राष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य तीन विधियां है: उत्पाद विधि या मूल्य वृद्धि विधि वह विधि है जो एक लेखा वर्ष में देष की घरेलू सीमा के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक के उत्पादन में योगदान की गणना करके राष्ट्रीय आय को मापती है। आय विधि वह विधि है जो एक लेखा वर्श में उत्पादन के प्राथमिक साधनों (श्रम, भूमि, पूंजी और उद्यम) को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले में मजदूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रुप में किए गए भुगतान की गणना करके राष्ट्रीय आय को माप करती है। व्यय विधि वह विधि है जिसके द्वारा एक लेखा वर्ष में बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद पर किए गए अन्तिम व्यय को मापा जाता है। यह अन्तिम व्यय बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होता है। Show इस प्रकार, राष्ट्रीय आय एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में प्राप्त साधन सेवाओं अर्थात मजदूरी, ब्याज, लगान और लाभ का जोड़ है। राष्ट्रीय आय की अवधारणाराष्ट्रीय आय के विशेषज्ञों ने अर्थव्यवस्था की समस्त आय के विषय में छ: मुख्य अवधारणायें (Concepts) प्रस्तुत की हैं ये हैं
1. सकल राष्ट्रीय उत्पादयह राष्ट्रीय लेखे की एक बुनियादी अवधारणा है। किसी अर्थव्यवस्था में जो भी अन्तिम वस्तुएं (Final products) एवं सेवाएं एक वर्ष की अवधि में उत्पादित की जाती हैं उन सभी के बाजार मूल्य के जोड़ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) की गणना करते समय निम्न तीन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये :. प्रथम GNP में अन्तिम वस्तुओं (final goods) एवं सेवाओं मौद्रिक मूल्य को ही जोड़ा जाता है। मवर्ती वस्तुओं (Intermediate goods) एवं सेवाओं को नहीं। अन्तिम वस्तुओं वे होती है जो उपभोक्ताओं द्वारा अन्तिम रूप से उपभोग कर ली जाती है और इनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन में नहीं किया जाता। उसके विपरीत मध्यवर्ती वस्तुये उन्हें कहते हैं जो अन्य वस्तुओं के निर्माण में सहायक होती हैं अथवा निका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन में किया जता है। उदाहरणार्थ, कपड़ा अन्तिम उत्पाद है जबकि कपास, मध्यवर्ती, इसी प्रकार डबल रोटी अन्तिम वस्तु है जबकि आटा मध्यवर्ती। दूसरा, सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अनुमान लगाते समय यह भी जरूरी है कि उसमें केवल चालू वर्ष की उपज के मूल्यों को ही जोड़ा जाये अर्थात जो वस्तु जिस वर्ष पैदा की जाये, उसी वर्ष के GNP में सम्मिलित की जाये। इसका कारण यह है कि एकल राष्ट्रीय उत्पाद किसी अर्थव्यवस्था की उत्पादकता का संसूचक होता है। उदाहरणार्थ यदि को वस्तु 2009 में उत्पादित की गयी है और वह 2010 तक नहीं बिक पाती, तो वह वस्तु 2009 के GNP में ही सम्मिलित की जायेगी, 2010 के GNP में नहीं। तीसरे, कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से पूंजीगत वस्तुओं की घिसावट मूल्य ह्रास तथा प्रतिस्थापन लागत आदि को घटाया नहीं जाता है। वास्तव में यही कारण है कि इसे कुल या सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। 2. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादयद्यपि सकल राष्ट्रीय आय की धारणा उत्पादन एवं रोजगार सम्बन्धी दशाओं की अधिक विश्वसनीय सूचकांक है लेकिन इसके बावजूद समष्टि विश्लेषण (Macro Analysis) की यह धारणा दोषपूर्ण है। जिस प्रकार एक फर्म का कुल लाभ (Gross profit) उसकी वास्तविक स्थिति का चित्र प्रस्तुत नहीं करता बल्कि फर्म की सही सही स्थिति जानने के लिये शुद्ध लाभ (Net profit) की जानकारी करना आवश्यक होता है। ठीक उसी प्रकार GNP किसी देश की आर्थिक उपलब्धियों का धुंधला चित्र ही प्रस्तुत करता है ओर देश की सही अर्थों में आर्थिक प्रगति का मूल्यांकन करने के लिये उसके विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) की