पर्यावरण के घटक कौन-कौन से हैं - paryaavaran ke ghatak kaun-kaun se hain

पर्यावरण के घटक-  

पर्यावरण को अजैविक,जैविक एवं  ऊर्जा संघटकों  में मुख्य तौर पर विभाजित किया जा सकता है-

भौतिक घटक या अजैविक घटक-इसके अंतर्गत सामान्यतः स्थल मंडल, वायुमंडल तथा जल मंडल को सम्मिलित करते हैं ।

जैविक घटक-इसके अंतर्गत पादप, मनुष्य समेत जंतु तथा सूक्ष्मजीव सम्मिलित होते हैं ।

ऊर्जा संघटक-सौर ऊर्जा एवं भूतापीय ऊर्जा को ऊर्जा संघटक के अंतर्गत सम्मिलित करते हैं ।

भौतिक घटक या अजैविक घटक-

भौतिक संघटक के अंतर्गत सामान्य रूप से स्थल मंडल वायु मंडल तथा जल मंडल को सम्मिलित किया जाता है । इन्हें क्रमशः मृदा, वायु तथा जल संघटक भी कहा जाता है ये तीनों भौतिक संघटक पारितंत्र के उपतंत्र होते हैं । भौतिक वातावरण प्रकाश जल मृदा जैसे कारकों से बना होता है, ये अजैविक कारक जीवन की सफलता का निर्धारण एवं उनकी बनावट, जीवन चक्र, शरीर क्रिया विज्ञान तथा व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं । जीवन के विकास तथा प्रजनन पर अजैविक कारकों का प्रभाव पड़ता है ।

वायुमंडल

वायु मंडल से आशय पृथ्वी के चारो और विस्तृत गैस की आवरण से है ।  पृथ्वी पर स्थित अन्य मंडलों की भांति वायुमंडल भी जैव व अजीव कारकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वायुमंडल की संरचना व संगठन जीवों व वनस्पति की क्रियाओं को प्रभावित करते हैं । वायुमंडल गैस,जल-वाष्प एवं धूल कणों का मिश्रण है । वायुमंडल में उपस्थित जैसे पौधों के प्रकाश संश्लेषण ग्रीन हाउस प्रभाव तथा जीव व वनस्पतियों को जीवित रहने के लिए एक आवश्यक  स्रोत हैं । वायुमंडल की संरचना के भाग क्षोभमंडल तथा समताप मंडल पर्यावरण को महत्व पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं ।

जल

जल पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एकमात्र अकार्बनिक तरल पदार्थ है जो कि संसाधन, पारिस्थितिकी या आवास के रूप में कार्य करता है ।  पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा समान रहती है जबकि यह एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है । यह प्रक्रिया ही जल चक्र कहलाती है । जल जीवन की विभिन्न प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है यह वनस्पति प्रकार तथा उसके संगठन पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।

मृदा

भूपर्पटी की सबसे ऊपरी परत को मिला कहते हैं।  जिसका निर्माण खनिज तथा आंशिक रूप से अपघटित कार्बनिक पदार्थों से होता है । शैलों के  अपने स्थान से अपक्षयन या स्थानांतरित तलछ्टों का जल या वायु के द्वारा अपरदन होने के परिणाम स्वरुप मृदा का निर्माण होता है । मृदा का निर्माण मूल  शैल, जलवायु,जीवों, काल तथा स्थलाकृतियों के बीच पारस्परिक क्रियाओं द्वारा होता है । मृदा द्वारा पौधों, फसलों, घास तथा वनों की वृद्धि होती है । जिस पर भोजन, वस्त्र, लकड़ी तथा निर्माण सामग्री के लिए मानव आश्रित होता है । मृदा का खनिज अवयव उसके मूल पदार्थों के खनिज तथा अपक्षयता के ऊपर निर्भर करता है ।

 मृदा की संरचना

मृदा की संरचना में निम्नलिखित पदार्थ भाग लेते हैं-

  •  ह्यूमस अथवा कार्बनिक पदार्थ- लगभग 5 से 10%
  •  खनिज पदार्थ- 40 से 45%
  •  मृदा जल- लगभग 25%
  •  मृदा वायु- लगभग 25%
  •  इसके अतिरिक्त मृदा जीव और मृदा अभिक्रिया भी मृदा संगठन में भाग लेते हैं ।

