हमारे मस्तिष्क में पृथ्वी के बारे में कई प्रश्न हमेसा उठते रहते है। उन्ही प्रश्नो में एक प्रश्न है, prithvi ki utpatti पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई है ? इसका निर्माण कैसे हुआ ? इसी प्रश्न का उत्तर इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगें। कि किस प्रकार हमारे ब्रह्माण्ड में खगोलीय परिघटनाएँ घटित हुई होगी जिसके कारण हमारा सुंदर ग्रह पृथ्वी का निर्माण हुआ होगा। Show
हमारी पृथ्वी सौरमंडल का सबसे रोचक एवं रहस्यमय ग्रह है। पृथ्वी के बारे में बहुत सारे रहस्यमयी एवं रोचक तथ्य है। जिनमे से कुछ के बारे में हमारे वैज्ञानिक पहुँच के माध्यम से ज्ञात कर चूके है। जैसे की पृथ्वी का आकर कैसा है ? पृथ्वी के घूर्णन एवं परिभ्रमण किस गति से हो रही है ? इसमें दिन-रात कैसे हो रहे है ? सूर्य एवं चंद्रग्रहण कैसे होते है ? इसका क्षेत्रफल, परिधि, त्रिज्या, व्यास इत्यादि क्या है। किन्तु अभी भी के कई रहस्य है जिसे ज्ञात किया जाना है। उन्ही में एक प्रश्न है इसकी उत्पत्ति कैसे हुई है ?
पृथ्वी की उत्पत्तिहमारी पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में समय-समय पर विभिन्न विचारक, दार्शनिक, वैज्ञानिक अपने मत या विचार, संकल्पना, सिद्धांत देते आये है। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण संकल्पनाओं को संक्षेप में जानेगें तथा हमारे मन में उठ रहे सवाल पृथ्वी कि उत्पत्ति कैसे हुई है ? को हल करने का प्रयास करेंगें। पृथ्वी के उत्पत्ति संबंधी कुछ सिद्धांत, संकल्पना निम्न इस प्रकार है।
उपरोक्त सभी सिद्धांतो को तीन वर्गो में विभाजित किया जाता है।
1. धार्मिक मान्यताएँ / विचार / सिद्धांतप्राचीन काल में धार्मिक विचारधाराओ का बोल-बाला था। अलग-अलग धर्म के विचारक अपने अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में अपना विचार रखते थे। किन्तु सभी धार्मिक विचारक एक मत से सहमत थे कि ईश्वर ने सर्वप्रथम पृथ्वी की रचना की है। उसके पश्चात ईश्वर ने वनस्पति एवं जीव-जन्तुओ का निर्माण किया और अंत में ईश्वर ने मानव को बनाया। ये बाते अक्सर हमारे दादी-नानी के कहानियों में भी सुनने को मिलती है। किन्तु धार्मिक विचारधाराएँ पूर्ण रूप से कल्पना पर आधारित होने के कारण इसे वर्त्तमान वैज्ञानिक युग में स्वीकार्य नहीं किया जाता क्योकि, ये विचारधाराएँ वर्त्तमान वैज्ञानिक तथ्यों या तर्को पर खरी नहीं उतर पाती अतः इन विचारधाराओं को सिरे से नकार दिया जाता है। 2. आरंभिक सिद्धांत / संकल्पनाएँ / विचारधाराहमारी पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी सिद्धांत आरंभिक समय में कई दार्शनिक एवं वैज्ञानिको ने विज्ञान के नियमो पर आधारित एवं तार्किक सिद्धांत प्रस्तुत किये है। अतः आरंभिक सिद्धांत को वैज्ञानिक सिद्धांत भी कहा जाता है। इस संबंध में सर्वप्रथम तार्किक संकल्पना का प्रतिपादन ” कास्ते दा बफन “ ने 1749 ई. किया था। इसके बाद इस क्षेत्र में कई विद्वानों ने अपने विचार दिये परन्तु इन विचारो में एकरुपता नहीं होने के कारण लम्बे समय तक इन विचारो या मतो का प्रभाव या विश्वास नहीं रहा। हलांकि लगभग सभी विचारधाराओं में एक समान्य बात है कि, सौरमंडल के सभी पिंडो की उत्पत्ति एक ही प्रक्रिया से हुई