राजनीतिक सिद्धांत एक ऐसा पदबन्ध है जिसे राजनीतिक चिन्तन, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचार, राजनीतिक विश्लेषण, राजनीतिक परीक्षण, राजनीतिक विचारधारा, राजनीतिक व्यवस्था के सिद्धांत आदि के पयार्य के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक दर्शन को तो आज भी समानार्थी माना जाता है। लेकिन वास्तव में ये दोनों शब्द एक जैसे नहीं है। दर्शन एक बुद्धि का विज्ञान है। प्लेटो और अरस्तु राजनीतिक दार्शनिक इसी कारण है कि उन्होंने सत्य की खोज की है। राजनीतिक दर्शन दर्शन का एक भाग है। दर्शन संसार की प्रत्येक वस्तु की व्याख्या करने का प्रयास करता है। Show
हैलोवैल का कहना है-’’राजनीतिक दर्शन का एक प्रमुख कार्य यह है कि वह मानव के विश्वासों को आत्म-सजगता में लाए और तर्क व बुद्धि के आधार पर उनकी समीक्षा करें। राजनीतिक दर्शन और राजनीतिक सिद्धांत में प्रमुख अन्तर यही है कि दार्शनिक सिद्धांतशास्त्री हो सकता है जैसे प्लेटो व अरस्तु थे, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि सिद्धांतशास्त्री दार्शनिक भी हो। राजनीतिक-सिद्धांत की उत्पत्ति (Origin of Political Theory)राजनीतिक-सिद्धांत राजनीतिक-विज्ञान की सबसे अधिक सरल और सबसे अधिक कठिन घटनाओं में से एक है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘Theoria’ शब्द से हुई है। राजनीतिक सिद्धांत को अंग्रेजी भाषा में ‘Political Theory’ कहा जाता है। ‘Theoria’ शब्द का अर्थ, ‘समझने की दृष्टि से, चिन्तन की अवस्था में प्राप्त किसी सुकेन्द्रित मानसिक दृष्टि से है, जो उस वस्तु के अस्तित्व एवं कारणों को प्रकट करती है अर्थात् एक मानसिक दृष्टि जो एक वस्तु के अस्तित्व और उसके कारणों को प्रकट करती है। केवल वर्णन या किसी लक्ष्य के बारे में कोई विचार या सुझाव देना ही सिद्धांत नहीं होता। सिद्धांत के अन्तर्गत किसी भी विषय के सम्बन्ध में एक लेखक की तरह पूरी सोच या समझ शामिल होती है। उसमें तथ्यों का वर्णन, उनकी व्याख्या लेखक का इतिहास बोध, उसकी मान्यताएं और वे लक्ष्य शामिल हैं जिनके लिए किसी सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाता है। सरल अर्थ में सिद्धांत शब्द का प्रयोग हमेशा किसी परिघटना की व्याख्या करने के प्रयास के रूप में किया जाता है। सिद्धांत को व्यापक अर्थ में प्रयोग करते समय इसमें तथ्यों और मूल्यों दोनों को शामिल किया जाता है। आधुनिक अर्थ में राजनीतिक सिद्धांत के अन्तर्गत वे सभी गतिविधियां आ जाती हैं जो ‘सत्ता के लिए संघर्ष से संबंधित हैं। राजनीतिक सिद्धांत की परिभाषा (Definition of political Theory)राजनीतिक सिद्धांत की परिभाषा कुछ विद्वानों ने निम्न ढंग से परिभाषित किया है- कोकर के अनुसार-’’जब राजनीतिक शासन, उसके रूप एवं इसकी गतिविधियों का अध्ययन या तुलना तत्व मात्र के रूप में न करके, बल्कि लोगों की आवश्यकताओं, इच्छाओं एवं उनके मतों के सन्दर्भ में घटनाओं को समझने व उनका मूल्य आंकने के लिए किया जाता है, तब हम इसे राजनीतिक सिद्धांत का नाम देते हैं। जेर्मिनो के अनुसार-’’राजनीतिक सिद्धांत मानवीय सामाजिक अस्तित्व की उचित व्यवस्था के सिद्धांतों का आलोचनात्मक अध्ययन है।’’ डेविड् हैल्ड के अनुसार-’’राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित अवधारणाओं और व्यापक अनुमानों का एक ऐसा ताना-बाना है, जिसमें शासन, राज्य और समाज की प्रकृति व लक्ष्यों और मनुष्यों की राजनीतिक क्षमताओं का विवरण शामिल हैं।’’ एन्ड्रयू हेकर के अनुसार-’’राजनीतिक सिद्धांत में तथ्य और मूल्य दोनों समाहित हैं। वे एक-दूसरे के पूरक हैं। अर्थात् राजनीतिक सिद्धांतशास्त्री एक वैज्ञानिक और दार्शनिक दोनों की भूमिका निभाता है।’’ जार्ज सेबाइन के अनुसार-’’व्यापक तौर पर राजनीतिक सिद्धांत से अभिप्राय उन सभी बातों से है जो राजनीति से सम्बन्धित हैं और संकीर्ण अर्थ में यह राजनीतिक समस्याओं की विधिवत छानबीन से सरोकार रखता है।’’ जॉन प्लेमेन्टज के अनुसार-’’राजनीतिक सिद्धांत सरकार के कार्यों की व्याख्या के साथ-साथ सरकार के उद्देश्यों का भी व्यवस्थित चिन्तन है।’’ उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक-सिद्धांत राज्य, शासन, सत्ता प्रभाव और कार्य-कलाप का अध्ययन है। यह राजनीतिक घटनाओं का तरीका है। अवलोकन, व्याख्या और मूल्यांकन तीनों तत्व ही मिलकर राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण करते हैं। कोई भी सिद्धांत शास्त्री किसी राजनीतिक घटना के अवलोकन, उसके कार्य-काल सम्बन्ध को स्थापित करके तथा अपना निर्णय देकर ही राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण करता है। राजनीतिक सिद्धांत का विकास (Develop of Political Theory)राजनीतिक सिद्धांत की उत्पत्ति का केन्द्र बिन्दू यूनानी राजनीतिक चिन्तन को माना जाता है। यूनानी दार्शनिकों व चिन्तकों ने आदर्श राज्य की संकल्पना पर ही अपना सारा ध्यान संकेन्द्रित किया। मध्य युग में सेन्ट एक्विनास जैसे विचारकों ने राजाओं को पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार माना, जिसकी पुष्टि हीगल के विश्वात्मा के विचार में होती है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद इंग्लैण्ड व अमेरिका में संविधानों व संवैधानिक कानूनों के विकास पर जोर दिया जाने लगा। अब राज्य, कानून, प्रभुसत्ता, अधिकार और न्याय की संकल्पनाओं के साथ-साथ सरकारों की कार्यविधियों को भी परखने की चेष्टा की जाने लगी। यह प्रक्रिया 19वीं सदी के अन्त तक प्रचलित रही। 20वीं सदी के आरम्भ में राजनीतिक सिद्धांत को एक विशिष्ट क्षेत्र माना जाने लगा। 1903 में अमेरिकन पॉलिटिकल साइन्स एसोसिएशन (American Political Science Association) ने राजनीतिक सिद्धांत को राजनीति-विज्ञान का महत्वपूर्ण विषय स्वीकार किया और इसके अध्ययन व विकास के प्रयास तेज किए। अब राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के विषय राजनीतिक संस्थाएं, राज्य के लक्ष्य, न्याय, सुरक्षा, स्वतन्त्रता समानता आदि के साथ-साथ विशिष्ट वर्ग, शक्ति, प्रभाव, राजनीतिक विकास, राजनीतिक संस्कृति आदि को भी राजनीतिक सिद्धांत के दायरे में ला दिया गया। अब राजनीतिक संस्थाओं के गुण-दोषों की चर्चा के साथ-साथ इनकी अच्छाई या बुराई के निष्कर्ष निकाले जाने लगे। चाल्र्स मेरियम, जी0ई0 कैटलिन जैसे विचारकों के प्रयासों ने अब राजनीतिक सिद्धांत को यथार्थवादी प्रवृत्ति से परिपूर्ण किया। लॉसवैल तथा ईस्टन ने व्यवहारवाद को जन्म देकर राजनीतिक सिद्धांत को आधुनिक युग में प्रवेश करा दिया। व्यवहारवाद के आगमन ने परम्परागत राजनीतिक सिद्धांत को आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की परिधि में प्रवेश करा दिया। अब ईस्टन ने राजनीति-विज्ञान में नए राजनीतिक सिद्धांत के निर्माण पर जोर देना शुरू कर दिया। 