अवसर लागत की क्या विशेषता है? - avasar laagat kee kya visheshata hai?

किसी भी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधन सीमित होते हैं हालांकि उनके वैकल्पिक प्रयोग अवश्य होते हैं। इन्हीं सीमित साधनों एवं वैकल्पिक प्रयोगों के चलते उत्पादक को इस बात का चुनाव करना पड़ता है कि वह किसी एक वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु का त्याग करने का निर्णय ले। 

अवसर लागत की क्या विशेषता है? - avasar laagat kee kya visheshata hai?
अवसर लागत क्या है? 

अवसर लागत क्या है? (What is Opportunity Cost in hindi)

उत्पादन के क्षेत्र में बात करें तो उत्पादन की प्रत्येक इकाई के लिए चाहे वह एक साधारण किसान हो, कोई फर्म हो, उद्योग हो अथवा सरकार ही क्यों न हो। कोई भी निर्णय लेते समय इन सभी को अवसर लागत पर विचार करना अत्यंत आवश्यक होता है।

उत्पादक जब किसी साधन विशेष का प्रयोग किसी वस्तु विशेष के उत्पादन के लिए करता है तब वह दूसरी वस्तु के उत्पादन का त्याग कर देता है, जिसका उत्पादन वह उस साधन विशेष से कर सकता था। इसका प्रमुख कारण यही है कि वह एक ही समय में उस साधन विशेष से दोनों वस्तुओं का उत्पादन एक साथ नहीं कर सकता। इस प्रकार साधन विशेष के वैकल्पिक प्रयोग के अवसर के त्याग को ही अर्थशास्त्र में अवसर लागत (Opportunity Cost) कहा जाता है।

अर्थात "अर्थव्यवस्था की दृष्टि से किसी एक वस्तु की अतिरिक्त मात्रा की अवसर लागत, दूसरी वस्तु की त्याग की गई मात्रा होती है।"

वास्तव में अवसर लागत का विचार साधनों की सीमितता से उत्पन्न चयन की समस्या पर आधारित है। जैसा कि हम जानते हैं आवश्यकताएं असीमित होती हैं जिनके लिए संतुष्टि के साधन सीमित होते हैं। इसीलिये अधिकांश साधनों का वैकल्पिक प्रयोग ही होता है।

आइये इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते हैं।मान लीजिए कोई ड्राइवर है जो टैक्सी, कार, ट्रेक्टर, जीप, बस, ट्रक, यहां तक कि बुलडोज़र भी चला सकता है। लेकिन आप उसे किसी एक समय में इन सभी कार्यों के लिए नियुक्त नहीं कर सकते। 

यानि कि अगर वह जीप चलाने के लिए नियुक्त किया जाता है तो निश्चित रूप से उसे बस (अन्य दूसरे विकल्पों) चलाने का अवसर त्याग करना होगा। अर्थात बस चलाने के अवसर का त्याग ही उसके लिए जीप चलाने के लिए अवसर लागत (Opportunity cost) कहलाएगी।

क्योंकि उसके साधन सीमित होते हैं। इसलिए कोई व्यक्ति A वस्तु प्राप्त करना चाहता है तो उसे वस्तु B को छोड़ना पड़ेगा। यानी कि एक आवश्यकता की संतुष्टि के लिए दूसरी आवश्यकता की संतुष्टि छोड़ना पड़ता है।

कोल के अनुसार- "एक कार्यं के चयन द्वारा विकल्प अवसर के त्याग का, मूल्य कार्य विशेष की विकल्प लागत या अवसर लागत है।" अवसर लागत को हम उत्पादन संभावना वक्र की सहायता से आसानी से समझ सकते हैं। आइये हम अवसर लागत की अवधारणा को उत्पादन संभावना वक्र की सहायता से समझने का प्रयास करेंगे।  

उत्पादन संभावना वक्र से अवसर लागत की व्याख्या (Production Possibility Curve Interpretation in hindi)