जैविक संघटक-

जैविक अथवा कार्बनिक संघटक का निर्माण तीन उपतंत्रों द्वारा होता है-

  1. पादप तंत्र
  2. जन्तु तंत्र
  3. सूक्ष्मजीव तंत्र

उपरोक्त तंत्रों में से पादप तंत्र सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि मात्र पौधे ही जैविक अथवा कार्बनिक पदार्थों का निर्माण कर सकते हैं। इसके अलावा मानव सहित समस्त जीव-जन्तु प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पौधों पर ही निर्भर रहते हैं। पौधे जीवमण्डल के विविध संघटकों में जैविक पदार्थों तथा पोषण तत्वों के गमन, संचरण, चक्रण एवं पुनर्चक्रण को सम्भव बनाते हैं।

पादप तंत्र

  • पौधों के सामाजिक समूह को पादप समुदाय कहते हैं तथा पौधे समुदाय की आधारभूत मौलिक इकाई होते हैं। पौंधों के विभिन्न रूपों को वनस्पति कहा जाता है। पौधों की विभिन्न जातियाँ पारिस्थितिकीय रूप से एक दूसरे से सम्बन्धित रहती हैं तथा पादप समुदाय किसी क्षेत्र के पारिस्थितिक दशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • भौतिक पर्यावरणीय कारक मृदा तथा जलवायु का पौधों की जाति, संरचना एवं वृद्धि पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। साथ ही पौधे भी अपने आवास क्षेत्र के मृदा के गुणों तथा जलवायु की दशाओं को प्रभावित एवं निर्धारित करते हैं। इससे स्पष्ट है कि पादप समुदाय अपने आवास क्षेत्र में भूमि की उत्पादकता को निर्धारित करते हैं।
  • पौधे प्राथमिक उत्पादक होते हैं। क्योंकि ये सूर्य प्रकाश का प्रयोग कर प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा अपना आहार स्वयं निर्मित कर लेते हैं। इसी कारण इन्हें स्वपोषित भी कहा जाता है।
  • ये मानव एवं समस्त जन्तुओं के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से आहार एवं ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं।

जंतु तंत्र

जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तंत्र को कार्यात्मक आधार पर दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1.  स्वपोषित संघटक
  2.  परपोषित संघटक

स्वपोषित संघटकों में हरे पौधे आते हैं तथा परपोषित संघटकों में वे जन्तु आते है जो प्राथमिक उत्पादक- हरे पौधों पर अपने आहार के लिए निर्भर रहते हैं। ये शाकाहारी होते हैं। द्वितीयक उपभोक्ता मांसाहारी एवं सर्वाहारी जन्तु मांसाहारी तथा शाकाहारी दोनों होते हैं। इन परपोषित जन्तुओं के तीन प्रमुख कार्य हैं-

  1. स्वपोषित हरे पौधों द्वारा सुलभ कराए गए जैविक पदार्थों का सेवन करना
  2. जैविक पदार्थों की विभिन्न रूपों में पुनर्व्यवस्था करना
  3. जैविक पदार्थों को वियोजन करना।

जैविक पदार्थ जन्तुओं को तीन रूपों में प्राप्त होते हैं-

  1. जीवित पौधों तथा जन्तुओ से
  2. आंशिक रूप से वियोजित पौधों तथा जन्तुओं से
  3. घोल के रूप में जैविक यौगिकों से।

जैविक पदार्थों से सुलभता के आधार पर परपोषित जंतुओं को तीन प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. मृतजीवी
  2. परजीवी
  3. प्राणिसमभोजी

मृतजीवी

ये वे जन्तु होते हैं जो मृत पौधे तथा जन्तुओं से प्राप्त जैविक या कार्बनिक यौगिकों को घोल के रूप में ग्रहण करके अपना जीवन निर्वाह करते हैं।

परजीवी

ये वे जन्तु होते हैं जो अपने जीवन निर्वाह के लिए दूसरे जीवित जीवो पर निर्भर होते है।