1969 में ईस्टन ने उत्तर-व्यवहारवाद की क्रान्ति का सूत्रपात करके राजनीतिक सिद्धांत को नया आयाम दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राजनीतिक सिद्धांत निरन्तर नई-नई राजनीतिक समस्याओं से जूझ रहा है। इसी कारण आज तक किसी ऐसे सर्वमान्य राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण नहीं हुआ है जो विश्व के हर भाग में अपनी उपादेयता सिद्ध कर सके। इसका प्रमुख कारण इस बात में निहित माना जाता है कि आधुनिक राजनीतिक विचार किसी भी राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण करते समय प्लेटो व अरस्तु जैसी विश्व-दृष्टि नहीं रखते। राजनीतिक सिद्धांत का दृष्टिकोण (Approaches of Political Theory)हमने राजनीतिक सिद्धांत को अलग-अलग दृष्टिकोण से समझने का प्रयास किया है जो निम्न है:-
1. पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Approach of political theory) –ईसा पूर्व छठी सदी से 20वीं सदी में लगभग द्वितीय महायुद्ध से पूर्व तक जिस राजनीतिक दृष्टिकोण (political approach) का प्रचलन रहा है, उसे अध्ययन सुविधा की दृष्टि से ‘परम्परागत राजनीतिक दृष्टिकोण’ कहा जाता है। इसे आदर्शवादी या शास्त्रीय दृष्टिकोण भी कहा जाता है। प्राचीन यूनान व रोम में राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिये दर्शनशास्त्र, नीतिशास्त्र, तर्कशास्त्र, इतिहास व विधि की अवधारणाओं को आधार बनाया गया था किन्तु मध्यकाल में मुख्यतः ईसाई धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण को राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण का आधार बनाया गया। परम्परागत राजनीतिक दृष्टिकोण ने राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिये मुख्यतः दार्शनिक, तार्किक नैतिक, ऐतिहासिक व विधिक पद्धतियों को अपनाया है। 16वीं सदी में पुनर्जागरण आन्दोलन ने बौद्धिक राजनीतिक चेतना को जन्म दिया साथ ही राष्ट्र-राज्य अवधारणा को जन्म दिया। 18 वीं सदी की औद्योगिक क्रांति ने राजनीतिक सिद्धान्त के विकास को नई गति प्रदान की। 19वीं सदी से इसने विधिक, संवैधानिक, संस्थागत, विवरणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों पर विशेष बल दिया है। 20वीं सदी के प्रारंभ से ही परम्परागत दृष्टिकोण ने राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिये एक नई दृष्टि अपनाई जो अतीत की तुलना में अधिक यथार्थवादी थी। पारंपरिक दृष्टिकोण के लक्षण (Characteristics of Traditional approaches): –
राजनीति में, जोर तथ्यों पर नहीं, बल्कि राजनीतिक घटना के नैतिक गुणों पर होना चाहिए। वैसे तो राजनीतिक सिद्धांत का पारंपरिक दृष्टिकोण ऐसे बहुत से छोटे दृष्टिकोण पर निर्भर है लेकिन हम कुछ ऐसे महत्वपूर्ण दृष्टिकोण के बारे में बात करते है.
