प्राकृतिक संसाधन क्या है प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार लिखिए? - praakrtik sansaadhan kya hai praakrtik sansaadhanon ke prakaar likhie?

Q.21: प्राकृतिक संसाधनों का अर्थ, महत्व तथा आवश्यकता बताते हुए उसके वर्गीकरण समझाइये।

उत्तर : मानव जीवन जिन आधारभूत साधनों पर आधारित है तथा जिनसे उसकी भौतिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है वे सभी संसाधन कहलाते हैं, क्योंकि यह सभी प्रकृति से विरासत में मिले हैं तथा पर्यावरण के मुख्य घटक हैं, अतः इन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। मुख्य प्राकृतिक साधनों में सौर ऊर्जा, वायु, जल, भूमि, वनस्पति, प्रकाश, पृथ्वी, का ताप, जीवाश्म ईंधन, खनिज, जन्तु तथा सूक्ष्म जीव आदि शामिल हैं। निःसन्देह ये सभी जरूरी होते हैं तथा इनकी अधिक अथवा कम उपलब्धता, इनकी निरापदता तथा प्रदषणता एवं इनकी सापेक्ष उपयोगिताएँ मानव के सुख– दुःख, विलासिता तथा अभावों की स्थितियों से जुडी हैं। इसी मे कुछ देश ज्यादा सम्पन्न तथा कुछ अभावग्रस्त श्रेणी में विभाजित कर दिये जाते हैं। यही संसाधन विहीनता कई देशों में प्रगतिबाधक होती है तथा अन्य देशों के सामने उसे हाथ पसारने को मजबूर कर देती है।

इसी आधार पर प्राकृतिक संसाधनों के लिये निम्न परिभाषा दी गई है–

हमारे प्राकृतिक पर्यावरण का कोई भी अंग,जैसे भूमि, जल, वायु,खनिज, वन, चरागाह, वन्य जीव, मक्खी तथा यहाँ तक कि मनुष्य आबादी जिससे मनुष्य का कल्याण होता हो,प्राकृतिक संसाधन कहलाता है।

राजीव सिन्हा ने अपनी पुस्तक Human Ecology में प्राकृतिक संसाधनों के लिये लिखा है–

प्राकृतिक संसाधन वह ईश्वर प्रदत्त वस्तुएँ हैं जिनसे कोई न कोई लाभ होता है। यह पृथ्वी, जीवमण्डल, वायुमण्डल, से प्राप्त होती हैं तथा मानव क्रिया से स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रहती हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का महत्व तथा आवश्यकता

प्राकृतिक संसाधन प्रकृति से मिली वह सम्पदा है जिसे मनुष्य तथा जीव– जन्तुओं के कल्याण एवं सुखमय जीवन हेतु अलौकिक शक्ति (ईश्वर) ने बनाया है तथा हमें उपलब्ध कराया है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसका किस तरह उपयोग करें, क्योंकि यह जीवन को चलाने हेतु जरूरी तंत्र के क्रियाशील अवयव हैं ।

(अ) महत्व

प्राकृतिक संसाधनों के सन्दर्भ में निम्न बातें ध्यान देने योग्य हैं–

1. पृथ्वी पर के संसाधनों का न तो हर जगह वितरण समान है तथा न ही उपयोग।

2. संसाधनों की मात्रा की उपलब्धता, उसे प्राप्त करने की क्षमता, तरीका तथा तकनीकी योग्यता पर निर्भर है।

3. संसाधनों का मूल्य उसकी उपलब्धता तथा माँग पर निर्भर करता है।

4. संसाधनों की कमी से उसका मूल्य बढ़ जाता है अथवा जब किसी संसाधन की बहुत माँग हो तो भी मुल्य में वृद्धि होती है।

5. संसाधनों की कमी के कारण उसकी उपलब्धता के लिए देश में अन्दर अथवा विदेशों में परस्पर कई विवाद हो जाते हैं।

