in hindi विल्फ्रेडो परेटो (1848-1923) उसने अपने जीवन की
इस अवधि में पिता के पद चिह्नों का अनुसरण किया और वह लोकतांत्रिक, गणतंत्रीय एवं शांतिवादी विचारधारा का समर्थक हो गया। लेकिन कुछ ही समय बाद परेटो ने कुछ राजनीतिक तथा व्यक्तिगत कारणों से इन विचारों का परित्याग कर दिया और उनसे घृणा करने लगा। उसने मानवीयतावादी, प्रगतिशील, लोकतंत्रीय मूल्यों के प्रति निंदात्मक रुख अपना लिया। सन् 1876 में इटली में दक्षिण पंथी (तपहीजपेजे) शासन के पतन के बाद नए शासन द्वारा पैदा की गई असमर्थताओं और अव्यवस्था के कारण परेटो ने इस राजनीतिक प्रणाली को नापसंद करना शुरू
कर दिया। वह नई सरकार का विराधी हो गया और 1882 में सरकार में स्थान पाने के लिए उसने विरोधी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। लेकिन वह सरकार समर्थित उम्मीदवार से पराजित हो गया। राजनीति में असफल होने और इटली के प्रशासनिक मामलों को प्रभावित न कर सकने के कारण उसके अंदर बहुत कटुता पैदा हो गई। उसकी राय में इटली का नया संभ्रांत प्रशासनिक वर्ग भ्रष्ट, निंदनीय, आत्मनिष्ठ और स्वार्थ जीवी था और वह सरकारी सत्ता का दुरूपयोग अपना घर भरने के लिए करता था (कोजर 1971ः403)। उसने ‘‘अभिजात वर्ग का सिद्धांत‘‘ नामक लेख
में इस तरह के शासक वर्ग की तुलना ‘‘लोमड़ी‘‘ से की है। परेटो के पिता की मृत्यु 1882 में हो गई थी। उसने अपना व्यापार का व्यवसाय छोड़ दिया तथा शिक्षा द्वारा जीवन यापन करने की ओर प्रवृत्त हो गया। उसने 1889 में ऐलेजेंड्रीना बाकुनिन नाम की गरीब रूसी युवती से विवाह किया और वह फ्लोरेंस छोड़ कर फीसोल के एक गांव में जा बसा । यहाँ वह अर्थशास्त्र के अध्ययन में जुट गया। यहाँ आने के बाद भी वह सरकार की आलोचना करता रहा। उस समय स्वतंत्र व्यापार से संबंधित विवाद में उलझ जाने के कारण उसकी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अध्ययन में रुचि पैदा हो गई। परेटो सरकार द्वारा व्यापार के संरक्षणवाद के विरुद्ध स्वतंत्र व्यापार के पक्ष में था। इस विषय पर सार्वजनिक बहस में वह सक्रिय रूप से भाग लेता था। अर्थशास्त्र का अध्ययन करते हुए उसने यह अनुभव किया कि उस समय का अर्थशास्त्रीय चिंतन भौतिक विज्ञानों की तुलना में अवैज्ञानिक था। इस प्रकार उसने नवीन प्रकार के अर्थशास्त्र के कि अध्ययन की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया जो सुनिश्चित रूप से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित था और आर्थिक क्षेत्र में कार्य करने के लिए अधिक उपयुक्त और विश्वसनीय मार्गदर्शक का कार्य कर सकता था।
सन् 1893 तक उसे अर्थशास्त्र के क्षेत्र में पर्याप्त मान्यता मिल गई थी इसलिए उसे लोस्सेन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पीठ (Chair of economics) के लिए आमंत्रित किया गया। वह