1 .दार्शनिक दृष्टिकोण (Philosophical Approach)- इस दृष्टिकोण को राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में सबसे पुराना दृष्टिकोण माना जाता है। इस दृष्टिकोण का विकास प्लेटो और अरस्तू जैसे ग्रीक दार्शनिकों के समय पर हुआ था जिनमे लियो स्ट्रॉस नामक विचारक इस दृष्टिकोण के मुख्य समर्थक होते है। उन्होंने माना कि “philosophy ज्ञान और राजनीतिक दर्शन की खोज है। यह सही मायने में राजनीतिक चीजों की प्रकृति और सही या अच्छे राजनीतिक आदेश के बारे में जानने का प्रयास है।”इस दृष्टिकोण का उद्देश्य मौजूदा संस्थानों, कानूनों और नीतियों के महत्वपूर्ण मूल्यांकन के उद्देश्य से सही और गलत के मानक को विकसित करना है। यह दृष्टिकोण सैद्धांतिक सिद्धांत पर आधारित है कि Values को राजनीति के अध्ययन से अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए, इसकी मुख्य चिंता यह है कि किसी भी राजनीतिक समाज में क्या अच्छा है या क्या बुरा है। यह मुख्य रूप से राजनीति का एक नैतिक और प्रामाणिक अध्ययन है और इसलिए यह एक आदर्शवादी दृष्टिकोण भी है। यह राज्य की प्रकृति और कार्यों, नागरिकता, अधिकारों और कर्तव्यों आदि की समस्याओं को संबोधित करता है। इस दृष्टिकोण के समर्थकों का मानना है कि राजनीतिक दर्शन राजनीतिक विश्वासों के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। इसलिए, उनका विचार है कि एक राजनीतिक वैज्ञानिक को अच्छे जीवन और अच्छे समाज का ज्ञान होना चाहिए। 2 .ऐतिहासिक दृष्टिकोण (Historical Approach) :- यह दृष्टिकोण इतिहास से संबंधित है और यह किसी भी स्थिति का विश्लेषण करने के लिए हर राजनीतिक वास्तविकता के इतिहास के अध्ययन पर जोर देता है। मैकियावेली, सबाइन और डायनिंग जैसे राजनीतिक विचारकों का मानना है कि राजनीति और इतिहास का निकट का संबंध होना जरुरी हैं और राजनीति का अध्ययन हमेशा एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण होना चाहिए। यह दृष्टिकोण दृढ़ता से इस विश्वास को बनाए रखता है कि हर राजनीतिक विचारक की सोच या हठधर्मिता आसपास के वातावरण से बनती है। इसके अलावा, इतिहास अतीत का विवरण प्रदान करता है और साथ ही साथ इसे वर्तमान घटनाओं से भी जोड़ता है। इतिहास हर राजनीतिक घटना का कालानुक्रमिक क्रम देता है और जिससे भविष्य में होने वाली घटनाओं का भी अनुमान लगाने में मदद मिलती है। लेकिन ऐतिहासिक दृष्टिकोण के आलोचकों का मानना है कि समकालीन विचारों और अवधारणाओं के संदर्भ में पिछले युगों के विचार को समझना संभव नहीं है। 3 .संस्थागत दृष्टिकोण (Institutional Approach) :- यह राजनीति विज्ञान का अध्ययन करने के लिए पारंपरिक और महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है। यह दृष्टिकोण मुख्य रूप से सरकार की औपचारिक विशेषताओं से संबंधित है और राजनीति राजनीतिक संस्थानों और संरचनाओं के अध्ययन को गति प्रदान करती है। इसलिए, Institutional Approach विधायिका, कार्यकारी, न्यायपालिका, राजनीतिक दलों और ब्याज समूहों जैसे औपचारिक संरचनाओं के अध्ययन से संबंधित है। इस दृष्टिकोण के समर्थकों में प्राचीन और आधुनिक दोनों political philosophers शामिल हैं। प्राचीन विचारकों में, अरस्तू की इस दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका थी जबकि आधुनिक विचारकों में जेम्स ब्रायस, बेंटले, वाल्टर बैजहॉट, हेरोल्ड लास्की ने इस दृष्टिकोण को विकसित करने में योगदान दिया। 4 .