जानकारी करना आवश्यक माना जाता है। यदि कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में से मूल्य ह्रास आदि को घटा दिया जाय तो जो शेष बचता है उसे विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। इसको बाजार कीमतों पर राष्ट्रीय (National Income at Market Prices) भी कहा जाता है। नि:सन्देह, NNP की अवधारणा देश में हुई उत्पादन वृद्धि का एक सपाट प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है जिस कारण इसका ‘विकास के अर्थशास्त्र’ (growth economics) में एक विशेष महत्व है। किन्तु इस धारणा में एक गम्भीर दोष यह पाया जाता है कि पूंजीगत घिसावट अर्थात मूल्य àाास का सही सही अनुमान लगाना एक कठिन कार्य है जिस कारण NNP अनुमान कभी कभी भ्रमात्यक सिद्ध होते हैं। 3. राष्ट्रीय आय अथवा साधन लागत पर राष्ट्रीय आयउत्पति के सभी साधनों जैसे भूमि श्रम, पूंजी संगठन व साहसी को प्राप्त होने वाले आय सम्बन्धी भुगतानों के योग को राष्ट्रीय आय कहते हैं। दूसरे शब्दों में विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) में से उत्पादको द्वारा चुकाये गये अप्रत्यक्ष कों को घटा देने और सरकार द्वारा फर्मों को प्रदत्त आर्थिक सहायता (Subsdies) को जोड़कर देने पर, राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है। सूत्र के रूप में
प्रश्न उठता है कि राष्ट्रीय आय की मात्रा, विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) के बराबर क्यों नहीं होती ? अर्थात NNP में से अप्रत्यक्ष कर क्यों घटा दिये जाते हैं तथा इसमें आर्थिक सहायता क्यों जोड़ दी जाती है ? इसका उत्तर अत्यन्त सरल है। चूंकि NNP की कुल मात्रा उत्पत्ति के साधकों मके बीच वितरण के लिये उपलब्ध नहीं होती क्योंकि व्यावसायिक फर्मो को अपने उत्पादन पर सरकार को अप्रत्यक्ष कर (जैसे excise duty) भी चुकाने पड़ते हैं, इसलिये इन करों की मात्रा को NNP से घटा दिया जाता है। इसी प्रकार फर्मों को सरकार द्वारा कभी कभी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है जिसे NNP में जोड़ दिया जाता है। ध्यान में रखने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय अउभव की धारणा का सीधा सम्बन्ध आर्थिक न्याय की धारणा से होता है। 4. वैयक्तिक आयएक वर्ष की अवधि में एक देश के सभी व्यक्ति या परिवार जितनी आय वास्तव में प्राप्त करते हैं, उन सभी आयों के जोड़ों को वैयक्तिक आय (Personal Income) कहा जाता है। स्मरण रहे, एक देश में, किसी वर्ष विशेष के दौरान उत्पादन साधनों द्वारा अर्जित की गयी सम्ण्पूर्ण राष्ट्रीय आय उन्हें उपलब्ध नहीं होती अपितु उसमें से कुछ कटौतियां की जाती हैं। ये कटौतियां इस प्रकार हैं, नियमों द्वारा अपनी आय पर दिया गया कर भुगतान, कम्पनियों द्वारा न बांटा गया लाभांश वेतन भोगियों अथवा कर्मचारियों द्वारा प्रावीडेण्ट फण्ड इत्यादि की आंशदान। इसके विपरीत, कुछ ऐसी रकमें भी उत्पादन साधनों को प्राप्त होती हैं जिनके लिये उन्होंने को उत्पादन कार्य नहीं किया होता। ऐसी रकमों को हस्तांतरित भुगतान कहा जाता है। वृद्धावस्था पेन्शन, बेरोजगारी भत्ता, आदि हस्तांतरित भुगतान के कुछ उदाहरण हैं। संक्षेप में वैयक्तिक आय की गणना करते समय राष्ट्रीय आय में से निगम कर (Corporate Tax), कम्पनियेां द्वारा अवितरित लाभांश तथा सामाजिक सुरक्षा के लिये किये गये अनिवयार्य भुगतानों को घटाना चाहिये क्योंकि ये लोगों की आय को कम कर देते हैं लेकिन इसके साथ साथ लोगों को सामाजिक सुरक्षा के रूप कमें मिलने वाले लाभ जोड़ देने चाहिये क्योंकि ये हस्तान्तरणीय भुगतान लोगों की आय में वृद्धि कर देते हैं सूत्र के रूप में Personal Income = National Income — Social Security 5. व्यय योग्य वैयक्तिक आयव्यक्तियों अथवा परिवारों की जो वैयक्ति आय होती है, वह सारी की सारी उपभोग में नहीं ला जा सकती। उसका कारण यह है कि लोगों को अपनी निजी आय पर सरकार को कुछ प्रत्चक्ष करों जैसे आयकर, सम्पत्ति