पेट दर्द होने पर कौन से पौधे का इस्तेमाल करते हैं? - pet dard hone par kaun se paudhe ka istemaal karate hain?

पेट दर्द होने पर कौन से पौधे का इस्तेमाल करते हैं? - pet dard hone par kaun se paudhe ka istemaal karate hain?

पेट दर्द होने पर कौन से पौधे का इस्तेमाल करते हैं? - pet dard hone par kaun se paudhe ka istemaal karate hain?

पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज - Ayurvedic medicine and treatment for Stomach Pain in Hindi

पेट दर्द होने पर कौन से पौधे का इस्तेमाल करते हैं? - pet dard hone par kaun se paudhe ka istemaal karate hain?

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September 25, 2020

कई बार आवाज़ आने में कुछ क्षण का विलम्ब हो सकता है!

पेट दर्द होने पर कौन से पौधे का इस्तेमाल करते हैं? - pet dard hone par kaun se paudhe ka istemaal karate hain?

पेट के दर्द को आयुर्वेद में उदर शूल के नाम से जाना जाता है। यह कई प्रकार के उदर रोगों (पेट की बीमारियों) के कारण हो सकता है। आमतौर पर लंबे समय तक पाचन शक्ति की खराबी और अपच के कारण पेट में गड़बड़ी हो जाती है, जो पेट दर्द का कारण बन सकती है।

आयुर्वेद में पेट के दर्द को दूर करने के लिए कई सारे प्रभावी उपाय हैं। इन प्रक्रियाओं में तप (फोमेंटेशन), वामन (मेडिकल इमिशन) और विरेचन (शुद्धि) शामिल हैं। आयुर्वेद पद्धति में कई सारी ऐसी दवाएं और जड़ी बूटियां दी जाती हैं जो पेट के दर्द को जड़ से खत्म कर सकती हैं। तिल, मदाना (इमेटिक नट), अग्नि-प्रभा रस, मंडुरा लौहा, क्षार वटी, प्रलयनाल रस, अग्निमुखा रस और गगनसूर्यादि रस ऐसी ही प्रमुख दवाएं हैं जो उदर रोग को ठीक करने में प्रभावी हो सकती हैं।
इस लेख में हम आयुर्वेद के माध्यम से पेट के दर्द के इलाज के बारे में जानेंगे।

  1. आयुर्वेद की दृष्टि से पेट दर्द - Pet ke dard ka Ayurvedic view
  2. पेट के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज - Pet ke dard ka Ayurvedic upchar
  3. पेट दर्द के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां और जड़ी बूटियां - Pet ke dard ki Ayurvedic dwa aur jadi butiya
  4. आयुर्वेद के अनुसार पेट दर्द रोगी के लिए आहार और जीवन शैली - Ayurved me Pet dard rogi ke liye aahar aur lifestyle
  5. पेट दर्द में आयुर्वेदिक दवाएं और उपचार कितने प्रभावी हैं? - Pet dard me Ayurvedic dwa aur treatment kitne prbhavi hai?
  6. पेट दर्द के उपचार में आयुर्वेदिक दवाओं का साइड इफेक्ट - Pet dard me Ayurvedic dwawo ka side effect
  7. निष्कर्ष - Takeaway

पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

पेट दर्द होने पर कौन से पौधे का इस्तेमाल करते हैं? - pet dard hone par kaun se paudhe ka istemaal karate hain?

