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पेशाबकी थैली के बिना इंसानी जीवन जीने की कल्पना मुश्किल है। पर डॉ. पीबी सिंह ऐसे डॉक्टर हैं जो अब तक 350 से अधिक लोगों के पेशाब की थैली शरीर से काट कर निकाल चुके हैं। उन्होंने यह काम लोगों को जीवन जीने देने के लिए किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन सभी की पेशाब की थैली में कैंसर था। यही नहीं डॉ. सिंह ने शरीर के दूसरे अंगों की मदद से ऑपरेशन कर सभी में दूसरी पेशाब की थैली लगाई है। पुरुषों की पेशाब की थैली में कैंसर चौथे नंबर का सबसे खतरनाक बीमारी है। इसलिए इसको काट कर निकाला जाता है। वर्ष 1990 में डॉ. सिंह ने प्रयोग के तौर पर प्लास्टिक की ट्यूब से ब्लैडर यानी पेशाब की थैली बनाने की कोशिश की। तब वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में कार्यरत थे, उनके सभी साथियों ने कहा कि यह प्रयोग गलत है। पर वह प्लास्टिक की ट्यूब पर प्रेक्टिस करते रहे आखिर में एक दिन उन्होंने एक सफल ऑपरेशन कर दिया। वर्ष 1990 में ऑपरेशन के दौरान करीब 9 घंटे का समय लगा और खर्चा पांच लाख रुपए का आया। डॉ. सिंह ने बताया कि तब इस प्रकार का ऑपरेशन केवल अमेरिका में संभव था। देश में पहला ऑपरेशन उन्होंने ही किया। तब से अब तक सिंह 350 से अधिक सफल ऑपरेशन कर चुके हैं। डॉॅ. सिंह ने दो दिन पहले मथुरा के नियति अस्पताल में आंत के टुकड़े से नया यूरिन ब्लैडर (पेशाब की थैली) तैयार कर 65 वर्षीय मरीज के लगाया है। यूपी के ही कासगंज निवासी 65 वर्षीय चरन सिंह पेशाब के रास्ते खून आने की बीमारी से पीड़ित जांच में पता चला था कि यह कैंसर था। आमतौर पर पेशाब की थैली निकालने के बाद पेट से रास्ता बनाया जाता है जिसमें मरीज की आजीवन पेट में थैली लटकाए रखना पड़ती है लेकिन डॉक्टरों ने छोटी आंत के माध्यम से नई पेशाब की थैली बनाकर लगा दी है। इसमें डॉ. हर्ष गुप्ता टीम ने उनका सफल ऑपरेशन कर पुराना यूरिन ब्लैडर निकाल दिया और उसकी जगह छोटी आंत के माध्यम से नया यूरिन ब्लैडर बनाकर लगा दिया। छह इंच तक का चीरा डॉ.सिंह ने बताया कि करीब छह इंच का चीरा लगा कर कैंसर वाले ब्लेडर को पूरी तरह से काट कर निकला दिया जाता है। इसके बाद चिकित्सकीय क्रिया से आंत के टुकड़े कर उससे नकली ब्लैडर तैयार किया जाता है। इसकाे मूल ब्लैडर के स्थान पर ट्रांसप्लांट किया जाता है। डॉ. सिंह का दावा है कि देश में करीब 15-20 डॉक्टर ही हैं जो इस प्रकार का सफल ऑपरेशन कर सकते हैं। अब इसका खर्च भी करीब दो से सवा दो लाख रुपए आता है। भास्कर ख़ास
मूत्र प्रणाली, जिसे मूत्र पथ के रूप में भी जाना जाता है, में गुर्दा, मूत्रवाहिनी, मूत्राशय और मूत्रमार्ग होते हैं। मूत्र प्रणाली का उद्देश्य शरीर से अपशिष्ट का निष्कासन करना, रक्त की मात्रा और रक्तचाप को नियंत्रित करना, विद्युत अपघट्य और मेटाबोलाइट्स के स्तर को नियंत्रित करना और रक्त PH को नियंत्रित करना है। मूत्र पथ मूत्र के अंतिम निष्कासन के लिए शरीर की जल निकासी प्रणाली है। गुर्दे को वृक्कीय धमनियों के माध्यम से व्यापक रक्त की आपूर्ति होती है जो गुर्दे को वृक्कीय शिरा के माध्यम से छोड़ती है। प्रत्येक गुर्दे में कार्यात्मक इकाइयाँ होती हैं जिन्हें नेफ्रॉन कहा जाता है। रक्त के निस्पंदन और आगे की प्रक्रिया के बाद, अपशिष्ट (मूत्र के रूप में) मूत्रवाहिनी के माध्यम से गुर्दे से बाहर निकलते हैं, चिकनी मांसपेशियों के तंतुओं से बनी नलिकाएं जो मूत्र को मूत्राशय की ओर ले जाती हैं, जहां इसे संग्रहीत किया जाता है और बाद में मूत्र द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। महिला और पुरुष मूत्र प्रणाली बहुत समान हैं, केवल मूत्रमार्ग की लंबाई में भिन्नता है।