प्राणिसमभोजी

ये वे जन्तु होते हैं जो अपना आहार अपने मुख द्वारा ग्रहण करते हैं। ये जन्तु अवियोजित आहार के बड़े-बड़े भाग (वृक्ष की टहनियों तथा शाखाएं) तक खा जाते हैं। गाय, बैल, ऊँट, शेर, हाथी इस श्रेणी के जीव हैं।

सूक्ष्मजीव तंत्र

सूक्ष्म जीव मृत पौधों, जन्तुओं एवं जैविक पदार्थों को विभिन्न रूपों में सड़ा गला कर वियोजित करते हैं, इसलिए इन्हें वियोजक भी कहा जाता है।

ये सूक्ष्म जीव जटिल पदार्थों को आहार के रूप में ग्रहण करने के साथ उन्हें सरल बना देते हैं, ताकि हरे पौधे इन पदार्थों का पुनः उपयोग कर सकें।

सूक्ष्म जीवों में सूक्ष्म बैक्टीरिया एवं कवकों को सम्मिलित किया जाता है।

ऊर्जा संघटक

  • इसके अंतर्गत सौर प्रकाश, सौर विकिरण तथा उसके विभिन्न पक्षों को सम्मिलित किया जाता है सूर्य से प्राप्त उर्जा सौर ऊर्जा कहलाती है,जो विद्युत चुंबकीय तरंग के रूप में होती है अतः इसे विद्युत चुंबकीय विकिरण भी कहा  जाता है  सूर्य की बाह्य सतह की अत्यंत तापदीप्त गैस नीचे  से गर्म होने पर उर्जा का उत्सर्जन करती है जिन्हें फोटोन कहते हैं । पृथ्वी की सतह  पर  प्राप्त सौर उर्जा को सूर्यातप या सौर विकिरण कहते हैं । पृथ्वी की क्षैतिज सतह पर पहुचने वाले सकल सौर विकिरण को भूमंडलीय विकिरण कहते हैं ।
  •  सूर्य की यह उर्जा पृथ्वी के तापमान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो प्रथ्वी के सभी जीवों के क्रियाकलापों  एवं भौतिक पर्यावरण को भी प्रभावित करती है। उर्जा संघटक के अंतर्गत प्रकाश तथा तापमान आते हैं ।

प्रकाश

  • पृथ्वी पर अवस्थित प्रायः सभी जीवों के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य की ऊर्जा, ऊर्जा का अंतिम स्रोत है । सौर विकिरण वायुमंडल में प्रवेश करने से पहले (पृथ्वी तल से 83 किलोमीटर ऊपर) 2 कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट की दर से ऊर्जा  निहित रखता है जिसे हम सौर ऊष्मांक कहते हैं ।
  •  सौर स्पेक्ट्रम प्रकाश एवं लंबी सूक्ष्म तरंग विकिरण से परिपूर्ण होता है ।  सौर विकिरण में कॉस्मिक किरणें, एक्स किरणें तथा  पराबैंगनी किरणें पाई जाती हैं । इनका तरंगदैर्ध्य 400mm से कम होता है ।
  • प्रकाशीय स्पेक्ट्रम के दृश्य स्पेक्ट्रम का तरंग दर्द 400mm से 700 mm तक होता है यह प्रकाश संश्लेषण  सक्रिय विकिरण कहलाता है ।
  • तरंगदैर्ध्य  के आधार पर पराबैंगनी विकिरण को हम तीन प्रकार से बांट सकते हैं-
  1. अल्ट्रावॉयलेट C  (100 से 280 nm)
  2. अल्ट्रावॉयलेट B   (280 से 320 nm)
  3. अल्ट्रावॉयलेट A  (320 से 400 nm)

अल्ट्रावॉयलेट C विकिरण सबसे अधिक हानिकारक होती है तथा अल्ट्रावॉयलेट B जीवों के लिए अत्यधिक नुकसानदेह है ।