चलिए हम अवसर लागत की धारणा (avsar lagat ki dharna) को उत्पादन संभावना वक्र की सहायता से और भी सरलतम रूप में समझने का प्रयास करते हैं-

अर्थात रेखाचित्र द्वारा अवसर लागत की व्याख्या हम निम्नानुसार करेंगे ताकि आप अवसर लागत की सम्पूर्ण अवधारणा को भलीभाँति समझ सकें। लेकिन इसे समझने से पहले उत्पादन संभावना वक्र क्या है? (utpadan sambhavna vakra kya hai) यह जानना आवश्यक है। आइये हम उत्पादन संभावना वक्र के बारे में थोड़ा सा जानने का प्रयास करते हैं।

उत्पादन संभावना वक्र (Production Possibility Curve)- जिन देशों में उपजाऊ भूमि, खनिज संपदा, कुशल श्रमिक, तकनीक व पूँजी की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होती है। ऐसे देशों में वस्तुओं एवं सेवाओं की बड़ी मात्रा उत्पादित करने की अपार संभावनाएं होती है।

किन्तु जिन देशों में उपरोक्त साधनों की मात्रा कम होती है अथवा सीमित होती है उन देशों में वस्तुओं को उत्पादित करने की संभावनाएं ना के बराबर होती हैं। लेकिन ऐसे देश इन्हीं सीमित साधनों के विभिन्न संयोगों (अनुपातों) का प्रयोग करके वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं।

ऐसे में यदि किसी देश को उपभोग वस्तुओं का अधिक मात्रा में उत्पादन करना हो तो उसे अन्य पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन को त्यागना होगा या मात्रा में कमी करनी होगी। इसी तरह यदि उसे पूँजीगत या विलासिता पूर्ण वस्तुओं की बड़ी मात्रा उत्पादित करनी हो तो उसे आधारभूत आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन का त्याग या कमी करनी होगी।

इस प्रकार उस देश को वैकल्पिक रूप से अपने साधनों का प्रयोग विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए करना होगा। ऐसे ही वैकल्पिक संयोगों को उत्पादन संभावना वक्र में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाता है। जैसे कि हम आपको निम्न संभावना वक्र तालिका में कुछ संयोगों को प्रदर्शित कर रहे हैं ताकि आप इन संयोगों को समझ सकें।

अवसर लागत की क्या विशेषता है? - avasar laagat kee kya visheshata hai?
उत्पादन संभावना तालिका एवं विभिन्न संयोग

इस तालिका में आप देख सकते हैं कि किस प्रकार कोई देश विभिन्न संयोगों में वस्तुओं का उत्पादन कर सकता है। इन विभिन्न संयोगों में कुछ वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाता है तो कुछ वस्तुओं के उत्पादन में कमी अथवा त्याग करता है। उपरोक्त तालिका में X व Y वस्तु के उत्पादन संबंधी 6 संयोग दिए गए हैं। इन विभिन्न संयोगों में से किसी भी संयोग के अंतर्गत एक देश आवश्यकतानुसार वस्तु का उत्पादन कर सकता है।

यदि वह A संयोग का चुनाव करता है तब वह X वस्तु की 25 इकाइयाँ एवं Y वस्तु की 0 (शून्य) इकाइयाँ उत्पादित करेगा। इसी तरह यदि वह आखिर के F संयोग का चुनाव करता है तब X वस्तु की शून्य इकाइयाँ और Y वस्तु की 160 इकाइयों का उत्पादन करना चाहेगा। उत्पादन संभावनाओं के ये दोनों ही चरम स्थितियां कहलाती हैं। यानी कि कोई देश संयोगों A और F के बीच X और Y वस्तुओं की विभिन्न मात्राओं का उत्पादन करता है। वैसे इन विभिन्न संयोगों में से किसी संयोग विशेष के चुनाव की स्थिति, माँग की दशा पर भी निर्भर करती है। 