6. संसाधनों के असमान उपयोग से भी विवादास्पद स्थिति होती है, जैसे अमेरिका कम आबादी पर भी भारत की ज्यादा आबादी के बावजूद अधिक संसाधनों का उपयोग करता है।

7. बढती जनसंख्या के कारण संसाधनों के भण्डार में कमी आई है।

8. संसाधनों के अंधाधुन्ध उपयोग या दुरुपयोग ने भी इनकी मात्रा को प्रभावित किया है। स्थिति यहाँ तक है कि कुछ संसाधन खत्म प्राय: हो रहे हैं। उनके समाप्त होने से पहले निश्चय ही हमें उनके विकल्प खोजने होंगे।

9. कई विकासशील व अविकसित देश अपने संसाधनों को कम मूल्य पर विकसित देशों को बेच देते हैं। देश की अन्य प्राथमिकताओं की पूर्ति हेतु उन्हें ऐसा करना उनकी मजबूरी है।

10. संसाधनों के प्राप्त करने में पर्यावरण विकृति की सम्भावनाएँ भी रहती हैं।

(ब) आवश्यकता

जहाँ तक इनकी सीधे– सीधे उपयोग तथा आवश्यकता की बात है तो उन्हें हम निम्न बिन्दुओं में समेकित करना चाहेंगे–

1. यह हमें भोजन, ईधन तथा जीने के लिये जरूरी वस्तुएं जैसे जल, वायु प्रकाश, ताप आदि उपलब्ध कराते हैं।

2. व्यापार हेतु कच्चे माल की उपलब्धि के लिये प्राकृतिक संसाधन एक अच्छे स्त्रोत हैं।

3. तैयार सामान की गुणवत्ता में निखार लाने में इनका उपयोग होता है, जैसे कारें, प्लास्टिक की वस्तुएं, रेफ्रीजरेटर्स, मनोरंजन के तथा दैनिक जीवन में काम में आने वाले सामान।

4. आवास, स्थल, फर्नीचर, सजावट, कलात्मक वस्तुओं के निर्माण में इनका उपयोग होता है।

5. शक्ति के व्यापक स्त्रोत हैं, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, लहर ऊर्जा, आदि।

6 पारिस्थितिक तंत्र को स्थायित्व प्रदान करते हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण

प्राकृतिक संसाधन मानव जगत् हेतु मूल आधार हैं। अत: इनका संरक्षण कितना समीचीन तथा जरूरी है यह बताने की बात नहीं है, पर वर्तमान में उनका जिस प्रकार उपयोग हो रहा है, उससे भविष्य की पीढ़ियों को शेष क्या रह पायेगा ? यह आज विचारने का प्रश्न है। इसके साथ ही उपलब्धता के साथ– साथ ये संसाधन कितने निरापद होंगे यह भी कम विचारणीय प्रश्न नहीं है क्योंकि सिर्फ स्वार्थ एवं क्षणिक लाभ के लिए कुछ लोगों अथवा देशों द्वारा यह लगातार प्रदूषित किये जा रहे हैं । संक्षिप्त में मोटेतौर पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के सन्दर्भ में निम्न उद्देश्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है–

1. संसाधनों का आवश्यकतानुसार ही सीमित उपयोग किया जाये जिससे वे ज्यादा दिनों तक रह सकें।

2. उन्हें प्रदूषित होने से बचाया जाये जिससे वह मनुष्यों के खराब स्वास्थ्य का कारण न बनें।

3. मूलभूत आधार प्राकृतिक संसाधनों को आय का स्त्रोत न बनाया जावे।

यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सिर्फ उसके उपयोग के लिए उपलब्धता के लिए ही नहीं है, वरन् विश्व में पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा उसे अनमोल खजाने के शाश्वत सत्य के साथ संरक्षित रखने के लिए भी है। स्पष्ट है कि पर्यावरण की गुणवत्ता मनुष्य के जीवन की गुणवत्ता का आधार है ।

