पर्यावरण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन किए बिना जीवन को समझ पाना असम्भव है। पर्यावरण की रक्षा करने में लापरवाही बरतने का अर्थ अपना विनाश करना है। हम अपने दैनिक जीवन में पर्यावरणीय संसाधनों का प्रयोग करते है। इन संसाधनों में कुछ नवीनीकरण हो सकता है और कुछ का नहीं। हमें कोयला और पेट्रोलियम जैसे गैर नवीकृत संसाधनों का प्रयोग करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए जो समाप्त हो सकते है। मानव
की सभी क्रियाओं का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। पिछली दो सदियो से जनसंख्या में हुई वृद्धि तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हुए तीव्र विकास से पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव कई गुना बढ गया है। पर्यावरण की गुणवत्ता को कम करने तथा इसके क्षरण के लिए ये दो मुख्य कारक मुख्य रूप से उत्तरदायी है। पर्यावरण क्षरण से मानव के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है। हमें शीघ्र ही यह जान लेना चाहिए कि मानव जाति के कल्याण एवं अस्तित्व के लिए पर्यावरण का संरक्षण एवं सुधार
आवश्यक है। भूमि, वायु, पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनो का प्रयोग बुद्धिमतापूर्ण ढंग से करना चाहिए ताकि वर्तमान और भावी पीढी के लिए स्वस्थ पर्यावरण को सुनिश्चित किया जा सके। भूमि, वायु, और पानी - भूमि और पानी के प्रदूषण ने पौधो, जानवरो और मानव जाति को प्रभावित किया है। अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष लगभग पाचं से सात मिलियन हेक्टयेर भूमि की हानि हो रही है। वायु और पानी के कारण मृदा अपरदन विश्व को बहुत महंगा पड रहा है। बार बार बाढ़ आने से विशेष प्रकार
की हानि होती है जैसे वनक्षेत्र का घटना, नदियों में गाद भरना, पानी निकासी का अपर्याप्त एवं त्रुटिपूर्ण होना, जान माल की हानि इत्यादि। सभी प्रकार के नाभिकीय कचरे को सागरो में डालने से परूा प्राकृतिक पर्यावरण प्रदूषित और विषाक्त हो गया है। जनसंख्या में वृद्धि - जनसंख्या में वृद्धि का अर्थ है खाने और सासं लेने वाले अधिक लोग और इससे भूमि और जंगलो पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है जिससे अंत: पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हो जाता है। हमारी बढ़ती जनसंख्या से भूमि पर बोझ पड़ता
है। जिससे उत्पादन की गुणवत्ता घटती है वनो में कमी आती है। (पारिस्थितिकी में संतुलन के लिए वन क्षेत्र बहुत आवश्यक है जिसके अभाव में वन्य जीव लुप्त हो जाएंगे)। जनसंख्या में वृद्धि केवल प्राकृतिक पर्यावरण के लिए ही समस्या नही है। अपितु यह पर्यावरण के अन्य पक्षों जैसे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पक्षो के लिए भी समस्या है। शहरीकरण - शहरीकरण भी प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है और पर्यावरण के लिए खतरा है। शहरीकरण का अर्थ है लोगो की शहर की ओर भागती भीड़। शहरीकरण
का परिणाम है- धूल, बीमारी और विनाश। बढ़ते शहरीकरण की स्थिति में सफाई, बीमारी, आवास, जल आपूर्ति और बिजली की समस्याएं निरंतर बढ़ती रहती है। दूसरी ओर ग्रामीण जीवन में बिना साचे विचार के इंर्धन की लकड़ी सग्रहित करने, अधिक चरागाहो तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनो के हृास से पर्यावरण में क्षरण हो रहा है। औद्योगिकीकरण - यातायात और संचार साधनो के विकास के साथ औद्योगिकीकरण ने न केवल पर्यावरण को प्रदूषित किया है अपितु प्राकृतिक संसाधनो में भी कमी पैदा कर दी है।