उत्पादन संभावना तालिका की सहायता से आप निम्न रूप से उत्पादन संभावना वक्र पर इन संयोगों का चित्र रूप में प्रदर्शन देख सकते हैं।

उत्पादन संभावना वक्र का चित्रण (Utpadan sambhavna vakra ka chitra)  

अवसर लागत की क्या विशेषता है? - avasar laagat kee kya visheshata hai?
उत्पादन संभावना वक्र में विभिन्न संयोगों का प्रदर्शन

उत्पादन संभावना वक्र पर आप देख पा रहे होंगे कि प्रत्येक बिंदु दो वस्तुओं की उन विभिन्न मात्राओं के संयोगों को प्रदर्शित कर रहा है जिन्हें कोई देश अपने उपलब्ध सीमित साधनों का प्रयोग करते हुए उत्पादन कर सकता है। 

उपरोक्त उत्पादन संभावना वक्र से निम्न बातें स्पष्ट होती हैं-

(1) इस चित्र में OX आधार रेखा में Y-वस्तु की मात्रा को एवं OY रेखा में X-वस्तु की मात्राओं को दर्शाया गया है।

(2) AF वक्र जहां उत्पादन संभावना वक्र है। इस वक्र में स्थित ABCDEF वे बिंदु हैं जो यह दर्शाते हैं कि कोई भी देश अपने सीमित साधनों का कुशलतम प्रयोग करके X और Y वस्तुओं की कितनी-कितनी मात्राएँ उत्पादित कर सकता है।

(3) यदि कोई देश अपने सभी साधनों को X-वस्तु के उत्पादन में लगा दे तो वह OA मात्रा का उत्पादन करेगा जहाँ Y-वस्तु की मात्रा 0 (शून्य) होगी।

(4) इसके विपरीत यदि वह देश अपने सभी सीमित साधनों का प्रयोग Y-वस्तु के उत्पादन पर लगा दे। तब वह Y-वस्तु की OF मात्रा का उत्पादन करेगा जबकि X-वस्तु की मात्रा 0 (शून्य) होगी।

(5) कोई देश AF उत्पादन संभावना वक्र के अंतर्गत किसी अन्य संयोग जैसे BCD या E का चुनाव कर X व Y वस्तुओं का उत्पादन कर सकता है।

उत्पादन संभावना वक्र से संबंधित उक्त बिंदुओं के आधार पर हम संक्षिप्त रूप में यह कह सकते हैं कि- "उत्पादन संभावना वक्र वह सीमा है जिसके अंतर्गत कोई देश अपने साधनों का प्रयोग करके दोनों ही वस्तुओं (X और Y) के विभिन्न संयोगों का उत्पादन कर सकता है।"

वह चाहे भी तो इस वक्र से बाहर के किसी भी बिंदु जैसे- K पर वह X और Y वस्तु की किसी भी मात्रा का उत्पादन नहीं कर सकता। क्योंकि वह बिंदु उसके उपलब्ध साधनों की मात्रा के प्रयोग एवं देश में उपलब्ध तकनीक की सीमा से बाहर है।

उत्पादन संभावना वक्र की मान्यताएं (Belief of Production Possibility Curve in hindi)

अवसर लागत की धारणा (avsar lagat ki dharna) को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट करने से पहले निम्न मान्यताओं को आधार माना जाता है-

(1) निश्चित समयावधि में उत्पादन के साधनों की मात्रा निश्चित मानी जाती है।

(2) दी हुई अर्थव्यवस्था में केवल दो ही वस्तुएँ होती हैं जिन्हें उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है।

(3) दी हुई अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार एवं पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति निर्मित मानी जाती है।

(4) अर्थव्यवस्था में उपलब्ध उत्पादन के साधनों की मात्राएवं किस्म स्थिर हैं। उत्पादन के साधनों की मात्रा बढ़ जाने पर इनकी क़िस्म में सुधार हो जाता है। फलस्वरूप संभावना वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है। यानी कि नये उत्पादन सम्भावना वक्र से दोनों ही वस्तुओं का अधिक उत्पादन किया जा सकता है।