प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने के कारण

वैसे तो कोई भी सामग्री हो उसका जब भी हम अनुचित रूप से प्रयोग करेंगे तो उसकी मामान्यतया ही गुणवत्ता में कमी आयेगी, लेकिन फिर भी कुछ क्रियाकलाप ऐसे हैं जिनसे प्राकृतिक संसाधनों के लगातार कम होने या नष्ट होने का खतरा हमेशा बना रहता है। वह हैं–

1 जल का अत्यधिक प्रयोग या दुरुपयोग,

2. लकडी का फर्नीचर, सजावट एवं ईंधन के रूप में प्रयोग,

3. कृषि फसलों से बगैर किसी योजना के उत्पादन,

4. बहते पानी से खेतों की उपजाऊ मिट्टी का बह जाना,

5. ज्यादा उपज हेतु रासायनिक खादों का उपयोग,

6. कई पशु– पक्षियों तथा जीवों का शिकारियों द्वारा शिकार,

7. भूमिगत जल के भण्डारों को अनावश्यक रूप से खाली करना,

8. बढती आबादी से ज्यादा संसाधनों का व्यय आदि।

हम जब तक प्राकृतिक संसाधनों का उचित, उपयुक्त एवं बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से उपयोग नहीं करेंगे तब तक संसाधनों की कमी की आशंका बनी ही रहेगी। कम– से– कम उन संसाधनों पर तो विशेष ध्यान देना जरूरी है जो आज निर्बाध गति से उपयोग में लिये जा रहे हैं तथा जिनका खत्म होना सर्वथा सत्य है ।

प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कैसे करें ?

इतनी चर्चा के बाद मूल प्रश्न यही रह जाता है कि आखिर इतने बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग कैसे करें ? वह क्या तरीके हैं जिनसे मानव स्वाथों की पूर्ति भी हो सके तथा संसाधनों को उचित संरक्षण भी मिल सके।

गाँधीजी ने कहा था– 'प्रकृति में सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता है पर किसी एक के भी लालच की नहीं।”

अत: यह स्पष्ट है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण तथा उनके उपयोग में कहीं विवाद नहीं है। अन्तर सिर्फ इतना है कि हम उतना ही प्रकृति से लें, जितना जरूरी है। उनका दोहन करें शोषण नहीं। प्रकृति में यह शक्ति है कि वह अपनी कमी स्वयं पूर्ति कर ले । सच तो यह है कि प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण भी तो इसीलिए है कि उसे काम में लिया जा सके।

प्राकृतिक संसाधनों का बुद्धिमतापूर्ण तथा आवश्यकतानुसार उपयोग ही हमारी कार्य शैली होनी चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग के कुछ मूल सिद्धान्त निम्न तरह प्रस्तुत हैं–

1. प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पर्यावरणीय स्थितियों को ध्यान में रख कर किया जावे अर्थात यह ध्यान रखा जावे कि इस उपयोग से पर्यावरण विकृत या दूषित न हो।

2. प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से दूसरों को हानि न पहुंचे।

3. पुनर्जीवित होने वाले संसाधनों का इस तरह उपयोग हो जिससे उनके पुनः पैदा होने की सम्भावना बनी रहे।

4. पुनर्जीवित नहीं होने वाले प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम या बुद्धिमतापूर्ण और आश्यकतानुसार ही उपयोग किया जाये जिससे वह आगे काफी समय तक रह सकें।

प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के सन्दर्भ में यह बात पूरी तरह समझनी है कि मूल तत्वों को नष्ट कर पृथ्वी पर रहना कठिन ही नहीं वरन असम्भव है तथा हमें सिर्फ अपने ही लिए नहीं वरन आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सोचना है । प्रकृति से विरासत में मिले बहुमूल्य संसाधनों को पूरी तरह समाप्त करने का हमें अकेले ही हक नहीं है । यह हमारे बच्चों की धरोहर है जिसे हमें संरक्षण हेतु इसलिए सौंपा है, ताकि हम उन्हें इसे ठीक– ठाक सौंप सकें।