[1][2] संरचना[संपादित करें]मूत्र प्रणाली का 3 डी मॉडल मूत्र प्रणाली उन संरचनाओं को संदर्भित करती है जो मूत्र के उत्सर्जन के बिंदु तक उत्पादन और परिवहन करती हैं। मानव मूत्र प्रणाली में दो गुर्दे होते हैं जो बाएं और दाएं दोनों तरफ पृष्ठीय शरीर की दीवार और पार्श्विका पेरिटोनियम के बीच स्थित होते हैं। मूत्र का गठन गुर्दे, नेफ्रॉन की कार्यात्मक इकाई के भीतर शुरू होता है। मूत्र फिर नलिकाओं के माध्यम से बहता है, नलिकाओं को इकट्ठा करने वाली नलिकाओं को परिवर्तित करने की प्रणाली के माध्यम से। ये एकत्रित नलिकाएं फिर माइनर कैल्सिस बनाने के लिए एक साथ जुड़ती हैं, उसके बाद प्रमुख कैलीज़ जो अंततः रीनल पेल्विस से जुड़ते हैं। यहाँ से, मूत्र मूत्रनली में मूत्रनली से मूत्र प्रवाह में अपना प्रवाह जारी रखता है, मूत्र को मूत्राशय में पहुँचाता है। मानव मूत्राशय प्रणाली की शारीरिक रचना मूत्राशय के स्तर पर पुरुषों और महिलाओं के बीच भिन्न होती है। पुरुषों में, मूत्राशय के ट्रिगर में आंतरिक मूत्रमार्ग छिद्र में मूत्रमार्ग शुरू होता है, बाहरी मूत्रमार्ग छिद्र के माध्यम से जारी रहता है, और फिर प्रोस्टेटिक, झिल्लीदार, बल्बर और शिश्न मूत्रमार्ग बन जाता है। मूत्र बाहरी मूत्रमार्ग के मांस के माध्यम से बाहर निकलता है। महिला मूत्रमार्ग बहुत छोटा है, मूत्राशय की गर्दन पर शुरू होता है और योनि वेस्टिबुल में समाप्त होता है। विकास[संपादित करें]माइक्रोनैटॉमी[संपादित करें]माइक्रोस्कोपी के तहत, मूत्र प्रणाली को एक अद्वितीय अस्तर यूरोटेलियम, एक प्रकार का संक्रमणकालीन उपकला में कवर किया जाता है। उपकला के विपरीत, अधिकांश अंगों का अस्तर, संक्रमणकालीन उपकला को समतल और विकृत कर सकता है। यूरोटेलियम मूत्र प्रणाली के अधिकांश हिस्से को कवर करता है, जिसमें गुर्दे की श्रोणि, मूत्रवाहिनी और मूत्राशय शामिल हैं। इतिहास[संपादित करें]किडनी स्टोन की पहचान की गई है और तब तक दर्ज की गई है जब तक लिखित ऐतिहासिक रिकॉर्ड मौजूद हैं.[3] मूत्रवाहिनी सहित मूत्र पथ, साथ ही गुर्दे से मूत्र को निकालने के लिए उनके कार्य का वर्णन दूसरी शताब्दी में गैलेन द्वारा किया गया है।[4] एक आंतरिक दृष्टिकोण के माध्यम से मूत्रवाहिनी की जांच करने वाला पहला, जिसे सर्जरी के बजाय यूरितेरोसकॉपी कहा जाता था, 1929 में हैम्पटन यंग था।.[3] इस पर वी. एफ मार्शल द्वारा सुधार किया गया था, जो 1964 में हुए फाइबर ऑप्टिक्स पर आधारित लचीले एंडोस्कोप का पहला प्रकाशित उपयोग है।[3] रीनल पेल्विस में एक ड्रेनेज ट्यूब की प्रविष्टि, नेफ्रॉस्टोमी नामक गर्भाशय और मूत्र पथ को दरकिनार करते हुए, पहली बार 1941 में वर्णित किया गया था। इस तरह का दृष्टिकोण ओपन सर्जरी से बहुत अलग था। ओपन सर्जिकल पूर्ववर्ती दो सहस्राब्दी के दौरान कार्यरत मूत्र प्रणाली के भीतर पहुंचता है.[3] सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी लिंक[संपादित करें]पेशाब की थैली को क्या कहते हैं?पेशाब की थैली (यूरिनरी ब्लैडर) शरीर के मूत्र तत्र (यूरिनरी सिस्टम) का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस थैली का मुख्य कार्य पेशाब को ब्लैडर में एकत्र करना और फिर इसे इच्छानुसार बाहर निकालना है। यदि पेशाब को एकत्र करने में ब्लैडर की क्षमता कम हो गयी हो, या दबाव ज्यादा हो, तो पीड़ित व्यक्ति को पेशाब रोकने में परेशानी होती है।
पेशाब की थैली में इन्फेक्शन क्यों होता है?क्या होता है यूरीन इंफेक्शन (Urine Infection)-
मूत्राशय और इसकी नली के बैक्टीरिया से संक्रमित होने पर यू.टी. आई होता है। यह बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक्ट (Urinary Tract) के जरिए शरीर में घुसकर ब्लैडर (Bladder) व किडनी (Kidneys) को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके संक्रमण का मुख्य कारण ई-कोलाई बैक्टीरिया होता है।
पेशाब की थैली में पथरी होने पर क्या खाना चाहिए?आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉ. अबरार मुल्तानी बताते हैं कि आपको सिर्फ एक केला लेकर उसके अंदर पुदीना (पेपरमिंट) के दो से तीन छोटे-छोटे टुकड़ों को लगाकर खा लेना है. केला खाने के थोड़ी देर बाद आधा गिलास गुनगुना दूध और आधा गिलास पानी पी लें. दो से तीन दिन में पेशाब की नली में फंसी छोटी-मोटी पथरी निकल जाएगी.
ब्लैडर क्या होता है?ब्लैडर वो गुब्बारेनुमा अंग है जहां पर यूरीन का संग्रह और निष्कासन होता है। ब्लैडर की आंतरिक दीवार नये बने यूरीन के सम्पर्क में आती है और इसे मूत्राशय की ऊपरी परत कहते हैं।
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