आयुर्वेद की दृष्टि से पेट दर्द - Pet ke dard ka Ayurvedic view

पेट दर्द का प्रमुख कारण गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग होता है जो लिवर, आंतों या पेट के अन्य अंगों को प्रभावित करता है। आयुर्वेद के अनुसार पेट दर्द आठ प्रकार का होता है। ये सभी प्रकार दोष के आधार पर भिन्न होते हैं। पेट में दर्द निम्न कारणों से हो सकता है।

  • वात दोष
  • पित्त दोष
  • कफ दोष
  • वात और पित्त दोनों तरह के दोष का संयोजन
  • वात और कफ दोषों का संयोजन
  • पित्त और कफ दोषों का संयोजन
  • उपरोक्त तीनों दोषों का संयोजन
  • विषाक्त दोष अथवा खाद्य पदार्थों का सही से पाचन न हो पाना

भोजन के पाचन के दौरान होने वाले पेट दर्द को 'परिनमा शूल' कहा जाता है। ग्रहनी रोगों जैसी कई अन्य बीमारियों से भी पेट में दर्द हो सकता है।

पेट के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज - Pet ke dard ka Ayurvedic upchar

आयुर्वेद में पेट दर्द के इलाज के लिए तीन पद्धतियों को प्रयोग में लाया जाता है।

विरेचन

  • विरेचन विधि में कई प्रकार की जड़ी-बूटियों और दवाओं के संयोजन का उपयोग करके पेट को साफ करने का प्रयास किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के प्रभाव से आंतों की सफाई हो जाती है। इसमें जिन जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है, वे हैं एलो, सेन्ना और रूबर्ब।
  • इस उपचार की ​विधि से शरीर से अमा की सफाई होने के साथ उन दोषों का भी निवारण हो जाता है, जो इस रोग के प्रमुख कारक होते हैं।
  • विरेचन से शरीर में हल्कापन और मन की शांति का अनुभव होता है। यह पेट फूलने की समस्या को कम करने के साथ पाचन में भी सुधार करता है। यही कारण है कि उपचार की इस विधि का प्रयोग पेट के रोगों और पेट दर्द को नियंत्रित करने में किया जाता है।
  • विरेचन के बाद सामान्य रूप से चावल और मसूर के सूप को एक रिस्टोरेटिव थेरेपी के रूप में लेने की सलाह दी जाती है।

वामन

  • इलाज की इस विधि में उन जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है जिससे उल्टी हो जाए। इसका प्रयोग पेट को साफ करने और शरीर से अमा बाहर करने के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं यह नाड़ी (चैनल) और छाती से बलगम को हटाने में भी सहायक है।
  • वामन में दो प्रकार की जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है। कुटाजा (कुरची) और वाचा (कैलमस) जैसी जड़ी-बूटियां जो उल्टी को प्रेरित करती हैं, जबकि अमलाकी (करौंदा), नीम और पिप्पली (लंबी काली मिर्च) जैसी जड़ी-बूटियां जो उल्टी को प्रेरित करने वाली जड़ी-बूटियों के प्रभाव को बढ़ाती हैं।
  • अपच, आंत्रशोथ, तेज बुखार, नाक से पानी आना, पुरानी सर्दी, खांसी और दमा को ठीक करने में भी वामन विधि को प्रभावी माना जाता है।
  • वामन चिकित्सा के बाद पर्याप्त मात्रा में आराम करने और तरल रूप में हल्के भोजन का सेवन करने की सलाह दी जाती है।

ताप

  • ताप एक प्रकार का स्वेदना (स्वेट थेरेपी) है जिसमें गर्म कपड़े, गर्म धातु या हाथों को गर्म करके प्रभावित हिस्से पर रखा जाता है, जिससे वहां पर पसीना आ सके।
  • शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और पाचन में सुधार करने में यह प्रक्रिया बहुत उपयोगी है। इस प्रकिया के द्वारा तरल विषाक्त पदार्थ पाचन तंत्र में चला जाता है, जहां से इसे वामन और विरेचन जैसी शुद्धि प्रक्रियाओं का उपयोग करके शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
  • वात और कफ दोषों के लिए यह सबसे अच्छी चिकित्सा है, क्योंकि यह इन दोषों में संतुलन बनाए रखने में काफी प्रभावी माना जाता है।

पेट दर्द के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां और जड़ी बूटियां - Pet ke dard ki Ayurvedic dwa aur jadi butiya

आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

तिल

  • प्रजनन, श्वसन और मूत्र प्रणाली में तिल को काफी प्रभावी माना जाता है। शरीर के ऊतकों में सूजन से राहत देने के साथ यह कई मामलों में फायदेमंद होता है।
  • यह आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। खांसी, कब्ज, अल्सर, जलने और छाले जैसी कई बीमारियों के उपचार में इसे काफी प्रभावी माना जाता है। इसके अलावा वात दोष के कारण होने वाली बीमारियों में भी यह फायदेमंद होता है।
  • तिल के बीजों को पानी के साथ मसल कर तब तक गर्म किया जाता है जब तक कि यह एक पिण्ड न बन जाए। फिर इस पिण्ड को पेट पर दर्द वाले स्थान पर रोल किया जाता है जिससे दर्द में आराम मिलता है।
  • इसका उपयोग काढ़ा, पेस्ट, पाउडर या तेल के रूप में भी किया जा सकता है।

मदान

  • मदान पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग उनके चिकित्सीय गुणों के लिए किया जाता है। इसकी छाल नींद लाने में मदद करने के साथ तंत्रिका तंत्र को शांत करती है। मदान के फल और छिलकों का उपयोग इमेटिक (उल्टी के प्रेरक), डायफोरेटिक (पसीना उत्पन्न करने वाला) और एंटीस्पास्मोडिक के रूप में किया जाता है। मदान में ऐंठन से राहत देने वाले गुण होते हैं, यही कारण है कि इसका उपयोग पेट दर्द के इलाज में किया जाता है।
  • मदाना फल कांजी के साथ लिया जाता है और इसे नाभि क्षेत्र पर लगाने से उदर शूल में राहत मिलती है।

आयुर्वेदिक दवाइयां

अग्नि-प्रभा रस

  • अग्नि-प्रभा रस में पारा, गंधक, एकोनाइट, सीप के गोले, हंसपदी और अदरक होता है। यह रस पाउडर के रूप में होता है, जिसका शहद के साथ सेवन किया जाता है।
  • यह पाचन में सुधार करने के साथ और सभी प्रकार के बुखार, सूजन, एनीमिया, कफ के कारण होने वाले रोग, पेट के रोगों और दर्द के इलाज में फायदेमंद होता है।
  • यह पेट के रोगों के इलाज और उससे जुड़ी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है, जो पेट दर्द का प्रमुख कारण हो सकती है।

क्षार वाटी

  • क्षार वटी में एकोनाइट, अभ्रक, शंख, इमली, तांबा, त्रिकटु, तुलसी (पवित्र तुलसी), भृंगराज (भांगड़ा), अदरक और मटुंगा (जंगली नींबू) का संयोजन होता है। इसका सेवन आमतौर पर शहद के साथ किया जाता है।
  • इस दवा का उपयोग बवासीर, और पाचन से संबंधित कई रोगों के इलाज में किया जाता है। यह पेट दर्द, ग्रहनी और गुलमा के कारण होने वाले दर्द के इलाज में भी प्रभावी है।

प्रलयनाला रस

  • प्रलयनाला रस में पिप्पली, मरिचा, शुंठी, शुद्ध पारद (शुद्ध पारा), रक्ता अर्क (रबर की झाड़ी), निर्गुण्डी, जयंती, काकमाची, सौंफ और जामनी (जंगली काली बेर) सहित कई सामग्री होती हैं।
  • इसे गर्म पानी के साथ लिया जाना चाहिए। एनीमिया, बवासीर, अस्थमा, खांसी, बुखार, पेट के रोग, सभी प्रकार के दर्द, अनियमित पाचन आदि के उपचार में भी यह काफी प्रभावी माना जाता है।

अग्निमुख रस

  • अग्निमुख रस में एकोनाइट, त्रिफला, कुफिलु, वासा (मालाबार अखरोट), हरितकी, धतूरा और सुपारी जैसे विभिन्न तत्वों का संयोजन होता है।
  • यह वात दोष के कारण शरीर में होने वाल किसी भी प्रकार के दर्द को ठीक करने में उपयोगी है।