संसाधनों का वर्गीकरण

प्रकृति में विभिन्न प्रकार के संसाधन पाये जाते है, जिनके निर्माण का मूल स्त्रोत प्रकृति है तथा ये सभी मानवीय प्रभाव से नवीन स्वरूप में स्थापित हो जाते हैं। इस तरह प्रकृति मानव के लिए संसाधनों का निर्माण करती है, जिनको मानव अपने प्रयासों, इच्छाओं और तकनीकी दक्षता से अपने उपयोग योग्य बनाता है । मानव द्वारा प्रकृति में विद्यमान विविध लक्षणों वाले प्राकृतिक परिवेशों के अनुसार विभिन्न प्रकार के संसाधनों का दोहन प्रारंभ हुआ जिसके फलस्वरूप उनकी प्रकृति लगातार बदलती रही। संसाधनों की बदलती प्रकृति तथा मानवीय क्रियाओं के कारण संसाधनों में विविधता आ गई। अतः इन्हें स्वतन्त्र रूप से पहचानने के लिए वर्गीकरण की आवश्यकता महसूस की गई।

तत्वों या वस्तुओं के निर्माण में सहायक कारकों के आधार पर संसाधनों को निम्न दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है–

1. प्राकृतिक संसाधन– जिन्सबर्ग के शब्दों में,"प्रकृति द्वारा स्वतन्त्र रूप से प्रदान किये गये पदार्थ जब मानवीय क्रियाओं से आवृत्त होते हैं तो उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते है।" सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। भौतिक सन्दर्भ में जीवमण्डल तथा स्थलमण्डल में संसाधनों के प्राकृतिक वितरण,प्रकार एवं उनके उपयोग के प्रभावों के आधार पर इनकी प्रकृति का निर्धारण किया जाता है । इस आधार पर किसी देश की भौगोलिक स्थिति, आकार, धरातल, जलवायु, वनस्पति, मृदा, पवन, जल, पशु, खनिज, सूर्य का प्रकाश आदि तत्व प्राकृतिक संसाधन हैं।

2. मानव संसाधन– संस्कृति का निर्माता मानव स्वयं एक शक्तिशाली संसाधन है, जो प्राकृतिक तत्वों को अपने ज्ञान एवं कौशल के विकास के द्वारा संसाधन के रूप में उपयोग करता है। वह संसाधनों का निर्माता एवं उपभोक्ता दोनों है, जो एक भौगोलिक कारक व संसाधन के रूप में सम्मिलित होकर कार्य करता है। मानव संसाधन में किसी निश्चित इकाई क्षेत्र में रहने वाली मानव जनसंख्या, उसकी शारीरिक व मानसिक क्षमता, स्वास्थ्य, जनसंख्या के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठन एवं वैज्ञानिक तथा तकनीकी स्थिति जैसी विशेषताएँ शामिल हैं।

आपूर्ति अथवा सततता के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण

प्राकृतिक संसाधनों में प्रकृति के वह सभी तत्व, पदार्थ एवं शक्तियाँ शामिल हैं, जिन्हें मानव अपनी क्षमता तथा ज्ञान के आधार पर अपने लाभ हेतु प्रयोग में लाता है। विश्व के प्राकृतिक संसाधनों में वायु तथा भूमि– मिट्टी आधारभूत संसाधन हैं। अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों में खनिज पदार्थ, आर्थिक रूप से उपयोगी चट्टानें, वन तथा घास– क्षेत्र, जन्तु जीवन, जल तथा मछलियाँ सम्मिलित हैं। इन सभी प्राकृतिक संसाधनों को कई दृष्टिकोणों से वर्गीकृत किया जाता है । इन दृष्टिकोणों में आपति के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण भी शामिल है।

आपूर्ति या सततता के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को चार वर्गों में रखा जाता है–