है। सौरमंडल में भाग लेने वाले तारो के आधार पर आरम्भिक / वैज्ञानिक सिद्धांत को दो वर्गो में विभाजित किया जाता है। I. अद्वैतवादी संकल्पना ( Monistic Concept )इसे एक तारक सिद्धांत भी कहा जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी तथा सौरमंडल के सभी पिंड – ग्रह, उपग्रह, क्षुद्र ग्रह इत्यादि की उत्पत्ति एक तारे ( सूर्य ) से हुई है। सौरमंडल की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। इस मत के आधार पर अनेक विद्वानों ने अपना मत / संकल्पना दिए है। इसमें सर्वप्रथम फ्रांसीसी विद्वान् “कास्ते द बफन” ने अपना मत दिया। इनके अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य में एक बड़े पिंड को टकराने से सूर्य के टूटे हुए खंडो के आपस में मिलने से हुआ है। अद्वैतवादी सिद्धांत के समर्थन में कास्ते द बफन के बाद कई विद्वानों ने अपना मत प्रस्तुत किया है। जिनमे से इमैनुअल कांट, लाप्लेस, रॉस, लकियर के विचारो को कुछ समय तक लोगो का विश्वास प्राप्त रहा किन्तु बाद में इसे भी नकार दिया गया। यहाँ पर कांट एवं लाप्लास द्वारा दिए गए पृथ्वी से संबंधित सिद्धांत को संक्षेप में प्रस्तुत किये जा रहे है। 1. इमैनुअल कांट के “वायव्य राशि परिकल्पना”( Kants Gasseous Hypothesis )जर्मनी के दार्शनिक, विद्वान् इमैनुअल कांट ने पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी वायव्य राशि सिद्धांत 1755 ई. में प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत को “गैसीय सिद्धांत” भी कहा जाता है। यह सिद्धांत न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत पर आधारित है। कांट के व्यावय राशि परिकल्पना के अनुसार छल्लो की रचना।इनके अनुसार प्रारम्भ में ब्रह्माण्ड में देवनिर्मित छोटे-बड़े पदार्थ यत्र-तत्र विखरे पड़े थे जिसे इन्होने “आद्य पदार्थ” कहा है। इन आद्य पदर्थो में आकर्षण शक्ति के कारण आपस में टक्कर होने लगी जिससे ताप और गति उत्पन्न हो गई। धीरे-धीरे इसकी गति में वृद्धि होते गई। और कालन्तर में सारे आद्य पदर्थ व्यावय राशि में परिवर्तित हो गई ( चक्रवात, टोर्नेडो के भांति ) फिर ये सारे पदार्थ किसी बड़े आद्य पदार्थ के नाभिक के आकर्षण शक्ति के कारण आपस में मिलकर एक तप्त पिंड में परिवर्तित हो गए जिसे इन्होने नीहारिका ( Nobula ) कहा है। बाद में नीहारिका की गति में इतनी तेजी हो गई कि केंद्र प्रसारित बल( केंद्र से बाहर की ओर लगने वाला बल – Centrifugal Force ) के कारण नीहारिका के ऊपरी भाग में उभार होने लगा। और यही उभार नीहारिका के तेज गति के कारण एक छल्ले के रूप में नीहारिका से अलग हो जाता है। और कालन्तर में नीहारिका से नौ छल्ले बारी-बारी से अलग होते एवं नीहारिका से दूर होते जाते है। फिर बाद में इन्ही छल्लो के सारे पदार्थ एकत्रित होकर शीतल एवं ठोस पिंड में परिवर्तित होकर ग्रह का निर्माण करते है। नीहारिका का अपशिष्ट भाग सूर्य के है। शेष बाचे पदार्थ उपग्रह एवं क्षुद्र ग्रह में परिवर्तित हो जाते है। 