(5) तकनीकी ज्ञान का स्तर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में प्रयुक्त होता है। तकनीकी ज्ञान के स्तर में बढ़ोत्तरी के साथ उत्पादन संभावना वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है। अर्थात नये संभावना वक्र की सहायता से दोनों ही वस्तुओं का अधिक उत्पादन किया जा सकता है।

(6) उत्पादन के साधनों का प्रयोग पूर्ण कुशलता के साथ किया जाए इस बात का ध्यान रखा जाता है। 

उपरोक्त बिंदुओं में आपने जाना कि &lt;b&gt;उत्पादन संभावना वक्र की मान्यता क्या है? &lt;/b&gt;सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों और अपनी आवश्यकताओं पर नज़र डालें तो हम देखते हैं कि &lt;b&gt;जब किसी विशिष्ट साधन को एक वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है तो वह साधन किसी अन्य वस्तु के उत्पादन के लिए उपयोग में लाये जाने का अवसर खो देता है।&lt;/b&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;&lt;b&gt;&lt;br&gt;&lt;/b&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;●&amp;nbsp;&lt;a href="https://www.studyboosting.com/2021/09/meaning-characteristics-and-types-of-market-in-economics-in-hindi.html" target="_blank"&gt;बाजार किसे कहते हैं? बाज़ार की परिभाषा, विशेषताएँ और उसके प्रकार।&lt;/a&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;&lt;br&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;●&amp;nbsp;&lt;a href="https://www.studyboosting.com/2022/06/what-is-market-price-in-economics-in-hindi.html" target="_blank"&gt;बाज़ार मूल्य किसे&amp;nbsp;कहते हैं? अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ। बाज़ार मूल्य का&amp;nbsp;निर्धारण कैसे होता है?&amp;nbsp;&lt;/a&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;&lt;br&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;मुद्रा के रूप में यदि अवसर लागत को समझें तो अवसर लागत को हस्तांतरण आय भी कह सकते हैं। "&lt;b&gt;हस्तांतरण आय का अर्थ &lt;/b&gt;एक&amp;nbsp;&lt;/span&gt;&lt;span style="font-size:medium"&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta"&gt;ऐसी&amp;nbsp;&lt;/span&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta"&gt;कीमत से है जो उस साधन को उस उद्योग में बनाये रखने के लिए आवश्यक होती है।"&lt;/span&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;&lt;br&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;आप निम्न रेखाचित्र के माध्यम से बड़ी ही आसानी से अवसर लागत को समझ सकेंगे। तो आइये निम्न &lt;b&gt;उत्पादन संभावना रेखा &lt;/b&gt;के माध्यम से अवसर लागत को&amp;nbsp;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;समझने का प्रयास करते हैं-&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:large"&gt;&lt;br&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;div class="separator" style="clear:both;text-align:center"&gt;&lt;br&gt;&lt;/div&gt;&lt;div class="separator" style="clear:both;text-align:center"&gt;&lt;a target="_blank" href="https://1.bp.blogspot.com/-CNS6y_V7d6E/YBfMfEDyvnI/AAAAAAAAB00/CYAiVa5urecmwzslUeAr5HAWIIFdWv9MACLcBGAsYHQ/s573/PicsArt_02-01-03.jpg" style="margin-left:1em;margin-right:1em"&gt;&lt;img border="0" data-original-height="573" data-original-width="573" height="265" src="https://1.bp.blogspot.com/-CNS6y_V7d6E/YBfMfEDyvnI/AAAAAAAAB00/CYAiVa5urecmwzslUeAr5HAWIIFdWv9MACLcBGAsYHQ/w394-h265/PicsArt_02-01-03.jpg" width="394"&gt;&lt;/a&gt;&lt;/div&gt;&lt;div class="separator" style="clear:both;text-align:justify"&gt;&lt;br&gt;&lt;/div&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;उपरोक्त रेखाचित्र में AB '&lt;b&gt;उत्पादन संभावना रेखा&lt;/b&gt;' है जो X और Y वस्तु के उन विभिन्न संयोगों को बताता है। जिन्हें अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों द्वारा उत्पादित किया जा सकता है।&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt;&lt;br&gt;&lt;/span&gt;&lt;/div&gt;&lt;div&gt;&lt;span style="font-family:Amethysta;font-size:medium"&gt; &lt;script async crossorigin="anonymous" src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-5963640930187068"&gt; <ins class="adsbygoogle" data-ad-client="ca-pub-5963640930187068" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1498229987" data-full-width-responsive="true" style="display:block"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); संभावना रेखा AB पर स्थित N बिंदु से यह प्रदर्शित होता है कि किसी निश्चित समय समयावधि में X-वस्तु की OM और Y-वस्तु की OP मात्रा का उत्पादन किया जा सकता है।

