रामायण में श्रीराम और रावण के माध्यम से बताया गया कि हमें धर्म के अनुसार ही कर्म करना चाहिए। अधर्म करने वाले लोगों का पतन हो जाता है। उज्जैन के श्रीराम कथाकार और पं. मनीष शर्मा के अनुसार अगर कोई व्यक्ति रोज रामायण का पाठ करता है तो उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और नकारात्मकता दूर होती है। रामायण काफी बड़ी है और इसका पाठ रोज कर पाना बहुत मुश्किल है। ऐसी स्थिति में कम समय होने पर एक श्लोक वाली रामायण का जाप किया जा सकता है। Show
रोज सुबह करना चाहिए इस मंत्र का जाप एक श्लोकी रामायण का जाप रोज सुबह करना चाहिए। सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद घर के मंदिर में पूजा करें। इसके बाद भगवान के सामने आसन पर बैठकर बोलना चाहिए। मंत्र जाप कम से कम 108 बार करें। ज्यादा समय न हो तो 11 या 21 बार भी मंत्र जाप कर सकते हैं। इस मंत्र के जाप से सभी पाप खत्म होते हैं और जीवन की परेशानियों से लड़ने शक्ति मिल सकती है। ये है एक श्लोकी रामायण आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।। बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।। ये है इस मंत्र का सरल अर्थ - श्रीराम वनवास गए, वहां स्वर्ण मृग का वध किया। वैदेही यानी सीताजी का रावण ने हरण कर लिया, रावण के हाथों जटायु मारा गया। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंकापुरी का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया। ये रामायण की संक्षिप्त कहानी है। सतना। हिन्दू धर्म में भगवान श्रीराम से संबंधित अनेक ग्रंथों व पुराणों की रजना की गई है। जिसमें जन्म, विवाह, वनवास, अयोध्या आगमन, रामराज्य आदि के बारे में वर्णन किया गया है। लेकिन भक्त उन सभी में महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण को सबसे सटीक मानते है। वहीं गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस (हिन्दी संस्करण) वर्तमान समय में सबसे ज्यादा प्रचलित है। आज की भाग-दौड़ वाली जिंदगी में किसी के पास भी इतना समय नहीं है कि वह इन ग्रंथों को पढ़ सके। मैहर के ज्योतिषाचार्य पं. मोहनलाल द्विवेदी के अनुसार, ऐसी स्थिति में नीचे लिखे एक मंत्र का रोज विधि-विधान से जाप करने से संपूर्ण रामायण पढऩे का फल मिल सकता है। इस मंत्र को एक श्लोकी रामायण भी कहते हैं। इस मंत्र के जाप से सभी तरह की परेशानियां खत्म हो जाती हैं। भक्तों के घर में खुशहाली आती है। भगवान श्रीराम श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान भी देते है। वाल्मीकि रामायण का पाठ अनेक प्रकार की विधियों से किया जाता है। श्रीरामसेवाग्रन्थ, अनुष्ठानप्रकाश, स्कान्दोक्त रामायण-माहात्म्य, बृहद्धर्मपुराण तथा शाङ्कर, रामानुज, मध्व, रामानन्द आदि विभिन्न सम्प्रदायोंकी अलग-अलग विधियाँ हैं, यद्यपि उनका अन्तर साधारण है। इसी प्रकार इसके सकाम और निष्काम अनुष्ठानों के भी भेद हैं। सबपर विस्तृत विचार यहाँ सम्भव नहीं। वाल्मीकीयके परम प्रसिद्ध नवाह्न-पारायणकी ही विधि यहाँ लिखी जा रही है। संपूर्ण रामायण पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – हिंदी में रामायण वाल्मीकि रामायण का पाठ करने की सबसे प्रचलित विधिचैत्र, माघ तथा कार्तिक शुक्ल पञ्चमीसे त्रयोदशी तक इसके नवाह्न-पारायणकी विधि है१। किसी पुण्यक्षेत्र, पवित्र तीर्थ, मन्दिरमें या अपने घरपर ही भगवान् विष्णु तथा तुलसीके संनिधानमें वाल्मीकि रामायण का पाठ करना चाहिये। एतदर्थ यथासम्भव कथा-स्थानकी भूमिको संशोधन, मार्जन, लेपनादि संस्कारोंसे संस्कृतकर कदली-स्तम्भ तथा ध्वजा-पताका-वितानादिसे मण्डित कर देना चाहिये। मण्डपका मान १६ हाथ लंबा-चौड़ा हो और उसके बीचमें सर्वतोभद्रसे युक्त एक वेदी हो। अन्य वेदियाँ, कुण्ड तथा स्थण्डिल आदि भी हों। मण्डपके दक्षिण-पश्चिम भागमें वक्ता (व्यास) एवं श्रोताका आसन हो। व्यासासनके आगे पुस्तकका आसन होना चाहिये। श्रोताओंका आसन विस्तृत हो। व्यास का आसन श्रोतासे तथा पुस्तकका आसन वक्तासे भी ऊँचा होना चाहिये२। फिर प्रायश्चित्त तथा नित्यकृत्य करके भगवान् श्रीरामकी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिये। अथवा पुस्तकपर ही सपरिकर-सपरिच्छद श्रीसीतारामजीका अर्थात् भगवान् श्रीरामचन्द्र, भगवती सीताजी, लक्ष्मणजी, भरतजी, शत्रुघ्नजी, श्रीहनुमान्जी आदिका आवाहन करना चाहिये। तत्पश्चात् समस्त उपकरणोंसे अलंकृत, पञ्चपल्लवादिसे युक्त कलश स्थापितकर स्वस्त्ययनपूर्वक गणपतिपूजन, बटुक, क्षेत्रपाल, योगिनी, मातृका, नवग्रह, तुलसी, लोकपाल, दिक्पाल आदिका पूजन तथा नान्दीश्राद्ध करके सपरिकर-सपरिच्छद भगवान् रामकी पूजा करे। तदनन्तर काल-तिथि-गोत्र-नाम आदि बोलकर— ॐ भूर्भुव: स्वरोम्। ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वकं श्रीसीता-रामप्रीत्यर्थं श्रीसीतालक्ष्मणभरतशत्रुघ्नहनुमत्समेतश्रीरामचन्द्र-प्रसादसिद्धार्थं च श्रीरामचन्द्रप्रसादेन सर्वाभीष्टसिद्धार्थं श्रीराम-चन्द्रपूजनमहं करिष्ये। श्रीवाल्मीकीयरामायणस्य पारायणं च करिष्ये, तदङ्गभूतं कलशस्थापनं स्वस्त्ययनपाठं गणपतिपूजनं वटुकक्षेत्रपालयोगिनीमातृकानवग्रहतुलसीलोकपालदिक्पालादि-पूजनं चाहं करिष्ये। —इस प्रकार संकल्प करनेके बाद पूजन करे। ॐ अच्युताय नम:, ॐ अनन्ताय नम:, ॐ गोविन्दाय नम:, ॐ नारायणाय नम:, ॐ मधुसूदनाय नम:, ॐ हृषीकेशाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ त्रिविक्रमाय नम:, ॐ दामोदराय नम:, ॐ मुकुन्दाय नम:, ॐ वामनाय नम:, ॐ पद्मनाभाय नम:, ॐ केशवाय नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ श्रीधराय नम:, ॐ श्रीसीतारामाभ्यां नम:। इस प्रकार नमस्कार करके निम्न प्रकारसे पूजा करे— श्रीसीतालक्ष्मणभरतशत्रुघ्नहनुमत्समेतं श्रीरामचन्द्रं ध्यायामि—भगवान् राम का ध्यान करे। ,, आवाहयामि—आवाहन करे। श्रीसीतालक्ष्मणभरतशत्रुघ्नहनुमत्समेताय श्रीरामचन्द्राय नम:—रन्तसिंहासनं समर्पयामि—सिंहासन अर्पण करे। ,, पाद्यं समर्पयामि—पाद्य दे। ,, अर्घ्यं समर्पयामि—अर्घ्य दे। ,, स्नानीयं समर्पयामि—स्नान करावे। ,, आचमनीयं समर्पयामि—आचमन करावे। ,, वस्त्रं समर्पयामि—वस्त्र अर्पण करे। ,, यज्ञोपवीताभरणं समर्पयामि—यज्ञोपवीत-आभूषण दे। ,, गन्धान् समर्पयामि—चन्दन-कुङ्कुम लगावे। ,, अक्षतान् समर्पयामि—चावल चढ़ावे। ,, पुष्पाणि समर्पयामि—पुष्पमाला दे। ,, धूपमाघ्रापयामि—धूप दे। ,, दीपं दर्शयामि—दीपक दिखावे। ,, नैवेद्यं फलानि च समर्पयामि—नैवेद्य और फल अर्पण करे। ,, ताम्बूलं