पौधों पर प्रकाश का प्रभाव

पौधों के लिए प्रकाश की तरंगदैर्ध्य,तीव्रता और अवधि बहुत महत्वपूर्ण हैं ।  अक्षांश और दिन के समय के अनुसार प्रकाश की तीव्रता परिवर्तित होती रहती है ।  ध्यान देने की बात है कि प्रकाश द्वारा पौधों में प्रकाश संश्लेषण वृद्धि तथा प्रजनन प्रभावित होते हैं। प्रकाश पुष्पन, बीज अंकुरण और पादप वृद्धि आदि क्रियाओं में मुख्य भूमिका अदा करते हैं ।  पौधों और फसलों में पुष्पन और फलन जैसी क्रियाएं प्रकाश की अवधि द्वारा नियंत्रित होती है। बहुत से प्राणियों में प्रवाशिता, शीत निष्क्रियता तथा प्रजनन व्यवहार को निर्धारित करने में प्रकाश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।

जलीय तंत्र पर प्रकाश का प्रभाव

जलीय तंत्र में अधिकांश जैविक क्रियाएं प्रकाश की उपलब्धता द्वारा नियंत्रित होती हैं ।  गहरे पानी जैसे समुद्र और झील तंत्र में पौधे के लिए प्रकाश सदैव एक सीमित कारक होता है । जलीय तंत्र में प्रकाश की उपस्थिति से उत्पादक तथा उपभोक्ता की उपस्थिति निर्धारित होती है । उदाहरण के लिए पादप प्लवक जल की प्रकाशित सतह पर रहते हैं । जबकि जीव झील के तट पर रहते हैं प्रकाश की भेदता के अनुसार झील को तीन भागों में बांटा गया है-

 वेलांचल क्षेत्र-झील के किनारे पर छिछला जल होता है जहां पर अधिकतर जड़युक्त वनस्पति उगती है । इसमें प्रकाश छिछले पानी को  भेदते हुए जाता है ।

सरोजाबी क्षेत्र-वेलांचल के आगे का खुला क्षेत्र सरोजाबी क्षेत्र कहलाता है जहां पादप प्लवक प्रचुरता से वृद्धि करते हैं । जल की स्वच्छता के आधार पर इस क्षेत्र में प्रकाश 20 से 40 मीटर तक की गहराई में पहुंच सकता है ।

गहरा क्षेत्र-वह अन्धकार क्षेत्र जहां प्रकाश की पहुंच नहीं होती है उसे गहरा क्षेत्र कहते हैं । झीलों व तालाबों की तलीय मिटटी नितलस्थ क्षेत्र बनाती है जो कि नितलस्थ सजीवों जैसे घोंघा,स्ल्गों और सूक्ष्मजीवों का आवास स्थल होताहै ।

तापमान-

तापमान किसी पदार्थ के गर्म या ठंडा होने का परिमाण होता है । धरातलीय गुण भी तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं। हिमाच्छादित क्षेत्रों द्वारा सौर विकिरण को अधिक परावर्तित किए जाने के कारण इस क्षेत्र में तापमान कम होता है। जिसका प्रभाव यहां की वनस्पति एवं जीव जंतुओं पर देखने को मिलता है ।जबकि रेतीले क्षेत्र द्वारा सौर  विकिरण का अधिक अवशोषण के कारण तापमान अधिक होता है इसी प्रकार विभिन्न  ताप कटिबन्धों में ताप की विषमता जीव तथा वनस्पतियों की प्रकृति को प्रभावित करती है।

         पृथ्वी की सतह पर ऊर्ध्वाधर तापमान प्रवणता, ताप ह्रास  दर कहलाती है ,जो कि औसतन प्रति हजार मीटर की ऊंचाई पर 6.5 डिग्री सेंटीग्रेड है अर्थात धरातल से ऊंचाई पर जाने से तापमान में कमी आती है । जलवायु  स्थिति, पौधों की वृद्धि अनुक्रिया तथा जीवों के क्रियाकलापों पर तापमान का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है । तापमान पौधों के लिए उद्दीपन का कार्य कर उनकी वृद्धि को निर्धारित करता है ।