2. लाप्लास के नीहारिका परिकल्पना ( Nebular Hypothesis Of Laplace )फ्रांसीसी विद्वान् लाप्लास ने अपने पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधित सिद्धांत अपनी पुस्तक ( Exposition Of World System ) में 1796 ई. में प्रस्तुत किया। लाप्लास ने कांट के संकल्पना का संसोधित रूप दिया है। इनके अनुसार आरम्भ में ही ब्रह्माण्ड में एक तप्त एवं गतिशील गैसीय पिंड नीहारिका था। समय के साथ तापमान में ह्रास के कारण यह शीतल हो रहा था। जिसके कारण नीहारिका के ऊपरी भाग ठंडा एवं सिकुड़ने लगा जबकि इसका आंतरिक भाग तप्त गर्म था। नीहारिका के घूर्णन के गति में तीव्र होने से अपकेंद्रीय बल में वृद्धि हुई और जब अपकेंद्रीय बल गुरुत्वाकर्षण बल से अधिक हुई तब नीहारिका से एक छल्ला अलग हुआ और यही छल्ला बाद में नौ छल्ले में विभक्त हो गया। और ये छल्ले के सभी पदार्थ एकत्रित होकर ग्रहो का निर्माण किया। और नीहारिका के अवशेष भाग सूर्य के रूप में है। II. द्वैतवादी संकल्पना ( Dualistic Concepts )इस द्वैतवादी विचारधारा को दो तारक सिद्धांत भी कहा जाता है। इस विचारधारा के अनुसार पृथ्वी के साथ-साथ अन्य ग्रहो एवं उपग्रहों का निर्माण सूर्य के साथ-साथ एक या एक से अधिक तारो के सहयोग से हुआ है। इस संकल्पना पर आधारित अनेक विद्वानों द्वारा पृथ्वी के उत्पत्ति संबंधी अपना मत दिया है। जिसमे चैम्बरलीन तथा मोल्टन के ग्राहणु परिकल्पना, जेम्स जींस एवं जेफरीज के ज्वारीय परिकल्पना, एच.एन. रसेल एवं लिटलिटन के द्वैतारक परिकल्पना आदि प्रमुख है। 1.चैम्बरलीन एवं मोल्टन के “ग्राहणु परिकल्पना” ( Planetesimal Hypothesis Of Chamberlin and Moltan )यह परिकल्पना 1904 ई. में चैम्बरलीन एवं मोल्टन के द्वारा प्रस्तुत किया गया। उनके अनुसार पृथ्वी एवं अन्य ग्रहो की उत्पत्ति सूर्य के साथ-साथ एक अन्य विशालकाय तारे के सहयोग से हुआ है। इस संकल्पना के अनुसार ग्रहो के निर्माण से पूर्व सूर्य ठोस कणो से निर्मित एक चक्राकार एवं शीतल तारा था। कालांतर में सूर्य के नजदीक से एक विशालकाय तारा गुजरा जिससे सूर्य की सतह से कई असंख्य छोटे-बड़े कण बाहर अलग हो गए। जिसे चैंबरलीन ने ग्राहणु कहा है। ऐसा विशालकाय तारा के ज्वारीय आकर्षण शक्ति के कारण हुआ। बाद में विशालकाय तारा तेज गति से आगे निकल गया। और जो कण सूर्य से बाहर निकले थे सूर्य के चक्कर लगाने लगे। यही कण आपस में मिलने से ग्रह और उपग्रह का निर्माण हुआ है। 2. जेम्स जींस एवं जेफरीज के “ज्वारीय परिकल्पना” ( Tidal Hypothesis Of Jems Jeans and Jeffreys )इस संकल्पना का प्रतिपादन अंग्रेजी विद्वान् सर जेम्स जींस ने 1919 ई. में किया था। जिसको बाद में जेफरीज महोदय द्वारा 1929 ई. में संसोधित करके प्रस्तुत किया गया। इस समय तक जितने भी पृथ्वी के उत्पत्ति संबंधी सिद्धांत प्रस्तुत किये गए थे उनमे सबसे अधिक मान्य था। ये संकल्पना कुछ मान्यताओं पर आधारित है। जैसे: जींस एवं जेफरीज के ज्वारीय सिद्धांत के अनुसार सौरमंडल की उत्पत्ति।
इस परिकल्पना के अनुसार साथी तारा जैसे-जैसे सूर्य के करीब आ रहा था। वैसे-वैसे सूर्य में एक विशाल जिह्वा की भांति ज्वार उत्पन्न हुआ। ऐसा साथी तारे के विशाल ज्वारीय शक्ति के कारण हुआ। फलस्वरूप सूर्य से हजारो किमी लम्बा सिगार के आकार का ज्वार सूर्य के बाह्य भाग से उठा जिसे “फिलामेंट” कहा गया है। जींस के अनुसार पास आनेवाला तारा का मार्ग सूर्य पर नहीं था। अतः यह सूर्य से टकराने के बजाय आगे बढ़ते चला गया। जिससे सूर्य में एक ज्वार उत्पन्न हुआ। इस प्रकार विशाल तारा दूर निकल जाने के कारण फिलामेंट तारे के साथ न जा सका वरन वह सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाने लगा। और यही फिलामेंट बाद में विखंडित होकर ग्रहो के रूप में परिवर्तित हो गया। इसीलिए फिलामेंट के आकार के अनुसार बीच वाले ग्रह बड़े तथा किनारे वाले ग्रह छोटे आकार के है। 