गगनसूरादि रस

  • गगनसुरादि रस विदंगा (काली मिर्च), त्रिफला, चित्रक, त्रिकटु और कई अन्य सामग्रियों से तैयार किया जाता है। इसका सेवन आम तौर पर शहद के साथ किया जाता है।
  • इस दवा के बाद दूध पीने की सलाह दी जाती है।
  • हृदय और छाती के किनारों में होने वाले दर्द के इलाज में इसका उपयोग होता है। इसके अलावा गठिया, सिर दर्द, लिवर बढ़ने के कारण पेट दर्द में भी इसका उपयोग फायदेमंद होता है। अस्थमा, खांसी, कुष्ठ, हैजा जैसे रोगों को ठीक करने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार पेट दर्द रोगी के लिए आहार और जीवन शैली - Ayurved me Pet dard rogi ke liye aahar aur lifestyle

क्या करें

  • अपने आहार में जौ और गर्म दूध शामिल करें
  • आहार में शाली के चावल को शामिल करें जो तीन साल से अधिक पुराना न हो
  • जंगली जानवरों के मांस से तैयार सूप को आहार में शामिल करें
  • फल और सब्जियां जैसे कि पटोला (एक प्रकार की लौकी), बैंगन, मीठे और पके आम, पीपल के फल, खट्टे फल, अंगूर और कपीठा का सेवन करें
  • आहार में नींबू का रस, सूखे अदरक, लहसुन, लौंग, वीरा नमक और हींग को शामिल करें

क्या करें

  • भोजन में बहुत ज्यादा अंतराल न हो, न ही अनियमित मात्रा में भोजन करें
  • पेशाब, शौच आदि जैसी प्राकृतिक क्रियाओं को ज्यादा देर तक रोकें नहीं
  • ठंडी, कड़वी और कसैले खाद्य पदार्थों का सेवन न करें
  • बहुत भारी मात्रा में भोजन करने से बचें
  • शराब पीने और अधिक मात्रा में नमक खाने से बचें
  • बहुत ज्यादा शारीरिक व्यायाम और संभोग न करें

पेट दर्द में आयुर्वेदिक दवाएं और उपचार कितने प्रभावी हैं? - Pet dard me Ayurvedic dwa aur treatment kitne prbhavi hai?

पेट दर्द में आयुर्वेदिक दवाएं और उपचार कितने प्रभावी हैं, इसका पता लगाने के लिए एक परीक्षण किया गया। इसमें ग्रहनी रोग वाले 66 व्यक्तियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया। समूह ए वाले लोगों को इलाज के रूप में कलिंगड़ी वटी, समूह बी वाले लोगों को त्रेषनादि घृत और समूह सी वाले लोगों को कलिंगादि वटी और त्रिदोषादि घृत दोनों का संयोजन दिया गया।

ये सभी लोग 16 से 60 वर्ष के आयु वाले थे और इन्हें डायरिया, स्वाद न आने, भोजन न करने की इच्छा और पेट दर्द जैसी समस्याएं थीं। चिकित्सकों ने तीनों समूहों के लोगों में 14 दिनों के भीतर उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया।

इस अध्ययन के अनुसार विशेषज्ञों ने पाया कि त्रेषनादि घृत और कलिंगड़ी वटी और इनका संयोजन ग्रहनी रोग में फायदेमंद होता है। पेट का दर्द इसी का एक प्रमुख लक्षण होता है।

पेट दर्द के उपचार में आयुर्वेदिक दवाओं का साइड इफेक्ट - Pet dard me Ayurvedic dwawo ka side effect

वैसे तो आयुर्वेद एक प्राचीन प्रथा है जिसे सभी रोगों के उपचार के लिए बहुत सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, यदि जड़ी-बूटियों और दवाओं का सही तरीके से उपयोग न किया जाए तो इसके कई दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। अनुभवी स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह और मार्गदर्शन में ही इन दवाओं का सेवन किया जाना चाहिए। व्यक्तियों में रोग के लक्षणों और दोष के आधार पर ही सभी जड़ी-बूटियों और दवाओं का सेवन सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। पेट दर्द के आयुर्वेदिक उपचार के दौरान निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए।