समर्पयामि—पान दे। ,, कर्पूरनीराजनं समर्पयामि—आरती करे। ,, छत्रचामरादि समर्पयामि—छत्र-चँवरादि अर्पण करे। ,, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि—पुष्पाञ्जलि अर्पण करे। ,, प्रदक्षिणानमस्कारान् समर्पयामि—प्रदक्षिणा और नमस्कार करे। तत्पश्चात् निम्न प्रकारसे पञ्चोपचारसे श्री रामायण-ग्रन्थकी पूजा करे— ॐ सदा श्रवणमात्रेण पापिनां सद्गतिप्रदे। —इति गन्धं समर्पयामि। ॐ बालादिसप्तकाण्डेन सर्वलोकसुखप्रद। —इति पुष्पाणि पुष्पमालां च समर्पयामि। ॐ यस्यैकश्लोकपाठस्य फलं सर्वफलाधिकम्। —इति धूपमाघ्रापयामि। ॐ यस्य लोके प्रणेतारो वाल्मीक्यादिमहर्षय:। —इति दीपं दर्शयामि। ॐ श्रूयते ब्रह्मणो लोके शतकोटिप्रविस्तरम्। —इति नैवेद्यं समर्पयामि। पूजा करनेके बाद कर्पूरकी आरती करके चार बार प्रदक्षिणा कर पुष्पाञ्जलि अर्पण करे। फिर साष्टाङ्ग प्रणाम कर इस प्रकार नमस्कार करे— वाल्मीकिगिरिसम्भूता रामसागरगामिनी। फिर देवता, ब्राह्मणादिकी पूजा कर पाठका संकल्प करके ऋष्यादिन्यास करे। अनुष्ठानप्रकाशके अनुसार कामनाभेदसे यदि पूरी रामायण का पाठ न हो सके तो अलग-अलग काण्डों के अनुष्ठानकी भी विधि है। जैसे पुत्रकी कामनावाला बालकाण्ड पढ़े, लक्ष्मीकी इच्छावाला अयोध्याकाण्ड पढ़े। इसी प्रकार नष्टराज्यकी प्राप्तिकी इच्छावालोंको किष्किन्धाकाण्डका, सभी कामनाओंकी इच्छावालोंको सुन्दरकाण्डका और शत्रुनाशकी कामनावालोंको लङ्काकाण्डका पाठ करना चाहिये। ‘बृहद्धर्मपुराण’ के अनुसार इनका अन्य भी सकाम उपयोग है। वह तथा उसके न्यासादिका प्रकार आगे लिखा जायगा। ॐ अस्य श्रीवाल्मीकिरामायणमहामन्त्रस्य भगवान् वाल्मीकिर्ऋरुषि:। अनुष्टुप् छन्द:। श्रीराम: परमात्मा देवता। अभयं सर्वभूतेभ्य इति बीजम्। अङ्गुल्यग्रेण तान् हन्यामिति शक्ति:। एतदस्त्रबलं दिव्यमिति कीलकम्। भगवान्नारायणो देव इति तत्त्वम्। धर्मात्मा सत्यसंधश्चेत्यस्त्रम्। पुरुषार्थचतुष्टयसिद्धार्थं पाठे विनियोग:। ॐ श्रीं रां आपदामपहर्तारमित्यङ्गुष्ठाभ्यां नम:। इन्हीं मन्त्रोंसे इसी प्रकार हृदयादि३ न्यास करे। फिर— ब्रह्मा स्वयम्भूर्भगवान् देवाश्चैव तपस्विन:। —इति दिग्बन्ध:। यों कहकर चारों ओर हाथ घुमाकर अन्तमें फिर इस प्रकार ध्यान करे— वामे भूमिसुता पुरस्तु हनुमान् पश्चात् सुमित्रासुत:। यह सम्पुटका मन्त्र है। इससे सम्पुटित पाठ करनेसे समस्त मन:कामनाओंकी सिद्धि होती है। फिर४ निम्न प्रकारसे मङ्गलाचरण करके पाठ आरम्भ करना चाहिये— गणपति का ध्यानशुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। गुरु की वन्दनागुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर:। सरस्वती का स्मरणदोर्भिर्युक्ता चतुर्भि: स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना। वाल्मीकि जी की वन्दनाकूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्। हनुमान जी को नमस्कारगोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्। श्रीराम के ध्यानका क्रमवैदेहीसहितं सुरद्रुमतले हैमे महामण्डपे श्री राम परिकर को नमस्काररामं रामानुजं सीतां भरतं भरतानुजम्। रामायण को नमस्कारचरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्। रामायण का पाठ आरम्भ करने के बाद अध्यायके बीचमें रुकना नहीं चाहिये। रुक