सेवानिवृत्ति तक इस पद पर बना रहा और उसने अपने आपको सैद्धांतिक अर्थशास्त्र के अधिकारी विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित कर लिया। इस समय तक परेटो एक निदंक और उदासीन एकाकी बन कर रह गया था। वह उस काल की सभी प्रमुख प्रवृत्तियों जैसे उदारवाद आदि का विरोधी था। वह वामपंथी विचारधारा से अत्यधिक घश्णा करने लगा था। इसकी छाप उसके लेखन पर भी दिखाई देती है। डिक्टेटर मुसोलिनी के फासिस्ट शासन के दौरान उसने फिर से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। उसे इटली राज्य में सीनेटर नियुक्त किया गया और जिनेवा में निरूशस्त्रीकरण सम्मेलन के लिए उसे इटली का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि मुसोलिनी ने कुछ हद तक परेटो द्वारा सुझाए गए कार्यक्रमों को लागू किया। परेटो मुसोलिनी के शासन के भारंभिक दिनों तक ही जीवित रहा। 1923 में उसने किसी अन्य कानून के तहत अपनी पहली पत्नी से तलाक ले लिया और जेन रेगिस से विवाह कर लिया। कुछ समय बीमार रहने के बाद 19 अगस्त 1923 को पचहत्तर साल की आयु में उसकी मृत्यु हुई। सामाजिक ऐतिहासिक
पृष्टभूमि परेटो ने उस समय फ्रांस और इटली में पाए जाने वाले मानवतावादी, गणतंत्रवादी और लोकतंत्रीय मूल्यों को अस्वीकार कर दिया और जैसा कि कोजर ने लिखा है कि वह लगभग उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में प्रचलित राजनीतिक प्रणाली का विरोधी हो गया। उपयफक्त आदर्शों को अस्वीकार करने का कारण यह था कि सरकार ने उसके परामर्श और सुझावों पर ध्यान नहीं दिया। अपने निबंध में उसने लोकतंत्रीय प्रणाली की आलोचना की जिसके कारण बाद में इटली के फासिस्ट नेता मुसोलिनी ने उसे इटली की सीनेट में सदस्यता ग्रहण करने की पेशकश की लेकिन परेटो ने इसे अस्वीकार कर दिया (टिमाशेफ 1967ः 161)। संभवतः उदार, लोकतंत्रीय आदर्शों से असंतुष्ट होने के कारण परेटो को कहना पड़ा कि एक सामाजिक विश्लेषणकर्ता का कार्य ‘‘समानता‘‘, प्रगति, ‘‘स्वतंत्रता‘‘ जैसे मूल्यों और सिद्धांतों की वास्तविक प्रकृति का पर्दाफाश करना है। उसका कहना था कि मनुष्य इन खोखले शब्दों का इस्तेमाल अपने कार्यों को उचित और तर्क संगत ठहराने के लिए करता है। आइए, अब हम परेटो के मुख्य विचारों का विश्लेषण करें। मुख्य विचार अपने शोध निबंध में परेटो ने यह बात स्पष्ट कर दी थी कि वह सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन में उन्हीं पद्धतियों का अनुप्रयोग करके सामाजिक वास्तविकता का अध्ययन करना चाहता है जिनका उपयोग भौतिकी, रसायन, खगोल विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञानों के लिए किया गया है। परेटो को प्राकृतिक विज्ञानों के सिद्धांतों के आधार पर यह विश्वास था कि समाज की व्यवस्था एक संतुलन की व्यवस्था है। इस व्यवस्था के किसी भी हिस्से में गड़बड़ी होने पर सामंजस्य के लिए उसके दूसरे हिस्सों में उसके अनुरूप परिवर्तन होते हैं। भौतिक पदार्थों में विद्यमान ‘‘अणुओं‘‘ की तरह सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तियों की रुचियाँ, प्रेणाएं और भावनाएं होती हैं। उसकी दृष्टि में सामाजिक व्यवस्था एक ऐसा ढाँचा है जिसमें मानव