कर आदि, भी देना पड़ता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष करों के भुगतान करने के बाद जो शेष बचता है उसे उपभोग्य वैयक्तिक आय अथवा व्यय योग्य वैयक्तिक आय कहते हैं। सूत्र के रूप में, Disposable Personal Income = Persoanl Income—Direct Taxes यह को जरूरी नहीं कि सम्पूर्ण उपभोग्य वैयक्तिक आय को उपभोग दर व्यय कर दिया जाये। हाँ आम तौर पर उपभोक्ता द्वारा अपनी आय का अक्तिाकांश भाग उपभोग पर व्यय कर दिया जाता है और कुछ भाग बचा लिया जाता है। अत: Disposable Personal Income = Consumption + Saving 6. सकल घरेलू उत्पादराष्ट्रीय आय की उपर्युक्त पांच धारणाओं के अतिरिक्त एक और धारणा की भी प्राय: प्रयोग किया जाता है। यह है सकल घरेलू उत्पाद (GDP)। यदि किसी देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करने में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (Net factor income from abroad) को न सम्मिलित करें तो वह ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) कहलाता है GDP = GNP — Net factor Income from abroad 7. शुद्ध घरेलू उत्पादसकल घरेलू उत्पाद में से मशीनों पर संयंत्रों के प्रयोग के कारण होने वाली टूट फूट या घिसावट से उत्पन्न मूल्य ह्रास (Depreciation) घटा देने पर शुद्ध घरेलू उत्पाद का अनुमान प्राप्त हो जाता है। राष्ट्रीय आय को मापने की विधियांराष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य तीन विधियां है: 1. उत्पाद विधि या मूल्य वृद्धि विधि (Product Method or Value Added Method) उत्पाद विधि या मूल्य वृद्धि विधि वह विधि है जो एक लेखा वर्ष में देष की घरेलू सीमा के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक के उत्पादन में योगदान की गणना करके राष्ट्रीय आय को मापती है। 2. आय विधि (Income Method) - आय विधि वह विधि है जो एक लेखा वर्ष में उत्पादन के प्राथमिक साधनों (श्रम, भूमि, पूंजी और उद्यम) को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले में मजदूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रुप में किए गए भुगतान की गणना करके राष्ट्रीय आय को माप करती है। 3. व्यय विधि (Expenditure Method) - व्यय विधि वह विधि है जिसके द्वारा एक लेखा वर्ष में बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद पर किए गए अन्तिम व्यय को मापा जाता है। यह अन्तिम व्यय बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होता है। राष्ट्रीय आय को मापने में कठिनाइयांकिसी देश की राष्ट्रीय आय की गणना करते समय अनेक कठिनाइयों एवं जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। ये कठिनाइयां एवं जटिलतायें इसलिये उत्पन्न होती हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों (Sectors) के बारे में विश्वसनीय आंकड़ों का या तो पूर्ण आभाव रहता है और/या वे केवल आंशिक रूप में ही उपलब्ध होते हैं। ये समस्याएं इसलिये भी उत्पन्न होती हैं क्योंकि इस कार्य को सम्पन्न करने वाली संस्थाओं को (विशेषकर अल्पविकसित देशों में) राष्ट्रीय लेखा विधियों का स्पष्ट एवं सही ज्ञान नहीं होता। पश्चिम के विकसित देशों में राष्ट्रीय आय सम्बन्धी गणनाओं के कार्य में इतनी कठिनाइयां एवं जटिलतायें उत्पन्न नहीं होती। क्योंकि इन देशों ने अपनी सांख्यिकी प्रणालियों को पर्याप्त ऊंचे स्तर तक विकसित कर लिया है। इसके अतिरिक्त वे देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं के विभिन्न खण्डों के बारे में विस्तृत एवं विश्वसनीय आँकड़े भी एकत्र कर कसते हैं। लेकिन एशिया एवं अफ्रीका के पिछड़े एवं अल्पविकसित देशों पर यह बात लागू नहीं होती। राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय इन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ये कठिनाइयां सांख्यिकीय (Statistical) एवं अवधारणात्मक (Conceptual) दोनों प्रकार की हैं।
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