जानेपर फिर उसी अध्यायको आरम्भसे पढ़ना चाहिये। मध्यम स्वरसे, स्पष्ट उच्चारण करते हुए श्रद्धा तथा प्रेम से रामायण का पाठ करना चाहिये। गीत गाकर, सिर हिलाकर, जल्दबाजीसे तथा बिना अर्थ समझे पाठ करना ठीक नहीं है। संध्या-समय निम्नलिखित स्थलोंपर प्रतिदिन विश्राम करते जाना चाहिये। प्रथम दिन अयोध्याकाण्डके ६ठे सर्गकी समाप्तिपर द्वितीय ,, ,, ८०वें ,, ,, द्वितीय ,, पञ्चम ,,सुन्दरकाण्डके ४७ वें ,, ,, पञ्चम ,, इसके अन्य भी विश्रामस्थल हैं। एक पारायण-क्रम ऐसा भी है, जिसमें उत्तर काण्ड का पाठ नहीं किया जाता। उसके विश्रामस्थल क्रमश: इस प्रकार हैं— प्रथम दिवस बालकाण्डके ७७ वेंसर्गकी समाप्तिपर प्रतिदिन रामायण का पाठ समाप्त होते समय निम्नाङ्कित श्लोकों के द्वारा मङ्गलाशासन करके पारायण पूरा करें। स्वस्ति प्रजाभ्य: परिपालयन्तां अलग-अलग काण्डों के सकाम६ पाठका ऋष्यादिन्यास इस प्रकार है— बालकाण्ड का विनियोगॐ अस्य श्रीबालकाण्डमहामन्त्रस्य ऋष्यश्रृङ्ग ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। दाशरथि: परमात्मा देवता। रां बीजम्। नम: शक्ति:। रामायेति कीलकम्। श्रीरामप्रीत्यर्थे बालकाण्डपारायणे विनियोग:। ऋष्यादिन्यासॐ ऋष्यश्रृङ्गऋषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ दाशरथिपरमात्मदेवतायै नम: हृदि। ॐ रां बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ रामाय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे। करन्यासॐ सुप्रसन्नाय अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ शान्तमनसे तर्जनीभ्यां नम:। ॐ सत्यसन्धाय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ जितेन्द्रियाय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ धर्मज्ञाय नयसारज्ञाय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ राज्ञे दाशरथये जयिने करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। इन्हीं मन्त्रोंसे पूर्वोक्त प्रकारसे हृदयादि न्यास कर निम्न प्रकारसे ध्यान करे— श्रीराममाश्रितजनामरभूरुहेश- इस मन्त्रसे श्रीरामकी पूजा करे और इसीसे अथवा श्रीराममन्त्रसे सम्पुटित कर बालकाण्डका पाठ करे। इससे ग्रहशान्ति, र्इति-भीति-शान्ति तथा पुत्रप्राप्ति सम्भव है। अयोध्या-काण्ड का विनियोग तथा ऋष्यादिन्यासॐ अस्य श्रीअयोध्याकाण्डमहामन्त्रस्य भगवान् वसिष्ठ ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। भरतो दाशरथि: परमात्मा देवता। भं बीजम्। नम: शक्ति:। भरतायेति कीलकम्। मम भरतप्रसादसिद्धार्थमयोध्याकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ वसिष्ठऋषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ दाशरथिभरतपरमात्मदेवतायै नम: हृदि। ॐ भं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ भरताय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे। करन्यासॐ भरताय नमस्तस्मै—अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ सारज्ञाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ महात्मने मध्यमाभ्यां नम:। ॐ तापसाय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ अतिशान्ताय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ शत्रुघ्नसहिताय च करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। फिर इसी प्रकार हृदयादिका भी न्यास करके निम्नलिखित श्लोकानुसार ध्यान करना चाहिये— श्रीरामपादद्वयपादुकान्तसंसक्तचित्तं कमलायताक्षम्। भरताय नमस्तस्मै सारज्ञाय महात्मने। इस मन्त्रसे पञ्चोपचारद्वारा भरतजीकी पूजा करे। चाहे तो इसी मन्त्रसे लक्ष्मी-प्राप्तिकी इच्छासे अयोध्याकाण्डका सम्पुटित पाठ करे। अरण्य-काण्ड का विनियोग एवं ऋष्यादिन्यासॐ अस्य श्रीमदरण्यकाण्डमहामन्त्रस्य भगवानृषि:। अनुष्टुप् छन्द:। श्रीरामो दाशरथि: परमात्मा महेन्द्रो देवता। र्इं बीजम्। नम: शक्ति:। इन्द्रायेति कीलकम्। इन्द्रप्रसादसिद्धार्थे अरण्यकाण्डपारायणे जपे विनियोग:। ॐ भगवदृषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ दाशरथिश्रीराम-परमात्ममहेन्द्रदेवतायै नम: हृदि। ॐ र्इं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ इन्द्राय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे। करन्यासॐ सहस्रनयनाय अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ देवाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ सर्वदेवनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ दिव्यवज्रधराय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ महेन्द्राय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ शचीपतये करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस श्लोकसे ध्यान करना चाहिये। शचीपतिं सर्वसुरेशवन्द्यं सर्वार्तिहर्तारमचिन्त्यशक्तिम्। फिर— सहस्रनयनं देवं सर्वदेवनमस्कृतम्। इस मन्त्रसे इन्द्रकी पूजा करे और नष्ट द्रव्य-प्राप्ति आदिकी कामनासे इसीसे सम्पुटित कर पाठ करे। किष्किन्धा-काण्ड का ऋष्यादिन्यासॐ अस्य श्रीकिष्किन्धाकाण्डमहामन्त्रस्य भगवान् ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। सुग्रीवो देवता। सुं बीजम्। नम: शक्ति:। सुग्रीवेति कीलकम्। मम सुग्रीवप्रसादसिद्धार्थे किष्किन्धाकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ भगवदृषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ सुग्रीवदेवतायै नम: हृदये। ॐ सुं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ सुग्रीवाय कीलकाय नम: सर्वाङ्गे। करन्यासॐ सुग्रीवाय अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ सूर्यतनयाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ सर्ववानरपुङ्गवाय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ बलवते अनामिकाभ्यां नम:। ॐ राघवसखाय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ वशी राज्यं प्रयच्छतु इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस प्रकार ध्यान करे— सुग्रीवमर्कतनयं कपिवर्यवन्द्य- इस मन्त्रसे सुग्रीवकी पूजाकर—चाहे तो इसी श्लोकसे किष्किन्धाकाण्डका सम्पुटित पाठ करे। सुन्दर-काण्ड का विनियोग एवं ऋष्यादिन्यासॐ अस्य श्रीमत्सुन्दरकाण्डमहामन्त्रस्य भगवान् हनुमान् ऋषि:। अनुष्टुप् छन्द:। श्रीजगन्माता सीता देवता। श्रीं बीजम्। स्वाहा शक्ति:। सीतायै कीलकम्। सीताप्रसादसिद्धार्थं सुन्दरकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ भगवद्धनुमदृषये नम: शिरसि। अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। श्रीजगन्मातृसीतादेवतायै नम: हृदि। श्रीं बीजाय नम: गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पादयो:। सीतायै कीलकाय नम: सर्वाङ्गे। करन्यासॐ सीतायै अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ विदेहराजसुतायै तर्जनीभ्यां नम:। रामसुन्दर्यै मध्यमाभ्यां नम:। हनुमता समाश्रितायै अनामिकाभ्यां नम:। ॐ भूमिसुतायै कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ शरणं भजे करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। फिर इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस प्रकार ध्यान करे— सीतामुदारचरितां विधिसाम्बविष्णुवन्द्यां त्रिलोकजननीं शतकल्पवल्लीम्। सुन्दरकाण्डके पाठकी विशेष विधि है कि प्रतिदिन एकोत्तरवृत्तिसे क्रमश: एक-एक सर्ग पाठ बढ़ाते हुए ग्यारहवें दिन पाठ समाप्त कर दे। १२ वें दिन अवशिष्ट दो सर्गके साथ आरम्भके १० सर्ग पढ़े जायँ, १३ वें दिन ११ से २३ तक इस तरह तीन आवृत्तिके पाठसे समस्त कार्यकी सिद्धि होती है। दूसरा क्रम है—प्रतिदिन ५ अध्याय पाठका। इसमें भी पूर्वकी भाँति १४ वें दिन अन्तके ३ तथा प्रारम्भके दो सर्गका पाठ करे। सम्पुट पाठका मन्त्र है— “श्रीसीतायै नम:।”* लंका-काण्ड का विनियोग एवं ऋष्यादिन्यासॐ अस्य श्रीयुद्धकाण्डमहामन्त्रस्य विभीषण ऋषि:। अनुष्टुप्छन्द:। विधाता देवता। बं बीजम्। नम: शक्ति:। विधातेति कीलकम्। श्रीधातृप्रसादसिद्धार्थे युद्धकाण्डपारायणे विनियोग:। ॐ विभीषणऋषये नम: शिरसि। ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नम: मुखे। ॐ विधातृदेवतायै नम: हृदि। ॐ बं बीजाय नम: गुह्ये। ॐ नम: शक्तये नम: पादयो:। ॐ विधातेति कीलकाय नम: सर्वाङ्गे। करन्यासॐ विधात्रे नम: अङ्गुष्ठाभ्यां नम:। ॐ महादेवाय तर्जनीभ्यां नम:। ॐ भक्तानामभयप्रदाय मध्यमाभ्यां नम:। ॐ सर्वदेवप्रीतिकराय अनामिकाभ्यां नम:। ॐ भगवत्प्रियाय कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ॐ र्इश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। फिर इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस प्रकार ध्यान करना चाहिये— देवं विधातारमनन्तवीर्यं भक्ताभयं श्रीपरमादिदेवम्। फिर— विधातारं महादेवं भक्तानामभयप्रदम्। इस मन्त्रसे पञ्चोपचारद्वारा पूजाकर चाहे तो इसी मन्त्रसे सम्पुटित पाठ करे। इससे शत्रुपर विजय प्राप्त होती है एवं अप्रतिष्ठा नष्ट होती है। पुनर्वसु से प्रारम्भ कर आर्द्रा तक २७ दिनोंमें भी पूर्ण रामायण के पाठ की विधि है। ४० दिनोंका भी एक पारायण होता है। नवरात्र में भी इसके नवाह्नपाठका नियम है। १. चैत्रे माघे कार्तिके च सिते पक्षे च वाचयेत्। नवाहं सुमहापुण्यं श्रोतव्यं च प्रयत्नत:॥ २. श्रोतृभ्यश्च तथा वक्तुर्व्यासाद् ग्रन्थस्य चोच्चता। ३. हृदयादिन्यासकी विधि यह है कि ‘अङ्गुष्ठाभ्यां नम:’ के स्थानपर ‘हृदयाय नम:’ कहकर पाँचों अङ्गुलियोंसे हृदयका स्पर्श किया जाय। ‘तर्जनीभ्यां नम:’ के स्थानपर ‘शिरसे स्वाहा’ कहकर सिरका अग्रभाग छुआ जाय। ‘मध्यमाभ्यां नम:’ के स्थानपर ‘शिखायै वौषट्’ कहकर शिखाका स्पर्श किया जाय। ‘अनामिकाभ्यां नम:’ के बदले ‘कवचाय हुम्’ कहकर दाहिने हाथसे बायें कंधे तथा बायें हाथसे दाहिने कंधेका स्पर्श