इसी प्रकार N1 बिंदु से यह प्रदर्शित होता है कि उस अर्थव्यवस्था में उस समय विशेष में X-वस्तु की OM1 और Y-वस्तु की OP1 मात्रा का उत्पादन किया जा सकता है।

अब मान लीजिए कि यदि कोई अर्थव्यवस्था में उत्पादन का संयोग N से N1 की ओर बदलता है तो इसका अर्थ होगा कि X-वस्तु की MM1 की अतिरिक्त मात्रा का उत्पादन करने के लिए Y-वस्तु की PP1 मात्रा के उत्पादन को त्यागना होगा।

अतः हम स्पष्टतया यह कह सकते हैं कि X-वस्तु की MM1 मात्रा की अवसर लागत, Y-वस्तु की PP1 मात्रा होगी। जिसका कि त्याग कर दिया गया है। इस प्रकार आप उपरोक्त संभावना रेखा के माध्यम से अवसर लागत की अवधारणा को भलीभाँति जान सकते हैं।

इसका अतिरिक्त आशय यह भी हुआ कि "X-वस्तु की MM1 मात्रा का मूल्य कम से कम Y-वस्तु के PP1 मात्रा के मूल्य के समकक्ष (बराबर) अवश्य की होना चाहिए अन्यथा इन साधनों का प्रयोग स्वतः ही X-वस्तु के उत्पादन से Y-वस्तु के उत्पादन में हस्तांतरित हो जाएगा।

अवसर लागत का महत्व (Importance of Opportunity Cost in hindi)

अर्थशास्त्र में अर्थात किसी भी अर्थव्यवस्था में अवसर लागत का सिद्धांत अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आइये हम कुछ प्रमुख महत्व (avsar lagat ka mahatva in hindi) को जानते है-

(1) उत्पत्ति के साधनों के वितरण में सहायक-

अवसर लागत के इस सिद्धांत का प्रयोग उत्पादन के विभिन्न साधनों के वितरण में प्रमुखता से किया जाता है। किसी भी साधन को उपयोग करने के लिए यह माना जाता है कि उस साधन को कम से कम उतना मूल्य अवश्य मिलना चाहिए जितना कि उसे अन्य वैकल्पिक प्रयोगों में मिलना संभव हो सकता था। इस दुविधा का निराकरण अवसर लागत बड़ी ही आसानी से कर देता है।

(2) लागत में परिवर्तन की स्पष्ट व्याख्या-

किसी भी उद्योग की लागत को किस सीमा तक अपने उत्पादन के साथ परिवर्तन कर सकते हैं? अवसर लागत सिद्धांत इस तथ्य को स्पष्ट कर देता है। उदाहरणार्थः कोई उद्योग यदि किन्ही विशेष साधनों को अल्पकाल में ही आकर्षित करके अपने उत्पादन को बढ़ाना चाहता है तब तो उसे उन विशेष साधनों की ऊँची कीमतें देनी ही होगी। परिणाम स्वरूप उद्योग की औसत व सीमांत लागतें बढ़ जायेंगी।