कानूनी दृष्टिकोण (Legal Approach) :- यह दृष्टिकोण बताता है कि राज्य कानूनों के गठन और प्रवर्तन के लिए मौलिक संगठन है। इसलिए, यह दृष्टिकोण कानूनी प्रक्रिया, कानूनी निकायों या संस्थानों, न्याय और न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित है। इस दृष्टिकोण के समर्थक सिसरो, जीन बॉडिन, थॉमस हॉब्स, जेरेमी बेंथम, जॉन ऑस्टिन, डाइस और सर हेनरी मेन हैं। राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए विभिन्न पारंपरिक दृष्टिकोणों को आदर्शवादी होने के लिए अस्वीकृत कर दिया गया है। 2. आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach of political theory) :-पारंपरिक दृष्टिकोण की मदद से राजनीति का अध्ययन करने के बाद, राजनीतिक विचारकों को पारंपरिक दृष्टिकोण में कुछ कमी नज़र आई जिनसे वह राजनीति को नए दृष्टिकोण से अध्ययन करने की जरुरत महसूस हुई। इस प्रकार पारंपरिक दृष्टिकोणों की कमियों को कम करने के लिए, इन नए दृष्टिकोणों को राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए “आधुनिक दृष्टिकोण” के आधार पर इन्होने इसे परिवर्तन किया। वे राजनीतिक घटनाओं के तथ्यात्मक अध्ययन पर जोर देते हैं और वैज्ञानिक और निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। आधुनिक दृष्टिकोणों का उद्देश्य आदर्शवाद को साम्राज्यवाद से बदलना है। आधुनिक दृष्टिकोण के लक्षण (Characteristics of Modern Approaches):-
आधुनिक दृष्टिकोणों में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण, मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण, आर्थिक दृष्टिकोण, मात्रात्मक दृष्टिकोण, सिमुलेशन दृष्टिकोण, प्रणाली दृष्टिकोण, व्यवहार दृष्टिकोण और मार्क्सवादी दृष्टिकोण शामिल हैं। 3. व्यवहार संबंधी दृष्टिकोण (Behavioral Approach of political theory) :-व्यवहार दृष्टिकोण राजनीतिक सिद्धांत है जो सामान्य व्यक्ति के व्यवहार पर दिए गए बढ़ते ध्यान का परिणाम है। किर्कपैट्रिक के अनुसार “पारंपरिक दृष्टिकोणों को संस्था को अनुसंधान की मूल इकाई के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन व्यवहारिक दृष्टिकोण राजनीतिक स्थिति में व्यक्ति के व्यवहार को आधार मानते हैं।“ व्यवहारवाद की मुख्य विशेषताएं:- डेविड ईस्टन ने व्यवहारवाद की कुछ विशिष्ट विशेषताओं का वर्णन किया है जिन्हें इसकी बौद्धिक नींव माना जाता है।
व्यवहार दृष्टिकोण के लाभ (Benefits of Behavioural approach):-
इतने सारे benefits के बावजूद, वैज्ञानिकता के लिए इसके आकर्षण के लिए व्यवहार दृष्टिकोण की आलोचना की गई है। इस दृष्टिकोण के खिलाफ लगाए गए मुख्य आलोचनाएं नीचे उल्लिखित हैं:-
4. निर्णायक दृष्टिकोण (Decision making Approach of political theory)यह राजनीतिक दृष्टिकोण Decision makers की सुविधाओं के साथ-साथ व्यक्तियों के प्रभाव की खोज करता है। इस दृष्टिकोण को रिचर्ड सिंडर और चार्ल्स लिंडब्लोम जैसे कई विद्वानों ने विकसित किया। एक राजनीतिक निर्णय जो कुछ नेताओं द्वारा लिया जाता है, एक बड़े समाज को प्रभावित करता है और इस तरह के निर्णय को आमतौर पर एक विशिष्ट स्थिति द्वारा आकार दिया जाता है। इसलिए, यह Decision makers के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं को भी ध्यान में रखता है। अगर हम सीधे तौर पर बात करे तो तो हमें यह निष्कर्ष मिलता है कि समय-समय पर आवश्यकताओ के अनुसार, सभी दृष्टिकोण में बदलाव किया जाता रहा है। राजनीतिक सिद्धांत का महत्वराजनीतिक सिद्धांत में राज्य, सरकार, शक्ति, सत्ता, नीति-निर्माण, राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण, राजनीतिक दल, मताधिकार, चुनाव, जनमत, राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक अभिजनवाद, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध व संस्थाएं, क्षेत्रीय संगठन, नारीवाद आदि का अध् ययन किया जाता है। आज राजनीतिक सिद्धांत एक स्वतन्त्र अनुशासन की दिशा में गतिमान है। यह राजनीतिक घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या तथा सामान्यीकरण के आधार पर राजनीतिक व्यवहार का एक विज्ञान विकसित करने में मदद करता है। इसके द्वारा ज्ञान के नए क्षेत्रों की खोज व सिद्धांतों की प्राप्ति होती है। एक अच्छा राजनीतिक सिद्धांत अनुशासन में एकसमता, सम्बद्धता तथा संगति का गुण पैदा करता है। यह राजनीतिक शासन-प्रणाली एवं शासकों को औचित्यपूर्णता प्रदान करता है। यह कभी समाजवाद के रूप में कार्य करता है तो कभी विशिष्ट वर्ग के रूप में। राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता इस बात में है कि यह राजनीति विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में परम् आवश्यक है। इसी पर इस विषय में एकीकरण सामंजस्य, पूर्वकथनीयता एवं वैज्ञानिकता लाना एवं शोद्य सम्भावनाएं निर्भर हैं। बिना सिद्धांत के न तो रजनीति-विज्ञान का विकास संभव है और न ही कोई शोद्य कार्य, अवधारणात्मक विचारबद्ध के रूप में राजनीतिक सिद्धांत राजनीति विज्ञान में तथ्य संग्रह एवं शोद्य को प्रेरणा एवं दिशा प्रदान करता है। यह राजनीति विज्ञान में एक दिशा मूलक की तरह कार्य करता है। विकासशील देशों की अपेक्षा विकसित देशों में राजनीतिक सिद्धांत की स्थिति कुछ अच्छी है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत आज अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। अनेक प्रयासों के बावजूद भी राजनीतिक-विज्ञान आज तक किसी वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण नहीं कर पाए हैं। राबर्ट डाहल ने तो यहां तक कह दिया कि राजनीतिक सिद्धांत अंग्रेजी भाषी देशों में तो मृत हो चुका है। साम्यवादी देशों में बन्दी है तथा अन्यत्र मरणासन्न है। इसी कारण मानव समाज की राजनीतिक, संविधानिक और वैधानिक प्रगति के लिए राजनीतिक सिद्धांत का होना अति आवश्यक है। आज के परमाणु युग में शक्ति पर नियन्त्रण रखने का मार्गदर्शन आनुभाविक राजनीतिक सिद्धांत द्वारा ही सम्भव है। राजनीति के रहस्यों, प्रतिक्षण परिवर्तनशील घटनाओं तथा जटिल अन्त:सम्बन्धों तक पहुंचने के लिए राजनीतिक सिद्धांत एक सुरंग की तरह कार्य करता है। संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांत का महत्त्व निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है:
जब किसी समाज के राजनीतिक सिद्धांत अपनी भूमिका सही तरीके से निभाते हैं तो वे मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है। जनसाधारण को सही सिद्धांत से परिचित करवाने का अर्थ केवल उन्हें अपने उद्देश्य और साधनों को सही तरीके से चुनने में सहायता करना ही नहीं है। बल्कि उन रास्तों से भी बचाना है जो उन्हें निराशा की तरफ ले जा सकते हैं। Political Theory की समस्याएंप्लेटो व अरस्तु से लेकर 20वीं सदी राजनीतिक सिद्धांत के विकास की गति काफी धीमी रही है। ‘अमेरिकन पॉलिटिकल साइन्स एसोसिएशन’ तथा ‘सोशल साइन्स रिसर्च कौंसिल’ की स्थापना से राजनीतिक सिद्धांत के विकास में कुछ तेजी आई। इतना होने के बावजूद अधिकतर विकासशील देशों में तो राजनीतिक सिद्धांत की दशा आज भी काफी शोचनीय है। विकासशील देशों में तो यह एक स्वतन्त्र अनुशासन के स्तर से काफी दूर है। इन देशों में राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के लिए उपयुक्त अध्ययन पद्धतियों का अभाव है। यूरोप के देशों में तो इसका तीव्र विकास हुआ है लेकिन विकासशील देशों में नहीं। उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का शिकार रह चुके इन देशों में शोद्य संबंधी सुविधाओं का नितान्त अभाव रहा है। विकासशील देशों में राजनीतिक सिद्धांत का परम्परागत रूप ही देखने को मिलता है। इन देशों में मौलिक चिन्तन और अनुभवात्मक शोद्य का अभाव आज भी