व्यवहार को निर्धारित करने के लिए समाज के परिवृत्यों (अंतपंइसमे) के आपसी प्रभाव और बदलाव का विश्लेषण किया जा सकता है। परंतु परेटो की रुचि सभी प्रकार के परिवश्त्यों में नहीं थीं। वह केवल ऐसे परिवृत्यों का अध्ययन करना चाहता था जो युक्ति संगत नहीं थे। अपने अर्थशास्त्र के पूर्ववर्ती अध्ययन में उसे यह बात स्पष्ट हो गई थी कि अर्थशास्त्रियों द्वारा मानव क्रियाओं के युक्तिसंगत परिवृत्यों का अध्ययन मानव-व्यवहार के संपूर्ण क्षेत्र को अपनी परिधि में नहीं समेट सकता। उसके अनुसार कई ऐसे मानव व्यवहार भी हैं जो युक्तिसंगत और तर्कसंगत नहीं होते। तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रिया समाज में फिर से संतुलन स्थापित करने के सिद्धांत की वैधता इस तथ्य में है कि कोई भी समाज किसी बड़ी क्रांति या युद्ध की स्थिति से गुजरने के बाद अपने आपको फिर से व्यवस्थित कर लेता है और संतुलन स्थापित कर लेता है (टिमाशेफ 1967ः 162)। परेटो की तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रिया समाज की भीतरी ताकतों के विश्लेषण से संबंधित है। उसने इन दो प्रकार की क्रियाओं में भेद किया है। वे क्रियाएं तर्कसंगत है जिनमें किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके अनुरूप साधनों का इस्तेमाल होता हो और यह तर्कसंगत तरीके से साधन को साध्य से जोड़ती है। ये क्रियाएं कर्ता और कर्म दोनों की दृष्टि से तर्कसंगत हैं। वे सभी क्रियाएं अतर्कसंगत (इसका मतलब तर्क विरुद्ध या असंगत नहीं है) कही जाएंगी जो तर्कसंगत क्रियाओं की श्रेणी में नहीं आती। इस प्रकार अतर्कसंगत क्रिया एक अवशिष्ट श्रेणी है। अतर्कसंगत क्रियाओं का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये क्रियाओं के कर्ताओं की भीतरी ताकतों यानी उनकी भावनाओं की व्याख्या करती हैं। परेटो का कथन है कि अतर्कसंगत क्रिया मानव की मानसिक स्थितियों, भावनाओं और अवचेतन मनोभावों में पैदा होती हैं। मनोवैज्ञानिकों की तुलना में सामाजिक विश्लेषणकर्ताओं के रूप में हमारा काम इन भावनाओं आदि को ज्यादा गहराई में उतरे बिना उसे मात्र तथ्यात्मक सामग्री के रूप में प्रयोग करना चाहिए (कोजर 1971ः 389)। अवशिष्ट (residues) और
व्युत्पाद (derivatives) अवशिष्ट (मूलतः स्थिर तत्व या अचर है) और व्युत्पाद (परिवर्तनशील तत्व या चर है) की संकल्पना को समझाने के लिए आइए, हम एक उदाहरण लें । सभी समाजों में कई तरह के धर्म मिलते हैं जैसे बहुदेववाद, एकदेववाद और कुछ ऐसे धर्म हैं जो ईश्वर की धारणा में ही विश्वास नहीं करते जैसे जैन धर्म, बौद्ध धर्म । ये धर्म किसी भी प्रकार के हो सकते हैं, लेकिन इन सभी धार्मिक सिद्धांतों में कुछ अवशिष्ट तत्व हैं जो कि सदैव हर धर्म में स्थिर रहते है। इस प्रकार हमें मालूम होता है कि विभिन्न कालों में, बहुत से समाजों में धर्म का स्वरूप परिवर्तनशील था इसे हम व्युत्पाद कहते हैं जब कि सभी धर्मों में जो स्थिर समान तत्व हैं वे अवशिष्ट हैं। परेटो ने अवशिष्टों का छह वर्गों