3. रसेल के “द्वैतारक परिकल्पना” ( Binary Hypothesis Of Russell )द्वैतारक परिकल्पना रसेल के अनुसार।रसेल के अनुसार आदिकाल में सूर्य के निकट एक नहीं बल्कि दो तारे थे। एक साथी तारा आरम्भ से सूर्य की परिक्रमा कर रहा था तथा बाद में एक अन्य तारा उसके निकट से गुजरा। चूँकि आगंतुक तारा सूर्य से काफी दूरी पर था। अतः उसके गुरुत्वीय प्रभाव उस पर नहीं पड़ा बल्कि सूर्य की परिक्रमा करने वाले तारे पर पड़ा। जिससे इस तारे में ज्वार की उत्पत्ति हुई और विशाल या आगंतुक तारे की दिशा में ( साथी तारे के विपरीत दिशा ) में घूमने लगा। और आगे चलकर इन ज्वारीय पदार्थो से ग्रहो के निर्माण हुए। 4. होयल और लिटलिटन का “सुपरनोवा परिकल्पना” ( Super Nova Hypothesis Of F. Hoyle and Lyttleton )होयल एवं लिटलिटन के अनुसार ग्रहो की उत्पत्ति।यह सिद्धांत होयल और लिटलिटन द्वारा 1939 ई. में प्रस्तुत किया गया। इनके अनुसार अंतरिक्ष में दो तारे नहीं बल्कि तीन तारे थे। सूर्य,उसका साथी तारा तथा पास आता हुआ एक अन्य तारा। साथी तारा सूर्य से अधिक दूर तथा अधिक विशाल था। साथी तारा में विस्फोट होने के कारण भारी मात्रा में धूल एवं गैसीय पदार्थ फ़ैल गए। साथ ही इस विस्फोट से साथी तारे के नाभिक सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति क्षेत्र से बाहर कर दिया गया तथा गैस और धूल के अवशेष भाग बचा रह गया। जिससे गोलाकार गतिशील तस्तरी का निर्माण हुआ जो की सूर्य के चक्कर लगाने लगे। बाद में इन्ही पदार्थो के घनीभवन के कारण पृथ्वी तथा अन्य ग्रहो की उत्पत्ति हुई। 5. ऑटो शिम्ड के “अंतरतारक धूल परिकल्पना” ( Inter Stellar Dust Hypothesis Of Otto Schimidt )रुसी वैज्ञानिक ऑटो शिम्ड ने सौरमंडल से संबंधित अपना सिद्धांत 1943 ई. में प्रस्तुत किया। इनके अनुसार ग्रहो की उत्पत्ति गैस एवं धूल कणों से हुई है। शिम्ड के अनुसार ग्रहो की उत्पत्ति का अंतिम अवस्था।आरम्भिक कल में ब्रह्माण्ड में अत्यधिक मात्रा में गैस और धूल-कण फैले हुए थे। और इसकी उत्पत्ति उल्काओं और तारो से निकलने वाले पदार्थो से हुई मानी जा सकती है। प्रारम्भ में जब सूर्य आकाशगंगा के करीब से गुजर रहा था। तो उसने अपने आकर्षण से गैस मेघ तथा धूल-कणों को आकर्षित कर लिया जो सूर्य के परिक्रमा करने लगे। आगे चलकर धूलकण संगठित तथा घनीभूत होकर एक चपटी तस्तरी में बदल गए। और फिर ग्रहो का निर्माण हुआ। इनके अनुसार ग्रहो का निर्माण कई चरण में सम्पन्न हुआ। जो इस प्रकार है।