है। यद्यपि भारत में इस दिशा में कुछ प्रगति अवश्य हुई है। विकासशील देशों में राजनीतिक सिद्धांत को वैज्ञानिक बनाने तथा राजनीतिक समस्याओं को हल करने में राजनीतिक विद्वानों ने कोई खास योगदान नहीं दिया है। इन देशों में राजनीतिक विद्वानों में राजनीतिक तटस्थता की भावन का पाया जाना ही राजनीतिक सिद्धांत के पिछड़ेपन का कारण है। निष्कर्षराजनीतिक सिद्धांत ही वह साधन है जो राजनीतिक तथ्यों एवं घटनाओं, अध्ययन पद्धतियों तथा मानव-मूल्यों में एक गत्यात्मक सन्तुलन स्थापित कर सकता है। राजनीति के वास्तविक प्रयोगकर्ताओं-राजनीतिज्ञों, नागरिकों, प्रशासकों, राजनेताओं एवं राजनयिकों के लिए राजनीतिक सिद्धांत का बहुत महत्व हैं राजनीतिक सिद्धांत ही इन सभी को राजनीति के वास्तविक स्वरूप से परिचित करा सकता है। अत: इसे आधुनिक समाज, लोकतन्त्र मानव-मूल्यों एवं अनुसंधन का एक प्रकाश स्तम्भ माना जा सकता है। क्रान्तिकारी राजनीतिक सिद्धांत के बिना न तो शांति सम्भव है और न ही क्रान्ति। इसलिए राजनीतिक सिद्धांत के बिना सामाजिक परिवर्तन की कल्पना करना बेकार है। राजनीतिक सिद्धांत के सामने आज जो प्रमुख समस्या है, वह है-युद्ध और शान्ति, प्रजातन्त्र और तानाशाही, के बीच संतुलन कायम रखना। विकासशील देशों में भूख, गरीबी, अशिक्षा, संकीर्णता, रुढ़िवादिता आदि समस्याओं के रहते इन देशों में भी राजनीतिक सिद्धांत के विकास की कल्पना करना बेकार है। अत: एक व्यापक राजनीतिक सिद्धांत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि इस दिशा में सभी राजनीतिक विद्वानों, समाज सुधारकों, राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, नीति-धारकों, समाजशास्त्रियों आदि को सकारात्मक प्रयास करने चाहिएं और राजनीतिक सिद्धांत के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के हर सम्भव प्रयास किए जाएं। Related Post:
राजनीतिक सिद्धांत से आप क्या समझते हैं परिभाषित कीजिए?(२) राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः मानव जाति, उसके द्वारा संगठित समाजों और इतिहास तथा ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता है। वह विभेदों को मिटाने के तरीके भी सुझाता है और कभी-कभी क्रांतियों की हिमायत करता है। बहुधा भविष्य के बारे में पूर्वानुमान भी दिए जाते हैं।
सिद्धांत की परिभाषा क्या है?सिद्धान्त, 'सिद्धि का अन्त' है। यह वह धारणा है जिसे सिद्ध करने के लिए, जो कुछ हमें करना था वह हो चुका है, और अब स्थिर मत अपनाने का समय आ गया है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, नीति, राजनीति सभी सिद्धांत की अपेक्षा करते हैं। धर्म के संबंध में हम समझते हैं कि बुद्धि, अब आगे आ नहीं सकती; शंका का स्थान विश्वास को लेना चाहिए।
राजनीतिक सिद्धांत क्या है इसकी प्रकृति और महत्व पर चर्चा करें?राजनीतिक-सिद्धांत के अन्तर्गत राजनीतिक जीवन की विभिन्न अभिव्यक्तियों के अध्ययन के लिए उपयुक्त पद्धतियों का चयन और प्रयोग किया जाता है। सार रूप में कहा जाता है कि राजनीति-दर्शन का सरोकार तथ्यों, आदर्शों, मानकों और मूल्यों से है। राजनीतिक-सिद्धांत राजनीतिक-विज्ञान की सबसे अधिक सरल और सबसे अधिक कठिन घटनाओं में से एक है।
राजनीतिक सिद्धांत से आप क्या समझते हैं इसकी प्रकृति एवं महानवा का विस्तार से वर्णन करें?राजनीतिक सिद्धांत मानव समाज की राजनीतिक, संवैधानिक तथा वैधानिक प्रगति में सहायक होते हैं। इनके द्वारा नवीन तथ्यों का ज्ञान तथा आने वाली समस्याओं के संबंध में पूर्वानुमान करने में सहायता प्राप्त होती है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में राजनीतिक सिद्धांत और अधिक उपयोगी हैं।
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