पर्यावरण का स्थानिक तथा समय  मापक्रम

  • अधिकतर जीव अपने पर्यावरण के स्थानिक तथा समय मापक्रम  के अनुरूप पारस्परिक क्रिया करते हैं ।उदाहरण के लिए मृदा में स्थित एक जीवाणु एक घन सेंटीमीटर क्षेत्र से भी कम भाग में वायु तथा जल से पारस्परिक क्रिया करता है । दूसरी तरफ एक वृक्ष एक बड़े स्थानिक स्तर पर वायु, जल तथा मृदा के साथ पारस्परिक क्रिया करता है ।
  • जलवायु में परिवर्तन, मृदा प्रकार तथा स्थलाकृति में अंतर के कारण विभिन्न स्थानों का पर्यावरण भिन्न-भिन्न होता है। जीवों के क्रियाकलापों द्वारा पदार्थों तथा ऊर्जा के आदान-प्रदान से जल मंडल निचला वायुमंडल तथा स्थल मंडल की ऊपरी सतह प्रभावित होती है । जीवों को बाह्य वातावरण के साथ एक समय सीमा तक जो कि कुछ मिनटों से दिनों, ऋतुओं या भूवैज्ञानिक समय मापन के लंबे अंतराल तक हो सकता है, जूझना पड़ता है ।स्थानिक तथा पर्यावरण के समय मापक्रम को जलवायु महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है । इसके अलावा आवास एवं निकेत भी जीवों व पर्यावरण की अंतः क्रिया को प्रभावित करते हैं ।

जलवायु

  • जलवायु एक विस्तृत एवं व्यापक शब्द है जिससे किसी प्रदेश के दीर्घकालीन मौसम का आभास होता है। इस शब्द की व्युत्पत्ति जल एवं वायु के पारस्परिक सम्मिलन से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ वायुमण्डल के जल एवं वायु प्रारूप से है। यह शब्द वायुमण्डल के संघटन का द्योतक है।
  • एक अन्य परिभाषा के अनुसार एक लम्बी कालावधि तक पृथ्वी एवं वायुमण्डल मेें ऊर्जा एवं पदार्थ के विनिमय की क्रियाओं का प्रतिफल जलवायु है। अतः जलवायु न केवल सांख्यिकीय औसत से बढ़कर है अपितु इसके अन्तर्गत ऊष्मा, आर्द्रता तथा पवन-संचलन जैसी वायुमण्डलीय दशाओं का योग सम्मिलित है।

आवास एवं निकेत

  • जहां जीव निवास करते हैं वह स्थान आवास कहलाता है यह भौतिक लक्षणों से युक्त ऐसा स्थान होता है जो संपूर्ण जैविक समुदाय द्वारा अध्यासित  रहता है । उदाहरण के लिए आवास में कई तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं आवास विशेष की पर्यावरणीय स्थिति वहां रहने वाले पौधे तथा प्राणियों को प्रभावित करते हुए कुछ विशिष्ट लक्षण दर्शाती हैं।
  •  एक आवास में कई निकेत पाए जा सकते हैं  किसी प्रजाति का  पारिस्थितिक तंत्र में क्या स्थान है यह  निकेत के द्वारा हमें पता चलता है। एक प्रजाति को जीवित रहने के लिए जिन भौतिक जैविक रासायनिक कारकों की आवश्यकता होती है उन्ही को सम्मिलित रूप से निकेत की संज्ञा दी जाती है। इसीलिए प्रत्येक  जाति का एक विशिष्ट निकेत होता है एवं कोई भी दो जातियां एक  निकेत में नहीं रह सकती।

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पर्यावरण के प्रमुख घटक कौन कौन से है?

प्राकृतिक जिसमें मानव हस्तक्षेप न के बराबर होता है पर्यावरण जो प्राकृतिक रूप से निर्मित हैं। जैसे- नदी मिट्टी वायु, जल, पेड़-पौधे, जन्तु आदि । कृत्रिम पर्यावरण कृत्रिम / मानव निर्मित पर्यावरण है। सभी जैविकीय व अजैविक घटक सम्मिलित होते हैं ।

पर्यावरण के तीन घटक कौन से हैं?

Solution : ( i ) जैविक या जीवित <br> ( ii ) अजैविक या अजीवित <br> ( iii ) ऊर्जा घटक

पर्यावरण कितने घटक?

हमारे पर्यावरण के पांच घटक हैं: वायुमंडल, स्थलमंडल, जलमंडल, जीवमंडल और सौर ऊर्जा।

पर्यावरण के जैविक घटक कौन कौन से हैं?

जैविक घटक: इसमें उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक शामिल हैं। सभी जीवित चीजों का पर्यावरण में अन्य जीवों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। उदाहरण: पौधे, जानवर, मनुष्य, सूक्ष्मजीव आदि।