III. आधुनिक सिद्धांतद्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी जिन मतों, संकल्पनाओ और सिद्धांतो का विकास हुआ उन सभी को आधुनिक सिद्धांत की श्रेणी में रखा जाता है। इसके अंतर्गत बेल्जियम के जॉर्ज लेमेंटर के बिग बैंग सिद्धांत (1950-60 के दशक ), अलन गुथ के स्फीति सिद्धांत (1980 ), ई. एम. ड्रॉबिश्वेस्की के वृहस्पति-सूर्य द्वैतारक संकल्पना (1974 ) इत्यादि प्रमुख है। “बिग-बैंग सिद्धांत” / “महाविस्फोटक सिद्धांत” ( Big-Bang Theory )यह सिद्धांत पृथ्वी के उत्पत्ति संबंधित अब तक का सबसे सर्वमान्य सिद्धांत है। बिग-बैंग सिद्धांत बेल्जियम के जॉर्ज लेमेंटर द्वारा 1950 से 1960 के दशकों में विकसित किया गया। तथा इस सिद्धांत को 1972 में सत्यापित किया गया। इसे विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना ( Expanding Universe Hypothesis )तथा महाविस्फोटक सिद्धांत भी कहा जाता है। यह सिद्धांत सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पति का वर्णन करता है। बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्माण्ड का निर्माण एवं विस्तार और विकास निम्न अवस्थाओं से होकर हुआ है। ब्रह्माण्ड का निर्माण एवं विस्तारबिग-बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और विस्तार।
आकाशगंगा का निर्माण
तारो का निर्माण
ग्रहो का निर्माण
निष्कर्षउपरोक्त सभी पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी संकल्पनाओ केअतिरिक्त और भी कई मत, सिद्धांत प्रस्तुत किये जाते रहे है। परन्तु किसी एक अकाट्य सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं हो पाया है कि पृथ्वी के उत्पत्ति कैसे हुई है ? परन्तु इन सिद्धांतो का इस संदर्भ में विशेष महत्व है कि, इन विद्वानों ने इस विषय पर जो बहस प्रारम्भ किया है, आनेवाला समय में यही बहस पृथ्वी की उत्पत्ति की गुंथी सुलझाने में कारगर साबित होगा। पृथ्वी की उत्पत्ति के सिद्धांत क्या है?सौरमंडल की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। इस मत के आधार पर अनेक विद्वानों ने अपना मत / संकल्पना दिए है। इसमें सर्वप्रथम फ्रांसीसी विद्वान् “कास्ते द बफन” ने अपना मत दिया। इनके अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य में एक बड़े पिंड को टकराने से सूर्य के टूटे हुए खंडो के आपस में मिलने से हुआ है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई?सौर मंडल (जिसमें पृथ्वी भी शामिल है) का निर्माण अंतरतारकीय धूल तथा गैस, जिसे सौर नीहारिका कहा जाता है, के एक घूमते हुए बादल से हुआ, जो कि आकाशगंगा के केंद्र का चक्कर लगा रहा था। यह बिग बैंग 13.7 Ga के कुछ ही समय बाद निर्मित हाइड्रोजन व हीलियम तथा अधिनव तारों द्वारा उत्सर्जित भारी तत्वों से मिलकर बना था।
पृथ्वी की उत्पत्ति किसने कब और कैसे हुई समझाइए?उनके अनुसार जब सूर्य आकाश गंगा के करीब से गुजर रहा था तो अपनी आकर्षण शक्ति से कुछ गैस, बादल तथा धूलकणों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया जो सामूहिक रूप से सूर्य की परिक्रमा करने लगे। इन्हीं धूलकणों के संगठित व घनीभूत होने से पृथ्वी व अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ।
पृथ्वी की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धान्त क्या है?इमानुएल कांट, एक जर्मन दार्शनिक, ने 1755 में पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में अपने स्वयं के सिद्धांत का प्रस्ताव रखा, जो न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम पर आधारित था। कांट का मानना था कि मूल पदार्थ शुरू में वितरित किया गया था और ठंडे, अपरिवर्तनीय, ठोस कणों से बना था।
|