नाच Show एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ। जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ वह दो खंभों के बीच है। रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ वह एक खंभे से दूसरे खंभे तक का नाच है। दो खंभों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ उस पर तीखी रोशनी पड़ती है जिसमें लोग मेरा नाच देखते हैं। न मुझे देखते हैं जो नाचता है न रस्सी को जिस पर मैं नाचता हूँ न खंभों को जिस पर रस्सी तनी है न रोशनी को ही जिसमें नाच दीखता है : लोग सिर्फ़ नाच देखते हैं। पर मैं जो नाचता हूँ जो जिस रस्सी पर नाचता हूँ जो जिन खंभों के बीच है जिस पर जो रोशनी पड़ती है उस रोशनी में उन खंभों के बीच उस रस्सी पर असल में मैं नाचता नहीं हूँ मैं केवल उस खंभे के इस खंभे तक दौड़ता हूँ कि इस या उस खंभे से रस्सी खोल दूँ कि तनाव चुके और ढील में मुझे छुट्टी हो जाए— पर तनाव ढीलता नहीं और मैं इस खंभे से उस खंभे तक दौड़ता हूँ पर तनाव वैसा बना ही रहता है सब कुछ वैसा ही बना रहता है और वही मेरा नाच है जिसे सब देखते हैं मुझे नहीं रस्सी को नहीं खंभे नहीं रोशनी नहीं तनाव भी नहीं देखते हैं—नाच! स्रोत :
Additional information availableClick on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher. Don’t remind me again OKAY rare Unpublished contentThis ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left. Don’t remind me again OKAY एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ। मार्च, 1976 नाच कविता में लोग क्या देखते है?वह दो खंभों के बीच है। वह एक खंभे से दूसरे खंभे तक का नाच है। जिसमें लोग मेरा नाच देखते हैं। लोग सिर्फ़ नाच देखते हैं।
नाच कविता के कवि कौन है * *?नाच | अज्ञेय - कविता - पोषम पा
नाच यह रचना किसकी है?नाच ( Naach ) : अज्ञेय
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