  • जिन लोगों को मलाशय के अल्सर और दस्त की शिकायत हो उनपर विरेचन पद्धति का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसके अलावा गर्भावस्था, कमजोरी और बुजुर्ग व्यक्तियों पर भी इलाज की इस प्रक्रिया के प्रयोग से बचना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और हाई ब्लड प्रेशर व हृदय रोग से परेशान व्यक्तियों में वामन पद्धति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  • जिन लोगों को पित्त की शिकायत हो उन्हें तिल के सेवन से साइड इफेक्ट्स होने का खतरा रहता है।
  • जिन लोगों को पुरानी दस्त की शिकायत, अल्सरेटिव कोलाइटिस, गैस, पेप्टिक अल्सर, हाई ब्लड प्रेशर और अनियंत्रित मधुमेह की शिकायत हो उन्हें कलिंगड़ी बटी का सेवन नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष - Takeaway

कई प्रकार के हल्के और गंभीर रोगोंं के कारण पेट का दर्द हो सकता है। वैसे तो आमतौर पर दर्द निवारक दवाओं का उपयोग करके पेट दर्द का इलाज किया जाता है। हालांकि, आयुर्वेद में भी कई ऐसी उपचार की पद्धतियां हैं जिनके माध्यम से इसके अंतर्निहित स्थिति की पहचान करके उसका उपचार किया जाता है।

आयुर्वेद में उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों और दवाओं का मुख्य कार्य शरीर से अमा को खत्म करना और संबंधित दोष का निवारण करना होता है। यही दोष ज्यादातर बीमारियों के प्रमुख कारक होते हैं। चूंकि, आयुर्वेद में रोग को जड़ से खत्म करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, ऐसे में उस रोग के दोबारा होने का खतरा बहुत ही कम होता है।

आयुर्वेद को इलाज की सबसे पुरानी परंपराओं में से माना जाता है। तमाम पुस्तकों में भी इस उपचार के फायदों के बारे में बताया गया है। ऐसे में माना जा सकता है कि पेट के दर्द के इलाज में भी आयुर्वेदिक चिकित्सा काफी प्रभावी हो सकती है।

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संदर्भ

  1. National Institute of Indian Medical Heritage (NIIMH). Udara-Roga. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (CCRAS); Ministry of AYUSH, Government of India.
  2. Bhudeb Mookerjee. Chapter 10 - Symptoms and treatment of Shula (pain in the belly). Rasa Jala Nidhi, vol 5: Treatment of various afflictions, Wisdom Library [Internet].
  3. Dr.Mallikarjun, Dr Channabasavanna B M, Dr M Srinivasulu. A Clinical Study On Takra Basti In The Management Of Grahani W.S.R To I.B.S. Paryeshana International Journal of Ayurvedic Research, Volume-II Issue –II/Nov-Dec-2017.
  4. M. M. Pandey, Subha Rastogi, A. K. S. Rawat. Indian Traditional Ayurvedic System of Medicine and Nutritional Supplementation. Evidence-Based Complementary and Alternative Medicine Volume 2013, Article ID 376327, 12 pages.
  5. Rasashastra, Bhaishajya Kalpana. A Systematic Review on Mandura (Iron oxide). International Journal of Ayurveda and Pharmaceutical Chemistry, 2018 Vol. 9 Issue 2.
  6. Alpesh P Sorathiya, SN Vyas, P.S.N Bhat. A clinical study on the role of ama in relation to Grahani Roga and its management by Kalingadi Ghanavati and Tryushnadi Ghrita. An International Quarterly Journal of Research in Ayurveda, Year : 2010. Volume : 31. Issue :4 Page : 451-455.

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