करे। ‘कनिष्ठिकाभ्यां नम:’ के बदले ‘नेत्रत्रयाय वौषट्’ कहकर नेत्रोंका स्पर्श करे तथा ‘करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:’ के बदले ‘अस्त्राय फट्’ कहकर तीन बार ताली बजाये। ४. ‘बृहद्धर्मपुराणके अनुसार रामायण का पाठ करने से पहले रामायण-कवच का भी पाठ कर लेना चाहिये। वह मङ्गलाचरणके पहले होना चाहिये। कम-से-कम प्रथम दिन इसका पाठ तो कर ही लेना चाहिये। कवच इस प्रकार है— ५. प्रथमे तु अयोध्याया: षट्सर्गान्ते शुभा स्थिति:। तस्यैवाशीतिसर्गान्ते द्वितीये दिवसे स्थिति:॥ ६. बृहद्धर्म पुराण में अलग-अलग काण्डों के पाठ के प्रयोजन इस प्रकार बतलाये गये हैं— * रामभद्र महेष्वास रघुवीर नृपोत्तम। भो दशास्यान्तकास्माकं रक्षां देहि श्रियं च ते॥ यह भी पढ़ें – रामायण मनका 108 रामायण पाठ कैसे करें – Ramayan Path Kaise Karein
रामायण पारायण विधि (Ramayan parayan vidhi)रामायण पारायण विधि कुछ इस प्रकार है: श्रीरामचरितमानस का यथोचित्त पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व शिव जी, हनुमान जी, गोस्वामी तुलसीदास जी और वाल्मीकि जी का पूजन एवं आवाहन करना चाहिए। तदुपरांत रामजी, सीताजी सहित तीनों भाइयों, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न का आवाहन करके षोडशोपचार पूजन एवं ध्यान करना चाहिए। इसके बाद पाठ प्रारंभ करें। पारायण की सम्पूर्ण विधि और रामायण शुरू करने से पहले क्या बोलते हैं, ये हमने आपके साथ पहले ही साझा किया है। रामायण पाठ के लाभ – Benefits of Ramayan
उम्मीद करते हैं कि हिंदीपाठ के माध्यम से रामायण पाठ और नियमों से जुड़ी सभी सस्याओं का निवारण हुआ होगा। भगवान राम और हनुमान जी की कृपा हमेशा आप सभी पर बनी रहे। रामायण शुरू करने से पहले क्या बोलना चाहिए?आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।। बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
रामायण पढ़ने के नियम क्या है?नियमित रूप से रामचरितमानस का पाठ करने के नियम. रामचरित मानस का पाठ करने से पहले चौकी पर पर सुंदर वस्त्र बिछाकर भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करें।. सर्वप्रथम हनुमान जी का आह्वाहन करें व उन्हें राम कथा में आमंत्रित करें। ... . हनुमान जी का आह्वाहन करने के पश्चात श्री गणपति का आह्वाहन करते हुए रामचरितमानस का पाठ शुरू करें।. रामायण की चौपाई कैसे पढ़ना चाहिए?चौपाई पढ़ने के नियम
इसके लिए सबसे पहले चौपाई की सिद्धी जरूरी है। इसके बाद जितनी भी बार आपको चौपाई पढ़नी हो उतनी संख्या यानी कि 11, 21, 51 या 108 का प्रण लें। इसके बाद नियमित रूप से तयशुदा संख्या में चौपाई का जप करें। साथ ही ख्याल रखें कि यदि सुबह के समय जप करते हैं तो सुबह करें शाम में करते हैं तो शाम में।
घर में रामायण का पाठ करने से क्या होता है?जिस घर में रामायण होती है वहां नकारात्मक शक्तियों का वास नहीं होता है। रामायण का पाठ करने से घर में आरोग्य बढ़ता है, बीमारियां कम होती हैं। जिस घर में देशी घी का दीपक जलाकर रामायण की प्रतिदिन आरती होती है उस घर पर श्रीराम की कृपा सदैव रहती है। जिस घर में पूर्णिमा को प्रति माह रामायण का पाठ होता है।
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