(3) लगान का आंकलन करने में सहायक-

लगान के आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार बात करें तो लगान को अवसर लागत के ऊपर के अतिरेक के रूप में माना जा सकता है। उदाहरणार्थः किसी साधन का पुरस्कार ₹ 2000 है और उसकी अवसर लागत ₹ 1500 है। तो साधन का लगान ₹2000-₹1500=₹500 होगा। इस प्रकार हम अवसर लागत की सहायता से साधन का लगान ज्ञात कर सकते हैं।

अवसर लागत की सीमाएँ (Opportunity Cost Limitations in hindi)

अवसर लागत की आलोचनाएँ (avsar lagat ki aalochanayen) अथवा सीमाएँ avsar lagat ki simaye प्रमुुुख रूप से निम्नलिखित हैं-

(1) ऐसे विशिष्ट साधन जिन्हें केवल एक ही प्रयोग में लाया जा सकता हो। ऐसे साधनों के साथ अवसर लागत का विचार निरर्थक साबित होता है। क्योंकि इन साधनों की अवसर लागत शून्य होती है।

(2) अवसर लागत के विचार से यह मान लिया जाता है कि उत्पत्ति के साधन की कोई रुचि नहीं होती, उनमें पूर्ण गतिशीलता होती है। चूंकि वास्तव में यह मानना ग़लत है। किसी भी साधन की किसी कार्य विशेष के प्रति अपनी रुचि भी हो सकती है। अतः उसकी हस्तांतरण करने की लागत उसकी वास्तविक अवसर लागत से अधिक होनी चाहिए।

(3) अवसर लागत का विचार पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता पर आधारित है। लेकिन असल में देखा जाए तो वास्तविक जीवन में यह संभव ही नहीं है। अतः ऐसी स्थिति में अवसर लागत का विचार पूर्णतः लागू होना असंभव है।

उम्मीद करते हैं आपने इस अंक में अवसर लागत क्या है? आपने अच्छी तरह समझ लिया होगा। हमने संभावना वक्र की सहायता से अवसर लागत की व्याख्या करने का भरसक प्रयास किया है। आशा करते हैैं हमारे ये अंक अवश्य ही आपके लिए मददगार साबित हो रहे होंगे।

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अवसर लागत क्या है इसकी विशेषताएं क्या हैं?

अवसर लागत की परिभाषा बताइए ✍️किसी साधन की अवसर लागत से अभिप्राय उसके दूसरे सर्वश्रेष्ठ विकल्प मूल्य के त्याग से हैं। ✍️अर्थव्यवस्था की दृष्टि से एक वस्तु की अतिरिक्त मात्रा की अवसर लागत दूसरी वस्तु की त्याग की गई मात्रा होती है। ✍️अवसर लागत किसी भी विकल्प का त्याग ना होकर दूसरे सर्वश्रेष्ठ विकल्प का त्याग है।

अवसर लागत क्यों महत्वपूर्ण है?

अवसर लागत का महत्व (Importance of Opportunity Cost in hindi) किसी भी साधन को उपयोग करने के लिए यह माना जाता है कि उस साधन को कम से कम उतना मूल्य अवश्य मिलना चाहिए जितना कि उसे अन्य वैकल्पिक प्रयोगों में मिलना संभव हो सकता था। इस दुविधा का निराकरण अवसर लागत बड़ी ही आसानी से कर देता है।

अवसर लागत का दूसरा नाम क्या है?

Expert-Verified Answer. अवसर लागत का वैकल्पिक नाम 'आर्थिक लागत' होता है।

अवसर लागत सिद्धांत का जनक कौन है?

(1) वास्तविक लागत की विचारधारा पर आधारित रिकार्डो के तुलनात्मक लागत सिद्धान्त को अपर्याप्त और अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित बताते हुए हैबरलर ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अवसर लागत सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।