1. अनिर्वातनीय योग्य संसाधन– अनिर्वातनीय संसाधन वे संसाधन हैं, जो प्रकृति से कभी समाप्त नहीं होते। इनकी प्रकृति में उपस्थिति तब तक रहेगी, जब तक मानव जाति का अस्तित्व रहेगा। उदाहरण के लिये, सूर्य– प्रकाश, जलीय चक्र में जल एवं वायुमण्डल में वायु । प्रकृति में इनकी अपार उपलब्धता की तुलना में मानवीय उपयोग की मात्रा नगण्य है । उदाहरण के लिये, महासागरों में नमक की उपस्थिति ।

2. अनवीनीकरण योग्य संसाधन– प्रकृति में इस प्रकार के संसाधनों के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया अति धीमी गति से चलती है, जबकि मानव तीव्र गति से उनका उपयोग कर रहा है । उदाहरण के लिए, भूगर्भ में पेट्रोलियम का निर्माण लाखों वर्षों की प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण सम्भव हुआ है, जबकि जिस गति से पेट्रोलियम का मानव उपभोग कर रहा है. उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शीघ्र ही भूगर्भ में पेट्रोलियम की आपूर्ति समाप्त हो जायेगी। इसी कारण अनवीनीकरण संसाधनों को संचयी संसाधन भी कहा जाता है।

भूगर्भ में संचित समस्त खनिज संसाधन अनवीनीकरण योग्य संसाधनों की श्रेणी में सम्मिलित होते हैं। भूगर्भ में स्थित समस्त खनिज पदार्थों की भूगर्भ में संग्रहित भौतिक मात्रा प्रत्येक उपयोग के साथ नष्ट होती रहती है। उपयोग के साथ एक समय ऐसा आता है, जब भूगर्भ से इनकी आपूर्ति पूर्णतया समाप्त हो जाती है। दूसरे शब्दों में, यह समाप्त होने वाले या नष्ट होने वाले संसाधन होते हैं, पर कुछ संचयी संसाधन ऐसे होते हैं, जिनकी क्षमता में वृद्धि कर उनके उपयोग को अधिक समय तक बढ़ाया जा सकता है। जैसे– लोहे को जंग से बचाकर रखने पर उसका उपयोग समय बढ़ जाता है, साथ ही लौह छीलन को पुनः भट्टियों में गलाकर लौह धातु में परिवर्तित किया जा सकता है । लेकिन संसाधनों के पुनः प्रयोग सीमित ही होते हैं ।

3. नवीनीकरण योग्य संसाधन– इन संसाधनों में वह समस्त जैविक वस्तुएँ सम्मिलित हैं, जिनमें पुनरुत्पादन तथा वृद्धि की क्षमता होती है। प्राकृतिक दशाओं के अनुकूल रहने पर जैसे– जैसे इन संसाधनों के स्वयं पुनर्निर्माण की दर मानवीय उपभोग की दर से अधिक होती जाती है, वैसे– वैसे उन संसाधनों की पुनर्स्थापना स्वयं होती जाती है। यदि इन संसाधनों का उचित प्रबन्धन एवं संरक्षण किया जाये, तो लम्बे समय तक बिना समाप्त हुए इनका उपभोग मानव कर सकता है । इस सन्दर्भ में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि प्रकृति के जीवधारियों की प्रजातियों का विध्वंसात्मक उपभोग जिस प्रकार से आज हम कर रहे हैं, वह उस स्वरूप में नवीनीकरण योग्य नहीं कही जा सकती । विश्व के किसी भी जीवधारी का अस्तित्व ऐसी स्थिति में रहना सम्भव नहीं है, जब हम उसके उत्पादन से अधिक उसका शोषण करने लगें या हम उस परिस्थिति को ही नष्ट कर दें, जिसके ऊपर उनका जीवन निर्भर करता है। इन संसाधनों को प्रवाहित या सनातन संसाधन भी कहा जाता है।