दोनो प्रकार से भारी हानि हो रही है। उष्मा प्रवाह, कार्बन डाइ ऑक्साइड, धूल कण, रेडियोधर्मी नाभिकीय कूडा कचरा और इसी प्रकार के अन्य प्रदूषको के बढ़ते स्तर से पर्यावरणीय खतरा बढ़ा है। दूसरी ओर पारम्परिक उर्जा स्रोतों की खपत से प्राकृतिक संसाधनो का हास होता है। हम भावी पीढ़ी की चिंता किए बिना विश्व निर्माण कर रहे है। पिछले दो दशकों में पर्यावरण ने नीति निमार्ताओ वैज्ञानिकों और विश्व के अनेक देशों में आम आदमी का ध्यान आकर्षित किया है। वे अकाल, सूखा,
इंर्धन की कमी, जलाने की लकड़ी और चारा, वायु और जल प्रदूषण, रासायनिको और विकिरणो की भवायह समस्या, प्राकृतिक संसाधनों, वन्य जीवन का लुप्त होना एवं वनस्पति तथा जीव जंतुओं को खतरे जैसे मुद्दों के प्रति अधिक सतर्क होते जा रहे है। लोग आज वायु, जल, मृदा और पौधों जैसे प्राकृतिक पर्यावरणीय संसाधनों की रक्षा करने की आवश्यकता के प्रति सजग है तथा यह प्राकृतिक सम्पदा है जिस पर मनुष्य निर्भर करता है। पर्यावरणीय मुद्दे महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके समाधान के बिना स्थिति बहुत भयावह होगी। यदि पर्यावरणीय समस्याओं को हल नहीं किया गया तो यह पृथ्वी भावी पीढ़ी के रहने योग्य नहीं रहेगी। आज लोगों की और इस ग्रह की आवश्यकता एकाकार हो गई है। इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भविष्य को संभव बनाने के लिए पर्यावरण की रक्षा एवं बचाव अनिवार्य है। वास्तव में मनुष्य की आवश्यकताएं बढ़ गई है और उनके अनुरूप पर्यावरण में परिवर्तन किए जा रहे है। यद्यपि प्रकृति में सहन करने की अपार क्षमता है और यह स्वयं को पुनर्जीवित कर लेती है। परंतु फिर भी इसकी एक सीमा है विशेष रूप से जब बढ़ती जनसंख्या और प्रौद्योगिकी का दबाव निरंतर बढ़ रहा है। आज अक्षय विकास तथा परिवर्तनशील पर्यावरण के सुधार एवं संरक्षण की आवश्यकता है। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा लिए गए कुछ उपायपर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा लिए गए कुछ उपाय -
पर्यावरण सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन कौन से प्रयास किये जा रहे हैं?पर्यावरण की सुरक्षा. वनरोपण के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी). कोयला आधारित केंद्रों के पर्यावरणीय निष्पादन सुधार के लिए शुरुआत. क्लीन डेवलपमेंट मैनेजमेंट (सीडीएम). आईएसओ 14001.. पर्यावरण जागरूकता के लिए हमें क्या करना चाहिए?हमें शीघ्र ही यह जान लेना चाहिए कि मानव जाति के कल्याण एवं अस्तित्व के लिए पर्यावरण का संरक्षण एवं सुधार आवश्यक है। भूमि, वायु, पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनो का प्रयोग बुद्धिमतापूर्ण ढंग से करना चाहिए ताकि वर्तमान और भावी पीढी के लिए स्वस्थ पर्यावरण को सुनिश्चित किया जा सके।
पर्यावरण संतुलन के लिए आप क्या प्रयास कर सकते हैं?वृक्षों की अंधाधुंध कटाई है जारी। और कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। अगर मानव को करना है अपना जीवन सुरक्षित, तो पहले करना होगा पर्यावरण को संरक्षित।
पर्यावरण संरक्षण के लिए कौन कौन से उपाय किए जा सकते है?प्रकृति या पर्यावरण संरक्षण के सरल उपाय | Paryavaran ko Bachane ke upay. घर की खाली जमीन, बालकनी, छत पर पौधे लगायें. ऑर्गैनिक खाद, गोबर खाद या जैविक खाद का उपयोग करें. कपड़े के बने झोले-थैले लेकर निकलें, पॉलिथीन-प्लास्टिक न लें. खिड़की से पर्दे हटायें, दिन में सूरज की रोशनी से काम चलायें. |