में वर्णन किया है जो पाश्चात्य इतिहास की दीर्घ अवधि के दौरान लगभग स्थिर रहे हैं। अवशिष्टों के इन छह वर्गों में से पहले दो वर्ग हमारे लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये परेटो के अभिजात्य वर्ग के सिद्धांत और अभिजात वर्ग के प्रसार से जुड़े हैं। अवशिष्टों के दो वर्ग हैं, (प) संयोजन की सहज वृत्ति, (पप) समूह स्थायित्व परेटो के अवशेषों के सिद्धांत ने उसे बहुत से सिद्धांतों और विश्वास प्रणालियों की व्याख्या में सहायता की। इसी से वह सामाजिक आंदोलन, सामाजिक परिवर्तन और इतिहास की गतिशीलता की व्याख्या करने में सफल हुआ (कोजर 1971ः 392)। समकालीन समाजशास्त्र पर परेटो के विचारों का प्रभाव दर्खाइम के तरह परेटो ने भी सामाजिक पद्धति की आवश्यकताओं पर विचार करने की जरूरत पर जोर दिया और व्यावहारिक तथा व्यक्तिवादी विचारों को मान्यता नहीं दी। दखाईम ने सामाजिक तथ्यों की वस्तुनिष्ठ प्रकृति पर बल दिया। इसके विपरीत परेटो ने मानव व्यवहार की इच्छाओं, भावनाओं और प्रवृत्तियों पर विचार करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उसकी रचनाओं में हमें मैक्स वेबर, दर्खाइम, मोस्का तथा कई अन्य विचारकों का प्रभाव दिखाई देता है। परेटो के विचारों का प्रभाव हैराल्ड लासवैल जैसे राजनीति विज्ञानियों की रचनाओं में देखा जा सकता है। अमरीका में लासवैल परेटो के प्रारंभिक अनुयायियों में से एक था। उसने परेटो के अभिजात वर्ग गठन और अभिजन-परिभ्रमण संबंधी सिद्धांतों से प्रेरणा ली थी। सी. राइट मिल्स, टी.बी. बोटोमोर, सुजान कैलर, रेमों आरों आदि अन्य समाज वैज्ञानिकों की रचनाओं में परेटो के विचारों का प्रभाव लक्षित होता है। आपने परेटो के मुख्य विचारों और समकालीन समाजशास्त्र पर उसके प्रभाव के बारे में पढ़ा। आइए, अब समाजशास्त्र के तीसरे संस्थापक थोर्टीन बेब्लेन (1857-1929) के बारे में चर्चा करें। परेटो के अनुसार समाज के कितने वर्ग हैं?इसी के आधार पर परेटो ने समाज को उच्च (अभिजात वर्ग) एवं निम्न दो वर्गों में विभाजित किया है। उच्च वर्ग अल्पमत में होता है अर्थात् उच्च वर्ग के सदस्यों की संख्या कम होती है। 2. अभिजात वर्ग में परिभ्रमण का क्रम लगातार चलता रहता है जो गुणों के विकास व गुणों के पतन के ऊपर आधारित होता है।
परेटो का पूरा नाम क्या है?सामाजिक ऐतिहासिक पृष्टभूमि
विल्फ्रेडो परेटो का पूरा नाम माविस विल्फ्रेडो फेडोरिको डुमस परेटो था।
परेटो का सिद्धांत क्या है?इटालियन अर्थशास्त्री विल्फ्रेडो पैरेटो इस फॉर्म्यूले का आविष्कार किया। पैरेटो सिद्धांत के अनुसार, अदि हम मौजूद कामों में से 20 प्रतिशत सबसे ज्यादा जरूरी काम पहले करें तो 80 फीसदी रिजल्ट प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के दौर पर किसी को कंपनी को मिलने वाला कुल रिवेन्यू का 80 फीसदी भाग 20 फीसदी ग्राहकों से आता है।
पैरेटो का जन्म कब हुआ था?15 जुलाई 1848विलफ्रेडो परेटो / जन्म तारीखnull
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