प्रवाहित या सनातन संसाधनों में वह समस्त प्राकृतिक संसाधन सम्मिलित हैं, जो सतत रूप से मानवीय आवश्यकताओं की आपूर्ति करते रहते हैं तथा यदि मानव इनका बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से उपयोग करे, तो इनकी समाप्ति अथवा कम होने का भी भय नहीं रहता। जिम्मरमेन महोदय ने प्रवाहित संसाधनों की तुलना एक प्रवाहित जलधारा से की है। जिस प्रकार से किसी जलधारा में अवसादों की अधिकता से अवरुद्धता आ जाती है, उसी प्रकार प्रवाहित संसाधनों के अविवेकपूर्ण ढंग से किये गये प्रयोग से सनातन संसाधनों की उपलब्धता में कमी आ सकती है या उनका प्रयोग अवरुद्ध हो जाता है। उदाहरण के लिए, प्राकृतिक वन एक नवीनीकरण योग्य या सनातन संसाधन है, क्योंकि यदि इनका समुचित प्रबन्ध किया जाये तो इनसे सतत् रूप से वन संसाधन प्राप्त होते रहते हैं, लेकिन यदि मानव इनका अविवेकपूर्ण ढंग से शोषण करता है, तो शीघ्र ही इनकी उपलब्धता में अवरुद्धता होनी प्रारम्भ हो जाती है।

मिट्टी की उर्वरकता तथा जलीय संसाधन पृथ्वी के अन्य महत्वपूर्ण नवीनीकरण योग्य या सनातन संसाधन हैं।

4. पुनर्चक्रीय संसाधन– यह अनवीनीकरण योग्य संसाधनों की एक विशेष श्रेणी है । इन संसाधनों के मानवीय प्रयोग से यह पूर्णतया नष्ट नहीं होते. बल्कि मानव अपनी तकनीक की सहायता से इनका बार– बार (पुनर्चक्रीय प्रक्रिया) प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए, लोह, एल्युमीनियम एवं ताँबा आदि धातुएँ जिनसे निर्मित व्यर्थ वस्तुओं को पिघलाकर पुनः नया स्वरूप प्रदान किया जा सकता है।

प्राकृतिक संसाधन क्या है इसके प्रकारों को विस्तार से समझाइए?

प्राकृतिक संसाधन में भूमि, मिट्टी, जल, वन, खनिज, समुद्री साधन, जलवायु, वर्षा समावेश किया जाता है प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। इन संसाधनों को मनुष्य अपने प्रयत्नों से उत्पन्न नहीं कर सकता। अन्य शब्दों में, प्राकृतिक संसाधन भौतिक पर्यावरण का वह भाग है जिन पर मनुष्य अपनी अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निर्भर रहता है।

प्राकृतिक संसाधन क्या है प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार?

ऐसे संसाधन जो उपयोग करने के लिये परोक्ष रूप से प्रकृति से प्राप्त होते हों, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं, जिनमें वायु, पानी जो वर्षा, झीलों, नदियों और कुओं द्वारा मृदा, भूमि, वन, जैवविविधता, खनिज, जीवाश्मीय ईंधन इत्यादि शामिल हैं। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधन हमें पर्यावरण से प्राप्त होते हैं।

प्राकृतिक साधन क्या है उदाहरण सहित बताइए?

Solution : ये प्राकृतिक साधन जिनका उपयोग मनुष्य अपने भोजन और विकास के लिए करता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। वायु, जल, मिट्टी, खनिज, ऊजो, इंधन के स्रोत जैसे कोयला, पेट्रोलियम इत्यादि हमारे प्राकृतिक संसाधन हैं।

प्राकृतिक संसाधन का क्या अर्थ है?

प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जो प्रकृति से लिए गए हैं और कुछ संशोधनों के साथ उपयोग किए जाते हैं। इसमें वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग, सौंदर्य मूल्य, वैज्ञानिक रुचि और सांस्कृतिक मूल्य जैसी मूल्यवान विशेषताओं के स्रोत शामिल हैं।